(जनसंदेश टाइम्स, 09 नवम्बर, 2011 के 'ब्लॉगवाणी' कॉलम में प्रकाशित) पिछले एक दशक में भारतीय साहित्य में जो विषय चर्चा के के...
(जनसंदेश टाइम्स, 09 नवम्बर, 2011 के 'ब्लॉगवाणी' कॉलम में प्रकाशित)
पिछले एक दशक में भारतीय साहित्य में जो विषय चर्चा के केन्द्र में रहे हैं, उनमें नारीवाद प्रमुख है। नारीवाद एक प्रकार का दर्शन है, जो समाज में नारी की निम्न स्थिति के कारकों की पड़ताल करने और उसमें सुधार करने की आवश्यकता पर बल देता है। भारत में लम्बे समय तक नारीवाद को पश्चिमी परिप्रेक्ष्य से जोड़ कर देखा जाता रहा है, जबकि यहाँ पर पितृसत्तात्मक समाज हर युग में मौजूद रहा है। एक तरह से देखा जाए तो जाति, वर्ण, वर्ग और धर्म के समुच्चय ने भारत में स्थितियाँ और ज्यादा जटिल बना दी हैं, जिसे तोड़ना बेहद मुश्किल प्रतीत होता है। इसीलिए नारीवादियों ने पिछले एक दशक में भारतीय परिप्रेक्ष्य में नारीवाद को समझने और उसकी चेतना को समाज के हर वर्ग तक पहुँचाने के गम्भीर प्रयत्न किये हैं। सम्भवत: यही कारण है कि आज नारीवाद की गूँज शहरों से होती हुई कस्बों और गाँवों तक जा पहुँची है।
नारीवाद एक तरह से नारी से जुड़ी हुई समस्याओं के कारणों की पड़ताल है, जिसका मुख्य उद्देश्य है नारी में चेतना जागृत करना, जिससे वह उन समस्याओं के कारणों को समझ सके और उनसे निकलने के लिए प्रयत्नशील हो सके। जबकि इस दिशा में किया गया कार्य नारी सशक्तिकरण कहलाता है। इस तरह से देखा जाए तो नारीवाद और नारी सशक्तिकरण एक सिक्के के दो पहलू के समान प्रतीत होते हैं, जो परोक्ष रूप में एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। इस विषय पर चेतना जागृत करने के उद्देश्य से ब्लॉग-जगत में काफी लोग, लम्बे समय से प्रयत्नशील हैं। ऐसे ही एक गम्भीर और ईमानदार प्रयास की सूत्रधार हैं सुश्री आराधना चतुर्वेदी ‘मुक्ति’।
आराधना स्वाध्यायी, सजग पाठक के साथ-साथ एक गंभीर ब्लॉगर हैं। लेकिन इसके बावजूद उनके भीतर किसी मासूम बच्चे की तरह संवेदनाओं का पुष्प भी खिला हुआ है। यही कारण है कि वे रात में गली के बाहर सोते हुए कुत्ते के बच्चे की आवाज सुनकर सो नहीं पाती हैं और किताबें देखकर दिवानों की तरह उन्हें लेने के लिए मचल उठती हैं। लेकिन इसी के साथ ही साथ वे अराजक स्थितियों को देखकर असहज भी हो जाती हैं, चाहे वह समाज में रीति-रिवाजों के बहाने पनपी हो, अथवा पुस्तक मेले में सुनियोजन के अभाव में। इसीलिए वे उसे सुधारने के लिए सलाह देने से नहीं चूकतीं। लेकिन उसके बावजूद जब उनकी बात को अनसुना कर दिया जाता है, तो वे एक छोटी बच्ची की तरह रूठ कर उससे मुँह फेर लेती हैं। उनका व्यक्तिगत ब्लॉग ‘आराधना का ब्लॉग’ (http://draradhana.wordpress.com) उनके निष्कलुष मन की ऐसे ढ़रों कहानियाँ सजाए हुए है।
आराधना संस्कृत साहित्य की विदुषी हैं और जे.एन.यू. में आई.सी.एस.एस.आर. की फ़ेलो के रूप में प्राचीन ग्रन्थों के आलोक में स्त्री अस्मिता के सम्बंध में शोधकार्य कर रही हैं। उन्होंने नारी होने के नाते समाज में जो कुछ झेला है, उसे वे शब्दों में ढ़ाल कर ‘नारीवादी-बहस’ (http://feminist-poems-articles.blogspot.com) ब्लॉग पर प्रस्तुत करती हैं। उनका यह ब्लॉग नारीवादी सिद्धाँतों की साधारण शब्दों में व्याख्या है, जिसके द्वारा नारी जगत से जुड़ी समस्याओं के कारणों को समझने और उनके समाधान को खोजने का प्रयास किया जाता है।
आराधना कहती हैं कि बहुत से लोग इस चीज को स्वीकार नहीं करते कि हमारे समाज में महिलाओं की स्थिति दोयम दर्ज़े की है। हालाँकि सच यही है। उनका मानना है कि महिलायें किसी भी मामले में पुरुषों से कम नहीं हैं। यदि उन्हें अवसर दिया जाए, तो वे इसे साबित करके दिखा भी देती हैं। परन्तु हमारे समाज में नारी को उन अवसरों से वंचित कर दिया जाता है। आराधना ने अपने शोध के द्वारा यह प्रमाणित किया है कि एक ओर हमारा समाज ‘यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते’ के द्वारा स्त्री को बर्गलाने का प्रयास करता है, दूसरी ओर ‘न स्त्री स्वातंत्र्यमर्हति’ के द्वारा पुरूषों का वर्चस्व बनाए रखने के लिए प्रयत्नशील रहता है। उनके इस कथ्य के समर्थन में ‘गार्गी-याज्ञवल्क्य संवाद’, भी है, जिसका पुरूष सत्तात्मक समाज के पास कोई जवाब नहीं है। आराधना इस दुष्चक्र को तोड़ने की हिमायती हैं। वे चाहती हैं कि नारी को भी वही अधिकार मिलने चाहिए, जो हमारे समाज में पुरूषों को प्राप्त हैं। वे बताती है कि जब तक हमारे समाज में भ्रूण-हत्या, लड़का-लड़की में भेद, दहेज, यौन शोषण, बलात्कार आदि जैसी समस्याएँ बनी रहेंगी, नारीवाद की जरूरत भी बनी रहेगी।
आराधना सच्चे अर्थों में भारत की आधुनिक नारी हैं। वे संस्कृत साहित्य की अध्येता होकर भी परम्परावादी नहीं हैं, वे संस्कृति के श्रेष्ठ मूल्यों के प्रति निष्ठावान हैं, लेकिन पोंगापंथी मानसिकता की आलोचक भी हैं। उन्होंने अपनी समालोचनात्मक दृष्टि से नारीवादी चेतना को एक प्रखर रूप प्रदान किया है। उन्हें ब्लॉग जगत में पूर्वाग्रहों से मुक्त होकर नारीवाद के प्रत्येक्ष पक्ष पर तार्किक दृष्टि से विचार करने के लिए जाना जाता है। यही कारण है कि उनका ब्लॉग ‘नारीवादी बहस’ नारीवादी चेतना के सम्पूर्ण इन्साइक्लोपीडिया के रूप में पहचाना जाता है।
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सुंदर, सारगर्भित ब्लॉग समीक्षा ..आभार
जवाब देंहटाएंआपके पोस्ट पर आना सार्थक लगा । मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है । सादर।
जवाब देंहटाएंआराधना ब्लॉग जगत की एक विदुषी हैं और विषयों का गंभीर और जिम्मेदार विवेचन उनकी विशेषता है ....
जवाब देंहटाएंआराधना जी के अन्य ब्लॉग तो पढ़ना हो जाता है।
जवाब देंहटाएंसटीक समीक्षा डॉ साहब !बधाई कसावदार रपट के लिए .
जवाब देंहटाएंजाकिर जी नमस्कार, सुन्दर ब्लाग समीक्षा लिखी आपने आराधना जी के ब्लाग से परिचय के लिये धन्यवाद्।
जवाब देंहटाएंसटीक और कसावदार समीक्षा !बधाई डॉ .ज़ाकिर भाई !
जवाब देंहटाएंसुन्दर समुचित समीक्षा.
जवाब देंहटाएंआराधनाजी के बारे में जानकर अच्छा लगा।
जवाब देंहटाएंजाकिर जी बहुत सुंदर और समुचित समीक्षा की आपने
जवाब देंहटाएंबहुत खूब.बधाई...
मेरे नई पोस्ट में स्वागत है
आराधनाजी के बारे में जानकर अच्छा लगा।
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