('जनसंदेश टाइम्स', 21 सितम्बर, 2011 के 'ब्लॉगवाणी' कॉलम में प्रकाशित ब्लॉग समीक्षा) एक समय था जब स्त्रियाँ को ...
('जनसंदेश टाइम्स', 21 सितम्बर, 2011 के
'ब्लॉगवाणी' कॉलम में प्रकाशित ब्लॉग समीक्षा)
एक समय था जब स्त्रियाँ को सिर्फ भोग की वस्तु माना जाता था। दुनिया जहान की किसी चीज से अगर उनका वास्ता था, तो वह था सिर्फ सजना-संवरना और अपने पति तथा परिवार की सेवा करना। लेकिन युग बदला, लोग बदले। बदले हुए समय में लोगों, विशेषकर स्त्रियों ने जब अपनी स्थितियों का आकलन किया, तो पाया कि उन्हें सामाजिक रूढि़यों में जकड़ कर रखने के लिए कितने सारे इंतजाम किये गये हैं। ये इंतजामात बेहद पुख्ता थे, लेकिन इतने भी मजबूत नहीं कि एक जागी हुई कौम को रोक सकें। और अंतत: वे चटखना शुरू हुए। प्रतिक्रिया स्वरूप जहाँ इन प्रयासों पर हाय-तौबा मची, वहीं इनके सार्थक परिणाम भी सामने आए। नतीजा अब सबके सामने है। आज हमारे सामने एक आधुनिक नारी है, जो पुरूष के साथ कदम से कदम ही नहीं मिला रही है, वरन तमाम क्षेत्रों में उसे पीछे भी छोड़ रही है। यह कोई मंजिल तो नहीं, पर एक शुरूआत तो है ही।
नारी शक्ति के इस अभ्युदय में जहाँ एक ओर समाज के विभिन्न क्षेत्रों में आगे आ रही प्रतिभासम्पन्न महिलाओं द्वारा तय किये गये मील के पत्थरों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, वहीं दूसरी ओर अनेक विचारशील महिलाओं ने अपने विरूद्ध रचे जाने वाले षडयंत्रों के खुलासे करके भी महिला शक्ति के विकास में भरपूर योगदान दिया है। प्रशंसा का विषय यह है कि दिनों दिन ऐसी सजग महिलाओं की संख्या बढ़ रही है। ये महिलाएँ अब महानगरों और हाई क्लॉस सोसाइटी में ही नहीं दिखतीं, इनकी उपस्थिति अब मध्यवर्ग में भी नजर आने लगी है। यही कारण है कि पिछले कुछ एक वर्षों में तेजी से विकसित हुए ब्लॉग जगत में भी ऐसी जागरूक महिलाओं की संख्या तेजी से बढ़ रही है। लखनऊ निवासी प्रतिभा कटियार एक ऐसी ही विचारशील ब्लॉगर हैं, जिनके विचारों की अनुगूँज उनके ब्लॉग ‘प्रतिभा की दुनिया’ (http://pratibhakatiyar.blogspot.com) में भलीभाँति सुनी जा सकती है।
पेशे से पत्रकार प्रतिभा उन घोषित नारीवादियों की तरह नहीं हैं, जो हर बात और हर मुद्दे पर अपने अस्त्र-शस्त्र लेकर युद्ध के लिए निकल पड़ती हैं। वे मूलत: एक कवियत्री हैं और जीवन को प्रेममय बनाने की पक्षधर हैं। पर उनका मानना है कि प्रेम बराबर वालों के बीच जन्मने वाली चीज है। वह देवता और भक्त के बीच नहीं पनप सकता। और दुर्भाग्य से हमारे समाज की संरचना कुछ ऐसी ही है। वे बताती हैं कि हमारा समाज बचपन से ही नर के भीतर उसकी विशिष्टता/देवत्व के भाव भरता है और नारी को कमजोर/असुरक्षित महसूस कराने का षणयंत्र रचता है। लेकिन वह जोड़ी एक ‘असुरक्षित स्त्री’ और ‘देवता पुरूष’ की ही बनाता है। वे कहती हैं कि ऐसे में समाज का हश्र वही तो होगा, जो हो रहा है। संतुलन गड़बड़ायेगा। लेकिन अब स्त्री जाग रही है। वह धर्म के रचाए इस कुचक्र को समझ रही है और देवता के बजाए दोस्त पति की तलाश कर रही है।
प्रतिभा के ब्लॉग से गुजरते हुए वहाँ एक उन्मुक्त लड़की नज़र आती है। वह मौका मिलने पर निर्भय होकर हंसना चाहती है, बारिश में भीगना चाहती है और अपने वजूद को एक सार्थक पहचान दिलाना चाहती है। इन सबसे बड़ी बात यह कि वह जिदंगी को जीने की ख्वाहिशमंद है, एक ऐसी जिंदगी, जिसमें भरपूर साँस लेने की गुंजाइश हो, अपने सपनों को आकार देने का स्पेस हो, अपनी आवाज को लोगों तक पहुँचने का अधिकार हो। इसीलिए वह सरगम के सात स्वरों में पंचम को सबसे ज्यादा पसंद करती है। प से पंचम, प से प्राण, प से प्यास, प से पानी और प से प्यार..।
प्रतिभा की पोस्टों में प्रेम विभिन्न रूवरूपों में दिखता है। वह कभी प्रेयसी के रूप में, कभी पत्नी, कभी बेटी, तो कभी माँ के रूप में नजर आता है। पर जिस रूप में वह सर्वाधिक छलकता है, वह सच्चे दोस्त का रूप है। वे भावनाओं के बादल पर सवार होकर मस्तमौला घूमने वाली कोई अल्हड़ युवती नहीं, आज के आधुनिक समाज की इंटेलेक्चुअल लेडी हैं, जो एक ओर जिंदगी को जिंदादिली के साथ जीती है, तो दूसरी ओर कार्ल मार्क्स, काशीनाथ सिंह, पाब्लो नरूदा, शिम्बोर्स्का और कैफी आजमी की भी बात करती है। वे सिर्फ लिखने के लिए नहीं लिखती हैं। उनके लिए लिखना कोई लग्जरी नहीं, एक गहन पीड़ा से गुजरकर सुंदर संसार का सपना देखने के समान है। वे इसलिए लिखती हैं, जिससे किसी की आँखों में विश्वास की, साहस की, प्रेम की इबारत लिख सकें। यही कारण है उनका लिखा एक-एक शब्द पाठक के दिल पर असर करता है और उनका बनाया हुआ हर शब्द-चित्र पाठकों के हृदय में उतर जाता है।
Keywords: Pratibha Katiyar, Pratibha Ki Duniya Jansandesh Times, Blog Review, Indian Blogs, Hindi Bloges, Indian Bloggers, Hindi Bloggers
प्रतिभाजी को नियमित पढ़ना अच्छा लगता है।
जवाब देंहटाएंbahut hi sahi vyakhyaa pratibha ji ki
जवाब देंहटाएंबढ़िया है आपका लेखन,
जवाब देंहटाएंबधाई,
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
वाह क्या प्रस्तुति है .....!!!! बहुत ही बढ़िया तेवर....! प्रतिभा जी का ब्लॉग अब तो पढना ही पड़ेगा.
जवाब देंहटाएंसच कहा है आपने.
जवाब देंहटाएंआपसे सहमत सही बात जाकिर भाई
जवाब देंहटाएंसच कहा है आपने|
जवाब देंहटाएंसच कहा है आपने|
जवाब देंहटाएंपहली बार जाकिर जी की पोस्ट पढ़कर आया हूँ ....आपकी रचनाएं प्रभावित करने में कामयाब हैं !
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें आपको !
बल्ले बल्ले
जवाब देंहटाएंसही बात है!
जवाब देंहटाएंआपसे सहमत हैं!
धन्यवाद जाकिर ! प्रतिभा की कविताएँ वास्तव में प्रभाव शाली हैं और व्यक्तित्व सहज !
जवाब देंहटाएंSunder Sameeksha...Achche blog se parichay Karwaya aapne...
जवाब देंहटाएंप्रतिभा के ब्लॉग से गुजरते हुए वहाँ एक उन्मुक्त लड़की नज़र आती है। वह मौका मिलने पर निर्भय होकर हंसना चाहती है, बारिश में भीगना चाहती है और अपने वजूद को एक सार्थक पहचान दिलाना चाहती है। इन सबसे बड़ी बात यह कि वह जिदंगी को जीने की ख्वाहिशमंद है, एक ऐसी जिंदगी, जिसमें भरपूर साँस लेने की गुंजाइश हो, अपने सपनों को आकार देने का स्पेस हो, अपनी आवाज को लोगों तक पहुँचने का अधिकार हो। इसीलिए वह सरगम के सात स्वरों में पंचम को सबसे ज्यादा पसंद करती है। प से पंचम, प से प्राण, प से प्यास, प से पानी और प से प्यार..।
जवाब देंहटाएंपसंद आई यह बिंदास अंदाज़ में जीती लडकी .बराबरों में प्यार तलाशती .आदमी में आदमी तलाशती .
बहुत शुक्रिया जाकिर! आप सब लोगों का दिल से आभार!
जवाब देंहटाएंअफसोस कि उनके ब्लॉग पर नियमित जाना नहीं हो पाया। आपके परिचय के बाद,ब्लॉग का विस्तृत अवलोकन एक सुखद अनुभव सिद्ध हुआ।
जवाब देंहटाएंsachmooch! aacha lagta hai Pratibha ki duniya me aakar!
जवाब देंहटाएंsahmat hoon har shabd se.. prtibha samvedansheel aur buddhijivi hain.. bahut sundar likhti hain..
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िया
जवाब देंहटाएंबढ़िया प्रस्तुति
जवाब देंहटाएं