('जनसंदेश टाइम्स', 14 सितम्बर, 2011 के 'ब्लॉगवाणी' कॉलम में प्रकाशित ब्लॉग समीक्षा) मनोविज्ञान कहता है क...
मनोविज्ञान कहता है कि प्रत्येक व्यक्ति के भीतर अपनी प्रशंसा सुनने की एक आदिम चाहत पाई है। यह चाहत ही उसे ‘कुछ ऐसा’ करने के लिए प्रेरित करती है, जो सामान्यजन की भीड़ में उसे विशिष्ट बनाए, मान-सम्मान दिलाए। दुनिया के तमाम कलाकार, खिलाड़ी, लेखक, समाजसेवक, धार्मिक नेता आदि इसी भाव के द्वारा संचालित होते हैं। यह अलग बात है कि ऐसे ज्यादातर लोग अपनी इस चाहत को ‘ग्लोरीफाई’ करने के लिए इसे ‘स्वान्त:सुखाय’ अथवा ‘प्रभु इच्छा’ जैसे विशेषणों द्वारा भरमाते हुए नजर आते हैं। टीवी अथवा फिल्मों की पटकथा के जानकार इसी महीन सूत्र का प्रयोग करते हुए अपने पात्रों को सामान्य से विशेष बनाने का काम करते हैं। इसके लिए वे अपने पात्रों में एक या एक से अधिक ऐसे गुण/अवगुण (अत्यधिक कर्मकाण्डी होना, सदैव दूसरों की मदद करना, तकियाकलाम इस्तेमाल करना, हर समय किसी खास चीज/व्यक्ति की तारीफ करना, बात को किसी विशेष तरीके से कहना आदि) जोड़ देते हैं, जिससे वह चरित्र दर्शकों की नजर में चढ़ जाता है।
इस मानवीय चाहत को परवान चढ़ाने में जो साधन उपयोग में लाए जाते हैं, उनमें आदिकाल से ही ‘लेखनी’ का भी महत्वपूर्ण स्थान रहा है। लेखनी अक्सर कविता, कहानी, उपन्यास, लेख आदि रूपों में चलती है और अगर किसी व्यक्ति से इनमें से एक विधा भी सध जाए, तो उसकी चाहत कभी-कभी उम्मीद से ज्यादा भी रंग ले आती है। लेकिन जिस प्रकार अंग्रेजी भाषा में हर नियम का कोई न कोई अपवाद अवश्य होता है, उसी प्रकार हमारे समाज में भी मनोविज्ञान की इस धारणा का एक दमदार अपवाद नजर आता है। यह अपवाद ‘उन्मुक्त’ के रूप में अपनी पहचान बताता है, पर वह कौन है, कहाँ रहता है, क्या करता है, कैसा दिखता है को अर्थहीन बताते हुए अपनी असली पहचान छिपा जाता है।
पर्दे के पीछे से छिपकर लेखन के क्षेत्र में उन्मुक्त उड़ान भरने वाले इस कलम के धनी लेखक के ब्लॉग का नाम भी ‘उन्मुक्त’ (http://unmukt-hindi.blogspot.com) है और आश्चर्यजनक रूप से यहाँ पर पाई जाने वाली बेशुमार उपयोगी सामग्री ‘क्रिएटिव कॉमन्स् शून्य’ के अन्तर्गत उपलब्ध है। यह क्रिएटिव कॉमनस् के द्वारा निकाला गया नया लाइसेन्स है, जिसमें लेखक अपनी रचनाओं से सम्बंधित कोई भी अधिकार अपने पास नहीं रखता है।
उन्मुक्त अपने अधिकतम परिचय में स्वयँ को मुन्ने के बापू के रूप में बताते हैं। यहाँ पर ‘मुन्ना’ उनका बेटा है, जो विदेश में अपनी पत्नी परी (प्यार का नाम) के साथ विज्ञान सम्बंधी शोधकार्य करता है। मुनने की माँ (शुभा), जोकि अध्यापिका हैं, अक्सर उनकी प्रेम-तिकड़ी (किताब, कम्प्यूटर और पालतू कुत्ता ‘बॉक्सर’, जिसे अपनी जबान से चाट कर प्यार जताने का शौक है) से त्रस्त रहती हैं और अक्सर इन तीन सवालों से जूझती रहती हैं कि वे इन तीनों के बीच आती हैं कि नहीं? यदि आती हैं, तो कहाँ? और यदि नहीं आती हैं, तो फिर कहाँ जाती हैं?
उन्मुक्त ब्लॉग जगत के सर्वाधिक विविधता रखने वाले सकारात्मक ब्लॉगर हैं। वे अपनी बातों को तर्कपूर्ण ढ़ंग से प्रस्तुत करने के लिए पहचाने जाते हैं और अपने अद्भुत ज्ञान से पाठकों को मंत्रमुग्ध करते नजर आते हैं। वे एक घुमक्कड़ जीव के रूप में जाने जाते हैं। भारत के कोने-कोने में पहुंचकर वे वहाँ से ऐसी-ऐसी महत्वपूर्ण चीजें खोज लाते हैं कि पाठक उन्हें पढ़कर मंत्रमुग्ध सा हो जाता है। उनकी चिट्ठियों (पोस्टों) में सिर्फ यात्राओं की औपचारिक सूचनाएँ भर नहीं होतीं, वहाँ की संस्कृति, विशेषता और तत्सम्बंधी चीजों की गम्भीर चर्चा होती है, जो उनके ब्लॉग को खास बनाती है।
कानून, खागोलशास्त्र, साफ्टवेयर, विज्ञान, पुस्तक समीक्षा, महिला अधिकार, पॉडकॉस्ट, सूचना प्रौद्योगिकी और जीवनियों में विशेष रूचि रखने वाले उन्मुक्त तकनीक के जानकार ही नहीं उसके भरपूर इस्तेमाल को भी दर्शाते हैं। यही कारण है कि वे सर्च इंजनों की प्रवृत्तियों को समझते हुए एक ओर जहाँ अपनी पोस्ट की भूमिका, उसके महत्व को अलग से दर्शाते हैं, वहीं उसके समस्त कोणों को दर्शाने वाले भरपूर लेबलों को भी उपयोग में लाते हैं। उन्मुक्त इस बात से भी परिचित हैं कि सर्च इंजनों पर जाने वाले पाठक अभी भी ज्यादातर हिन्दी की तुलना में अंग्रेजी का सहारा लेते हैं, इसीलिए वे प्रत्येक पोस्ट के बारे में एक संक्षिप्त परिचय अंग्रेजी में भी लगाते हैं।
भाषा के धनी, प्रस्तुतिकरण के विशेषज्ञ और पाठकीय समझ को गहराई से समझने वाली उन्मुक्त अपनी हर बात को इतनी सरलता से कहते हैं कि वैचारिक रूप से असहमत होने वाला पाठक भी उनकी इस शैली की प्रशंसा किए बिना नहीं रह पाता। यही कारण है कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण रखने एवं तमाम पोंगापंथी विचारधाराओं पर तार्किक छूरी चलाने के बावजूद बिना किसी बवंडर में फंसे हुए वे चुपचाप निकल जाते हैं। उनका धीर-गम्भीर ब्लॉग हिन्दी की शान है। पर्दे के पीछे रहने के बावजूद वे सार्थक हिन्दी ब्लॉगिंग की एक सशक्त पहचान हैं।
वे हिन्दी ब्लॉग जगत के मैन्ड्रेक हैं मगर नकाब फैंटम से उधार लिए हैं कहीं जनाडू में रहते हैं -मेरे फेवरिट ब्लॉगर हैं !
जवाब देंहटाएंनियमित पढ़ता हूँ और प्रभावित भी हूँ।
जवाब देंहटाएंउन्मुक्त जी के ब्लाग पर जाना हमेशा ज्ञानवर्धक होता है। मैं तो उन का इसलिए भी आभारी हूँ कि तीसरा खंबा पर मुझ से कभी त्रुटि हो जाती है तो वे तुरंत मुझे सूचित करते हैं जिस से उसे तुरंत दुरुस्त किया जा सके।
जवाब देंहटाएंabhaar unmukt jee se parichay ke liye
जवाब देंहटाएंमैं भी पढ़ता रहता हूँ,मेरे भी पसंदीदा ब्लोगर हैं.
जवाब देंहटाएंमेरे बारे में अच्छे विचार रखने के लिये शुक्रिया, धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंओहो...सुन्दर ब्लॉग का पता देने के लिए आभार.
जवाब देंहटाएंउन्मुक्त जी के बारे मे जानकर अच्छा लगा…………आभार्।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी ब्लॉग समीक्षा ..... बेहतरीन ब्लॉग से परिचय कराया
जवाब देंहटाएंबढ़िया समीक्षा।
जवाब देंहटाएंपरिचय कराने के लिये शुक्रिया.
जवाब देंहटाएंडॉ जाकिर भाई !आप सदैव ही अच्छे लोगों को लेकर आतें हैं .मिलवातें हैं हम लोगों से आभार आपके इस स्तुत्य काम के लिए .
जवाब देंहटाएंइस जानकारी के लिए शुक्रिया, आप ब्लाग जगत को और समृद्ध और सुंदर बनाने के लिए लगातार प्रयत्नशील हैं इसके लिए आभार
जवाब देंहटाएंप्रेरक पोस्ट।
जवाब देंहटाएंअच्छा परिचय कराया. धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंउन्मुक्त जी के बारे मे जानकर अच्छा लगा...बहुत अच्छी ब्लॉग समीक्षा ....आभार
जवाब देंहटाएंउन्मुक्त जी वे पहले ब्लॉगर हैं जिन्होने मेरी पहली ही पोस्ट पर टिप्पणी देकर मेरा उत्साह बढाया । आप का बहुत शुक्रिया उनके बारे में अधिक जानकारी देने के लिये ।
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