('जनसंदेश टाइम्स', 07 सितम्बर, 2011 के 'ब्लॉगवाणी' कॉलम में प्रकाशित ब्लॉग समीक्षा) नि:संदेह यह एक तेजी से बदलता हु...
('जनसंदेश टाइम्स', 07 सितम्बर, 2011 के
'ब्लॉगवाणी' कॉलम में प्रकाशित ब्लॉग समीक्षा)
'ब्लॉगवाणी' कॉलम में प्रकाशित ब्लॉग समीक्षा)
नि:संदेह यह एक तेजी से बदलता हुआ युग है। इस युग ने जहाँ एक ओर हमारे लिए सुविधाओं का एक भरा-पूरा संसार जुटाया है, वहीं बदलाव की इस आँधी ने हमारे सामाजिक ढाँचे को भी बुरी तरह से क्षतिग्रस्त किया है। इन बदलावों मार अगर किसी को सबसे अधिक झेलनी पड़ी है, तो वे हैं हमारे समाज की सबसे खूबसूरत संरचना, बच्चे। एक ओर बच्चे जहाँ माँ-बाप की आधुनिक सुख-सुविधाओं की रेस में कहीं पीछे छूट गये से लगते हैं, वहीं दूसरी ओर उनका स्कूल का बस्ता उन पर किसी ‘भूत’ की तरह सवार हो गया है। नतीजतन उनकी मासूमियत, उनका बचपना उनसे दूर होता जा रहा है। यही कारण है कि वे एक सामाजिक प्राणी की तरह विकसित होने के स्थान पर किसी बड़ी मशीन के उपयोगी पुर्जे की तरह ढ़लने को विवश हो रहे हैं।
पर आश्चर्य का विषय यह है कि बालमन के इस क्रूर रूपांतरण को न तो अभिभावक समझ पा रहे हैं और न ही समाज विज्ञानी। शिक्षा शास्त्रियों को तो खैर अपनी दुकान चलाने से ही फुर्सत नहीं है, पर हैरत यह देखकर भी होती है कि हमारे सुधी साहित्यकारगण भी इस विषय पर आँखें मूँदे नजर आते हैं। हालाँकि साहित्य के पाठकों के अभाव का रोना रोते हुए उन्हें अक्सर देखा जा सकता है, पर वे कभी यह सोच ही नहीं पाते कि यदि पाश्चात्य देशों और बांग्ला साहित्य की तरह बच्चों को भी अपनी चिन्ताओं में शामिल कर लें, तो उनकी इस परेशानी का हल बड़ी आसानी से निकल सकता है।
लेकिन स्थितियाँ इतनी भी नकारात्मक नहीं हैं, जितनी कि ऊपरी तौर से दिखाई पड़ती हैं। कारण बाल-हित चिंतकों का एक ऐसा वर्ग समाज में अब भी सक्रिय है, जो अपनी बौद्धिक क्षमताओं का उपयोग बचपन को बचाने और संवारने में करता दिख रहा है। ऐसे ही एक सजग चिंतक हैं हेमंत कुमार, जो विपरीत हवाओं के बावजूद अपने ब्लॉग ‘
एजूकेशनल टीवी सेन्टर, लखनऊ में कार्यक्रम निर्माता के रूप में कार्यरत हेमंत एक संवेदनशील रचनाकार हैं। बच्चों के लिए शिक्षाप्रद कार्यक्रम तैयार करने के साथ-साथ वे एक लम्बे समय से उनके लिए रोचक कविताएँ, कहानियाँ और नाटक रचते रहे हैं। इसके साथ ही साथ बच्चों से जुड़ी हुई विभिन्न गोष्ठियों, समारोहों और कार्यशालाओं में सहभागिता करने का सौभाग्य भी उन्हें प्राप्त होता रहा है। इसके साथ ही साथ उनके पास बच्चों के लिए एक सार्थक विजन है और उस विजन को अमली जामा पहनाने की एक गहरी दृष्टि भी।
तीन दर्जन से अधिक पुस्तकों के लेखक हेमंत सिर्फ साहित्यकार नहीं हैं, वे बच्चों के समग्र विकास के हिमायती हैं। यही कारण है कि जहाँ एक ओर वे बाल अधिकारों की बात करते हैं, वहीं अक्सर उनके सम्पूर्ण विकास के लिए संचालित होने वाली योजनाओं की पड़ताल करते हुए भी नजर आते हैं। वे कविता और कहानियों को सिर्फ लिखकर परोसने में यकीन नहीं करते, बल्कि उनको सही रूप में बच्चों तक पहुँचाने के हिमायती भी हैं। वे पूरे मन से बच्चों के भीतर छुपी हुई प्रतिभाओं को पहचानकर उनको भरपूर प्रोत्साहन देने की वकालत करते हैं ओर बच्चों को किस्सागोई की शैली से जोड़ने और उसके द्वारा उन्हें संस्कारित करने के तरीके पर भी बल देते हैं।
यह प्रसन्नता का विषय है कि रूढि़वादी बाल साहित्यकारों की तरह हेमंत नैतिकता के बोझ को बच्चों पर थोपने के लिए उत्सुक नहीं दिखते। वे बच्चों के सम्पूर्ण परिवेश पर दृष्टि रखते हैं और उनके सामने आने वाले तमाम सवालों की सम्यक पड़ताल करते हैं। यही कारण है कि एक ओर वे जाति और धर्म के खाँचों पर प्रहार करते पाए पाते हैं, वहीं दूसरी ओर संस्कृति के नाम पर खूनी खेल खेलने वाली मानसिकता को भी सरेआम निशाने पर लेने का साहस जुटा पाते हैं: इन बच्चों की लाल पड़ गई सूनी आँखें/ जानना चाहती हैं/ अपने पैदा होने का कसूर? कि क्यों वे सभी बना दिए गए अनाथ/ चंद मिनटों में/ कुछ उन्मादियों द्वारा की गयी हैवानियत से? कि क्या होगा उनका भविष्य? कि कैसे मिटेगा उनके चेहरों पर/ छाया हुआ खौफ?
हेमंत ‘क्रिएटिव कोना’ पर जहाँ बच्चों और साहित्य के जुड़े हुए महत्वपूर्ण सवालों/विमर्श को पाठकों के समक्ष रखते हैं, वहीं वे ‘फुलबगिया’ पर बच्चों के मनोविज्ञान के अनुसार रची गयी रोचक और मनोरंजक रचनाओं को शौक से परोसते हैं।
सुंदर समीक्षा!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर समीक्षा| धन्यवाद|
जवाब देंहटाएंबेहतरीन समीक्षा!
जवाब देंहटाएंक्रिएटिव कोने की जानकारी अच्छी लगी
जवाब देंहटाएं'क्रिएटिव कोने' को इस बेहतरीन समीक्षा के ज़रिये रु-बरु कराने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंलाजवाब समीक्षा की है आपने ...
जवाब देंहटाएंबेहतरीन समीक्षा.
जवाब देंहटाएंब्लॉग समीक्षा का बड़ा ही सार्थक कार्य कर रहे हैं आप।
जवाब देंहटाएंयह ब्लॉग तो मुझे भी बहुत अच्छा लगता है..... थैंक यू
जवाब देंहटाएंachchhi sameekshayeN
जवाब देंहटाएंबहुत बेहतरीन ढंग से समीक्षा की है आपने ....आपका आभार
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर समीक्षा है ज़ाकिर जी ....ये ब्लोग्स सच में बच्चों को समर्पित सुंदर ब्लोग्स हैं
जवाब देंहटाएंडॉ जाकिर जी का एक अति महत्वपूर्ण समीक्षात्मक आलेख .बहु -विध बाल उपयोगी पोस्ट .
जवाब देंहटाएंशनिवार, १० सितम्बर २०११
अब वो अन्ना से तो पल्ल्ला छुडा रहें हैं .
baccho ke bare me aapane sateek likha hai is par chintan ki jarurat hai
जवाब देंहटाएंmere blog par aane ke liye Thankyou.
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंव्यक्ति कुछ भी हो , उसे पहले इन्सान होना चाहिए . हेमंत जी में यह खूबी है. धन्यवाद .
अपना परिवार
धन्यवाद साधुवाद
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