('जनसंदेश टाइम्स', 17 अगस्त, 2011 के 'ब्लॉगवाणी' कॉलम में प्रकाशित ब्लॉग समीक्षा)...
क्या यह बात सिर्फ नज़रिए भर की है कि गिलास आधा भरा हुआ है अथवा आधा खाली? अगर उस पानी को उपयोग करने की जरूरत पड़ जाए, तब तो हमें न चाहते हुए भी यह कहना ही पड़ेगा कि यह आधा गिलास पानी है। अर्थात यदि किसी पौधे को समुचित रूप से विकसित होने के लिए प्रतिदिन एक गिलास पानी की आवश्यकता है और उसे सिर्फ आधा गिलास ही मिल रहा है, तो इतना तय है कि इससे उसकी वृद्धि पर असर तो पड़ेगा ही। अब यह अलग बात है कि भले ही पौधा उसे अपनी नियति मान कर संतुष हो जाए कि उसकी किस्मत में इतना ही पानी था, पर यदि उसे भरपूर पानी मिला होता, तो शायद उसका स्वरूप कुछ और ही होता। व्यक्तित्व के रहस्यों को समझने का दावा करने वाले जानकार यह बताते हैं कि ऐसा ही मनुष्य के साथ भी होता है।
अक्सर लोग कहते पाए जाते हैं कि इस देश में प्रतिभाओं की कमी नहीं है। लेकिन बावजूद इसके गली-गली में बिखरी तमाम प्रतिभाएँ समय की गर्द के नीचे दबकर कहाँ गुम हो जाती हैं, पता ही नहीं चलता। इस सबके पीछे जो एक मुख्य वजह है, वह यह है कि जिस प्रकार खान से मिले हीरे के टुकड़े में चमक लाने के लिए ‘शान’ लगाने की जरूरत होती है, वैसी ही जरूरत किसी प्रतिभा को निखारने के लिए भी हुआ करती है। पर प्राय: ऐसी दो प्रतिभाओं का एक साथ मिलन कम ही हो पाता है और नतीजतन संसार के समक्ष वह सब आने से रह जाता है, जोकि बहुत महत्वपूर्ण और सार्थक हो सकता था। और कुछ-कुछ इन्हीं हालातों की उपज लगते हैं ‘गुल्लक’ (http://utsahi.blogspot.com) ब्लॉग के संचालक राजेश उत्साही।
राजेश की मुख्य पहचान ‘चकमक’ के संपादक के रूप में रही है। चकमक एक बाल पत्रिका है, जो स्वयंसेवी संगठन ‘एकलव्य’ द्वारा प्रकाशित होती है। एकलव्य के देश में शिक्षा के विकास के लिए अतुलनीय कार्य किया है। सिर्फ चकमक ही नहीं वहाँ से तमाम उपयोगी पुस्तकें और प्रकाशित होती रही हैं। वह विज्ञान एवं टेक्लानॉजी के लिए विख्यात फीचर सर्विस ‘स्रोत’ और शैक्षणिक विकास के लिए प्रकाशित होने वाली द्वैमासिक पत्रिका ‘शैक्षणिक संदर्भ’ के लिए भी जाना जाता है। राजेश इन सबसे जुड़े रहे हैं। इसके अलावा वे ‘दिशा’ नामक सायक्लोस्टाइल पत्रिका और ‘विज्ञान विज्ञान बुलेटिन’ से भी सम्बद्ध रहे हैं। यही कारण है कि वे मुख्य रूप से एक कुशल एवं योग्य सम्पादक के रूप में जाने जाते हैं।
लेकिन राजेश सिर्फ सम्पादक भर नहीं हैं। उनका ब्लॉग गवाह है कि वे कुशल एवं प्रभावशाली रचनाकार भी हैं। अपनी बात को कहने की उनकी कला ऐसी है कि जो बड़े-बड़े रचनाकारों के लिए ईर्ष्या का विषय हो सकती है। उनके विचार बेहद सुलझे एवं सुव्यवस्थित होते हैं और उनकी भाषा की रवानी मुग्ध करने की हद के आर-पार जाती सी प्रतीत होती है। इन सबके साथ ही साथ संवेदनाओं का सागर भी है उनके पास, जिसे वे अपनी लेखनी में बड़ी सहजता से उड़ेल देते हैं। अगर हम विधाओं की बात करें, तो वे पोस्टर कविताओं के मास्टर हैं। उन्होंने रूम टू रीड के साथ मिलकर इस दिशा में उल्लेखनीय कार्य किये हैं। उन्होंने कुछ उल्लेखनीय कविताएँ भी लिखी हैं। बाल साहित्य से उनका जुड़ाव प्रारम्भ से ही रहा है। और यह सब उनके ब्लॉग पर देखा जा सकता है।
टीचर्स आफ इंडिया (पोर्टल) में हिन्दी संपादक के रूप में कार्य करने वाले राजेश दर्जनों पुस्तकों के सम्पादन एवं कार्यशालाओं से जुड़े रहे हैं। वे भगत सिंह की क्रान्तिकारी विचारधारा के प्रशंसक हैं और रूढि़वाद के सख्त आलोचक भी हैं। वे इस आलोचना को सिर्फ विचारों तक सीमित नहीं करते, उसे व्यवहारिकता में भी उतारने का प्रयत्न करते हैं। यही कारण है कि चाहे पैर छूने की परम्परा हो अथवा तेरहीं की, वे बिना समाज की परवाह किए, उसके तार्किक स्वरूप को अपनाने का साहस जुटा पाते हैं।
लेकिन इसके साथ ही साथ वे सख्त हेडमास्टर की छवि के मालिक भी हैं। यही कारण है कि अपने निश्चय पर दृढ़ता से जमे रहना उनके व्यक्तित्व का प्रमुख अंग है। सम्भवत: यही वजह है कि वे अक्सर लोगों को आत्ममुग्धता के कोहरे से घिरे विशाल पर्वत की तरह नजर आते हैं। लेकिन इससे न तो उनके व्यक्तित्व की चमक फीकी पड़ती है और न ही उनकी लेखनी की दमक। और हाँ, यदि आप सीधे-सपाट लफ्जों में अपनी बात कहने वाले लोगों को पसंद करते हैं, तो फिर यहाँ पर ‘गुल्लक’ के लिए ‘सोने पर सुहागा’ वाली कहावत भी लागू हो सकती है।
गुल्लक नियमित पढ़ते हैं।
जवाब देंहटाएंवाह जी बल्ले बल्ले
जवाब देंहटाएंसुंदर ब्लॉग समीक्षा .....राजेश जी रचनाएँ पढ़ी हैं........
जवाब देंहटाएं*राजेश जी की
जवाब देंहटाएंमुझ खडकसिंह के लिए ये सदा ही बाबा भारती बने रहे हैं.. इनके ब्लॉग, गुल्लक, गुलमुहर और यायावर अलग अलग विधाओं में इनकी महारत सिद्ध करते हैं.. यह बात और है कि इनकी गतिविधियां गुल्लक पर ही अधिक दिखती है..
जवाब देंहटाएंपरमात्मा इनकी संवेदनाओं को नित नई ऊंचाई प्रदान करे ताकि हमें गहरी से गहरी कवितायें पढ़ने को मिलें!!
आपके ब्लॉग पर आ कर अच्छा लगा |गुल्लक पढ़ कर आच्ची लगी |बधाई आज की समीक्षा के लिए |
जवाब देंहटाएंआशा
आपको एवं आपके परिवार को जन्माष्टमी की हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएं"सम्भवत: यही वजह है कि वे अक्सर लोगों को आत्ममुग्धता के कोहरे से घिरे विशाल पर्वत की तरह नजर आते हैं।"
जवाब देंहटाएं:)
rajesh ji ki rachnaye kai baar padhi hai
जवाब देंहटाएंशुक्रिया जाकिर भाई।
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण रचना !
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण रचना !
जवाब देंहटाएंRajesh ji ki lekhni ke ham hi kaayal hain.... Gulak par prakashit unki rachnaon ko padhkar kuch n kuch sikhne ko jarur milta hai...
जवाब देंहटाएंaapke is sarhaniya pryas ke liye bahut bahut aabhar..
MAI CHAHOONGA AISE HEE
जवाब देंहटाएंRAJESH JI KA HOSALA
BADHATE RAHE.
UDAY TAMHANEY
BHOPAL.