('जनसंदेश टाइम्स', 06 जुलाई, 2011 के 'ब्लॉगवाणी' कॉलम में प्रकाशित ब्लॉग समीक्षा) पता नहीं यह टीवी और फिल्मों ...
'ब्लॉगवाणी' कॉलम में प्रकाशित ब्लॉग समीक्षा)
पता नहीं यह टीवी और फिल्मों का दुष्प्रभाव है अथवा उपभोक्तावादी संस्कृति की कुचालों का असर कि आजकल हर कोई शो-ऑफ में लगा रहता है। जो लोग साईकिल से चलते हैं, वे मोटर साईकिल और कारों की बातें करते पाए जाते हैं। और मोटरकार वालों के कहने ही क्या। वे कभी हवाई जहाज ने नीचे उतरते ही नहीं। फाइव स्टार होटलों, मंहगे इलेक्ट्रानिक गजेट्स और चकाचौंध वाले विदेशी शहरों के बारे में वे ऐसे बात करते हैं, जैसे इन सबके बिना उनका दम ही निकला जाता हो।
पर काठ की हाँडी ज्यादा देर तक नहीं टिकती। यही कारण है कि ऐसे लोगों की कलई एक न एक दिन उतर ही जाती है। और तब वे खिसियानी बिल्ली की तरह इधर-उधर अपना मुँह छिपाए फिरते हैं। बचपन से मॉडलों और क्रिकेट स्टारों को अपना आदर्श मानने वाले आज के युवा भले ही इस कड़वी सच्चाई से परिचित न हों, पर अनुभव की आग में पके हुए ज्ञानीजन इस बात को बखूबी समझते हैं। इसीलिए वे जो हैं, जैसे है, अपने आप को उसी रूप में प्रकट करते हैं और हमेशा सीधी-सच्ची बात करते हैं। ऐसे ही एक सादे और सरल इंसान है रायपुर, छत्तीसगढ़ निवासी जी. के. अवधिया और उनका चर्चित ब्लॉग है ‘धान के देश में’ (http://dhankedeshme.blogspot.com)।
ब्लॉगिंग को अभिव्यक्ति के साथ ही आनलाइन व्यापार का एक सशक्त माध्यम मानने वाले अवधिया जी न तो स्वयं को साहित्यकार मानते हैं और न ही पत्रकार। वे पूरी ईमानदारी के साथ स्वीकार करते हैं कि मैं थोड़ी-बहुत कलम घिसाई अवश्य कर लेता हूँ, पर यह भी मेरे पूज्य पिताजी का ही प्रभाव है, जिनकी वजह से मुझमें लेखन का शौक जागृत हुआ और मैंने अपना ब्लॉग बनाया। अपने ब्लॉग लेखन के उद्देश्य को बताते हुए वे कहते हैं कि मैंने अपने अनुभवों से जो कुछ सीखा है, उसे लोगों तक पहुँचाना और देश-दुनिया में भारतीय संस्कृति और हिन्दी का मान-सम्मान बढ़ाना ही मेरा अभीष्ट है।
अवधिया जी एक संवेदनशील व्यक्ति हैं। उनके मन में भारतीय संस्कृति के लिए गर्व का भाव है। साथ ही उनका मानना है कि मनुष्य जितना अपनी संस्कृति से दूर होता जाएगा, उतना ही उसका जीवन अस्त-व्यस्त एवं कष्टप्रद होता जाएगा। वे न सिर्फ बड़े-बुजुर्गों को यथोचित सम्मान करते हैं, वरन अपनी पोस्टों के द्वारा अपने पाठकों को भी इसके लिए प्रेरित करते हैं। साथ ही वे आज की उस अल्ट्रा मॉडर्न पीढ़ी की खिंचाई भी करने से नहीं चूकते हैं, जो अपने माता-पिता के चरण स्पर्श करने में ‘इन्सल्ट’ का अनुभव करता है। इन स्थितियों को देखकर उन्हें अवधिया जी उस समय में पहुँच जाते हैं, जब यमन का शहजादा हातिम भारत आया था और पीने के पानी माँगने पर उसकी जगह दूध दिये जो से गदगद हो गया था। वे कहते हैं कि आजकल लेन-देन का जमाना है। आदमी अब वह काम नहीं करता, जिसमें उसे सीधा-सीधा फायदा नजर नहीं आता। यही कारण है कि अब प्यासे को पानी पिलाना व्यर्थ समझा जाता है और घड़े तथा सुराहियों का उपयोग करना पिछड़ेपन की निशानी के तौर पर देखा जाने लगा है।
अपनी मातृभाषा हिंदी पर गर्व करने वाले अवधिया जी के पास हिन्दी की लोकोक्तियों और कहावतों का अनमोल खजाना है। वे अपने इस खजाने पर न सिर्फ गर्व करते हैं, वरन अपनी लेखनी में इसका प्रयोग कर उसे समृद्ध भी बनाते चलते हैं। कहीं-कहीं उनका यह प्रयोग लेखन में अत्यंत जीवंतता ले आता है और पाठक को मंत्र-मुग्ध सा कर देता है। अवधिया जी स्वतंत्रता के बाद हिन्दी को राष्ट्रभाषा के स्थान पर राजभाषा बनाने से खिन्न नजर आते हैं और आज के युवाओं द्वारा हिन्दी को उपेक्षित किये जाने से चिंतित दिखते हैं। इस सम्बंध में वे टीवी और फिल्मों के भी सख्त आलोचक हैं, क्योंकि हिन्दी की चिन्दियाँ उड़ाने में आजकल ये लोग एक दूसरे से होड़ लेते से प्रतीत होते हैं।
अवधिया जी पाठकों की नब्ज भी पहचानते हैं। वे हर उम्र के पाठकों का ख्याल रखते हैं और उनकी पसंद के विषयों पर लेखनी चलाते हैं। इसी क्रम में अक्सर वे हास्य को भी अपनाते हैं और इस हेतु किसी और को टारगेट चुनने के बजाए स्वयं को ही निशाना बनाते हैं। इसके अतिरिक्त वे अक्सर गम्भीर पोस्टों के अंत में ‘चलते-चलते’ के बहाने हल्की-फुल्की अथवा गुदगुदाने वाली बातें कह जाते हैं। क्योंकि उन्हें पता कि ठेठ उपदेश सुनना किसी को भी नहीं भाता है। ज्यादा कड़वी बात कहो, तो आदमी सामने वाले को सनकी समझ कर चुपचाप आगे निकल जाता है।
यह ब्लॉग जहाँ एक ओर समाज की कुरीतियों पर निशाना साधता है, गलत प्रवृत्तियों को रेखाँकित करता है, वहीं भिन्न-भिन्न विषयों की जानकारी भी उपलब्ध कराता है और हास्य-व्यंग्य के बहाने पाठकों के मन को गुदगुगदाता भी है। संक्षेप में अगर कहा जाए तो ‘धान के देश में’ एक ‘कम्प्लीट पैकेज’ वाला ब्लॉग है, जहाँ पर हर उम्र और हर रूचि के पाठकों का ख्याल रखा जाता है।
एक अच्छे ब्लॉग की अच्छी समीक्षा और उसके प्रकाशन पर बधाई ...
जवाब देंहटाएंआपके द्वारा एक बहुत अच्छे ब्लॉग की जानकारी मिली और सुन्दर शब्दों में समीक्षा के लिए आपका बहुत - बहुत आभार ...
जवाब देंहटाएंआप इस क्रम को यूँ ही जारी रखिये ....आपका आभार
जवाब देंहटाएंनिसंदेह, शानदार ब्लॉग. हमें उनका सानिघ्य भी उपलब्ध हो जाता है.
जवाब देंहटाएंसरलता की दृष्टि से बहुत प्रभावित करता है अवधिया जी का ब्लॉग।
जवाब देंहटाएंअच्छी समीक्षा , बधाई ..
जवाब देंहटाएंaapke madhyam se ek achche blog ka pata chala hai.aapne sameeksha bhi bahut achchi ki hai .aapke blog par aana sarthak raha hai.
जवाब देंहटाएंI know Mr. Awadhiya very well.
जवाब देंहटाएंNibe person.
हिंदी ब्लॉग जगत में अपेक्षाकृत कम लाभदायक या रददी लेख ज़्यादा प्रशंसा और ध्यान पा रहे हैं, यह एक हक़ीक़त है।
नए ब्लॉगर्स की अनदेखी करना भी यहां की परंपरा है और रचनात्मक काम के बारे में जुगाली करना तो यहां आम है लेकिन वास्तव में उन्हें इसकी ख़ाक भी चिंता नहीं है। आपकी पोस्ट पर मेरी 8 th टिप्पणी का होना यही बताता है।
इसके बावजूद आप आगे बढ़ रहे हैं। यही आपकी सफलता है।
जो लोग अपने दिल की ख़ुशी के लिए ब्लॉगिंग कर रहे हैं, उन्हें जाने दीजिए और आप लोगों की भलाई में लगे रहें।
आपकी पोस्ट इन ब्लॉगर्स की हक़ीक़त सदा उजागर करती रहेगी।
शुक्रिया !
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आदरणीय अवधिया जी ब्लॉगवुड के अहम व अनुकरणीय किरदार हैं... एक बहुत ही शानदार व प्रभावी ब्लॉग है उनका...
आपकी इस पोस्ट हेतु आभार!
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समीक्षा अच्छी लगी.
जवाब देंहटाएंEk Behtreen blog ki Umda Smeeksha ki aapne....Abhar
जवाब देंहटाएंsarthak prayas...jaari rakhen !
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया। आपको बधाई
जवाब देंहटाएंअवधिया जी के बारे में जानकारी के लिए आभार
जवाब देंहटाएंअच्छी समीक्षा ..
जवाब देंहटाएंबधाई
जाकिर भाई रजनीश अच्छे लोगों को सामने ला रहें हैं .समीक्षा आप की एक दम कसाव लिए होती है एक शब्द भी फ़ालतू नहीं .बधाई .
जवाब देंहटाएंयह बहुत अच्छा ब्लॉग है। नियमित पाठक हूं। ध्यानाकर्षण कर आपने अवधिया जी को यथोचित सम्मान दिया है।
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