('जनसंदेश टाइम्स', 27 जुलाई, 2011 के 'ब्लॉगवाणी' कॉलम में प्रकाशित ब्लॉग समीक्षा) ये संक्रमण का दौर है। आज हमें हर...
('जनसंदेश टाइम्स', 27 जुलाई, 2011 के
'ब्लॉगवाणी' कॉलम में प्रकाशित ब्लॉग समीक्षा)
ये संक्रमण का दौर है। आज हमें हर चौराहे, हर गली में भ्रष्टाचार, अव्यवस्था, हिन्दी भाषा की दुर्दशा के बारे में बात करने वाले मिल जाते हैं। अक्सर गलियों और नुक्कड़ों पर होने वाली इन चर्चाओं को देखकर लगता है कि ये लोग इन स्थितियों से कितने दु:खी हैं। अगर उन्हें मौका मिले, तो इन स्थितियों के बदलाव के लिए ये अपनी जान की बाजी लगाने से भी नहीं चूकेंगे। लेकिन अफसोस कि जब कुछ करने की बात आती है, तो ये बातूनी लोग दुम दबा कर ऐसे गायब हो जाते हैं, जैसे गधे के सिर से सींग।
लेकिन बावजूद इसके ऐसे लोगों की कमी नहीं है, जो अपने देश, समाज, भाषा और संस्कृति के बारे में न सिर्फ गहराई से सोचते हैं, वरन उसके विकास के लिए तन-मन-धन से समर्पित भी रहते हैं। ऐसी ही एक शख्शियत हैं ‘चोंच में आकाश’ (http://purnimavarman.blogspot.com) ब्लॉग की संचालिका पूर्णिमा वर्मन। पीलीभीत, उत्तर प्रदेश की सुंदर घाटियों में जन्मीं पूर्णिमा को बचपन से ही प्रकृति और कला से लगाव रहा है। यही कारण है कि जलरंगों, रंगमच, संगीत और साहित्य के साथ वे आज भी दिल से जुड़ी हुई हैं। लेकिन उनकी प्राथमिकता रही है हिन्दी भाषा, जिसके प्रचार-प्रसार के लिए उन्होंने अथक प्रयत्न किए हैं।
संस्कृत साहित्य पर शोध, पत्रकारिता और वेब डिज़ायनिंग में डिप्लोमा तथा हिन्दी साहित्य से लगाव के कारण पूर्णिमा ऑनलाईन हिन्दी पत्रिकाओं की ओर उन्मुख हुईं। उनकी लगनशीलता और समर्पण का परिणाम है कि आज वे सारे संसार में हिन्दी की सर्वाधिक प्रतिष्ठित ऑनलाईन पत्रिकाओं 'अभिव्यक्ति' (http://www.abhivyakti-hindi.org) और 'अनुभूति' (http://www.anubhuti-hindi.org) की सम्पादिका के रूप में जानी जाती हैं। वे भारत की धरती से दूर (संयुक्त अरब इमारात के शारजाह नगर में) रहते हुए भी अपनी माटी से जुड़ाव रखती हैं। यही कारण है कि वे पिछले बीस-पच्चीस वर्षों से लेखन, संपादन, पत्रकारिता, अध्यापन, कला, ग्राफ़िक डिज़ायनिंग और जाल प्रकाशन के लिए समर्पित हैं।
पूर्णिमा हिंदी विकिपीडिया (http://hi.wikipedia.org) के प्रबंधकों में से एक हैं और स्तरीय रचनाकार भी। उन्होंने कहानी, कविता, तकनीकी विषयों, पारिवारिक समस्याओं, समसामयिक मुद्दों पर गम्भीर लेखन किया है। इसके साथ ही बाल साहित्य के क्षेत्र में भी उनका सार्थक हस्तक्षेप रहा है। उनके दो प्रकाशित कविता संग्रह ‘पूर्वा’ तथा ‘वक्त के साथ’ काफी चर्चित रहे हैं। भारतीय सांस्कृतिक सम्बंध परिषद सहित अनेक संस्थाओं ने उनके अतुलनीय योगदान के लिए उन्हें पुरस्कृत/सम्मानित भी किया है।
पूर्णिमा एक बेहद संवेदनशील लेखिका हैं। इतने महत्वपूर्ण कार्य करने और ऐसी अतुलनीय उपलब्धियाँ अर्जित करने के बावजूद उन्होंने अपनी सरलता को नहीं खोया है। यही कारण है कि मौका मिलते ही वे अपने ब्लॉग में कभी विदेशों में अकेले रह रहे लोगों के दर्द को बयाँ करने लगती हैं, कभी बार्बी की कहानी बताने लगती हैं, तो कभी चपाती और फुलका का अंतर समझाने में तल्लीन हो जाती हैं। वे अपने आपको बंजारों के रूप में देखती हैं, जो अपने उद्देश्यों के लिए इधर से उधर भटकते रहते हैं। वे बसंत के बहाने इस जज्बे को उकेरती हुई कहती हैं: ‘कमरे से बगिया तक /बगिया से चौके में /चौके की खिड़की से /चमकीली नदिया तक /पटरी पटरी /दूर बहुत शिव की बटिया तक /मेरे ही संग ठोकर-ठोकर रक्त रंगे ढाक के पावों /मौसम भी बंजारा घूमा /मेरी तरहा।’
पूर्णिमा की सजग दृष्टि उनके ब्लॉग में सर्वत्र दिखाई पड़ती है। जब वे ‘हत्ता के हरियाले जलकुंड’ का वर्णन करती हैं, तो साथ-साथ बताती चलती हैं कि जो आनंद प्रकृति के सानिध्य में मिलता है, वह अन्यत्र कहाँ और जब वे बार्बी के सफर को भी बयाँ करती हैं तो भी बताना नहीं भूलतीं- ‘शायद बदलते समय के साथ छोटी लड़कियों को गुडि़या की नहीं बेटी-डॉल की ही जरूरत है या फिर पश्चिम का पूँजीवाद पूर्व की सांस्कृतिक परम्पराओं पर बचपन से हावी होने लगा है।’ वे उन गिनी-चुनी महिला रचनाकारों में से हैं, जिनमें वैज्ञानिक दृष्टि पाई जाती है। यही कारण है कि वे अपनी रचनाओं मे न सिर्फ वैज्ञानिक तथ्यों का समावेश करती हैं, वरन अपनी वैज्ञानिक दृष्टि के कारण पाठकों को कुछ क्षण रूक कर सोचने के लिए विवश भी करती हैं।
एक कुशल रचनाकार होने के कारण पूर्णिमा सदैव सरल, सुगढ़ और प्रवाहमयी भाषा का प्रयोग करती हैं और आवश्यकतानुसार उसमें यथोचित परिवर्तनों के द्वारा उसे आकर्षक और प्रभावी बना देती हैं। उनके ब्लॉग को पढ़ना स्वयं को दुनिया-जहान से जोड़ने और संवेदनाओं के विभिन्न स्तरों से गुजरने के समान है। वे स्वस्थ ब्लॉगिंग की आवाज हैं। देश की माटी को उनके हिन्दी-प्रेम पर नाज़ है।
अच्छा मूल्यांकन!
जवाब देंहटाएंजानकारी के लिए धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंpoornima ji ke blog ki achchi sameeksha di hai.bahut aabhar.
जवाब देंहटाएंजाकिर जी ,चिठ्ठा समीक्षा में आप अपना अप्रतिम स्थान बना चुकें हैं .समर्पण और लगाव रचना और रचना कार के प्रति समीक्षा की पहली शर्त है आप दोनों पर ही खरा उतरतें हैं .ऐसे चिठ्ठाकार की इत्तला देकर जो चिठ्ठा संसार में मायने रखतें हैं आप एक अच्छा काम कर रहें हैं .ब्लोगिया -परिचय के लिए आपका आभार .
जवाब देंहटाएंसाहित्य को न जाने कितने क्षेत्रों से प्रेरणा मिल रही है।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया लगा! आभार!
जवाब देंहटाएंएक अच्छे लेखक और उनके ब्लाग से परिचित करवाने के लिये आभार
जवाब देंहटाएंसन २००२ में पूर्णिमा जी से उनकी साईट के ज़रिए परिचय हुआ जब उन्होंने मुझे अनुभूति में स्थान दिया था. अफ़सोस है कि एक ही देश में रहते हुए आज तक उनसे मिलना नहीं हो पाया .
जवाब देंहटाएंहिंदी की सेवा में उनके प्रयास अनुकरणीय हैं.हिंदी भाषा की सेवा में उनकी यह लगन ,ऊर्जा और समर्पण ऐसे ही बना रहे ,मेरी शुभकामनाएँ हैं.
समीक्षा का यह अंक अच्छा लगा.
आभार सहित,
पूर्णिमा जी का व्यक्तित्व विस्तार से जानकर बहुत खुशी हुयी। धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंसुन्दर समीक्षा. आभार.
जवाब देंहटाएंपूर्णिमा जी के परिचय के लिए आपका आभार .....सुन्दर समीक्षा. आभार.
जवाब देंहटाएंआदरणीय श्री ज़ाकिर अली जी
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िया समीक्षा और पूर्णिमा जी के परिचय के लिए आपका आभार
यु ए ई में होने के कारण मैं और भी गर्व महसूस करता हूँ ... कभी कभी उनसे मिलना भी होता है ... सरल, सादे विचार और अपने काम के प्रति उनका समर्पण प्रेरणा देता है हमेशा ... पूर्णिमा जी को बधाई ...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर समीक्षा!
जवाब देंहटाएंसही है,आभार.
जवाब देंहटाएंजी यह हिन्दी जगत की पूर्णिमा हैं साथियों।
जवाब देंहटाएंपूर्णिमा जी से परिचय अच्छा रहा
जवाब देंहटाएंदेखता हूं जाकर।
जवाब देंहटाएंपूर्णिमा वर्मन जी पर बहुत सार्थक आलेख...
जवाब देंहटाएंफ्रेंडशिप डे की शुभकामनाये
जवाब देंहटाएंमुददों पर विचार करने के लिए
ब्लॉगर्स मीट वीकली में आपका स्वागत है।
http://www.hbfint.blogspot.com/