('जनसंदेश टाइम्स', 11 मई, 2011 में 'ब्लॉगवाणी' कॉलम में प्रकाशित ब्लॉग समीक्षा) किसी विचारक ने कहा है कि हम ज...
('जनसंदेश टाइम्स', 11 मई, 2011 में
'ब्लॉगवाणी' कॉलम में प्रकाशित ब्लॉग समीक्षा)
किसी विचारक ने कहा है कि हम जैसा देखते, सुनते और पढ़ते हैं, वैसा ही बन जाते हैं। इस बात की तस्दीक में हिन्दी के उन तमाम रचनाकारों को देखा जा सकता है, जिनके घरों में बचपन से ही साहित्यिक वातावरण रहा। ऐसे माहौल से निकले रचनाकार यह स्वीकारते हैं कि साहित्यिक पत्र-पत्रिकाओं को देखते-पढ़ते मन में कब साहित्य के बीज अंकुरित हो गये पता ही नहीं चला। युवा ब्लॉगर दीपक चौरसिया ‘मशाल’ भी इसी महौल से जन्में रचनाकार हैं। यूँ तो दीपक उत्तरी आयरलैण्ड (यूनाइटेड किंग्डम) के क्वींस विश्वविद्यालय में कैंसर के शोधार्थी हैं, पर यह उनके घर के साहित्यिक माहौल का ही सुपरिणाम है कि वे विज्ञान के विद्यार्थी होने के बावजूद स्वयं को हिन्दी साहित्य के बेहद करीब पाते हैं। उनके इसी प्रेम का सुफल है उनका अपना ब्लॉग ‘मसि-कागद’ (http://swarnimpal.blogspot.com)।
जालौन (उरई), उत्तर प्रदेश के के एक छोटे से कस्बे कोंच में पले-बढ़े दीपक में साहित्य सृजन के अंकुर जहाँ 14 वर्ष की अवस्था में फूटे, वहीं 18 वर्ष की अवस्था में उन्होंने अपने एक साहित्यिक मित्र शाहिद 'अजनबी' के साथ मिलकर 'नई कलम-उभरते हस्ताक्षर' साहित्यिक पत्र निकालने का असफल प्रयास भी किया। साहित्य सेवा के लिए मन के किसी कोने में बसी उनकी यह छटपटाहट तब पूरी हुई जब उन्हें 2008 में ब्लॉग के बारे में पता चला। नतीजतन आज वे हिन्दी के एक सक्रिय ब्लॉगर हैं और विज्ञान के साथ-साथ साहित्य सेवा में भी अपना योगदान दे रहे हैं।
बेहद कम उम्र में 'सम्भावना डॉट कॉम' एवं 'अनमोल संचयन' पुस्तकों में रचनाओं के संचयन एवं ‘अनुभूतियाँ’ काव्य संग्रह के प्रकाशन का गौरव अर्जित करने वाले दीपक कविता, लघुकथा, व्यंग्य, एकाँकी, कहानी में समान रूचि रखते हैं और 60-70 स्तरीय ग़ज़लों को रच चुके हैं। लेकिन बावजूद इसके वे स्वयं को शायर मानने का मुग़ालता नहीं पालते। इसका कारण बताते हुए वे कहते हैं कि मैंने ये रचनाएँ विभिन्न रचनाकारों के मार्गदर्शन में लिखी हैं। लेकिन इसी के साथ ही साथ वे मुस्कराते हुए इसमें ये शब्द भी जोड़ते चलते हैं कि जिस दिन बिना बैसाखी के चलने लगूँगा, उस दिन अपने नाम के साथ ‘शायर’ शब्द भी जोड़ लूँगा।
‘मसि-कागद’ एक तरह से उस कस्बाई व्यक्ति के विचारों का दर्पण है, जो स्वयं को शहर और गाँव के बीच की कड़ी के रूप में पाता है। उसके मस्तिष्क में एक ओर गँवई माहौल की समृद्ध परम्पराएँ हैं, तो दूसरी ओर आधुनिक आवश्यकताओं की कसौटी पर स्वयं को खरा साबित करने की ललक। यही कारण है कि जहाँ शहरों के कटु अनुभव उनकी लेखनी को समकालीन विद्रूपताओं के प्रति सचेतक के रूप में प्रस्तुत करते हैं, वहीं ग्रामीण परिवेश की परम्पराएँ उनकी लेखनी को एक नया आयाम प्रदान करती नज़र आती हैं।
दीपक आज के शहरी आदमी की भेड़चाल को देखकर कभी चकित होते हैं, तो कभी उसकी कम समय में सब कुछ पा ले लेने की हवस को देखकर चिंतित। उनकी इन चिंताओं में आम आदमी की संवेदनहीनता ही नहीं सरकारों की शातिर कारगुजारियाँ भी शामिल रहती हैं। यही कारण है कि आलू-प्याज ही नहीं हिन्दी भाषा का मुद्दा भी उनकी सोच को मथता दीख पड़ता है। वे अक्सर भ्रष्टाचार, मिलावट, अपराध, लूट-खसोट के बीच पल रही आज की पीढ़ी के सामने असुविधाजनक सवाल रखते हैं और एक क्षण के लिए ही सही उसे रूककर सोचने के लिए विवश करते हैं।
दीपक हिन्दी ब्लॉगिंग को अपनी अभिव्यक्ति के माध्यम के रूप में ही नहीं देखते, वे इसे अपनी संस्कृति से जुड़े रहने के साधन के रूप में भी पाते हैं। वे हिन्दी के प्रचार-प्रसार के प्रति भी सजग नज़र आते हैं और हिन्दी के विकास के लिए इसे रोजगारपरक बनाने पर बल देते हैं। उनका विचार है कि हिन्दी पर लाखों-करोड़ों रूपये खर्च करके सेमिनार और गोष्ठियाँ कराने से अच्छा है कि इसे आज की तकनीक से जोड़ा जाए और हिन्दी आधारित साफ्टवेयरों के विकास पर ध्यान दिया जाए।
अपने ब्लॉग के नाम को सार्थक करने वाले दीपक अपनी भाषा में देशज सुगंध को बिखेरते चलते हैं और मौका मिलते ही अंग्रेजी के शब्दों को भी गंवई शैली में ढ़ालकर प्रस्तुत कर देते हैं। व्यंग्य पर उनकी अद्भुत पकड़ उनकी लेखनी को एक अतिरिक्त आयाम देती है। यही कारण है कि उनकी हर पोस्ट अपने पाठक पर एक अलग सी छाप छोड़ती है।
स्वभाव से विनम्र और आशावादी दीपक हिन्दी साहित्य से जुड़ना अपना सौभाग्य मानते हैं और ब्लॉग जगत को ‘काँच को तराश कर हीरा बना देने वाला जौहरी’ करार देते हैं। उनकी यह स्वीकारोक्ति कि ‘मैंने जो भी सीखा यहीं सीखा और सबसे बड़ी जो बात सीखी वो यह कि अभी सीखने को बहुत कुछ है' अपने आप में बहुत कुछ कहती है। कारण आज की दिखावटी दुनिया में इतनी सीधी और सच्ची बात बहुत कम सुनने को मिलती है।
बहुत बढ़िया समीक्षा.
जवाब देंहटाएंsahi aur achhi samiksha
जवाब देंहटाएंसुन्दर समीक्षा !
जवाब देंहटाएंसुन्दर समीक्षा....
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत बधाई जाकिर भाई...आप यकीनन बहुत मेहनत कर रहे हैं...आज के दौर में जब सभी अपनी ढफली अपना राग अलापने में लगे हैं आप दूरे ब्लोगों की इतनी सुन्दर चर्चा करते हैं के बरबस मुंह से वाह निकल जाता है...
जवाब देंहटाएंनीरज
बहुत बहुत बधाई जाकिर जी
जवाब देंहटाएंमैंनें अभी कुछ ही दिन पहले अन्तरजाल पर 'गर्भनाल' पत्रिका के मई, 2011 अंक में दीपक जी का लेख 'असली बुद्धिजीवी-नकली बुद्धिजीवी' पढ़ा। उनकी लेखनी में ताकत और उनमें एक सफल साहित्यकार बनने की पूरी सम्भावनायें हैं।
जवाब देंहटाएंअच्छी समीक्षा।
जवाब देंहटाएंmujhe lga mera naam b ane bala h...........:P
जवाब देंहटाएंBhai Dipak 'Mashaal' ke blog ke behtreen samika ki aapne... Kafi kuchh jaanne ko mila.
जवाब देंहटाएंसार्थक कार्य हेतु बधाई।
जवाब देंहटाएंबधाई आपको.... सार्थक कार्य में जुटे हैं... शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंबधाई आपको.... सार्थक कार्य में जुटे हैं... शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंबधाई आपको.... सार्थक कार्य में जुटे हैं... शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया समीक्षा ! आप का यह कार्य निरंतर चलता रहे ऐसी प्रार्थना है ईश्वर से ! अपना स्वार्थ भी इसी में है क्यूंकि जितनी उम्रदराज आपकी समीक्षा होती जाएगी उतनी संभावनाएं हमारे ब्लॉग की समीक्षा के लिए बढेंगी !!
जवाब देंहटाएंआभार ...
दीपक एक संस्कारवान, उर्जावान और संभावनाशील युवा है. उससे वार्तालाप, पत्राचार एक सुखद अनुभव होता है. माँ शारदा की विशिष्ट कृपा तो उस पर है ही.
जवाब देंहटाएंकम शब्दों में बड़ी बातों को बाँधने की कला उनकी लघु कथाओं के माध्यम से देखते ही बनती है.
मुझे दीपक से बहुत आशायें हैं और मैं उनकी लेखनी का, सोच का और कल्पनाशीलता का कायल हूँ. उन्हें मेरी अनेक शुभकामनाएँ.
आज आपके ब्लॉगवाणी स्तम्भ में उसका विवरण देखकर प्रसन्नता हुई.
आप एक सार्थक प्रयास में जुटे हैं. आपको शुभकामनाएँ.
जाकिर भाई !प्रणाम आपको जिन चौरसिया दियो मिलाय!भाई इस प्रतिभा को .
जवाब देंहटाएंपहले आपको बधाई,
जवाब देंहटाएंदीपक हमारे जिले की रौनक है...हमारा पारिवारिक जुड़ाव होने के कारण उसकी प्रतिभा को छोटे में ही पहचान लिया था, हाँ ये अवश्य पता नहीं था कि ये कोंच से लेकर विदेश की धरती को अपने क़दमों तले नाप लेगा.
दीपक कि आशीर्वाद, आपको पुनः बधाई.
जय हिन्द, जय बुन्देलखण्ड
सुन्दर समीक्षा..बधाई.
जवाब देंहटाएं_____________________________
पाखी की दुनिया : आकाशवाणी पर भी गूंजेगी पाखी की मासूम बातें
जाकिर भाई.. ब्लॉग 'मसि-कागद' को समीक्षा योग्य समझने के लिए और उसकी सुन्दर विवेचना के लिए ह्रदय से आभारी हूँ. बाकी नीरज जी की टिप्पणी से सहमत हूँ. आप निश्चित ही परोपकार में ले हुए हैं. ईश्वर आपकी सफलता के मार्ग खोलते रहें.. सभी स्नेही जनों का अभिवादन करता हूँ और श्री समीर जी, श्री कुमारेन्द्र चाचा जी के आशीर्वचनों से थोड़ा और संबल मिला.
जवाब देंहटाएंकोशिश करूंगा कि हर अगले पल अपनी सोच और लेखन में सुधार करता रहूँ.
आप एक सार्थक प्रयास में जुटे हैं|धन्यवाद|
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया समीक्षा !
जवाब देंहटाएंआप एक सार्थक प्रयास में जुटे हैं आपको शुभकामनाएँ.
बधाई जाकिर जी,
जवाब देंहटाएंविवेक जैन vivj2000.blogspot.com
बहुत सुन्दर समीक्षा और शादी वैवाहिक वर्षगांठ पर बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं !!
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