('जनसंदेश टाइम्स', 27 अप्रैल, 2011 में 'ब्लॉगवाणी' कॉलम में प्रकाशित ब्लॉग समीक्षा) कुछ लोग विचारों के धनी ह...
('जनसंदेश टाइम्स', 27 अप्रैल, 2011 में
'ब्लॉगवाणी' कॉलम में प्रकाशित ब्लॉग समीक्षा)
कुछ लोग विचारों के धनी होते हैं और कुछ लोग व्यवहार के। कुछ लोग शिक्षा से सम्पन्न होते हैं और कुछ लोग संस्कार से। कुछ लोगों में अध्ययनवृत्ति पाई जाती है और कुछ लोगों में प्रत्युत्पन्नमति। पर कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जिनमें ये सारी ख़ूबियॉं एक साथ समा जाती हैं। संयोग से प्रोफेसर अली सैयद एक ऐसी ही शख्शियत का नाम है। ..और उनके व्यक्तित्व से परिचित होने का एक आसान सा ज़रिया है उनका अपना ब्लॉग ‘उम्मतें’ (http://ummaten.blogspot.com/)। ‘उम्मतें’ अर्थात विभिन्न विचारधाराओं के स्कूल की मिलन स्थली।
जगदलपुर, छत्तीसगढ़ के निवासी प्रोफेसर अली समाजशास्त्र के व्याख्याता हैं और समाजशास्त्र, समाज सेवा, सूफीवाद, सांस्कृतिक गतिविधियों तथा अंतरिक्ष अध्ययन में बराबर की रूचि रखते हैं। भले ही उन्होंने अपने बचपन में कंचेबाजी, पतंगबाजी, तैराकी, मछली मारने के साथ-साथ हॉकी और क्रिकेट में रिकार्ड बनाए हों, पर अब वे एक ऐसे ब्लॉगर के रूप मे जाने जाते हैं, जो गम्भीर पाठक भी है। वे जितने ध्यान से दूसरों की पोस्ट पढ़ते हैं, उतने ही मन से उसपर आई प्रतिक्रयाऍं भी। यही कारण है कि उनकी एक टिप्पणी काफी वजन रखती है और लोग उसे पाकर स्वयं को धन्य महसूस करते हैं।
‘सेन्स ऑफ ह्यूमर’ और सकारात्मक सोच के मामले में अली का दूर-दूर तक कोई प्रतिद्वन्द्वी नज़र नहीं आता। अपने छोटे-छोटे जुमलों के द्वारा वे अक्सर ऐसी बात कह देते हैं, जिसे पढ़कर लोग गदगद हो जाते हैं। उनके प्रतीक और बिम्ब अक्सर पाठक को चमत्कृत ही नहीं हैरान भी करते हैं। और कभी-कभी उनके प्रयोग इतने अद्भुत होते हैं कि उन्हें देखकर मस्तिष्क में कबीर की उलटबांसियां कौंध उठती हैं।
संवेदनाओं से लबरेज़ अली एक ऐसे ब्लॉगर हैं, जो जीवन को पूरी समग्रता से देखते हैं और कलात्मकता के साथ उसे अपने ब्लॉग पर परोस देते हैं। एक ओर वे अपनी व्यस्तताओं को स्मृतियों की सौत के रूप में देखते हैं, तो दूसरी ओर बचपन में की गयी शैतानियों को लेकर कोफ़्त का भी अनुभव करते हैं। लेकिन अक्सर जब वे तंत्र की विद्रूपताओं को देखते हैं, तो सहसा उन्हें प्राचीन रोमन एम्परर का वह दौर याद आ जाता है, जब आम इंसान ‘ग्लैडिएटर’ के रूप में दूसरों को कत्ल करने और हो जाने के लिए विवश हुआ करता था। और तब उन्हें लगता है कि इंसान तब भी बिकता था और इंसान आज भी बिकता है...पेट के लिये, अस्तित्व के लिये, परिजनों के लिये? वे आज की स्थितियों की रोमन साम्राज्य की परिस्थितियों से तुलना करते हुए कह उठते हैं कि तब सम्राट दिलजोई के लिये ग्लेडियेटर्स के तमाशे करते थे और आज राष्ट्रीयतायें, विचारधाराओं और इंसानियत की आज़ादी के नाम से तमाशे करती हैं।
अली उस परम्परा के व्यक्ति हैं जो धर्म, आस्था और प्रेम को दिल का विषय मानते हैं, दिखावे का नहीं। लेकिन इसके बावजूद वे भावुकता के चक्कर में ईमानदारी का गला नहीं घोंटते और सतर्कतापूर्वक जीवन के विभिन्न मसलों की मीमांसा करते हैं। वे देश में कानून के राज की स्थापना को आवश्यक मानते हैं लेकिन इसके साथ ही साथ वे यह भी मानते हैं कि सिर्फ कानून बनाने से समस्याएं नहीं सुलझने वालीं। उनका मानना है कि मसला चाहे राष्ट्रवाद का हो, चाहे आस्था का और चाहे न्याय का, समस्या को सही सन्दर्भों में देखा जाए, रूट कॉज तक जाने का प्रयत्न किया जाए और आमूलचूल निदान करने की ईमानदार कोशिश की जाए। अली उन लोगों के सख्त आलोचक हैं, जो धर्म और कानून में घालमेल करने को उद्यत रहते हैं और अपनी सुविधानुसार कभी आस्था और कभी कानून की बात करते हैं। वे ऐसे लोगों की बेईमानी को एक पल में उधेड़ कर सामने रख देते हैं। इसके साथ ही साथ वे एक कुशल समाजशास्त्री की तरह चेतावनीयुक्त सलाह देने में भी पीछे नहीं रहते कि पर्सनल लॉ और आस्थाएँ नितांत व्यक्तिगत/घर की दीवारों के अन्दर रहने वाली या अन्तःसामुदायिक बातें हैं। इन्हें सार्वजानिक/घर से बाहर करने और अन्तरसामुदायिकता को प्रभावित करने की छूट नहीं मिलना चाहिए।
अली उन इने-गिने लोगों में हैं, जिनका मन लोक में बसता है। उनका स्पष्ट मानना है कि इंसानी संस्कृति/सभ्यता और तकनीकी विकास में जनश्रुतियों/लोककथाओं द्वारा सहेजे गए ज्ञान का आधारभूत योगदान रहा है। इसके साथ ही साथ वे पौराणिक आख्यानों में आश्चर्यजनक रूप से दिलचस्पी लेते हुए पाए जाते हैं और उन्हें अपनी कमजोरी घोषित करने में गर्व कर अनुभव करते हैं। यही कारण है कि एक ओर वे पौराणिक संदर्भों से जुड़े उल्लास के पर्व को उल्लास की तरह मनाए जाने की वकालत करते हैं और उसमें घुस आए बारूद के खेल को देखकर चिंतित हो उठते हैं तो दूसरी ओर वे अपने स्वार्थ के कारण लोक कथाओं में सामुदायिक श्रेष्ठता के अंशों को प्रविष्ट कराने के प्रयासों की जबरदस्त आलोचना भी करते हैं।
अली उन लोगों में से नहीं हैं, जो अपने व्यक्तित्व के एवरेस्ट के बैठ कर ज़माने की पड़ताल करते हैं। वे जो हैं, जैसे हैं, अपने आपको वैसे ही रूप में प्रस्तुत करने में यकीन रखते हैं। लेकिन इसके साथ ही इंसानी सीमाओं को स्वीकारने में भी उन्हें गुरेज नहीं। शायद इसीलिए वे मानते हैं कि अगर हर सितारा 'अपने फन' का माहिर हो तो फिर उसे 'हर फन' का सितारा होने की ज़रूरत नहीं होती। और इसी भावना के वशीभूत होकर वे अपने वजूद की सार्थकता के तलाश में कह उठते हैं: मुमकिन है कि मैं एक बेहतर पति, एक अच्छा पिता, एक अच्छा दोस्त या शायद फिर एक शानदार/जिम्मेदार नागरिक होऊं! लेकिन यह शायद उनकी विनम्रता ही है कि वे अपने आपको एक अच्छा लेखक कहने की हिमाकत नहीं करते। जबकि सत्य यही है कि उनके जैसे धीर-गम्भीर और ईमानदार लेखक कम ही देखने को मिलते हैं।
Ali ji bahut sahyogi bhi hain .hame copy-paste ke bare me unhone hi samjhya tha .ve ek aadarsh blogger hain .aapne unka achchha parichay prastut kiya hai .aabhar .
जवाब देंहटाएंएक बेहद उम्दा पोस्ट के लिए आपको बहुत बहुत बधाइयाँ और शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंश्रेष्ठ ब्लोगर्स की जानकारी दे कर जाकिर भाई आप बहुत नेक काम कर रहे हैं...
जवाब देंहटाएंनीरज
ज़ाकिर भाई...आभार आपका एक सार्थक जानकारी के लियें.... शुभ-कामनाएं...
जवाब देंहटाएंअच्छे ब्लोगर्स की जानकारी दे कर आप हमें नए लोगों से अर्थात हमारे लिए नए लोगों से मिलवा ने का एक नेक काम कर रहे हें |बधाई
जवाब देंहटाएंआशा
अली सैयद जी के बारे में इतना कुछ जानकार अच्छा लगा... जानकारियों से भरे एक बेहतरीन लेख के लिए धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबढ़िया पोस्ट ..बहुत बधाई.
जवाब देंहटाएंदिलचस्प शख्सियत और ब्लॉग से परिचय करवाया आपने ... शुक्रिया
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया!
जवाब देंहटाएंबधाई हो!
अली सा का जवाब नहीं
जवाब देंहटाएं------------
सुज्ञ: ईश्वर को देख के करना क्या है?
shayad isiliye ham ab tak unkee ek teep ke liyr taras rahe hain ?
जवाब देंहटाएं:-)
badhiyaa shakshiyat se parichay karvayaa aapne !
dhanyvaad!
दिलचस्प शख्सियत और ब्लॉग से परिचय करवाया आपने|धन्यवाद|
जवाब देंहटाएंkisi ko her pahlu se janna achha lagta hai
जवाब देंहटाएंएक अच्छी शख्सियत और ब्लॉग से परिचय करवाया ... शुक्रिया
जवाब देंहटाएंअली जी के व्यक्तित्व के बारे में जानकर प्रसन्नता और गौरव की अनुभूति हुई।
जवाब देंहटाएंअली भईया का व्यवहार ही उन्हे सबसे अलग रखता है ।
जवाब देंहटाएंअली भाई से मुलाकात भी है और बात भी होती रहती है। मस्त मौला जिन्दादिल इंसान हैं।
जवाब देंहटाएंसमीक्षा बढिया चल रही है।
आभार
ये भी बहुत बढ़िया रहा...
जवाब देंहटाएं.
जवाब देंहटाएं.
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हम तो भाई अली सैयद साहब के फैन हैं... उनके लिखे को पढ़ना हर बार आपको और भी समृद्ध करता है...
खुशकिस्मत हैं हम, कि उन जैसे लोग भी हैं ब्लॉगवुड में...
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अली सैयद जी के बारे में इतना कुछ जानकार अच्छा लगा...
जवाब देंहटाएंसमीक्षात्मक जानकारियों से भरे एक बेहतरीन लेख के लिए हार्दिक बधाई...
Mujhe bhi achchhe blog ki talash rahti hai...aapse jankari milti hai..aabhar...padhati hun....
जवाब देंहटाएंAli saahab ke blog ko padhta rahta hun ... aapki baat se ittefaak rakhta hun ... spasht aur sahaj hi kah dete hain apni baat ...
जवाब देंहटाएंदेखा। अच्छा ब्लॉग है।
जवाब देंहटाएं@ ज़ाकिर अली रजनीश साहब ,
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार कि आप मेरे लिए इतनी सकारात्मक सोच रखते हैं ! सच कहूं तो आने वाले वक़्त में आपके 'ख्याल जैसा' बना रह पाने की चुनौती से डरा हुआ हूं !
@ सभी प्रतिक्रियाओं के लिए कृतज्ञता ज्ञापित करता हूं ! कुछ प्रतिक्रियाएं रजनीश जी को संबोधित हैं इसलिए संकोचवश उनके नाम नहीं लिख रहा हूं ! कृपया अन्यथा नहीं लेंगे !
@ प्रवीण मास्साब ,
आप बस आदेश कीजियेगा :)
@ प्रिय मिथिलेश,सुश्री शिखा कौशिक जी ,
शुभाशीष !
@ सुज्ञ जी,महेंद्र वर्मा साहब,दिगंबर नासवा जी,
आपका सबका आभारी हूं !
@ ललित शर्मा जी ,
आपकी कृपा बनी रहे !
@ प्रवीण शाह जी ,
हौसला बढ़ाने के लिए शुक्रिया !
@ डाक्टर शरद सिंह साहिबा ,
कभी सागर के हालचाल बताइयेगा !
वाह! क्या बात है!! बहुत अच्छा लगा पढ़कर। इसे पढ़ाने के लिेए आपका आभारी हूँ।
जवाब देंहटाएंअली सा ! पहली बार गिरजेश भाई से जाना था यह नाम। कौतूहल हुआ और समझने का प्रयास किया। समझा तो तुरत अपना लिया।
अली सा ने हमेशा मेरा उत्साह वर्धन किया है और मेरी कमियाँ को बताई हैं। यह एहसास मुझे पुलकित कर देता है कि वे मेरे नियमित पाठक हैं।
आभार इस परिचय का।
जवाब देंहटाएंशुरू में अली साहब को उनकी टिप्पणियों की वजह से जाना. जहाँ भी उनकी टिप्पणिया पढ़ी अच्छी लगी तो एक बार फुर्सत से उनके ब्लॉग को पढ़ा और हमेशा के लिए उनका अनुसरण कर्ता बन गया. अली साहब बहुत ही बढ़िया लेखक हैं. उनके लेखन की सहजता बहुत आकर्षित करती है. मैं खुद को सौभाग्यशाली समझता हूँ की मुझे ब्लॉगजगत के ऐसे व्यक्तित्व का मार्गदर्शन और आशीर्वाद समय समय पर मिलता रहता है
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबधाई हो ज़ाकिर अली रजनीश जी. आपके २०० फोलोवर हो गए हैं और मुझे इस बात की खुशी है कि २००वां फोलोवर मैं हूँ..
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग पर आयें, स्वागत है.
चलने की ख्वाहिश...
शायद आपको याद होगा, हम हिंदी भवन में मिले थे. जब आप खिडकी के पास अपने इनामों और किताबों के पास खड़े थे...
जवाब देंहटाएंNice post.
जवाब देंहटाएंसही आंकड़ा तो ‘काला धंधा गोरे लोग‘ का प्रोडयूसर ही बता सकता है जी।
कल लखनऊ में शिक्षा को बढ़ावा देने के मक़सद से एक सम्मेलन हो रहा है, जिसमें सलीम भाई बुला रहे हैं और हम जा रहे हैं। हम ही नहीं बल्कि हमारे चार-छः ब्लॉगर साथी और भी चल रहे हैं।
आप सब भी आमंत्रित हैं।
आइयेगा, अगर आ सकें तो।
http://ahsaskiparten.blogspot.com/2011/05/7.html