('जनसंदेश टाइम्स', 13 अप्रैल, 2011 में 'ब्लॉगवाणी' कॉलम में प्रकाशित ब्लॉग समीक्षा) कुछ समय पहले तक किसी सा...
('जनसंदेश टाइम्स', 13 अप्रैल, 2011 में
'ब्लॉगवाणी' कॉलम में प्रकाशित ब्लॉग समीक्षा)
कुछ समय पहले तक किसी सामाजिक व्यक्ति का उदाहरण देते हुए यह कहा जाता था कि कुछ लोग अपने लिए जीते हैं, कुछ लोग परिवार के लिए और कुछ लोग समाज के लिए जीते हैं और हमें यह बताते हुए अत्यंत प्रसन्नता हो रही है कि फलां व्यक्ति ऐसे ही हैं, जिन्होंने अपना पूरा जीवन ही समाज के लिए समर्पित कर दिया। लेकिन जब से ब्लॉग का प्रचलन शुरू हुआ है, इस परिचयात्मक वाक्य में एक अंश और जुड़ गया है- ‘कुछ लोग ब्लॉग के लिए जीते हैं।’ लेकिन यहां पर जिस व्यक्ति का उदाहरण दिया जा रहा है, उसके लिए इस नवसृजित वाक्य में भी संशोधन करना पड़ेगा और कहना पड़ेगा कि कुछ लोग ‘ब्लॉग समाज’ के लिए जीते हैं। सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार अविनाश वाचस्पति ऐसे ही ब्लॉगर हैं और उनके चर्चित ब्लॉग का नाम है ‘अविनाश वाचस्पति: की-बोर्ड के खटरागी’ (http://avinash.nukkadh.com/)।
पेशे से सरकारी मुलाजिम, स्वभाव से विनम्र और सहयोगी अविनाश एक खालिश व्यंग्यकार हैं और ब्लॉग जगत में ‘नुक्कड़’ के मॉडरेटर (संचालक) के रूप में जाने जाते हैं। अपनी सोच को जन-जन तक ले जाने का जज्बा रखने वाले अविनाश फेसबुक और ट्विटर से लेकर नुक्कड़ तक पर नजर आते हैं। लेकिन ब्लॉगिंग के प्रति उनके मन में जो जुनून है, जो समर्पण का भाव है, वह बहुत कम लोगों में देखने को मिलता है। यही कारण है कि चाहे दिल्ली में आयोजित होने वाली ‘ब्लॉगर मीट’ हो अथवा वर्धा विश्वविद्यालय में आयोजित होने वाला ‘ब्लॉगर सम्मेलन’, वे हर जगह तन-मन से रमे नजर आते हैं।
अविनाश समसामयिक विषयों पर चुटीले व्यंग्य लिखने के लिए जाने जाते हैं। वे अपनी धारदार लेखनी के कारण हिन्दी की सभी प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में स्थान पाते हैं। यही नहीं कई पत्र-पत्रिकाओं में वे व्यंग्य के नियमित कॉलम भी लिखते हैं और यही कारण है कि वे अपने ब्लॉग पर अपनी व्यंग्यात्मक रचनाओं के साथ ही प्रमुखता से नजर आते हैं।
अविनाश अपने व्यंग्य में जीवन की विद्रूपताओं को निशाना बनाते हैं और इतनी सहजता से अपनी बात कहते हैं कि पाठक के दिलो-दिमाग पर छा जाते हैं। अपने व्यंग्य ‘चिडि़या, कौआ और नेता’ में वे चिडिया को आम आदमी और कौवे को नेता के रूप में वर्णित करते हैं और कौए द्वारा चिडियों के हिस्से का दाना छीन कर खा जाने से व्यथित नजर आते हैं’ ‘चिडि़या और कौए दोनों को /रोटी खाता देखने की मेरी /इच्छा अधूरी रह गई /पर कौए की पूरी हो गई /इस तरह सभी चिडि़या और /खूब सारे कौए हैं हमारे चारों ओर /चिडि़याएं कुछ नहीं पा पाती हैं /और कौए हथिया ले जाते हैं।’
अपनी रचनाओं में हास्य के बीच में व्यंग्य और व्यंग्य के बीच में हास्य को पिरो देना अविनाश के बाएं हाथ का काम है। वे जीवन के छोटे-छोटे विषयों को अपनी लेखनी का विषय बनाते हैं और बेहद मामूली सी लगने वाली बात में भी बड़ी बात कह जाते हैं। ‘अदरक के स्वाद पर एक नया मुहावरा बतलायें’ और ‘अमिताभ बच्चन हमारे घर आये’ इसके सुंदर उदाहरण हैं। पहली पोस्ट में उन्होंने ‘बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद’ में बड़ी चालाकी से कुत्ते का घुसा दिया है और इसी बहाने वहां पर हास्य का सृजन हो गया है- ‘इस समय बंदर और अदरक दोनों तुम्हारे सामने हैं। अगर कोशिश करके तुम अपने इस प्रयास में सफल हो जाते हो तो एक नया मुहावरा हिंदी जगत को मिल जाएगा 'कुत्ता ही जाने अदरक का स्वाद'। नहीं सफल हुए तो 'बंदर कुत्ता कोई न जाने अदरक का स्वाद'।’ जबकि अपनी दूसरी पोस्ट में उन्होंने अमिताभ महात्म्य से ग्रसित मानसिकता को बखूबी चित्रित किया है- ‘अभी तो न जाने किन मुद्दों पर चर्चा चलती /तभी श्रीमतीजी ने चाय के लिये आवाज लगाई /चाय के लिए किया मना और खींच ली पूरी रजाई /पर फिर न तो नींद आई और न ही अमिताभ भाई /बिग बी का साथ छूट गया और हमारा सपना टूट गया।’
लेकिन व्यंग्यकार का काम सिर्फ लोगों को हंसाना भर नहीं होता। सार्थक व्यंग्य वही होता है, जो जीवन की विद्रूपताओं को हास्य की चाशनी में लपेटकर परोसता है और पाठकों को सोचने के लिए विवश करता है। अपनी पोस्ट ‘गुब्बारा’ में अविनाश लेखनी की इस कसौटी पर पूरी तरह खरे नजर आते हैं। अपनी इस रचना में वे गुब्बारा बेचने वाले की सामाजिक दशा और बच्चे की मनोदशा को चित्रित करते हुए कहते हैं कि गुब्बरे वाला और बच्चा दोनों चाहते हैं कि स्कूल हमेशा-हमेशा के लिए बंद हो जाएं। क्योंकि तब बच्चे को स्कूल के मोटे बस्ते से मुक्ति मिल जाएगी और गुब्बारे वाला दिन भर मजे से अपने ग्राहकों को लुभा कर अपने परिवार का पेट भर सकेगा। वे गुब्बारे वाले के धंधे और बच्चे की जिद के बीच के अन्तर्सम्बंध को उद्घाटित करते हुए कहते हैं- ‘इधर ये पीपनी बजाता है /उधर रोता बच्चा मचलता है /इसी मचलने पर ही तो /गुब्बारे वाले का धंधा चलता है /बच्चा नहीं रोएगा तो /गुब्बारे वाला घर जाकर रोएगा।’
अच्छा व्यंग्यकार पाठकों की नब्ज को जानता है और उसको चुभने वाले विषयों पर अपनी लेखनी को भांजता है। अगर इस वक्त आम आदमी को सालने वाले विषयों की लिस्ट बनाई जाए, तो उसमें पहला स्थान निश्चित ही मंहगाई के हिस्से आएगा। अविनाश ने मंहगाई के इस महात्म्य को बखूबी समझा है और अपने व्यंग्य ‘मंहगाई घटाने के नुस्खे’ में जनता का दर्द बहुत शिद्दत से बयां किया है- ‘सागर का पानी है जो मंहगाई को पानी की तरह बहाने में समर्थ है क्योंकि यह बहुतायात में नि:शुल्क उपलब्ध है। वरना तो पीने का पानी दूध के रेट मिल रहा है, जिससे आजकल दूधियों को भी दूध में पानी मिलाने से तौबा करनी पड़ी है और विवश होकर उन्हें सिंथेटिक दूध बना पड़ा है। सिंथेटिक दूध को सरकार मान्यता दे ताकि प्रट्रोल के इस युग में सीएनजी गैस के माफिक दूध 50 रूपये है तो सिंथेटिक दूध 15 रूपये किलो मिले। इससे निश्चित ही मंहगाई पानी-पानी न हो, परंतु दूध-दूध तो हो ही जाएगा।’
अविनाश अपने आसपास घटने वाली घटनाओं पर सतर्क दृष्टि रखते हैं और उनकी गम्भीरता को समझते हुए उन्हें अपने लेखन का विषय बनाते हैं। यही कारण है कि एक ओर वे मंहगाई से दो-दो हाथ करते हुए नजर आते हैं, दूसरी ओर ‘इच्छामृत्यु’ के शोर में अपनी आवाज भी पहुंचाते हैं। वे ‘भला ऐसे कैसे मर जाओगे जी’ पोस्ट में चुटकी लेते हुए लिखते हैं कि नेताओं की इच्छा मृत्यु का अधिकार वोटर के पास होना चाहिए। वे अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहते हैं कि इसी प्रकार अफसरों की मर्जी से मौत पर कर्मचारी का हक हो। इससे सबसे पहले तो भ्रष्टाचार, घूस इत्यादि खुद-ब-खुद अपनी बिना मांगे मौत को प्राप्त होंगे। वे इसके लाभों को बताते हुए कहते हैं कि जब भ्रष्टाचार नहीं होगा तो काले धन की समस्या नहीं होगी, फिर बाबा रामदेव भी सत्ता में आने की नहीं सोचेंगे। वे प्राणायाम और योग का एकाग्र होकर समुचित प्रचार-प्रसार कर सकेंगे।
अविनाश दिखावे के विरोधी हैं और मन से मन को जोड़ने में विश्वास रखते हैं। यही कारण है कि वे होली पर चेहरा रंगने की लोगों की दिखावटी कोशिशों को भी भांप जाते हैं और अपने मन की बात कहने से स्वयं को रोक नहीं पाते हैं। वे अपनी पोस्ट ‘हर रंग का उत्सव’ में ऐसे लोगों को निशाना बनाते हुए लिखते हैं कि जिसे देखो वही शरीर रंगने के लिए लालायित नजर आता है। बस रसना ही लपलपाती नहीं दिखलाई देती है, लार तो खूब बहती रहती है। वे होली के असली उद्देश्य को याद करते हुए कहते हैं- ‘वो मनरंगी, सतरंगी ठिठोली जिससे होली पर मधुर प्रेम की रंगोली बरसों से सदा सजती रही है, कहीं दूर खो गई लगती है। कहीं दूर तक होली की फुहार नहीं, जिसे कोई तलाश भी नहीं रहा है, सब पहले ही हार माने बैठे हैं।’
अविनाश जिस काम को करते हैं, उसमें पूरी तरह से डूब जाते हैं। यही कारण है कि अक्सर वे अपने ब्लॉग पर ब्लॉगिंग से जुड़े मुद्दों पर भी लिखते हुए नजर आते हैं। वे अपनी पोस्ट ‘हिन्दी ब्लॉगिंग में दु:ख के संदर्भ’ में घोषणा करते हुए कहते हैं कि दु:ख से उबरने के लिए हिन्दी ब्लॉगिंग जरूरी है। लेकिन साथ ही साथ वे ब्लॉगिंग से जुड़े हुए दु:खों की चर्चा करना भी नहीं भूलते। वे उनका जिक्र करते हुए कहते हैं- ‘पोस्ट पर टिप्पणी का न आना कुछ के लिए दु:ख का जनक है। टिप्पणी आए और सिर्फ ‘नाइस’ लिखा जाए तो दु:ख होता है।’ अविनाश प्रिंट मीडिया द्वारा ब्लॉग से नि:शुल्क सामग्री लिये जाने की भी खिलाफत करते हैं। इसीलिए वे अपनी पोस्ट ‘प्रिंट मीडिया के नाम हिन्दी ब्लॉग मीडिया का एक खुला पत्र’ में मीडिया समूहों का आवाहन करते हुए हते हैं- ‘समाचार पत्र/पत्रिका स्वामियों से अनुरोध है कि जिस प्रकार प्रकाशित रचनाओं पर पारिश्रमिक दिया जाता है उसी प्रकार ब्लॉगों से लेकर प्रकाशित की गई सामग्री पर भी सम्मान राशि देने का प्रावधान करने के मसले पर विचार करें और इसे यथाशीघ्र अमली जामा पहनाएं।’
अक्सर यह देखने में आता है कि लोग ब्लॉगिंग को पैसा कमाने का साधन बताने में गर्व का अनुभव करते हैं। लेकिन सच यह है हिन्दी में अभी भी नाममात्र के ही ऐसे ब्लॉगर हैं, जो ब्लॉग से पैसा कमा सके हैं। यह बात ब्लॉगरों को बहुत सालती है। अविनाश इसे दुखती रग मानते हैं और इस दर्द को दूसरी तरह से बयां करते हैं। उनका मानना है कि ब्लॉगिंग एक नशा है, जो बहुत ही कम कीमत पर उपलब्ध हो जाता है। वे अपनी पोस्ट ‘कौन कहता है हिन्दी ब्लॉगिंग में पैसा नहीं है’ में अपनी इस सोच को उद्घाटित करते हुए कहते हैं- ‘हिन्दी ब्लॉगिंग के नहीं हैं कोई लाभ /ऐसा कहने वालों को /अवश्य सूंघ जाएगा सांप /पैसे बचाना भी /पैसे कमाना ही होता है।’
ब्लॉग जगत आम लोगों का मंच है। इसकी खासियत यही है कि यहां पर हर कोई बिना किसी रोक-टोक के अपनी बात कह सकता है। लेकिन इस वजह से यहां पर कभी-कभी संवाद के स्थान पर विवाद भी देखने को मिल जाते हैं। अविनाश इन स्थितियों से व्यथित हो जाते हैं। यही कारण है कि वे ‘गर महात्मा गांधी जी ने हिन्दी ब्लॉग बनाया होता?’ पोस्ट में अपनी इस पीड़ा को व्यक्त करते हुए नजर आते हैं- ‘उनका ब्लॉग अमिताभ बच्चन, लालू यादव, आमिर खान, शाहरूख खान, मनोज बाजपेयी, लाल कृष्ण आडवाणी इत्यादि से अधिक लोकप्रिय होता? क्या उनकी पोस्टों पर भी विवाद होते? या सिर्फ स्वस्थ संवाद होते?’
जाहिर सी बात है कि अविनाश सिर्फ लिखने के लिए नहीं लिखते, उनकी लेखनी के पीछे एक मकसद होता है। उनका दिल इंसानियत के लिए धड़कता है, उनकी लेखनी में आम आदमी का दर्द छलकता है। व्यंग्य के द्वारा वे समाज की विद्रूपताओं को दिखाते हैं, अपनी लेखनी के द्वारा वे सोए हुओं को जगाते हैं। उनकी यही सद्-इच्छा उन्हें भीड़ से अलग दिखाती है और उनकी सार्थक सोच ‘अविनाश वाचस्पति’ ब्लॉग को पठनीय बनाती है।
अगर इस वक्त आम आदमी को सालने वाले विषयों की लिस्ट बनाई जाए, तो उसमें पहला स्थान निश्चित ही मंहगाई के हिस्से आएगा। अविनाश ने मंहगाई के इस महात्म्य को बखूबी समझा है और अपने व्यंग्य ‘मंहगाई घटाने के नुस्खे’ में जनता का दर्द बहुत शिद्दत से बयां किया है- ...
जवाब देंहटाएंबहुत विस्तृत जानकारी मिली अविनाश जी के बारे में ....
कई बार पढ़ा है उन्हें ....
सचमुच बहुत धार है उनकी कलम में ...
बधाई अविनाश जी .....
बहुत जानकारी मिली अविनाश जी के बारे में,
जवाब देंहटाएंसचमुच बहुत धार है उनकी कलम में....
सुन्दर व सार्थक परिचय।
जवाब देंहटाएंअविनाश जी के बारे में कई नई बातें जानने को मिलीं.. उनको स्वस्थ ब्लोगिंग के लिए बधाई और आपका आभार A
जवाब देंहटाएं--
Dipak Mashal
बहुत विस्तृत जानकारी मिली अविनाश जी के बारे में ....
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी जानकारी दी आपने अविनाशजी के बारे में...... आपका धन्यवाद
जवाब देंहटाएंउनकी लेखनी यक़ीनन सामाजिक विद्रूपताओं पर सटीक वार करती है....
अच्छा लगा अविनाश जी के बारे में इतना सब जानकर। जिंदादिली के दूसरे नाम हैं अविनाश वाचस्पति जी। आभार।
जवाब देंहटाएंयथा नामा तथा गुण को सार्थक कर रहे है वाचस्पति जी
जवाब देंहटाएंसुन्दर व सार्थक परिचय...अविनाश जी के बारे में
जवाब देंहटाएंब्लॉग तक पहले भी पहुँच चुका हूँ. ब्लागिंग के प्रति इनके लगाव से भी वाकिफ हूँ.......
जवाब देंहटाएंWell... it's nice to know about "Avinash Vaachaspati'. You did a nice job. Keep it up.
जवाब देंहटाएंअविनाश जी के बारे में बहुत अच्छी जानकारी एवं सार्थक परिचय......
जवाब देंहटाएंजाकिर साहब
जवाब देंहटाएंअविनाश जी से हमारा कोई संपर्क नहीं रहा मगर उनके लेखन में मौलिकता और सजगता तो है ही.......आपने उनके ऊपर बहुत विस्तृत रूप से लिखा है, निश्चित ही आपने उनकी शख्सियत को नया रंग दिया है.......आपने ठीक ही लिखा है कि "जाहिर सी बात है कि अविनाश सिर्फ लिखने के लिए नहीं लिखते, उनकी लेखनी के पीछे एक मकसद होता है। उनका दिल इंसानियत के लिए धड़कता है, उनकी लेखनी में आम आदमी का दर्द छलकता है। व्यंग्य के द्वारा वे समाज की विद्रूपताओं को दिखाते हैं, अपनी लेखनी के द्वारा वे सोए हुओं को जगाते हैं। उनकी यही सद्-इच्छा उन्हें भीड़ से अलग दिखाती है और उनकी सार्थक सोच ‘अविनाश वाचस्पति’ ब्लॉग को पठनीय बनाती है।"
आप दोनों को हमारी शुभकामनाएं ब्लॉग को आपकी ज़रुरत है.
अविनाश जी के लिए ब्लॉगिंग सेवा कार्य बन चुकी है ...
जवाब देंहटाएंउनके और विस्तार से परिचय के लिए आभार !