क्या व्यर्थ जा रहे हैं तारीफ में लिखे कमेण्ट ?

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चाहे किसी ब्‍लॉग पर आने वाली टिप्‍पणियों की संख्‍या चाहे 01 हो अथवा 111, उनमें से 99 प्रतिशत टिप्‍पणियों में सिर्फ और सिर्फ तारीफ लिखी जा...


चाहे किसी ब्‍लॉग पर आने वाली टिप्‍पणियों की संख्‍या चाहे 01 हो अथवा 111, उनमें से 99 प्रतिशत टिप्‍पणियों में सिर्फ और सिर्फ तारीफ लिखी जाती है। टिप्‍पणीकर्ताओं के इस रवैये को लेकर जहां अब तक बहुत कुछ लिखा जा चुका है, वहीं बहु‍त से लोग इसीलिए ब्‍लॉगिंग को पसंद भी नहीं करते हैं। ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्‍या ये टिप्‍पणियां व्‍यर्थ ही जा रही हैं ?

जो लोग मानव व्‍यवहार में रूचि रखते हैं, उन्‍हें पता है कि अपने समान्‍य जीवन में व्‍यक्ति कितने भी अच्‍छे काम क्‍यों न कर ले, लोग उसकी प्रशंसा करने में शर्म सी महसूस करते हैं। यही कारण है कि समाज में सकारात्‍मक प्रवृत्तियों का लगातार क्षरण हो रहा है और नकारात्‍मक प्रवृत्तियां परवान चढ़ रही हैं। यदि इसे मेरी सोच की अतिरेकता न माना जाए तो मैं ऐसे पचासों लोगों के उदाहरण दे सकता हूँ, जिनमें लेखन के पर्याप्‍त गुण थे, किन्‍तु तारीफ की दो बूंदे न मिल पाने के कारण उनका सृजन रूपी अंकुर असमय ही काल कलवित हो गया।

पता नहीं हमारे समाज का यह कौन का प्रभव है कि हम दूसरों की छोड़ें अपने सगे-सम्‍बंधियों की भी तारीफ करना गुनाह समझते हैं। अगर हम अपने घर के भीतर ही झांकें, तो अक्‍सर ऐसा होता है कि घर पर रहने वाली ज्‍यादातर स्त्रियों में कोई न कोई ऐसा टैलेण्‍ट अवश्‍य पाया जाता है, जिसके बल पर वे समाज में अच्‍छा खासा नाम कमा सकती हैं। ज्‍यादातर पुरूषों को अपनी पत्नियों के उस गुण के बारे में पता भी होता है, पर बावजूद इसके वे उसकी तरफ से ऑंख मूंदे रहते हैं। अगर किसी भी महिला में कोई विशेष गुण न भी हो, तो इतना तो तय है कि वह कोई न कोई खाना तो अवश्‍य ही अच्‍छा बनाती होगी। लेकिन याद कीजिए आपने आखिरी बार अपनी पत्‍नी के बने खाने की तारीफ कब की थी? माफ कीजिए, शायद आपको वह तिथि, वह महीना अथवा वह साल याद नहीं आ रहा होगा।

पत्‍नी ही नहीं, हमारे बच्‍चे, माता-पिता और भाई बहन अक्‍सर ऐसे काम करते हैं, जो प्रशंसा के योग्‍य होते हैं, लेकिन इसके बावजूद हमारे मुँह से तारीफ से दो शब्‍द नहीं निकलते। हॉं, उनसे ज़रा सी गल्‍ती होने पर उन्‍हें लानत-मलामत भेजना हम अपना पहला अधिकार जरूर समझते हैं। जिसका नतीजा यह होता है कि हमारे सम्‍बंधों की मधुरता धीरे-धीरे समाप्‍त होती चली जाती है। यही कारण है कि हमारे सामाजिक सम्‍बंध बेहद जर्जर हो जाते हैं और जरा सा झटका लगने पर वे टूटने के कगार पर पहुंच जाते हैं।

ऐसे में यदि ब्‍लॉग की वर्चुअल दुनिया में ही सही हम दूसरों की (भले ही झूठी सही) तारीफ करने की आदत अपने भीतर डाल रहे हैं, तो यह समाज के लिए एक शुभ संकेत है। इससे न सिर्फ ब्‍लॉगर्स को प्रोत्‍साहन मिल रहा है, वरन हमारे भीतर भी (अनजाने में ही सही्) परोक्ष रूप में सकारात्‍मक सोच का नजरिया पैदा हो रहा है। इसलिए यदि कोई आपकी टिप्‍पणियों में की गयी तारीफ को लेकर आलोचना कर रहा है, तो उससे विचलित न हों और बिना किसी संकोच के अपना काम करते रहें।

आप मानें या न मानें पर प्रशंसा (भले ही झूठी क्‍यों न हो) शरीर में सकारात्‍मक ऊर्जा को बढ़ाती है, प्रशंसा लक्ष्‍य को प्राप्‍त करने में मदद करती है। प्रशंसा हमें दूसरों के बारे में सोचना सिखाती है, प्रशंसा हमारे शुभेच्‍छुओं की संख्‍या बढ़ाती है, प्रशंसा हमारे जीवन में रस लाती है, प्रशंसा हमारी सफलता को नई ऊंचाईयों की ओर ले जाती है। प्रशंसा अगर समय से की जाए, तो अपने परिणाम अवश्‍य लाती है। प्रशंसा अगर सलीके से की जाए तो चमत्‍कार सा असर दिखाती है। और सबसे बड़ी बात यह है कि भले ही हमें यह पता हो कि सामने वाला व्‍यक्ति हमारी झूठी तारीफ कर रहा है, प्रशंसा फिर भी हमें (कुछ क्षण के लिए ही सही) प्रसन्‍न कर जाती है।

COMMENTS

BLOGGER: 46
  1. यही मत मेरा भी है टिप्पणियों से हौसला बढ़ता है हां महज चापलूसी के लिए की गयी टिप्पणिया उचित नही

    --

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  2. बहुत सार्थक विश्लेषण..

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  3. अच्छे विचारों और लेखनी की तारीफ जरूर की जानी चाहिये साथ-साथ तर्कसंगत आधार पर आलोचना भी की जानी चाहिये......सिर्फ बे वजह तारीफ करना या पूर्वाग्रह से युक्त आलोचना से हर किसी को बचना चाहिये.....वैसे कई परिपक्व ब्लोगर हैं जिनके लिए टिप्पणियां उतनी महत्वपूर्ण नहीं है लेकिन नए ब्लोगरों को प्रोत्साहन वाली टिप्पणियों की सख्त आवश्यकता रहती है इसलिए ब्लोगिंग के विकास के लिए हमसबको इसका धयान जरूर रखना चाहिये.....

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  4. आपने सही कहा है । अपनी तारीफ सुनना किसे अच्छा नहीं लगता । यह मानव प्रवृति है ।
    लेकिन दूसरे की तारीफ करने में सकुचाते हैं । यह गुण कम ही लोगों में होता है ।

    फिर भी बनावटी तारीफ से बचना चाहिए । यह नुकसान दायक भी हो सकती है ।

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  5. यह लेख एक सकारात्मक उर्जा प्रदान कर रहा है ....झोठी तारीफ़ से बचते हुए हौसला बढने वाली टिप्पणी तो की ही जा सकती है .... समालोचना हो आलोचना नहीं ...सार्थक पोस्ट

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  6. अच्छे काम तारीफ में संकोच कैसा। लेकिन वह औपचारिक न हो।

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  7. आपकी सोच अच्छी है लेकिन मेरा मानना है पोस्ट को पूरा पढ़ कर ही टिप्पणि की जानी चाहिए ना कि सरसरी नज़र डाल कर लिख दिया वाह क्या लेख है
    कुछ मुद्दों पर आप सहमत हो सकते हैं कुछ पर असहमत दोनों तरह के विचार रखें जाएं लेकिन मनभेद तक सीमित रहे मनभेद ना हो । और ब्लॉग का मतलब ही ये है कि जो हम सोच , समझ, देख रहे हैं अपने आसपास उसके बारे में लिखे , सार्थक लिखें हो सके तो बुराइयों के खिलाफ अभियान भी चलाएं । जो भी टिप्पणी हो ईमानदारी से हो उसके लिए बहुत सारा समय निकालना पड़ेगा ।

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  8. प्रशंसा हमें दूसरों के बारे में सोचना सिखाती है, प्रशंसा हमारे शुभेच्‍छुओं की संख्‍या बढ़ाती है, प्रशंसा हमारे जीवन में रस लाती है, प्रशंसा हमारी सफलता को नई ऊंचाईयों की ओर ले जाती है। प्रशंसा अगर समय से की जाए, तो अपने परिणाम अवश्‍य लाती है।

    ये तो आप बिलकुल ठीक कह रहे हैं |किन्तु किसी भी कीमत पर झूटी प्रशंसा नहीं की जानी चाहिए -इससे तो अच्छा है किटिपण्णी ही न की जाए |झूठ का साहित्य में कोई स्थान नहीं है |

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  9. सही विश्लेषण.
    पैनी नज़र है आप की भी .....

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  10. तारीफ़ करना अच्छी बात है और इससे कभी परहेज नहीं करना चाहिए मगर यह भी विचार करने की बात है कि झूठी तारीफ़ करके हम किस बात के लिए प्रोत्साहित कर रहें हैं !

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  11. प्रशंसा की प्रशंसनीय प्रस्तुति

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  12. कोई भी टिप्पणी व्यर्थ नहीं जाती यह लेखक को प्रोत्साहित करती है |किसी को प्रोत्साहित करना कहाँ गलत है |
    आशा

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  13. किसी को बुरा कहने से अच्छा है कुछ न कहना, लेकिन अच्छा कहना और भी अच्छा :)

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  14. और सबसे बड़ी बात यह है कि भले ही हमें यह पता हो कि सामने वाला व्‍यक्ति हमारी झूठी तारीफ कर रहा है, प्रशंसा फिर भी हमें (कुछ क्षण के लिए ही सही) प्रसन्‍न कर जाती है।

    बिल्कुल सटीक बात कही है और ऐसा ही होता भी है मगर यही प्रोत्साहन नव सृजन को प्रेरित करता है ………………आपने इस लेख के माध्यम से जितनी बाते कही है सभी सही हैं …………नकारात्मक सोच से बेहतर है सकारात्मक सोच रखे तो उसके परिणाम भी उतने ही बढिया आयेंगे इसमे कोई शक नही……………एक बहुत ही बढिया आलेख्।

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  15. प्रोत्साहन बेहतर सृजन का कारक है..

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  16. ज़ाकिर भाई आप बहुत अच्छा लिखते हैं, आपकी बातें तार्किक और प्रेरक होती हैं। मैं तो बस ग़ालीब का एक शे’र लिखूंगा,
    वरक़ तमाम हुआ और मद्‍ह बाक़ी है,
    सफ़ीना चाहिए इस बह्‌रे-बेकराँ के लिये।
    ज़ारी ...

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  17. ऊपर वाला विचार तो इस पोस्ट के लिए था। अब एक बात अपनी।
    उन दिनों मैं ब्लॉग जगत में नया-नया आया था। तब कोई टिप्पणी नहीं आती थी। बड़ा हतोत्साहित रहता था। सोचता था कुछ अच्छा लिख ही नहीं रहा हूं क्या जो लोग पढने नहीं आते।
    तभी एक दिन समीर जी की टिप्पणी आई उम्दा लेख।
    बस इसने टॉनिक का काम किया और फिर दूने उत्साह के साथ जो जुड़ा तो आज तक लगा हूं।
    (तारीफ़ वाली टिप्पणी के साइड इफ़ेक्ट)

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  18. बिल्कुल ठीक कहा आपने, तारीफ सुन कर हौसला बढ़ता है और हम और अच्छा लिखने का प्रयत्न करते हैं, इसमें कोई बुराई नहीं है

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  19. टिप्पणियों अथवा ब्लॉग सामग्री के विषय में कोई न कोई पोस्ट प्रायः रोज़ दिख जाती है। सुनने में थोड़ा अप्रिय तो लगता है,मगर हम सब इस बात को परोक्ष रूप से मानेंगे कि जितने टिप्पणीकार हैं उनमें से बमुश्किल 10 प्रतिशत होंगे जो पोस्ट पढ़ते हैं अथवा विषय को समझकर टिप्पणी करते हैं। इसके अलावा,तमाम टिप्पणीकारों में बमुश्किल 1 प्रतिशत लोग ऐसे होंगे जो किसी पोस्ट पर बिना प्रतिदान की अपेक्षा के किसी ब्लॉग पर जाते अथवा टिप्पणी करते हैं। टिप्पणी के स्तर से इसे अच्छी तरह समझा जा सकता है। धन्य हैं वे लोग, यह सब जानने के बावजूद जिनकी हौसलाअफजाई होती है।

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  20. सभी का कमेंट करने का नजरिया ज़ुदा-ज़ुदा होता है!

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  21. आज जो चोटी के ब्लॉगर माने जा रहे हैं,आलोचनात्मक टिप्पणियों पर उन्होंने भी बड़ी तल्ख प्रतिक्रिया की हैं। दलाली जैसी अथवा हर पोस्ट पर एक-सी शब्दावली में कथित प्रशंसात्मक टिप्पणियों की भरमार इसलिए दिखती है जो वास्तव में समय और स्थान की बर्बादी ही है।

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  22. सार्थक विश्लेषण...
    यही मत मेरा भी है टिप्पणियों से हौसला बढ़ता है.

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  23. अच्‍छी सोच।
    ब्‍लाग में जाकर तारीफें करने को गलत बताने वालों के लिए यह‍ पोस्‍ट नया नजरिया दे सकता है।
    पर हां, सिर्फ तारीफें करने के अलावा यदि किसी की पोस्‍ट पर कोई प्रतिक्रिया दे और उस पर बहस का जन्‍म हो तो यह भी अच्‍छाही है लेखक के लिए और टिपपणी करने वालों के लिए।
    इससे ज्ञान का ही विस्‍तार होगा।
    बहरहाल अच्‍छी पोस्‍ट।

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  24. सकारात्मक सुंदर विश्लेषण ...... आभार

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  25. मैं सहमत हूँ आपकी बात से ... कभी कभी टिप्पणियाँ और अच्छा लिखने को प्रेरित करती हैं और अच्छा स्रजन हो जाता है ...

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  26. आपके लेख से आपकी सोच का सकारात्मक पक्ष उभर कर सामने आया है, बधाई इस सुन्दर अभिव्यक्ति की.ख़ास तौर पर आपकी निम्न पंक्तियों की;-
    "प्रशंसा अगर सलीके से की जाए तो चमत्‍कार सा असर दिखाती है"
    अब एक practical बात भी. आदमी चाहे जितनी साफ़-सुथरी सोंच वाला हो,वर्तमान हालातों और उठापटक की ज़िन्दगी में कोई हमेशा सकारात्मक ही बना रहे ऐसा सम्भव नहीं.

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  27. प्रशंसा शरीर में सकारात्‍मक ऊर्जा को बढ़ाती है और लक्ष्‍य को प्राप्‍त करने में मदद करती है....

    सहमत हूँ आपके बात से...

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  28. यह अच्छा लगा जाकिर भाई !!शुभकामनायें !!

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  29. झूठी प्रशंसा ब्लॉगर/लेखक के कृतित्व को प्रभावित कर सकती है। इसलिए आवश्यक स्थान पर आलोचना भी की जानी चाहिए, यह लेखक के लेखन को सही दिशा दे सकती है। मगर लेखकों भी फालतू की प्रशंसा और आलोचना दोनों से ही अप्रभावित रहना चाहिए।

    प्रमोद ताम्बट
    भोपाल
    http://vyangya.blog.co.in/
    http://www.vyangyalok.blogspot.com/
    http://www.facebook.com/profile.php?id=1102162444

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  30. आपकी बात से शत प्रतिशत सहमत...

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  31. सार्थक और सकारत्मक सन्देश ...!

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  32. सार्थक प्रयासों की मुक्त कंठ से प्रशंसा हो।

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  33. सत्यम ब्रूयात प्रियं ब्रूयात , सत्यम अप्रियम ना ब्रूयात .

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  34. विचारणीय विश्लेषण.....

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  35. सही है, प्रशंसा करना दैवीय गुण है पर झूठी प्रशंसा से आजतक किसी का भला नहीं हुआ, यह हमारे अहंकार को बढ़ाती है, टिप्पणी लेख पढ़कर दी गयी है या ऐसे ही इसका पता लगाना भी कोई मुश्किल काम नहीं है !

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  36. आपकी बात से आंशिक रूप से सहमत हूँ , माना कि तारीफ सुन कर हमे अच्छा लगता है , मगर वो कमियां जो हममे है , सुन कर सुधार और प्रगति होती है ।
    जो लेख तारीफ योग्य हो निःसन्देह उसकी खुले मन से प्रशंसा करनी ही चाहिये ।
    किन्तु ईमानदारी से,

    जवाब देंहटाएं
  37. आपकी टिपण्णी और उत्साहवर्धन के लिए बहुत बहुत शुक्रिया!
    मैं आपकी बातों से पूरी तरह सहमत हूँ! सार्थक सन्देश देती हुई बहुत बढ़िया लिखा है आपने !

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  38. सर्जना शर्माजी के विचारों से सहमत हूँ.टिपण्णी पोस्ट में वर्णित अच्छे विचारों और भावों का पोषण करनेवाली हो और शालीनता पूर्वक यदि कोई कमी या कुविचार लगता भी हो तो उस पर भी सकारात्मक द्रष्टिकोण देते हुए हो.टिपण्णी करना भी एक यज्ञ और पूजा के समान पवित्र कार्य मानते हुए ही मनोयोग से करना चाहिये,केवल एक ओपचारिकता मात्र ही नहीं.टिपण्णी करनेवाले की सकारात्मक सोच और प्रशंसा से जब ब्लोगर परिचित होता है तो ही उसका उत्साह कई गुना बढ़ जाता है.इसी प्रकार से प्रति टिपण्णी का भी बहुत महत्व है जो आपसी संवाद को और निखार सकती है.

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  39. सार्थक और समर्थन करता हूँ...........

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  40. This write up is worth reading,
    and thanks for encouraging me too.

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  41. रजनीश जी बहुत अच्छा आलेख है क्या आप इसे मेरे लिये भेज सकते हैं/ मै इसे अपने ब्लाग पर लगाना चाहती हूँ। मुझे अस श्रिंखला का पता आज ही चला। शुभकामनायें।

    जवाब देंहटाएं
  42. प्रशंसा करना अच्‍छी बात है लेकिन हाँ में हाँ मिलाना?

    जवाब देंहटाएं
आपके अल्‍फ़ाज़ देंगे हर क़दम पर हौसला।
ज़र्रानवाज़ी के लिए शुक्रिया! जी शुक्रिया।।

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हिंदी वर्ल्ड - Hindi World: क्या व्यर्थ जा रहे हैं तारीफ में लिखे कमेण्ट ?
क्या व्यर्थ जा रहे हैं तारीफ में लिखे कमेण्ट ?
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