('जनसंदेश टाइम्स', 16 मार्च, 2011 में 'ब्लॉगवाणी' कॉलम में प्रकाशित ब्लॉग समीक्षा) हिन्दी के विद्वान सरदार पू...
('जनसंदेश टाइम्स', 16 मार्च, 2011 में
'ब्लॉगवाणी' कॉलम में प्रकाशित ब्लॉग समीक्षा)
हिन्दी के विद्वान सरदार पूर्ण सिंह ने लिखा है कि हम भारतीय रेल के डिब्बों के समान हैं। हमें चलाने के लिए किसी इंजन की आवश्यकता होती है। पूर्ण सिंह की यह बात सच ही है। हमारे आसपास कुछ भी होता रहे, हमारी सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ता। शायद यही कारण है कि देश में अव्यवस्थाएं अपने चरम पर हैं और भ्रष्टाचार मंगहाई की तरह सर्वव्यापी हो चला है।
लेकिन इसका अर्थ यह कदापि नहीं कि इस स्थितियों को देखकर सारा जमाना आंखें मूँदे हुए पड़ा है। हमारे चारों ओर ऐसे लोक सचेतकों की कमी नहीं है, जो सोए हुए समाज को जगाने का काम कर रहे हैं। ऐसे ही एक सचेतक हैं मैनपुरी, उत्तर प्रदेश के निवासी शिवम मिश्रा, जो अपने ब्लॉग ‘जागो सोने वालों’ (http://jaagosonewalo.blogspot.com/) के माध्यम से जन चेतना जाग्रत करने का कार्य कर रहे हैं।
पेशे से बीमा क्षेत्र से जुड़े शिवम एक जिम्मेदार नागरिक हैं। हमारे चारों ओर फैली अव्यवस्थाएं, असंगतियां और अत्याचार हमारी तरह उन्हें भी परेशान करते हैं। वे सामाजिक विसंगतियों को दूर करके उसमें सकारात्मक बदलाव लाने के पक्षधर हैं। यही कारण है कि जब भी कहीं कुछ गलत देखते हैं, तो उसके विरूद्ध आवाज उठाने के लिए उद्यत हो जाते हैं।
शिवम भ्रूण हत्या के मसले पर काफी उग्र नजर आते हैं। वे अपनी पोस्ट ‘जिन्हें नाज़ है हिंद पे वो कहाँ है’ में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का हवाला देते हुए कहते हैं कि हमारे देश में हर साल सात लाख लड़कियों की हत्या कर दी जाती है। उनका कहना है कि जिस दिन यह पता चलता है कि कोई स्त्री गर्भवती हुई है, तो सबसे पहले उसके परिवार के लोगों को गर्भ में पल रहे भ्रूण के लिंग पता करने की चिंता सवार हो जाती है। और जैसे ही गैरकानूनी रूप से लिंग की जांच कराने के बाद यह पता चलता है कि गर्भ में पल रहा भ्रूण मादा है, उसकी हत्या की साजिशें परवान चढ़ने लगती हैं। इसके साथ ही शिवम बताते हैं कि जन्म के पहले साल के भीतर ही प्रतिवर्ष 10 लाख 72 बच्चों की मृत्यु हो जाती है। आश्चर्य का विषय यह है कि इनमें लड़कियों का प्रतिशत ज्यादा है, जबकि लड़कियों में जीवनी शक्ति लड़कों के मुकाबले काफी अधिक होती है।
शिवम का मानना है कि महिलाएं पुरूषों के मुकाबले ज्यादा गम्भीर होती हैं, जबकि पुरूष ज्यादातर टालने वाला रवैया अपनाता है। उसका यह रवैया नसबंदी के सम्बंध में भी स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। शिवम बताते हैं कि बंध्याकरण के मामले में पुरूष स्त्रियों से काफी पीछे है। उनके अनुसार इसकी वजह है पुरूषों में व्याप्त यह मिथ्या धारणा, जिसके चलते वह मानते हैं कि नसबंदी कराने के बाद मर्दानगी (यौन क्षमता) घटित जाती है। जबकि वैज्ञानिकों ने यह प्रमाणित किया है कि इससे न तो उनमें किसी तरह की कमजोरी आती है और न ही उनकी यौन क्षमता कम होती है। बावजूद इसके नसबंदी के होने वाले कुल आपरेशनों में पुरूषों को प्रतिशत 0.3 फीसदी है। शिवम लेख के अंत में अपने अंदाज में चुटकी लेते हुए कहते हैं, ‘आज के दौर में जहाँ महिलाएं हर जगह पुरुषों को पीछे छोड़ते हुए आगे बढ़ रही हैं और पुरुषों में जहाँ इस बात से काफी नाराज़गी भी है तो क्यों ना इस मामले में पुरुष ही आगे रहे!’
ऐसा नहीं है कि समाज में व्याप्त जड़ता और अंधविश्वास टूट नहीं रहे हैं। जीवन के बहुत से ऐसे क्षेत्र हैं, जहॉं परम्पराएं बदल रही हैं। शिवम अपनी पोस्ट ‘क्या बेटा और क्या बेटी?’ में विवि से पोस्ट ग्रेजुएशन कर रही युवती अनुभूति उर्फ छोटी का उदाहरण देते हुए कहते हैं कि समाज में बदलाव की हवा चलनी शुरू हो गयी है। वे बताते हैं कि अनुभूति के पिता की कुछ समय पहले मृत्यु हो गयी थी। अनुभूति का चूंकि कोई भाई नहीं था, इसलिए समाज के लोगों का विचार था कि उसके पिता की चिता को अग्नि तथा उसके श्राद्ध का कार्य पुरोहित को करना चाहिए। क्योंकि शास्त्रों में लिखा है कि पुत्र के अभाव में पत्नी, पत्नी के अभाव में सहोदर, सहोदर के अभाव में बंधु, बंधु के अभाव में राजा और राजा के अभाव में पुरोहित श्राद्धकर्म कर सकता है। पर अनुभूति ने साहसपूर्वक न सिर्फ लोगों की इस राय का विरोध किया वरन अपने पिता के अन्तिम क्रिया कर्म करके समाज के सामने एक नई मिसाल कायम की। शिवम अनुभूति उर्फ छोटी के इस साहस की प्रशंसा करते हुए कहते हैं: ‘छोटी ने तो अपना फ़र्ज़ निभा दिया, अब बारी समाज की है। देखते हैं वो कब नींद से जागता है?’
नारियों के प्रति अत्याचार की जो भी घटनाएं होती हैं, उनमें एक अच्छा खासा प्रतिशत तेजाब फेंकने का है। आधुनिक युग में तेजी से बढ़ रहे इस अपराध को शिवम बलात्कार से भी ज्यादा जघन्य मानते हैं। वे अपनी पोस्ट ‘तेजाब: मनचलों का हथियार’ में कहते हैं कि तेजाब फेंकने की घटना से प्रभावित स्त्री न सिर्फ इससे असहनीय पीड़ा का सामना करती है, वरन उसका चेहरा इतना भयानक हो जाता है, जिससे वह किसी के सामने जाने में भी अपराधी सा अनुभव करती है। ऐसी स्थिति में वह हर क्षण मरती है। शिवम इस अपराध की सजा कम से कम 10 दस किये जाने के ला कमीशन के सुझाव की सराहना करते हैं और मांग करते हैं कि तेजाब की खुली बिक्री पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए।
ऐसा नहीं है कि शिवम सिर्फ बड़े-बड़े विषयों पर कलम चलाते हैं। वे जिंदगी को छूने वाले हर छोटे से छोटे पहलू पर नजर रखते हैं और किसी भी स्तर पर ढि़लाई नहीं बरतते। यही कारण है कि जब खाने-पीने के मामलों में मिलावट के मामले सामने आते हैं अथवा ज्यादा गर्मी पड़ने पर भी छोटे बच्चों के स्कूल बंद नहीं होते, तो वे विचलित हो उठते हैं। ‘लालच की पराकाष्ठा’ पोस्ट में वे मिलावटखोंरों के पूरे तंत्र पर चुटकी लेते हुए नजर आते हैं- ‘अरे भाई, दिवाली हो, होली हो या ईद हो जब तक यह मिलावटखोर अपना माल नहीं बेचेंगे तब तक इन लोगो का, खाद्य एवं औषधि नियंत्रण विभाग वालों का, पुलिस वालों का और इन के बाकी मौसेरे भाइयों का घर खर्च कैसे चलेगा?’ साथ ही वे ‘चिलचिलाती धूप में बिलबिला रहे बच्चे...’ पोस्ट में डी0एम0 साहब को भी नहीं बख्शते। वे उनकी क्लास लेते हुए कहते हैं, ‘भाई, हम तो यही दुआ करते हैं कि गर्मी कम हो और हमारे मासूम बच्चे सकुशल रहें। वैसे अगर गर्मी जल्दी आ गयी है तो क्या गर्मी की छुट्टियाँ जल्दी नहीं आ सकतीं? डीएम साहब एसी आफिस और एसी घर में बैठ इस बात पर गौर जरूर करियेगा।’
देश में भ्रष्टाचार की जब भी बात आती है, हमारे जेहन में सबसे पहले खद्दरधारी नेताओं का चेहरा कौंधता है। यही वजह है कि शिवम के निशाने पर भी ज्यादातर ये माननीय ही आते हैं। ‘काहे के लोक सेवक?’, ‘मितव्ययता के नाटक’, ‘अब क्या करोगे राज भाई?’ और ‘सोच रहा हूँ नेता बना जाए’ जैसी तमाम पोस्टों में उन्होंने जिस ढ़ंग से नेताओं की आरती उतारी है, वह काबिले दाद है। उनकी कलम की धार को समझने के लिए नमूने के तौर पर उनकी एक पोस्ट ‘सोच रहा हूँ नेता बना जाए’ की यह छोटी सी चुटकी ही काफी है: ‘जिस हिसाब से मंहगाई बढ़ती जा रही है सोच रहे हैं ...हम भी नेता बन जाएँ। एक भी घोटाला कर लिए... बस बन गया काम। फिर रात के खाने में आलू और प्याज़ की सब्जी... हम को तो सोच-सोच कर ही स्वाद आ रहा है। ...खाना मिलेगा तो क्या होगा?’
शिवम के पास विषयों का टोटा नहीं है। एक ओर वे बच्चों के ऊपर हो रहे अत्याचार की बात करते हैं, तो दूसरी ओर भारतीय खाद्य निगम की लापरवाही के कारण लाखों टन सड़ने वाले अनाज की ओर भी ध्यान आकर्षित करवाते हैं। एक ओर वे शहीदे आजम भगत सिंह द्वारा लिखे गये पत्र के बहाने उनके देशभक्ति के जज्बे को सामने रखते हैं, तो दूसरी ओर ‘विजय दिवस’ के बहाने कारगिल युद्ध के सबक को भी याद दिलाते हैं। कुल मिलाकर कह सकते हैं कि वे समाज से जुड़े हर उस विषय में गहरी रूचि रखते हैं, जो लोगों से जुड़ा हुआ है और जो लोगों की जिंदगी को प्रभावित करता है। उनकी जानकारियों से भरी तमाम पोस्टें जहां एक ओर उनके ब्लॉग को गम्भीरता देती हैं, वहीं उनकी चुटीली शैली पाठकों को आकर्षित करने में मदद करती है। और इन सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है उनकी सकारात्मक दृष्टि, जो ‘जागो सोने वालों’ को उल्लेखनीय बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
लो भैया हम जाग गए लेकिन सोने का भी अपना मजा होता है शिवम जी को बधाई
जवाब देंहटाएंइस ब्लॉग से परिचय कराने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसादर
सामजिक चेतना जगाता लेख ..अच्छा लगा ..
जवाब देंहटाएंनए ब्लॉग से परिचय के लिए शुक्रिया
बहुत विचारणीय आलेख ...शिवम् जी का लेखन सच में समाज सापेक्ष है ...आपने सूक्ष्मता प्रकाश डाला है , आपका आभार
जवाब देंहटाएंbhtrin andaaz he jnab kaa kya khyal he aapkaa . akhtar khan akela kota rajsthan
जवाब देंहटाएंशिवम जी से शानदार परिचय हुआ!!
जवाब देंहटाएंउन्हे बधाई!!
आपके प्रस्तुतिकरण भी शानदार दिया
निरामिष: शाकाहार : दयालु मानसिकता प्रेरक
हमें हमेशा किसी नेता की तलाश रहती है और नेताओं को पैसे की।
जवाब देंहटाएंविचारणीय आलेख .
जवाब देंहटाएंअच्छा लिखा है अपने ब्लाग के बारे में.
जवाब देंहटाएंSunder naye blog se prichay ka aabhar.....
जवाब देंहटाएंइस ब्लॉग से परिचय कराने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद..
जवाब देंहटाएंआपका प्रस्तुतीकरण बहुत ही अच्छा है.
होली की सपरिवार शुभकामनायें........
good Shivam ji, badhai
जवाब देंहटाएंthanks Rajnish ji
इस ब्लॉग से परिचय कराने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद
जवाब देंहटाएंहर सप्ताह किसी ब्लॉग और ब्लागीर का प्रिंट मीडिया में इस तरह उल्लेख कर आप बड़ा काम कर रहे हैं।
जवाब देंहटाएंहोली की हार्दिक शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंउठ जाग मुसाफिर भोर भई.... जगाने वाले ब्लॉगर को व आपको भी बधाईयाँ !
जवाब देंहटाएंइतने मान सम्मान के लिए आपका बहुत बहुत आभार जाकिर भाई !
जवाब देंहटाएंशिवम भाई को ढेर सारी शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंवाह वाह बहुत बहुत बधाई शिवम भाई को । जाकिर भाई आपका ये नायाब प्रयास अब रंग लाने लगा है बहुत खूब । शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंशिवम जी,आपको बहुत-बहुत बधाई तथा ज़ाकिर अली 'रजनीश' जी का बहुत-बहुत आभार
जवाब देंहटाएंभजन करो भोजन करो गाओ ताल तरंग।
जवाब देंहटाएंमन मेरो लागे रहे सब ब्लोगर के संग॥
होलिका (अपने अंतर के कलुष) के दहन और वसन्तोसव पर्व की शुभकामनाएँ!
होली की शुभकामनाएं ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर ! बधाई!
जवाब देंहटाएंआपको एवं आपके परिवार को होली की हार्दिक शुभकामनायें!
आप को सपरिवार होली की हार्दिक शुभ कामनाएं.
जवाब देंहटाएंसादर
aap ko holi kee saparivaar badhaai..
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर ज्ञानवर्धक प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआपको सपरिवार होली की हार्दिक शुभकामनाएं
होली का त्यौहार आपके सुखद जीवन और सुखी परिवार में और भी रंग विरंगी खुशयां बिखेरे यही कामना
जवाब देंहटाएंबढिया है.
जवाब देंहटाएंरंग-पर्व पर हार्दिक बधाई.
आपको और समस्त परिवार को होली की हार्दिक बधाई और मंगल कामनाएँ ....
जवाब देंहटाएंअवगत हुआ एक और ब्लॉग से. आपकी यह प्रक्रिया सतत चलती रहे.....
जवाब देंहटाएंबेहतरीन पोस्ट.
जवाब देंहटाएंवाह वाह के कहे आपके शब्दों के बारे में जीतन कहे उतन कम ही है | अति सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद् आपको असी पोस्ट करने के लिए
कभी फुरसत मिले तो मेरे बलों पे आये
दिनेश पारीक
वाह वाह के कहे आपके शब्दों के बारे में जीतन कहे उतन कम ही है | अति सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद् आपको असी पोस्ट करने के लिए
कभी फुरसत मिले तो मेरे बलों पे आये
दिनेश पारीक
वाह वाह के कहे आपके शब्दों के बारे में जीतन कहे उतन कम ही है | अति सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद् आपको असी पोस्ट करने के लिए
कभी फुरसत मिले तो मेरे बलों पे आये
दिनेश पारीक
शिवम मिश्र जी भारत के एक जागरूक नागरिक हैं ...
जवाब देंहटाएं