('जनसंदेश टाइम्स', 9 मार्च, 2011 में 'ब्लॉगवाणी' कॉलम में प्रकाशित ब्लॉग समीक्षा ) कुछ समय पहले लखनऊ में आयोजित एक ...
('जनसंदेश टाइम्स', 9 मार्च, 2011 में 'ब्लॉगवाणी' कॉलम में प्रकाशित ब्लॉग समीक्षा)
कुछ समय पहले लखनऊ में आयोजित एक छोटी सी ब्लॉगर मीट में एक एक महिला ब्लॉगर ने कहा था कि ब्लॉगिंग ने महिलाओं को चूल्हे-चौके से निकालने में और अपनी आवाज को लोगों तक पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। अब हम अपनी अपनी घुटन को, अपनी पीड़ा को अपने भीतर क्यों रखें? ब्लॉगिंग हमारे लिए एक अभिव्यक्ति का द्वार बनकर आया है।
सचमुच इसमें दो राय नहीं हो सकती कि ब्लॉगिंग ने पिछले कुछ वर्षों में अभिव्यक्ति के सशक्त माध्यम के रूप में अपनी पहचान दर्ज कराई है। अभिव्यक्ति के इस सशक्त माध्यम का सदुपयोग कर जो समर्थ हस्ताक्षर हमारे सामने आए हैं, उनमें दिल्ली की रंजना भाटिया का नाम प्रमुख है। रंजना हिन्दी की उन ब्लॉगर्स में से हैं, जो काफी समय से इस माध्यम को सार्थकता प्रदान करती रही हैं। वे ‘हिन्द युग्म’ के द्वारा काफी समय से बाल साहित्य को समृद्ध करती रही हैं, उन्होंने ‘साइंस ब्लॉगर्स असोसिएशन’ के लिए शानदार विज्ञानपरक लेखों का सृजन किया है, वे ‘हिन्दी मीडिया’ पर ब्लॉगों की समीक्षा के लिए भी जानी जाती हैं और ‘जीवन ऊर्जा’ पर स्वास्थ्य चेतना का प्रचार-प्रसार करती भी नजर आती हैं। पर अगर उनके मन की बातों को पढ़ना है, तो उसका ठिकाना एक ही है और वह है उनका अपना ब्लॉग ‘कुछ मेरी कलम से’ (http://ranjanabhatia.blogspot.com/)।
रंजना एक संवेदनशील महिला हैं। बचपन की अनुभूतियां को उन्होंने बड़े यत्न से मन के किसी कोने में संजो सा रखा है। वे अपनी उन स्मृतियों को जब कुरेदती हैं, तो अनायास ही एक कविता का सृजन हो जाता है और उसका नाम पड़ जाता है ‘बहुत दिन हुए’। वे इस कविता के माध्यम से अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त करती हुई कहती हैं, ‘एक बार फिर से बनानी है.. /टूटी हुई चूड़ियों की वो लड़ियाँ, /धूमती हुई वह गोल फिरकियाँ, और रंगने हैं होंठ फिर.. /रंगीन बर्फ के गोलों... /और गाल अपने.. /गुलाबी बुढ़िया के बालों से, जिनको देखते ही... /मन मचल मचल जाता था /बहुत दिन हुए.. /यूँ बचपने को... /फिर से जी के नहीं देखा... और एक बार मिलना है /उन कपड़ों की गुड़िया से../जिनको ब्याह दिया था../सामने वाली खिड़की के गुड्डे से।’
लेकिन जीवन सिर्फ बचपन नहीं है और जीवन सिर्फ प्रेम से लबरेज रूमानी एहसास भी नहीं हैं। चाहे बचपन की वे मासूस हरकतें हों अथवा कैशोर्य जीवन की रूमानी बरसातें, उन्हें याद करके जीवन के कुछ पलों को सुरमई तो बनाया जा सकता है, पर जैसे ही यथार्थ का झोंका सामने से आकर टकराता है, वे सारी खुश्नुमा यादें हवा हो जाती हैं। और तब सामने खड़ी नजर आती है मुंह चिढ़ाती हुई जीवन की कटु सच्चाईयां। जीवन की इन स्थितियों को रंजना ने ‘तब और अब’ कविता के माध्यम से बखूबी बयां किया है: ‘उम्र के उस /नाजुक मोड़ पर /जब लिखे गए थे /यूँ ही बैठे बैठे /प्रेम के ढा़ई आखर /और उस में से /झांकता दिखता था /पूरा.. सुनहरा रुपहला सा संसार... /और अब न जाने /कितने आखर.. /प्रेम भाव से.. /रंग डाले हैं पन्ने कई.. /पर कोई कोना मन का /फ़िर भी /खाली दिखता है /दिल और दिमाग की ज़ंग में /अभेद दुर्ग की दिवार का /पहरा सा रहता है.../सोचता है तब मन /बेबस हो कर.. तब और अब में /इतना बड़ा फर्क क्यों है?’
कहते हैं यह फर्क ही जीवन की सत्य है, जो व्यक्ति को एक न एक दिन समझ में आ ही जाता है। एक रचनाकार के रूप में रंजना जीवन के इस यथार्थ से मुँह नहीं मोड़तीं। अपनी कविता ‘कहाँ तलाश करें वह पल’ में उन्होंने सच्चाई के इस मर्म को बखूबी बयॉं किया है: ‘और अब... /यदि मिल भी जाओ../किसी मोड़ पर../तो बीते वक्त की बात मत करना /बहुत मुश्किल से /सुलाया है ../दिल ने अनसुलझे सवालो को ../मेरी खामोश जुबान /अब कुछ न कह पाएगी /और तुम भी.../अब मेरे.../हमख्याल न हो पाओगे /टूट जाओगे मेरे जवाबों से /और अपने सवालों को.. /मैं भी अब बहला न पाऊँगी...’ सच यह भी है कि आज का जीवन बेहद कठिन हो गया है। एक ओर हमारे सामने मुँह बाए खड़ी कठिन सामाजिक चुनौतियां हैं, तो दूसरी ओर इन चुनौतियों के कारण उपजते पारिवारिक द्वन्द्व। ये द्वन्द्व पारिवारिक सामंजस्य को ही छिन्न-भिन्न नहीं करते, व्यक्ति के वजूद में भी अहम का एक ऐसा घुन लगा देते हैं, जो परिवार रूपी इकाई को ही खाने को तत्पर हो उठता है। संसार के हर हर परिवार का यह कटु सच रंजना के शब्दों में ‘एक सच’ बनकर उभरा है: ‘सुना है /लेह जैसे मरुस्थल में भी /बादल फट कर /खूब तबाही मचा गए हैं /जहाँ कहते थे /कभी वह बरसते /भी नहीं /ठीक उसी तरह /जैसे मेरे मन में छाए /घने बादल /जब फटेंगे /तो सब तरफ /तबाही का मंजर नजर आएगा /और फिर तिनकों की तरह /तुम्हारा वजूद /जो अहम् बन कर /खड़ा है बीच में हमारे /कहीं इस रिश्ते के /ठंडे रेगिस्तान में /दफ़न हो जाएगा।’
लेकिन जीवन चाहे कितना भी कठिन क्यों न हो, व्यक्ति के भीतर की जिजीविषा कभी न कभी उससे पार पाते हुए ‘जीने की वजह’ खोज ही लेती है। शायद यही जीवन का सौन्दर्य शास्त्र है, जिसे रंजना ने बखूबी समझा है। जीवन के इस दर्शन को उन्होंने अपने शब्दों में कुछ यूँ बयां किया है: ‘दुःख... आतंक... पीड़ा... /और सब तरफ़ /फैले हैं...न जाने कितने अवसाद, कितने तनाव... /जिनसे मुक्ति पाना /सहज नही हैं। /पर, यूँ ही ऐसे में /जब कोई...नन्हीं ज़िन्दगी /खोलती है अपनी आंखें /लबों पर मीठी सी /मुस्कान लिए /तो लगता है कि /अभी भी एक है उम्मीद/जो कहीं टूटी नहीं है /एक आशा... /जो बनती है.. /जीने की वजह /वह हमसे अभी रूठी नहीं है।’
लेकिन क्या जीना सिर्फ इसी का नाम है? अगर जीना यही है, तो फिर समझौता किसे कहेंगे? जीवन तो वास्तव में एक उमंग है, जीवन तो जीने की एक अनछुई सी तरंग है। यही कारण है कि जब कभी मनुष्य तनहा होता है, तो उसके दिल की आवाज बाहर आ ही जाती है: ‘कोई तो होता.../दिल की बात समझने वाला /सुबह के आगोश से उभरा /सूरज सा दहकता /रात भर चाँद सा चमकने वाला।’ और ऐसे में आकांक्षाओं का समुद्र में हसरतों का ज्वार रोके नहीं रूकता: ‘काश ..प्यार की हर मुद्रा में /हम खुजराहो की मूरत जैसे /बस वही थम जाए /लम्हे साल ,युग बस /यूँ ही प्यार करते जाए /मूरत दिखे ,अमूर्त सी हर कोण से /और कभी जुदा न होने पाये /काश ... बरसो से खड़े इन प्रेम युगल से /हम एक प्रेम चिन्ह बन जाए।’
कविता के साथ-साथ यात्रा वृत्तांत रंजना की पसंदीदा विधा रही है। जब भी वे कहीं बाहर निकलती हैं, तो उनकी लेखनी खुद-ब-खुद चल पड़ती है। उनके ये यात्रा वृत्तांत महज बुद्धि-विलास के साधन भर नहीं होते, उनमें लेखकीय सतर्कता के सूत्र भी पाए जाते हैं: ‘रोहतक तक आते-आते अब खेत कुछ कम दिखायी देते हैं वहां भी अब ओमेक्स के फ्लैट्स का बोर्ड लहरा रहा है। ...नींव तो पड़ ही चुकी है एक और कंक्रीट के जंगल की। मन में चिंता होती है कि यूँ ही सब मकान बनते रहे तो खेत कहाँ रहेंगे? ...और खेत नही रहेंगे तो खाने को क्या मिलेगा? पर रोहतक से हिसार के दूर-दूर तक फैले पीले सरसों के फूल, गेहूं की नवजात बालियाँ यह आश्वासन देती लगती है कि चिंता मत करो अभी हम है। पर कब तक, यह कह नही सकते।’
‘एक यात्रा...’ नामक यह संस्मरण सिर्फ यात्रा का वृत्तांत भर नहीं है, पूरे संस्मरण में जीवन अपने पूरे संदर्भों के साथ विराजमान है। यही कारण है कि एक ओर जहां उनकी लेखनी में पर्यावरण की चिन्ता झलकती है, वहीं सामाजिक भागीदारी में पिछड़ रही लड़कियां भी यहां देखी जा सकती हैं: ‘...सड़क के साथ ही एक स्कूल से लड़के नीली वर्दी पहने निकल रहे हैं और जाते हुए ट्रेक्टर में लदे गन्नों को लपकने की कोशिश में हैं। ...लडकियां नही दिखती नीली वर्दी में...। कुछ आगे जाने पर दिखती हैं चेहरा ढ़के हुए ..कुछ सिर पर घडा़ रखे हैं, पानी भरने जा रही है, किसी के सिर पर चारा है और कोई भैंसों को नहला कर घर की और ले जा रही हैं। ..इस रास्ते से आते-जाते अब तक कई सालों से लड़कियों को सिर्फ़ इसी तरह से देखा है...।’
रंजना की लेखनी में जबरदस्ती की ओढ़ी हुई कृत्रिमता नहीं पाई जाती, वहां पर नदी का शान्त प्रवाह विद्यमान है। वह धीरे-धीरे बहती रहती है और अपने साथ पाठकों को भी शब्दों की दुनिया की सैर कराती रहती है। उनकी लेखनी का यही कौशल ‘कुछ मेरी कलम से’ की पहचान भी है और विशिष्टता भी।
Keywords: Ranjana Bhatia Blog, Meri Kalam Se Blog, Jansandesh Times, Blog Review, Indian Blogs, Hindi Bloges, Indian Bloggers, Hindi Bloggers
बहुत सुन्दर शब्दों में विवेचन किया है आपने
जवाब देंहटाएंरंजना जी के साथ आप बधाई के पात्र
आपके द्वारा दिया गया रंजना भाटिया जी व उनके साहित्यिक संसार का सुंदर परिचय उन्हें पढ़ने की उत्सुकता जगाता है, आभार !
जवाब देंहटाएंरंजना जी के साथ-साथ भी आप बधाई के पात्र है, सुन्दर विवेचन..आभार.......
जवाब देंहटाएंहमें भी रंजना जी को पढ़ना अच्छा लगता है।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लगा रंजना जी के ब्लॉग के बारे में जान कर.
जवाब देंहटाएंआपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
जवाब देंहटाएंप्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (10-3-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
bahut accha laga padhke ...abhar.
जवाब देंहटाएं--------------
भारतीय दूल्हा-दुल्हन
http://rimjhim2010.blogspot.com/2011/03/blog-post_09.html
रंजना जी ब्लॉग जगत की विदुषी ब्लोगर हैं...उनकी रचनाएँ मानव मन की अतल गहराईयों से मोती निकाल लाती हैं...उनके पास भाव और भाषा का अद्भुत संगम है...उनकी कविताओं की एक किताब मुझे अकेले क्षणों में बहुत सहारा देती है...
जवाब देंहटाएंनीरज
सुंदर आलेख!
जवाब देंहटाएंअच्छा आलेख रंजना जी का व्लाग तो वास्तव में ही अच्छा है , आभार
जवाब देंहटाएंसही लिखा है आपने रंजना जी के बारे में.
जवाब देंहटाएंसुंदर आलेख.
जवाब देंहटाएंसराहनीय प्रयास है आपका, इसके माध्यम से ढ़ेर सारे ब्लॉग के बारे में पढ़ने और जानने को मिल रहा है जहाँ तक मै अब तक पहुँच ही नहीं सका था.....
जवाब देंहटाएंरंजना जी के ब्लॉग की नियमित पाठक हूँ..... उन्हें बधाई
जवाब देंहटाएंआपका आभार इस बेहतरीन प्रस्तुति के लिए...
रंजना जी को बहुत समय से नियमित पढ़ रही हूँ ....आपके द्वारा किया विश्लेषण सराहनीय है ...
जवाब देंहटाएंसराहनीय प्रयास है.
जवाब देंहटाएंआपके द्वारा किया विश्लेषण सराहनीय है|
जवाब देंहटाएंyah maine aaj padha shukriya rajnish ji :)
जवाब देंहटाएं