ब्‍लॉगवाणी (4): ब्‍लॉगिंग को सार्थक करती ‘परिकल्‍पना’

SHARE:

('जनसंदेश टाइम्स', 1 मार्च, 2011 में 'ब्लॉगवाणी' कॉलम में प्रकाशित ब्लॉग समीक्षा) समाजिक रूढियों को तोड़ने में ...

('जनसंदेश टाइम्स', 1 मार्च, 2011 में 'ब्लॉगवाणी' कॉलम में प्रकाशित ब्लॉग समीक्षा)
समाजिक रूढियों को तोड़ने में तकनीक का योगदान किसी से छिपा नहीं है। जब कभी किसी नई तकनीक का विकास होता है, तो वह अंजाने में ही पहले से चली आ रही परम्‍पराओं के लिए चुनौती बन कर प्रस्‍तुत हो जाती है। इसके फलस्‍वरूप उसे आलोचना का शिकार होना पड़ता है, उसकी खिल्‍ली उड़ाई जाती है। लेकिन बावजूद इसके तकनीक किसी से हार नहीं मानती और देखते ही देखते लोगों के‍ दिलो-दिमाग पर छाती चली जाती है।

ऐसा ही कुछ रहा है ‘ब्‍लॉगिंग’ की तकनीक का सफर। इस सफर के स्‍वर्णिम भविष्‍य को जिन लोगों ने समय रहते पहचाना और उसके विकास में अपने स्‍तर से महत्‍वपूर्ण योगदान दिया, उनमें लखनऊ निवासी रवीन्‍द्र प्रभात का नाम उल्‍लेखनीय है। ‘परिकल्‍पना’ (http://www.parikalpnaa.com/) उनका चर्चित ब्‍लॉग है, जिसमें उनकी संवेदनाओं को, ब्‍लॉगिंग की हलचलों को और उसके विविध पहलुओं को नजदीक से देखा जा सकता है।

रवीन्‍द्र प्रभात मूलत: एक कवि हैं और गजल विधा से गहराई से जुड़े रहे हैं। वे अपनी पोस्‍ट (लेख) ‘गजल की विकास यात्रा पर एक नजर’ में गजल की ऐतिहासिकता की पड़ताल करते नजर आते हैं। उनका मानना है कि ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती ने सर्वप्रथम ग़ज़ल कहने का प्रयास किया था। अपने इस लेख में उन्‍होंने गजल की ऐतिहासिकता को रेखांकित करने के साथ ही साथ सरल शब्‍दों में ‘गजल’ को पारिभाषित करने का प्रयास भी किया है। उनके शब्‍दों में, ‘ग़ज़ल की असली कसौटी प्रभावोत्पादकता है। ग़ज़ल वही अच्छी होगी जिसमें असर और मौलिकता हो, जिससे पढ़ने वाले समझें कि यह उन्हीं की दिली बातों का वर्णन है। जहाँ तक संभव हो सके ग़ज़ल में सुरूचिपूर्ण जाने-पहचाने और सरल शब्दों का ही प्रयोग हो, ताकि उसमें प्रवाह बना रहे। ग़ज़ल के प्रत्येक चरणों में पृथक-पृथक विषय को लेकर भी विचार प्रकट किये जा सकते हैं और श्रृंखलाबद्ध भी। लेकिन प्रत्येक दो चरणों में विषयांतर होने से नई विचारधारा प्रभाव पूर्ण ढंग से प्रस्तुत हो जाती है।’

प्रभावोत्‍पादकता और और मौलिकता की दृष्टि से ही नहीं संवेदना के धरातल पर भी रवीन्‍द्र की रचनाएं खरी उतरती हैं। वे आम आदमी के पक्षधर हैं और समाज की विद्रूपताओं पर अपनी कड़ी नजर रखते हैं। उनकी चिंताओं में आदमी भी है और आदमीअत भी। अपनी एक पोस्‍ट ‘आदमी भी खत्‍म हो गया औद आदमीअत भी’ में उन्‍होंने सामाजिक अवमूल्‍यन को अपना विषय बनाया है। अपनी इस कविता में उन्‍होंने समय के माध्‍यम से समाज के सच को पूरी प्रखरता के साथ चित्रित किया है। अपनी कविता में वे बीते हुए दिनों को याद करते हुए कहते हैं: ‘बहुत पहले-लिखे जाते थे मौसमों के गीत/जब रची जाती थी प्रणय की कथा/ और कविगण करते थे / देश-काल की घटनाओं पर चर्चा / तब कविताओं में ढका होता था युवतियों का ज़िस्म....! /सुंदर दिखती थी लड़कियाँ /करते थे लोग /सच्चे मन से प्रेम /और जानते थे प्रेम की परिभाषा....! /बहुत पहले-सामाजिक सड़ांध फैलाने वाले ख़टमलों की /नहीं उतारी जाती थी आरती /अपने कुकर्मों पर बहाने के लिए /शेष थे कुछ आँसू /तब ज़िंदा थी नैतिकता /और हाशिए पर कुछ गिने-चुने रक़्तपात....!’ लेकिन उसके बाद जब वर्तमान हालात पर उनकी नजर पड़ती है, तो वे शोकग्रस्‍त हो जाते हैं। वे आज के हालात पर टिप्‍पणी करते हुए कहते हैं- ‘अब तो टूटने लगा हैं मिथक /चटखने लगी है आस्थाएं /और दरकने लगी है /हमारी बची-खुची तहजीब......! /दरअसल आदमी /नहीं रह गया है आदमी अब /उसी प्रकार जैसे- /ख़त्म हो गयी समाज से सादगी /आदमी भी ख़त्म हो गया /और आदमीअत भी.....!’

इसे सामाजिक परिवर्तन कहें चाहे नैतिक अवमूल्‍यन, चाहे अनचाहे यह हर रचनाकार की लेखन का विषय बन ही जाता है। यही कारण है कि रवीन्‍द्र के ब्‍लॉग में ‘बाबू, औरत होना पाप है पाप’ और ‘डोन्‍ट वरी, फूड और प्‍वाईजन दोनों हो जाएंगे सस्‍ते’ जैसी रचनाएं बहुतायात में मिल जाती हैं। ‘बाबू औरत होना पाप है पाप’ में उन्‍होंने धनपतिया के बहाने औरत पर होने वाली क्रूरताओं को प्रतीक रूप में वार्णित किया है, जबकि ‘डोन्‍ट वरी, फूड और प्‍वाईजन दोनों हो जाएंगे सस्‍ते’ में यथार्थ को व्‍यक्‍त करने के लिए व्‍यंग्‍य का सहारा लिया गया है। पर इस व्‍यंग्‍य में काव्‍य की तुकबंदी अन्‍तर्निहित है, जिसकी वजह से व्‍यंग्‍य की धार ज्‍यादा मारक बन गयी है- ‘तोताराम ने कहा, अब हमारे पास क्या रहा? रोटी और पानी, उसमें भी घुसी पडी़ है बेईमानी... लगातार मंहगी होती जा रही है कलमुंही, नेताओं को न उबकाई आ रही है न हंसी ...सोच रहे हैं चलो किसी भी तरह मंहगाई के चक्रव्यूह में भारतीय जनता तो फंसी! अरे, बेईमान सत्यानाश हो तेरा, ख़ुद खाते हो अमेरिका का पेडा़ और हमारे लिए रोटी भी नही बख्सते और जब कुछ कहो तो मुस्कुराकर कर कहते हो डोंट वरी, हो जायेंगे सस्ते...! अरे क्या हो जायेंगे सस्ते, फ़ूड या प्‍वाईजन? उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा- दोनों।’

रवीन्‍द्र प्रभात अवध की गंगा-जमुनी तहजीब को आगे बढ़ाने वाले रचनाकार हैं। वे प्रेम और बंधुत्‍व की दरकती हुई दीवार को देखकर बेहद चिंतित होते हैं और ‘रमजानी चाचा’ जैसे प्रतीक पुरूषों के बहाने ‘सर्व धर्म समभाव’ की आवश्‍यकता को रेखांकित करते हैं। ‘काश हर हिंदू-मुसलमान रमजानी चाचा जैसा होता’ में वे अपने पड़ोसी रमजानी चाचा के विराट व्‍यक्तित्‍व को रेखांकित करते हुए कहते हैं कि जब कभी भी ईद आती है रमजानी चाचा हमें बरबस याद आ जाते हैं। वे बताते हैं कि रमजानी चाचा भले ही पेशे से दर्जी थे, मगर वास्‍तव में वे एक बड़े इंसान थे। उनमें इंसानियत कूट-कूट कर भरी हुई थी। धार्मिक विद्वेष उन्‍हें छू भी नहीं गया था। रवीन्‍द्र कहते हैं कि कभी वे हमारे साथ बैठकर पूरा का पूरा हनुमान चालीसा बांच जाते, तो कभी कुरान शरीफ की आयतों के द्वारा इस्लाम की हकीकत से रूबरू कराते। यही कारण है कि जब ऐसे रमजानी चाचा की याद उन्‍हें आती है, तो होठों से शब्‍द खुद-ब-खुद फूट जाते हैं- ‘जहाँ शांति के उपदेशक /सत्य-अहिंसा में आस्था रखना छोड़ दिए हों /जहाँ की ज़म्हूरियत /खानदानी वसीयत का पर्चा बन गयी हो /जहाँ का सिपहसालार /कर गया हो सरकारी खज़ाना /सगे-संबंधियों के नाम /जहाँ संसद के केन्द्रीय कक्ष में /व्हिस्की के पैग के साथ /हो रही हो /रामराज्य पर व्यापक चर्चा /जहाँ चंद सिक्कों पर /बसर करती हो हकीकत /और दाद के काबिल /नहीं समझी जाती हो कविता /वहां, देश-काल पर चर्चा करना /फ़िज़ूल है रमजानी चाचा।’

रवीन्‍द्र प्रभात ब्‍लॉग जगत में सिर्फ एक कुशल रचनाकार के ही रूप में नहीं जाने जाते हैं, उन्‍होंने ब्‍लॉगिंग के क्षेत्र में कुछ विशिष्‍ट कार्य भी किये हैं। वर्ष 2007 में उन्‍होंने ब्‍लॉगिंग में एक नया प्रयोग प्रारम्‍भ किया और ‘ब्‍लॉग विश्‍लेषण’ के द्वारा ब्‍लॉग जगत में बिखरे अनमोल मोतियों से पाठकों को परिचित करने का बीड़ा उठाया। 2007 में पद्यात्‍मक रूप में प्रारम्‍भ हुई यह कड़ी 2008 में गद्यात्‍मक हो चली और 11 खण्‍डों के रूप में सामने आई। वर्ष 2009 में उन्‍होंने इस विश्‍लेषण को और ज्‍यादा व्‍यापक रूप प्रदान किया और विभिन्‍न प्रकार के वर्गीकरणों के द्वारा 25 खण्‍डों में एक वर्ष के दौरान लिखे जाने वाले प्रमुख ब्‍लागों का लेखा-जोखा प्रस्‍तुत किया। इसी प्रकार वर्ष 2010 में भी यह अनुष्‍ठान उन्‍होंने पूरी निष्‍ठा के साथ सम्‍पन्‍न किया और 21 कडियों में ब्‍लॉग जगत की वार्षिक रिपोर्ट को प्रस्‍तुत करके एक तरह से ब्‍लॉग इतिहास लेखन का सूत्रपात किया।

ब्‍लॉग जगत की सकारात्‍मक प्रवृत्तियों को रेखांकित करने के उद्देश्‍य से अभी तक जितने भी प्रयास किये गये हैं, उनमें ‘ब्‍लॉगोत्‍सव’ एक अहम प्रयोग है। अपनी मौलिक सोच के द्वारा रवीन्‍द्र ने इस आयोजन के माध्‍यम से पहली बार ब्‍लॉग जगत के लगभग सभी प्रमुख रचनाकारों को एक मंच पर प्रस्‍तुत किया और गैर ब्‍लॉगर रचनाकारों को भी इससे जोड़कर समाज में एक सकारात्‍मक संदेश का प्रसार किया।

अपनी इन्‍हीं तमाम रचनात्‍मक प्रवृत्तियों के कारण ‘परिकल्‍पना’ ब्‍लॉग जगत में एक विशिष्‍ट स्‍थान रखता है। यदि आप ब्‍लॉग साहित्‍य से परिचित होना चाहते हों, यदि आप ब्‍लॉग जगत के महत्‍व को नजदीक से समझना चाहते हों और यदि आप हिन्‍दी ब्‍लॉगिंग की दशा एवं दिशा को निरखना चाहते हों, तो ‘परिकल्‍पना’ एक अपरिहार्य माध्‍यम के रूप में सामने मौजूद है। यकीन जानें इसका कोई विकल्‍प नहीं है।
Keywords: Ravindra Prabhat Blogs, Parikalpana Blog, Jansandesh Times, Blog Review, Indian Blogs, Hindi Bloges, Indian Bloggers, Hindi Bloggers

COMMENTS

BLOGGER: 13
  1. ब्लॉग समीक्षा के लिए रविन्द्र जी साधुवाद के पात्र तो है ही साथ ही साथ आप को मै बधाई देता हूँ कि आप ब्लागवाणी के माध्यम से ब्लाग गतिविधियों को आम जन मानस जो अंतरजाल से नही जुड़ा है, परिचय करा कर एक ब्लॉगर का मनोबल बढाने का कार्य कर रहे है

    जवाब देंहटाएं
  2. ब्‍लॉग जगत की सकारात्‍मक प्रवृत्तियों को रेखांकित करने के उद्देश्‍य से अभी तक जितने भी प्रयास किये गये हैं, उनमें ‘ब्‍लॉगोत्‍सव’ एक अहम प्रयोग है।

    यह सच है और सबसे बड़ा काम जो आप कर रहे हैं ब्लॉग वाणी के माध्यम से वह एक मिशाल है, आपको साधुवाद !

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत बेहतरीन लेख लिखा है आपने परिकल्पना के बारे में... रविन्द्र जी की मेहनत को सलाम!!!

    जवाब देंहटाएं
  4. रविन्द्र जी की मेहनत को सलाम

    जवाब देंहटाएं
  5. I agree with you . Ravind ji's work is admirable .

    जवाब देंहटाएं
  6. रविन्द्र जी आभार जिन्होंने नए व्लागर को मौका दिया यह उनकी मेहनत से ही संभव हो सका

    जवाब देंहटाएं
  7. रविन्द्र जी की मेहनत प्रसंशनीय है.

    जवाब देंहटाएं
  8. आपके विचारों से सहमत.निश्चित रूप से परिकल्पना का कोई विकल्प फिलवक्त संभव नहीं है.

    जवाब देंहटाएं
  9. सुन्दर प्रस्तुति. परिकल्पना में खुद की कल्पना को ढूंढ़ कर के देखता हूँ......

    जवाब देंहटाएं
  10. ब्लॉगिंग को सकारात्मक दिशा प्रदान करने में रविन्द्र जी ने अहम् भूमिका निभायी है !

    जवाब देंहटाएं
  11. रविन्द्र जी की मेहनत प्रसंशनीय है......आपने बहुत उम्दा ढंग से इस ब्लॉग की बात है.... आभार

    जवाब देंहटाएं
  12. Sunder prastuti k saath Sarthak Prayas ............

    जवाब देंहटाएं
  13. रोचक तथा अमूल्य जानकारी से भरी पोस्ट!

    जवाब देंहटाएं
आपके अल्‍फ़ाज़ देंगे हर क़दम पर हौसला।
ज़र्रानवाज़ी के लिए शुक्रिया! जी शुक्रिया।।

नाम

achievements,3,album,1,award,21,bal-kahani,9,bal-kavita,5,bal-sahitya,33,bal-sahityakar,13,bal-vigyankatha,4,blog-awards,29,blog-review,45,blogging,42,blogs,49,books,9,buddha stories,4,children-books,14,Communication Skills,1,creation,9,Education,4,family,8,hasya vyang,3,hasya-vyang,8,Health,1,Hindi Magazines,7,interview,2,investment,3,kahani,2,kavita,9,kids,6,literature,15,Motivation,71,motivational biography,27,motivational love stories,7,motivational quotes,15,motivational real stories,5,motivational speech,1,motivational stories,25,ncert-cbse,9,personal,18,Personality Development,1,popular-blogs,4,religion,1,research,1,review,15,sahitya,28,samwaad-samman,23,science-fiction,4,script-writing,7,secret of happiness,1,seminar,23,Shayari,1,SKS,6,social,35,tips,12,useful,16,wife,1,writer,9,Zakir Ali Rajnish,27,
ltr
item
हिंदी वर्ल्ड - Hindi World: ब्‍लॉगवाणी (4): ब्‍लॉगिंग को सार्थक करती ‘परिकल्‍पना’
ब्‍लॉगवाणी (4): ब्‍लॉगिंग को सार्थक करती ‘परिकल्‍पना’
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEghWYe_bni55BRLyCQetg3nir9j97BZU8uUtXWpEAYJv2117KTdPpCiuyl5eBwLTDBBn40-fPSVzzVe6FpbgvRZcAm-W2Nw0BirIW6hbdrsLx1dKfjTO3GaDfT1tO3MpmMt_VhYj_qQHDhi/s200/parikalpana+article.jpg...jpg
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEghWYe_bni55BRLyCQetg3nir9j97BZU8uUtXWpEAYJv2117KTdPpCiuyl5eBwLTDBBn40-fPSVzzVe6FpbgvRZcAm-W2Nw0BirIW6hbdrsLx1dKfjTO3GaDfT1tO3MpmMt_VhYj_qQHDhi/s72-c/parikalpana+article.jpg...jpg
हिंदी वर्ल्ड - Hindi World
https://me.scientificworld.in/2011/03/4.html
https://me.scientificworld.in/
https://me.scientificworld.in/
https://me.scientificworld.in/2011/03/4.html
true
290840405926959662
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy