('जनसंदेश टाइम्स' में दिनांक 16 फरवरी को 'ब्लॉगवाणी' कॉलम में प्रकाशित ब्लॉग समीक्षा) वक्त का पहिया हमेशा चलता र...
('जनसंदेश टाइम्स' में दिनांक 16 फरवरी को 'ब्लॉगवाणी' कॉलम में प्रकाशित ब्लॉग समीक्षा)
वक्त का पहिया हमेशा चलता रहता है। जो इस बदलते वक्त के साथ अपने आप को भी बदलता रहता है, वही बचा रह पाता है और जो वक्त से कदम नहीं मिला पाता, वह वक्त की गर्द में फना हो जाता है फिर चाहे वह परम्पराएं हों, व्यक्ति हो अथवा भाषा। उदाहरण के लिए ‘बरखास्त’ शब्द को ही ले लें। आज के समय में बरखास्त के मायने हैं नौकरी से निकालना, जबकि फारसी भाषा के इस शब्द का मूल अर्थ है सोकर उठना। शब्दों के इस रोचक यात्रा को रेखांकित कर रहा है अजित वडनेरकर का ब्लॉग ‘शब्दों का सफर’ (http://shabdavali.blogspot.com/
अजित वडनेरकर भले ही पेशे से पत्रकारिता में हों, पर उनके पास एक भाषा विज्ञानी सा कौशल है। वे हमें सिर्फ एक शब्द के बारे में ही नहीं बताते, उसके जन्म, उसके अड़ोसी-पड़ोसी और रिश्तेदारों को भी हमारे सामने हाजिर कर देते हैं और यह काम वह इतनी कुशलता से करते हैं कि पाठक मुग्ध सा हो जाता है।
मुग्धता की बात चले तो युवाओं का ख्याल जेहन में सबसे पहला आता है। अजित बताते हैं कि युवा होने का अर्थ ही है बेफ़िक्र, लापरवाह और निडर। मजे की बात ये है कि कुछ विशेषण सिर्फ युवाओं के लिए होते हैं, मगर बिन्दास युवतियों के लिए भी उतना ही मौजूं है। अजित कोई भाषाविद नहीं हैं, जो नीरसतापूर्वक आपको शब्दों की बेरंग दुनिया में घुमा रहा हो। उनके भीतर पत्रकारिता के जीन्स भी रचे-बसे हैं। इसीलिए बिन्दास शब्द की व्याख्या बताने के साथ वे मार्के की बात की बात भी कहना नहीं भूलते- ‘आज का युवा वर्ग अल्ट्रा मॉड अभिनेत्रियों पर जान छिड़कता है, मगर संभव है उनमें बिन्दास शायद एकाध ही निकले।’
किसी जमाने में बिन्दास को एक टपोरी शब्द माना जाता था, मगर अब इसका प्रयोग समाज के हर तबके में होने लगा है। बिन्दास मराठी के बिन उपसर्ग में धास्त लगाने से बना है। अजित इस युग्म की व्याख्या करते हुए कहते हैं ‘संस्कृत के ना में भी नहीं, नकार का भाव है और इससे आगे लगे वि उपसर्ग में भी विलोम या रहित का भाव है। मराठी के धास्त का अर्थ है प्रलय, अनिष्ट की कल्पना करना, भय, विनाश। इस अर्थ में धास्त में निर् उपसर्ग लगाकर बना निर्धास्त। निर् में भी नकार का भाव है इस तरह निर्धास्त का अर्थ हुआ निश्चिन्त, बेफ़िक्र, निडर, निर्भय, बेपरवाह। बिनधास्त, निरधास्त ये शब्द निर्भय, बेफिक्र, मस्त रहने के लिए होते हैं। निर्धास्त जहां निश्चिन्तता के अर्थ में रूढ़ है वहीं बिनधास्त ने अपनी अर्थवत्ता का और विस्तार किया साथ ही कुछ रूपान्तर भी। इसकी भावाभिव्यक्ति बिन्दास में मस्तमौला, अलमस्त, बेपरवाह के रूप में हुई।’
युवाओं की बात चले और ‘गंज’ की चर्चा न हो, ऐसा कैसे हो सकता है? लखनऊ में ‘गंज’ शब्द शहर के मुख्य बाजार हजरतगंज के लिए प्रयुक्त किया जाता है। यह संक्षिप्तीकरण युवाओं की देन है, जैसे उन्होंने डैडी को डैड, मम्मी को ममा बना दिया है ठीक उसी तरह।
अजित बताते हैं कि गंज इंडो-ईरानी मूल का शब्द है और संस्कृत-अवेस्ता में इसकी जड़ें समायी हैं। मूलतः समूहवाची अर्थवत्ता वाले इस शब्द का संस्कृत रूप है गञ्ज, जिसका मतलब होता है खान, खदान, घर, निवास, झोपड़ी, कुटिया। समूह के अर्थ में भी इसमें बाजार या मण्डी का भी भाव है। वैसे गंज शब्द की आमद हिन्दी में फारसी से बताई गयी है। खासतौर पर बस्तियों के संदर्भ में गंज शब्द का फैलाव मुस्लिम शासनकाल में ज्यादा हुआ होगा क्योंकि ज्यादातर गंज नामधारी बस्तियों के आगे अरबी-फारसी की संज्ञाएं नज़र आती हैं। लखनऊ का ‘हजरतगंज’ इसका पुख्ता प्रमाण है।
लखनऊ का मुख्य बाजार अर्थात गंज अपने स्थापना की 200वीं वर्षगांठ मना रहा है। दिलचस्प ये है कि ये गंज सिर्फ लखनऊ तक ही सीमित नहीं है। बकौल अजित बांग्लादेश, पाकिस्तान, अफ़गानिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, ईरान, अज़रबैजान जैसे सुदूर इलाकों में भी ऐसी अनेक बसाहटें मिलेंगी जिनके साथ गंज शब्द जुड़ा हुआ है।
अब बस्तियों का जिक्र चला है, तो ‘मोहल्ला’ की चर्चा भी जरूरी हो जाती है। क्योंकि व्यक्ति अपने आंगन के बाद सबसे पहले अपने मोहल्ले को जानता है, फिर शहर, प्रदेश और देश को। मोहल्ला की व्युत्पत्ति महालय से मानी जाती है। संस्कृत में ‘महा’ विशाल या बड़ा के अर्थ में और ‘आलय’ निवास के अर्थ में प्रयुक्त होता है। इन दोनों शब्दों के योग से बना है महालय, अर्थात विशाल भवन। ध्वनि साम्य और अर्थ साम्य के आधार पर महल या मोहल्ले की व्युत्पत्ति महालय से हो सकती है।
मोहल्ला के महत्व को अजित कुछ इस तरह बताते हैं- ‘मोहल्ला शब्द में घिरे हुए स्थान का भाव है। यह मूल रूप से सेमिटिक मूल का है और अरबी ज़बान के जरिये दुनियाभर की भाषाओं में इसका प्रसार हुआ। मूलतः इसकी धातु है mahl यानी मह्ल। अरबी में इसका मूल रूप मा-हल्ला ma-halla है। अरबी hall एक समूहवाची धातु है। किसी समूह द्वारा कहीं आक्रमण या चढ़ाई करने को हल्ला कहा जाता है। हल्ला में मा जुड़ने से बनता है मा-हल्ला। अरबी में इसका उच्चारण महल्ला है जबकि हिन्दी-उर्दू में यह मोहल्ला या मुहल्ला है।’
गौरतलब है कि महल्ला शब्द का इस्तेमाल उज्बेकिस्तान, तुर्की, तुर्कमेनिस्तान, अजरबैजान जैसे मुल्कों में एक सामाजिक व्यवस्था के रूप में ज्यादा होता है। जैसे अपने देशों में जाटों की खाप पंचायत होती है वैसे ही इन देशों की सामाजिक व्यवस्था में महल्ला का बड़ा महत्व है। अजित के अनुसार ये महल्ले किसी खास इलाके में रहनेवाले लोगों में धार्मिक–सांस्कृतिक ऐक्य के लिए बनाई गई बिरादरियां होती हैं।
भारत में धार्मिक–सांस्कृतिक ऐक्य के लिए सौहार्द्र शब्द का बहुतायात में प्रयोग किया जाता है। पर आपको जान कर आश्चर्य होगा कि सौहार्द्र या सौहार्द्रता शब्द ग़लत है। इस तरह का कोई शब्द किसी शब्दकोश में नहीं मिलता। इसका सही उच्चारण और वर्तनी है सौहार्द।
सौहार्द शब्द की गहराई में उतरते हुए अजित बताते हैं कि इसमें जो हार्दिकता का भाव है वह हृदय से आ रहा है। हृदय की व्युत्पत्ति संस्कृत की हृ धातु से हुई है जिसमें मुग्ध करना, आकृष्ट करना, लेना, अधीन करना, वशीभूत करना जैसे भाव हैं। इससे ही बना है हृद जिसका अर्थ है मन या दिल। हृ में समाविष्ट तमाम भाव मन से जुड़े हैं। हृदयम् शब्द भी इससे ही बना है। हृद में सु उपसर्ग लगने से बनता है सुहृद अर्थात अच्छे हृदय से या अच्छे हृदयवाला। सुहृद में अण् प्रत्यय लगने से बना है सौहार्दः या सौहार्दम् जिसका अर्थ है हृदय की सरलता, स्नेह, सद्भाव या मैत्रीभाव।
अजित वडनेरकर का मानना है कि शब्द की व्युत्पत्ति को लेकर भाषा विज्ञानियों का नज़रिया अलग-अलग होता है। इसी के साथ वे बेहद निम्रता के साथ कहते हैं ‘मैं भाषाविज्ञानी नहीं हूं, लेकिन शब्दों को जानने का जज्बा लेकर उत्पति की तलाश में निकलें तो शब्दों का एक दिलचस्प सफर नजर आता है।’ उन्होंने ‘शब्दों के सफर’ में इन्हीं आख्यानों को स्थान दिया है। उनके इस सफर में जहां ऐतिहासिक और धार्मिक संदर्भ देखने को मिलते हैं, वहीं सामाजिक और मानवीय चिंतन की धारा भी सतत प्रवाहित होती रहती है। यही कारण है कि उनका यह सफर सभी वर्ग के पाठकों के द्वारा सराहा जाता रहा है। आप इस सफर में एक बार उतरिए तो सही, मेरा दावा है कि आप स्वयं को इसमें खोने से बचा नहीं पाएंगे।
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