वर्धा ब्लॉगर सम्मेलन : कुछ खट्टा कुछ मीठा।

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स्टेशन पहुँचते ही कैमरा चालू। महात्मा गाँधी अन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय, वर्धा में आयोजित ब्लॉगिंग सेमिनार पर अब तक बहुत कुछ लिखा...

स्टेशन पहुँचते ही कैमरा चालू।
महात्मा गाँधी अन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय, वर्धा में आयोजित ब्लॉगिंग सेमिनार पर अब तक बहुत कुछ लिखा जा चुका है। पर फिरभी मुझे ऐसा लग रहा था कि बहुत कुछ है जो अभी लिखा जाना बाकी है। इस दो दिवसीय संगोष्ठी के दौरान मैंने जो कुछ देखा, समझा और महसूस किया, उसमें से कुछ बातें आपके साथ शेयर करना चाह रहा हूँ।

कमरे से लिया गया चित्र। पहचानो कौन-2 ?
वर्धा पहुँचने पर सबसे पहली मुलाकात अनूप शुक्ल जी से हुई, स्टेशन पर ही, बावजूद इसके कि वे हमारी ही ट्रेन में हमारे बगल वाले डिब्बे में थे। शायद 'चिट्ठा चर्चा' में 'संवाद समूह' के प्रति बरती जाने वाली विशेष सजगता और अनूप जी की खोज-खोज कर एक से एक ब्लॉग लाने की वृत्ति दोनों ही इसके जिम्मेदार रहे। खैर, जो भी होता है, अच्छा ही होता है।

इस सम्मेलन में मुझे कुछ लोगों को नज़दीक से जानने का मौका मिला, इनमें रवीन्द्र प्रभात, अनुप शुक्ल, जय कुमार झा, अविनाश वाचस्पति, यशवंत, कविता वाचक्नवी, रचना त्रिपाठी और गायत्री शर्मा के नाम शामिल हैं!

रवीन्द्र प्रभात बाएँ से दूसरे।
तो शुरूआत करते हैं रवीन्द्र प्रभात जी से। यूँ तो उनसे लखनऊ में अक्सर ही मुलाकात होती रहती है, और जिस जोश-खरोश के साथ वे सभी लोगों का स्वागत करते हैं, वह बहुत कम देखने को मिलता है। लेकिन यात्रा के दौरान उनका एक नया रूप जानने को मिला, वह था समय और स्थिति के अनुसार स्वयं को ढ़ाल लेने की उनकी कला। हुआ यूँ कि जिस दिन हम लोगों ने वर्धा के लिए यात्रा शुरू की, उसी दिन से नवरात्रि के व्रत शुरू हो रहे थे। अब ट्रेन में व्रत का खाना तो मिलने से रहा। इस पर वे बोले कि स्टेशन पर देखते हैं, कुछ मिल जाएगा तो ठीक है, वर्ना डट कर खाना खाया जाएगा। और सचमुच हमने साथ में डट कर खाना खाया। चूँकि मैं भी स्वभावत: धर्म में विशेष रूचि नहीं रखता हूँ, इसलिए उनका यह व्यवहार मुझे अच्छा लगा।
 शुक्ल जी, कवि गोष्ठी में पत्रिका पढते हुए
अनूप जी से यूँ तो स्टेशन पर ही मुलाकात हो गयी थी, पर न जाने क्यों पूरे सम्मेलन के दौरान वे और उनकी बातों ने मेरा पीछा नहीं छोड़ा। जब भी उनसे बात हुई, जानबूझकर वे डॉ0 अरविंद मिश्र का जिक्र ले ही आए। और जब भी मिश्र जी का नाम आए, वे कोई भी चुटकी लिए बिना न रह सके। अपनी बातों के दौरान उन्होंने कई बार दोहराया कि उनसे चुटकी लेने में उन्हें विशेष आनन्द आता है। अरविंद जी, सुन रहे हैं आप?

अनूप शुक्ल जी, ब्लॉग जगत के नारीवादी समर्थक ब्लॉगर माने जाते हैं। मेरे दिमाग में यह बात हमेशा गूँजती रहती है। इसलिए मैंने सोचा था कि इस बात का गहराई से अध्ययन किया जाए। और नतीजे सचमुच चौंकाने वाले थे। प्रोग्राम के दो दिनों में मेरी जब भी उनपर नजर पड़ी, वे 75 प्रतिशत से अधिक बार किसी न किसी नारी ब्लॉगर का उत्साह वर्द्धन करते मिले। कार्यक्रम में पहली बार पधारी नवोदित ब्लॉग गायत्री शर्मा, जोकि ब्लॉग पर शोध कार्य भी कर रही है, का उन्होंने विशेष ध्यान रखा।

और अन्त में उनके सम्बंध में एक विशेष बात, शायद जिससे उन्हें समझने में आपको भी मदद मिले। हुआ यूँ कि वे 10 तारीख को कार्यक्रम समाप्त होने के बाद स्टेशन के लिए निकल रहे थे। तभी सिद्धार्थ जी का लड़का जिद करने लगा कि पापा घर चलिए। इसपर वे बाले कि आप लोग ज़रा रूकिए, मैं दो मिनट में बेटे को घर छोड़कर आता हूँ। इसपर अनूप जी बोले- चलो, तब तक लोगों की और थोड़ी बहुत झूठी तारीफ की जाए। उनका यह वचन सुनकर कविता वाचक्नवी जी ने फौरन उन्हें टोका- यानी कि आप हमेशा दूसरों की झूठी तारीफ करते हैं? इसपर सभी लोग हंस पड़े और बात आई-गई हो गयी। लेकिन क्या सचमुच यह हंसी में टाल देने वाली बात है?

समूह चर्चा में झा जी, बाएँ से तीसरे
आनेस्टी प्रोजेक्ट वाले जय कुमार झा जी से मेरी पहली मुलाकात थी, इससे पहले मैंने न तो उनके किसी ब्लॉग को ध्यान से पढ़ा  था और न ही उनके कमेंट को। लेकिन उनसे मिलने के बाद मेरे दिमाग में एक सोशल एक्टिविस्ट का चेहरा घूम गया, जो अपने कार्य को अंजाम देने के लिए तन-मन-धन से लगा रहता है। उनसे मिलने के बाद लगा कि अगर ऐसे समर्पण के साथ आप कोई भी काम करें, तो कामयाबी मिलने से आपको कोई रोक ही नहीं सकता।

गले में चश्मा लटकता देख कर पहचाना?
अविनाश वाचस्पति एक ऐसा नाम है, जिससे शायद ही कोई सक्रिय ब्लॉगर अपरिचित हो। यूँ तो वे एक सक्रिय व्यंग्यकार और ब्लॉगर हैं, लेकिन इसके साथ ही साथ वे एक अच्छे इंसान भी हैं और इसका सबूत वे जनसत्ता आदि में प्रकाशित विभिन्न ब्लॉगर्स की पोस्ट की कटिंग भेजकर देते रहते हैं। अविनाश जी के मन में ब्लॉगिंग और उससे जुडे लोगों के प्रति जो स्नेहभाव मैंने देखा, वह बहुत कम लोगों में मिलता है।

यशवंत जी मुख्य रूप से अपने ब्लॉग 'भड़ास फॉर मीडिया'  के लिए जाने जाते हैं। भड़ास ब्लॉग की आमछवि के कारण मेरे मन में उनके प्रति एक अलग ही छवि बनती थी। लेकिन पहली बार उन्हें जब नजदीक से देखने को मिला, तो मेरे मन में जमी वह धारणा छिन्न-भिन्न हो गई। यशवंत जी का हिन्दी के वरिष्ठ कवित आलोक धन्वा के साथ विशेष लगाव, बात-बात में गाने के मचलता उनका कवि ह़दय और सबसे प्रमुख आलोचना के सम्बंध में उनके विचार (जब भी कोई मेरी आलोचना करता है, मैं तुरंत उसका जवाब नहीं देता हूँ। उस वक्त मैं यह निर्णय लेता हूँ कि इसका जवाब मैं 24 घण्टे के बाद दूँगा। और तब तक गुस्से के बादल छंट चुके होते हैं।) के कारण वे मुझे एक आदर्श और कामयाब ब्लॉगर के आईकॉन के रूप में नजर आए।

कविता जी को तो पहचान ही लेंगे?
कविता वाचक्नवी जी से मैं जब भी मिला, तो चिटठा चर्चा पर उनके द्वारा होने वाली चर्चा ही बहाना रही। लेकिन इस कार्यक्रम के द्वारा मैंने जब उनकी समर्पण भावना को देखा तो दंग रह गया। वे निमंत्रित ब्लॉगर होने के बावजूद वे जिस समर्पण और अपनत्व के भाव से कार्यक्रम को व्यवस्थित ढंग से सम्पन्न कराने हेतु तत्पर दिखीं, उसे देखकर आश्चर्यमिश्रित प्रसन्नता हुई। हिन्दी के प्रति उनके मन में जो लगन है, जो जुनून है, उसे देखकर उनके आगे सिर झुकाने को मन करता है। काश, ऐसी लगन अगर कुछ और लोगों में भी होती, तो आज हमारी हिन्दी सारे विश्व के माथे की बिन्दी होती।

श्रीमती त्रिपाठी नहीं, तो श्री से ही काम चलाएँ
यूँ तो रचना त्रिपाठी जी को लोग हिन्दी ब्लॉगर्स सम्मेलन के संयोजक के रूप में प्रसिद्ध सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी जी की पत्नी के रूप में जानते हैं, पर इस कार्यक्रम के दौरान मुझे यह पहली बार ज्ञात हुआ कि वे एक प्रतिभा सम्पन्न कवियत्री भी हैं। कार्यक्रम के पहले दिन को सायंकालीन सत्र में उन्होंने जो कविता सुनाई, वह सचमुच शानदार थी। और उस कविता की वजह थी, सिद्धार्थ जी का ब्लॉगिंग में अत्यधिक डूब जाना। हालाँकि मैं सिद्धार्थ जी से यह नहीं कहूँगा कि वे ब्लॉगिंग में डूब कर भाभी जी को भूल जाएँ, पर रचना जी से यह आग्रह तो कर ही सकता हूँ कि वे अपनी लेखनी को विराम न दें।

और हाँ, पूरे कार्यक्रम के दौरान उन्होंने त्रिपाठी जी के साथ जिस तरह कंधे से कंधा मिलाकर मिलाकर लगी रहीं, उसे देखकर सच्चे मन से उनकी प्रशंसा करने का दिल चाहता है।

क्या इनका भी नाम बताना पड़ेगा?
गायत्री शर्मा इन्दौर की रहने वाली एक युवा पत्रकार हैं, जो तमाम सारी डिग्रियाँ हासिल करने के बाद अब ब्लॉगिंग में पी-एच0डी0 भी कर रही हैं। वे हमारे ब्लॉगिंग एथिक्स पर होने वाली ग्रुप चर्चा में हमारे साथ थीं, इसलिए उनके विचारों को नजदीक से जानने को मिला। वे एक प्रखर पत्रकार होने के साथ ही साथ एक बोल्ड आधुनिक नारी भी हैं। उनका जुनून और काम करने की लगन देखकर यह अच्छा लगा कि उनके द्वारा किया जा रहा शोधकार्य भी स्तरीय होगा और समाज में ब्लॉगिंग को उसका यथोचित स्थान दिलाने में सहायक होगा।

आज बस इतना ही, अगली पोस्ट में कुछ और रोचक अनुभवों को आपके साथ शेयर करने की कोशिश रहेगी।
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COMMENTS

BLOGGER: 56
  1. जाकिर भाई, आपने तो आभासी दुनिया के ब्लोगरों का असली चेहरा सामने रखा, अच्छा लगा.....वैसे पूरे कार्यक्रम के दौरान आप मेरे साथ थे , एक ही ट्रेन और ठहराने का कमरा भी एक ही था . हमलोगों ने बहुत सी बातों को एक-दूसरे से शेयर भी किया ! आपने अनूप जी, जय कुमार झा, कविता जी, रचना त्रिपाठी जी,गायत्री शर्मा आदि के बारे में जो अनुभव बांटे हैं उससे सहमत हुआ जा सकता है ! अरविन्द जी व्यस्तता के कारण शायद नहीं पहुँच सके थे उस संगोष्ठी में पर ऐसा महसूस हुआ क़ि वे कुछ ख़ास चर्चाओं में लगातार शामिल थे ! आपकी यह रिपोर्ट सचमुच प्रसंशनीय है !

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  2. चित्रों में वातावरण का खुलापन देख कर लगा कि मुझे भी वहां होना ही चाहिये था..

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  3. सारी चर्चा में एक बात अच्छी लगी की ब्लॉगिंग पर पी एच डी हो रही है । वह दिन भी जल्दी आये कि एक एक ब्लॉग पर पी एच डी हो ।

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  4. बेहद आभार इस आयोजन की विस्तृत जानकारी चित्रों सहित पढने को मिली...
    regards

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  5. धन्यवाद जाकिर जी जो आपने मुझे चर्चा के लायक समझा ...हम मिले या कोई और लेकिन सही सोच के लोगों की संगोष्ठी जरूर होनी चाहिए क्योकि इसकी आज देश और समाज को बहुत जरूरत है ..साथ ही ऐसे आयोजन करवाने वालों का भी हार्दिक धन्यवाद किया जाना चाहिए ....आपसे आपने सामने मिलना मेरे लिए भी कई मायनों में सुखद विचारों को जन्म दे गया ...आपके इस पोस्ट के जरिये मैं उन लोगों को एकबार फिर धन्यवाद देना चाहूँगा जिन्होंने इस संगोष्ठी का सफलतापूर्वक आयोजन किया ....

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  6. आपने जो जीवंत परिचय ही लिख दिया। मेरे से अधिक मेरा चश्‍मा फेमस है, अपने चश्‍मे से जलन ... कभी हो ही नहीं सकती। बिना उसके तो न मैं ब्‍लॉगर हो सकता हूं और न ही पढ़ लिख सकता हूं। सबके बारे में जानने से अधिक जाकिर जी की तीक्ष्‍ण दृष्टि की दाद देनी पड़ेगी।

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  7. चित्र देख कर अच्चा लगा!
    हैप्पी ब्लॉगिंग!

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  8. चर्चा का यह एक नया रूप है, इसलिए अच्छा लगा।

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  9. बढ़िया रिपोर्ट .ब्लोगिंग पर पी एच डी..वाह अच्छा लगा सुनकर.

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  10. बिलकुल अलग अंदाज़ की रिपोर्ट..बहुत ही रिफ्रेशिंग लगी ये पोस्ट.

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  11. आपकी बातों को पढ़कर मन में एक टीस सी उठ रही है. काश हम भी वहां होते.!

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  12. इस पोस्ट को पढकर तो लगा की जैसे हम भी वर्धा मे ही हो। बहुत सुंदर ढंग से आपने रिपोर्टिंग की . आभार


    www.srijanshikhar.blogspot.com पर ' क्यों जिन्दा हो रावण '

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  13. ये नजर भी सही रही..परख परख कर बोली...बधाई और आभार.

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  14. शुकुल महराज को एक्सपोज करने की भी जरूरत है क्या ? पहले से ही वे खुल चुके हैं -अभी तो चिट्ठाचर्चा पर नारीय झुकाव वाली पोस्ट आने वाली ही होगी -फोटू शोटू के साथ ...वे एक घोषित नारी सहिष्णु ब्लॉगर हैं !

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  15. एक और उपयोगी परिचयात्मक पहलू।

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  16. एक और उपयोगी परिचयात्मक पहलू।

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  17. बडिया रेपोर्ट। मगर ज़ाकिर साहिब अनूप जी हमारे ब्लाग पर तो आते नही हम कैसे माने कि वो नारी समर्थक है? ाच्छा लगा सब के बारे मे जान कर। धन्यवाद।

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  18. हम्म! आप की नजर से इन दो दिनों को देखना काफ़ी ज्ञानवर्धक रहा। जिंदगी के अगले किसी मोड़ पर शायद आप को हम दिखें

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  19. वर्धा की चुनिन्दा रपट दिव्यनर्मदा में दे रहा हूँ आपकी रपट से ही श्री गणेश करता हूँ... संभव हो तो परिचय में सबके चिट्ठों का नाम और ईमेल जोड़ दें.

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  20. आपके इस आलेख द्वारा बहुत से लोगों से परिचय हुआ।

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  21. अहा! कमाल की रिपोर्ट।

    पंचायत चुनावों की व्यस्तता के कारन अरविंद जी नहीं आ सके। लेकिन उनकी सिखायी बातें मेरे बहुत काम आयीं। उसका सुफल यह रहा कि इस बार गालियाँ कम और तालियाँ अधिक मेरे हिस्से में आयी हैं।

    बस अरविंद जी की टिप्पणियाँ एक खास हैंगओवर का शिकार लगती हैं। आशा है वे अब वस्तुनिष्ठ हो पाएंगे।

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  22. अपेक्षा है कि आपने जिन ब्लॉगरों से परिचय कराया,उनमें से कोई आपके अज्ञात पहलुओं से परिचित कराए!

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  23. @सिद्धार्थ जी ,
    हर क्रिया की प्रतिक्रिया होती है ..मैंने बात कही अनूप जी को घाव लगी आपको ..जिस दिन आप अपने इस हैंग ओवर से मुक्त हो जायेगें हमें मुक्त देख पायेगें -हम तो पहले से ही विमुक्त हुए बैठे हैं ... :)
    अब देखिये अन्यत्र एक और विवाद रूपाकार ले रहा है और मैं उसे जी जान से उपेक्षित करने में लगा हूँ ..हे भगवान् ..जाल तू जलाल तूं आयी बला को टाल तूं ....

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  24. humane der kar di nahi to hum bhi lucknow me hote ....bhai ab jankari dete rahana hum apka blog dekhte rahenge

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  25. जाकिर भाई, आपकी दृष्टि से सबको देखने का भी अपना आनंद है. अलग अलग लोगों की आँख से सब चीज देखना, जो स्वयं देखी हुई हो, आह्लादित करती है.

    अप ने मुझे अतिरिक्त मान दे दिया लगता है. स्वयं को उस योग्य तो कदापि नहीं पाती. यह आप का बड़प्पन है कि चीजों को इस नजरिए से देखा.

    स्वयं मुझे आप से मिल कर अलग प्रकार का अनुभव हुआ. अपरिचय का बोध तो मिटा ही. सभी का सहज साथ आत्मीय था

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  26. एक और बढ़िया रिपोर्ट.. अब तो लगता है वहाँ के हर क्षण की रिपोर्ट मिल चुकी है.. आभार जाकिर भाई..

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  27. क्या कहें अफ़सोस हो रहा है ....बस !!!

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  28. हम सब या यूं कहूं कि कम से कम मैं तो सबसे पहली बार ही मिली थी। कई लोगों के बारे में राय भी बदली। आपके बारे में भी अधिक नहीं जानती थी, बस कभी आपके ब्‍लाग पर आती थी और साँप दिखायी देता था तो डर जरूर जाती थी। लेकिन आपको देखकर अलग सा ही भाव मन में जागृत हुआ। कभी अपनी पोस्‍ट पर लिखूंगी जब तक के लिए अल्‍पविराम।

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  29. बहुत सुंदर जाकिर भाई. छा गए तुस्सी. यही साफगोई तो ब्लागरों की तरफ पूरे देश का ध्यान खींच रही है. आपकी भाषा और आपका लेखन बहुत सुंदर है.
    यशवंत

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  30. जिस गोष्ठी में खट्टे और मीठे दोनों अनुभव हों वो ही गोष्ठी कामयाब कहलाती है...सिर्फ खट्टे या सिर्फ मीठे अनुभव गोष्ठी को बहुत एक रस बना देते हैं...इस लिए इन दोनों का होना अनिवार्य है...
    अब आपने भी इसमें खट्टे मीठे रस ढूंढ लिए हैं तो कहना पड़ेगा की ये गोष्ठी सफल रही...
    गोष्ठियों में विचार विमर्श के अतिरिक्त महत्वपूर्ण बात होती है लोगों से मिलना उन्हें पहचानना और इस गोष्ठी में आपको लोगों से मिलने और पहचानने के खूब अवसर प्राप्त हुए हैं...
    काश मुझे इनदिनों काम न होता तो मैं भी इसका एक हिस्सा होता और आप सब से मुलाकात कर पता...चलिए अगली बार सही...

    नीरज

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  31. आप हमेशा दूसरों की झूठी तारीफ करते हैं !! :)

    विस्तृत परिचयात्मक आलेख

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  32. इस विस्तृत रिपोर्ट को बखूबी पेश किया आपने......

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  33. Good job sir..I am filling a really freshness to see your blog....Keep it sir...Do share blog URL of Gayatri ji...thanks

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  34. बेनामी10/16/2010 6:55 pm

    एक बार फिर आपकी नज़र में आने से रह गए हम। वैसे कौन कहता है कि सबको एक नज़र से देखना चाहिए!?

    :-)

    सबका ख्याल रखा है आपने

    ...और अनूप जी के 'चुटकी लेने में विशेष आनन्द' वाली बात पर पता नहीं क्यों शोले वाले गब्बर की बाँह पर रेंगता चींटा याद आ गया :-)

    हा हा हा

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  35. वर्धा सम्मेलन पर बहुत सी पोस्ट पढीं पर हरेक की अपनी अलग बात है । एक ही बात को लोग कितने अलग अलग नजर से देखते है । अच्छी समीक्षा ।

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  36. Priti sagar..That fraud lady will coordinate the blogging in wardha..who has been declared Literary writer without any creative work..who has got prepared fake icard of non existing employee..surprising

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  37. Priti sagar..That fraud lady will coordinate the blogging in wardha..who has been declared Literary writer without any creative work..who has got prepared fake icard of non existing employee..surprising

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  38. HINDI BLOGGING MEIN BHI AJEEB TAMASHE CHAL RAHI HAI..MAHATMA GANDHI ANTARRASHTRIYA HINDI VISHWAVIDYALAYA , WARDHA KE BLOG PER ENGLISH KI EK POST PER PRITI SAGAR NE EK COMMENT POST KI HAI…AISA LAGA KI POST KO SABSE JYADA PRITI SAGAR NE HI SAMJHA..PER SACHHAI YE HAI KI PRITI SAGAR NA TO EK LINE BHI ENGLISH LIKH SAKTI HAIN AUR NA HI BOL SAKTI HAIN…BINA KISI LITERARY CREATIVE WORK KE PRITI SAGAR KO UNIVERSITY KI WEBSITE PER LITERARY WRITER BANA DIYA GAYA…PRITI SAGAR NE SUNITA NAAM KI EK NON EXHISTING EMPLOYEE KE NAAM PER HINDI UNIVERSITY KA EK FAKE ICARD BANWAYA AUR US ICARD PER SIM BHI LE LIYA…IS MAAMLE MEIN CBI AUR CENTRAL VIGILECE COMMISSION KI ENQUIRY CHAL RAHI HAI.. MEDIA KE LOGON KE PAAS SAARE DOCUMETS HAI AUR JALDI HI YEH HINDI UNIVERSITY WARDHA KA YAH SCANDAL NATIONAL MEDIA MEIN HIT KAREGA….AISE FRAUD BLOGGERS SE NA TO HINDI BLOGGING KA BHALA HOGA , NA TECHNOLOGY KA AUR NA HI DESH KA…KYUNKI GANDI MACHLI KI BADBOO SE POORA TAALAB HI BADBOODAAR HO JAATA HAI

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  39. Lagta hai Mahatma Gandhi Hindi Vishwavidyalaya men saare moorkh wahan ka blog chala rahe hain . Shukrawari ki ek 15 November ki report Priti Sagar ne post ki hai . Report is not in Unicode and thus not readable on Net …Fraud Moderator Priti Sagar Technically bhi zero hain . Any one can check…aur sabse bada turra ye ki Siddharth Shankar Tripathi ne us report ko padh bhi liya aur apna comment bhi post kar diya…Ab tripathi se koi poonche ki bhai jab report online readable hi nahin hai to tune kahan se padh li aur apna comment bhi de diya…ye nikammepan ke tamashe kewal Mahatma Gandhi Hindi Vishwavidyalaya, Wardha mein hi possible hain…. Besharmi ki bhi had hai….Lagta hai is university mein har shakh par ullu baitha hai….Yahan to kuen mein hi bhang padi hai…sab ke sab nikamme…

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  40. Praveen Pandey has made a comment on the blog of Mahatma Gandhi Hindi University , Wardha on quality control in education...He has correctly said that a lot is to be done in education khas taur per MGAHV, Wardha Jaisi University mein Jahan ka Publication Incharge Devnagri mein 'Web site' tak sahi nahin likh sakta hai..jahan University ke Teachers non exhisting employees ke fake ICard banwa kar us per sim khareed kar use karte hain aur CBI aur Vigilance mein case jaane ke baad us SIM ko apne naam per transfer karwa lete hain...Jahan ke teachers bina kisi literary work ke University ki web site per literary Writer declare kar diye jaate hain..Jahan ke blog ki moderator English padh aur likh na paane ke bawzood english ke post per comment kar deti hain...jahan ki moderator ko basic technical samajh tak nahi hai aur wo University ke blog per jo post bhejti hain wo fonts ki compatibility na hone ke kaaran readable hi nain hai aur sabse bada Ttamasha Siddharth Shankar Tripathi Jaise log karte hain jo aisi non readable posts per apne comment tak post kar dete hain...sach mein Sudhar to Mahatma Handhi Antarrashtriya Hindi Vishwavidyalaya , Wardha mein hona hai jahan ke teachers ko ayyashi chod kar bhavishya mein aisa kaam na karne ka sankalp lena hai jisse university per CBI aur Vigilance enquiry ka future mein koi dhabba na lage...Sach mein Praveen Pandey ji..U R Correct.... बहुत कुछ कर देने की आवश्यकता है।

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  41. MAHATMA Gandhi Hindi University , Wardha ke blog per wahan ke teacher Ashok nath Tripathi nein 16 november ki post per ek comment kiya hai …Tripathi ji padhe likhe aadmi hain ..Wo website bhi shuddha likh lete hain..unhone shayad university ke kisi non exhisting employee ki fake id bhi nahin banwai hai..aur unhone program mein present na rahne ke karan pogram ke baare mein koi comment nahin kia..I respect his honesty ..yahan to non readable post per bhi log apne comment de dete hain...really he is honest...Unhen salaam….

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  42. MAHATMA Gandhi Hindi University , Wardha ke blog per wahan ke teacher Ashok nath Tripathi nein 16 november ki post per ek comment kiya hai …Tripathi ji padhe likhe aadmi hain ..Wo website bhi shuddha likh lete hain..unhone shayad university ke kisi non exhisting employee ki fake id bhi nahin banwai hai..aur unhone program mein present na rahne ke karan pogram ke baare mein koi comment nahin kia..I respect his honesty ..yahan to non readable post per bhi log apne comment de dete hain...really he is honest...Unhen salaam….

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  43. महोदय/महोदया
    आपकी प्रतिक्रया से सिद्धार्थ जी को अवगत करा दिया गया है, जिसपर उनकी प्रतिक्रया आई है वह इसप्रकार है -

    प्रभात जी,
    मेरे कंप्यूटर पर तो पोस्ट साफ -साफ़ पढ़ने में आयी है। आप खुद चेक कीजिए।
    बल्कि मैंने उस पोस्ट के अधूरेपन को लेकर टिप्पणी की है।
    ये प्रीति कृष्ण कोई छद्मनामी है जिसे वर्धा से काफी शिकायतें हैं। लेकिन दुर्भाग्य से इस ब्लॉग के संचालन के बारे में उन्होंने जो बातें लिखी हैं वह आंशिक रूप से सही भी कही जा सकती हैं। मैं खुद ही दुविधा में हूँ।:(
    सादर!
    सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी
    महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय
    वर्धा, महाराष्ट्र-442001
    ब्लॉग: सत्यार्थमित्र
    वेबसाइट:हिंदीसमय

    इसपर मैंने अपनी प्रतिक्रया दे दी है -
    सिद्धार्थ जी,
    मैंने इसे चेक किया, सचमुच यह यूनिकोड में नहीं है शायद कृतिदेव में है इसीलिए पढ़ा नही जा सका है , संभव हो तो इसे दुरुस्त करा दें, विवाद से बचा जा सकता है !

    सादर-
    रवीन्द्र प्रभात

    जवाब देंहटाएं
  44. There is an article on the blog of Mahatma Gandhi Antarrashtriya Hindi Vishwavidyalaya , Wardha ‘ Hindi-Vishwa’ of RajKishore entitled ज्योतिबा फुले का रास्ता ..Article ends with the line.....दलित समाज में भी अब दहेज प्रथा और स्त्रियों पर पारिवारिक नियंत्रण की बुराई शुरू हो गई है…. Ab Rajkishore ji se koi poonche ki kya Rajkishore Chahte hai ki dalit striyan Parivatik Niyantran se Mukt ho kar Sex aur enjoyment ke liye freely available hoon jaisa pahle hota tha..Kya Rajkishore Wardha mein dalit Callgirls ki factory chalana chahte hain… besharmi ki had hai … really he is mentally sick and frustrated ……V N Rai Ke Chinal Culture Ki Jai Ho !!!

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  45. आज महात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय , वर्धा के हिन्दी-विश्व ब्लॉग ‘हिन्दी-विश्व’ पर ‘तथाकथित विचारक’ राजकिशोर का एक लेख आया है...क्या पवित्र है क्या अपवित्र ....राजकिशोर लिखते हैं....
    अगर सार्वजनिक संस्थाएं मैली हो चुकी हैं या वहां पुण्य के बदले पाप होता है, तो सिर्फ इससे इन संस्थाओं की मूल पवित्रता कैसे नष्ट हो सकती है? जब हम इन्हें अपवित्र मानने लगते हैं, तब इस बात की संभावना ही खत्म हो जाती है कि कभी इनका उद्धार हो सकता है .....
    क्या राजकिशोर जैसे लेखक को इतनी जानकारी नहीं है कि पवित्रता और अपवित्रता आस्था से जुड़ी होती है और नितांत व्यक्तिगत होती है. क्या राजकिशोर आस्था के नाम पर पेशाब मिला हुआ गंगा जल पी लेंगे.. राजकिशोर जी ! नैतिकता के बारे में प्रवचन देने से पहले खुद नैतिक बनिए तभी आप समाज में नैतिकता के बारे में प्रवचन देने के अधिकारी हैं ईमानदारी को किसी तरह के सर्टिफिकेट की आवश्यकता नहीं पड़ती. आप लगातार किसी की आस्था और विश्वास पर चोट करते रहेंगे तो आपको कोई कैसे और कब तक स्वीकार करेगा ......महात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय , वर्धा को अयोग्य, अक्षम, निकम्मे, फ्रॉड और भ्रष्ट लोग चला रहे हैं....मुश्किल यह है कि अपवित्र ही सबसे ज़्यादा पवित्रता की बकवास करता है.......
    प्रीति कृष्ण

    जवाब देंहटाएं
  46. आज महात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय , वर्धा के हिन्दी-विश्व ब्लॉग ‘हिन्दी-विश्व’ पर ‘तथाकथित विचारक’ राजकिशोर का एक लेख आया है...क्या पवित्र है क्या अपवित्र ....राजकिशोर लिखते हैं....
    अगर सार्वजनिक संस्थाएं मैली हो चुकी हैं या वहां पुण्य के बदले पाप होता है, तो सिर्फ इससे इन संस्थाओं की मूल पवित्रता कैसे नष्ट हो सकती है? जब हम इन्हें अपवित्र मानने लगते हैं, तब इस बात की संभावना ही खत्म हो जाती है कि कभी इनका उद्धार हो सकता है .....
    क्या राजकिशोर जैसे लेखक को इतनी जानकारी नहीं है कि पवित्रता और अपवित्रता आस्था से जुड़ी होती है और नितांत व्यक्तिगत होती है. क्या राजकिशोर आस्था के नाम पर पेशाब मिला हुआ गंगा जल पी लेंगे.. राजकिशोर जी ! नैतिकता के बारे में प्रवचन देने से पहले खुद नैतिक बनिए तभी आप समाज में नैतिकता के बारे में प्रवचन देने के अधिकारी हैं ईमानदारी को किसी तरह के सर्टिफिकेट की आवश्यकता नहीं पड़ती. आप लगातार किसी की आस्था और विश्वास पर चोट करते रहेंगे तो आपको कोई कैसे और कब तक स्वीकार करेगा ......महात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय , वर्धा को अयोग्य, अक्षम, निकम्मे, फ्रॉड और भ्रष्ट लोग चला रहे हैं....मुश्किल यह है कि अपवित्र ही सबसे ज़्यादा पवित्रता की बकवास करता है.......
    प्रीति कृष्ण

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  47. महात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्‍वविद्यालय, वर्धा के ब्लॉग हिन्दी विश्‍व पर राजकिशोर के ३१ डिसेंबर के 'एक सार्थक दिन' शीर्षक के एक पोस्ट से ऐसा लगता है कि प्रीति सागर की छीनाल सस्कृति के तहत दलाली का ठेका राजकिशोर ने ही ले लिया है !बहुत ही स्तरहीन , घटिया और बाजारू स्तर की पोस्ट की भाषा देखिए ..."पुरुष और स्त्रियाँ खूब सज-धज कर आए थे- मानो यहां स्वयंवर प्रतियोगिता होने वाली ..."यह किसी अंतरराष्ट्रीय स्तर के विश्‍वविद्यालय के औपचारिक कार्यक्रम की रिपोर्टिंग ना होकर किसी छीनाल संस्कृति के तहत चलाए जाने वाले कोठे की भाषा लगती है ! क्या राजकिशोर की माँ भी जब सज कर किसी कार्यक्रम में जाती हैं तो किसी स्वयंवर के लिए राजकिशोर का कोई नया बाप खोजने के लिए जाती हैं !

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  48. महात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्‍वविद्यालय वर्धा के ब्लॉग हिन्दी-विश्‍व पर आज २ पोस्ट आई हैं.-हिंदी प्रदेश की संस्थाएं: निर्माण और ध्वंस और गांधी ने पत्रकारिता को बनाया परिवर्तन का हथियार .इन दोनों में इतनी ग़लतियाँ हैं कि लगता है यह किसी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्‍वविद्यालय का ब्लॉग ना हो कर किसी प्राइमरी स्कूल में पढ़ने वाले बच्चे का ब्लॉग हो ! हिंदी प्रदेश की संस्थाएं: निर्माण और ध्वंस पोस्ट में - विश्वविद्यालय,उद्बोधन,संस्थओं,रहीं,(इलाहबाद),(इलाहबाद) ,प्रश्न , टिपण्णी जैसी अशुद्धियाँ हैं ! गांधी ने पत्रकारिता को बनाया परिवर्तन का हथियार- गिरिराज किशोर पोस्ट में विश्वविद्यालय, उद्बोधन,पत्नी,कस्तूरबाजी,शारला एक्ट,विश्व,विश्वविद्यालय,साहित्यहकार जैसे अशुद्ध शब्द भरे हैं ! अंधों के द्वारा छीनाल संस्कृति के तहत चलाए जा रहे किसी ब्लॉग में इससे ज़्यादा शुद्धि की उम्मीद भी नहीं की जा सकती ! सुअर की खाल से रेशम का पर्स नहीं बनाया जा सकता ! इस ब्लॉग की फ्रॉड मॉडरेटर प्रीति सागर से इससे ज़्यादा की उम्मीद भी नहीं की जा सकती !

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  49. महात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय,वर्धा के ब्लॉग हिन्दी-विश्व पर २६ फ़रवरी को राजकिशोर की तीन कविताएँ आई हैं --निगाह , नाता और करनी ! कथ्य , भाषा और प्रस्तुति तीनों स्तरों पर यह तीनों ही बेहद घटिया , अधकचरी ,सड़क छाप और बाजारू स्तर की कविताएँ हैं ! राजकिशोर के लेख भी बिखराव से भरे रहे हैं ...कभी वो हिन्दी-विश्व पर कहते हैं कि उन्होने आज तक कोई कुलपति नहीं देखा है तो कभी वेलिनटाइन डे पर प्रेम की व्याख्या करते हैं ...कभी किसी औपचारिक कार्यक्रम की रिपोर्टिंग करते हुए कहते हैं कि सब सज कर ऐसे आए थे कि जैसे किसी स्वयंवर में भाग लेने आए हैं .. ऐसा लगता है कि ‘ कितने बिस्तरों में कितनी बार’ की अपने परिवार की छीनाल संस्कृति का उनके लेखन पर बेहद गहरा प्रभाव है . विश्वविद्यालय के बारे में लिखते हुए वो किसी स्तरहीन भांड से ज़्यादा नहीं लगते हैं ..ना तो उनके लेखन में कोई विषय की गहराई है और ना ही भाषा में कोई प्रभावोत्पादकता ..प्रस्तुति में भी बेहद बिखराव है...राजकिशोर को पहले हरप्रीत कौर जैसी छात्राओं से लिखना सीखना चाहिए...प्रीति सागर का स्तर तो राजकिशोर से भी गया गुजरा है...उसने तो इस ब्लॉग की ऐसी की तैसी कर रखी है..उसे ‘कितने बिस्तरों में कितनी बार’ की छीनाल संस्कृति से फ़ुर्सत मिले तब तो वो ब्लॉग की सामग्री को देखेगी . २५ फ़रवरी को ‘ संवेदना कि मुद्रास्फीति’ शीर्षक से रेणु कुमारी की कविता ब्लॉग पर आई है..उसमें कविता जैसा कुछ नहीं है और सबसे बड़ा तमाशा यह कि कविता का शीर्षक तक सही नहीं है..वर्धा के छीनाल संस्कृति के किसी अंधे को यह नहीं दिखा कि कविता का सही शीर्षक –‘संवेदना की मुद्रास्फीति’ होना चाहिए न कि ‘संवेदना कि मुद्रास्फीति’ ....नीचे से ऊपर तक पूरी कुएँ में ही भांग है .... छिनालों और भांडों को वेलिनटाइन डे से फ़ुर्सत मिले तब तो वो गुणवत्ता के बारे में सोचेंगे ...वैसे आप सुअर की खाल से रेशम का पर्स कैसे बनाएँगे ....हिन्दी के नाम पर इन बेशर्मों को झेलना है ..यह सब हमारी व्यवस्था की नाजायज़ औलाद हैं..झेलना ही होगा इन्हें …..

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  50. बेनामी5/05/2012 10:05 pm

    मैं बहुत जानकारीपूर्ण यहाँ पढ़ के हर एक की सराहना करते हैं. मैं सबसे निश्चित रूप से लोगों के साथ अपनी साइट के बारे में वाक्यांश फैल जाएगा. चीयर्स.

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आपके अल्‍फ़ाज़ देंगे हर क़दम पर हौसला।
ज़र्रानवाज़ी के लिए शुक्रिया! जी शुक्रिया।।

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हिंदी वर्ल्ड - Hindi World: वर्धा ब्लॉगर सम्मेलन : कुछ खट्टा कुछ मीठा।
वर्धा ब्लॉगर सम्मेलन : कुछ खट्टा कुछ मीठा।
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