पाँच वर्ष की बच्ची को ज़िदा ज़मीन में गाड़ने की बात कोई कैसे सोच सकता है? वह भी तब, जब वह उसकी अपनी अपनी ही संतान हो? लेकिन आज आदमी स्व...
पाँच वर्ष की बच्ची को ज़िदा ज़मीन में गाड़ने की बात कोई कैसे सोच सकता है? वह भी तब, जब वह उसकी अपनी अपनी ही संतान हो? लेकिन आज आदमी स्वार्थ और धार्मिक पाखण्ड में इतना अंधा हो चुका है कि वह गड़े हुए धन को पाने के लालच में ऐसा निर्लज्ज कारनामा करने से गुरेज़ नहीं कर रहा है।
यह कहानी श्रीकृष्ण और रामदेवी नामधारी उन कलयुगी, लालची और धर्मान्ध लोगों की है, जो थोड़े से लालच के लिए एक तांत्रिक के कहने पर अपनी ही लड़की को ज़मीन में दफ्न कर चुके हैं। माता-पिता के नाम पर कलंक ये पति-पत्नी सीतापुर, उ0प्र0 जनपद के लहरपुर कोतवाली क्षेत्रान्तर्गत दहेली कुसेवा गाँव के निवासी हैं।
मामला यूँ हैकि शिवकुमार नामक ताँत्रिक ने श्रीकृष्ण और उसकी पत्नी को यह कहकर बहकाया कि उसके घर में धन गड़ा हुआ है। यदि वह उसके कहे अनुसार तंत्र क्रिया करे, तो उसे उस धन की प्राप्ति हो सकती है। ये कलयुगी माँ-बाप धन के चक्कर में इतने अंधे हो गये कि उन्होंने बीते सोमवार को आधी रात के बाद बहुत देर तक हवन आदि करके अपनी अपनी पाँच वर्षीय सगी बेटी कन्नी को धुनी देता रहा फिर उसके मुँह में कपड़ा ठूँस कर घर के पिछवाड़े जमीन में गड्ढ़ा खोदकर गाड़ दिया।
अगले दिन गाँव वालों को जब शक हुआ तो वे घटना स्थल पर एकत्र हुए। गाँव वालों को देखकर घर वाले भयभीत हो गये और चुपचाप वहाँ से रफूचक्कर हो गये। इससे गाँव वालों का शक और गहरा हो गया। उन्होंने सम्बंधित थाने में खबर की तो भारी मात्रा में पुलिस दल आ पहुँचा। शक की बिना पर जब श्रीकृष्ण के घर के पीछे पटे एक ताजे गड्ढ़े को खोदा गया, तो उसमें श्रीकृष्ण की पाँच वर्षीय पुत्री कन्नी का क्षत विक्षत शव मिला।
हालाँकि पुलिस ने कन्नी के माता-पिता और ताँत्रिक के विरूद्ध एफ0आई0आर0 लिख ली है, लेकिन सवाल यह है कि अक्सर हमारे समाज में इस तरह की घटनाएँ क्यों घटती रहती हैं? कैसे लोग धार्मिक क्रिया-कलापों पर इतना अंध विश्वास कैसे कर लेते हैं कि अपने सगी औलाद का भी कत्ल करते हुए नहीं हिचकिचाते हैं? और उससे भी बड़ा सवाल यह कि जब आए दिन ताँत्रिक इस तरह की नृशंस घटनाओं को अंजाम देते हुए पाए जाते हैं, तो फिर उनके विरूद्ध कोई कड़े नियम क्यों नहीं बनाए जाते हैं? क्यों उन्हें समाज के लोगों को बर्गलाने और हत्या के लिए प्रेरित करने के लिए खुलेआम घूमने दिया जाता है?
धर्म के नाम पर इस तरह के व्यभिचार हमारे समाज में कब तक चलते रहेंगे? क्या अभी हमारा समाज इस धर्मान्धता के फंदे से बाहर निकल सकेगा? अपने विचारों से हमें अवश्य अवगत कराएँ। क्योंकि बदलाव का रास्ता विचारों से होकर गुज़रा है।
शिक्षा और जागरूकता इन दोनों ही चीजों से जनमानस जब तक अछुता रहेगा तांत्रिकों इत्यादि की मौज तो होगी ही.समाज के जिम्मेदार नागरिक होने के नाते हमारी भी भूमिका अंध विश्वास के खिलाफ लड़ाई में होनी चाहिए.दूर बैठकर तमाशा देखने से क्या होगा?
जवाब देंहटाएंका कहें ऐसे लोगो को .... अफसोसजनक
जवाब देंहटाएंअंधविश्वास के विरूद्ध चेतना जगाने की आवश्यकता है। इसके लिए पढे लिखे लोगों को आगे आना चाहिए।
जवाब देंहटाएंAaapki baate sochne ko vivash karti hain. Andhvishvash ke virudh aapka yuddh prasansneey hai.
जवाब देंहटाएंबेहद दुखद !
जवाब देंहटाएंनेताजी की मृत्यु १८ अगस्त १९४५ के दिन किसी विमान दुर्घटना में नहीं हुई थी।
ऐसी घटनाएं लालच में अंधे लोगों की कारस्तानी होती है .. तंत्र मंत्र का धर्म से कोई संबंध नहीं होता !!
जवाब देंहटाएंआदरणीय संगीता जी, मेरे विचार में आपका यह कथन 'तंत्र-मंत्र, दुआ तावीज का धर्म से कोई सम्बंध नहीं होता' मेरी समझ से परे है। कोई भी व्यक्ति दुआ तावीज/तंत्र मंत्र में यकीन क्यों करता है? क्योंकि उसे बताया जाता है कि ईश्वर/खुदा को अगर खुश कर लिया जाए, तो कुछ भी असम्भव नहीं है। और ईश्वर/खुदा को खुश करने का रास्ता क्या है? तंत्र-मंत्र/दुआ तावीज ही तो। फिर यह क्रियाएँ धर्म से अलग कैसे हैं?
जवाब देंहटाएंअंधविश्वास की जडें इतनी गहरी जमी हुयी हैं कि आजकल तो अनपढ को तो छोडिये पढे लिखे भी इसमे शामिल हो जाते हैं……………रोज चौराहों पर आप इन्हे ना जाने कितने ऐसे उपाये करते देखेंगे कि लगेगा ही नही कि आज हम 21वीं सदी मे रह रहे हैं…………फिर गाँव के अनपढ ऐसा कुछ करते हैं तो उनके लिये क्या कहा जाये……………आज वैचारिक जागरण की जरूरत है और हर तबके को चाहे ग्रामीण हो या शहरी।
जवाब देंहटाएंtantra mantra ka dharam se koi sambandh nahi hai. ye to tantirko pando aur majaro ke banaye andh vishwash hai. ye apni dukan chalane ke liya janta ko bargalate hai.
जवाब देंहटाएंsabhi dhram andhvishvash ko door karne ko kehtae hai.
lekin nadan log in joothe logo ke bahkaye mein aa jate hai.
kisi dhram mein nahi hai ki nar bali do ya jinda gadh do.
like islam dharma hamesh se andhvishwaho ki khilafat karta hai. lekin yaha bhee log bhakye mein aa jate hai.
majaro par jana sakth mana hai lekin log nahi mante . majar par baithe thag unko rhagte rehte hai.
जाने कब बंद होगा यह निर्मम व्यवहार..
जवाब देंहटाएंसही शिक्षा ही कुछ कर सकती है .
सिक्षा और जागरूक होना होगा समाज को ... ऐसे लोगों को चुन चुन कर क़ानून के हवाले करना होगा ...
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंAnonymous महोदय, मुद्दों पर आधारित बात करें और अपनी पहचान के साथ अपनी बात कहें, अन्यथा आपके कमेण्ट डिलीट करने के सिवा हमारे पास कोई विकल्प नहीं होगा।
जवाब देंहटाएंकासिम साहब, मैं ऐसे तमाम मौलानाओं को जानता हूँ जो किसी मज़ार पर नहीं बैठते है, लेकिन इसके बावजूद वे दुआ तावीज करते हैं और दावा करते हैं कि इंशा अल्लाह काम जरूर होगा। वे लोग बात-बात पर कुरान और खुदा की शान का वास्ता और आयतों में छिपी शक्तियों का हवाला देते हैं। ये लोग बाकायदा फीस लेकर लोगों को लूट रहे हैं। लेकिन फिरभी आप इसे धर्म से अलग मामला बता रहे हैं?
जवाब देंहटाएंzakir bhai,
जवाब देंहटाएंye sahi hai ki kuch maula aise kaam karte hai. lekin phir wahi baat "kaya quran islaam unhe aisa karne ko kahta hai" . ye to unka niji gunaha hai. mein ye baat kahna chata hoo ki hum sabko education par jor dena chaiye aur dhram ke pare mein bhi puri jankari leni chaiye. to hum ko pata hoga ke ye tantrik pande maulve hume loot rahe hai. achhi education hi hamein inse bacha sakti hai. isliye dhram ki jaankari hona bhut jaroori hai.
reply ke liye sukriya
sim786.blogspot.com
हम जैसे पढ़े-लिखे सभ्रांत परिवार के लोग तमाम जाहिलाना टाईप पाखण्ड और आडम्बर करें तो वो सही है लेकिन कोई अशिक्षित गाँव-देहात या पिछड़े इलाके का व्यक्ति कुछ करे तो वो अंधविश्वास?
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हम कौन सा ज्यादा पीछे हैं उनके मुकाबले ? हम क्या-क्या नौटंकी नहीं करते? एक से एक बड़े-बड़े उद्योगपति, राजनेता, फ़िल्म स्टार क्या ये सब अंधविश्वास से ग्रसित नहीं होते?
अगर हम शिक्षित लोग अंधविश्वासी नहीं हैं तो ये टीवी चैनल पर किसके लिए साईं रक्षा कवच, शनि निवारण यन्त्र, नजर रक्षा यन्त्र इत्यादि बेचे जाते हैं? यकीन मानिए हमारे या श्रीकृष्ण और रामदेवी के ग्रेड में ज्यादा अंतर नहीं है.
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मै इस बात को सिरे से खारिज करता हूँ कि 'तंत्र-मंत्र, दुआ तावीज का धर्म से कोई सम्बंध नहीं होता'.
गौर से सामाजिक अध्ययन कीजिये कभी तो पायेंगे कि धर्म और तंत्र-मंत्र, दुआ, तावीज आदि में गहरा अंतर्संबंध होता है
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कहने को बहुत कुछ है लेकिन अभी समय नहीं ....कभी फुरसत में बात होगी :))
दुखद घटना.
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रही बात आडम्बरों को मानने वालों की..तो यह बात सही है कि न केवल अशिक्षित वरन संभ्रांत और पढ़े लिखे लोग भी इन चीज़ों को मानते हैं.
----ज़ी टी वी /एन डी टी वी इमेजिन / इनका प्रसारण यहाँ होता है तो इनके बारे में कह सकती हूँ कि नज़र बट्टू पत्थर/तावीज़/लोकेट/और न जाने क्या क्या चीज़ों का प्रचार ये चेनल खूब करते हैं..रोज़ रात को और सुबह दो बार..क्या ये सभी पढ़े लिखे लोग नहीं हैं?टी वी देखने वाला कौन सा वर्ग है?
---जी टी वी पर ही एक बार पूरी श्रृंखला जादू टोने करने वालों पर दिखाई गयी थी..जिससे अन्धविश्वास दूर तो क्या होना है उसका प्रचार ज़रूर हुआ था..
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रही धर्म की बात तो हर धर्म को मानने वाले लोगों में अंधविश्वासी खूब मिल जायेंगे.
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शिक्षा ज़रुरी है लेकिन साथ ही पाखण्डी लोगों के खिलाफ मुहीम चलाने की भी ज़रूरत है.
पुलिस का पूरा सहयोग ज़रुरी है.
साथ ही कानून को सख्त किया जाना भी ज़रुरी है.
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साथ ही हर व्यक्ति को अपने स्तर पर भी प्रयास करना चाहिए कि आस पास ऐसी घटना या ऐसे लोगों की खबर पुलिस को करे .
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ज़ाकिर भाई! पहली बार आना हुआ आपके यहाँ... प्रशंसक रहा हूँ आपका शुरू से. बड़ा माक़ूल सवाल उठाया है आपने. लेकिन इसका कारण धर्मांधता नहीं है... अशिक्षा और निर्धनता मूल कारण है हमारी समझ से. निर्धनता पैसे पाने की चाह के लिए कुछ भी करवा लेती है और अशिक्षा इस सोच पर पर्दा डाल देती है कि जो वो कर रहे हैं, वो सही है या गलत... और धर्म की अफ़ीम तो अशिक्षा के नीम पर करेले का लेप लगाती है… वर्ना पढा लिखा व्यक्ति तो हर किसी बात को तर्क के तराज़ू पर तोले बिना कुछ कर ही नहीं सकता... ऐसी ही किसी अशिक्षा या ज़रूरत ने किसी पत्थर को भगवान बना दिया होगा, जिसके आगे हम आज भी सिर नवाते हैं!
जवाब देंहटाएंशर्मनाक।
जवाब देंहटाएंदुखद घटना।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबेहद दर्दनाक................इंसान के इंसान होने पर शक होने लगा है अब तो..........
जवाब देंहटाएंजनाब ये तो कुछ भी नहीं , मामले तो ऐसे-२ भी हैं इन अंधविश्वास और तंत्र-मन्त्रों के की सुनकर ही आदमी की रूह काँप जाए
जवाब देंहटाएंइसके दो ही इलाज हो सकते हैं
समाज को इसके विरुद्ध जागरूक और शिक्षित किया जाए
और ऐसा करने वालों के पिछवाड़े पर कस कर डंडे लगाएं जाएँ और ये सार क्रियाएँ इत्यादि ऐसे लोगों पर ही अपनाई जाएँ
आपको इस पोस्ट के ज़रिये लोगों को जागरूक करने के लिए दिल से आभार एवं शुभकामनायें
महक
धर्म में सच्ची आस्था रखने वालों को सांसारिक सफलता की इतनी चिंता नहीं होती .. कई कई जन्मों तक अपने कर्म के अनुसार फल पाने का भय उन्हें धर्मविरूद्ध कार्य नहीं करने देता .. जबकि तंत्र में विश्वास रखनेवालों की पहली प्राथमिकता सांसारिक सफलता की होती है .. अंधविश्वासी होने के लिए पढे लिखे और अनपढ होने का कोई अर्थ नहीं .. अंधविश्वास को जन्म देने वाला सबसे बडा कारक लालच है !!
जवाब देंहटाएंवंदनाजी की बात से सहमत हूं
जवाब देंहटाएंटीवी में हर रोज अंधविश्वास फैलाने वाले बाबा पढ़े-लिखो को ही अपना शिकार बना रहे हैं।
संगीता जी,
जवाब देंहटाएं''धर्म में सच्ची आस्था रखने वालों को सांसारिक सफलता की इतनी चिंता नहीं होती .. कई कई जन्मों तक अपने कर्म के अनुसार फल पाने का भय उन्हें धर्मविरूद्ध कार्य नहीं करने देता ..''
किस भय की बात कर रही हैं आप? सबसे ज्यादा पाप तो पुजारी/मौलवी ही करते हैं। इतिहास भरा हुआ है इनके कारनामों से। और हाँ, अगर आम आदमी की बात करें आप, तो जो जितना बड़ा भ्रष्टाचारी, लूट-खसोट करने वाला या धोखेबाज होता है, वह उतना ही धार्मिक होता है।
''.. अंधविश्वासी होने के लिए पढे लिखे और अनपढ होने का कोई अर्थ नहीं .. अंधविश्वास को जन्म देने वाला सबसे बडा कारक लालच है!''
आपकी इस बात से भी इत्तेफाक रखना मुश्किल है। क्योंकि इस तरह की घटनाओं के मूल में अंधविश्वास ही होता है, लालच नहीं। वर्ना लाललची लोग तो करोणों की संख्या में हैं, फिर क्यों नहीं रोज इस तरह की घटनाएँ होती हैं? इस तरह की घटनाओं में ही वे ही लोग लिप्त पाए जाते है, जो यह मानते हैं कि धार्मिक क्रियाओं के द्वारा ईश्वर को खुश करके 'कुछ भी' पाया जा सकता है। कम धार्मिक व्यक्ति अथवा नास्तिक व्यक्ति इस तरह की बातों से कोसों दूर रहते हैं।
पागल व्यक्ति कुछ भी कर सकता है.
जवाब देंहटाएंबिल्कुल तथ्यपरक कथन है सन्गीता जी का, यह धर्म की नही, अधर्म से संबन्धित बात है, धार्मिकता से दूर व्यक्ति ही ठगी एवम लालच में फ़ंसते हैं। ठगी करने वाले व उसमें फ़ंसने वाले दोनों ही धर्म के विपरीत आचरण वाले है लालच व ठगी को किस धर्म में मान्यता प्राप्त है?, कोई बतायेगा ?
जवाब देंहटाएंरक्षाबंधन पर हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनायें!
जवाब देंहटाएंशानदार पोस्ट!
समाज को जागरूक होने के लिए पहले शिक्षित होना पड़ेगा ..
जवाब देंहटाएंबहुत खूब .............. लिखते रहिये .
http://oshotheone.blogspot.com/
हमें लगता है कि हम जितनी तेजी से विज्ञान की दुनियां में कदम आगे बढ़ा रहे हैं, उतनी ही तेजी से एक वर्ग धर्मांध होता जा रहा है। जागरूकता आज भी उतनी ही आवश्यक है जितनी की पिछली सदियों में थीं।
जवाब देंहटाएंsundar prastuti,
जवाब देंहटाएंकृपया अपने बहुमूल्य सुझावों और टिप्पणियों से हमारा मार्गदर्शन करें:-
अकेला या अकेली
आपको एवं आपके परिवार को श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएं