वैद्यानिक चेतावनी- कृपया इसे इन्टेलीजेन्ट ब्लॉगर्स की गणना कत्तई न माना जाए। माफी चाहूँगा, पर यह सवाल सिर्फ इन्टेलीजेन्ट लोगों के ...
वैद्यानिक चेतावनी- कृपया इसे इन्टेलीजेन्ट ब्लॉगर्स की गणना कत्तई न माना जाए।
माफी चाहूँगा, पर यह सवाल सिर्फ इन्टेलीजेन्ट लोगों के लिए है। अगर आप अपने आपको इस श्रेणी में पाते हैं, तो जवाब अवश्य दें। और अगर आप जवाब नहीं देना चाहें, तो भी कोई दिक्कत नहीं। और यदि आप इंटेलीजेन्ट नहीं भी हैं, लेकिन आप किन्ही 'झा', 'मा' और 'गा' अक्षरों से शुरू होने वाले लोगों को जानते हों, तो भी अपना जवाब अवश्य दें, क्योंकि यह सवाल भी उन्हीं के सम्बंध में है।
तो अब आते हैं असली सवाल पर। हुआ यूँ कि कल मेरे मित्र राजीव राय जी का फोन आया। राजीव जी एक बेहद इन्टेलीजेन्ट और खुशमिजाज आदमी हैं और अच्छी ग़ज़लें भी कहते हैं। इन सबके अलावा उनकी रूचि लोगों के मिजाज़ को पढ़ने में भी रहती है। यानी कि साइकालॉजी के अच्छे खासे कीड़े उनके दिमाग में हैं। यूँ तो वे करीब 52 साल के हैं, पर ये मेरी खुश्नसीबी है कि वे मुझे अपना मित्र मानते हैं।
राजीव जी ने हॉय-हैलो के बाद मुझसे एक सवाल पूछा- इस दुनिया में बुरे ('झा', 'मा' और 'गा' शब्द से शुरू होने वाले लोग और जिन्हें आप शामिल करना चाहें, वे सब) लोग अपने खराब व्यवहार के बारे में कभी तो सोचते होंगे? उस समय उनके मन में क्या विचार उठते होंगे?
सवाल तो बहुत सिम्पल सा था, इसलिए मैंने कुछ पल सोच कर जवाब दिया, 'मेरी समझ से बुरे लोग जब अपने व्यवहार के बारे में सोचते हैं, तो वे अपने आपको महानता के पायदान पर खड़ा महसूस करते हैं। क्योंकि उन्हें लगता है कि ये दुनिया इसी व्यवहार के लायक है। और अगर हम (बुरे लोग) दुनिया वालों के साथ ऐसा (घटिया) व्यवहार नहीं करेंगे, तो हमारे साथ इससे भी बुरा व्यवहार किया जाएगा।'
मेरा जवाब सुनने के बाद राजीव जी थोड़ी देर शान्त रहे, फिर बोले, 'तुम्हारा जवाब कुछ हद तक सही तो है, पर मुझे लगता है कि असली जवाब कुछ और होना चाहिए। इसलिए मैं चाहता हूँ कि यह सवाल ब्लॉग जगत के लोगों के सामने रखो। वहाँ पर एक से बढ़कर एक इन्टीलीजेन्ट लोग होंगे। हो सकता है कोई इसका सही जवाब दे सके।'
तो बस इतनी सी बात है, जिसके लिए आपको परेशान किया। तो अब आप ही बताइए कि इस बारे में आपके क्या विचार हैं। हो सकता है कि आपकी इंटेलीजेन्ट राय एक नॉन ब्लॉगर को मुत्मईन कर जाए।
जाकिर भाई, अपने पास इंटेलीजेन्सी का सार्टिफिकेट नहीं है, नहीं तो मैं अवश्य जवाब दे देता।
जवाब देंहटाएंराजीव राय जी एक बेहद इन्टेलीजेन्ट और खुशमिजाज आदमी हैं और अच्छी ग़ज़लें भी कहते हैं। इन सबके अलावा उनकी रूचि लोगों के मिजाज़ को पढ़ने में भी रहती है। यानी कि साइकालॉजी के अच्छे खासे कीड़े उनके दिमाग में हैं
जवाब देंहटाएंतो हमसे क्यूं माथापच्ची करवा रहे हैं .. उन्हीं से जबाब पूछ लेना चाहिए था न !!
संगीता जी, लगता है आपने पूरी पोस्ट नहीं पढ़ी। यह सवाल राजीव जी ने ही पूछा है।
जवाब देंहटाएंaap ne galat samay par yae prshan puchha haen aaj kal blog jagat mae
जवाब देंहटाएंझा मा और गा को अपना व्यवहार खराब लगता तो वो ऐसा करते ही क्यों?
जवाब देंहटाएंझा मा गा अपनी नजर में परफेक्ट है और दूसरों को सुधारना चाहते है...
हम तो अर्हता परीक्षा में ही फेल हो गए।
जवाब देंहटाएंउफ्फ्फ कुछ समझ नहीं आ रहा है, लगता है किसी इंटेलिजेंट ब्लोगर को फोन लगाना पड़ेगा. जाकिर भाई आपका नंबर क्या है?
जवाब देंहटाएं;-)
शाहनवाज़ भाई, आप मेरा नम्बर क्या करेगे? मैंने ही तो सवाल पूछा है, आपको दूसरे लोगों के नम्बर तलाश करने चाहिए।
जवाब देंहटाएंआपका ये लेबल काफी कुछ कहता है:
जवाब देंहटाएंगंदे लोग- गंदे विचार, बुरे लोग- बुरे विचार
Rajey Sha जी, यहाँ तो बात ही उनकी मानसिकता को पहचानने की हो रही है। अच्छा होता, आप ही उसपर कुछ प्रकाश डालते।
जवाब देंहटाएंजाकिर भाई, मुझे लगता है कि आपकी बात काफी हद तक सही है। वैसे इस बात को डेल कार्नेगी ने भी अपनी किसी किताब में लिखा है।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंमेरे विचार से कोई व्यक्ति चाहे कितना भी घटिया भी क्यों न हो, वह अपने आप को सदैव बहुत अच्छा समझता है। क्योंकि अगर वो अपने काम को बुरा समझता, तो वह उस बुरे काम करता ही क्यों? इसे इस तरह से भी समझ सकते हैं कि हम लोग अपने जीवन में अक्सर कुछ न कुछ गलत काम कर जाते हैं। और फिर पकड़े जाने पर हम उसे येन केन प्रकारेण सही साबित करना का प्रयत्न करते हैं। मेरे विचार से यही मनोविज्ञान उन लोगों का भी होता है, जो हमेशा गलत काम करते रहते हैं।
जवाब देंहटाएंझा,मा,गा ही नहीं समझे तो क्या जवाब दें. अपन इंटेलिजेंट नहीं शायद. :(
जवाब देंहटाएंपहले तो ये क्लियर किया जाए कि सिर्फ 'झा','मा' और 'गा' शब्द से शुरू होने वाले लोग ही क्यूँ ?
जवाब देंहटाएंफिर सोचेंगें कि अपनी इन्टैलीजैन्सी दिखानी चाहिए कि नहीं :)
संजय जी और वत्स जी, आपकी समस्या को दृष्टिगत रखते हुए पैमाने को वृहद रूप दे दिया गया है। आशा है अब आप अपनी इंटेलीजेन्सी अवश्य दिखाएंगे। :)
जवाब देंहटाएंकोई इन्टेलीजेन्ट ब्लागर इस सवाल का जवाब नहीं दे रहा है।
जवाब देंहटाएंचलो मैं खुद ही बताता हूं, अपने बारे में (इन्टेलीजेन्ट लोग मेरा नाम 'झा', 'मा' और 'गा' से शुरू करते हैं या नहीं ये मुझे नहीं पता)
मैं अपने खराब व्यवहार के बारे में कई बार सोचता हूं, तब मेरे मन में पछतावा होता है। और इसी पछतावे के बाद मैं अपने आप को बढिया और अच्छा समझने लगता हूं। और दोबारा होश खोकर फिरसे वैसा ही व्यवहार करने लगता हूं कि दुनिया में मुझसे ज्यादा बुद्धिमान और हिम्मतवर कोई नहीं। वास्तव में मेरी कुंठा और हीन-भावना मुझ से ऐसा करवाती है।
प्रणाम
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जवाब देंहटाएंमुझे लगता है उन्होने झांसा देने वाले,मारने वाले और गाली देने वाले लोगों की ओर इशारा किया है ....और जब ये लोग अपने खराब व्यवहार के बारे में सोचते होंगे ....तब एक विचार उनके मन मे जरूर आता होगा.....किसी ने पूछ लिया तो ????? किसको क्या जबाब देना है ???
जवाब देंहटाएं( इंटेलीजेंट समझने की भूल मत करना......सिर्फ़ जबाब सोचने की कोशिश की है )
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जवाब देंहटाएंइन्टैलीजेन्ट होते तो यही एक काम रह गया था क्या?
जवाब देंहटाएंआप अजय झा की बात तो नहीं कर रहे?
जवाब देंहटाएंहूँ एक मेरे गले भी पडी है !
जवाब देंहटाएंझा मा गा को झ म ग कर दें तो अपन जैसे मूर्खों का भी दिमाग चलने लगे।
जवाब देंहटाएंझा
ओझा (दो दो)
मिसिर
ज्ञ(ग्या)नदत्त
गिरिजेश ... अंतविहीन
वैसे रचना जी की बात में दम है।
ओह. ये पोस्ट मेरे लिए नहीं है.
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जवाब देंहटाएंइँटेलिज़ेन्ट्स की गुहार मची देख मैं भी चला आया शायद कोई आरक्षित सीट खाली हो !
तो ज़नाब अर्ज़ यह है कि दुनिया की नज़रों में वह बुरा है,
पर अपनी नज़रों में नहीं, इसलिये उससे इस तरह की बेज़ा तरद्दुद या कहिये आत्मवलोकन की उम्मीद नहीं की जा सकती ।
वह हमेशा अपने कृत्य को जॅस्टीफ़ाई करता रहेगा । जिस दिन उसे यह अहसास हो जाये कि वह बुरा आदमी है, या उसने बुराईयाँ की हैं, उसी क्षण से वह बुरा आदमी नहीं रहेगा । वह बुरा इसलिये है कि उसके पास पश्ताचाप, ग्लानि या आत्मवलोकन जैसे शब्द नहीं हैं ।
बिच्छु को दँश मार कर सुख मिलता है, आत्मरक्षा उसका जॅस्टीफ़िकेशन है । अलबत्ता घड़ियाल आँसू बहाते देखा जा सकता है, पर यह उसके बनावट की मज़बूरी है ।
काश मैं अच्छा होता। ( Dr. Sanjay Dani Durag. C.G.)
जवाब देंहटाएंचलिए विद्वानों ने तो झाड दी अपनी , अब इस नालायक को बोलने की इजाजत दीजिये ;
जवाब देंहटाएंअगर झा , मा , गा में सोचने की ही शक्ति होती तो वे वैसा करते ही क्यों ?
देखने आये थे ...विद्वानों के उत्तर ...
जवाब देंहटाएंशुक्र है हम झा , गा, माँ में शामिल नहीं है ...!!
बहुत बढ़िया लिखा है आपने! पढ़कर अच्छा लगा!
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