नहीं भाई, मेरी दिमागी हालत बिलकुल ठीक है। और हाँ, नारीवादियों से पंगा लेने का मेरा कोई इरादा भी नहीं है। लेकिन आप सोच रहे होंगे कि फिर इस ...
नहीं भाई, मेरी दिमागी हालत बिलकुल ठीक है। और हाँ, नारीवादियों से पंगा लेने का मेरा कोई इरादा भी नहीं है। लेकिन आप सोच रहे होंगे कि फिर इस तरह ऊल-जलूल सवाल का क्या मतलब है? भला मछलियों और लड़कियों में क्या कोई समानता हो सकती है? तो चलिए बता देते हैं कि इस सवाल की वजह क्या है?
दरअसल उत्तर प्रदेश मत्स्य विभाग ने 29 से 31 जनवरी को लखनऊ में 'मत्स्य मेला' का आयोजन किया था। मेले की संचालन में समति में डा0 अरविंद मिश्र के जुड़े होने के कारण मुझे भी वहाँ जाने का सौभाग्य मिला। वहाँ की रंग-बिरंगी मछलियों को देखते हुए ही मेरे दिमाग में सहसा यह विचार कौंधा। और तभी बहुत पहले लिखी हुई मेरी एक कविता की पंक्तियाँ दिमाग में गूँज उठीं-
जाने कैसे हंसती हैं लड़कियाँ?
पिता की झिड़कियों
माँ की बंदिशों,
भाई जैसे पहरेदार
समाज के लोकाचार,
परम्पराओं, रस्मों के कांटों
पग-पग घूमते शिकारी कुत्तों से
कैसे बचती हैं लड़कियाँ?
जाने कैसे हंसती हैं लड़कियाँ?
मछलियाँ देखने में प्यारी लगती हैं, बेहद चंचल होती हैं, लेकिन इसके बावजूद एक्वेरियम में कैद करके रखी जाती हैं और उन्हें खुद नहीं पता चलता कि कब भूखे मनुष्य की भूख का शिकार बन जाती हैं। क्या लड़कियों की स्थिति भी समाज में वैसी ही नहीं है?
भले ही हम अपनी आजादी का 60वाँ गणतंत्र मना चुके हों, पर आज भी लड़कियां समाज के एक पारदर्शी कवच में ही कैद नजर आती हैं। बावजूद उसके वे हंसती हैं, खिलखिलाती हैं, खुशी से इधर-उधर इतराती फिरती हैं। और इन सबके बीच मछलियों की ही तरह पता नहीं कब भूखे भेडियों की शिकार बन जाती हैं।
मैं सोच रहा था कि 'मत्स्य मेला' पर कुछ लिखूँगा पर पता नहीं कब मेरे 'शाकाहारी दिमाग' में यह विचार अतिक्रमण कर गया और मैं न चाहते हुए भी यह सब लिख गया। वैसे मैंने कुछ गलत लिखा क्या?
Badi gajab ki samanta nikali hai bhai
जवाब देंहटाएं"भले ही हम अपनी आजादी का 60वाँ गणतंत्र मना चुके हों, पर आज भी लड़कियां समाज के एक पारदर्शी कवच में ही कैद नजर आती हैं। बावजूद उसके वे हंसती हैं, खिलखिलाती हैं, खुशी से इधर-उधर इतराती फिरती हैं। और इन सबके बीच मछलियों की ही तरह पता नहीं कब भूखे भेडियों की शिकार बन जाती हैं। "
जवाब देंहटाएंसोचने पर मजबूर कर दिया आपने।
kyoki ladkiya bahut sahasi hoti hai...unko aata hai kaise apne aaap kokhush rakhein. ladkiya khud ko thode me bahut khush rakh sakti hai,aur apne aas paas ke logo ko bhi khush rakh sakti hai. jyoti
जवाब देंहटाएंaur ek baat samay ke sath ladkiya bhi badal gayi hai. ab wo bhi chaloo ban gayi hai...sare chalbaziya unko aati hai jinse aap bhi waqif honge..
जवाब देंहटाएंआपने गलत नहीं कहा सही बात है आज भी लडकियाँ उतनी स्वतन्त्र नहीं है चाहे कुछ कितनी भी साहसी दिखें मगर हालात मछलियों जैसा ही है । धन्यवाद शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंJakir bhai, baat to sahi kahee. mai bhi sahmat hoon. ladkiya sachmuch machliyo ki tarah asurakshit hain
जवाब देंहटाएंKahin aisa to nahee ki chanchalta he dono ki dushman hai?
जवाब देंहटाएंसारी दुनिया में कम ज्यादा यही हाल है
जवाब देंहटाएंपारदर्शी कवच में सुरक्षित लड़कियां भी शिकार हो ही जाती हैं .....
जवाब देंहटाएंबहुत गहरा सटीक झकझोरता चिंतन ...!!
Adbhut chintan...
जवाब देंहटाएंरचना वाकई बढ़िया है.
जवाब देंहटाएंdil ko choo gai ye baatein.....jo kuch bhi aapne likha......vastav ladkiyan raunak...khushiyan hot hai har ghar ki....wo kaha bhi gaya hai na " bin gharni ghar bhoot ka dera" Lekin sawal ye hai ki kya ham sab dohri soch mein nahi jeete ?
जवाब देंहटाएंमुझे तो मत्स्य मेले में भी मछलियों के पीछे भागने की मनाही की गयी थी ,हाँ तितलियाँ जरूर देखी गयीं !
जवाब देंहटाएंKavita choti par bahut prabhavi hai.
जवाब देंहटाएंआपने कहीं से भी गलत नहीं लिखा..।
जवाब देंहटाएंपूर्णतया सहमत हूं आपसे..।
आभार..।
बहुत सही कहा आपने .......आज के बदलते वक़्त में भी लड़कियों का यही हाल है .......बस थोडा तरीका अलग होगया है ......
जवाब देंहटाएंअपना-अपना दृष्टिकोण है, रचना अच्छी है लेकिन हमेशा लड़कियों को बेचारा दिखाना कुछ पचता नहीं है। ये लड़कियां ही घर की रानी होती हैं जहाँ प्रत्येक पुरुष शरण लेता है। हमारी कठिनाई यह है कि हम हमेशा नारी को बेचारी ही चित्रित करते हैं जबकि पुरुष भी उतना ही बेचारा होता है। वह अपने आपको हिंसक जानवर बताने में और दूसरे को अपना शिकार बताकर ही खुश होता है। मैं नारीवादी नहीं हूँ, बस समाजवादी हूँ। लेकिन नारी को जो भी बेचारा बताता है मुझे उसपर तरस अवश्य आता है। बुरा न माने। आज यह फैशन सा हो गया है। नारी भी अपने आपको बेचारा बताने में गौरवान्वित अनुभव करती है। हम तो बड़े गर्व से कहते हैं कि हम माँ हैं। हम ही रचते हैं, हम ही संस्कार देते हैं और हम ही पालते हैं।
जवाब देंहटाएंजाकिर जी बात आप की सही तो है पर मुझे लगता है एक पहलू और भी है-
जवाब देंहटाएंएक्वेरियम में कैद मछलियाँ भी भूखी नहीं रहती नास्ता पानी तो वो भी करती हैं और साथ में ही फ्री मूड में अपने एक्वेरियम में विचरण भी करती हैं अब बात ये है की कभी कभी एक्वेरियम में आटे की गोलियां डालने वाला हाथ डाल के एकाध को निकल लेता है तो क्या करे आखिर नास्ता पानी तो उसे भी चाहिए अब वो भूखा मर जाये तो आप को ऐतराज नहीं होगा क्यूंकि आप शाकाहारी हैं.
एक बात और है अगर वो बेचारा हाथ डाल कर भूल जाये तो मछलियाँ भी खान पान में आप की तरह ताशीर का ध्यान नहीं देतीं.
पर बात ये भी नहीं है बात सिर्फ ये है की मुझे मछ्लिओं और लड़किओं में कोई समानता नहीं दिखती . और वो इसलिए कि
पिता की झिड़कियों से शीखती हैं,
माँ की बंदिशों से समझती हैं ,
भाई जैसे पहरेदार रक्षा में हरदम रहते हैं तैयार
समाज के लोकाचार(जो पुरसों पर भी सामान रूप से लागू होते हैं) से बनाती हैं खुद को मजबूत ,
परम्पराओं, रस्मों के कांटों में खिलती हैं बनकर फूल
घूमते शिकारी कुत्तों को तो अब खुद डराती हैं आज
की लड़कियाँ
इसीलिए आपना पक्ष लेकर मतलब शाधने वालों पर मुस्कुराती हैं आज
की लड़कियाँ
एक और बात माफी मांगकर कहूँगा कि सिर्फ मौके की बात है जाकिर भाई बाहर जा कर देखिये आज कल सरकार हथियारों के लाइसेंस सब को दे रही है और अपने अपने मौके पर शिकार भी सब कर रहे हैं
machhliyon ke sath ladkiyon ki tulna.............. badi lzjwaab ?????? hai . waise lakhon karodon ladikyon ko shandar , chamakdar jar rahne ke yiye uplabdh nahi hota aur na hi koi hath chupke se aakar unka pet bhar jata hai . ladiyan ko band , hawaeen , andhere , sadan bhari diwaron ke beech band hoti hai , jinse log sirph kuchh pane aate hai , kuchh dene nahi . ha in band diwaron me ummeed rahti hai ................. aur han , jab tak hum ladikyoon ko equrairium me band machhaliyan mante rahenge unki ummeed sirph ummeed hi rahegi yatharth ke dharatal par ek arth nahi ban payegi .
जवाब देंहटाएंये सच है .......... चाहे देश ने ६० वर्ष की उम्र पार कर ली है ......... पर माणिक रप्पो से वो अभी भी पुरातन, पोंगा पंथी ही है ..... अच्छा लिखा है जाकिर भाई .........
जवाब देंहटाएंमुझे किसी की एक पंक्ति याद आई..." ज़िन्दगी क्या है जान जाओगे ..रेत पे लाके मछलियाँ रख दो "
जवाब देंहटाएंलगता है जाकिर जी कुवाँरे हैं अभी
जवाब देंहटाएंनहीं तो मगरमच्छ भी आ सकते थे दिमाग में मछलियों की जगह ।
बहुत बढ़िया और बिल्कुल सही लिखा है आपने ! मछलियों में और लड़कियों में क्या खूब समानता ढूंढ़ कर निकाला है आपने!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर विचार
जवाब देंहटाएंआभार ................
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जवाब देंहटाएंaapne kuch bhi galat nhi likha.
जवाब देंहटाएंजलें लकड़ियाँ लोहड़ी, होली बारम्बार।
जवाब देंहटाएंजले रसोईं में कहीं, कहीं घटे व्यभिचार ।
कहीं घटे व्यभिचार, शीत-भर जले अलावा ।
भोगे अत्याचार, जिन्दगी विकट छलावा ।
रविकर अंकुर नवल, कबाड़े पौध कबड़िया ।
आखिर जलना अटल, बचा क्यूँ रखे लकड़ियाँ ।।
Lohri
लकड़ी काटे चीर दे, लक्कड़-हारा रोज ।
लकड़ी भी खोजत-फिरत, व्याकुल अंतिम भोज ।