विज्ञान के धरातल पर बाल मन की मधुर उड़ान।
मम्मी की आवाज सुनकर करम का मूड ऑफ हो गया। कहां वह बैट–बॉल लेकर खेलने जा रहा था और कहां यह होमवर्क। मन ही मन उसे होमवर्क पर बहुत गुस्सा आया। पर मम्मी का हुक्म तो मानना ही था। बैट–बॉल को उसने एक ओर पटका और बस्ता लेकर पढने बैठ गया। उसने गणित की किताब से सवाल को कॉपी पर उतारा और उसे समझने की कोशिश करने लगा।
लेकिन करम का सारा ध्यान तो खेल में रखा था, इसलिए उसे सवाल समझ में नहीं आया। वह सोचने लगा– काश कोई ऐसी मशीन होती, जो सारा होमवर्क कर देती...
देखते ही देखते करम कल्पना लोक में खो गया और जल्द ही उसे नींद ने आ घेरा।
अभी कुछ ही दिन पहले करम ने किसी बाल पत्रिका में पढा था– ‘वैज्ञानिकों को ऐसे रोबोट बनाने में सफलता मिली है, जो मनुष्य की तरह सभी काम करते हैं।’ वह समाचार याद आते ही उसके दिमाग में एक विचार कौंधा– ‘क्यों न एक ऐसा रोबोट बनाया जाए, जो उसका होमवर्क भी कर दे।’
यह सोचकर करम रोमांचित हो उठा। अपनी सोच को अमली जामा पहनाने के लिए उसने लाइब्रेरी की शरण ली। वहां पर उसने रोबोट से सम्बंधित ढेर सारी किताबें पढीं। उन किताबों को पढने के बाद उसे विश्वास हो गया कि वह भी एक रोबोट बना सकता है। फिर क्या था उसने रोबोट बनाने के लिए सामान जुटाना शुरू कर किया।
सबसे पहले करम ने अपना गुल्लक निकाला। गुल्लक में ज्यादा पैसे नहीं थे। उतने रूपयों से रोबोट बनाने का आधा सामान भी नहीं मिला। अब वह क्या करे? और पैसे कहां से लाए? उसने सोचा कि वह अपने पापा से बात करे। लेकिन कहीं वे उसे उल्टा डांटने ही लगे तो? दूसरा रास्ता यह था कि वह मम्मी से बात करे। उसे यह तरीका सही लगा। उसने मम्मी का मूड देखकर अपने मन की बात कही, “अम्मीजान, मैं एक रोबोट बनाना चाहता हूं।”
“अरे वाह, ये तो बहुत अच्छी बात है।” मम्मी ने रोमांचित होकर पूछा, “क्या तुम ऐसा कर पाओगे ?”
“हां मम्मी, बस कुछ रूपयों की जरूरत है।” करम ने पूरे विश्वास के साथ कहा, “रोबोट का सामान लाना है। लेकिन जब तक रोबोट बन न जाए, आप ये बात किसी और को नहीं बताइएगा।”
“ठीक है, लेकिन इससे तुम्हारी पढाई नहीं गडबड होनी चाहिए।”
“जी मम्मी।” करम ने वादा किया।
मम्मी को करम के ऊपर पूरा यकीन था। उन्होंने उसे जरूरत के मुताबिक रूपये दे दिये। करम ने मम्मी का शुक्रिया अदा किया और अपने काम में लग गया।
करम ने किताब में बताई गयी विधि के अनुसार कल–पुर्जों को क्रम में जोडना शुरू कर दिया। इस काम में उसे काफी मेहनत करनी पडी। जहां कहीं पर वह अटक जाता, किताब की शरण में पहुंच जाता। किताब पढने के बाद उसकी सारी समस्या हल हो जाती। वह फिर से अपने काम में जुट जाता।
रोबोट के निर्माण में करम ने दिन–रात एक कर दिया। न उसने दिन को दिन समझा और न ही रात को रात। पढाई के अलावा उसके पास जितना समय बचता था, वह रोबोट के बनाने में लगा देता।
आखिर दो महीने बाद करम की मेहनत रंग लाई। जी–तोड मेहनत के बाद उसका रोबोट तैयार हो गया। देखने में वह बिलकुल मशीनी मानव लगता था।
अपनी इस सफलता पर करम फूला नहीं समाया। उसने अपने ही नाम पर रोबोट का नाम ‘राजू’ रखा। जब उसने मम्मी–पापा को अपना रोबोट दिखाया, तो वे बहुत खुश हुए। उन्होंने करम की इस उपलब्धि पर उसे ढेर सारी बधाइयां दीं। दोस्तों ने तो रोबोट को देखकर दांतों तले उंगली ही दबा ली। मास्टर जी ने भी उसकी जी–भर कर प्रशंसा की। सभी लोगों से अपनी तारीफ सुनकर करम फूला नहीं समाया।
अब रोबोट के टेस्ट की बारी थी। आखिरकार वह समय भी आ गया। करम ने रोबोट को आदेश दिया, “जाओ राजू, मेरा होमवर्क हल करो।”
अपने मालिक का हुक्म सुनने के बाद भी रोबोट शान्त रहा। यह देखकर करम का पारा चढ गया। उसने रोबोट को दुबारा आदेश दिया, “राजू, तुमने सुना नहीं? मेरा होमवर्क करो।”
पर रोबोट इस बार भी कुछ नहीं बोला। उसके पेट पर लगी स्क्रीन पर कोई संदेश लिख कर आ रहा था। करम ने उस संदेश पर ध्यान नहीं दिया। अपने आदेश की अवहेलना देखकर उसका शरीर क्रोध के कारण कांपने लगा। उसने गुस्से में एक झापड रोबोट के गाल पर रसीद कर दिया।
रोबोट लोहे का बना हुआ था। रोबोट के चोट लगने के बजाए करम का हाथ ही झन्ना गया। वह अपना हाथ पकड कर रह गया और रोबोट को बुरा–भला कहने लगा। तभी करम के मास्टर जी वहां आ गये। वे बोले, “ये क्या कर रहे हो करम? तुम अपना गुस्सा रोबोट पर क्यों उतार रहे हो?”
“मास्टर जी, ये रोबोट मेरा कहना ही नहीं मानता।” करम ने अपनी झेंप मिटाने के लिए रोबोट पर इल्जाम मढा।
“इसमें इसकी क्या गलती?” मास्टरजी ने रोबोट का पक्ष लिया।
“गलती क्यों नहीं है मास्टर जी ?” करम ने सवाल किया, “मैंने आखिर इसे होमवर्क करने के लिए ही तो बनाया है ?”
“हां, पर तुमने सिर्फ एक लोहे का ढांचा बनाया है। अगर तुम चाहते हो कि यह रोबोट सवाल भी करे, तो तुम्हें इसके मस्तिष्क में प्रोग्राम करके गणित के सूत्र भी डालने होंगे। और यह बहुत मुश्किल काम है।”
“मुश्किल काम है?” मास्टर जी की बात सुनकर करम हताश हो गया। उसने बुझे मन से पूछा, “इसमें कितना समय लग सकता है ?”
“इसमें दो–तीन साल भी लग सकता है। इसके लिए तुम्हें बहुत सारी किताबें पढनी होंगी, प्रोग्रामिंग सीखनी होगी, सवालों के सूत्रों को कोड में बदलना होगा, फिर उन्हें रोबोट के मस्तिष्क में...”
“रहने दीजिए मास्टर जी,” करम ने मास्टर जी की बात बीच में ही काट दी, “इससे तो अच्छा है कि मैं अपने सवाल खुद ही लगा लूं।”
और तभी करम की नींद टूट गयी। ये क्या? क्या वह सपना देख रहा था? हां, वह तो मेज पर बैठा–बैठा सो रहा था। मम्मी के पैरों की आहट सुनकर उसकी नींद टूटी थी। कुछ ही पलों में मम्मी पास आ गयीं। वे बोलीं, “क्या सोच रहे हो बेटा?”
“ज...जी कुछ नहीं।” करम चौंकते हुए बोला और फिर सवाल लगाने में व्यस्त हो गया। ताकि उसके बाद वह आराम से खेलने के लिए जा सके।
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अच्छी विज्ञान कथा !
जवाब देंहटाएंbahut badhiya......aapke pryas sarahniya hai..ant thoda aor rochak bana dete....
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लगा पढ़कर. लिखते रहिये.
जवाब देंहटाएंachha lekhan.....
जवाब देंहटाएंMaibhee pahali baar aapke blogpe aayi.....abhi aur padhna hai....lekin jobhi padha,bada,seedha-sada aur achha laga!
जवाब देंहटाएंShama
'मूड आफ हो गया', आजकल बच्चों का मूड आफ होने लगा है. कोई काम उनकी मर्जी का न हो तो उनका मूड आफ हो जाता है. होम वर्क करना उन्हें एक वोझ लगता है. कभी-कभी मुझे लगता है कि हमारे देश में शिक्षा बच्चों को ग़लत रास्ते पर ले जा रही है.
जवाब देंहटाएं" a nice story to read" great
जवाब देंहटाएंregards
Sundar kahani hai. Badhayi.
जवाब देंहटाएंवाह क्या कहानी हे, वेसे मेने देखा हे बच्चे पढने के वक्त अपने भुले काम निपटाना चाहते हे, फ़िर ट्टी पेशाब ओर फ़िर सिर दर्द ...पता नही क्यो, बहुत ही सुन्दर कहानी हे
जवाब देंहटाएंbal man ka behad umda chitran
जवाब देंहटाएंmain apne bhateeje ko zaroor padhaunga is kahani ko
achchi aur seekh bahri kahani likhne ke liye badhai
bahut badhiya seekh dene wali kahani hai... kahate hain na apne mare swarg bhi nahi dikhta..
जवाब देंहटाएंwaiting for next story
जवाब देंहटाएंमैने मेरे ब्लोग पर आपके ब्लोग की लिंक दे रखी है।
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया!! इसी तरह से लिखते रहिए !
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी कहानी लिखते रहिए |
जवाब देंहटाएंnice
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