बेटा तुम्हें सुनाऊं कैसे कोई परी कहानी ? मुझको चिंता घेरे कैसे आए राशन पानी।। घर में चावल–दाल नहीं है, गैस बजाए ताली। मंहगाई से डर...
बेटा तुम्हें सुनाऊं कैसे कोई परी कहानी ?
मुझको चिंता घेरे कैसे आए राशन पानी।।
घर में चावल–दाल नहीं है, गैस बजाए ताली।
मंहगाई से डरी पड़ी है, डलिया सब्ज़ी वाली।
मुझको चिंता घेरे कैसे आए राशन पानी।।
बहन तेरी बीमार पड़ी है आए उसे बुखार।
बापू श्री के सिर में दर्द है बीत गये दिन चार।
तुझको भी तो लगी हुई है खांसी आनी–जानी।
फीस अगर न जमा हुई तो नाम तेरा कट जाए।
एक महीने की तनख्वाह, दो दिन में बंट जाए।
बिन पैसों के मिले नहीं है, यहां बूद भी पानी।
मुझको चिंता घेरे कैसे आए राशन पानी।।
मुझको चिंता घेरे कैसे आए राशन पानी।।
घर में चावल–दाल नहीं है, गैस बजाए ताली।
मंहगाई से डरी पड़ी है, डलिया सब्ज़ी वाली।
भूखे पेट भजन न होता, बात है बड़ी पुरानी।
मुझको चिंता घेरे कैसे आए राशन पानी।।
बहन तेरी बीमार पड़ी है आए उसे बुखार।
बापू श्री के सिर में दर्द है बीत गये दिन चार।
तुझको भी तो लगी हुई है खांसी आनी–जानी।
मुझको चिंता घेरे कैसे आए राशन पानी।।
फीस अगर न जमा हुई तो नाम तेरा कट जाए।
एक महीने की तनख्वाह, दो दिन में बंट जाए।
बिन पैसों के मिले नहीं है, यहां बूद भी पानी।
मुझको चिंता घेरे कैसे आए राशन पानी।।
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सुंदर भाव भरी सच्ची कविता लिखी है आपने रजनीश जी ..
हटाएंसुन्दर अभिव्यक्ति है। बचपन अनजान है तभी तो अनूठा है।
हटाएंफीस अगर न जमा हुई तो नाम तेरा कट जाए।
हटाएंएक महीने की तनख्वाह, दो दिन में बंट जाए।
बिन पैसों के मिले नहीं है, यहां बूद भी पानी।
मुझको चिंता घेरे कैसे आए राशन पानी।।
shreeman ji ..bal kavita to ab rahi nahi..ye to hamari kavita hai.
बहुत उम्दा रचना, जाकिर भाई. वाह!
हटाएंye kavita hum sab ki kahani hai.
हटाएंsocha tha bhul jayege. par Satya say kaise aur kab tak koi door rah sakta hai. meri shubkamnaye.
हटाएंsantosh kumar gupta
rajeshcalling@yahoo.com
bahut yathaarth vadi kavita....sundar.
हटाएंajgar kare na chakri, panchee kare na kam
हटाएंdas malooka kah gaye, sabke data Ram
Jisne pet diya hai, wahi khana bhi dega. don't worry.
Sant ji
कविता तो अतीव सुंदर ,मगर साहित्यकार की चिर व्यथा आज भी व्यथित करने वाली है.
हटाएंsach me aapne aam aadmi ki wytha ka itna sundar chitran kiya ki man bhig gya
हटाएंबहुत सुंदर कविता ,ऐसा लगा अधिकांश भारतीय परिवार के हाल का वर्णन आपने करे दिया ,आज एक सामान्य माध्यम वर्गीय परिवारों की यह मूक आवाज है जो आपके कलम से निकली है,इस कविता के माध्यम से आपने टूटती जा रही पारिवारिक व्यवस्था को भी गुजरी हुई पीढी और आने वाली पीढी के प्रति दायित्वों को सजग आवाज दी है,नहीं तो लोग आज सिर्फ पति पत्नी बच्चो तक ही सीमित होते जा रहे.
हटाएंबहुत ही अच्छी रचना हे आपकी - बधाई
हटाएंyathartha vaadi kavita ...bahut achchhe...!
हटाएंसच्ची बात है. मंहगाई ने तो कल्पना जगत को भी प्रभावित कर दिया है.
हटाएंBohot marmik rachna hai...par bachhonko in sabka kya pata??Unki duniya unki maa aur pitaa hote hain ??Unhen kalpanki udanse kyon vanchit kiya jay ? Mai mudke dekhtee hun tab samajh aata hai ki mera bachpanbhee bohot saare abhawose guzara...us waqt samajh nahee thee...par mujhe kitneehee parikathayen sunayee gayeen !
हटाएंAap mai pachhta rahee hun ki mujhe meree pariwarik zimmedariyon ne istarah baandhe rakha ki mai kahaniya bachhonko nahee suna payee...uar ab beeta samay lautega nahee..( Aankhen Thak Na Jayen", ye lekh mere blogpe hai....shayd isee lekhse mera sahee maynese lekhan shuru hua...ek darki syahee me doobee lekhnee, mere jeevanki kahanee likhtee gayi...kagazpe utartee gayi, aur raato raat mai lognke dilon me bas gayee. Ye safar shuru hua,Loksatta" ke ek column se( India Express ka Marathi version, tatha "Navbharat Timees" Hindi).Gar aap padhen to mujhe behad khushee hogee ! Ye ek vinamr prarthna hai aapse!
यह कविता दिल को छूती है । यह तो हर मध्यवर्गीय परिवार कि कहानी है ।
हटाएंsachhai ko ujagar karti kavita
हटाएंज़ाकिर जी, क्या इस कविता को 'अनुराग बाल पत्रिका' में दिया जा सकता है... मैं कभी-कभी इस पत्रिका के लिए सामग्री संबंधी सहायता करता हूं। आपके जवाब का इंतज़ार रहेगा।
हटाएंsandeep1may@gmail.com