नन्हें मुन्नों के लिए रची गयी एक प्रेरक बाल कविता।
जंगल में घुड़दौड़ हुयी, तो पहुँचे घोड़े बीस।
धुन का पक्का एक गधा भी पहुँचा पहन कमीज।
खुद को घोड़ों संग देख गदहे ने मुँह को खोला।
भड़क उठे घोड़े जब उसने ढ़ेचूँ - ढ़ेचूँ बोला।
घोड़ों के सरदार ने कहा- सुनिए ओ श्रीमान।
गधा हमारे साथ रहे, ये हम सबका अपमान।
पीला-लाल किए मुँह घोड़े गये रेस से बाहर।
गदहे भैया बड़ी शान से दौड़े पूँछ उठाकर।
हिम्मत हारे नहीं गधे जी मेडल लेकर आए।
झूठी शान दिखाकर घोड़े बेमतलब पछताए।
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