चंदा जब आंचल सरकाए, याद तुम्हारी आती है। कोयल जब पंचम में गाए, याद तुम्हारी आती है। रजनी का आंचल जब–जब खोकर अपनी स्याही को, ऊषा के रं...
चंदा जब आंचल सरकाए, याद तुम्हारी आती है।
कोयल जब पंचम में गाए, याद तुम्हारी आती है।
रजनी का आंचल जब–जब खोकर अपनी स्याही को,
ऊषा के रंग में रंग जाए याद तुम्हारी आती है।
घर, बाहर व दफ्तर के इस रपटीले जीवन में,
एक पल जब सुकून का आए, याद तुम्हारी आती है।
संत्रासों, सघर्षों के जंगल में जब कभी – कभी,
मलय पवन का झोंका आए, याद तुम्हारी आती है।
छल–प्रपंच के चक्रव्यूह में फंस कर टूट रहा हो मन,
और कोई हौसला बढ़ाए, याद तुम्हारी आती है।
किसी पार्क का कोना हो हम हों और तनहाई हो,
हंसों का जोड़ा दिख जाए याद तुम्हारी आती है।
कोयल जब पंचम में गाए, याद तुम्हारी आती है।
रजनी का आंचल जब–जब खोकर अपनी स्याही को,
ऊषा के रंग में रंग जाए याद तुम्हारी आती है।
घर, बाहर व दफ्तर के इस रपटीले जीवन में,
एक पल जब सुकून का आए, याद तुम्हारी आती है।
संत्रासों, सघर्षों के जंगल में जब कभी – कभी,
मलय पवन का झोंका आए, याद तुम्हारी आती है।
छल–प्रपंच के चक्रव्यूह में फंस कर टूट रहा हो मन,
और कोई हौसला बढ़ाए, याद तुम्हारी आती है।
किसी पार्क का कोना हो हम हों और तनहाई हो,
हंसों का जोड़ा दिख जाए याद तुम्हारी आती है।
A Hindi Poem (Geet) by Zakir Ali 'Rajneesh'
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बहुत ही लयबद्ध गीत गहरे भाव जो धीमें-2 हृदय की गहराई में उतरते चले गये।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंकिसी पार्क का कोना हो हम हों और तनहाई हो,
जवाब देंहटाएंहंसों का जोड़ा दिख जाए याद तुम्हारी आती है।
very very beautiful lines
बहुत अच्छा लिखा है भाई...सुंदर कविता...बधाई
जवाब देंहटाएंतीन दिन के अवकाश (विवाह की वर्षगांठ के उपलक्ष्य में) एवं कम्प्यूटर पर वायरस के अटैक के कारण टिप्पणी नहीं कर पाने का क्षमापार्थी हूँ. मगर आपको पढ़ रहा हूँ. अच्छा लग रहा है.
जवाब देंहटाएंमन को छू लेने वला रूमानी गीत !
जवाब देंहटाएंरजनी का आंचल जब–जब खोकर अपनी स्याही को,
जवाब देंहटाएंऊषा के रंग में रंग जाए याद तुम्हारी आती है।
बहुत सुन्दर ।
जाकिर भाई शायद आपको जानकारी हो दिल्ली में सुनिताजी एक गोष्ठी कर रही हैं। समय मिलें तो दिल्ली अवश्य आवें। आपसे मिलकर खुशी होगी। ज्यादा जानकारी यहॉं उपलब्ध है। http://shanoospoem.blogspot.com/
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