(वैज्ञानिक प्रयोग पर आधारित जाकिर अली रजनीश की एक चर्चित बाल विज्ञान कथा।) “ भैया आपने मेरी चॉकलेट ली ?” अपने बैग की जेब को खाली पाकर किर...
(वैज्ञानिक प्रयोग पर आधारित जाकिर अली रजनीश की एक चर्चित बाल विज्ञान कथा।)
“भैया आपने मेरी चॉकलेट ली?” अपने बैग की जेब को खाली पाकर किरन ने बगल में बैठे वरूण से पूछा। वरूण उस समय सवाल लगाने में व्यस्त था। उसने किरन की आवाज को अनसुना कर दिया।
किरन इस बार वरूण के पास जा पहुंची और उसे हिलाते हुए बोली, “भैया, आपने मेरा चॉकलेट क्यों लिया? मुझे मेरा चॉकलेट वापस करिए।”
“चॉकलेट?” वरूण एकदम से चौंका, “कौन सा चाकलेट?”
“यहां मेरे बैग में रखा हुआ था, आपने ही निकाला है।”
“देखो किरन, मुझे परेशान मत करो। मैं तुम्हारा चॉकलेट–वाकलेट नहीं जानता।”
“मैं नहीं जानती, आप मेरा चॉकलेट वापस करिए।” कहते हुए किरन तेज आवाज में रोने लगी। यह देखकर वरूण घबरा गया। वह उसे चुप कराने लगा।
तभी चाचाजी वहां आ गये। किरन चाचाजी को देखते ही उनसे लिपट गयी और सुबकते हुए बोली, “चाचाजी, भैया ने मेरा चॉकलेट ले लिया।”
“नहीं चाचाजी, यह झूठ बोल रही है। मैंने इसका चॉकलेट छुआ तक नहीं।” वरूण ने तुरंत सफाई पेश की। चाचाजी ने वरूण की तरफ घूर कर देखा, “तुम मेरे कमरे में आओ, अभी पता लग जाता है कि तुम झूठ बोल रहे हो या सच?” कहते हुए वे किरन को साथ लेकर अपने कमरे की ओर चल पडे। वरूण भी चुपचाप उनके पीछे हो लिया।
“हां, जिन्होंने यह खोज की थी कि पेडों में भी जीवन होता है।” वरूण ने जवाब दिया।
“शाबास।” चाचाजी बोले, “अच्छा, क्या तुम उस यंत्र का नाम बता सकते हो ?”
“क्रेस्कोग्राफ।” अपनी चॉकलेट खोने की बात भूलकर किरन चहकी।
“शाबास बेटी।” चाचाजी ने उसके सिर पर हाथ फेरा, “बसु की उस खोज से प्रेरित होकर न्यूयार्क के बैक्सटर नामक वैज्ञानिक ने ‘पॉलीग्राफ’ यंत्र बनाया।”
“चाचाजी उस यंत्र से क्या होता था ?” ये प्रश्न वरूण का था।
“उस यंत्र की सहायता से बैक्सटर ने दिखाया कि पेड–पौधे भी सुख और दु:ख का अनुभव करते हैं। वे दूसरों के मन की बात को समझते हैं। और अगर कोई उनके सामने झूठ बाले, तो वे उसकी चोरी भी पकड लेते हैं।”
“वो कैसे चाचाजी?” किरन से रहा न गया।
“ये यंत्र जो तुम लोग सामने देख रहे हो, ये पॉलीग्राफ है। इसे जब हम किसी पौधे से जोडते हैं, तो ये अपने ग्राफ पर पौधे की प्रतिक्रिया को व्यक्त करता है।” कहने के साथ चाचाजी पॉलीगाफ को एक गमले में लगे पौधे से जोडने लगे। उसके बाद उन्होंने दोनों को यह भी बताया कि कि ग्राफ पर बने चिन्हों को किस प्रकार से पढा जाता है।
सारी बात समझाने के के बाद चाचाजी वरूण से बोले, “हां वरूण, क्या तुमने किरन की चॉकलेट ली है?”
“नहीं चाचाजी, मैंने किरन की चॉकलेट छुई तक नहीं।” वरूण ने गम्भीरता से जवाब दिया।
चाचाजी और किरन की नजर पॉलीग्राफ पर ही थी। आश्चर्य उसने कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की। यह देखकर वरूण चहक उठा, “देखा चाचाजी, पॉलीग्राफ ने कुछ नहीं कहा। अब तो आपको मेरी बात पर यकीन हो गया?”
“हां, तुम तो वाकई सच बोल रहे हो।” चाचाजी मुस्कराए।
“पर चाचाजी, फिर मेरी चाकलेट कहां गयी?” किरन परेशान हो उठी।
तीनों लोग सोच में पड गये। किसी की कुछ समझ में नहीं आ रहा था। तभी उनका पालतू कुत्ता टॉमी वहां आ गया। टॉमी को देखकर वरूण को मजाक सूझा। वह टॉमी से बोला, बोला, “टॉमी, तुमने किरन की चाकलेट तो नहीं चुराई?”
वरूण की बात सुनकर टॉमी जोर–जोर से भौकने लगा। जैसे चोरी का इल्जाम उसे बहुत बुरा लगा हो। अचानक पॉलीग्राफ में हलचल हुई। वह अपने ग्राफ पर कोई संकेत अंकित करने लगा। सभी लोगों की नजरें ग्राफ की तरफ घूम गयीं। पॉलीग्राफ का संकेत पढकर चाचाजी का चेहरा खिल उठा। वे बोले, “किरन, तुम्हारा चोर पकडा गया।”
“कौन है चोर?” किरन और वरूण दोनों एक साथ बोले।
“पॉलीग्राफ के अनुसार तुम्हारा चोर टॉमी है। ...ये देखो, इसके पंजे में लगी हुई चॉकलेट और इसके मुंह से आती हुई चॉकलेट की गंध इसकी गवाह है।” चाचाजी ने अपनी जासूसी क्षमता का परिचय दिया।
किरन ने ध्यान से देखा। टॉमी के दाएं पंजे में थोडी सी चॉकलेट लगी हुई थी। यह देखकर किरन मुस्कराई और टॉमी के कान उमेठते हुए बोली , “अच्छा, तो अब तुम चोरी भी करने लगे?”
“भैया आपने मेरी चॉकलेट ली?” अपने बैग की जेब को खाली पाकर किरन ने बगल में बैठे वरूण से पूछा। वरूण उस समय सवाल लगाने में व्यस्त था। उसने किरन की आवाज को अनसुना कर दिया।
किरन इस बार वरूण के पास जा पहुंची और उसे हिलाते हुए बोली, “भैया, आपने मेरा चॉकलेट क्यों लिया? मुझे मेरा चॉकलेट वापस करिए।”
“चॉकलेट?” वरूण एकदम से चौंका, “कौन सा चाकलेट?”
“यहां मेरे बैग में रखा हुआ था, आपने ही निकाला है।”
“देखो किरन, मुझे परेशान मत करो। मैं तुम्हारा चॉकलेट–वाकलेट नहीं जानता।”
“मैं नहीं जानती, आप मेरा चॉकलेट वापस करिए।” कहते हुए किरन तेज आवाज में रोने लगी। यह देखकर वरूण घबरा गया। वह उसे चुप कराने लगा।
तभी चाचाजी वहां आ गये। किरन चाचाजी को देखते ही उनसे लिपट गयी और सुबकते हुए बोली, “चाचाजी, भैया ने मेरा चॉकलेट ले लिया।”
“नहीं चाचाजी, यह झूठ बोल रही है। मैंने इसका चॉकलेट छुआ तक नहीं।” वरूण ने तुरंत सफाई पेश की। चाचाजी ने वरूण की तरफ घूर कर देखा, “तुम मेरे कमरे में आओ, अभी पता लग जाता है कि तुम झूठ बोल रहे हो या सच?” कहते हुए वे किरन को साथ लेकर अपने कमरे की ओर चल पडे। वरूण भी चुपचाप उनके पीछे हो लिया।
चाचाजी के कमरे में एक बडी सी चटाई बिछी हुई थी। चटाई पर एक यंत्र रखा हुआ था। यंत्र के आस–पास तमाम तरह के गमले रखे हुए थे। चाचाजी चटाई पर बैठते हुए बोले, “तुम लोगों ने वैज्ञानिक जगदीश चंद्र बसु का नाम सुना है?”
“हां, जिन्होंने यह खोज की थी कि पेडों में भी जीवन होता है।” वरूण ने जवाब दिया।
“शाबास।” चाचाजी बोले, “अच्छा, क्या तुम उस यंत्र का नाम बता सकते हो ?”
“क्रेस्कोग्राफ।” अपनी चॉकलेट खोने की बात भूलकर किरन चहकी।
“शाबास बेटी।” चाचाजी ने उसके सिर पर हाथ फेरा, “बसु की उस खोज से प्रेरित होकर न्यूयार्क के बैक्सटर नामक वैज्ञानिक ने ‘पॉलीग्राफ’ यंत्र बनाया।”
“चाचाजी उस यंत्र से क्या होता था ?” ये प्रश्न वरूण का था।
“उस यंत्र की सहायता से बैक्सटर ने दिखाया कि पेड–पौधे भी सुख और दु:ख का अनुभव करते हैं। वे दूसरों के मन की बात को समझते हैं। और अगर कोई उनके सामने झूठ बाले, तो वे उसकी चोरी भी पकड लेते हैं।”
“वो कैसे चाचाजी?” किरन से रहा न गया।
“ये यंत्र जो तुम लोग सामने देख रहे हो, ये पॉलीग्राफ है। इसे जब हम किसी पौधे से जोडते हैं, तो ये अपने ग्राफ पर पौधे की प्रतिक्रिया को व्यक्त करता है।” कहने के साथ चाचाजी पॉलीगाफ को एक गमले में लगे पौधे से जोडने लगे। उसके बाद उन्होंने दोनों को यह भी बताया कि कि ग्राफ पर बने चिन्हों को किस प्रकार से पढा जाता है।
सारी बात समझाने के के बाद चाचाजी वरूण से बोले, “हां वरूण, क्या तुमने किरन की चॉकलेट ली है?”
“नहीं चाचाजी, मैंने किरन की चॉकलेट छुई तक नहीं।” वरूण ने गम्भीरता से जवाब दिया।
चाचाजी और किरन की नजर पॉलीग्राफ पर ही थी। आश्चर्य उसने कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की। यह देखकर वरूण चहक उठा, “देखा चाचाजी, पॉलीग्राफ ने कुछ नहीं कहा। अब तो आपको मेरी बात पर यकीन हो गया?”
“हां, तुम तो वाकई सच बोल रहे हो।” चाचाजी मुस्कराए।
“पर चाचाजी, फिर मेरी चाकलेट कहां गयी?” किरन परेशान हो उठी।
तीनों लोग सोच में पड गये। किसी की कुछ समझ में नहीं आ रहा था। तभी उनका पालतू कुत्ता टॉमी वहां आ गया। टॉमी को देखकर वरूण को मजाक सूझा। वह टॉमी से बोला, बोला, “टॉमी, तुमने किरन की चाकलेट तो नहीं चुराई?”
वरूण की बात सुनकर टॉमी जोर–जोर से भौकने लगा। जैसे चोरी का इल्जाम उसे बहुत बुरा लगा हो। अचानक पॉलीग्राफ में हलचल हुई। वह अपने ग्राफ पर कोई संकेत अंकित करने लगा। सभी लोगों की नजरें ग्राफ की तरफ घूम गयीं। पॉलीग्राफ का संकेत पढकर चाचाजी का चेहरा खिल उठा। वे बोले, “किरन, तुम्हारा चोर पकडा गया।”
“कौन है चोर?” किरन और वरूण दोनों एक साथ बोले।
“पॉलीग्राफ के अनुसार तुम्हारा चोर टॉमी है। ...ये देखो, इसके पंजे में लगी हुई चॉकलेट और इसके मुंह से आती हुई चॉकलेट की गंध इसकी गवाह है।” चाचाजी ने अपनी जासूसी क्षमता का परिचय दिया।
किरन ने ध्यान से देखा। टॉमी के दाएं पंजे में थोडी सी चॉकलेट लगी हुई थी। यह देखकर किरन मुस्कराई और टॉमी के कान उमेठते हुए बोली , “अच्छा, तो अब तुम चोरी भी करने लगे?”
जवाब में टॉमी ने अपना सिर किरन के पैरों पर रख दिया और कूं–कूं करने लगा। जैसे कह रहा हो कि इस बार मुझे माफ कर दो, आगे से मैं ऐसी गल्ती नहीं करूंगा।
संपर्क सूत्र: zakirlko AT gmail DOT com
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अच्छी कहानी है।
हटाएंइतना ही कहूंगा कि वाह क्या बात है.
हटाएंबहुत सुंदर कहानी कही…।
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