शाम हुई हज़रतगंज की सड़कें खिलीं दो सखियां मिलीं हाय, हैलो के बाद वे थोड़ा पास आईं मुस्कराकर प्यार से तमाम औपचारिकताएं निभाईं इतने म...
शाम हुई
हज़रतगंज की सड़कें खिलीं
दो सखियां मिलीं
हाय, हैलो के बाद
वे थोड़ा पास आईं
मुस्कराकर प्यार से
तमाम औपचारिकताएं निभाईं
इतने में एक बोली
बहन, बड़ी दुबली लगती हो
लोग तो मुटा रहे हैं
फिर तुम क्यों पतली दिखती हो?
हमारे लिए तो आदमी
खूब संतान पैदा कर रहा है
भारत अपने ही भीतर
सम्पूर्ण विश्व भर रहा है
फिरभी तुम्हारा क्षेत्रफल कम है
आखिर तुम्हें किस बात का गम है?
दूसरी लजाई, सकुचाई
फिर धीरे से
उसने अपनी जीभ चलाई
बहन आज हर कहीं
एड्स का डंका बज रहा है
भ्रष्टाचार की तरह
स्वच्छंद डांस कर रहा है
इसी डर से मनुष्यों के
पास नहीं जाती हूं
मारती हूं मन को
भूखी सो जाती हूं।
keywords: hasya kavita, vyangya kavita, हज़रतगंज की सड़कें खिलीं
दो सखियां मिलीं
हाय, हैलो के बाद
वे थोड़ा पास आईं
मुस्कराकर प्यार से
तमाम औपचारिकताएं निभाईं
इतने में एक बोली
बहन, बड़ी दुबली लगती हो
लोग तो मुटा रहे हैं
फिर तुम क्यों पतली दिखती हो?
हमारे लिए तो आदमी
खूब संतान पैदा कर रहा है
भारत अपने ही भीतर
सम्पूर्ण विश्व भर रहा है
फिरभी तुम्हारा क्षेत्रफल कम है
आखिर तुम्हें किस बात का गम है?
दूसरी लजाई, सकुचाई
फिर धीरे से
उसने अपनी जीभ चलाई
बहन आज हर कहीं
एड्स का डंका बज रहा है
भ्रष्टाचार की तरह
स्वच्छंद डांस कर रहा है
इसी डर से मनुष्यों के
पास नहीं जाती हूं
मारती हूं मन को
भूखी सो जाती हूं।
COMMENTS