एक बार मैं दूर की दावत में गया तर माल पाकर कुछ ज्यादा की गटक गया रात में मिली खन्दक सी चारपाई और कोई चारा न देख मैं उसमें सटक गया...
एक बार मैं
दूर की दावत में गया
तर माल पाकर
कुछ ज्यादा की गटक गया
रात में मिली
खन्दक सी चारपाई
और कोई चारा न देख
मैं उसमें सटक गया
घूमने लगा ख्वाबों में
परियों के शहर गया
सौन्दर्य मलिकाओं ने
दिल मेरा लूटा
तभी चुभी सुइयां
ख्वाब मेरा टूटा
देखकर हाल तब
रह गया दंग
खटिया में छिड़ी थी
एक अनोखी जंग
एक ओर खटमल
एक ओर मच्छर
बीच में फंसा मैं
बनके घनचक्कर
दोनों में दांव लगे
बाजी कौन मारे
ऐसे लगे झटके
अंग–अंग हारे
सारी रात बना मैं
प्लासी का मैदान
फिरती रही मंदराचल सी
मेरी नन्हीं जान
सुबह जब शक्ल देखी
देख कर घबराया
राक्षस सा मुझे अपना
रूप नज़र आया
पहने जो कपड़े
एक भी नहीं आए
अपनी दुर्दशा पर
आठ–आठ आंसू बहाए
पकड़े मैंने कान
किया फिर ये प्रण
दावत में नहीं जाऊंगा
चाहे राष्ट्रपति का हो निमंत्रण।
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तर माल पाकर
कुछ ज्यादा की गटक गया
रात में मिली
खन्दक सी चारपाई
और कोई चारा न देख
मैं उसमें सटक गया
घूमने लगा ख्वाबों में
परियों के शहर गया
सौन्दर्य मलिकाओं ने
दिल मेरा लूटा
तभी चुभी सुइयां
ख्वाब मेरा टूटा
देखकर हाल तब
रह गया दंग
खटिया में छिड़ी थी
एक अनोखी जंग
एक ओर खटमल
एक ओर मच्छर
बीच में फंसा मैं
बनके घनचक्कर
दोनों में दांव लगे
बाजी कौन मारे
ऐसे लगे झटके
अंग–अंग हारे
सारी रात बना मैं
प्लासी का मैदान
फिरती रही मंदराचल सी
मेरी नन्हीं जान
सुबह जब शक्ल देखी
देख कर घबराया
राक्षस सा मुझे अपना
रूप नज़र आया
पहने जो कपड़े
एक भी नहीं आए
अपनी दुर्दशा पर
आठ–आठ आंसू बहाए
पकड़े मैंने कान
किया फिर ये प्रण
दावत में नहीं जाऊंगा
चाहे राष्ट्रपति का हो निमंत्रण।
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