मैं निराश होकर रोज़गार कार्यालय से बाहर आया बाबूजी कुछ दे दो का स्वर कानों से टकराया मैं चौंका, फिर झुझलाया और हड़काया ओ उल्लू के पट...
मैं निराश होकर
रोज़गार कार्यालय से बाहर आया
बाबूजी कुछ दे दो
का स्वर कानों से टकराया
मैं चौंका, फिर झुझलाया
और हड़काया
ओ उल्लू के पट्ठे
दिखते हो हट्टे–कट्टे
फिर भी मांगते हो।
वह बोला–
मैं लगूं तुम्हारा भाई
फिर क्यों मुझे डांटते हो?
मैं सड़कों पर सही
तुम आफिसों में मांगते हो।
फिर वह आगे बढ़ गया
आवारा कुत्तों की तरह
मैं उसके पीछे लग गया
कुछ दूर जाकर उसने
एक फ्लैट की घन्टी बजाई
थोड़ी देर बाद
एक श्रीमती जी बाहर आईं
वे मेरा डॉयलाग दोहराईं
वह बोला–
ओ देवी
तुम भी लगती हो श्रीदेवी
फिर क्यों घर में पिसती हो?
क्यों नहीं जाकर मुम्बई
फिल्मों में अंग–प्रदर्शन करती हो?
तभी 'बास्टर्ड' का स्वर उभरा
और दरवाज़ा बंद हो गया
मैं उसके साथ
पुन: आगे बढ़ गया।
तभी चुनाव प्रचार करते
नेता से वह टकराया
और आदतन उसने अपना
हाथ आगे बढ़ाया
यह सब देखकर
उनका एक चमचा गुर्राया
ओ लुच्चे, तेरी यह हिम्मत
जो तूने मेरे सरदार से
की मांगने की जुर्रत?
अगर इस बार गये ये जीत
तो अपने दातों से
लेंगे तेरी चमड़ी खींच।
भिखारी ने नज़ाकत समझी
और हाथ जोड़ कर
सब कुछ कह दी
माफ करें सरदार,
मैं तो आपके पैरों की
धूल भी नहीं
आप तो लाइसेंस युक्त हैं
पर मेरे पास
बच्चों के तन को ढ़कने के लिए
कपड़ों की झूल भी नहीं।
यह कहकर, उसने झुकाया सर
और आगे बढ़ा
तभी एक सड़क छाप मजनूं
उससे आ लड़ा
भाईसाब माचिस होगी?
का स्वर हवा में उड़ा
भिखारी ने आंख चढ़ा दी
जैसे कह रहा हो
तुम्हें शर्म नहीं आती?
युवक बोला– इसमें शर्म कैसी
मैं माचिस मांग रहा हूं
तुम्हारी आबरू तो नहीं?
मैं सोचने लगा
हाय, ये कैसी है महामारी?
जिसे देखो वही
बना हुआ है भिखारी।
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बाबूजी कुछ दे दो
का स्वर कानों से टकराया
मैं चौंका, फिर झुझलाया
और हड़काया
ओ उल्लू के पट्ठे
दिखते हो हट्टे–कट्टे
फिर भी मांगते हो।
वह बोला–
मैं लगूं तुम्हारा भाई
फिर क्यों मुझे डांटते हो?
मैं सड़कों पर सही
तुम आफिसों में मांगते हो।
फिर वह आगे बढ़ गया
आवारा कुत्तों की तरह
मैं उसके पीछे लग गया
कुछ दूर जाकर उसने
एक फ्लैट की घन्टी बजाई
थोड़ी देर बाद
एक श्रीमती जी बाहर आईं
वे मेरा डॉयलाग दोहराईं
वह बोला–
ओ देवी
तुम भी लगती हो श्रीदेवी
फिर क्यों घर में पिसती हो?
क्यों नहीं जाकर मुम्बई
फिल्मों में अंग–प्रदर्शन करती हो?
तभी 'बास्टर्ड' का स्वर उभरा
और दरवाज़ा बंद हो गया
मैं उसके साथ
पुन: आगे बढ़ गया।
तभी चुनाव प्रचार करते
नेता से वह टकराया
और आदतन उसने अपना
हाथ आगे बढ़ाया
यह सब देखकर
उनका एक चमचा गुर्राया
ओ लुच्चे, तेरी यह हिम्मत
जो तूने मेरे सरदार से
की मांगने की जुर्रत?
अगर इस बार गये ये जीत
तो अपने दातों से
लेंगे तेरी चमड़ी खींच।
भिखारी ने नज़ाकत समझी
और हाथ जोड़ कर
सब कुछ कह दी
माफ करें सरदार,
मैं तो आपके पैरों की
धूल भी नहीं
आप तो लाइसेंस युक्त हैं
पर मेरे पास
बच्चों के तन को ढ़कने के लिए
कपड़ों की झूल भी नहीं।
यह कहकर, उसने झुकाया सर
और आगे बढ़ा
तभी एक सड़क छाप मजनूं
उससे आ लड़ा
भाईसाब माचिस होगी?
का स्वर हवा में उड़ा
भिखारी ने आंख चढ़ा दी
जैसे कह रहा हो
तुम्हें शर्म नहीं आती?
युवक बोला– इसमें शर्म कैसी
मैं माचिस मांग रहा हूं
तुम्हारी आबरू तो नहीं?
मैं सोचने लगा
हाय, ये कैसी है महामारी?
जिसे देखो वही
बना हुआ है भिखारी।
बहुत सही कटाक्ष !
जवाब देंहटाएंहँसते-हँसते बहुत गहरी बात कह गये…अच्छा लगा पढकर्…
जवाब देंहटाएंसुनीता(शानू)