समकालीन बाल साहित्‍य: स्‍वरूप एवं दृष्टि।

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Bal Sahitya in Hindi Language

समकालीन बालसाहित्‍य संगोष्‍ठी: बाएं से: हेमंत कुमार, उदय प्रताप सिंह, उषा यादव, जाकिर अली रजनीश
‘श्रेष्ठ रचनाएँ अविस्मोरणीय होती हैं। वह एक बार जब स्मृति में बैठ जाती हैं, तो ताउम्र हमारे अचेतन मस्तिष्क में संरक्षित रहती हैं और जीवन के पग-पग पर हमें प्रेरित और निर्देशित करती रहती हैं।’ उपरोक्त विचार उ0प्र0 हिन्दी संस्था्न के कार्यकारी अध्यक्ष श्री उदय प्रताप सिंह ने ‘समकालीन बाल साहित्य ’ विषय पर आयोजित संगोष्ठी में अध्यक्षीय वक्त‍व्य के रूप व्यक्त किये। वे संस्थान द्वारा दिनांक 26 फरवरी, 2013 को निराला सभागार, हिन्दी संस्थान, लखनऊ में आयोजित कार्यक्रम में बोल रहे थे। 

उन्होंने बचपन में पढ़ी एक कहानी का उदाहरण देते हुए कहा कि मुझे यह नहीं याद है कि यह कहानी किसकी लिखी है, लेकिन वह कहानी और उसका मंतव्या मुझे आज भी याद है। और जब भी जीवन में कोई ऐसा क्षण आता है, जहाँ व्याक्ति के कर्म की बात आती है, वह कहानी मेरी स्मृति में कौंध जाती है। इससे स्पष्ट है कि बच्चों को संस्कारित करने, उनमें मानवता के भाव भरने के लिए बाल साहित्य ही एक सार्थक माध्‍यम है। यदि हम इस ओर ठीक तरीके से ध्यान दे लें, तो हमारे देश में आज जो चरित्र का संकट व्याप्ता है, वह समाप्त हो सकता है और हम एक अच्छे और सुंदर समाज का निर्माण कर सकते हैं। 
 
डॉ0 ज़ाकिर अली ‘रजनीश’ ने समकालीन बाल विज्ञान कथाओं के बारे में बोलते हुए कहा कि समाज में विज्ञान एवं टेक्नोलॉजी के बढ़ते प्रभाव के कारण बाल साहित्य में विज्ञान कथाओं की लोकप्रियता बढ़ी है। लेकिन सामान्य कहानी की तुलना में विज्ञान कथा लिखना कठिन है क्यों कि इसके लिए सम्बंधित विषय की वैज्ञानिक जानका‍री भी जरूरी होती है। उसके अभाव में रचना हास्यास्पद बन जाती है। और यह गल्ती कई स्थापित बाल साहित्यकारों द्वारा भी हो रही है। उन्होंने इस अवसर पर विज्ञान कथाओं के संक्षिप्त इतिहास पर भी प्रकाश डाला और विज्ञान कथा तथा सामान्य कथा के बीच के अन्तर पर भी प्रकाश डाला। इसके साथ ही उन्होंने एक ऐसे मानक विज्ञान कथा संग्रह की आवश्यकता पर भी बल दिया, जिसमें आदर्श विज्ञान कथाओं का संकलन किया जाए, जिससे पाठक उसे पढ़कर विज्ञान कथाओं के स्वकरूप और इतिहास से सम्यक रूप से परिचित हो सकें। 

इंटरनेट पर बाल साहित्यि’ विषय पर बोलत हुए डॉ0 हेमंत कुमार ने कहा कि यह प्रसन्नता का विषय है कि इंटरनेट पर बाल साहित्य की पहुँच तेजी से बढ़ रही है। गूगल द्वारा फ्री स्पेस उपलब्ध कराने के बाद से इस दिशा में एक क्रान्ति सी हुई है। उन्होंने बाल साहित्य़ के ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य को रेखांकित करते हुए कहा कि इस दिशा में ‘बालमन’ सबसे पहला ब्लॉग है, जिसने श्रेष्ठ बाल साहित्य को इंटरनेट पर जगह दी। उसके बाद उन्होंने मजदूर बच्चों के द्वारा चलाए जा रहे ‘बाल सजग’, 'नानी की चिट्ठियां' एवं ‘फुलबगिया’ ब्लॉ‍ग का विशेष रूप से जिक्र करते हुए इंटरनेट पर सक्रिय दो दर्जन से अधिक ब्लॉगों की चर्चा की और उनकी उपयोगिता पर प्रकाश डाला। उन्होंने इस अवसर पर वेब पत्रिकाओं पर उपलब्ध बाल साहित्य की भी चर्चा की। इसके साथ ही उन्होंने इस बात पर भी चिंता प्रकट की कि कैसे इन ब्लॉग पत्रिकाओं तक बच्चों को पहुंचाया जाए और कैसे बच्चों को निरापद ढ़ंग से इंटरनेट पर काम करने के लायक बनाया जा सके। 
संगोष्‍ठी में बोलते हुए जाकिर अली रजनीश (श्री टाइम्‍स, लखनऊ)
गाजियाबाद से पधारे श्री रमेश तैलंग ने कथा साहित्य की प्रवृत्तियों एवं स्वरूप पर बोलते हुए कहा कि आज हिन्दी बाल साहित्य का क्षेत्र अत्यंत व्यापक हो गया है। लेकिन बाल साहित्य में लम्बी कहानियाँ कम देखने को मिलती हैं। उन्होंने कहा कि कहानियों में से संवेदनाएँ गायब हो रही है और यांत्रिकता का समावेश हो रहा है। यही कारण है कि एक ढ़र्रे की कहानियां आजकल ज्यादा देखने को मिलती हैं। उन्होंने बाल साहित्य की अनेक कालजयी कहानियों का जिक्र करते हुए उनके संरक्षण की आवश्य‍कता पर बल दिया और कहा कि रचनाकारों और संस्थाओं को इस दिशा में भी सोचना होगा। वह हमारा सुनहरा अतीत है। और उसे संरक्षित करना होगा, तभी हम आने वाली पीढि़यों तक उस अनमोल साहित्य को पहुँचा सकेंगे। 

आगरा से पधारीं डॉ0 उषा यादव ने कहा कि हर व्यचक्ति के भीतर एक निरक्षर बालक बैठा हुआ है, जो अपने बचपन की घटनाओं के बारे में अक्सर सोचता है और उनमें हुए त्रुटियों/गल्तियों को संशोधित करते हुए अपनी जीवनगाथा लिखना चाहता है। हमारी यह आंतरिक अभिलाषा ही बाल साहित्य के उद्गम का मूल कारण है। उन्होंने अपने सम्बोधन में बाल कविता के विभिन्न स्वरूपों पर विस्ता‍र से प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि आज की बाल कविता में बच्चों के सभी भावों को स्थान मिला है, वह उनके हर्ष, आनंद,  सुख-दुख, चिंताओं और उनकी त्रासदियों को सफलता के साथ व्योक्त कर रही है। इसी के साथ उन्होंने बाल कविता के नाम पर आने वाले ‘कचरा साहित्य ’ का भी जिक्र किया और कहा कि हमें इसको चिन्हित करने और इसे बाल साहित्य से अलग करने की दिशा में भी सजग होना होगा। 

संस्थान के प्रधान सम्पादक श्री अनिल मिश्र ने इस अवसर पर आमंत्रित वक्ताओं का उत्तरीय पहनाकर स्वागत किया। कार्यक्रम का संचालन संस्थान की प्रकाशन अधिकारी डॉ0 अमिता दुबे ने किया। 
दैनिक पायनियर हिन्‍दी में प्रकाशित समाचार
कार्यक्रम के बाद अनौपचारिक रूप से बोलते हुए संस्थान के कार्यकारी अध्यक्ष डॉ0 उदय प्रताप सिंह ने कहा कि आप लोगों ने पिछले दिनों बाल साहित्य को लेकर जो चिन्ताएँ प्रदर्शित की थीं, यह संगोष्ठी उसी का सुफल है। उन्होंने बताया कि बाल साहित्य को प्रोत्साहित करने, उसे अधिकाधिक बच्चों तक पहुंचाने तथा संस्थान की पत्रिका ‘बालवाणी’ को और अधिक बेहतर बनाने के लिए संस्थान प्रयासरत है। इस सम्‍बंध में उन्‍होंने सूचित करते हुए कहा कि इस सम्‍बंध में वार्ता करने  के लिए संस्‍थान द्वारा आगामी 30 मार्च को स्थानीय बाल साहित्यकारों के साथ एक अनौपचारिक बैठक का आयोजन किया जा रहा है।

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COMMENTS

BLOGGER: 12
  1. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  2. NARENDRA KUMAR MEENA2/27/2013 4:23 pm

    सराहनीय प्रयास।

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  3. Zakir ji,
    Mai parivarik vyastataon ke chalte is karyakram me ana chah kar bhi nahi pahunch sakhi...par safal ayojan ke liye Hindi Sansthan evam aapko bhi hardik badhai.....
    Poona Shrivastava

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  4. सफल संगोष्टि के लिए बधाई. इस तरह के आयोजनों की बारंबारता बढ़े, साथ में उनका कार्यान्वन भी हो. ऐसी कामना है. मेरा मानना है कि बालसाहित्यकारों के मन में या उनकी रचनाओं में जब तक बच्चे को देने का भाव रहेगा, तब तक बालसाहित्य में ऐसी ही भटकन रहेगी. जिस दिन बालसाहित्य देने के बजाय बालक से सीखने की साध से लिखा जाएगा, बालसाहित्य का वही दिन अपना होगा.

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  5. सच है, अच्छा बाल साहित्य एक अच्छा भविष्य बनाने में सहायक है।

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  6. बहुत अच्छा प्रयास
    मेरी नई रचना
    ये कैसी मोहब्बत है

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  7. डॉ जाकिर भाई विज्ञान कथा ,विज्ञान बाल गल्प का स्वरूप अभी निर्धारित नहीं हो पाया है फ्लक्स में है .आपने गफलत कम की है इस इलाके में पसरी हुई .असल मकसद विज्ञान संचार ही है कथा की मार्फ़त ,बेशक रोचक बनाए रखना भी ज़रूरी है .आपने विस्तृत विवेचना की है इसके इतिहासिक और वर्तमान विकासमान स्वरूप की .विज्ञान गल्प लिखने के लिए अभिनव प्रोद्योगिकी की जानकारी रखना एहम बात है .उडन तस्तरियाँ और येती हमेशा ही प्रासंगिक बने रहते हैं बर्मूडा त्रिकौन भी .

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  8. शुक्रिया आपकी टिपण्णी का जाकिर भाई .

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  9. बढ़िया प्रयास
    बाल साहित्य को सुन्दर दिशा मिलेगी
    साभार !

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  10. dr. sangeeta balwant7/31/2014 11:55 am

    bahut sundar... aise pryash hone chahiye mai bhi bal khanikar hu...aise karyakram ki muche bhi suchana de

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आपके अल्‍फ़ाज़ देंगे हर क़दम पर हौसला।
ज़र्रानवाज़ी के लिए शुक्रिया! जी शुक्रिया।।

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