बाल विज्ञान कथा: रोबो (लेखक- ज़ाकिर अली 'रजनीश')

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विज्ञान कथा: रोबो (लेखक- ज़ाकिर अली 'रजनीश')

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बाल विज्ञान कथा: रोबो

ज़ाकिर अली 'रजनीश'

‘‘नेमो! अरे, कहां मर गया नेमो के बच्चे?’’ सोमी अपने नौकर पर चीख रहा था। वैसे सोमी का नाम तो है सोमेश, लेकिन प्यार से सभी उसे सोमी ही कहते हैं।

नेमो, सोमी के नौकर का नाम है। नेमो, यानी रोबोट। सचमुच का रोबोट। लोहे का बना हुआ, पर देखने में एकदम मनुष्य जैसा। आदमी की तरह चलता है, सुनता है और आदमी की ही तरह सारे काम भी करता है।

सोमी अपने पिता का इकलौता लड़का है। पिछले साल उसकी मां का स्वर्गवास हो गया था। उसके पिता डाक्टर हैं। उनके पास तो सोमी से बात करने का भी समय नहीं होता। फिर घर का काम-काज कौन करे?

शुरू में सोमी के पिता ने गांव से अपनी मां को बुला लिया था। लेकिन उन्हें शहर की गन्दी हवा और शोर रास नहीं आया। वे एक महीने बाद ही गांव वापस लौट गयीं। इसके बाद सोमी के पिता ने एक नौकरानी रखी। खाना बनाने से लेकर झाडू-पोछा तक का सारा काम वह करती थी। लेकिन एक दिन वह मौका पाकर घर का तमाम कीमती सामान लेकर नौ दो ग्यारह हो गयी।

सोमी के पिता के सामने फिर वही समस्या आई कि घर का काम-काज कौन करे? संयोग से उसी दिन उन्हें पता चला कि किसी कंपनी ने रोबोट के ऐसे माडल बनाए हैं, जो घर का सारा काम भी करते है। अंधे का क्या चाहिए, दो आंखें? अत: वे दुकान से एक नौकर रोबोट खरीद लाए।

लम्बाई के लिहाज से रोबोट सोमी के बराबर ही है। मशीन से चलने वाले उसके हाथ-पैर और देखने के लिए आंखों में लगे हुए दो बड़े- बड़े लेन्स। उसकी पीठ में एक बैटरी लगती है, जिससे रोबोट को ऊर्जा मिलती है। एक महीने में एक बार बैटरी चार्ज करा लो और फिर सारी चिंताएं खत्म। न कामचोरी का रोना और न ही घर के सामान को लेकर चंपत होना का खतरा।

रोबोट को देखकर सोमी बहुत खुश हुआ। रोबोट देखने में एकदम खिलौना लगता है। सोमी ने सेाचा अब वह उससे अपने सारे काम करवाएगा और अपने दोस्तों को दिखा कर उनपर अपना रौब भी गांठेगा।

लेकिन नौकर का कोई नाम भी तो होना चाहिए। आखिर उसे किस नाम से बुलाया जाएगा? माना कि ये मशीनी नौकर है, लेकिन कोई नाम तो रखना ही पड़ेगा। पापा ने इसका जिम्मा सोमी पर ही छोड़ दिया। सोमी काफी देर तक सोचता रहा। उसने कई नामों पर गौर किया, लेकिन कोई जमा नहीं। कोई नाम बहुत कॉमन था, तो कोई बेढ़ंगा सा। अंत मे उसे `नेमो` नाम पसंद आया। और यही रोबोट का नाम रख दिया गया। रवि सोचने लगा- नेमो, कितना प्यारा नाम है। और फिर बुलाने में भी आसान है।

इस प्रकार सोमी के नौकर का नामकरण सम्पन्न हो गया। नेमो कोई आदमी तो था नहीं, जो उसे अपना नाम याद रखने में समस्या होती। वह तो ठहरा मशीन। जो चीज उसने एक बार अपने दिमाग में फीड कर ली, वह हमेशा के लिए सुरक्षित हो गयी।

नेमो वाकई बहुत समझदार निकला। घर के सारे काम वह बहुत होशि‍‍यारी से करता है। समय पर चाय, समय पर नाश्ता और समय पर खाना मिलता है। घर की घड़ियां भले ही लेट हो जाएं, पर वह कभी एक सेकेण्ड भी इधर से उधर नहीं होता है।

खाली समय में सोमी नेमो के साथ शतरंज खेलता है। शुरू-शुरू में तो नेमो अक्सर हार जाता था, लेकिन अब उसने अपने दिमाग में पहले की सारी चालें फीड कर ली हैं। अब वह अक्सर सोमी को मात लगा देता है। सोमी जब हार जाता, तो वह नेमो पर झूठ-मूठ के आरोप लगाने लगता। कभी-कभी तो वह उसे मार भी बैठता। लेकिन इससे नेमो को कोई फर्क नहीं पड़ता। उल्टा सोमी को ही चोट लगती और वह बैठ कर पछताता रहता।

आज भी जब दो बार आवाज देने के बाद नेमो नहीं आया, तो सोमी का पारा सातवें आसमान पर जा पहुंचा। वह इस बार और जोर से चिल्लाया, ‘‘तुम्हें सुनाई पड़ रहा है नेमो?’’

लेकिन चौथी बार सोमी को चिल्लाना नहीं पड़ा। क्योंकि नेमो कमरे में दाखिल हो चुका था। उसे देखते ही सोमी का चेहरा गुस्से से लाल हो उठा और उसने बिना सोचे-समझे नेमो के गाल पर एक तमाचा जड़ दिया।

चटाक की आवाज हुयी और सोमी अपना हाथ पकड़ कर बैठ गया। उसके हाथ में बहुत तेज चोट लगी थी। लेकिन इस बार बजाए गुस्सा होने के सोमी शान्त पड़ गया। उसने अपना हाथ सहलाते हुए धीरे से पूछा, ‘‘तुम्हें सुनाई नहीं पड़ रहा था मैं कितनी देर से बुला रहा हूं?’’

‘‘गैस पर दूध उबल रहा था।’’ नेमो ने जवाब दिया, ‘‘अगर मै उसे छोड़ आता, तो वह बह जाता।’’

‘‘बह जाए, चाहे जल जाए। इस बार मैं जैसे ही तुम्हें बुलाऊं तुम तुरन्त मेरे पास आओगे। समझे?’’

नेमो कुछ नहीं बोला। आखिर वह ठहरा तो नौकर ही। और नौकर का काम ही है मालिक की आज्ञा का पालन करना।

शाम तक सोमी के हाथ में सूजन आ गयी। पापा को जब पता चला, तो उन्होंने सोमी को डांट लगायी। सोमी चुपचाप सुनता रहा। आखिर गल्ती भी तो उसी की थी। फिर भला वह कह भी क्या सकता था?

एक दिन सोमी अपने दोस्तों को घर लाया। पहले तो उसने नेमो को सबसे मिलवाया, फिर अपने दोस्तों के लिए चाय बनाकर लाने का हुक्म दिया। नेमो चुपचाप चाय बनाने चला गया। सोमी अपने दोस्तों के सामने नेमो की तारीफों के पुल बांधने लगा।

वह बोला, ‘‘मेरा नेमो बहुत होशि‍यार हे। काम तो काम, वह शतरंज में भी एक्सपर्ट है। कभी-कभी तो वह मुझे भी मात लगा देता है।’’

‘‘अच्छा?’’ एक दोस्त ने आश्चर्यचकित होते हुए कहा।

‘‘और क्या?’’ सोमी को जोश आ गया, ‘‘तुमने अभी इसे देखा ही कहां है। काम तो यह चुटकी बजाते करता है। तुम देखना अभी एक मिनट के अंदर वह चाय लेकर आता है। और चाय भी ऐसी कि...।’’

‘‘लेकिन यार, नेमो को गये तो तीन मिनट से ऊपर हो गये,’’ एक दोस्त ने सोमी की बात काटी, ‘‘और अभी तक तो चाय...।’’

सोमी को लगा यह तो उसके लिए अपमान की बात है। उसने नेमो को आवाज दी, ‘‘नेमो, तुम क्या करने लगे? चाय लेकर आओ।’’

सोमी के सारे दोस्त उसे ही देख रहे थे। कभी-कभी वे लोग दरवाजे की ओर भी नजरें मार लेते। धीरे-धीरे लगभग पांच मिनट बीत गये और नेमो चाय लेकर नहीं आया। अब तो सोमी का धैर्य जवाब देने लगा। उसके सभी दोस्त मुस्करा रहे थे। जैसे कह रहें हों- ‘‘सोमी, देख ली हमने तुम्हारे नेमो की कार्यकुशलता? अरे, इससे जल्दी तो मेरी मम्मी चाय बना देतीं।’’

और जब सोमी से दोस्तों के सामने बैठा न गया, तो वह दरवाजे की ओर लपका। ठीक उसी समय चाय लेकर नेमो कमरे में दाखिल हुआ। वह सोमी को देखकर रूक गया और आहिस्ते से पूछा, ‘‘सोमी भैया, चाय कहां रखूं?’’

सोमी का पारा पहले से ही हाई था। वह गुस्से में बोला, ‘‘मेरे सिर पर!’’

अब नेमो तो मशीन ही ठहरा। और मशीन में इतनी समझ कहां कि वह सोमी की बात में छिपे व्यंग्य को समझ पाए? उसने चाय की ट्रे सचमुच में सोमी के सिर पर रख दी।

ट्रे छोड़ते ही उसका संतुलन बिगड़ गया। और देखते ही देखते गरमा-गरम चाय सोमी के ऊपर पलट गयी। सोमी का चेहरा बुरी तरह से झुलस गया। वह जोर-जोर से चीखने-चिल्लाने लगा।

सोमी के दोस्त यह देखकर घबरा गये। एक दोस्त ने उसके पापा का नम्बर मिलाया और उन्हें सारी बात बता दी।

पापा ने जब सोमी के जलने की खबर सुनी, तो वे अस्पताल से घर को भागे। सबसे पहले उन्होंने सोमी के जले हुए हिस्से पर मरहम लगाया और फिर जलने का कारण पूछा।

अब भला सोमी सच्ची बात कैसे बता देता? एक तो उसके दोस्त उसके ऊपर हंसते और दूसरे पापा की डांट अलग से खानी पड़ती। वह असली बात को गोल करके बोला, ‘‘पापा, जैसे ही मैं दरवाजे से निकल कर किचन की तरफ बढ़ा, नेमो से टकरा गया और फिर...।’’

‘‘ओह!’’ पापा बोले, ‘‘देख कर काम किया करो बेटे। मैंने तुमसे कितनी बार कहा है कि...।’’

लेकिन सोमी ने पापा की तरफ ध्यान ही नहीं दिया। वह तो नेमो की ओर निहार रहा था। नेमो एकदम हैरान-परेशान। उसे समझ में ही नहीं आया कि सोमी ने पापा से झूठ क्यों बोला?

सोमी को लगा कहीं नेमो उसकी पोल न खोल दे। वह याचना भरी दृष्टि से नेमो की ओर देखने लगा। जैसे कह रहा हो- ‘‘नेमो, पापा से कुछ नहीं कहना। ...प्लीज, एक बार मुझे मौका दो। आइंदा से मैं फिर कभी...।’’

नेमो ठहरा मशीन। उसे याचना या दया से क्या मतलब? लेकिन इसके बावजूद सोमी की भावनाएं उसे कहीं अंदर तक छू गयीं। उसने धीरे से एक बार सोमी की ओर देखा। उसकी आंखों में लगे लेन्स में एक अनोखी चमक सी आ गयी थी। वह धीरे से मुस्कराया और फिर किचन की ओर चला गया। आखिर उसे झाडू लेकर उस जगह की सफाई भी तो करनी थी?

नोट: कहानी के अन्यत्र उपयोग हेतु लेखक की अनुमति आवश्यक है।
संपर्क सूत्र: zakirlko AT gmail DOT com


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आपके अल्‍फ़ाज़ देंगे हर क़दम पर हौसला।
ज़र्रानवाज़ी के लिए शुक्रिया! जी शुक्रिया।।

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बाल विज्ञान कथा: रोबो (लेखक- ज़ाकिर अली 'रजनीश')
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