बालसाहित्यकारों को युगसापेक्ष दृष्टि विकसित करनी होगी -डॉ. ज़ाकिर अली रजनीश

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उ0 प्र0 हिन्दी संस्थान द्वारा आयोजित अभि‍नंदन पर्व-2014 की विस्तृत रिपोर्ट।

उपलब्धियां किसी के भी लिए गर्व का विषय होती हैं, लेकिन ये हमें आत्मावलोकन का भी अवसर उपलब्ध कराती हैं। ये हमें बताती हैं कि हमें थोड़ा रूक कर अपने भीतर झांकने की भी आवश्यकता है। और मैं खेद के साथ कहना चाहता हूं कि जब मैं थोड़ा ठहर कर वर्तमान में लिखे जा रहे बालसाहित्य का अवलोकन करता हूं, तो मुझे बहुत प्रसन्नता नहीं होती। क्योंकि अभी भी बाल साहित्य के नाम पर बहुत कुछ ऐसा लिखा जा रहा है, जो अवैज्ञानिक और अव्यवहारिक है। जबकि बाल साहित्य को व्यवहारिक और वैज्ञानिक होना चाहिए, क्योंकि वह बच्चों के मानस को तार्किक बनाने में, उनके वैचारिक धरातल को मजबूत करने, उनकी सामाजिकता को परिपुष्ट करने का काम भी करता है। और यदि कोई साहित्य ऐसा काम नहीं कर रहा है, वह सिर्फ ऊटपटांग मनोरंजन कर रहा है, प्राचीन राजा रानी, जादू-टोना, भूत-प्रेत और लोक-कथाओं को जस का तस लिख भर दे रहा है, तो उसे हम आदर्श बाल साहित्य नहीं कह सकते। ऐसा बाल साहित्य बच्चों के भविष्य के साथ खि‍लवाड़ करने के समान है।

Jagpati Chaturvedi Bal Vigyan Lekhan Samman - Uttar Pradesh Hindi Sansthan, Lucknow
डॉ. जाकिर अली रजनीश को सम्मानित करते डॉ. सुधाकर अदीब, श्री उदयप्रताप सिंह एवं श्री गोपाल चतुर्वेदी
उपरोक्त बातें ‘साइंटिफिक वर्ल्ड’ पत्रिका के सम्पादक और चर्चित लेखक डॉ. ज़ाकिर अली ‘रजनीश’ ने उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान, लखनऊ के ‘अभि‍नंदन पर्व-2014’ के अवसर पर सम्मानित रचनाकारों के प्रतिनिधि‍ के रूप में बोलते हुए कहीं। उन्होंने कहा कि बाल साहित्य को युग सापेक्ष और समकालीन सामाजिक युगबोध से परिपुष्ट होना चाहिए। उन्होंने चर्चित रचनाकार डॉ. सुधाकर अदीब के उपन्यास ‘मम अरण्य’ को जिक्र करते हुए कहा कि डॉ. अदीब ने जिस प्रकार श्रीराम के अयोध्या जाते समय समुद्र पर पुल बनाने के मिथक को वैज्ञानिक तथ्यों को ध्यान में रखते हुए प्रा‍कृतिक रूप से समुद्र के भीतर पाए गये पर्वत अवशेषों के ऊपर पत्थरों और लकडियों की सहायता से पुल बनाने की नवीन संकल्पना दी है, वह अत्यंत समीचीन और प्रशंसनीय है। 

उन्होंने कहा कि अगर आज के बच्चे से यह कहा जाए कि श्रीराम द्वारा धनुष पर बाण चढ़ा कर समुद्र को सुखा देने की धमकी देने पर समुद्र स्वयं हाथ जोड़कर बाहर निकल आया, तो इस बात को बच्चे स्वीकार नहीं करेंगे। क्योंकि वे जानते हैं कि समुद्र कोई जीव नहीं है। इसीलिए सुधाकर अदीब जी अपने उपन्यास में इस मिथकीय घटना को रचनात्मक कौशल के बल पर इस तरह से चित्रित किया, जो व्यवहारिक और समीचीन हो गया। उन्होंने कहा कि बालसाहित्यकारों को भी इस युगसापेक्ष दृष्टि को अपनाना होगा और उन्हें ध्यान रखना होगा कि वे जब भी लोक कथाओं अथवा परी कथाओं को अपनी लेखनी का विषय बनाएं, तो इस बात का ध्यान रखें, अन्यथा उनकी रचनाओं को बच्चे नकार देंगे और उनका लेखन व्यर्थ चला जाएगा।

सम्मनित रचनाकार बाएं से- सर्वश्री शेषपाल सिंह शेष, जाकिर अली रजनीश, बंधु कुशावर्ती, विनय कुमार मालवीय, आशीष शुक्ल, विजयानंद तिवारी, रमाशंकर, रमाकांत मिश्र स्वतंत्र एवं स्नेहलता, मंचस्थ विद्वतजन- डॉ. सुधाकर अदीब, श्री उदय प्रताप सिंह एवं श्री गोपाल चतुर्वेदी
डॉ. रजनीश ने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि यह गर्व का विषय है कि उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान ने सबसे पहले बाल साहित्य के स्वतंत्र महत्व को पहचाना और बाल साहित्य के लिए अलग से सम्मानों की शुरूआत की। ये सम्मान वर्ष 1993 में ‘बालसाहित्य संवर्धन योजना’ के अन्तर्गत प्रारम्भ हुए। हालांकि ये सम्मान बीच में काफी समय तक बंद रहे, लेकिन अब ये पुन: वर्ष 2014 से प्रारम्भ हो चुके हैं, जिसके लिए हिंदी संस्थान बधाई का पात्र है। 

उन्होंने कहा कि संस्थान ने बाल साहित्य से सम्बंधि‍त अनेक महत्वपूर्ण पुस्तकों का भी प्रकाशन किया है। लेकिन इसके साथ ही साथ संस्थान द्वारा बाल साहित्य की विभि‍न्न विधाओं पर केद्रित गोष्ठियों का भी आयोजन कराया जाना चाहिए, क्योंकि बाल साहित्य में आलोचना का नितांत अभाव है। आज भी बाल साहित्यकार आलोचना के नाम से घबराते हैं, जिससे बाल सहित्य में कुछ भी लिख देने को बाल साहित्य मान लिया जा रहा है। उन्होंने अपनी बात पर बल देते हुए कहा कि जब तक बाल साहित्य को आलोचना की कसौटी पर कसा नहीं जाएगा, तब तक न तो बाल साहित्य के नाम पर लिखी जा रही अधकचरी रचनाओं को चिन्हित किया जा सकेगा और न ही नवोदित रचनाकारों को यह पता चल सकेगा कि आदर्श बाल साहित्य क्या है और उन्हें आज के बच्चों के सामने किस तरह का साहित्य परोसना चाहिए।

प्रतिनिधि‍ रचनाकार के रूप में वक्तव्य देते जाकिर अली रजनीश
इस अवसर पर 09 बालसाहित्यकारों को उत्कृष्ट लेखन के लिए विभि‍न्न सम्मानों से अलंकृत किया गया। सम्मान स्वरूप सभी रचनाकारों को इक्यावन हजार रूपये की राशि‍ और प्रशस्ति पत्र प्रदान किये गये। दिये गये सम्मानों का विवरण निम्नानुसार है-
सुश्री स्नेहलता - सुभद्रा कुमारी चौहान महिला बालसाहित्य सम्मान 
श्री रमाकांत मिश्र स्वतंत्र - सोहनलाल द्विवेदी बालकविता सम्मान 
डॉ. विजयानंद तिवारी - निरंकार देव सेवक बालसाहित्य इतिहास लेखन सम्मान 
श्री रमाशंकर - अमृतलाल नागर बालकथा सम्मान 
श्री बंधु कुशावर्ती - लल्ली प्रसाद पाण्डेय बालसाहित्य पत्रकारिता सम्मान 
डॉ. विनय कुमार मालवीय - डॉ. रामकुमार वर्मा बाल नाटक सम्मान 
डॉ. शेषपाल सिंह शेष - कृष्ण विनायक फड़के बालसाहित्य समीक्षा सम्मान 
डॉ. ज़ाकिर अली रजनीश - जगपति चतुर्वेदी बाल विज्ञान लेखन सम्मान 
श्री आशीष शुक्ल - उमाकांत मालवीय युवा बाल साहित्य सम्मान

इससे पूर्व संस्थान के निदेशक डॉ. सुधाकर अदीब ने कार्यक्रम में पधारे लोगों का स्वागत करते हुए कहा कि बाल साहित्य को आगे बढ़ाने में हिंदी संस्थान सदैव अग्रणी रहा है और आगे भी वह इसी प्रकार से अपनी भूमिका का निवर्हन करता रहेगा। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि‍ के रूप में बोलते हुए गोपाल चतुर्वेदी ने कहा कि हमारे देश में बाल साहित्य की परम्परा बेहद प्राचीन है। हमें गर्व है कि हमने विश्व को ‘पंचतंत्र’ जैसी रचना दी। उन्होंने कहा कि ‘पंचतंत्र’ बाल साहित्य की सर्वश्रेष्ठ रचना है, लेकिन उनके बाद कोई ऐसी यादगार रचना नहीं लिखी गयी। उन्होंने कहा कि मैं डॉ. रजनीश की बातों का समर्थन करता हूं और आशा करता हूं कि आज जितने भी रचनाकार सम्मानित हुए हैं हमें भविष्य में और अच्छी-अच्छी रचनाएं पढ़ने को देंगे, जिनसे बच्चे ही नहीं बड़े भी लाभान्वित होंगे। 

उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान के कार्यकारी अध्यक्ष डॉ. उदय प्रताप सिंह ने अपना अध्यक्षीय उद्बोधन देते हुए कहा कि आज का समय वास्तव में बहुत कठिन समय है। क्योंकि आज लोगों के सामने हिंदी- मुस्लिम के और सिख-इसाई होने के सवाल खड़े किये जा रहे हैं। ये बेहद चिंता का विषय है, क्योंकि आज मां-बाप बच्चों को घर से बाहर खेलने भेजने में भी घबराते हैं। उन्होंने कहा कि ऐसे माहौल को बदलने में बाल साहित्यकार महती भूमिका निभा सकते हैं। इसलिए बालसाहित्यकारों को बेहद सजग होकर साहित्य का सृजन करने की आवश्यकता है। इस अवसर पर उन्होंने हिंदी संस्थान के स्थापना के उद्देश्यों और कार्यों से परिचत कराते हुए कहा कि यहां से न सिर्फ सर्वाधि‍क पुरस्कार (112) और सम्मान दिये जाते हैं, वरन उत्कृष्ठ ग्रंथों (750) का प्रकाशन भी किया जाता है। साथ ही प्रकाशन अनुदान, रचनाकारों को आर्थिक सहायता, गोष्ठियों/कार्यशालाओं का आयोजन, बाल साहित्य संवर्धन योजना का संचालन, विभि‍न्न विषयों पर फेलोशि‍प और दो पत्रिकाओं ‘बालवाणी’ और ‘साहित्य भारती’ का प्रकाशन भी किया जाता है।

कार्यक्रम का संचालन संस्थान की प्रकाशन अधि‍कारी डॉ. अमिता दुबे ने किया। उन्होंने अभि‍नंदन पर्व के अवसर पर दिये गये सम्मानों की पृष्ठभूमि पर प्रकाश डाला और जिन रचनाकारों की स्मृति में ये सम्मान दिये गये, उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व से भी परिचय कराया। keywords: baal sahitya samman, uttar pradesh hindi sansthan lucknow, subhadra kumari chauhan mahila balsahitya samman, sohanlal dwivedi balkavita samman, nirankardev sevak balsahitya itihas lekhan samman, amritlal nagar balkatha samman, lalli prasad pandey bal sahitya patrakarita samman, ramkumar verma bal natak samman, krishn vinayak fadke bal sahitya samiksha samman, jagpati chaturvedi bal vigyan lekhan samman, umakant malviya yuva bal sahitya samman

COMMENTS

BLOGGER: 3
  1. आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (01.01.2016) को " मंगलमय नववर्ष" (चर्चा -2208) पर लिंक की गयी है कृपया पधारे। वहाँ आपका स्वागत है, नववर्ष की हार्दिक शुभकामनायें, धन्यबाद।

    जवाब देंहटाएं
  2. बधाई . भाई जाकिर अली आपका कथन सही है लेकिन प्रचार प्रकाशन व सम्मान भी तो ऐसे साहित्य का खूब किया जा रहा है . जो बिकता है वह चलता है जैसी मानसिकता बन गई है . अच्छा साहित्य सामने आए इसके लिये सम्पादकों व पुरस्कार आयोजकों को विशेष ध्यान देना होगा .

    जवाब देंहटाएं
आपके अल्‍फ़ाज़ देंगे हर क़दम पर हौसला।
ज़र्रानवाज़ी के लिए शुक्रिया! जी शुक्रिया।।

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बालसाहित्यकारों को युगसापेक्ष दृष्टि विकसित करनी होगी -डॉ. ज़ाकिर अली रजनीश
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