tag:blogger.com,1999:blog-2908404059269596622024-11-14T17:32:32.402+05:30हिंदी वर्ल्ड - Hindi Worldप्रेरक हिंदी साहित्य का लोकप्रिय ब्लॉगDr. Zakir Ali Rajnishhttp://www.blogger.com/profile/03629318327237916782noreply@blogger.comBlogger401125tag:blogger.com,1999:blog-290840405926959662.post-3596185166134511162024-08-09T21:03:00.000+05:302024-08-09T21:03:05.049+05:30जाकिर अली 'रजनीश' की बाल कहानियां -डॉ0 मोहम्मद अरशद खान<p style="text-align: center;"><span style="font-size: large;">आलेख:
जाकिर अली 'रजनीश' की बाल कहानियां </span></p><h4 style="text-align: right;">-डॉ0 मोहम्मद अरशद खान</h4><p style="text-align: justify;">
बाल साहित्य के क्षेत्र में जाकिर अली 'रजनीश' का नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं है। उनकी प्रथम कहानी एक चित्रकथा के रूप में 1991 में मुम्बई से प्रकाशित होने वाली 'टिंकल' नामक पत्रिका में प्रकाशित हुई थी। उसके बाद से उन्होंने मुड़कर नहीं देखा। बाल साहित्य में अब तक उनके 4 उपन्यास, 26 कहानी संग्रह, 20 लेख संबंधी पुस्तकें, 6 नवसाक्षरों के लिए पुस्तकें तथा 9 संपादित संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय भारत सरकार के भारतेंदु हरिश्चंद्र पुरस्कार, प्रथम हरिकृष्ण देवसरे पुरस्कार, रतनलाल शर्मा स्मृति पुरस्कार तथा हिंदी संस्थान के सूर पुरस्कार सहित लगभग 3 दर्जन राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों से पुरस्कृत हो चुके हैं। उनका विशेष योगदान विज्ञान कथा लेखन में है। इस क्षेत्र में वे एक आइकन की तरह देखे जाते हैं। उन्हें विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग भारत सरकार का 'राष्ट्रीय विज्ञान संचार पुरस्कार' (2019) भी प्राप्त हो चुका है। उनका ब्लॉग 'साइंटिफिक वर्ल्ड’ (www.scientificworld.in) अंतरजाल के सर्वाधिक लोकप्रिय ब्लॉग्स में एक है। उन्होंने पद्मश्री डॉ० उषा यादव जी के निर्देशन में 'आधुनिक हिंदी बाल कहानियों का विवेचनात्मक अध्ययन' विषय पर आगरा विश्वविद्यालय से शोधकार्य किया है।<br />
</p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhe5-d0Qaed8TNdGeXW7wAlP_zAtyAPUcSIkj-BXIEnqrmd92KEJd-xisSef3V-DBVa3lLfV79pjp43OBrliHdW93YFhJRbkCxyckxj-0befTlspT54GWc4ETYct8H0AGQ0W9ursF27Bl6ZmKyrtFU36GrY3R99JvAYEajoD9wRToledGp3mNZQiho72hUo/s1022/Shiraza%20magazine.webp" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="Shiraza magazine" border="0" data-original-height="675" data-original-width="1022" height="422" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhe5-d0Qaed8TNdGeXW7wAlP_zAtyAPUcSIkj-BXIEnqrmd92KEJd-xisSef3V-DBVa3lLfV79pjp43OBrliHdW93YFhJRbkCxyckxj-0befTlspT54GWc4ETYct8H0AGQ0W9ursF27Bl6ZmKyrtFU36GrY3R99JvAYEajoD9wRToledGp3mNZQiho72hUo/w640-h422/Shiraza%20magazine.webp" width="640" /></a></div>देखा जाय तो बाल साहित्य के क्षेत्र में जिस समय जाकिर अली ‘रजनीश' का आगमन हुआ, उस समय बाल कथाओं के सम्बन्ध में तीन प्रकार की विचारधाराएँ सामने थीं।<br /><br />
पहली विचारधारा लोक कथाओं और परीकथाओं को संस्कृति और विरासत का हिस्सा मानते हुए, उसे बाल साहित्य की मुख्य धारा में शामिल करने की पक्षपाती थी। इस विचारधारा का नेतृत्व 'नंदन' के हाथों में था। आधुनिकता के नाम पर इस प्रकार की कथाओं की आलोचना करने वाले उथले उत्साहियों के प्रति नंदन के संपादक जय प्रकाश भारती इन शब्दों में आक्रोश व्यक्त करते हैं- "अपने यहाँ जो है उसे स्वीकार नहीं करेंगे, न बच्चों को उसके बारे में जानकारी देना चाहेंगे। आयातित माल और आयातित ज्ञान ही हमें पसंद है। ...सम्राट अशोक हों या युधिष्ठिर हम इनका गुणगान करके क्या बच्चों को बिगाड़ेंगे। ...क्या अपनी धरती से कट जाना आधुनिकता है? आधुनिकता पुराने को पूरी तरह से त्याग देने में नहीं होती। मैं अपने अनुभव के आधार पर इस परिणाम पर पहुँचा हूँ कि बच्चे पौराणिक कथाओं में राजा-रानी की कहानियों में, ऐतिहासिक कथाओं में और लोक कथाओं में भरपूर रस लेते हैं और उन्हें पसंद करते हैं।" <br /><br />
दूसरी विचारधारा इसके ठीक विपरीत लोककथाओं, परीकथाओं और पुराणकथाओं की प्रासंगिकता पर प्रश्न चिन्ह लगाती है। विरोध का यह आंदोलन ‘पराग' के प्रकाशन के साथ आरंभ हुआ। हालाँकि इसके बीज आनंद कुमार के संपादन काल में 'कुमार' पत्रिका में देखे जा सकते हैं। जनवरी 1940 के सम्पादकीय में उन्होंने सांकेतिक रूप में इस प्रकार की रचनाओं का विरोध किया था। यह विचारधारा मुख्यतः दिल्ली प्रेस की पत्रिकाओं तथा अन्य बाल पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से स्वर पाती रही। ‘बालहंस’ ने यद्यपि परीकथा विशेषांक छापे पर उसका रूझान यथार्थ बाल कहानियों की ओर ज्यादा रहा। 'पराग' के सम्पादक आनंद कुमार जैन ने उस समय लिखा था- "जादूगरों और राक्षसों की कहानियाँ बच्चों के साहित्य में स्थान पाने योग्य नहीं रह गई हैं। कहीं जादू नहीं चलता। सामंत युग का कोई राक्षस अब दिखाई नहीं पड़ता। आज के विषम जीवन की प्रणालियों से बच्चों को भी किसी न किसी प्रकार हमें परिचित कराना ही होगा। विज्ञान के मूलभूत सिद्धांतों से परिचय कराने के लिए सिर्फ कोर्स की पुस्तकें ही काफी नहीं होतीं, बल्कि विदेशी बच्चों की तरह विज्ञान कथा और अन्य प्रकार के साहित्य में भी उनके मनोरंजन का एक साधन प्रस्तुत करना होगा। इसका प्रयत्न यदि आज का भारतीय लेखक नहीं करेगा तो कौन करेगा?"2<br /><br />
तीसरी विचार धारा इन दोनों के समन्वय पर बल देती है। इसका प्रवर्तक न तो कोई एक व्यक्ति है और न ही कोई पत्रिका या प्रतिष्ठान। इस वर्ग में जागरूक और दृष्टि सम्पन्न लेखक शामिल हैं। डॉ० श्री प्रसाद लिखते हैं- "आज का वर्तमान संक्रांति की अवस्था में है। आज हमारी अवस्था त्रिनेत्र की है। आगे की आँखें वर्तमान और भविष्य को देख रही हैं और पीछे का नेत्र अतीत पर दृष्टि रखे हु पूर्णतः आधुनिकतावादी हैं और न पूर्णतः प्राचीनतावादी हैं। हम समन्वयवादी हैं। समन्वय का जीवन अन्य देशों में भी रहा है, पर भारत में तो सदा ही समन्वय किया गया है। तात्पर्य यह है कि बालकों की रूचि के साहित्य के रूप में जो पारम्परिक साहित्य की धरोहर है, उसे भी पूरी तरह से त्याग देना उचित न होगा।"3<br /><br />
जाकिर अली ‘रजनीश’ के अर्विभाव काल में उपर्युक्त तीनों विचारधाराएँ कभी तीव्र और कभी मंद वेग से गतिशील थीं। साहित्य जगत में पदार्पण के साथ ही जाकिर ने अपनी विचार दृष्टि स्पष्ट कर दी। उन्होंने आधुनिक और यथार्थ परक कथाओं को ज्यादा उपयोगी माना। इसके पीछे सिर्फ युवा उत्साह ही नहीं था, बल्कि इसके पीछे एक स्थिर विचार दृष्टि थी। बाल कहानियों के मानक संकलन 21वीं की बाल कहानियों में जाकिर ने अपने दृष्टिकोण का स्पष्ट परिचय दिया। पारंपरिक बाल कथाओं के रूप में उन्होंने दो प्रकार की रचनाएँ मानीं-<br /><br />
1. लोक कथाओं और परीकथाओं के रूप में टीपी हुई कथाएँ <br /><br />
2. राजू सुधर गया टाइप फार्मूलाबद्ध रचनाएँ<br /><br />
वास्तव में किसी भी रचनाकार के लिए बाल कहानियाँ लिखने का सबसे सरल तरीका है लोक कथा लिख मारना। इन रचनाओं के प्रणेता ऐसे रचनाकार होते हैं जो या तो छपते रहने के रोग से ग्रस्त होते हैं या फिर मौलिक रचनाएँ न लिख पाना जिनकी मजबूरी होती है।<br /><br />
अतः ऐसी रचनाओं की गुणवत्ता निसंदेह संदिग्ध हो जाती है। जाकिर का विचार है- "इन रचनाओं में मौलिकता का सर्वथा अभाव होता है। यदि दो रचनाकारों की रचनाओं में लेखकों के नाम बदल दिए जाएँ, तो उसे सामान्यतः कोई पकड़ नहीं पाएगा। ...बाल साहित्य के बड़े-बड़े आलेखों में यह बात जोर देकर कही जाती है कि बाल साहित्य लेखन एक अत्यंत कठिन कार्य है। किंतु मैं नहीं समझता कि पुराणों पुरानी पत्रिकाओं या कल्याण के अंकों को सामने रखकर कहानी को टीप लेना कोई कठिन कार्य है।"4<br /><br />
जाकिर के इस कथन में प्रतिक्रिया का उग्र उत्साह भले ही हो पर सच्चाई यही है। इस तरह की कहानियों में न तो लेखक की मौलिक कल्पना दीख पड़ती है, न चरित्र चित्रण का कौशल भाषा-शैली की दृष्टि से भी यह कहानियाँ विशेष प्रभावित नहीं करतीं। कहीं-कहीं तो इनमें सामंती विचारधारा के बीज मिलते हैं, जो जनतंत्र की समृद्धि व भविष्य के सुनागरिक तैयार करने तथा समतावादी सामाज की पुनर्रचना की दृष्टि से घातक होता है। आज देश में जो राजनीतिक, सामाजिक और धार्मिक प्रश्न उभर रहे हैं उन्हें देखते हुए यह प्रश्न और अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है कि प्रजातांत्रिक शासन पद्धति, समाजवादी समाज का सिद्धांत तथा राष्ट्र की एकता और अखंडता की रक्षा के लिए बच्चों हेतु कि तरह की कहानियाँ होनी चाहिए।”<br /><br />
जाकिर फार्मूलाबद्ध कथाओं को भी इसी श्रेणी में रखकर पुनर्विचार की आवश्यकता समझते हैं। इस प्रकार की कहानियाँ यद्यपि मौलिक होती हैं, पर उनका एक बँधा-बँधाया ढर्रा होता है। बाल कहानियों को दोयम दर्जे का सिद्ध करने में इस प्रकार की रचनाओं की महत्वपूर्ण भूमिका है। जाकिर का मानना है- "इन्हें जबरदस्ती की लिखी हुई कहानियाँ भी कहा जा सकता है, जो अपने उपदेशात्मक शीर्षकों एवं कहानियों की शुरूआत से ही पता चल जाती हैं। इस प्रकार की कहानियाँ एक निश्चित ढर्रे पर चलती हैं। प्रारम्भ में पात्र जिद्दी बदतमीज या आवारा किस्म का होता है और बाद में चलकर सुधर जाता है। प्रायश्चित, सीख, गलती, चोरी, प्रण, उपदेश, भूल आदि से ये रचनाएँ आगे बढ़ ही नहीं पाती। बाल सुधार का ठेका लेने वाले ऐसे तमाम रचनाकार बाल मनोविज्ञान की पहली सीढी कि बच्चे उपदेश सुनना पसंद नहीं करते, की उपेक्षा करते हुए थोक की मात्रा में ऐसे सुधार कार्यक्रम चलाते रहते हैं। विषय की रोचकता एवं मौलिकता की तो खैर उम्मीद ही बेकार है, शैली का चमत्कार भी इनमें नजर नहीं आता।”6<br /><br />
कहीं आदर्श के नाम पर तो कहीं भविष्य के कर्णधारों को संस्कारित करने के नाम पर इस तरह की तमाम कहानियाँ धड़ल्ले से छपकर आ रही हैं। दुर्भाग्यवश एक आम पाठक के सामने बाल कहानियों की एक तस्वीर तय करने में यही कहानियाँ अपनी निर्धारक भूमिका निभाती हैं।<br /><br />
इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि जाकिर ने पर्याप्त मात्रा में लोक कथाएँ और परीकथाएँ लिखी हैं। उनका पहला उपन्यास ‘सात सवाल’ जादुई और तिलिस्मी दुनिया की अनूठी कथा है। यह उपन्यास अरब के लोकप्रिय पात्र हातिमताई को आधार बनाकर रचा गया है। इनमें देव, दानव, जादूगर परीजाद, मसलन वो सब कुछ है, जिसका आधुनिकता के नाम पर विरोध किया जाता है। इसके अतिरिक्त 'सुनहरा पंख' और 'सितारों की भाषा' जैसे उनके घोषित लोक कथा संग्रह हैं तथा ‘सराय का भूत' एवं 'अग्गन-भग्गन' जैसी कृतियों में लोक कथाओं की छाया देखी जा सकती है।<br /><br />
वस्तुतः विरोध के बावजूद जाकिर द्वारा प्रभूत मात्रा में लोक कथाओं का प्रणयन इस बात का प्रमाण है कि लोक कथाएँ हमारी संस्कृति और विरासत का महत्वपूर्ण अंग हैं, इन्हें उपेक्षित नहीं किया जा सकता। किंतु इसे तदवत टीप देना भी उचित नहीं क्योंकि इनमें सामंती समाज की छाया स्पष्ट रूप से दिखाई देती है। जन के हृदय की आवाज होने के बावजूद इनका समाहार एक प्रकार के ऐसे आदर्शवाद में होता है जो सामंतवाद की समृद्धि के अनुकूल होता है। अतः लेखक को इस ओर से अवश्य सचेत होना चाहिए और कथावस्तु को वर्तमान प्रजातांत्रिक और समाजवादी समाज के अनुकूल बना लेना चाहिए। आज के युग में राजा-रानी को मात्र इतिहास का विषय बना देना ही काफी नहीं रह गया है। उनके सही रूप को भी प्रस्तुत करना अनिवार्य है। किस तरह वे गरीबों का शोषण करते थे, विलासिता, ऐश्वर्य, स्वेच्छाचारिता, निरंकुशता आदि का कितना बोल-बाला था- इन तथ्यों को उजागर करना उनकी कथाओं को कहीं अधिक रोचक बना देगा।'<br /><br />
वास्तव में जाकिर की कथाएँ इसी तथ्य का परिचय कराने के लिखी गई हैं। उदाहरण स्वरूप 'सुनहरा पंख' में सम्मिलित कहानी ‘शेर बना राजा' या 'मुँहतोड़ जबाब' को लिया जा सकता है।<br /><br />
मुँहतोड़ जवाब में आसिमो की भेड़ें उसका दोस्त हड़प कर जाता है। हालाँकि गाँव वाले अक्सर कहते थे कि अमीर-गरीब के बीच कभी दोस्ती नहीं होती। पर आसिमो दोस्ती करता है और ठगा जाता है। बड़े ही सरल शब्दों में जाकिर वर्ग आधारित समाज का परिचय देते हैं और अपना दृष्टिकोण स्पष्ट कर देते हैं। आसिमो अपनी फरियाद लेकर जमींदार के पास जाता है। हालाँकि जमींदारों के बारे में यह मशहूर था कि वे अमीरों की बातों की ही तरफदारी करते हैं। और सचमुच ऐसा होता भी है। जमींदार उसके सामने कुछ ऐसे सवाल रखता है जिसका उत्तर देना असंभव प्राय होता है। पर आसिमो की लड़की आयलीता उसका जवाब दे देती है। इस प्रसंग में जाकिर लिखते हैं- "जमींदार ने जब आसिमो का उत्तर सुना तो उसके हाथों के तोते उड़ गए। अब क्या हो? क्या वह अदना-सी लड़की के आगे हार मान ले और आसिमो को उसकी भेड़ें दिला दे। लेकिन नहीं, यह तो उसकी शान के खिलाफ है। पर जमींदार को हार माननी ही पड़ती है।<br /><br />
किंतु जाकिर के समग्र साहित्य में लोक कथात्मक कृतियाँ प्रायः दो ही चार हैं। बाल मनोविज्ञान और आधुनिक चेतना सम्पन्न यथार्थ रचनाओं की संख्या उनके सम्पूर्ण कृतित्व में कहीं अधिक है।<br /><br />
हिन्दी में विज्ञान कथाओं को लोकप्रिय बनाने और उसे आंदोलन का रूप देने में जाकिर को श्रेय दिया ही जाना चाहिए। डॉ० देवसरे का मत है- "आज विज्ञान की दुनिया में क्या संभव नहीं है और परीलोक की कौन सी ऐसी बात है, जो बच्चों को अब उपलब्ध नहीं कराई जा सकती है। अब बच्चे परीलोक से आगे निकलकर विज्ञानलोक की उन कल्पनाओं में रूचि लेने लगे हैं जो अनेक महत्वपूर्ण अविष्कारों का कारण बनी हैं या बनेंगी।"11<br /><br />
जाकिर की विज्ञान कथाओं में इसी प्रकार के प्रयोग किए गए हैं। 'मनचाहे सपने दिखानेवाली मशीन' कहानी हो, 'कहानी लेखन यंत्र' हो, 'कभी न खत्म होने वाला सेल' हो या समय से आगे ले जाने वाला ‘समय-यान' हो, जाकिर ने तथ्यों एवं परिकल्पनाओं का सहारा लेते हुए मनोरंजक कहानियाँ लिखी हैं, जो वर्तमान हाई-टेक युग में पलने वाले बच्चे के सहज आकर्षण का विषय बन जाती हैं।<br /><br />
इसी प्रकार जाकिर ने रहस्य-रोमांच और जासूसी से भरी साहसिक कहानियाँ भी लिखी हैं। बालकों के विकास की एक अवस्था ऐसी भी होती है, जिसे साहसिक अवस्था कहते हैं। साहसिक अवस्था में साहसिक वीरों की कथाएँ, शिकार की कहानियाँ यात्रा-संस्मरण और चमत्कार भरी कहानियों को सम्मिलित किया जा सकता है। कल्पना जगत से उतरकर संसार के धरातल पर पहुँचने की यही अवस्था होती है। तब बच्चों को कल्पना लोक में विचरण करने में कोई रूचि नहीं होती। वह कठिनाइयों को झेलने और साहसिक कार्यों को करने में विशेष रूचि लेता है।<br /><br />
इसी बाल मनोविज्ञान के अनुरूप जाकिर ने 'सोने की घाटी', 'कुर्बानी का कर्ज', 'साहसिक कथाएँ' सहित अनेक कृतियों का सृजन किया है।<br /><br />
कुल मिलाकर जाकिर का सम्पूर्ण साहित्य पारम्परिक बाल कहानियों की जड़ता को तोड़कर एक नई भूमि विकसित करता है जो वर्तमान समय की बाल संवेदनाओं के अनुकूल होने के कारण वह ग्राह भी है और प्रशंस्य भी।<br /><br />
<b>संदर्भ-सूत्र:</b><br />
1. बाल साहित्य 21वीं सदी में, अभिरूचि प्रकाशन, दिल्ली, पृ०: 36 <p></p><p style="text-align: justify;">2. डॉ॰ हरिकृष्ण देवसरे: बाल साहित्य- मेरा चिन्तन, मेधा बुक्स, दिल्ली, पृ0: 18 </p><p style="text-align: justify;">3. डॉ० श्रीप्रसाद: बाल साहित्य की अवधारणा, उ०प्र० हिंदी संस्थान, लखनऊ, पृ० 163 </p><p style="text-align: justify;">4. 21वीं सदी की बाल कहानियाँ, नीरज इंटरप्राइजेज, लखनऊ, भूमिका </p><p style="text-align: justify;">5. डॉ॰ हरिकृष्ण देवसरे: बाल साहित्य- मेरा चिंतन, पृ0: 45 </p><p style="text-align: justify;">6. 21वीं सदी की बाल कहानियाँ, भूमिका </p><p style="text-align: justify;">7. डॉ॰ हरिकृष्ण देवसरे: बाल साहित्य- मेरा चिंतन, पृ०: 120 </p><p style="text-align: justify;">8. सुनहरा पंख, सस्ता साहित्य मंडल, दिल्ली, पृ०: 111 </p><p style="text-align: justify;">9. वही, पृ०: 112 </p><p style="text-align: justify;">10. वही, पृ0 117 </p><p style="text-align: justify;">11. बाल साहित्य-मेरा चिंतन, पृ0: 109 </p><p style="text-align: justify;">12. वही, पृ०: 113 </p><p style="text-align: center;">०००<br /><br />
प्रोफेसर, हिंदी विभाग, जी0एफ0 (पी0जी0) कॉलेज, शाहजहाँपुर-242001(उ0प्र0) </p><p style="text-align: center;">hamdarshad@gmail.com
Phone : 9807006288
</p>Dr. Zakir Ali Rajnishhttp://www.blogger.com/profile/03629318327237916782noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-290840405926959662.post-47213773092351030202024-03-08T21:05:00.004+05:302024-03-08T21:06:46.663+05:30उषा यादव के बाल उपन्यासों का रोचक संसार <div style="text-align: justify;"><h2 style="text-align: center;">उषा यादव के बाल उपन्यासों का रोचक संसार </h2><h4 style="text-align: right;">
डॉ. ज़ाकिर अली ‘रजनीश’</h4>
पद्मश्री उषा यादव एक ऐसा नाम है, जो हिन्दी बालसाहित्य में बड़े सम्मान के साथ लिया जाता है। जितनी वे काव्य में निष्णात हैं, उतना ही गद्य में भी उन्हें महारत हासिल है। चाहे कविता हो, या कहानी, नाटक हो, अथवा उपन्यास या फिर समालोचना, उन्होंने हर विधा में लगातार, बेशुमार और शानदार कार्य किया है। <br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg_W9ZipomRS7LAsRoIZiSEdJBXhhb9hl-OexkspQ6wNBfIoqKrjMguilNWuelufKfETMzh3EwIX08X0GLQXm4eTAfx44mjS0UcoMDzijjzsjVk8C6RseANDHO35OPqkovn8-oA5QpNDELPKJ73O7lq1OsLI05Ik01SH_Hbpw8j5-SJlRhWJeEJ0Ak4PXmz/s969/Usha%20yadav%20Ke%20Bal%20Upanyas.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="Usha yadav Ke Bal Upanyas" border="0" data-original-height="487" data-original-width="969" height="322" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg_W9ZipomRS7LAsRoIZiSEdJBXhhb9hl-OexkspQ6wNBfIoqKrjMguilNWuelufKfETMzh3EwIX08X0GLQXm4eTAfx44mjS0UcoMDzijjzsjVk8C6RseANDHO35OPqkovn8-oA5QpNDELPKJ73O7lq1OsLI05Ik01SH_Hbpw8j5-SJlRhWJeEJ0Ak4PXmz/w640-h322/Usha%20yadav%20Ke%20Bal%20Upanyas.jpg" width="640" /></a></div>‘<b>रसगुल्ला</b>’, ‘<b>डायरी</b>’, ‘<b>तस्वीरें</b>’ और ‘<b>दीप से दीप जले</b>’ जैसी यादगार कहानियां रचने वाली उषा यादव ने ‘<b>गुस्सा हैं हम जाओ जी</b>’, ‘<b>उफ बस्ता कितना भारी है</b>’, तथा ‘<b>सो जाओ अब, रात हो गई</b>’ जैसी मार्मिक कविताएं भी रची हैं। इसके साथ ही उन्होंने बाल उपन्यासों के क्षेत्र में भी उल्लेखनीय कार्य किया है। कविता और कहानी की तरह उषा यादव के उपन्यासों की दुनिया भी अत्यंत समृद्ध है। <br /><br />
उषा यादव के उपन्यासों में जो चीज सबसे ज्यादा आकर्षित करती है वह है बालमनोविज्ञान पर उनकी पकड़ और उसके अनुरूप घटनाओं को गूंथने की उनकी अनूठी कला। कभी वे बच्चों की जिद, उनकी उद्दण्डता को अपना विषय बनाती हैं, तो कभी उनके भीतर छिपे सदगुणों को आधार। कभी वे उनकी जिज्ञासु प्रवृत्ति को कथानक के केन्द्र में रखती हैं, तो कभी उनके भीतर छिपे अन्वेषण के गुणों पर अपनी कलम चलाने लगती हैं। कभी शार्टकट के द्वारा आसानी से सफलता पाने की अभिलाषा उनके कथ्य का केंद्रीय बिन्दु होता है, तो कभी अभावों में पलता और चुनौतियों से जूझता बचपन। इन सबके साथ सामयिक मुद्दे और फैंटेसी के प्रति रचनाकार की सहज ललक तो है ही। और जब इन्हें जीवंत चित्रण के चित्ताकर्षक रंगों का साथ मिल जाता है, तो कथानक का एक ऐसा अनूठा वितान तैयार होता है, जिसके सम्मोहन से निकल पाना पाठक के लिए सम्भव नहीं रह जाता। <br /><br />
90 के दशक से अपनी बाल उपन्यास यात्रा शुरू करने वाली उषा यादव के अब तक 15 बाल उपन्यास प्रकाशित हो चुके हैं। ये बाल उपन्यास न सिर्फ बाल साहित्य में चर्चा का विषय रहे हैं, वरन अनेकानेक महत्वपूर्ण पुरस्कारों से भी समादृत हुए हैं। और प्रसन्नता का विषय ये है कि ये सभी उपन्यास हाल ही में ‘<b>उषा यादव के बालउपन्यास</b>’ (समग्र) के रूप में हमारे सामने आए हैं। नमन प्रकाशन, नई दिल्ली द्वारा प्रकाशित ये समग्र अपने प्रकाशन के साथ ही बेहद चर्चा में हैं और पाठकों के साथ ही साथ लेखकों को भी अपनी ओर आकर्षित कर रहा है। <br /><br />
समग्र में संकलित सभी उपन्यास वर्ष 1990 से 2021 के बीच प्रकाशित हुए हैं। यह समग्र तीन खण्डों में विभक्त है और कुल 1282 पृष्ठों में इनका रोचक संसार फैला हुआ है। वर्ष 2023 में प्रकाशित इस समग्र का सम्पादन उषा यादव की सुपुत्री और एक समर्थ रचनाकार कामना सिंह ने किया है। उन्होंने इन उपन्यासों से सृजन के समय के अपने पाठकीय अनुभवों के साथ-साथ उपन्यासों के कथ्य और उनकी प्रभावोत्पादकता को लेकर एक लम्बी भूमिका भी लिखी है, जो निश्चय ही समग्र की महत्ता को रेखांकित करती है और पाठकों को इनके भीतर उतरने के लिए प्रेरित करती है। <br /><br />
उषा यादव के बाल उपन्यासों की विषय-वस्तु अत्यंत व्यापक है। इनमें जीवन के विभिन्न रंगों को भिन्न-भिन्न शैली में कुशलता के साथ संजोया गया है। सुविधा की दृष्टि से इन उपन्यासों को तीन श्रेणियों में बांटा जा सकता हैः बाल जीवन पर केंद्रित उपन्यास, समस्यामूलक उपन्यास और फैंटेसीपरक उपन्यास।<br /><h3>
1. बाल जीवन पर केंद्रित उपन्यासः</h3>
उषा यादव एक जमीन से जुड़ी रचनाकार हैं। उनकी चिंताओं में बच्चों के सवाल, उनकी जिज्ञासाएं, समस्याएं और दर्द शिद्दत से नजर आते हैं। यही कारण है कि उनके 15 बाल उपन्यासों में से 9 ऐसी कृतियां हैं, जो बाल जीवन पर केंद्रित हैं। ये उपन्यास बच्चों की मानसिक हलचलों के साथ उनके समक्ष आने वाली चुनौतियों को पूरी ईमानदारी और गहराई से चित्रित करते हैं और पाठकों को इन मुद्दों पर सोचने के लिए विवश करते हैं। बाल विमर्श की अलग जगाने वाले इन उपन्यासों के नाम हैंः ‘<b>पारस पत्थर</b>’, ‘<b>लाखों में एक</b>’, ‘<b>नन्हां दधीचि</b>’, ‘<b>हीरे का मोल</b>’, ‘<b>सबक</b>’, ‘<b>सोने की खान</b>’, ‘<b>एक और सिंदबाद</b>’, ‘<b>उजली धूप</b>’ तथा ‘<b>मां और मैं</b>’। <br /><br />
‘<b>पारस पत्थर</b>’ उषा यादव का पहला बाल उपन्यास है। इसका मुख्य पात्र रवि है। वह उद्दण्ड है, हठी है, बद्तमीज है और साथ ही क्रोध की प्रतिमूर्ति भी। इस बालक के माता-पिता की कुछ समय पहले एक दुर्घटना में मृत्यु हो चुकी है और वह अपने दादा-दादी के साथ रहता है। ये दोनों प्राणी उसे हर सम्भव तरीके से समझाने, बहलाने और सभ्य इंसान बनाने की कोशिश करते हैं, पर रवि इसके बावजूद न सिर्फ उनके साथ अभद्रता से पेश आता है, बल्कि वक्त-बेवक्त नौकर पर हाथ भी छोड़ देता है। <br /><br />
ऐसे उद्दण्ड बालक के जीवन में एक दिन उसके पिता के अध्यापक देवकांत आते हैं और उसके बाद चमत्कारिक रूप से रवि का व्यवहार बदल जाता है। इस असम्भव से लगने वाले बदलाव का कारक बनता है देवकांत जी का दोस्ताना व्यवहार और हालात को समझकर उसके अनुरूप स्वयं को ढ़ाल लेने का उनकी कला। जीवन की यह व्यवहारिक समझ रवि के जीवन का कायाकल्प कर देती है, जिससे हर समय खिन्न रहने वाला रवि ही नहीं उसके बुजुर्ग दादा-दादी भी निहाल हो उठते हैं।<br /><br />
बच्चे हमेशा नई-नई चीजों की ओर आकर्षित होते हैं और उन्हें पाने के लिए जिद करने लगते हैं। जब उन्हें वह मनचाही वस्तु मिल जाती है, तो वे आनन्द के सागर में खो जाते हैं। लेकिन बहुत सारे बच्चे कुछ ही समय के बाद उससे बोर होने लगते हैं और फिर किसी नई चीज के लिए मचल उठते हैं। ऐसे ही एक बच्चे की कहानी है ‘<b>सबक</b>’। कथानक के स्तर पर एक कहानी जैसे फार्मेट में सिमट सकने वाला यह उपन्यास बड़े सलीके से विस्तार पाता है और आशु नामक चरित्र के जरिए बेहद रोचकता के साथ अपने अंजाम तक पहुंचता है। लेखिका ने इस उपन्यास में चिर-परिचित घटनाओं को इस प्रकार से संयोजित किया है, कि वे पाठक को अपने सम्मोहन से बांध सी लेती हैं और पाठक कब आशु के साथ-साथ अंजाम तक पहुंच जाता है, उसे पता भी नहीं चलता। <br /><br />
इस कड़ी में एक महत्वपूर्ण कृति है ‘<b>मां और मैं</b>’। यह एक ऐसे बच्चे की कहानी है, जिसकी दुनिया अत्यंत दरिद्र है। जिंदगी जीने के तमाम इखराजात तो छोड़िए, सुबह शाम की दो जून रोटी के लिए भी जिसकी मां को अथक श्रम करना पड़ता है। लेकिन ऐसी विपन्न परिस्थितियों में पला-बढ़ा बच्चा भी अपनी मां की सतत प्रेरणा से जीवन में एक बड़े लक्ष्य को हासिल करने का जुनून पाल लेता है। ऐसे में उसके सामने क्या-क्या चुनौतियां पेश आती हैं, इसकी जीवंत दास्तान है ‘मां और मैं’। <br /><br />
‘<b>मां और मैं</b>’ सिर्फ एक बच्चे ही नहीं, एक ऐसी मां की भी दास्तान है, जिसके पास न अपनी छत है, न कोई मददगार और न ही कोई ऐसा हुनर, जिससे उसकी आजीविका चल सके। इसके बावजूद वह अथक श्रम करके अपने बच्चे को न सिर्फ पालती है, बल्कि पग-पग पर आने वाली चुनौतियों से जूझने का मार्ग प्रशस्त करती है। और अंततः वह बेटे की जिंदगी में रौशन सवेरा आने का कारक बनती है। यह मां और बेटे की एक ऐसी गाथा है, जिसमें अभाव है, बेबसी है, पीड़ा है, लेकिन साथ ही भविष्य को बेहतर बनाने और उसके लिए अपनी काया को गला देने की दिल को छू लेने वाली दास्तान भी है। ऐसे कथानक कभी-कभी रचे जाते हैं। और जब भी सामने आते हैं, पाठक को भीतर तक भिगो जाते हैं।<br /><br />
हम ये बात भलीभांति जानते हैं कि बहुत कम बच्चे ऐसे होते हैं, जो अभावों के कंटकों से बिना विचलित हुए निकल पाते हैं। बहुतेरे तो ऐसे होते हैं, जो इन कंटकों से बचने के लिए अपनी दबंगई का सहारा लेने लगते हैं। उन्हें पता ही नहीं चलता कि कब वे ऐसे दलदल में फंसते चले जाते हैं, जो उनके जीवन को कालकोठरी तक पहुंचा सकता है। पैसों की अंधी चमक की एक ऐसी ही अनसुनी कथा है ‘<b>एक और सिंदबाद</b>’! ‘एक और सिंदबाद’ मध्यमवर्गीय परिवार की लालसाओं के बीच पिसते बचपन की भी कहानी है, जो हमें कदम-कदम पर हतप्रभ भी करती है।<br /><br />
ये बात किसी से छिपी नहीं है कि ज्यादातर भारतीय परिवार न सिर्फ रूढ़िवादी सोच से भरे होते हैं, बल्कि लड़कियों को दोयम दर्जे का नागरिक भी मानते हैं। यही कारण है कि जब भी उनके समक्ष कोई आर्थिक चुनौती आती है, तो वे सबसे पहले लड़कियों के खर्चों में कटौती करते हैं और उन्हें शिक्षा तक से वंचित कर देते हैं। किन्तु आजकल की ये लड़कियां जानती हैं कि वे किसी से कम नहीं हैं। और जब वे ठान लेती हैं तो असम्भव को भी सम्भव कर दिखाती हैं। और ऐसे में न सिर्फ उनके परिवारीजन वरन दुनिया जहान के लोग भी उन्हें ‘<b>लाखों में एक</b>’ कहने को मजबूर हो जाते हैं। ‘लाखों में एक’ उपन्यास एक ऐसी ही प्रेरक दास्तान है, जो एक बेहद मामूली लड़की के ‘लाड़ली’ बनने के सफर को रोचकता से बयां करती है और पाठकों के चेहरे पर आश्चर्यमिश्रित मुस्कान बिखेर देती है।<br /><br />
ये कोई कहने की बात नहीं कि साधारण से साधारण बच्चों के भीतर भी कोई न कोई असाधारणता छिपी रहती है। पर अक्सर उनके अभिभावक उसे पहचान नहीं पाते और उन्हें अपनी अपेक्षाओं की भट्टी में झोंक देते हैं। लेकिन कभी-कभी उनके जीवन में कोई ऐसी घटना घट जाती है, जिससे उनका पूरा का पूरा जीवन बदल जाता है और ‘कांच‘ समझा जाने वाला बच्चा ‘हीरे’ की तरह दमक उठता है। ‘हीरे का मोल’ उपन्यास एक ऐसी ही रोचक कहानी है, जो पाठकों को सहज रूप से अपनी ओर आकर्षित करती है।<br /><br />
कभी-कभी बच्चे ‘शॉर्टकट’ के चक्कर में पड़कर ऐसे कदम उठा लेते हैं, जिससे उनके जीवन में भूचाल सा आ जाता है। और जब यह भूचाल थमता है, तो उनके चारों ओर फैली तबाही पछतावे का कारक बनती है। ‘<b>सोने की खान</b>’ एक ऐसी ही हैरतअंगेज कहानी है, जो पाठकों के मस्तिष्क पर न सिर्फ गहरा प्रभाव छोड़ती है, बल्कि उसे सोचने के लिए भी विवश करती है।<br /><br />
बाल जीवन केंद्रित उपन्यासों में अंतिम दो कृतियां हैं ‘<b>नन्हां दधीचि</b>’ और ‘<b>उजली धूप</b>’। इसमें से नन्हां दधीचि एक ऐसे बच्चे की कहानी है, जो अपनी सुख-सुविधाओं से ज्यादा दूसरों की मदद के बारे में सोचता है। इसके लिए न सिर्फ वह अपनी सुविधाओं का त्याग कर देता है, वरन दूसरों के होठों पर मुस्कान लाने के लिए अपना सर्वस्व तक निछावर कर देता है। जबकि ‘उजली धूप’ दो जुड़वा बहनों की कथा है। इनमें से एक बहन सिर्फ अपने बारे में सोचती है और अपनी कामयाबी के रास्ते में आने वाली अपनी बहन का भी मजाक उड़ाने से नहीं चूकती है। जबकि दूसरी बहन अपने उद्देश्यों को लेकर बेहद सहज रहती है। इसके साथ ही साथ वह अपने परिवारिक और सामाजिक दायित्वों का भी निवर्हन करती है और अंत्तोगत्वा अपने सद्गुणों के बल पर हर किसी की आंखों का तारा बन जाती है।<br /><h3>
2. समस्यामूलक उपन्यासः</h3>
उषा यादव ऐसी रचनाकार हैं, जो बच्चों के सर्वांगीण विकास के साथ ही सामाजिक समस्याओं और विद्रूपताओं पर भी नजर रखती हैं और उन्हें बेहद सलीके से अपनी रचनाओं में पिरो देती हैं। यही कारण है कि उन्होंने न सिर्फ बाल जीवन के विविध पहलुओं बल्कि सामाजिक समस्याओं को भी अपने उपन्यासों का विषय बनाया है और उनके जरिए पाठकों के मध्य सामाजिक चेतना का अलख जगाया है। उनके ऐसे ही समस्यामूलक उपन्यास हैं ‘<b>सोना की आंखें</b>’, ‘<b>फिर से हंसो धरती मां</b>’ और ‘<b>नाचें फिर जंगल में मोर</b>’।<br /><br />
इनमें से पहला उपन्यास ‘<b>सोना की आंखें</b>’ इंसानी लालच और भ्रष्टाचार जैसे गम्भीर विषय पर केंद्रित है, जिसमें राजकीय उद्यान में पले हिरनों की दुर्दशा को केंद्र में रखा गया है। हिरनों के लिए उगायी जाने वाली घास, उनके पीने के लिए उपलब्ध कराये जाने वाले पानी और उनके इलाज के लिए आने वाली दवाओं पर इंसानों की लालची दृष्टि पड़ने के कारण उनकी संख्या आश्चर्यजनक रूप से कम होने लगती है। इसके विरोध में उद्यान के चैकीदार का लड़का आवाज उठाता है और दो अन्य बच्चों के साथ मिलकर कैसे हिरनों के जीवन को बचाता है, यह एक रोचक घटनाक्रम के रूप में पाठकों के समक्ष आता है।<br /><br />
इस श्रेणी का दूसरा उपन्यास ‘<b>फिर से हंसो धरती मां</b>’ हमारे चारों ओर फैले हुए हर तरह के प्रदूषण को केंद्र में रखकर लिखा गया है। यह उपन्यास हमें बताता है कि यदि हमने बेतहाशा बढ़ते हुए प्रदूषण को रोकने के लिए आज ही कदम नहीं उठाया, तो आने वाले समय में हमारा जीवन बेहद दूभर हो जाएगा और तब पछताने पर भी हमारे हाथ कुछ नहीं आएगा।<br /><br />
‘<b>नाचें फिर जंगल में मोर</b>’ इस श्रेणी का तीसरा उपन्यास है, जो तेजी से लुप्त हो रहे हमारे राष्ट्रीय पक्षी मोर पर केंद्रित है। लेखिका ने मोरों तथा अन्य पक्षियों के लुप्त होने की समस्या को इस उपन्यास में प्रमुखता से उठाया है। इसके बावजूद यह उपन्यास पठनीयता के पैमाने पर पूरी तरह से खरा उतरता है और अपनी आश्चर्यजनक प्रभावोत्पादकता के कारण पाठकों के मन को झकझोर देता है।<br /><h3>
3. फैंटेसीपरक उपन्यासः</h3>
उषा यादव के बाल उपन्यासों में जहां एक ओर बाल जीवन की विभिन्न झाकियां देखने को मिलती हैं, वहीं दूसरी ओर उनकी रचनाओं में फैंटेसी का आश्चर्यलोक भी अपने विराट स्वरूप में नजर आता हैं। ‘किले का रहस्य’, ‘<b>सातवां जन्म</b>’ और ‘<b>बोलते खण्डहर</b>’ उनके ऐसे ही बाल उपन्यास हैं। वे इन रचनाओं में कल्पना का ऐसा मायालोक रचती हुई नजर आती हैं, जिसके सम्मोहन से बच पाना पाठक के लिए सम्भव नहीं रह पाता। इन उपन्यासों में परी कथाओं वाली कल्पनाशीलता को आज के कटु यथार्थ के साथ अत्यंत कुशलता से पिरो दिया गया है। इस वजह से जहां एक ओर ये आनंदित करते हैं, वहीं हमें सोचने के लिए भी विवश करते हैं। और यही इनकी सार्थकता भी है।<br /><br />
उषा यादव के बाल उपन्यासों के कथानक को जब हम गहराई से देखते हैं, तो उसमें हमारे समाज के कटु यथार्थ का प्रामाणिक अंकन दिखाई पड़ता है। पर इसके साथ ही उस विकृत समाज को संवारने और उसे एक आदर्श स्वरूप प्रदान करने की उनकी ललक भी हमें जगह-जगह दृष्टिगोचर होती है। लेकिन इसके साथ ही साथ बाल मनोभावनाओं का सूक्ष्म अंकन और उनकी मासूम चाहतों का कुशल चित्रण भी उनके उपन्यासों की एक प्रमुख विशेषता है। इसका एक छोटा सा उदाहरण ‘<b>मां और मैं</b>’ उपन्यास के मुख्य पात्र आशुतोष में देखा जा सकता है। आशुतोष एक गरीब विधवा मां का इकलौता बेटा है, जो उसे किसी तरह मेहनत-मजदूरी करके पढ़ा रही है। आशुतोष भी अपनी मां की स्थिति को समझता है। इसलिए वह अपनी इच्छाओं का दमन कर चुका है। लेकिन जब एक बार स्वतंत्रता दिवस पर उसके स्कूल में लड्डू के स्थान पर आइसक्रीम मिलती है, तो उसे चखने के बाद वह अपनी मासूम हसरतों पर नियंत्रण नहीं रख पाता और उसके मन में भी अभिलाषाएं कुलबुला उठती हैं-<br /><br />
‘‘एक आइसक्रीम ने मेरे मन में एक और आइसक्रीम खाने का लोभ जगा दिया था। अपनी गरीबी को लेकर मेरे भीतर गहरा मलाल जागा। यह आइसक्रीम तो मेरी कक्षा के अनेक बच्चे रोज ही छुट्टी के बाद खाते हैं। विद्यालय के फाटक के बाहर आइसक्रीम के कई ठेले जो खड़े रहते हैं। उन्हें नित्य ही तो इस तरह गोलगप्पे खाते, मीठी चुस्की उड़ाते और आइसक्रीम को गपागप चट करते देखता हूं मैं। कभी मन में कोई भाव नहीं जागा। पर आज पहली बार आइसक्रीम का स्वाद चखने पर ऐसा महसूस हो रहा था कि इस अनूठे सुख को, चाहे जैसे भी हो, मुझे दुबारा लूटना ही है।’’ (पृष्ठ-351, खण्ड-3)<br /><br />
चाहे वह आइसक्रीम के लिए बच्चे का मचलना हो, या फिर खिलौनों को पाने की जिद करना, इसके लिए न बच्चे को डांटा जा सकता है और न ही न अपनी गरीबी का रोना रोकर उसे मन मारने का उपदेश दिया जा सकता है। ऐसे नाजुक अवसरों को एक मां की समझदारी ही हैंडल कर सकती है। और वह समझदारी इन रचनाओं में सर्वत्र देखी जा सकती है-<br /><br />
‘‘उधर मां बोलती जा रही थी- ‘और आसमान का चंदा मामा? आकाश के चमकीले तारे? इधर-उधर दौड़ने वाले बादलों के छौने? ये सारे के सारे तेरे दोस्त ही तो हैं। पार्क में आने वाले अमीर बच्चों के ऊंचे-बहुमंजिले फ्लैट्स में तो इन्हें देखने का कोई जरिया ही नहीं है। ले-देकर बचती हैं, दो-एक बालकनी, जिन्हें भी वे लोग सामान रखने के लोभ में ऊपर से और सामने से घेर लेते हैं।’’ (पृष्ठ-235, खण्ड-3)<br /><br />
पर अमूमन हमारे समाज में बच्चों को न तो इतना प्यार मिलता है और न ही ऐसी समझदार माएं। इसके उलट ज्यादातर घरों में वक्त-बेवक्त बच्चों को सिर्फ डांट नसीब होती है और उनकी कमियों को अत्यंत बढ़ा-चढ़ा कर दिखाया जाता है। अगर संयोग से वह बच्चा ‘लड़की’ हुआ, तो फिर उसकी स्थिति और दयनीय हो जाती है। उसे हर बात पर लड़की होने का एहसास कराया जाता है और उसके जीवन का चरम लक्ष्य ससुराल जाना ही बताया जाता है। लेकिन जब कभी किसी संवेदनशील बच्ची को कहीं थोड़ा सा भी प्यार और मार्गदर्शन मिल जाता है, तो उसके जीवन में बड़ा बदलाव आ जाता है। इस बात को ‘<b>लाखों में एक</b>’ उपन्यास में स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है-<br /><br />
‘‘इति को महसूस हुआ जैसे यह छोटा-सा प्रोत्साहन उसके लिए हीरो-मोतियों से भी ज्यादा कीमती है। उसने मन ही मन संकल्प किया कि वह भी जरूर कुछ बनकर दिखायेगी। उसके घर में तो कोई ऐसी अच्छी बातें नहीं बताता। बड़ी दीदी से मां और दादी जरूर कहती हैं कि घर का काम-काज सीखो, तुम्हें ससुराल जाना है। पर पढ़-लिखकर कुछ बनने की बात किसी लड़की से नहीं कही जाती। ...आज तक वह यही समझती थी कि लड़कियां बड़ी होकर ससुराल जाती हैं और लड़के बड़े होकर ऊंचा अफसर बनते हैं।’’ (पृष्ठ-117, खण्ड-1)<br /><br />
स्नेह की दो बूंदें किसी उपेक्षित लड़की के जीवन ही नहीं, उद्दण्ड और जिद्दी लड़के की सोच को भी बदल सकती हैं, इसका सटीक उदाहरण ‘<b>पारस पत्थर</b>’ उपन्यास है। उपन्यास का नायक एक बद्तमीज लड़का है, जो अपने दादा-दादी के साथ रहता है। न तो उसका मन पढ़ने-लिखने में लगता है और न ही वह घर वालों का सम्मान करता है। लेकिन एक दिन जब उसके जीवन में उसके स्वर्गवासी पिता के अध्यापक आते हैं, तो एक ही मुलाकात में उसकी विचारधारा में आमूलचूल परिवर्तन हो जाता है-<br /><br />
‘‘रवि की आंखें फिर सजल हो उठीं। इन देवी-देवता सरीखे दादी-दादा की कीमत उसने आज तक क्यों नहीं पहचानी? कितना ध्यान रखते हैं ये लोग उसका! उसकी छोटी से छोटी जरूरत को भी तुरंत पूरा करते हैं और वह इन्हीं लोगों को बात-बेबात ताने दिया करता है। दो दिन पहले पेन की बात पर उसने कहा था कि भिखारी समझकर भीख देने की जरूरत नहीं है। छिः, क्या सोचा होगा दादी ने अपने मन में? बेचारी एकदम उदास हो गई थीं। अब वह हमेशा ध्यान रखेगा कि अपने इतने अच्छे दादा-दादी को कभी दुखी न करे।’’ (पृष्ठ-55, खण्ड-1)<br /><br />
उषा यादव इस बात से भलीभांति परिचित हैं कि व्यक्ति के जीवन में परिवर्तन तभी आता है, जब उसके साथ कोई कोई बड़ी घटना घटित होती है। इस सिद्धांत को उन्होंने अपने उपन्यासों में बेहद कामयाबी के साथ अपनाया है। और इसी की शानदार परिणति ‘<b>नाचें फिर जंगल में मोर</b>’ में देखी जा सकती है। उपन्यास का नायक पावस मोर संरक्षण को बढ़ावा देने के लिए एक नाटक लिखता है। वह उसके मंचन के समय कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में उन्हीं लोगों को बुलाता है, जो सीधे-सीधे मोरों की हत्या से जुड़े हुए हैं-<br /><br />
‘‘होटल मालिक गुस्से से कांपने लगा, ‘‘तुझे यह जरा-सा खून दिख रहा है? मेरी आंखों के आगे सितारे नाच रहे हैं, तुझे चोट लगी होती, तब पता चलता।’’<br /><br />
‘‘खुद चोट खाकर सचमुच पता चल जाता है, साबजी?’’ मोर ने अपनी आंखें टिमकाईं, ‘‘तब तो आपको भी चूल्हे पर चढ़कर पतीले में पकने वाले, छुरे से काटे गए मोरों का दर्द महसूस हो रहा होगा?’’ (पृष्ठ-201, खण्ड-2)<br /><br />
मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं कि सिर्फ कथानक और प्राभावोत्पादकता की दृष्टि से ही नहीं, बाल साहित्य समीक्षा के जितने भी पैमाने हैं, ये उपन्यास उन सभी पर पूरी तरह से खरे उतरते हैं। उपन्यासों में आए चरित्रों की स्पष्ट छाप, घटनाओं का जीवंत चित्रण, भाषा की रवानगी और संवादों की सजीव प्रस्तुतियों के मध्य स्वाभाविक रूप से पिरोये गये जीवन दर्शन रूपी मोती इन कृतियों को वह ऊंचाई प्रदान करते हैं, जहां पहुंच कर एक पाठक को सार्थकता का एहसास होता है। हालांकि बालसाहित्य की ज्यादातर रचनाएं इस दृष्टि से निराश करती हैं, पर उषा यादव के यह उपन्यास इस नजरिए से लाजवाब हैं और पाठकों को हिन्दी बाल साहित्य के उस श्रेष्ठ स्वरूप से परिचित कराते हैं, जिसे हम सहर्ष विश्व साहित्य के समकक्ष रख सकते हैं।<br /><br />
संक्षेप में हम कह सकते हैं कि ‘<b>उषा यादव के बालउपन्यास</b>’ (समग्र) एक ऐसा अनमोल खजाना है, जिसे पाकर कोई भी बच्चा गदगद हुए बिना नहीं रह सकता। ये उपन्यास जहां एक ओर पाठकों को आनंद की अनुभूति कराते हैं, वहीं उन्हें जीवन में आगे बढ़ने की प्रेरणा भी देते हैं। इस समग्र के सभी उपन्यास पूर्व में विभिन्न प्रकाशकों के द्वारा पृथक-पृथक प्रकाशित हो चुके हैं। किन्तु इनमें से ज्यादातर की उपलब्धता असुविधाजनक रही है। ऐसे में इनका समग्र के रूप में सामने आना बालसाहित्य जगत के लिए एक आह्लादकरक सूचना है। इसके लिए लेखिका पद्मश्री उषा यादव ही नहीं इसके प्रकाशक भी बधाई के हकदार हैं।
<br /><br />
पुस्तक- उषा यादव के बालउपन्यास (समग्र-तीन खण्ड)<br />
लेखक- उषा यादव<br />
सम्पादक- कामना सिंह<br />
प्रकाशक- नमन प्रकाशन, 4231/1, अंसारी रोड, दरियागंज, नई दिल्ली-110002 मोबाइल- 8595352540<br />
प्रकाशन वर्ष- 2023<br />
कुल पृष्ठ- 1282<br />
कुल मूल्य- 3250<br /></div><div>
<script>
document.title = "Usha yadav Ke Bal Upanyason Ka Rochak Sansar";
</script> </div>Dr. Zakir Ali Rajnishhttp://www.blogger.com/profile/03629318327237916782noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-290840405926959662.post-60852583562470573632023-06-12T17:57:00.010+05:302023-06-15T14:43:20.459+05:30अल्लाह मियाँ का कारख़ाना-बच्चे की नज़र से दुनिया की विसंगतियां
<div style="text-align: justify;"><span style="font-size: medium;">
नई दिल्ली में आयोजित एक भव्य समारोह में दिनांक 11 जून, 2023 को उर्दू के रचनाकार मोहसिन खान को उनके उपन्यास 'अल्लाह मियाँ का कारख़ाना' के लिए 21 लाख रुपये के पहले बैंक आफ बड़ौदा राष्ट्रभाषा सम्मान से नवाज़े जाने की घोषणा हुई।</span><span style="font-size: large;"> साथ ही उपन्यास के हिन्दी अनुवादक डा. सईद अहमद संदीलवी को भी पुस्तक के हिन्दी अनुवाद के लिए 15 लाख रुपये प्रदान कर सम्मानित किया जाएगा। ज्ञातव्य है कि यह पुरस्कार बैंक आफ बड़ौदा द्वारा भाषाई सामंजस्य को बढ़ावा देने के लिए शुरू किया गया है, जिसमें हिन्दी में अन्य भारतीय भाषाओं से अनुदित रचनाओं को मूल लेखकों व अनुवादकों को पुरस्कृत किया जाता है।</span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-size: medium;">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgDU5-1YBCW8ucGmK1ZpM8UZth8Oa7AlvAQvLpe60ga9xbqf3YxF19us8l4xxLGzSyvR3KVwG3xw2wm6Atp8sQhuNwGD0ZJ-ksI7PKeGUQWLy7y8C0ZjPHX8CIZ2yi9lCu_VPGdCdkfO-HxEzHCzS_ZsvRD7CRPo4BLq9gZyXcoLnFJCSNvefCzHdwhww/s893/Allah%20Miyan%20Ka%20Karkhana.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="Allah Miyan Ka Karkhana-Bank of Baroda Rashtra Bhasha Samman" border="0" data-original-height="692" data-original-width="893" height="496" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgDU5-1YBCW8ucGmK1ZpM8UZth8Oa7AlvAQvLpe60ga9xbqf3YxF19us8l4xxLGzSyvR3KVwG3xw2wm6Atp8sQhuNwGD0ZJ-ksI7PKeGUQWLy7y8C0ZjPHX8CIZ2yi9lCu_VPGdCdkfO-HxEzHCzS_ZsvRD7CRPo4BLq9gZyXcoLnFJCSNvefCzHdwhww/w640-h496/Allah%20Miyan%20Ka%20Karkhana.jpg" width="640" /></a></div>उर्दू अकादमी में सुपरिंटेंडेंट के पद से रिटायर हुए मोहसिन खान मुख्य रूप से बालकहानीकार हैं। उनकी शानदार चित्रात्मक लम्बी कहानी 'जामुन वाले बाबा' बेहद चर्चित रही है। राष्ट्रीय उर्दू भाषा विकास परिषदए नई दिल्ली से छपी उनकी इस किताब के साथ ही कई अन्य किताबें भी छपी हैंए जिनमें 'साझे का घोंसला', 'तोता कहानी' और 'इंसाफ' प्रमुख हैं। इसके अलावा उर्दू अकादमी, लखनऊ से प्रकाशित उनके बाल कहानी संग्रह 'दोस्ती का जश्न', 'मनसा राम का गधा' एवं 'चीनू खान' भी चर्चित रही हैं।<br /><br />
'अल्लाह मियाँ का कारख़ाना' एक अनूठे प्रकार का उपन्यास हैए जिसमें मुस्लिम समाज के एक बच्चे की दर्दभरी कहानी को उसी की जबानी बयां किया गया है। यह बच्चा अपनी छोटी सी उम्र में तरह-तरह की विसंगितियों से दो.चार होता है। ऐसे में उस बालमन पर क्या बीतती है, उपन्यास में इसे बहुत ही रोचक तरीके से बयां किया गया है। इस उपन्यास की तीन चीजें इसे बेहद खास बनाती हैंए पहला है उपन्यास के मुख्य पात्र जिब्रान का बालमनोविज्ञान और दूसरी है उसकी मुस्लिम पृष्ठभूमि, जो किसी आश्चर्यलोक के समान पाठकों के समक्ष आती है। और तीसरी विशेषता है लेखक की खास शैली, जो पाठकों को मंत्रमुग्ध सी कर देती है।<br /><br />
उपन्यास का मुख्य नायक जिब्रान किशोरावस्था की ओर बढ़ रहा एक ऐसा बच्चा है, जिसकी धार्मिक रूढ़ियों और परम्पराओं में बिलकुल भी रुचि नहीं है। वह मुर्गी के बच्चों के साथ खेलना चाहता है, पतंग उड़ाना चाहता है और अपने आसपास के बच्चों के साथ वे तमाम हरकतें करना चाहता है, जिसके लिए उसके घर में सख्त मनाही है। लेकिन इस क्रम में जब बार-बार अम्मा और अब्बा के द्वारा उसे दंडित किया जाता है, तो उसके भीतर की उत्सुकता विद्रोह का रूप ले लेती है और वह चोरी के साथ वैसे काम भी कर डालता है, जिसके लिए उसे बार-बार 'नर्क की आग' से जलाने का भय दिखाया जाता है। जिब्रान के विपरीत उसकी छोटी बहन फालतू के कामों से दूर रहती है और पढ़ाई-लिखाई में रुचि रखती है। लेकिन उसे भी 'मरने के बाद क्या होगा' और 'जन्नत की नेमतें' जैसी धार्मिक किताबों की तुलना में 'दुनिया के चंद महान लोग' और कहानियों की किताबें पढ़ना ज्यादा अच्छा लगता है। वह अपने भाई के लिए बेहद चिंतित रहती है और बार-बार उसे धार्मिक और सामाजिक दण्डों का हवाला देकर सुधारने का प्रयास करती है। लेकिन जिब्रान पर उनका कोई असर नहीं होता है और इस तरह से वह दण्ड और अपमान झेलने का आदी हो जाता है।</span></div><div style="text-align: center;"><span style="font-size: medium;"> </span><span style="font-size: medium;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhssVi24KXdLLFbUrvxXWEDe3TAvHpg1vEaqFywqPo44cJlCYDjFJhtibdUeZ5_J67LhnXt00uBiJCHdDQe7ympN9xTxifoKf2A3B9BWX_rJYpQoMEJYibPos_8EDqX00hcVPhgkDwNaKMN8Hp1fCIBUa1jhvXrCthZvxb4ZuOWLKAtsnA5SdCqgRGr1g/s1243/Ban%20of%20Baroda%20Rashtrabhasha%20Samman%202023.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="Ban of Baroda Rashtrabhasha Samman 2023" border="0" data-original-height="764" data-original-width="1243" height="246" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhssVi24KXdLLFbUrvxXWEDe3TAvHpg1vEaqFywqPo44cJlCYDjFJhtibdUeZ5_J67LhnXt00uBiJCHdDQe7ympN9xTxifoKf2A3B9BWX_rJYpQoMEJYibPos_8EDqX00hcVPhgkDwNaKMN8Hp1fCIBUa1jhvXrCthZvxb4ZuOWLKAtsnA5SdCqgRGr1g/w400-h246/Ban%20of%20Baroda%20Rashtrabhasha%20Samman%202023.jpg" width="400" /></a></span><br /></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-size: medium;">
जिब्रान के अब्बा जोकि एक रूढ़िवादी व्यक्ति हैं, संसार को दुनियावी नज़रिए से नहीं बल्कि मरने के बाद क्या होगाए इस सोच से ही देखते हैं। यही कारण है कि वे न तो अपनी माली हालत के लिए चिंतित होते हैं और न ही बच्चों के भविष्य के लिए। ऐसे व्यक्ति के परिवार का हश्र क्या हो सकता है, इसे उपन्यास में बखूबी दिखाया गया है। इसी उपन्यास के एक मुख्य पात्र हैं हाफिज जी, जो मस्जिद से सटे मदरसे में रहते हैं और बच्चों को अरबी व उर्दू पढ़ा कर अपनी गुजर-बसर करते हैं। लेकिन वे अपनी मान्यताओं और रूढ़ियों के कारण इस कदर कुण्ठित हो गये हैं कि बात-बात पर बच्चों को प्रताड़ित करते करते हैं। लेकिन अन्ततोगत्वा उन्हें भी इन सबसे ऊब हो जाती है और वे दुनियावी कारोबार में शामिल होने के लिए मदरसे को अलविदा कह देते हैं।<br /><br />
उपन्यास यह दिखाता है कि अति कभी भी किसी के लिए भली नहीं होती। और जो इसके चक्कर में पड़ता है, उसका जीवन तबाह होने में देर नहीं लगती। जीवन के इस सार को उपन्यास में कदम-कदम पर बयां किया गया है। कहीं पर यह कथानक के रूप में है और कहीं पर सूत्रों के रूप में। ऐसी ही उपन्यास की कुछ नायाब सूक्तियां यहां पर नमूने के रूप में प्रस्तुत हैंः<br /><br />
'चवन्नी चुराने के जुर्म में मुर्गा बना के इबरत की छड़ियां मारी जायें और शर्मिन्दगी का एहसास न हो तो दिल में अठन्नी चुराने का ख्याल ज़रूर आयेगा।' </span><br /></div><div style="text-align: center;"><span style="font-size: medium;">X X X </span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-size: medium;">'तुम अपनी पतंग को उतनी ही ऊंचाई तक ले जा सकते होए जितनी तुम्हारे पास डोर।' </span></div><div style="text-align: center;"><span style="font-size: medium;">X X X </span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-size: medium;">'उलझी हुई डोर को सुगमता से न सुलझाया जाए तो ज्यादा उलझ जाती है और उसे तोड़ कर गांठें लगाना पड़ती है।'<br /><br />
यह उपन्यास पहली बार मुस्लिम समाज के बच्चों की दुनिया को प्रामाणिकता से बयां करता है। उपन्यास बताता है कि बच्चे अनुभव से सीखते हैं और उसके अनुरूप ही व्यवहार करते हैं। ऐसे ढ़ेरों प्रसंग इस उपन्यास में देखने को मिलते हैं। उपन्यास के पूर्वाद्ध में एक दिन जिब्रान की मुर्गी का एक बच्चा मर जाता है। जिब्रान उसे अपनी बहन के साथ मिलकर उसकी कब्र बना कर दफनाता है और मरने की दुआ भी पढ़ता है</span><span style="font-size: medium;">।</span><span style="font-size: medium;"> लेकिन जब अगले दिन उसे पता चलता है कि बिल्ली चूजे की कब्र खोद कर उसे उठा ले गयी है, तो वे इस रस्म को निभाना फिजूल समझते हैं और दूसरे चूज़े के मरने पर उसे एक ऊंची जगह पर रख कर ही अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेते हैं।<br /><br />
उपन्यास के मुख्य पात्र ही नहीं कहानी के गौण पात्र के रूप में आए बच्चे भी अपनी गतिविधियों के साथ-साथ अपनी बातों के द्वारा भी अपनी उपस्थिति प्रमुखता से दर्ज कराते हैं और लेखक के बालमनोविज्ञान के पारखी होने का सुबूत देते हैं:<br /><br />
कहानी के अहम किरदार हाफिज जी जब बच्चों को बताते हैं कि अल्लाह ने ये दुनिया छः दिनों में बनाई, तो नसरीन बालसुलभ जिज्ञासा से पूछ उठती है. 'छः दिन क्यों लगाए, अल्लाह मियां तो एक दिन में भी बना सकते थे।' (पृष्ठ-27)<br /><br />
कुल मिलाकर अगर संक्षेप में उपन्यास के सार को बयां किया जाए, तो यहां पर जिब्रान के चाचा जमील का एक वाक्य प्रस्तुत किया जा सकता है, जिसमें वे जिब्रान के यह पूछने पर कि क्या आपके पास मौत की किताब भी है, वे कहते हैं. 'बेटा मेरे पास ज़िंदगी की किताबें हैं।'<br /><br />
मेरी समझ से यही उपन्यास का सार है, जो मुस्लिमों को यह समझाने के मकसद से लिखा गया है कि सिर्फ मरने के बाद क्या होगा, इसकी फिक्र में न मुब्तिला रहो। अगर दुनिया में आए हो, तो थोड़ी सुध दुनिया की भी लेनी पड़ेगी।<br /><br />
इस शानदार उपन्यास का हिन्दी में तर्जुमा सईद अहमद सन्दीलवी ने किया है और प्रकाशित किया है मैटरलिंक पब्लिशर्स लखनऊ ने। 225 पृष्ठों में फैला यह उपन्यास निश्चित रूप से मुस्लिम समाज की एक ऐसी सच्चाई को उघाड़ता है, जिसके बारे में हिन्दी में कम लिखा गया है। अगर आप मुस्लिम समाज की रूढ़ियों और उनकी सामाजिक दुश्वारियों को नज़दीक से समझना चाहते हैं, तो आपको यह उपन्यास ज़रूर पढ़ना चाहिए।<br /><br />
पुस्तकः अल्लाह मियाँ का कारख़ाना<br />
लेखकः मोहसिन खान<br />
अनुवादकः डाॅ. सईद अहमद संदीलवी<br />
प्रकाशकः मैटरलिंक पब्लिशर्स, 1870, फस्र्ट फ्लोर, लेखराज डाॅलर, इंदिरा नगर, लखनऊ email:aglawaraq@gmail.com<br />
प्रकाशन वर्ष: 2022<br />
पृष्ठः 232<br />
मूल्यः रु. 450<br /></span></div>Dr. Zakir Ali Rajnishhttp://www.blogger.com/profile/03629318327237916782noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-290840405926959662.post-57317641485213625792022-11-08T10:35:00.011+05:302022-11-08T11:14:23.090+05:30बाल विज्ञान कथा: रोबो (लेखक- ज़ाकिर अली 'रजनीश')<div style="text-align: center;"><h2><span style="font-size: medium;"><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEidZNdWu6a1O4A7O9j8rxMDeDaEq9eZ5EzV29eeATGiFrbl8i021jWK54Rsue_-YLVzMpglZY0KZPNWyuc6hF1vzdvA9JlTIEhWLAG94us39IMOqQ_ZizcD2UiPU-butxkN8zb9fnP6Pek30rzrrsQwvO9tKJHnCMVKNExtlNJRealTiHw3kt6RImOtwg/s1200/Robo.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="Robo" border="0" data-original-height="720" data-original-width="1200" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEidZNdWu6a1O4A7O9j8rxMDeDaEq9eZ5EzV29eeATGiFrbl8i021jWK54Rsue_-YLVzMpglZY0KZPNWyuc6hF1vzdvA9JlTIEhWLAG94us39IMOqQ_ZizcD2UiPU-butxkN8zb9fnP6Pek30rzrrsQwvO9tKJHnCMVKNExtlNJRealTiHw3kt6RImOtwg/s16000/Robo.jpg" /></a></div><span style="font-size: large;">बाल विज्ञान कथा: रोबो </span></span></h2></div><div><h3 style="text-align: right;"><span style="font-size: medium;">
ज़ाकिर अली 'रजनीश'</span></h3><div style="text-align: justify;"><span style="font-size: medium;">
‘‘नेमो! अरे, कहां मर गया नेमो के बच्चे?’’ सोमी अपने नौकर पर चीख रहा था। वैसे सोमी का नाम तो है सोमेश, लेकिन प्यार से सभी उसे सोमी ही कहते हैं।</span><br /><br /><span style="font-size: medium;">
नेमो, सोमी के नौकर का नाम है। नेमो, यानी रोबोट। सचमुच का रोबोट। लोहे का बना हुआ, पर देखने में एकदम मनुष्य जैसा। आदमी की तरह चलता है, सुनता है और आदमी की ही तरह सारे काम भी करता है। </span><br /><br /><span style="font-size: medium;">
सोमी अपने पिता का इकलौता लड़का है। पिछले साल उसकी मां का स्वर्गवास हो गया था। उसके पिता डाक्टर हैं। उनके पास तो सोमी से बात करने का भी समय नहीं होता। फिर घर का काम-काज कौन करे?</span><br /><br /><span style="font-size: medium;">
शुरू में सोमी के पिता ने गांव से अपनी मां को बुला लिया था। लेकिन उन्हें शहर की गन्दी हवा और शोर रास नहीं आया। वे एक महीने बाद ही गांव वापस लौट गयीं। इसके बाद सोमी के पिता ने एक नौकरानी रखी। खाना बनाने से लेकर झाडू-पोछा तक का सारा काम वह करती थी। लेकिन एक दिन वह मौका पाकर घर का तमाम कीमती सामान लेकर नौ दो ग्यारह हो गयी।</span><br /><br /><span style="font-size: medium;">
सोमी के पिता के सामने फिर वही समस्या आई कि घर का काम-काज कौन करे? संयोग से उसी दिन उन्हें पता चला कि किसी कंपनी ने रोबोट के ऐसे माडल बनाए हैं, जो घर का सारा काम भी करते है। अंधे का क्या चाहिए, दो आंखें? अत: वे दुकान से एक नौकर रोबोट खरीद लाए।</span><br /><br /><span style="font-size: medium;">
लम्बाई के लिहाज से रोबोट सोमी के बराबर ही है। मशीन से चलने वाले उसके हाथ-पैर और देखने के लिए आंखों में लगे हुए दो बड़े- बड़े लेन्स। उसकी पीठ में एक बैटरी लगती है, जिससे रोबोट को ऊर्जा मिलती है। एक महीने में एक बार बैटरी चार्ज करा लो और फिर सारी चिंताएं खत्म। न कामचोरी का रोना और न ही घर के सामान को लेकर चंपत होना का खतरा।</span><br /><br /><span style="font-size: medium;">
रोबोट को देखकर सोमी बहुत खुश हुआ। रोबोट देखने में एकदम खिलौना लगता है। सोमी ने सेाचा अब वह उससे अपने सारे काम करवाएगा और अपने दोस्तों को दिखा कर उनपर अपना रौब भी गांठेगा।</span><br /><br /><span style="font-size: medium;">
लेकिन नौकर का कोई नाम भी तो होना चाहिए। आखिर उसे किस नाम से बुलाया जाएगा? माना कि ये मशीनी नौकर है, लेकिन कोई नाम तो रखना ही पड़ेगा। पापा ने इसका जिम्मा सोमी पर ही छोड़ दिया। सोमी काफी देर तक सोचता रहा। उसने कई नामों पर गौर किया, लेकिन कोई जमा नहीं। कोई नाम बहुत कॉमन था, तो कोई बेढ़ंगा सा। अंत मे उसे `नेमो` नाम पसंद आया। और यही रोबोट का नाम रख दिया गया। रवि सोचने लगा- नेमो, कितना प्यारा नाम है। और फिर बुलाने में भी आसान है।</span><br /><br /><span style="font-size: medium;">
इस प्रकार सोमी के नौकर का नामकरण सम्पन्न हो गया। नेमो कोई आदमी तो था नहीं, जो उसे अपना नाम याद रखने में समस्या होती। वह तो ठहरा मशीन। जो चीज उसने एक बार अपने दिमाग में फीड कर ली, वह हमेशा के लिए सुरक्षित हो गयी।</span><br /><br /><span style="font-size: medium;">
नेमो वाकई बहुत समझदार निकला। घर के सारे काम वह बहुत होशियारी से करता है। समय पर चाय, समय पर नाश्ता और समय पर खाना मिलता है। घर की घड़ियां भले ही लेट हो जाएं, पर वह कभी एक सेकेण्ड भी इधर से उधर नहीं होता है।</span><br /><br /><span style="font-size: medium;">
खाली समय में सोमी नेमो के साथ शतरंज खेलता है। शुरू-शुरू में तो नेमो अक्सर हार जाता था, लेकिन अब उसने अपने दिमाग में पहले की सारी चालें फीड कर ली हैं। अब वह अक्सर सोमी को मात लगा देता है। सोमी जब हार जाता, तो वह नेमो पर झूठ-मूठ के आरोप लगाने लगता। कभी-कभी तो वह उसे मार भी बैठता। लेकिन इससे नेमो को कोई फर्क नहीं पड़ता। उल्टा सोमी को ही चोट लगती और वह बैठ कर पछताता रहता।</span><br /><br /><span style="font-size: medium;">
आज भी जब दो बार आवाज देने के बाद नेमो नहीं आया, तो सोमी का पारा सातवें आसमान पर जा पहुंचा। वह इस बार और जोर से चिल्लाया, ‘‘तुम्हें सुनाई पड़ रहा है नेमो?’’ </span><br /><br /><span style="font-size: medium;">
लेकिन चौथी बार सोमी को चिल्लाना नहीं पड़ा। क्योंकि नेमो कमरे में दाखिल हो चुका था। उसे देखते ही सोमी का चेहरा गुस्से से लाल हो उठा और उसने बिना सोचे-समझे नेमो के गाल पर एक तमाचा जड़ दिया।</span><br /><br /><span style="font-size: medium;">
चटाक की आवाज हुयी और सोमी अपना हाथ पकड़ कर बैठ गया। उसके हाथ में बहुत तेज चोट लगी थी। लेकिन इस बार बजाए गुस्सा होने के सोमी शान्त पड़ गया। उसने अपना हाथ सहलाते हुए धीरे से पूछा, ‘‘तुम्हें सुनाई नहीं पड़ रहा था मैं कितनी देर से बुला रहा हूं?’’</span><br /><br /><span style="font-size: medium;">
‘‘गैस पर दूध उबल रहा था।’’ नेमो ने जवाब दिया, ‘‘अगर मै उसे छोड़ आता, तो वह बह जाता।’’</span><br /><br /><span style="font-size: medium;">
‘‘बह जाए, चाहे जल जाए। इस बार मैं जैसे ही तुम्हें बुलाऊं तुम तुरन्त मेरे पास आओगे। समझे?’’</span><br /><br /><span style="font-size: medium;">
नेमो कुछ नहीं बोला। आखिर वह ठहरा तो नौकर ही। और नौकर का काम ही है मालिक की आज्ञा का पालन करना।</span><br /><br /><span style="font-size: medium;">
शाम तक सोमी के हाथ में सूजन आ गयी। पापा को जब पता चला, तो उन्होंने सोमी को डांट लगायी। सोमी चुपचाप सुनता रहा। आखिर गल्ती भी तो उसी की थी। फिर भला वह कह भी क्या सकता था?</span><br /><br /><span style="font-size: medium;">
एक दिन सोमी अपने दोस्तों को घर लाया। पहले तो उसने नेमो को सबसे मिलवाया, फिर अपने दोस्तों के लिए चाय बनाकर लाने का हुक्म दिया। नेमो चुपचाप चाय बनाने चला गया। सोमी अपने दोस्तों के सामने नेमो की तारीफों के पुल बांधने लगा। </span><br /><br /><span style="font-size: medium;">
वह बोला, ‘‘मेरा नेमो बहुत होशियार हे। काम तो काम, वह शतरंज में भी एक्सपर्ट है। कभी-कभी तो वह मुझे भी मात लगा देता है।’’</span><br /><br /><span style="font-size: medium;">
‘‘अच्छा?’’ एक दोस्त ने आश्चर्यचकित होते हुए कहा।</span><br /><br /><span style="font-size: medium;">
‘‘और क्या?’’ सोमी को जोश आ गया, ‘‘तुमने अभी इसे देखा ही कहां है। काम तो यह चुटकी बजाते करता है। तुम देखना अभी एक मिनट के अंदर वह चाय लेकर आता है। और चाय भी ऐसी कि...।’’</span><br /><br /><span style="font-size: medium;">
‘‘लेकिन यार, नेमो को गये तो तीन मिनट से ऊपर हो गये,’’ एक दोस्त ने सोमी की बात काटी, ‘‘और अभी तक तो चाय...।’’</span><br /><br /><span style="font-size: medium;">
सोमी को लगा यह तो उसके लिए अपमान की बात है। उसने नेमो को आवाज दी, ‘‘नेमो, तुम क्या करने लगे? चाय लेकर आओ।’’</span><br /><br /><span style="font-size: medium;">
सोमी के सारे दोस्त उसे ही देख रहे थे। कभी-कभी वे लोग दरवाजे की ओर भी नजरें मार लेते। धीरे-धीरे लगभग पांच मिनट बीत गये और नेमो चाय लेकर नहीं आया। अब तो सोमी का धैर्य जवाब देने लगा। उसके सभी दोस्त मुस्करा रहे थे। जैसे कह रहें हों- ‘‘सोमी, देख ली हमने तुम्हारे नेमो की कार्यकुशलता? अरे, इससे जल्दी तो मेरी मम्मी चाय बना देतीं।’’</span><br /><br /><span style="font-size: medium;">
और जब सोमी से दोस्तों के सामने बैठा न गया, तो वह दरवाजे की ओर लपका। ठीक उसी समय चाय लेकर नेमो कमरे में दाखिल हुआ। वह सोमी को देखकर रूक गया और आहिस्ते से पूछा, ‘‘सोमी भैया, चाय कहां रखूं?’’</span><br /><br /><span style="font-size: medium;">
सोमी का पारा पहले से ही हाई था। वह गुस्से में बोला, ‘‘मेरे सिर पर!’’</span><br /><br /><span style="font-size: medium;">
अब नेमो तो मशीन ही ठहरा। और मशीन में इतनी समझ कहां कि वह सोमी की बात में छिपे व्यंग्य को समझ पाए? उसने चाय की ट्रे सचमुच में सोमी के सिर पर रख दी। </span><br /><br /><span style="font-size: medium;">
ट्रे छोड़ते ही उसका संतुलन बिगड़ गया। और देखते ही देखते गरमा-गरम चाय सोमी के ऊपर पलट गयी। सोमी का चेहरा बुरी तरह से झुलस गया। वह जोर-जोर से चीखने-चिल्लाने लगा। </span><br /><br /><span style="font-size: medium;">
सोमी के दोस्त यह देखकर घबरा गये। एक दोस्त ने उसके पापा का नम्बर मिलाया और उन्हें सारी बात बता दी।</span><br /><br /><span style="font-size: medium;">
पापा ने जब सोमी के जलने की खबर सुनी, तो वे अस्पताल से घर को भागे। सबसे पहले उन्होंने सोमी के जले हुए हिस्से पर मरहम लगाया और फिर जलने का कारण पूछा।</span><br /><br /><span style="font-size: medium;">
अब भला सोमी सच्ची बात कैसे बता देता? एक तो उसके दोस्त उसके ऊपर हंसते और दूसरे पापा की डांट अलग से खानी पड़ती। वह असली बात को गोल करके बोला, ‘‘पापा, जैसे ही मैं दरवाजे से निकल कर किचन की तरफ बढ़ा, नेमो से टकरा गया और फिर...।’’</span><br /><br /><span style="font-size: medium;">
‘‘ओह!’’ पापा बोले, ‘‘देख कर काम किया करो बेटे। मैंने तुमसे कितनी बार कहा है कि...।’’</span><br /><br /><span style="font-size: medium;">
लेकिन सोमी ने पापा की तरफ ध्यान ही नहीं दिया। वह तो नेमो की ओर निहार रहा था। नेमो एकदम हैरान-परेशान। उसे समझ में ही नहीं आया कि सोमी ने पापा से झूठ क्यों बोला?</span><br /><br /><span style="font-size: medium;">
सोमी को लगा कहीं नेमो उसकी पोल न खोल दे। वह याचना भरी दृष्टि से नेमो की ओर देखने लगा। जैसे कह रहा हो- ‘‘नेमो, पापा से कुछ नहीं कहना। ...प्लीज, एक बार मुझे मौका दो। आइंदा से मैं फिर कभी...।’’</span><br /><br /><span style="font-size: medium;">
नेमो ठहरा मशीन। उसे याचना या दया से क्या मतलब? लेकिन इसके बावजूद सोमी की भावनाएं उसे कहीं अंदर तक छू गयीं। उसने धीरे से एक बार सोमी की ओर देखा। उसकी आंखों में लगे लेन्स में एक अनोखी चमक सी आ गयी थी। वह धीरे से मुस्कराया और फिर किचन की ओर चला गया। आखिर उसे झाडू लेकर उस जगह की सफाई भी तो करनी थी?
<br /> <br />
<center><b>
नोट: कहानी के अन्यत्र उपयोग हेतु लेखक की अनुमति आवश्यक है। </b><br />
संपर्क सूत्र: zakirlko AT gmail DOT com </center>
<br />
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document.title = "Bal Vigyan Katha Robo by Zakir Ali Rajnish";
</script>
</span><br /></div></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-size: medium;">keywords: vigyan katha, bal vigyan katha, science fiction, children science fiction, zakir ali rajnish, hindi bal kahani
</span></div>Dr. Zakir Ali Rajnishhttp://www.blogger.com/profile/03629318327237916782noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-290840405926959662.post-72993965753508997832022-09-28T08:15:00.008+05:302023-07-25T08:54:52.291+05:30ई-मण्डी लाइसेंस नवीनीकरण कराने की पूरी विधि <div style="text-align: justify;"><h3><span style="font-weight: normal;"><span style="font-size: medium;">ई-मण्डी लाइसेंस नवीनीकरण (E-Mandi License Renewal) एक वर्ष, पांच वर्ष और आजीवन के लिए होता है। लेकिन जब लाइसेंस की अवधि समाप्त हो जाती है, तो व्यापारी की समस्त गतिविधियां प्रतिबंधित हो जाती हैं। ऐसी स्थिति में लाइसेंस को रिन्यू कराना ज़रूरी हो जाता है। तो आइये हम जानते हैं कि ईमण्डी पोर्टल पर लाइसेंस का नवीनीकरण कैसे करते हैं।</span> </span></h3></div><div style="text-align: center;"><h3>ई-मण्डी लाइसेंस नवीनीकरण (<span style="font-size: medium;">E-Mandi License R</span>enewal) की विधि</h3></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-size: medium;">ईमण्डी लाइसेंस को रिन्यू करने के लिए सबसे पहले ईमण्डी साइट पर जाएं। साइट खुलने पर आप इसमें लॉगिन न करें और नीचे की ओर देखें। यहां पर 'लाइसेंस का नवीनीकरण' </span><span style="font-weight: normal;">(E-Mandi License Renewal) </span><span style="font-size: medium;">नाम से एक आप्शन दिया हुआ है। आप इस पर क्लिक कर दें।<br /><br />
इससे साइट पर एक नया पेज खुल जाएगा। यहां पर दिये हुए कॉलम में उस लाइसेंस नम्बर को टाइप करें, जिसका रिनीवल होना है। इसके बाद दूसरे वाले कॉलम में कैप्चा भरें और फिर 'देखें' पर क्लिक कर दें।
इससे नवीनीकरण का पेज खुल जाएगा। इस पेज के पहले हिस्से में आवेदक का विवरण होता है, जोकि पहले से भरा हुआ है। <br /></span><h3><span style="font-weight: normal;"><span style="font-size: medium;">ई-मण्डी लाइसेंस नवीनीकरण (E-Mandi License Renewal) के दूसरे हिस्से में आवेदन शुल्क का विवरण है। इसमें लाइसेंस संख्या, मंडी का नाम और लाइसेंस का प्रयोजन पहले से भरा हुआ है। यहां पर हमें लाइसेंस रिनीवल की अवधि सेलेक्ट करनी है।
एक वर्ष की नवीनीकरण फीस है, 250 रू0 और पांच वर्ष की 1250! हम यहां पर एक वर्ष वाला आप्शन चुन रहे हैं। </span></span><br /></h3><span style="font-size: medium;">
इसके बाद अगला कॉलम शमन शुल्क का है। यहां पर शमन शुल्क का आशय है लेट फीस। आपको पता ही होगा कि मण्डी का लाइसेंस 1 जुलाई से 30 जून तक की अवधि के लिए जारी होता है। लेकिन जब रिनीवल की प्रक्रिया लेट होती है, तो व्यापारी को शमन शुल्क के रूप में लेट फीस देनी पड़ती है। <br /><br />
अगर आप </span><span style="font-weight: normal;"><span style="font-size: medium;">ई-मण्डी लाइसेंस नवीनीकरण (E-Mandi License Renewal) </span></span><span style="font-size: medium;">की प्रॉसेस देरी से कर रहे हैं, तो मण्डी कार्यालय से सम्पर्क करके शमन शुल्क पता कर लें और इस कॉलम में भर दें। लेकिन यदि आप समय से रिनीवल करा रहे हैं, तो यहां पर ज़ीरो भर दें।
इसके बाद आवेदन शुल्क जमा करने की प्रक्रिया है।<br /><br />
यहां पर आपकी आवेदन संख्या, लाइसेंस की अवधि और सम्बंधित मण्डी का कॉलम पहले से भरा हुआ है। इसलिए आप 'आवेदन शुल्क जमा करें' पर क्लिक करें।</span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-size: medium;"></span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-size: medium;"></span></div><div style="text-align: center;"><h4><span style="font-size: medium;"><b>ई मण्डी लाइसेंस (<a href="https://me.scientificworld.in/2022/05/e-mandi-license.html" target="_blank">E-Mandi License</a>) बनाने की विधि<br /></b></span></h4></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-size: medium;">
ऐसा करने पर आप एसबी कलेक्ट के पेज पर पहुंच जाएंगे। इसमें एक टिक बॉक्स बना हुआ है। आप इस पर क्लिक करें और 'प्रोसीड' का बटन दबा दें। <br /><br />
</span><div><span style="font-weight: normal;"><span style="font-size: medium;">ई-मण्डी लाइसेंस नवीनीकरण (E-Mandi License Renewal) के </span></span><span style="font-size: medium;">अगले पेज में पेमेंट कैटेगरी सेलेक्ट करनी है। आपको इसमें से मण्डी का नाम चूज़ करना है।</span></div><span style="font-size: medium;"><br />
मण्डी का नाम चुनते ही एक नया पेज खुलेगा। इसमें सबसे पहले कॉलम में एप्लीकेशन आईडी भरनी है। आप यहां पर अपना लाइसेंस नम्बर भर दें। इसके बाद फर्म के मुखिया का नाम और उसका मोबाइल नम्बर भरें।
इसके बाद एमाउंट का कॉलम है। चूंकि हम यह ट्रायल फार्म भर रहे हैं, इसलिए यहां पर 1 रूपये भर देते हैं। इसके बाद रिमार्क का कॉलम है। इसमें रिनीवल फी लिख दें।<br /><br />
इसके बाद फिर से आवेदक की पर्सनल डिटेल भरी जानी हैं, इसमें आवेदक का नाम, डेट आफ बर्थ, मोबाइल नं0, ईमेल आईडी और कैप्चा शामिल हैं। आप इन सभी कॉलम को भर लें और इसके बाद सब्मिट का बटन दबा दें।<br /><br />
सब्मिट करने पर नया पेज खुलेगा, जिसमें आपकी सारी डिटेल्स दिखेंगी। इसे चेक कर लें और फिर इसे कन्फर्म कर दें।<br /><br />
</span><span style="font-weight: normal;"><span style="font-size: medium;">ई-मण्डी लाइसेंस नवीनीकरण (E-Mandi License Renewal) के इस स्टेप में </span></span><span style="font-size: medium;">अब पेमेन्ट का आप्शन चुनना है। इसमें आनलाइन बैंकिंग के सारे आप्शन यथा डेबिट कार्ड से लेकर नेटबैकिंग तक सभी कुछ है। हम यहां पर यूपीआई चुन रहे हैं। <br /><br />
इसमें पहला आप्शन वर्चुअल पेमेंट ऐड्रेस का है। आप चाहें तो इसे भर लें या फिर क्यूआर कोड को क्लिक कर दें। इससे स्क्रीन पर एक क्यूआर कोड बन कर आ जाएगा।<br /><br />
अब आप अपने मोबाइल में अपनी यूपीआई पेमेंट ऐप खोलें और इस कोड को स्कैन करके पांच मिनट के भीतर इसका पेमेंट कर दें।<br /><br />
पेमेंट कंफर्म होते ही यह पेज आटो रिडायरेक्ट हो जाएगा और कंफर्मेशन रसीद दिखने लगेगी। <br /><br />
रसीद में नीचे पीडीएफ फाइल का लोगो बना हुआ है। जैसे ही आप इसपर क्लिक करेंगे, यह रसीद नये पेज में खुल जाएगी। यहां पर प्रिंट का बटन भी बना हुआ है। आप इसपर क्लिक करदें। <br /><br />
इससे एक नया पेज खुल जाएगा। अगर आपके कंप्यूटर में प्रिंटर जुड़ा हुआ है, तो इसे प्रिंट कर लें, नहीं तो इसे पीडीएफ के रूप में सेव कर लें।<br /><br />
इसके बाद फिर से आप ईमण्डी की साइट खोलें और 'लाइसेंस का नवीनीकरण' </span><span style="font-weight: normal;"><span style="font-size: medium;">(E-Mandi License Renewal) </span></span><span style="font-size: medium;">पर क्लिक करके उसमें लाइसेंस नम्बर डालें और कैप्चा भर कर अगले पेज पर पहुंच जाएं।<br /><br />
यहां पर फिर से लाइसेंस की अवधि भर लें और शमन शुल्क में जीरो अंकित कर दें।<br /><br />
इसके बाद 'आवेदन शुल्क का विवरण' है, जिसमें सबसे पहला कॉलम ट्रांजेंक्शन संख्या है। यह संख्या आपको उस रसीद में मिलेगी, जो अभी आपने डाउनलोड की है। इसलिए डाउनलोड की हुई रसीद को खोलें और उसमें से ट्रांजेक्शन संख्या कॉपी करके यहां पर पेस्ट कर दें।<br /><br />
इसके बाद ट्रांजेक्शन का दिनांक भरना है। इसे भी भर दें। इसके बाद जमा की गयी राशि का अंकन करना है। ध्यान रहे ये तीनों ही विवरण सही-सही होने चाहिए। क्योंकि बैंक द्वारा प्राप्त पेमेंट डिटेल्स में से इन तीनों चीजों के मिलान के बाद ही सचिव द्वारा आपका लाइसेंस रिन्यू किया जाएगा।<br /><br />
सारे कॉलम भरने के बाद नीचे बने चेक बॉक्स पर टिक कर दें और इसके बाद 'संरक्षित करें' पर क्लिक करें। इस तरह </span><span style="font-weight: normal;"><span style="font-size: medium;">ई-मण्डी लाइसेंस नवीनीकरण (E-Mandi License Renewal)</span></span><span style="font-size: medium;"> की प्रक्रिया पूरी हुई।
</span><br /></div><div><br />
<center>
<iframe allow="accelerometer; autoplay; clipboard-write; encrypted-media; gyroscope; picture-in-picture" allowfullscreen="" frameborder="0" height="315" src="https://www.youtube.com/embed/69EGqBo-OwY" title="YouTube video player" width="560"></iframe> </center> <br /><br /></div><div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: medium;">इसके बाद </span><span style="font-weight: normal;"><span style="font-size: medium;">ई-मण्डी लाइसेंस नवीनीकरण (E-Mandi License Renewal) की </span></span><span style="font-size: medium;">बाकी कार्यवाही सचिव के स्तर से होनी है। चूंकि यह वीडियो व्यापारियों और मण्डी कर्मचारियों की ट्रेनिंग के लिए बनाया जा रहा है, इसलिए अब हम जानेंगे कि नवीनीकरण का फार्म भरने के बाद कार्यालय में इस पर क्या कार्यवाही की जाएगी।<br /><br />
कार्यालय स्तर पर सबसे पहले नवीनीकरण शुल्क की पुष्टि की जानी है। जब इस नवीनीकरण आवेदन के शुल्क का बैंक डिटेल से मिलान हो जाएगा, उसके बाद सचिव की आई डी से नवीनीकरण ओके किया जाएगा।
इसके लिए सबसे पहले सचिव की आईडी से लॉगिन करें। इसके बाद 'लाइसेंस प्राप्त आवेदन' पर क्लिक करें। <br /><br />इसके बाद नीचे की ओर दिये नवीनीकरण लाइसेंस के सेक्शन में जाएं और 'स्वीकृति हेतु लम्बित' टैब पर क्लिक करें।
यहां पर एक लाइसेंस की डिटेल दिख रही है। इसके लास्ट में 'एक्सेप्ट' का बटन बना हुआ है। आप इस पर क्लिक कर दें।<br /><br />
इससे </span><span style="font-weight: normal;"><span style="font-size: medium;">ई-मण्डी लाइसेंस नवीनीकरण (E-Mandi License Renewal) की</span></span><span style="font-size: medium;"> फीस सत्यापित करने का फार्म खुल जाएगा। इसके विवरण वाले कॉलम में आप सम्बंधित डिटेल लिख दें और नीचे दिया कैप्चा भरने के बाद इसे संरक्षित कर दें। इसके बाद ‘हां’ और फिर ‘ओके’ का बटन भी दबा दें।<br /><br />
अब लाइसेंस का डीएससी वेरीफिकेशन होना है। इसके लिए साइड पट्टी में बने लाइसेंस टैब पर क्लिक करें। इसके बाद 'लाइसेंस प्राप्त आवेदन' को चुनें। फिर नवीनीकरण सेक्शन में 'हस्ताक्षर हेतु लंबित' टैब पर क्लिक करें।
नये पेज में लाइसेंस का विवरण दिखेगा, जिसके अंत में 'हस्ताक्षर' का बटन बना हुआ है। आप इसपर क्लिक कर दें।<br /><br />
इससे एक नया फार्म खुल जाएगा। इसमें डिजिटल हस्ताक्षर करने की परमीशन पूछी जा रही है। इसमें हस्ताक्षर बटन पर क्लिक कर दें और फिर ओके भी कर दें।<br /><br />
इसके बाद एक सिक्योरिटी चेक सामने आएगा। इसे ओके कर दें। इसके बाद स्क्रीन पर डिजिटल सिग्नेचर का विवरण दिखेगा। आप इसे भी ओके कर दें। इसके बाद एक पॉपअप सामने आएगा, जिसमें डीएसएसी का यूजर पिन भरना है। आप इसमें यूजर पिन भर दें और फिर लॉगिन का बटन दबा दें। इससे </span><span style="font-weight: normal;"><span style="font-size: medium;">ई-मण्डी लाइसेंस नवीनीकरण (E-Mandi License Renewal) का </span></span><span style="font-size: medium;">डीएससी के द्वारा वेरीफिकेशन हो जाएगा।<br /><br />
इसके बाद नवीनीकृत लाइसेंस को डाउनलोड करने का बटन दिखेगा। इसपर क्लिक करके लाइसेंस को डाउनलोड कर लें और फिर इसे बंद कर दें।<br /><br />अब आप डाउनलोड लाइसेंस को खोलें, तो देखेंगे कि उसमें लाइसेंस की अवधि बढ़ चुकी है।
इसे चेक करने के लिए हम ईमण्डी की वेबसाइट पर जाते हैं और इसकी आईडी से लॉगिन करते हैं।
लॉगिन होने पर व्यापारी का डैशबोर्ड खुल जाता है। इसका मतलब है कि </span><span style="font-weight: normal;"><span style="font-size: medium;">ई-मण्डी लाइसेंस नवीनीकरण (E-Mandi License Renewal) </span></span><span style="font-size: medium;">की प्रक्रिया पूर्ण हो चुका है और अब इस एकाउंट के द्वारा सभी प्रकार की व्यापारिक गतिविधियां की जा सकती हैं।<br /></span></div><div><br /></div><div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: xx-small;">keywords: e mandi license navinikaran online, e mandi online navinikaran, emandi license ka navinikaran, up e mandi licence renewal online, up mandi licence renewal process, e mandi licence online renewal, online emandi licence renewal, up mandi licence renewal fees
</span><script>
document.title = "E Mandi License Navinikaran Online | UP E Mandi Licence Renewal Online";
</script> </div>विद्या सरनhttp://www.blogger.com/profile/13874233412214088080noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-290840405926959662.post-62383757902496872112022-07-04T23:03:00.004+05:302022-07-04T23:03:51.627+05:30भारतीय नाट्य परम्परा और बाल नाटक<div style="text-align: justify;"><h2 style="text-align: center;"><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhWMoItqKxdoDEC_fhbRWD_iw3xCwyXDQ_P4ohBJe-hNwo2KPJVFti75jGk8EeO-VbPiPE0ZJ8WzZob--0OjsOIcPO1Yjq2p6cUdOtB62gDtf-6pZpoL7ORgeDOR7U_hH9RzLy16OfQT55XxcoC81CQcU8d_AUecNpyTRoaA9tc9Ks4_DzpEgnsyitw4w/s1479/Natya%20Parampara%20Aur%20Bal%20Natak.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="Hindi Bal Natak" border="0" data-original-height="882" data-original-width="1479" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhWMoItqKxdoDEC_fhbRWD_iw3xCwyXDQ_P4ohBJe-hNwo2KPJVFti75jGk8EeO-VbPiPE0ZJ8WzZob--0OjsOIcPO1Yjq2p6cUdOtB62gDtf-6pZpoL7ORgeDOR7U_hH9RzLy16OfQT55XxcoC81CQcU8d_AUecNpyTRoaA9tc9Ks4_DzpEgnsyitw4w/s16000/Natya%20Parampara%20Aur%20Bal%20Natak.jpg" /></a></div>भारतीय नाट्य परम्परा और बाल नाटक</h2><h4 style="text-align: right;">
जाकिर अली 'रजनीश'</h4>
<span style="font-size: medium;">नाट्य विधा के आदिग्रंथ 'नाट्यशास्त्र' के रचयिता भरत मुनि माने जाते हैं। वे भारतीय नाट्य परम्परा के उद्भव के बारे में बताते हुए कहते हैं- एक बार देवराज इंद्र के प्रतिनिधित्व में देवतागण ब्रह्मा जी के पास पहुंचे और उनसे आग्रह करते हुए कहा-'हे पितामह, हम कोई ऐसा खेल चाहते हैं, जिसको देखा भी जा सके और सुना भी जा सके। <br /></span></div><div style="text-align: center;"><span style="font-size: medium;">
महेन्द्रप्रमुखैर्देवैरुक्त: किल पितामह:। <br />
क्रीडनीयकमिच्छामो दृश्यं श्रव्य्चयद्भवेत ॥<span style="font-size: x-small;">(1)</span><br />
-नाट्यशास्त्र 1|11<br /></span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-size: medium;"><br />
आगे उन्होंने इसके प्रयोजन को स्पष्ट करते हुए कहा-'चारों वेदों के अतिरिक्त एक ऐसा वेद बनाइए, जिसमें सभी वर्गों को समान स्थान हो, क्योंकि जितने भी वेदोक्त व्यवहार हैं उनमें शूद्र आदि निम्न जातियों को सम्मिलित होने का अधिकार नहीं है।' <br /></span></div><div style="text-align: center;"><span style="font-size: medium;">
न वेदव्यवहारोSयं संश्राव्य शूत्रजातिषु<br />
तस्मात् सृजापर वेद पंचम सार्ववर्णिकम्।।<br />
-नाट्यशास्त्र 1|12<br /></span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-size: medium;"><br />
देवताओं के इस आग्रह को मानकर ब्रह्मा जी ने चारों वेदों के सत्व को लेकर एक ऐसे पांचवें वेद का निर्माण किया, जो समस्त शास्त्रों के मर्म को अभिव्यक्त कर सके और जिसके द्वारा समस्त कलाओं तथा शिल्प का प्रदर्शन हो सके। इसे 'नाट्यवेद' का नाम दिया गया, जिसमें ऋगवेद से पाठ्य (संवाद), सामवेद से गीत (संगीत), यजुर्वेद से अभिनय और अथर्ववेद से श्रृंगार आदि का संग्रह किया गया। तत्पश्चात ब्रह्मा जी के निर्देश पर भरत मुनि ने 'नाट्यवेद का अध्ययन करके 'नाटयशाला' का निर्माण किया और अपने 100 पुत्रों/शिष्यों के सहयोग से प्रथम बार नाट्य मंचन किया। बाद में उन्होंने 'नाट्यशाला' से प्राप्त ज्ञान और अपने अनुभवों के आधार पर 'नाट्यशास्त्र' की रचना की। <br /><br />
भारतीय परम्परा में 'नाट्यशास्त्र' को नाट्य-सम्बंधी नियमों की संहिता माना जाता है। इसमें कुल 37 अध्याय हैं, जिनमें विस्तार से नाटक के विभिन्न अंगों यथा नाट्यमण्डप, पूर्वरंग, रस, भाव, अंग, उपांग, नेपथ्य आदि पर विस्तार से चर्चा की गयी है। इस पुस्तक का रचनाकाल 400 ईसापूर्व से 100 ईसापूर्व के मध्य का माना जाता है, किन्तु इसकी महत्ता आप इस बात से समझ सकते हैं कि आज भी यह ग्रन्थ नाट्यविद्या की 'गीता' के रूप में प्रतिष्ठित है और प्रत्येक नाट्यकर्मी (चाहे वह लेखक हों, अभिनेता हों अथवा निर्देशक) के लिए इसका अध्ययन अपरिहार्य माना जाता है।
उपरोक्त भूमिका बनाने का आशय सिर्फ इतना बताना है कि नाट्य विधा का महत्व क्या है और साथ ही यह समझाना भी कि नाट्य लेखन सिर्फ एक साहित्यिक विधा भर नहीं है। नाटक का असली उद्देश्य पठन-पाठन नहीं, मंचन है और जो इस बात को समझ पाता है, वही अच्छे नाटक भी रच सकता है।<br /><br />
नाटकों के संदर्भ में जब हम बच्चों की बात करते हैं, तो उसमें तमाम नाटकीय शर्तो के साथ ही कुछ और बातें भी जुड़ जाती हैं, यथा नाटक का विषय बच्चों के अनुकूल होना, सरल भाषा, छोटे संवाद और दृश्य योजना ऐसी, जिसे बच्चे बिना किसी बड़े की मदद के आसानी से स्वयं कर सकें। ये अतिरिक्त बंदिशें बाल नाटकों को और ज्यादा क्लिष्ट बना देती हैं। और जब हम इन कसौटियों पर किसी नाटक को कसते हैं, तभी हमें पता चल पाता है कि वह नाटक बच्चों के अनुकूल है अथवा नहीं। <br /><br />
हिन्दी में समय-समय पर बच्चों के नाटकों के प्रतिनिधि संकलन प्रकाशित होते रहे हैं, जिनसे यह पता चलता है कि बाल नाटकों की दशा और दिशा कैसी है। ऐसे संग्रहों के रूप में जो पुस्तकें चर्चित रही हैं, उनमें श्रीकृष्ण एवं योगेंद्र कुमार लल्ला द्वारा सम्पादित 'प्रतिनिधि बाल एकांकी' (1962), योगेंद्र कुमार लल्ला द्वारा सम्पादित 'राष्ट्रीय एकांकी' (1964), प्रकाशन विभाग, भारत सरकार द्वारा प्रकाशित 'चुने हुए एकांकी' (1965), योगेंद्र कुमार लल्ला द्वारा सम्पादित हास्य एकांकी' (1965), डा. हरिकृष्ण देवसरे द्वारा सम्पादित 'बच्चों के 100 नाटक' (1979) एवं 'प्रतिनिधि बाल नाटक' (1996). डॉ. रोहिताश्व अस्थाना द्वारा सम्पादित 'चुने हुए बाल एकांकी' (दो खण्ड-1999), जाकिर अली रजनीश' द्वारा सम्पादित 'तीस बाल नाटक (2003), डॉ. रोहिताश्व अस्थाना द्वारा सम्पादित 'सौ श्रेष्ठ बाल एकांकी नाटक' (2014) तथा डॉ. विमला भंडारी द्वारा सम्पादित 'श्रेष्ठ बाल एकांकी संचयन' (2021) प्रमुख हैं। <br /><br />
हिन्दी में मुख्य रूप से दो प्रकार के नाटक लिखे जा रहे हैं, ऐतिहासिक/पौराणिक नाटक और मौलिक नाटक। ऐतिहासिक अथवा पौराणिक नाटक जितने भी लिखे गये हैं, उनके विषय ज्यादातर चिर-परिचित होते हैं। इसलिए ऐसे नाटकों का लेखन बेहद चुनौतीपूर्ण माना जात है। क्योंकि रंगमंचीय मर्यादाओं की सीमा में ऐतिहासिक विषयों को रोचक ढंग से प्रस्तुत करना कोई हंसी खेल नहीं होता है।
मौलिक नाटकों में मोटे-मोटे दो विभाजन पाए जाते हैं। पहले प्रकार के वे नाटक हैं, जो किसी घोषित उददेश्य को लेकर लिखे जाते हैं, जैसे देशप्रेम, साफ-सफाई, जल-संरक्षण शिक्षा का महत्व, स्वास्थ्य-चेतना आदि। दूसरे प्रकार के वे नाटक हैं जो मनोरंजन को ध्यान में रख कर लिखे जाते हैं, किन्तु एक सूक्ष्म संदेश उनके भीतर छिपा रहता है। इस तरह के बाल नाटक हिन्दी में सबसे कम लिखे गये हैं और जो लिखे भी गये हैं, उनमें रंगमंचीय नियमों का जमकर उल्लंघन हुआ है। इस वजह से उनको मंच पर उतार पाना या तो असम्भव होता है या फिर बेहद चुनौतीपूर्ण।<br /><br />
इस बात को समझने के लिए हम एक पुस्तक का उदाहरण ले सकते हैं, जिसका नाम है 'प्रतिनिधि बाल नाटक'। यह पुस्तक उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, लखनऊ की बाल साहित्य संवर्धन योजना के अन्तर्गत प्रकाशित हुई है, जिसका सम्पादन प्रख्यात बाल साहित्यकार डॉ. हरिकृष्ण देवसरे ने किया है। 1996 में प्रकाशित इस संग्रह में कुल जमा 29 नाटक हैं। जब हम इन नाटकों के रचनाकारों पर नजर डालते हैं, तो पाते हैं कि इनमें से 9 लेखक ऐसे हैं, जिनके 2-2 नाटक (मंगल संक्सेना-आदत सुधार दवाखाना, चंदामामा की जय, सुरेखा पाणन्दीकर-कला का सम्मान, कौन बनेगा राजा, केशव चंद्र वर्मा-काला चोर, बच्चों की कचहरी, श्रीकृष्ण-खेल के मैदान में, हृदय परिवर्तन, उषा सक्सेना-झांसी की रानी, हंसते गाते चेहरे, केशव दुबे-ड्रामे की दुकान, भूतों का डेरा, विष्णु प्रभाकर-दो मित्र, रिहर्सल, मनोहर वर्मा-नाटक से पहले, सख्त मोम का स्काईलैब, डॉ. श्रीप्रसाद-मटर का दाना, हुनरमंद) पुस्तक में
संग्रहीत हैं। अर्थात 'प्रतिनिधि बाल नाटक' पुस्तक में मात्र 20 नाटककारों को ही स्थान मिल पाया है। यहां पर यह सवाल उत्पन्न होता है कि क्या देश भर में कुल जमा 20 लेखक ही ऐसे हैं, जो हिन्दी में बाल नाटक लिखते हैं?<br /><br />
जब हम इन 20 नाटककारों के 29 नाटकों का अवलोकन करते हैं, तो पता चलता है कि इनमें से 6 नाटक (आदत सुधार दवाखाना-मंगल सक्सेना, उद्यम धीरज बड़ी चीज है-रेखा जैन, काला चोर-केशवचंद्र वर्मा, गुडिया का इलाज-चिरंजीत, डॉक्टर चुनमुन- गोविन्द शर्मा, शोर-मस्तराम कपूर) तो देवसरे जी ने अपने ही पूर्व प्रकाशित संग्रह 'बच्चों के 100 नाटक से उठा लिये हैं। <br /><br />
अब बात कर लेते हैं बाल नाटकों की अभिनेयता की। इसके लिए एक बार फिर डॉ. हरिकृष्ण देवसरे द्वारा सम्पादित 'प्रतिनिधि बाल नाटक' की ओर चलते हैं। उन्होंने इस पुस्तक की भूमिका में भी बाल नाटकों की शर्तों का विस्तार से वर्णन किया है। लेकिन इसके बावजूद इस संग्रह में भी ऐसे तमाम नाटक हैं, जो बाल नाटकों की कसौटी पर खरे नहीं उतरते हैं। उदाहरणस्वरूप पुस्तक में संकलित नाटक 'झांसी की रानी'<span style="font-size: x-small;">(2)</span> को लेते हैं। इस नाटक के पहले दृश्य में कुछ इस तरह के रंग संकेत दिये गये हैं- 'रंगमंच पर यवनिका के बाहर बुन्देलखंडी वेशभूषा में सूत्रधार और नटी आते हैं।' <br /><br />
बच्चे ही नहीं, किसी भी सामान्य पाठक के लिए 'यवनिका' शब्द एलियन के समान है। अगर यह नाटक बच्चों के लिए लिखा गया है, तो यहां पर 'परदा' शब्द का प्रयोग किया जाना चाहिए था। यवनिका के बाद पाठकों का एक दूसरे शब्द से पाला पड़ता है-'बुन्देलखंडी वेशभूषा'। ये क्या होती है भाई? कानपुर या मुम्बई का रहने वाला बच्चा इसे कैसे समझ सकता है? अब पहले पाठक इस वेशभूषा के बारे में पता करे, तब जाकर नाटक के अभिनय के बारे में सोचे। इसलिए बेहतर होता कि रंग संकेत में स्पष्ट रूप से बताया जाता कि पात्रों ने जो कपड़े पहने हैं उन्हें क्या कहते हैं और वे देखने में कैसे लगते हैं। इससे बच्चों को आसानी होती और वे इस नाटक के अभिनय के बारे में सोच पाते।<br /><br />
इस नाटक में कुल सात दृश्य हैं, जिनमें रानी का श्रृंगार कक्ष, युद्ध-अभ्यास का मैदान, पूजा कक्ष, राजदरबार और जंगल के दृश्य शामिल हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या इस तरह के नाटक का मंचन बच्चे कर सकते हैं? जवाब है बिलकुल नहीं। लेकिन इसके बावजूद यह नाटक बच्चों के प्रतिनिधि नाटक संग्रह में शामिल है। ऐसे और भी अनेक नाटक हैं, जो पुस्तक में शामिल हैं। इससे आप बच्चों के लिए लिखे जा रहे नाटकों की स्तरीयता/ मंचीयता और उनकी उपलब्धता के बारे में आसानी से अनुमान लगा सकते हैं।<br /><br />
इस उदाहरण से यह भी समझा जा सकता है कि हिन्दी में रंगमंचीय मर्यादाओं को ध्यान में रख कर लिखने वाले नाटककारों की संख्या बेहद सीमित है। ऐसे लेखकों के नाम आप अपनी उंगलियों पर गिन सकते हैं। इस अनुभव का साक्षी इन पंक्तियों का लेखक भी रहा है। यह 1998-99 के आसपास की बात है। लेखक ने सोचा कि अपने अन्य संग्रहों ('इक्कीसवीं सदी की बाल कहानियां, 151 बाल कविताएं' एवं '11 बाल उपन्यास) की ही भांति 51 मौलिक और मंचीय नाटकों का एक संकलन तैयार करे। किन्तु कई वर्षों तक लगातार श्रम करने के बावजूद वह 30 से अधिक मौलिक और अभिनेय बाल नाटकों को नहीं जुटा सका। और इस तरह लेखक को अपनी योजना में परिवर्तन करते हुए 51 की जगह 'तीस बाल नाटक'<span style="font-size: x-small;">(3)</span> से ही संतोष करना पड़ा।<br /><br />
आपको जानकार हैरानी होगी कि ऊपर जितने भी बड़े-बड़े प्रतिनिधि नाटक संग्रहों के नाम गिनाए गये हैं, वे सिर्फ संख्या की दृष्टि से ही बड़े हैं। अगर आप उनको मंचीयता की कसौटी पर कसेंगे, तो यकीनन निराशा ही आपके हाथ लगेगी। बावजूद इसके लोग अक्सर यह कहते हुए मिल जाते हैं कि हिन्दी में बाल नाटकों के क्षेत्र में बहुत शानदार काम हुआ है। और वे इसी के साथ आपको बीसियों संग्रहों, दसियों नाटक विशेषांकों और दर्जनों लेखकों के नाम गिना देंगे, जिन्हें सुनकर आप यकीनन चमत्कृत हुए बिना नहीं रह पाएंगे। पर जब आप उनका गहराई से विश्लेषण करेंगे, तो यहां पर ढोल में पोल वाला मुहावरा चरितार्थ पाएंगे।<br /><br />
हाल के वर्षों में यह देखने में आया है कि बाल साहित्य के प्रति लोगों का तेजी से जुड़ाव बढ़ा है। चाहे पत्रिकाओं की मांग रही हो, या फिर हर विधा में हाथ आजमाने की ललक अथवा समर कैम्पों की जरूरत, इधर पिछले कुछ सालों से नाट्य लेखन के क्षेत्र में भी कछ प्रगति दिखाई पड़ी है और उनमें कुछ नाम ऐसे जरूर मिलते हैं, जिन्होंने हाल के दिनों में कुछ अच्छे नाटक लिखे हैं। ऐसे रचनाकारों में बानो सरताज का नाम प्रमुख है। उन्होंने प्रभूत मात्रा में बाल नाटक लिखे हैं, जिनमें तीस एकांकी (किताबघर, दिल्ली) तथा इक्कीस एकांकी (अयन प्रकाशन, दिल्ली) चर्चित रहे हैं। रंगमंच से जुड़े बाल नाटककारों में उमेश कुमार चौरसिया एक चर्चित नाम है। उन्होंने ऐतिहासिक, देशभक्ति और चर्चित रचनाओं को आधार बनाकर रोचक नाटक लिखे हैं। इसके साथ ही उन्होंने कुछ शानदार मौलिक नाटक भी लिखे हैं। अलटू-पलटू चूहे'<span style="font-size: x-small;">(4)</span> उनका एक ऐसा ही नाटक है। यह जंगली जानवरों पर केंद्रित एक मनोरंजक नाटक है, जो मंचीयता की दृष्टि से भी खरा उतरता है। इस नजरिए से उनके मौलिक नाटकों की दो पुस्तकें 'प्रेरक बाल एकांकी' (साहित्यागार, जयपुर) और 'असली सुगंध' (10 नाटक, साहित्य सागर, जयपुर) काफी चर्चित रही हैं।<br /><br />
हेमंत कुमार रंगमंच से जुड़े हुए रचनाकार हैं। उन्होंने एकांकी नाटकों के साथ ही बच्चों के लिए लम्बी अवधि के नाटक भी लिखे हैं। 'कहानी तोते राजा की'<span style="font-size: x-small;">(5)</span> उनका एक ऐसा ही नाटक है। इस नाटक के संवाद छोटे और चुटीले हैं और भाषा अत्यंत प्रवाहमान है। नाटक के पात्र पुरातन हैं, लेकिन उनमें आधुनिकता का बहुत सुंदर छौंका लगाया गया है। पठनीयता की दृष्टि से ये एक बेमिसाल नाटक है, लेकिन मंचीयता की दृष्टि से चुनौतीपूर्ण भी। लगभग 45 मिनट के इस नाटक में मुख्य रूप से पांच तरह के दृश्य आए हैं, पहला-गायकों के लिए सामान्य मंच, दूसरा-बगीचा, तीसरा-रानी का शयन कक्ष, चौथा-राजदरबार पांचवां अध्ययन कक्ष। ये दृश्य आपस में फ्रिक्वेंटली चेंज होते हैं, जो बिलकुल अलग तरह की रंगमंचीय निपुणता की मांग करते हैं। <br /><br />
युवा कहानीकार मो. अरशद खान ने हाल के दिनों में कई चमत्कृत कर देने वाले बाल नाटक लिखे हैं। इनमें 'प्रतीक्षा', 'जल है तो कल है' और 'बंटवारा' सर्वोपरि हैं। 'प्रतीक्षा'<span style="font-size: x-small;">(6)</span> बूढ़ी दादी और उसकी नन्हीं पोती मन्नो पर केद्रित नाटक है। रात का समय है, बाहर बारिश हो रही है और बच्ची की मां घर में नहीं है। ऐसे में मन्नो की बूढी दादी उसे बहलाने की कोशिश करती है। वह मंदिर जाने की बातें बताती है, शादी के रोचक प्रसंग का वर्णन करके हंसाने का प्रयत्न करती है और फिर एक मनोरंजक कहानी भी सुनाती है। लेकिन जब बच्ची फिर भी नहीं बहलती, तो वह उसे भरोसा दिलाती है कि 51 बार भजन पढ़ो, तो मां आ जाएगी। इसके साथ ही दादी गिनतियां याद रखने के लिए बच्ची को 51 मटर के दाने थमा देती है। मन्नो उत्साहपूर्वक भजन गाती है, पर अंतिम मटर तक पहुंचते-पहुंचते उनींदी हो जाती है। और तभी उसके मां बापू आ जाते हैं। वे अपनी बात बताते हैं, खिलौने दिखाते हैं, पर मन्नो मां की गोद में पट से सो जाती है। कहानी में मात्र एक दृश्य है, संवाद बेहद कसे हुए हैं और सबसे बड़ी बात है नाटक के सूक्ष्म रंग संकेत, जिनके जरिए एक-एक भाव को इस सलीके से उभारा गया है कि पाठक मंत्रमुग्ध सा हो जाता है।<br /><br />
इसके अतिरिक्त 'जल है तो कल है' भी अरशद खान का एक शानदार नाटक है। कहानी की शुरुआत बच्चों की आपस की नोंकझोंक से होती है, जो कब पानी की महत्ता तक जा पहुंचती है, पता ही नहीं चलता। इसी प्रकार 'बंटवारा' भी उनका रोचक और सराहनीय नाटक है। यह नाटक बिल्लियों के रोटी के झगड़े में एक बन्दर द्वारा की गयी बंदरबांट की याद दिलाता है। नाटक पठनीयता के साथ ही साथ अभिनेयता की दृष्टि से भी उत्तम है और बच्चे आसानी से इसका मंचन कर सकते हैं। मो. अरशद खान के ये तीनों नाटक उनकी पुस्तक 'पानी की कीमत' में संग्रहीत हैं, जो इस संग्रह को महत्वपूर्ण बना देते हैं। <br /><br />
आज के समय में सोशल मीडिया जिस तरह से समाज में हावी होता जा रहा है, उसको लेकर डॉ. विमला भंडारी का एक नाटक सामने आया है। 'फेस बुकिया जंजाल'<span style="font-size: x-small;">(7)</span> नामक यह नाटक बेहद रोचक और मनोरंजक है। पाठकों को बांधने की दृष्टि से यह एक अच्छा नाटक है, किन्तु इसकी दृश्य योजना इसका कमजोर पक्ष है। यह नाटक 4 दृश्यों में विभाजित है। लेकिन यदि लेखिका ने रंगमंचीय सीमाओं को ध्यान में रखा होता, तो इसे आसानी से दूर किया जा सकता था और यह एक शानदार नाटक बन सकता था।<br /><br />
अंत में मैं एक अन्य नाटक 'हिरण्यकश्यप मर्डर केस'<span style="font-size: x-small;">(8)</span> का विशेष रूप से जिक्र करना चाहूंगा। बच्चों के लोकप्रिय लेखक श्रीकृष्ण का यह नाटक कई संग्रहों के साथ उनके नाट्य संग्रह 'छः बाल नाटक' में भी प्रकाशित है। जैसा कि नाम से जाहिर है यह एक पौराणिक घटना पर आधारित है, किन्तु इसे आज के अदालती परिवेश में प्रस्तुत किया गया है, जहां पर भगवान नरसिंह पर हिरण्यकश्यप के मर्डर का मुकदमा चलता है। एक दृश्य में समेटा गया यह एक अदभुत नाटक है। पात्रों का चरित्र-चित्रण, संवादों का चुटीलापन और सूक्ष्म से सूक्ष्म घटनाओं के कसे हुए रंग संकेत इसे हिन्दी के सर्वश्रेष्ठ नाटकों के रूप में स्थापित करते हैं। भले ही यह नाटक आज से कई दशक पूर्व लिखा गया था, पर अपनी जबरदस्त कल्पनाशीलता और प्रभावोत्पादकता के कारण यह देशकाल की सीमा को लांघ जाता है और पाठकों को बार-बार चमत्कृत करने की क्षमता रखता है।<br /><br />
आमतौर से किताबों की संख्या बढ़ाने और स्वयं को कई विधाओं का मर्मज्ञ सिद्ध करने की लालसा के चलते लगभग हर बाल साहित्यकार ने कुछ न कुछ बाल नाटक लिखे हैं। ऐसे लेखकों में बहुत से बड़े-बड़े नाम भी शामिल हैं। इनमें ज्यादातर नाटक तो विषय आधारित होते हैं, जो ज्ञान बांटने और सीख देने के उबाऊ पैटर्न पर चलते हैं। इन नाटकों में न तो रंगमंचीय कौशल दिखता है और न ही प्रभावोत्पादकता की झलक, इसलिए उनकी चर्चा करने का कोई मतलब नहीं बनता है। पर इस नजरिए से वनों के संरक्षण पर केंद्रित रमाशंकर का नाटक 'बस्ती में बाघ'<span style="font-size: x-small;">(9)</span> और शिक्षा के महत्व पर आधारित नागेश पांडेय 'संजय' का नाटक 'छोटे मास्टर जी'<span style="font-size: x-small;">(10)</span> अवश्य उल्लेखनीय है। साथ ही यहां पर मैं प्रकाश मनु के नाटक 'पप्पू बन गया दादाजी' <span style="font-size: small;">(11)</span> और दिविक रमेश के नाटक 'मैं हूं दोस्त तुम्हारी पुस्तक'<span style="font-size: x-small;">(12)</span> की भी चर्चा करना चाहूंगा। पाठकीय दृष्टि से ये दोनों नाटक बेहद रोचक और प्रभावशाली हैं। पर अगर हम रंगमंचीय दृष्टि से देखें, तो ये बेहद चुनौतीपूर्ण हैं। यदि लेखकों ने रंग-संकेतों के नजरिए से भी इन पर थोड़ा ध्यान दिया होता, तो निश्चय ही ये शानदार नाटक बन सकते थे।<br /><br />
कुल मिलाकर संक्षेप में हम कह सकते हैं कि हिन्दी में बाल नाटकों की दशा और दिशा वास्तव में बेहद सोचनीय है। बालसाहित्यकारों को इस दिशा में गम्भीरता से काम करने की आवश्यकता है।
यदि आपको हिन्दी में लिखे गये मौलिक और रंगदोषों से पूर्णतया मक्त शानदार बाल नाटकों की तलाश है, तो श्रीकृष्ण की 'छ: बाल नाटक', मो. अरशद खान की 'पानी की कीमत' और उमेश कुमार चौरसिया की पुस्तक 'प्रेरक बाल एकाकी' जरूर पढ़ें। यहां पर मैं यह स्पष्ट करना चाहूंगा कि बाल साहित्य के अन्तर्गत सिर्फ ये तीन पुस्तकें नहीं हैं, जो श्रेष्ठ अभिनेय बाल नाटकों के लिए याद की जाएगी। ऐसी और भी तमाम पुस्तकें हैं, पर मेरी पहुंच उन तक नहीं हो पाई है। किन्तु मौलिक और अभिनेय नाटकों के आदर्श स्वरूप को समझने में ये पुस्तकें बेहद मददगार हैं। वैसे अगर आप इसे आत्मश्लाघा न मानें तो इन पंक्तियों के लेखक द्वारा सम्पादित 'तीस बाल नाटक' को भी आप इस सूची में शामिल कर सकते हैं। </span><br /><h4>
संदर्भ सूची:</h4>
1. संस्कृत नाटक की उत्पत्तिः उद्भव और विकास, वर्चुअल हिन्दी वेबसाइट, वेजपेजः https://wp.nyu.edu/virtualhindi/natyashastra </div><div style="text-align: justify;">2. झांसी की रानी, लेखिका-उषा सक्सेना, प्रतिनिधि बाल नाटक, संपादक हरिकृष्ण देवसरे, उ.प्र. हिन्दी संस्थान, लखनऊ, पृष्ठ-57 </div><div style="text-align: justify;">3. तीस बाल नाटक, संपादक-जाकिर अली 'रजनीश', यश पब्लिकेशन्स, इलाहाबाद, वर्ष-2003 </div><div style="text-align: justify;">4. प्रेरक बाल एकांकी, लेखक-उमेश कुमार चौरसिया, साहित्यागार, जयपुर, पृष्ठ-9 </div><div style="text-align: justify;">5. कहानी तोते राजा की, लेखक-हेमंत कुमार, काव्य प्रकाशन, हापुड़, उ.प्र., पृष्ठ-14 </div><div style="text-align: justify;">6. पानी की कीमत, लेखक-मो. अरशद खान, न्यू वर्ल्ड पब्लिकेशन, दिल्ली, पृष्ठ-18 </div><div style="text-align: justify;">7. श्रेष्ठ बाल एकांकी संचयन, संपादक-डा. विमला भण्डारी, साहित्यागार, जयपुर, पृष्ठ-18 </div><div style="text-align: justify;">8. छ: बाल नाटक, लेखक-श्रीकृष्ण, अभिरुचि प्रकाशन, दिल्ली, पृष्ठ-7 </div><div style="text-align: justify;">9. बस्ती में बाघ, लेखक-रमाशंकर, श्रेष्ठ बाल एकांकी संचयन, संपादक-डा. विमला भण्डारी, साहित्यागार, जयपुर, पृष्ठ-73 </div><div style="text-align: justify;">10. छोटे मास्टर जी, लेखक-नागेश पांडेय 'संजय', 100 श्रेष्ठ बाल एकांकी नाटक भाग-2. संपादक-रोहिताश्व अस्थाना, मेट्रो पब्लिशिंग कंपनी, दिल्ली, पृष्ठ-70 </div><div style="text-align: justify;">11. इक्कीसवीं सदी के बाल नाटक, लेखक-प्रकाश मनु, प्रभात प्रकाशन, दिल्ली, पृष्ठ-9 </div><div style="text-align: justify;">12. श्रेष्ठ बाल एकांकी संचयन, संपादक-डा. विमला भण्डारी, साहित्यागार, जयपुर, पृष्ठ-73
</div>विद्या सरनhttp://www.blogger.com/profile/13874233412214088080noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-290840405926959662.post-82410061695733206602022-05-06T16:34:00.010+05:302023-07-25T08:38:21.073+05:30ई मण्डी लाइसेंस अप्लाई करने की विधि<p style="text-align: justify;"></p><div style="text-align: justify;"><span style="font-size: medium;">उत्तर प्रदेश में किसी भी मण्डी समिति में व्यापार करने के लिए लाइसेंस (E-Mandi License) की आवश्यकता होती है। लाइसेंस आवेदन की यह प्रक्रिया आनलाइन उपलब्ध है। यह आवेदन किस प्रकार से होता है और इसके लिए किन-किन डॉक्यूमेंट्स की आवश्यकता होती है, यह इस लेख में विस्तार से बताया गया है। इसे बेहतर ढंग से समझने के लिए आप नीचे दिया गया वीडियो भी देख सकते हैं।</span><br /></div><div style="text-align: center;"><h2><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjP8HcFgLTvc0uaca0k0Z_HRIZcjNYbfY4YL4nt2NjEKc55KGlYzraYJaz18nnnSurYXZTrf9i7PkTpJqsKzqcYAndW8tLx3WpSbIgbPkQxdXLCSQsHqBIgn0ksmukJ19g5Yhy_0RvYcqaoTUCliOippSO9Di3ngHdoPr5PNDN0yl4-3CjBlc3h3ndc6j3o/s1000/eMandi%20license.webp" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="eMandi license" border="0" data-original-height="562" data-original-width="1000" height="360" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjP8HcFgLTvc0uaca0k0Z_HRIZcjNYbfY4YL4nt2NjEKc55KGlYzraYJaz18nnnSurYXZTrf9i7PkTpJqsKzqcYAndW8tLx3WpSbIgbPkQxdXLCSQsHqBIgn0ksmukJ19g5Yhy_0RvYcqaoTUCliOippSO9Di3ngHdoPr5PNDN0yl4-3CjBlc3h3ndc6j3o/w640-h360/eMandi%20license.webp" width="640" /></a></div>ई मण्डी लाइसेंस <span style="font-size: medium;">(E-Mandi License) </span>अप्लाई करने की विधि</h2></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-size: medium;">
ई मण्डी लाइसेंस </span><span style="font-size: medium;">(E-Mandi License) </span><span style="font-size: medium;">को अप्लाई करने के लिए सबसे पहले आप ईमण्डी साइट पर जाएं। इसके लिए आप <span style="color: #674ea7;"><a href="https://emandi.up.gov.in/application/license_reg_points" target="_blank">ई मण्डी लाइसेंस</a></span> पर क्लिक करें।</span><br /><br /><span style="font-size: medium;">
साइट खुलने पर </span><span style="font-size: medium;">मण्डी समिति का लाइसेंस लेने के लिए जो शर्तें विभाग द्वारा निर्धारित हैं, लिखी हुई मिलती हैं। आप इन्हें पढ़ लें। साथ ही कुछ दिशा-निर्देश् भी दिये गये हैं। इनमें बताया गया है कि लाइसेंस आवेदन की प्रक्रिया तीन चरणों में होती है। पहला है आवेदन फार्म में व्यक्तिगत विवरण भरना। दूसरा है अपने डॉक्यूमेंट अपलोड करना। और तीसरा है आवेदन शुल्क जमा करके आवेदन फार्म में उसका विवरण भरना। इन तीनों चरणों को भरने के लिए अधिकतम 14 दिन का समय मिलता है, जिसमें आप ये सभी कार्य कर सकते हैं।</span><br /><br /><span style="font-size: medium;">
इसके बाद नीचे एक घोषणा पत्र दिया गया है, जिसमें लिखा है कि-</span><br /><br /><span style="font-size: medium;">
'मैंने मंडी परिषद् द्वारा दिए गए सभी निर्देशों को पूर्ण रूप से देख एवं पढ़ लिया है तथा मैं सभी निर्देशों से सहमत होते हुए लाइसेंस के लिए आवेदन भेज रहा हूँ |' </span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-size: medium;"> </span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-size: medium;">इस घोषणा पत्र के सामने एक टिक बॉक्स बना हुआ है। पढ़ने के बाद आप इस पर टिक कर दें और 'संरक्षित करें' बटन को दबा दें।</span><br /><br /><span style="font-size: medium;">
इसके बाद एक नया पेज खुलता है।
अगर आपने आवेदन फार्म भरने के उपर बताये गये 3 स्टेप में से किसी 1 को पहले पूरा किया है, तो आपको उसमें एक आवेदन संख्या प्राप्त हुई होगी। उस संख्या को इस बॉक्स में भर दें और उसके बाद आगे की प्रक्रिया करें।
लेकिन यदि आप पहली बार लाइसेंस भरने की प्रक्रिया कर रहे हैं, तो इसे छोड़ दें और आगे बढ़ें। </span><br /><br /><span style="font-size: medium;">
आगे आवेदन का विवरण भरना है।
इसमें पहला आप्शन है लाइसेंस का प्रकार। अगर आपको किसी एक मंडी में कार्य करने का लाइसेंस चाहिए, तो 'मण्डी स्तर' को चुनें और अगर पूरे प्रदेश में कार्य करना है, तो 'एकल' को चुनें। चूंकि अभी हम 'मण्डी स्तर के लाइसेंस की बात कर रहे हैं, तो इसे चुन लेते हैं।
इसके बाद मण्डी का आप्शन है। अर्थात जिस मण्डी क्षेत्र में कार्य करने के लिए आपको लाइसेंस चाहिए। उस मण्डी का नाम यहां पर चुन लें।</span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-size: medium;"> </span></div><div style="text-align: center;"><h4><b><span style="font-size: medium;">ई मण्डी लाइसेंस नवीनीकरण (</span><a href="https://me.scientificworld.in/2022/09/emandi-licence-renewal.html" target="_blank">E Mandi Licence Renewal</a><span style="font-size: medium;">) करने की विधि </span></b></h4></div><div style="text-align: justify;"><br /><span style="font-size: medium;">
इसके बाद अवधि का आप्शन है। हम यहां पर एक वर्ष चुन लेते हैं।
इसके बाद आवेदन का विवरण भरना है। चूंकि यह एक डेमो लाइसेंस है, इसलिए हम यहां पर 'ट्रेडर' लिख देते हैं।
इसके बाद पिता का नाम भरना है, हम यहां पर 'ओल्ड ट्रेडर' भर देते हैं। इसके बाद आवेदक का पैन नम्बर है। हम इसे भी भर देते हैं।
इसके बाद ईमेल आईडी का कॉलम है। इसी आईडी से आप ईमण्डी की साइट पर लॉगिन करेंगे। यहां पर एक सावधानी और रखें कि ईमेल आईडी हमेशा स्मॉल लेटर में होती है, इसलिए इस बात का ध्यान रखें।
यहां पर हम 'ट्रेडर ऐट द रेट जीमेल डॉट कॉम' भर देते हैं।</span><br /><br /><span style="font-size: medium;">
इसके बाद मोबाइल नम्बर का कॉलम है। इस कॉलम में वही नम्बर भरें, जो व्यापारी के पास रहता हो। क्योंकि अक्सर ओटीपी वगैरह के कलिए इसकी जरूरत पड़ती है। हम इसे भी भर देते हैं।
इसके बाद पता, पिनकोड, राज्य और जनपद के कॉलम हैं। आप इन्हें भी ध्यानपूर्वक और सही सही भर लें।</span><br /><br /><span style="font-size: medium;">
ई मण्डी लाइसेंस </span><span style="font-size: medium;">(E-Mandi License) के </span><span style="font-size: medium;">फार्म का अगला हिस्सा व्यावसायिक इकाई से सम्बंधित है।
इसमें पहला आप्शन व्यावसायिक इकाई का नाम है। इसे भर लें। इसके बाद व्यावसायिक इकाई का प्रकार चुन लें।
इसके बाद व्यावसायिक इकाई का स्थाई पता भरना है। इसे भर लें। फिर स्थानीय पता का आप्शन है। अगर यह समान है, तो उपर बने बॉक्स को टिक कर दें।
इसके बाद व्यावसायिक इकाई के पैन, जीएसटीएन, नॉमिनी का डिटेल है, इसे भी भर दें।</span><br /><br /><span style="font-size: medium;">
अगला कॉलम है- व्यावसायिक इकाई निबद्ध है अथवा नहीं। अगर आपकी फर्म संस्था के रूप में रजिस्टर्ड हो, तो इसमें हां भरें, अन्यथा नहीं। हम इसमें से नहीं चुन लेते हैं।
इसके बाद लाइसेंस के प्रकार का कॉलम है यहां पर हम थोक व्यापारी एवं आढ़तिया चुन लेते हैं।
इसके बाद जिस मण्डी क्षेत्र में काम करना है, उसका नाम भरना है। इसे भी भर लें। इसके बाद नीचे दिया गया कैप्चा को भर लें और इसे संरक्षित कर लें।</span><br /><br /><span style="font-size: medium;">
ओह, व्यावसायिक इकाई का पैन नम्बर वाला कॉलम छूट गया है। आइये इसे भर लेते हैं। और फिर इसे संरक्षित कर लेते हैं।
अब आवेदन प्रपत्र का पहला चरण पूरा हुआ। यहां पर मैसेज शो हो रहा है-
'आवेदन फार्म संरक्षित हो गया है। जिसकी आवेदन संख्या है- 12923976'
आप इस आवेदन संख्या को नोट कर लें।</span><br /><br /><span style="font-size: medium;">
इसके बाद फर्म के भागीदार अथवा निदेशक का नाम भरना है। इसके लिए जोड़ें पर क्लिक करें और इसे भर कर संरक्षित कर लें।
अब व्यावसायिक इकाई की स्थिति और गोदाम आदि का विवरण भरना है। इसे भी सही सही भर लें।
इसमें विवरण वाले कॉलम में आप व्यावसायिक इकाई स्थल की लम्बाई चौडाई भर दें। हम यहां शार्ट में सिर्फ गोदाम भर रहे हैं।
इसके बाद गोदाम की क्षमता, और चौहद्दी यानी कि व्यावसायिक इकाई के ईस्ट, वेस्ट, नार्थ, साउथ चारों दिशाओं में क्या क्या है, उसका विवरण भरना है। आप इसे भी भर लें और संरक्षित कर लें।</span><br /><br /><span style="font-size: medium;">
इसके बाद ई मण्डी लाइसेंस </span><span style="font-size: medium;">(E-Mandi License) में </span><span style="font-size: medium;">डॉक्यूमेंट अपलोड के कॉलम हैं,
इसमें सबसे पहले फर्म के मुखिया अथवा निदेशक का फोटो अपलोड करना है। यह फोटो जेपीजी इमेज के रूप में होना चाहिए और उसका साइज़ 100 केबी से बड़ा नहीं होना चाहिए। इसके लिए आप ब्राउज़ पर क्लिक करें और आपके कम्प्यूटर में जहां पर फोटो सुरक्षित हो, उसे चुन लें और अपलोड कर लें।</span><br /><br /><span style="font-size: medium;">
इसके बाद फर्म के मुखिया के नमूना हस्ताक्षर अपलोड होने हैं। यह इमेज भी जेपीजी फार्म में होना चाहिए और उस फाइल का साइज 20 केबी से बड़ा नहीं होना चाहिए। इसे भी ब्राउज़ पर क्लिक करके अपलोड कर लें।</span><br /><br /><span style="font-size: medium;">
इसके बाद संलग्नक अपलोड किये जाने हैं। इसमें सभी तरह के शपथ पत्र एवं आवश्यक प्रपत्र शामिल हैं। ये सारे प्रपत्र एक पीडीएफ फाइल के रूप में होने चाहिए और फाइल का साइज 5 एमबी से अधिक नहीं होना चाहिए। इसे भी ब्राउज पर क्लिक करके अपलोड कर लें और फिर 'अपलोड करें' पर क्लिक करके सुरक्षित कर लें।
सारे डॉक्यूमेंट अपलोड होने के बाद स्क्रीन पर कुछ इस तरह से दिखेगा-
'आवेदन फार्म संरक्षित हो गया है। जिसकी आवेदन संख्या है- 12 92 39 76'
इसके बाद आप नीचे की ओर आएं और 'फार्म संरक्षित करें' पर क्लिक कर दें।</span><br /><br /><span style="font-size: medium;">
ऐसा करने पर आपको भरा गया फार्म एक साथ दिखाई देगा। आप इसे अच्छी तरह से पढ़ लें और नीचे की ओर आ जाएं।
यहां पर एक घोषणापत्र दिया हुआ है, जिसमें लिखा है-
'मैंने मण्डी परिषद द्वारा दिये गये सभी निर्देशों को पूर्ण रूप से देख एवं पढ़ लिया है, तथा मैं सभी निर्देशों से सहमत होते हुए लाइसेंस के लिए आवेदन भेज रहा हूं। मैं स्वीकार करता हूं कि दी हुई सभी सूचना सत्य है'
इस घोषणापत्र के सामने बने हुए बॉक्स पर टिक कर दें और उसके बाद 'संरक्षित करें' का बटन दबा दें।</span><br /><br /><span style="font-size: medium;">
इसके बाद ई मण्डी लाइसेंस </span><span style="font-size: medium;">(E-Mandi License) के </span><span style="font-size: medium;">आवेदन शुल्क जमा करने की प्रक्रिया है।
यहां पर आपकी आवेदन संख्या, लाइसेंस की अवधि और सम्बंधित मण्डी का कॉलम पहले से भरा हुआ है। इसलिए आप 'आवेदन शुल्क जमा करें' पर क्लिक कर दें।
ऐसा करने पर आप एसबी कलेक्ट के पेज पर पहुंच जाएंगे। वहां पर बने हुए टिक बॉक्स पर क्लिक कर दें और 'प्रोसीड' का बटन दबा कर आगे बढ़ें।
अगले पेज में पेमेंट कैटेगरी सेलेक्ट करनी है। आप इसमें से मण्डी का नाम चुन लें।</span><br /><br /><span style="font-size: medium;">
मण्डी का नाम चुनते ही एक नया पेज खुलेगा। इसमें सबसे पहले कॉलम में आवेदन संख्या भर दें। इसके बाद फर्म के मुखिया का नाम और उसका मोबाइल नम्बर भर दें।
इसके बाद एमाउंट का कॉलम है। मण्डी स्तर के लाइसेंस की एक साल की फीस 250 रूपये है। पर चूंकि हम यह ट्रायल फार्म भर रहे हैं, इसलिए यहां पर 1 रूपये भर रहे हैं।
इसके बाद फिर से आवेदक की पर्सनल डिटेल भरी जानी हैं, इसमें आवेदक का नाम, डेट आफ बर्थ, मोबाइल नं0, ईमेल आईडी और कैप्चा शामिल हैं। आप इन सभी कॉलम को भर लें और उसके बाद सब्मिट का बटन दबा दें।</span><br /><br /><span style="font-size: medium;">
सब्मिट करने पर नया पेज खुलेगा, जिसमें आपकी सारी डिटेल्स दिखेंगी। इसे चेक कर लें और फिर इसे कन्फर्म कर दें।
अब पेमेन्ट का आप्शन चुनना है। हम यहां पर यूपीआई चुनते हैं।
इसके बाद अपनी यूपीआई आईडी भरें और सब्मिट कर दें।
एक बार सब्मिट करने के बाद फिर से एमाउंट कन्फर्म करना है। इसे भी सब्मिट कर दें। </span><br /><br /><span style="font-size: medium;">
खुलने वाले पेज पर पेमेंट सम्बंधी डिटेल्स दी हुई हैं। इसके साथ ही यहां पर ट्रांजैक्शन रिफ्रेंस नम्बर भी दिया गया है— डी यू आई 92 95 971
आप इसे नोट कर लें। और पांच मिनट के भीतर अपनी यूपीआई आईडी से पेमेंट कर दें।
पेमेंट कंफर्म होते ही यह पेज आटो रिडायरेक्ट हो जाएगा और पेमेंट कंफर्मेशन रसीद बन जाएगी। इसमें नीचे पीडीएफ फाइल का लोगो बना हुआ है।
जैसे ही आप इसपर क्लिक करेंगे, नये पेज में यह रसीद खुल जाएगी। अब प्रिंट का बटन दबा दें।</span><br /><br /><span style="font-size: medium;">
इससे नया पेज खुल जाएगा। अगर आपके कंप्यूटर में प्रिंटर जुड़ा हुआ है, तो इसे प्रिंट कर लें, नहीं तो इसे पीडीएफ के रूप में सेव कर लें।
इसके बाद फिर से आप ईमण्डी की साइट खोल लें और नये लाइसेंस के आवेदन पर क्लिक करके और उसे संरक्षित करके अगले पेज पर पहुंच जाएं।
पहले कॉलम में पूर्व में ई-मण्डी साइट से मिली आवेदन संख्या भरें और कॉलम के बाहर किल्क कर दें।
इससे पूरा फार्म आटो फिल हो जाएगा।
अब यहां पर आपको सिर्फ लाइसेंस का प्रकार और कैप्चा भरना है। इसे भरने के बाद संरक्षित कर लें।
इसके बाद हमें एक और आवेदन संख्या मिलती है- 61 78 59 76
इसे नोट कर लें। </span><br /><br /><span style="font-size: medium;">
इसके बाद आपको फिर से फर्म की जरूरी सूचनाएं और आवश्यक प्रपत्र दुबारा से अपलोड करने हैं। इन्हें अपलोड करलें और संरक्षित कर लें।
इसके बाद आप आवेदन शुल्क जमा करने वाले फार्म पर पहुंच जाएंगे।
यहां पर बैंक द्वारा मिली ट्रांजैक्शन संख्या, ट्रांजैक्शन दिनांक और राशि भरें और संरक्षित करें पर क्लिक कर दें।
इसके बाद इसे ओके कर दें।
अब आपके ई मण्डी लाइसेंस </span><span style="font-size: medium;">(E-Mandi License) के </span><span style="font-size: medium;">आवेदन फार्म भरने की प्रक्रिया पूरी हो गयी है। </span><br /><br /><span style="font-size: medium;">
आवेदन फार्म भरने के बाद बाकी की कार्यवाही सचिव के स्तर से होनी है। चूंकि यह वीडियो व्यापारियों और मण्डी कर्मचारियों की ट्रेनिंग के लिए बनाया जा रहा है, इसलिए अब हम जानेंगे कि लाइसेंस फार्म भरने के बाद कार्यालय में इसपर क्या कार्यवाही की जाएगी।</span><br /><br /><span style="font-size: medium;">
कार्यालय स्तर पर सबसे पहले आवेदन शुल्क की पुष्टि की जानी है। जब इस आवेदन के शुल्क का बैंक डिटेल से मिलान हो जाएगा और सचिव आवश्यक प्रपत्रों से संतुष्ट हो जाएंगे तथा भौतिक स्तर पर फर्म के कार्यस्थल का सत्यापन हो जाएगा, उसके बाद सचिव की आई डी से लाइसेंस ओके किया जाएगा।
इसके लिए सबसे पहले सचिव की आईडी से लॉगिन करें। इसके बाद 'लाइसेंस प्राप्त आवेदन' पर क्लिक करें। फिर फीस सत्यापित लंबित को क्लिक करें। यहां पर डिटेल दिख जाएगा। इसमें ओपेन वाले आइकॉन पर क्लिक करें। इससे लाइसेंस का विवरण दिखने लगेगा। </span><br /><br /><span style="font-size: medium;">
इस पेज में नीचे की ओर जाएं।
नीचे की ओर दो आप्शन हैं- सत्यापित करें और रद्द करें। लाइसेंस के प्रपत्रों के सही होने की दशा में इसमें से 'सत्यापित करें' पर क्लिक कर दें।
अगले आप्शन पर भी 'हां' पर क्लिक कर दें। इससे लाइसेंस की फीस सत्यापित हो जाएगी। </span><br /><br /><span style="font-size: medium;">
अब ई मण्डी लाइसेंस </span><span style="font-size: medium;">(E-Mandi License) के </span><span style="font-size: medium;">आवेदन को स्वीकृत करने की बारी है। इसके लिए फिर से फार्म में नीचे की ओर जाएं और वहां पर 'आवेदन स्वीकृत करें' पर क्लिक कर दें।
यहां पर इस लाइसेंस की स्वीकृति के सम्बंध में कार्यालय में होने वाली बैठक का विवरण भरना है। आप इसे भर लें और संरक्षित करें पर क्लिक कर दें।
इसके बाद सचिव के स्तर पर इस लाइसेंस का डीएससी विरीफिकेशन किया जाना है।</span><br /><br /><span style="font-size: medium;">
इसके लिए फिर से सचिव के डैशबोर्ड में 'लाइंसेंस प्राप्त आवेदन' पर क्लिक करें और डीएससी हस्ताक्षर लम्बित को सेलेक्ट कर लें।
यहां पर अभी स्वीकृत किया गया लाइसेंस दिख रहा है। आप इसके सबसे अंत में बने आइकॉन को क्लिक करें। वहां पर नीचे की ओर 'हस्ताक्षर' का बटन बना हुआ है।
इसे क्लिक करने पर एक पॉपअप मैसेज दिखता है। इसे ओके कर दें। इससे लाइसेंस की डीएससी वेरीफिकेशन प्रक्रिया शुरू हो जाएगी। इसके प्रथम चरण में नीचे की ओर डीएससी का विवरण दिखाएगा। इसे ओके करने पर डीएससी का अन्य विवरण प्रदर्शित होगा। इसे भी ओके कर दें।</span><br /><br /><span style="font-size: medium;">
इसके बाद डीएससी का यूजर पिन भरने का आप्शन आएगा। इसे भर कर लॉगिन पर क्लिक कर दें। इससे स्वीकृत लाइसेंस डिजिटल सिग्नेचर के द्वारा वेरीफाइड हो जाएगा।
इसके बाद एक पाप्अप शो होगा। इसे ओके कर दें। इसके बाद नीचे की ओर जाने पर 'डाउनलोड लाइसेंस' का आप्शन दिखेगा, जिसे ओके करके आप लाइसेंस को डाउनलोड कर सकते हैं।</span><br /><br /><span style="font-size: medium;">
अब 'ट्रेडर एंड कंपनी' का ई मण्डी लाइसेंस </span><span style="font-size: medium;">(E-Mandi License) </span><span style="font-size: medium;">स्वीकृत हो गया है। अब लाइसेंस प्राप्तकर्ता को ईमण्डी की साइट पर जाकर साइनअप करना होगा।
इसके लिए ईमण्डी के होमपेज पर जाएं और व्यापारी टैब के उपर माउस को ले जाएं। इससे उस टैब के आप्शन दिखने लगेंगे। इसमें से आप साइनअप पर क्लिक कर दें।
इसके बाद साइनअप मीनू खुल जाएगा।
यहां फर्म की पैन संख्या, लाइसेंस नम्बर भरने के बाद पासवर्ड का आप्शन है।
इस पासवर्ड को सोच समझ कर भरें, क्योंकि इसी से आपका ईमण्डी एकाउंट खुलेगा।
ध्यान रहे यह पासवर्ड कम से कम 8 अंकों का होना चाहिए। इसमें कम से कम एक स्माल लेटर, एक कैपिटल लेटर, एक कोई अंक और एक स्पेशल कैरेक्टर जैसे एैट दी रेट, डॉलर या हैश आदि का प्रयोग भी किया जाना चाहिए।
आप इसे ध्यान से भर लें और साइन अप का बटन दबा दें।
इससे साइनअप रिक्वेस्ट सचिव के पास चली जाएगी। </span><br /><br /><span style="font-size: medium;">
साइनअप रिक्वेस्ट को ओके करने की प्रक्रिया मण्डी कार्यालय के स्तर से की जाएगी। इसके लिए सचिव के डैशबोर्ड में जाने पर नीचे की ओर 'साइनअप रिक्वेस्ट' का आप्शन मिलता है।
इसे क्लिक करने पर नया पेज खुल जाता है। इसमें सबसे नीचे की ओर जाने पर अभी अप्लाई किये गये साइन अप रिक्वेस्ट की आईडी दिखती हैं। इसे एक बार क्लिक करने और फिर ओके करने पर साइन अप रिक्वेस्ट एक्सेप्ट हो जाती है।</span><br /><br /><span style="font-size: medium;">
इस तरह ई मण्डी लाइसेंस </span><span style="font-size: medium;">(E-Mandi License) </span><span style="font-size: medium;">की प्रक्रिया पूरी हुई। अब लाइसेंसी व्यापारी ईमंडी की साइट पर जाकर अपनी आईडी और पासवर्ड के द्वारा अपने एकाउंट में लॉगिन हो सकता है और अपना व्यापार प्रारम्भ कर सकता है।
</span><br /></div><div><p></p><center><iframe allow="accelerometer; autoplay; clipboard-write; encrypted-media; gyroscope; picture-in-picture" allowfullscreen="" frameborder="0" height="415" src="https://www.youtube.com/embed/zpt9l-81YwA" title="YouTube video player" width="560"></iframe></center><br /><h3 style="text-align: center;">
ई मण्डी लाइसेंस <span style="font-size: medium;">(E-Mandi License) </span>हेतु ज़रूरी डॉक्युमेंट्स</h3><div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: medium;">1. प्रतिभूति (Security) के रूप में ₹1000/- का राष्ट्रीय बचत पत्र (NSC) अथवा डिमांड ड्राफ्ट जोकि समिति के नाम बंधक हो। </span></div><p style="text-align: justify;"><span style="font-size: medium;">2. आवेदक की ओर से ₹10/- के स्टाम्प पत्र पर नोटरी से सत्यापित शपथ-पत्र (निर्धारित प्रारूप पर)। </span></p><p style="text-align: justify;"><span style="font-size: medium;">3. जिस मण्डी में लाइसेंस लेना चाहते हैं, वहां पर पूर्व से कार्यरत 2 व्यापारियों के द्वारा ₹10/- के स्टाम्प पेपर पर नोटरी से सत्यापित शपथ-पत्र (निर्धारित प्रारूप पर)। </span></p><p style="text-align: justify;"><span style="font-size: medium;">4. पार्टनरशिप फर्म होने की स्थिति में पार्टनरशिप डीड की प्रति। </span></p><p style="text-align: justify;"><span style="font-size: medium;">5. कम्पनी होने की दशा में, निबन्धन प्रमाण पत्र तथा मेमोरेण्डम की प्रति। </span></p><p style="text-align: justify;"><span style="font-size: medium;">6. फर्म/कम्पनी के कई भागीदार/निदेशक होने की स्थिति में किसी एक भागीदार/निदेशक/प्रबन्धक को लाईसेन्स आवेदन हेतु अधिकृत किये जाने सम्बन्धी फर्म/कम्पनी के द्वारा पारित प्रस्ताव की प्रति। </span></p><p style="text-align: justify;"><span style="font-size: medium;">7. व्यापार स्थल किराये पर लिये जाने की दशा में पंजीकृत किरायानामा की प्रति। </span></p><p style="text-align: justify;"><span style="font-size: medium;">8. आवेदक के PAN की छायाप्रति। </span></p><p style="text-align: justify;"><span style="font-size: medium;">9. आवेदक के आधार की छायाप्रति। </span></p><p style="text-align: justify;"><span style="font-size: medium;">10. कारोबार स्थल के पते के सत्यापन हेतु बिजली का बिल/हाउस टैक्स की रसीद की छायाप्रति। </span></p><p style="text-align: justify;"><span style="font-size: medium;">11. फर्म/कम्पनी के GSTIN प्रमाण पत्र तथा TAN की छायाप्रति। </span></p><p style="text-align: justify;"><span style="font-size: medium;">12. आश्रित वर्ग का होने की स्थिति में सक्षम स्तर से निर्गत प्रमाण पत्र की छायाप्रति।
<br /><br />
नोट- ई मण्डी लाइसेंस </span><span style="font-size: medium;">(E-Mandi License) में लगाई जाने वाली </span><span style="font-size: medium;">सभी छायाप्रतियाँ आवेदक द्वारा स्वंय सत्यापित की जायेंगी। <br /></span></p><p style="text-align: justify;"><span style="font-size: medium;"><span style="font-size: xx-small;">keywords: krishi upaj mandi license, krishi upaj mandi license application, krishi upaj mandi license fees, mandi license fees, krishi upaj mandi license up, e mandi online registration, krishi upaj mandi license up fee, krishi upaj mandi license fee, agriculture business ideas, agriculture business in india, how to start a business, farming business ideas, starting a business, e mandi online registration process
</span><br /></span></p></div>Dr. Zakir Ali Rajnishhttp://www.blogger.com/profile/03629318327237916782noreply@blogger.com14tag:blogger.com,1999:blog-290840405926959662.post-42907279451425008722021-10-31T19:35:00.000+05:302021-10-31T19:35:30.905+05:30क्रोध आने पर : गौतम बुद्ध की प्रेरक कहानी<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjVOBb2DiAsY7M6cR30EyrTzQ2NTuhc5MAXKBxQ79bwi8M0o0GwNjUjdBhCj5u3NUj2wxeD7Ae0KWbMUQz2inYvIpnQhihN46RtzD87HVWHEXvd2fghUKdk2_TUOa1Ms74K213To49DBpm_/s1280/Krodh+Aane+Par.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="Krodh Aane Par" border="0" data-original-height="720" data-original-width="1280" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjVOBb2DiAsY7M6cR30EyrTzQ2NTuhc5MAXKBxQ79bwi8M0o0GwNjUjdBhCj5u3NUj2wxeD7Ae0KWbMUQz2inYvIpnQhihN46RtzD87HVWHEXvd2fghUKdk2_TUOa1Ms74K213To49DBpm_/s16000/Krodh+Aane+Par.jpg" /></a></div><p style="text-align: justify;">गौतम बुद्ध की कहानियां Buddha Stories ऐसी हैं, जो मनुष्य के मूल भावों पर केंद्रित हैं। ये आज भी हमारा मार्गदर्शन करती हैं। इसी वजह से हिंदी में बुद्ध की कहानियां Gautam Buddha Story in Hindi बेहद लोकप्रिय हैं। इस बात को ध्यान में रखते हुए आज हम आपके लिए एक बुद्ध की एक लोकप्रिय कहानी Gautam Buddha Story लेकर आए हैं, जिसका शीर्षक है- क्रोध आने पर! यह एक ऐसी कहानी है, जो हर किसी के हर किसी से जीवन से जुड़ी हुई है। हमें उम्मीद है कि गौतम बुद्ध की ये कहानी Buddha Story in Hindi आपको पसंद आएगी।
<br /></p><h2 style="text-align: center;">
Gautam Buddha Story in Hindi : Krodh Aane Par</h2><p style="text-align: justify;">
क्रोध हर किसी को आता है। जब भी किसी की बात बुरी लगती है, या किसी का व्यवहार पसंद नहीं आता है, तो गुस्सा आ जाता है। और एक बार जब यह आता है, तो फिर दिमाग से निकलने का नाम नहीं लेता। ऐसे में आप उस घटना को लेकर बैठ जाते हैं। उसके बारे में सोचते रहते हैं। हर समय वही बात दिमाग में घूमती रहती है। आप किसी से कोई भी बात करें, वह घटना बीच में आ जाती है। ऐसे में आप न चाहते हुए भी उस बारे में बात करने लगते हैं, उसकी शिकायत करने लगते हैं। और अगर उस समय वहां पर कोई बात करने वाला नहीं हुआ, तो आप अपने आप से ही बातें करने लगते हैं, बड़बड़ाने लगते हैं। ...इस सबसे उस व्यक्ति की सेहत पर तो कोई फर्क नहीं पड़ता, पर आपका नुकसान ज़रूर होता है।
<br /><br />
लेकिन अगर आप चाहें, तो इस स्थिति से बच सकते हैं, इस नुकसान से खुद को बचा सकते हैं। कैसे, आइये जानते हैं महात्मा गौतम बुद्ध की इस कहानी के ज़रिए-
<br /><br />
एक बार की बात है। एक गांव में गौतम बुद्ध का प्रवचन चल रहा था। वे कह रहे थे- जब हम क्रोधित होते हैं, तो दूसरों को नुकसान पहुंचाने की कोशिश करते हैं। लेकिन उस समय हम इतने आवेशित हो जाते हैं, कि हमारी सोचने समझने की ताकत समाप्त हो जाती है। इसलिए क्रोध में हम सही निर्णय नहीं ले पाते और अपना ही नुकसान कर बैठते हैं।'
<br /><br />
बुद्ध की उस सभा में एक गुस्सैल स्वभाव का व्यक्ति भी शामिल था। उसे बात बात पर गुस्सा आ जाता था। आज भी वह अपने परिवार वालों से झगड़ कर आया था। और उस समय भी उसके दिमाग में उथल पुथल मची हुई थी। इसलिए उसे बुद्ध की बातें अच्छी नहीं लग रही थीं। उसे लग रहा था कि जैसे बुद्ध उसे डांट रहे हों। सबके सामने उसकी बेइज्जती कर रहे हों।
<br /><br />
इससे उस व्यक्ति का क्रोध भड़क गया। वह अपनी जगह से उठा और बुद्ध के पास जा पहुंचा। इससे पहले कि कोई कुछ समझता, उसने बुद्ध के मुंह पर थूक दिया।
<br /><br />
यह देख कर वहां मौजूद लोग भड़क उठे और उस व्यक्ति के बारे में बुरा भला कहने लगे। लेकिन बुद्ध अभी भी अपनी जगह पर शांत बैठे हुए थे। उन्होंने अपना चेहरा पोंछा और बोले, 'क्या बात है वत्स, तुम्हें कुछ कहना है?'
<br /><br />
उस व्यक्ति ने बुद्ध की बात का कोई जवाब नहीं दिया। वह बिना कुछ कहे वहां से चला गया। यह देखकर एक व्यक्ति से नहीं रहा गया। उसने बुद्ध से पूछा, 'महत्मन, उस मूर्ख व्यक्ति ने आपका अपमान किया और आपने उसे कुछ नही कहा?'
<br /><br />
उसकी बात सुनकर बुद्ध धीरे से मुस्कराए और फिर बोले, 'तुमने शायद उस व्यक्ति का चेहरा नहीं देखा। वह बहुत परेशान लग रहा था। मुझे लगता है कि वह किसी चिन्ता में घिरा हुआ था। इसलिए ऐसे व्यक्ति परेशान व्यक्ति को क्या दोष देना?'
<br /><br />
बुद्ध पर थूकने वाला व्यक्ति सभा से उठने के बाद अपने घर चला गया। वह दिन भर बेचैन रहा। उसे अपनी करनी पर पछतावा होता रहा। रात में भी वह सो नहीं पाया और बेचैनी में इधर उधर करवट बदलता रहा।
<br /><br />
अगले दिन वह फिर से बुद्ध की सभा में गया। वहां पहुंचते ही वह बुद्ध के चरणों में गिर पड़ा और रोने लगा।
<br /><br />
यह देख कर बुद्ध ने पूछा, 'क्या हुआ वत्स, तुम क्यों रो रहे हो?'
<br /><br />
वह बोला, 'मैं वही दुष्ट व्यक्ति हूं, जिसने कल आपका अपमान किया था। पता नहीं कल मुझ पर ऐसा कौन सा पागलपन सवार हुआ, जो मैं ऐसी घृणित हरकत कर बैठा। कृपया मुझे क्षमा कर दें।'
<br /><br />
बुद्ध बोले, 'कल की बातें तो कल ही समाप्त हो गयीं वत्स। कल के बारे में आज क्या सोचना। अगर मैं उस घटना के बारे में सोचता रहता, क्रोध करता, तो उससे तो सिर्फ मेरा दिल दुखता। तुम्हें उससे कोई फर्क नहीं पड़ता। इसलिए बुरी घटना को याद रखना कोई समझदारी की बात नहीं है। इससे हमारी परेशानियां बढ़ जाती हैं और जीवन ठहर जाता है। इसीलिए अप्रिय बातों और अप्रिय घटनाओं को भूलने में ही समझदारी है। जो व्यक्ति ऐसी घटनाओं को भूल जाता है, वही जीवन में आगे बढ़ता है, और जो उनमें उलझा रहता है, उसका जीवन चक्रव्यूह के समान हो जाता है, जिसमें से वह चाह कर भी बाहर नहीं निकल पाता है।'
<br /><br />
दोस्तों, गुस्सा करना बिलकुल ऐसा होता है कि ज़हर तो आप पियें और कामना करें कि मर सामने वाला जाए। इसलिए जब भी कभी आपको गुस्सा आए, तो इस बात को ध्यान में रखें कि अगर आप किसी से नाराज़ होते हैं और रूठ कर चुपचाप बैठे जाते हैं, तो आप अपना ही नुकसान करते हैं। इससे आपके समय का तो नुकसान होता ही है, आपके शरीर का भी नुकसान होता है। इसलिए अप्रिय बातों और अप्रिय घटनाओं को लेकर बैठना कोई हल नहीं है। बेहतर है कि उन्हें भूलकर आगे बढ़ें। तभी आप जीवन के प्रवाह के साथ अपने आपको जोड़ पाएंगे और जीवन का आनंद ले पाएंगे।<br /><br />
हममें से ज्यादातर लोग यही समझते हैं कि हमारे दुखों का कारण कोई दूसरा व्यक्ति है। और जब हम ऐसा मानते हैं, तो हम अपने स्व नियंत्रण की कमी और अक्षमता को अनदेखा कर रहे होते हैं। वास्तव में ये हम पर निर्भर करता है कि हम दूसरों के द्वारा प्रदान की गयी नकारात्मकता को स्वीकार करते हैं या नहीं। अगर हम नकारात्मकता को स्वीकार करते हैं, तो हम अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारते हैं। और जब हम उसे अस्वीकार कर देते हैं, तो घ्रणा, क्रोध, हिंसा हर किसी से मुक्त हो जाते हैं।<br /><br />
</p><center>
<b>यूट्यूब पर सुनें कहानी:</b></center><center><br />
<iframe allow="accelerometer; autoplay; clipboard-write; encrypted-media; gyroscope; picture-in-picture" allowfullscreen="" frameborder="0" height="415" src="https://www.youtube.com/embed/3B0udyd2pFA" title="YouTube video player" width="560"></iframe>
</center><p style="text-align: justify;">दोस्तो, हमें उम्मीद है कि आपको बुद्ध की ये कहानी Gautam Buddha Story
'क्रोध आने पर' पसंद आई होगी। आप चाहें, तो गौतम बुद्ध की यह कहानी
Gautam Buddha Story in hindi यूट्यूब पर भी सुन सकते हैं। यदि आपको बुद्ध
की कहानियों Buddha Stories में रूचि है, तो आप <span style="color: #3d85c6;"><a href="https://www.youtube.com/watch?v=G_geoPAbHAU&list=PLULwcki8SDfTGz-mEeFPPX5H10E0wMpHZ">यहां पर क्लिक</a></span> करके बुद्ध की प्रेरक कहानियों Buddha Stories in Hindi का आनंद ले सकते हैं। <br /></p>विद्या सरनhttp://www.blogger.com/profile/13874233412214088080noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-290840405926959662.post-4312902368875264182021-10-29T15:22:00.002+05:302021-10-29T15:24:17.572+05:30हमें दुख कौन देता है : गौतम बुद्ध की प्रेरक कथा<div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhohXwRPCW3gjQ4yMCg-BCx4-6UdPn0CnH_kAC92ZsnXxo_aQU8b6ASEyTYarbiecr-0n9MzhIAj6oiEqnPz741TXIvxLkEO2cXLG8QTF7xNpkL5mCRr18FIAEzzNQ-yHkDSV_YqRRxLRrv/s1280/Dukh+Kyon+Aate+Hain2.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="Buddha Story in Hindi" border="0" data-original-height="720" data-original-width="1280" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhohXwRPCW3gjQ4yMCg-BCx4-6UdPn0CnH_kAC92ZsnXxo_aQU8b6ASEyTYarbiecr-0n9MzhIAj6oiEqnPz741TXIvxLkEO2cXLG8QTF7xNpkL5mCRr18FIAEzzNQ-yHkDSV_YqRRxLRrv/s16000/Dukh+Kyon+Aate+Hain2.jpg" /></a></div><div style="text-align: justify;">बुद्ध की कहानियां Buddha Stories भले ही आज की न हों, पर उनके कथ्य मानवीय भावों से जुड़े हुए हैं। इसीलिए वे आज भी हमारा मार्गदर्शन करती हैं। यही कारण है कि हिंदी में बुद्ध की कहानियां Gautam Buddha Story in Hindi बेहद लोकप्रिय हैं। इसीलिए आज हम आपके लिए एक बुद्ध की एक लोकप्रिय कहानी Gautam Buddha Story लेकर आए हैं, जिसका शीर्षक है- हमें दुख कौन देता है? यह एक ऐसी <a href="https://me.scientificworld.in/2021/10/yadi-koi-apman-kare.html" target="_blank">कहानी</a> है, जो हर किसी के कर्म को छू जाती है। हमें उम्मीद है कि गौतम बुद्ध की ये कहानी Buddha Story in Hindi आपको पसंद आएगी।
<br /></div></div><div><h2 style="text-align: center;">
Gautam Buddha Story in Hindi: Hamen Dukh Kaun Deta Hai
</h2><div style="text-align: justify;">
एक बार महात्मा बुद्ध किसी गांव में प्रवचन दे रहे थे। वे अपनी बात को समाप्त करते हुए बोले, 'मानव के दुख का कारण है स्वयं को किसी से बांधना। जहां भी मोह होता है, बंधन होता है, वहां दुख स्वयं ही उत्पन्न हो जाता है। अत: अपने बंधनों को जानें और उनसे बाहर निकलने का प्रयास करें।'
<br /><br />
इसके बाद उन्होंने सभी लोगों को आशीर्वाद दिया और फिर अपने आश्रम को लौट गये।
<br /><br />
अगले दिन उनसे एक व्यक्ति मिलने आया। वह बुद्ध को दण्डवत करता हुआ बोला, 'महात्मन, मैंने कल आपका उपदेश सुना। आपकी बातें मेरे हृदय में उतर गयीं हैं। मैंने अपने बंधनों को तोड़ दिया है, सारी मोह माया का त्याग कर दिया है। अब मैं आपकी शरण में आना चाहता हूं।'
<br /><br />
उस व्यक्ति की बातें सुनकर बुद्ध मुस्कराए और धीरे से बोले, 'मुझे विस्तार से बताओ वत्स, तुमने कौन-कौन से बंधन तोड़े और किसका मोह त्याग दिया है?'
<br /><br />
वह व्यक्ति बोला, 'मेरे घर पर मेरे बूढ़े माता-पिता और पत्नी है। मेरा एक छोटा बच्चा भी है। मेरी पत्नी बहुत बीमार रहती है। उसके कष्ट देख कर मैं अक्सर सोचता रहता था कि वह मर जाए, तो उसके कष्ट दूर हो जाएं। उसकी वजह से मैं बहुत दुखी रहता हूं। लेकिन कल जब मैंने आपका उपदेश सुना, तो मेरी समझ में आ गया कि मेरे परिवार से मेरा बंधन ही मेरे दु:खों का कारण है। अगर मैं इसके चक्कर में पड़ा रहूंगा तो कभी सत्य को नहीं जान सकूंगा। इसलिए मैं अपने घर को त्याग कर आपके पास आया हूं।'
<br /><br />
बुद्ध ने पूछा, 'क्या तुम सचमुच सभी बंधनों से मुक्त हो गये हो? देख लो, कहीं कोई बंधन तुम्हारे पीछे रह तो नहीं गया?'
<br /><br />
वह व्यक्ति बोला, 'नहीं प्रभु, मैं अपने जीवन की सारी चीज़ों को पीछे छोड़ आया हूं और अब आगे बढ़ना चाहता हूं।'
<br /><br />
बुद्ध ने कहा, 'अगर ऐसी बात है, तो फिर ठीक है। आज तुम यहीं आश्रम में रूको। कल मैं तुम्हें बताउंगा कि तुम्हें क्या करना है।'
<br /><br />
बुद्ध ने अपने एक शिष्य की ओर इशारा किया। शिष्य ने उसे आश्रम के अतिथि कक्ष में पहुंचा दिया। वह व्यक्ति उत्सुकतापूर्वक आश्रम की गतिविधियां देखता रहा। उन्हें देखकर वह बहुत प्रसन्न हुआ और अपने सौभाग्य पर इतराता रहा।
<br /><br />
अगले दिन बुद्ध ने उस व्यक्ति को एक कार्य सौंपते हुए कहा, 'तुम्हें पूर्व की दिशा में जाना है। वहां पर तुम्हें एक गांव मिलेगा। गांव के बाहर ही एक साधिका का घर है। वह तुम्हें कोई वस्तु देगी। उसे लेकर तुम्हें वापस मेरे पास आना है।'
<br /><br />
वह व्यक्ति पूर्व दिशा की ओर चल पड़ा। गर्मी का मौसम था। कुछ ही देर में वह पसीने से तर बतर हो गया। उसे प्यास भी सताने लगी। वह सोचने लगा कि अगर इस समय मैं अपने घर पर होता, तो इस तरह गर्मी में पसीना नहीं बहाना पड़ता।
<br /><br />
कुछ दूर और चलने पर उसे भूख भी सताने लगी। पर वह एक सुनसान और बंजर रास्ता था। आसपास न तो कोई पेड़ था और न ही पोखर तालाब। वह पुन: सोचने लगा कि अगर मैं इस समय अपने घर पर होता, तो अपनी पत्नी के हाथ का बना स्वादिष्ट भोजन कर रहा होता। पता नहीं क्यों बुद्ध ने मुझे गर्मी में इतनी दूर भेज दिया।
<br /><br />
काफी देर तक चलने के बाद वह व्यक्ति गांव में जा पहुंचा। गांव के बाहर ही एक घर बना हुआ था। उसने दरवाजे के पास पहुंच कर उसे धीरे से खटखटाया।
<br /><br />
दरवाज़े को एक साधिका ने खोला। उसके चेहरे पर एक अद्भुत तेज था। वह व्यक्ति उसे देख कर मंत्रमुग्ध हो गया। साधिका ने उसे अभिवादन करते हुए कहा, 'मैं जानती हूं कि आपको बुद्ध ने भेजा है। आप अंदर आ जाएं।'
<br /><br />
वह व्यक्ति घर के अंदर चला गया। साधिका के कहने पर उसने पानी से हाथ मुंह धोया और एक चटाई पर बैठ गया। साधिका ने उसके सामने भोजन की थाली रख दी। वह जल्दी जल्दी भोजन करने लगा।
<br /><br />
अचानक उस व्यक्ति की नजर साधिका के पैरों पर पड़ी। उसके पैर बहुत सुंदर थे। वह उन्हें देखता ही रह गया। तभी साधिका ने उसका ध्यान भंग किया। वह बोली, 'जिस व्यक्ति को बुद्ध के चरणों में स्थान मिल जाता है, फिर उसे किसी अन्य के चरणों की आवश्यकता नहीं पड़ती।'
<br /><br />
साधिका की बात सुनकर वह व्यक्ति लज्जित हो गया और नज़रें नीची करके चुपचाप भोजन करने लगा। भोजन करने के बाद साधिका ने कहा, 'आप बहुत दूर से आए हैं। थक गये होंगे। यहीं चटाई पर लेट जाएं, मैं पंखा कर दूंगी।
<br /><br />
वह व्यक्ति बहुत थका हुआ था। वह चटाई पर लेट गया और अपनी आंखें बंद कर लीं। साधिका उसे पंखा करने लगी। पर लेटने के बाद भी उस व्यक्ति को चैन नहीं आया। उसने धीरे से अपनी पलकों को खोला और चोर नजरों से साधिका को देखने लगा।
<br /><br />
वह सोचने लगा, यह स्त्री कितनी सुंदर है। इसकी वाणी कितनी मोहक है। अगर यह मेरी पत्नी होती, तो मेरा जीवन स्वर्ग बन जाता।
<br /><br />
साधिका इसके मन की बात समझ गयी। वह बोली, 'शरीर में कुछ नहीं रखा है। यह केवल मांस, मज्जा और अस्थियों का जोड़ है। जो व्यक्ति इसके आकर्षण से मुक्त हो जाता है, वही सत्य को प्राप्त कर पाता है।'
<br /><br />
यह सुनकर वह व्यक्ति घबरा गया। वह चटाई से उठ बैठा और बोला, 'अब मुझे बुद्ध के पास जाना चाहिए। कृपया आप मुझे वह सामान दे दें, जिसके लिए बुद्ध ने कहा था।'
<br /><br />
साधिका ने मुस्कराकर जवाब दिया, 'बुद्ध ने आपको जिस कार्य के लिए भेजा था, वह पूर्ण हो चुका है।'
<br /><br />
साधिका की यह बात उस व्यक्ति को समझ में नहीं आयी। वह दरवाजे की ओर बढ़ चला। दरवाजे के पास पहुंचकर वह एक क्षण के लिए रुका और पलट कर बोला, 'क्या आप अन्तर्यामी हैं? आपने मेरे मन की बातें कैसे समझ लीं?'
<br /><br />
वह स्त्री मुस्कराते हुए बोली, 'बुद्ध की कृपा से मैं मोह, माया से उपर उठ चुकी हूं। इसलिए भावनाओं से निर्लिप्त हूं और किसी के चेहरे को देखकर उसके मन में उठने वाले विचारों को समझ लेती हूं।'
<br /><br />
उसकी बातें सुनकर वह व्यक्ति एक बार पुन: लज्जित हुआ और सोचने लगा कि जिस स्त्री ने सच्चे मन से मेरा सत्कार किया, मैं उसके बादे में क्या क्या सोचता रहा।
<br /><br />
उसके बाद वह बुद्ध के आश्रम की ओर लौट पड़ा।
<br /><br />
आश्रम में पहुंचकर वह व्यक्ति बुद्ध के चरणों में गिर पड़ा और बोला, 'महात्मन, मुझे क्षमा कर दें। मैं बड़ा पापी हूं।'
<br /><br />
उसकी बात सुनकर बुद्ध मुस्कराए और बोले, 'मैंने तुम्हें साधिका के पास इसीलिए भेजा था, ताकि तुम अपने आप को देख सको। अब मुझे बताओ क्या तुम सचमुच मोह और बंधन को त्याग चुके हो?'
<br /><br />
वह व्यक्ति कुछ नहीं बोला। वह नज़रें नीची किये चुपचाप खड़ा रहा।
<br /><br />
बुद्ध ने कहा, 'बाहरी बंधन और मोह को त्याग्ने से हम बंधन मुक्त नहीं होते। दरअसल बंधन और मोह हमारे भीतर होता है। तुमने परिवार को छोड़ दिया और सोचा कि मैं बंधन मुक्त हो गया। लेकिन जैसे ही तुम्हें अवसर मिला, तुम्हारे भीतर का मोह जाग उठा। और इसी वजह से आज तुम अपने आप को पापी समझ रहे हो।'
<br /><br />
'मुझे क्षमा कर दें प्रभु।' उस व्यक्ति ने अपने हाथ जोड़ दिये। फिर वह धीरे से बोला, आप सही कह रहे हैं। मैं केवल अपनी पत्नी से पीछा छुड़ाना चाहता था। वह बहुत बीमार रहती है। एक वर्ष से हमारे बीच सम्बंध भी नहीं बन पाए। मैं कुछ ज्यादा कमाता भी नहीं हूं। इसलिए मैं अपने परिवार के दायित्वों का निवर्हन भी ठीक ढंग से नहीं कर पा रहा हूं। शायद इसीलिए मैं अपने परिवार से पीछा छुड़ाना चाहता था। ...पर अब मैं समझ गया हूं मेरा परिवार ही मेरा सत्य है और उसके दायित्वों का निवर्हन ही असली कर्म है।'
<br /><br />
बुद्ध बोले, 'मैं जो कुछ भी कहता हूं वह अपने अनुभव के आधार पर कहता हूं। लोग मेरी बातों को सुनते तो हैं, पर वे अपने स्वार्थ के अनुसार ही उसका अर्थ ग्रहण करते हैं। इसीलिए मोह, माया, कामना, इच्छा, वासना, क्रोध को लोग बाहर की ओर खोजते हैं। जबकि यह हमारे भीतर ही हैं। ...हम दूसरों को देखकर तरह तरह की कामना करने लगते हैं। कामना से इच्छा जन्म लेती है, इच्छा से वासना पैदा होती है, और वासना की पूर्ति न होने पर क्रोध उत्पन्न होता है। यह सब एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। क्रोध के लिए हम सदैव दूसरे को जिम्मेदार ठहराते हैं। जबकि क्रोध का श्रोत हमारे भीतर है। तुम चाहोगे, तो क्रोध आएगा, तुम चाहोगे, तो क्रोध नहीं आएगा। ...इसी तरह बंधन बाहर नहीं होते, हमारे मन में होते हैं। हम मन से ही किसी से बंध जाते हैं और मन के कारण ही हम दुख पाते हैं। ...लेकिन जो व्यक्ति इन बातों की गहराई तक पहुंच जाता है, वह दु:खों से हमेशा हमेशा के लिए मुक्त हो जाता है।'
<br /></div></div><div><br />
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<b>यूट्यूब पर सुनें कहानी:</b></center><center><br />
<iframe allow="accelerometer; autoplay; clipboard-write; encrypted-media; gyroscope; picture-in-picture" allowfullscreen="" frameborder="0" height="415" src="https://www.youtube.com/embed/mgezw5zhSYs" title="YouTube video player" width="560"></iframe>
<br />
<br /></center><div style="text-align: justify;">दोस्तो, हमें उम्मीद है कि आपको बुद्ध की ये कहानी Gautam Buddha Story 'हमें दुख कौन देता है' पसंद आई होगी। आप चाहें, तो गौतम बुद्ध की यह कहानी Gautam Buddha Story in hindi यूट्यूब पर भी सुन सकते हैं। यदि आपको बुद्ध की कहानियों Buddha Stories में रूचि है, तो आप <span style="color: #3d85c6;"><a href="https://www.youtube.com/watch?v=G_geoPAbHAU&list=PLULwcki8SDfTGz-mEeFPPX5H10E0wMpHZ">यहां पर क्लिक</a></span> करके बुद्ध की प्रेरक कहानियों Buddha Stories in Hindi का आनंद ले सकते हैं।
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document.title = "Gautam Buddha Story in Hindi: Hamen Dukh Kaun Deta Hai";
</script></div></div>विद्या सरनhttp://www.blogger.com/profile/13874233412214088080noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-290840405926959662.post-27209286890590189892021-10-29T13:21:00.001+05:302021-10-29T13:21:17.621+05:30जब किस्मत खराब हो : गौतम बुद्ध की कहानी<div style="text-align: justify;">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiAawK92rzzFJbm3oNHryQmbVDZKAWwTePywzySxcWCcQzBYI0aQ0rNFr65aNzv4_shxT9l9cd5NinX-QCdurc0v_uyLek0MfchTfg4o2K-n6329Jg7nIQA-Yb9TEqLsm51YdqZNtvipIbr/s1280/jab+kismat+kharab+ho.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="gautam buddha story" border="0" data-original-height="720" data-original-width="1280" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiAawK92rzzFJbm3oNHryQmbVDZKAWwTePywzySxcWCcQzBYI0aQ0rNFr65aNzv4_shxT9l9cd5NinX-QCdurc0v_uyLek0MfchTfg4o2K-n6329Jg7nIQA-Yb9TEqLsm51YdqZNtvipIbr/s16000/jab+kismat+kharab+ho.jpg" /></a></div>बुद्ध की कहानियां Buddha Stories जीवन से जुड़ी हुई कहानी हैं और आज भी हमारा मार्गदर्शन करती हैं। यही कारण है कि हिंदी में बुद्ध की कहानियां Gautam Buddha Story in Hindi बेहद लोकप्रिय हैं। इसी मकसद से हम आपके लिए एक बुद्ध की एक लोकप्रिय कहानी Gautam Buddha Story लेकर आए हैं, जिसका शीर्षक है- जब किस्मत खराब हो! यह हम सबके जीवन से जुड़ी हुई कहानी है। हमें उम्मीद है कि गौतम बुद्ध की ये <a href="https://me.scientificworld.in/2021/10/yadi-koi-apman-kare.html" target="_blank">कहानी</a> Buddha Story in Hindi आपको पसंद आएगी। </div><div style="text-align: justify;"> </div><div style="text-align: justify;">
एक बार की बात है। महात्मा बुद्ध के शिष्य आनंद कहीं जा रहे थे। रास्ते में उन्होंने देखा कि एक अधेड़ व्यक्ति एक चट्टान पर बैठा रो रहा है। वे उसके पास गए और बोले, 'क्या बात है वत्स, तुम कौन हो और क्यों रो रहे हो?'
<br /><br />
आनंद की बात सुनकर उस व्यक्ति की सिसकियां थम गयीं। वह अपने आंसूं पोंछता हुआ बोला, 'मैं पास के गांव का रहने वाला एक बदनसीब व्यापारी हूं। मैं जो भी काम करता हूं, वह बिगड़ जाता है। व्यापार के चक्कर में मैंने अपनी पत्नी के गहने गंवा दिये, मैंने अपने परिवार को भी खो दिया। यहां तक कि मेरा घर भी गिरवी पड़ा है। मुझे तो लगता है कि मैं किसी काम का नहीं हूं। मेरी किस्मत ही खराब है।'
<br /><br />
उसकी बात सुनकर आनंद बोले, 'तुमसे किसने कहा वत्स कि तुम्हारी किस्मत खराब है? जरा मैं भी तो जानूं कि तुम्हारी किस्मत में क्या खराबी है?
<br /><br />
वह व्यक्ति बोला, 'पहले मैं खेती करता था। पर हर साल उसमें घाटा होता था। कभी सूखा पड़ जाता, तो कभी ज्यादा बारिश के कारण फसल बर्बाद हो जाती। इससे परेशान होकर मैंने व्यापार करने का निश्चय किया। मैंने पत्नी के गहने बेच कर अपना व्यापार शुरू किया। लेकिन मेरा व्यापार नहीं चला। शुरू शुरू में परिवार वालों ने मेरा साथ दिया, लेकिन जैसे जैसे मुझे नुकसान होने लगा, मेरे परिवार वाले भी मुझसे दूर हो गये। मैं यह सब उनके लिए ही कर रहा था। लेकिन अब वे लोग मुझे देख कर नजरें फेर लेते हैं और मुझे ही मेरे परिवार की दुर्दशा का जिम्मेदार ठहराते हैं।'
<br /><br />
उस व्यक्ति ने एक लम्बी सी सांस ली और फिर बोला, 'मेरा एक मित्र है। उसने भी मेरे साथ अपना व्यापार शुरू किया था। उसका व्यापार अच्छा चल रहा है। वह जब भी मेरे घर आता है, तो अपनी सफलता की कहानियां सुनाता है। उसकी बातें सुनकर मेरे घर वाले भी कहते हैं कि उसे देख, और कुछ सीख। हमें तो लगता है कि तेरे वश का कुछ भी नहीं है।
<br /><br />
'उन लोगों की बातें सुन-सुन कर अब तो मुझे भी लगने लगा है कि शायद मेरे वश का कुछ भी नहीं है। अब तो मुझे अपना जीवन ही व्यर्थ लगने लगा है। मेरे मन में ख्याल आता है कि अपना जीवन समाप्त कर लूं। मैं यहां आया भी इसी इरादे से था, लेकिन हिम्मत नहीं कर पाया। इसीलिए यहां एकांत में बैठा विलाप कर रहा था।'
<br /><br />
आनंद बोले, 'ओह , तो ये बात है। वैसे क्या तुम इसके अलावा कुछ और भी कहना चाहते हो?
<br /><br />
उनकी बात सुनकर वह व्यक्ति बोला, 'एक ओर मेरा हर काम खराब हो जाता है। दूसरी ओर मेरा मित्र है, जो हर समय मुझे नीचा दिखाने का प्रयत्न करता रहता है। मुझे समझ में ही नहीं आता है कि मैं क्या करूं?'
<br /><br />
आनंद बोले, 'क्या तुम अपने मित्र की बातें सुनकर दुखी हो जाते हो?'
<br /><br />
'हां, मैं उसकी बातें सुनकर स्वयं दुखी हो जाता हूं।' उस व्यक्ति ने जवाब दिया।
<br /><br />
आनंद ने पूछा, 'तुम्हें किस बात का दुख होता है? अपने असफल होने का या फिर मित्र के सफल होने का?'
<br /><br />
उनका सवाल सुनकर वह व्यक्ति एक पल के लिए सोच में पड़ गया। फिर वह बोला, 'अगर सच कहूं, तो मुझे अपने असफल होने का उतना दुख नहीं होता है, जितना कि मित्र के सफल होने का होता है।'
<br /><br />
'अर्थात यदि तुम्हारा मित्र असफल हो जाए, तो तुम्हें खुशी होगी?' आनंद ने प्रश्न किया।
<br /><br />
वह व्यक्ति बोला, 'हां, मुझे बहुत खुशी होगी।'
<br /><br />
'इसका मतलब है कि तुम्हारी खुशी तुम्हारे मित्र पर निर्भर है।' आनंद बोले, 'अगर वह चाहे तो तुम्हें खुश कर सकता है, और अगर वह चाहे तो तुम्हें दुखी कर सकता है। तुम स्वयं से न तो खुश हो सकते हो और न ही दुखी हो सकते हो। अर्थात तुम अपने मित्र के गुलाम हो गये हो। इसलिए तुम्हारा कुछ नहीं हो सकता।'
<br /><br />
'ऐसा न कहें महत्मन,' उस व्यक्ति ने हाथ जोड़ दिये, 'आपकी बातें सुनकर मुझे कुछ आशा बंध रही है।'
<br /><br />
आनंद बोले, 'जब हम किसी से आशा बांध लेते हैं, तो उसपर निर्भर हो जाते हैं। ऐसे में हमारी खुशी और दुख भी उसपर निर्भर करने लगता है। इससे बेहतर है की तुम अपने आप से आशा बांधो। जब तुम ऐसा करोगे, साथ ही पूरे जतन से काम करोगे, तो तुम्हें सफलता अवश्य प्राप्त होगी।'
<br /><br />
कहते हुए आनंद ने एक पल के लिए उस व्यक्ति की ओर देखा फिर अपनी बात आगे बढ़ाई, 'तुम्हें लगता है कि तुम्हारा मित्र तुम्हें दुखी करने आता है। पर अगर विचार करो, तो वह बातें तो सच्ची ही कहता है। वह अपने संघर्ष और अनुभव की बातें बताता है। तुम उन बातों से बहुत कुछ सीख सकते हो। तुम्हें इसके लिए उसका धन्यवाद करना चाहिए कि तुम्हें घर बैठे कुछ अनुभव मिल रहे हैं। तुम उन अनुभवों का लाभ उठाओ, नई शुरूआत करो, कर्म करते जाओ, हार मत मानो, एक दिन तुम्हें सफलता अवश्य मिलेगी। आज तुम जिसे अपना बुरा वक्त या बुरी किस्मत कह रहे हो, एक दिन यह बदल जाएगी। इसी के साथ तुम्हारे विचार भी बदल जाएंगे। और देखना जब तुम्हारा अच्छा वक्त् शुरू होगा, तब तुम्हारा मित्र भी तुम्हें अपनी सफलताओं की कहानियां नहीं सुनाएगा, तब वह अपनी असफलताओं की बातें बताएगा, ताकि तुम उसकी बातें सुनकर भ्रमित हो जाओ, तुम्हारा आत्मविश्वास हिल जाए और तुम गलत निर्णय ले सको। लेकिन उस समय भी तुम्हें अपनी बुद्धि का प्रयोग करना होगा। तुम्हारा मित्र जैसे आज तुम्हें दुखी करने आता है, उसी तरह उस समय भी वह तुम्हें दुखी करने आएगा। क्योंकि जिस तरह उसे दुखी देखकर तुम्हें मजा आता है, उसी तरह उसे भी तुम्हें दुखी देखने में, उतना ही मजा आता है।'
<br /><br />
वह व्यक्ति बोला, 'आपने सही कहा, लेकिन मेरा सबसे बड़ा दुख यह है कि मेरे परिवार के लोग भी इसमें शामिल हैं। वास्तव में मैं तो अपने परिवार के लिए अच्छा करना चाहता था। लेकिन वे लोग भी मेरी बात नहीं समझते हैं। वे भी मुझे गलत कहते हैं और अब तो वे मेरे साथ भी नहीं हैं।'
<br /><br />
आनंद बोले, 'मैं सब समझ गया। तुम सांत्वना चाहते हो। वास्तव में इस दुनिया में सभी लोग सांत्वना ही चाहते हैं। हम चाहते हैं कि हम जब भी कुछ करें, तो लोग हमारी प्रशंसा करें। लेकिन आमतौर से ऐसा नहीं होता है, इसलिए हम दुखी हो जाते हैं। हमें लगता है कि हमारे मित्र, परिवार वाले सब मतलबी हैं। लेकिन तुम अगर किसी को अपना परिवार मानते हो और उसके लिए कुछ करना भी चाहते हो, तो तुम्हें ऐसा क्यों लगता है कि तुम दूसरों के लिए कुछ कर रहे हो। वास्तव में तुम अपनी खुशी के लिए कर रहे हो। इसलिए परिवार के लिए कुछ करना, वास्तव में अपने लिए ही करना होता है। लेकिन अगर ऐसा करते समय तुम्हें लगता है कि तुम दूसरों के लिए कर रहे हो, तो तुम दुखी रहोगे। और अगर तुम्हें लगता है कि तुम अपने लिए कर रहे हो, तो तुम खुश रहोगे। क्योंकि जब तुम अपने लिए कुछ अच्छा करते हो या करना चाहते हो, तब तुम्हें सांत्वना की ज़रूरत नहीं पड़ती है।'
<br /><br />
आनंद की बातें सुनकर उस व्यक्ति के चेहरे के भाव बदल गये। वह बोला, 'आप सही कह रहे हैं। मैं समझ गया हूं। अब तक मेरी किस्मत खराब इसलिए थी, क्योंकि वह दूसरों के हाथ में थी। अब मैं अपनी किस्मत को अपने हाथ में रखूंगा। मैं फिर से प्रयत्न करूंगा, पूरे मन से काम करूंगा और जब तक सफलता नहीं मिल जाती, चैन से नहीं बैठूंगा।'
<br /><br />
उस व्यक्ति की बात सुनकर आनंद मुस्कराए और उसे एक छोटी सी डिबिया देते हुए बोले, 'इस डिबिया को हमेशा अपने पास रखना। इसमें एक ऐसा राज़ है, जो तुम्हें बड़े से बड़े दु:ख से भी बाहर निकाल लेगा। लेकिन इसे तभी खोलना, जब तुम्हारे जीवन में कोई रास्ता न सुझाई दे और तुम्हें लगे कि सब व्यर्थ है। यह दुनिया व्यर्थ है और यहां रहना भी व्यर्थ है।'
<br /><br />
उस व्यक्ति ने आनंद को धन्यवाद दिया और डिबिया को लेकर चला गया। उसने नये उत्साह के साथ फिर से अपना व्यापार आरम्भ किया। उसका व्यापार चल निकला। अपनी मेहनत और लगन के बल पर वह एक बड़ा व्यापारी बन गया। परिवार वाले भी उसके साथ आ गये और उसका जीवन हंसी खुशी बीतने लगा।
<br /><br />
अब वह भूतकाल का रोना छोड़ चुका था। वह भविष्यकाल की भी चिंता नहीं करता था। बस अपने वर्तमान को संवारने में लगा रहता था। और जो कुछ भी वह करता था, वह अपने लिए करता था, अपनों के लिए करता था। इसलिए वह प्रसन्न था। उसके जीवन में अब कोई दुख नहीं था।
<br /><br />
लेकिन वक्त हमेशा एक जैसा नहीं रहता है। वह बदलता रहता है। उसके जीवन में भी बदलाव आया। एक दिन उसके राज्य पर पड़ोसी राजा ने चढ़ाई कर दी। उसने इस राज्य पर अपना कब्जा कर लिया। उसके सैनिकों ने चारों ओर लूटमार मचा दी। उन्होंने व्यापारी का सारा धन लूट लिया। उसके घर में आग लगा दी। जान बचाने के लिए उसे अपने परिवार के साथ वहां से भागना पड़ा।
<br /><br />
वह व्यक्ति अपने परिवार के साथ कई दिनों तक इधर उधर भटकता रहा। वह दाने दाने को मोहताज हो गया। उसका बच्चा बीमार हो गया। इलाज के अभाव में वह तड़पने लगा। यह देखकर उसका ह्रदय चीत्कार कर उठा। वह कैसे अपने बच्चे का इलाज कराए, उसके पास तो खाने के लिए भी पैसे नहीं थे। ऐसे में उसे एक बार फिर निराशा ने घेर लिया। ...उसे लगने लगा कि उसका जीवन व्यर्थ है। सारी दुनिया व्यर्थ है। किसी भी बात का कोई मतलब नहीं है। भले ही आप जीवन में कितना भी कुछ कर लो, कितनी भी सफलता हासिल कर लो, पर अंतत: यह जीवन समाप्त ही होता है। तो फिर ऐसे में जीवित रहने का क्या फायदा? इससे तो अच्छा है कि वह अपना जीवन समाप्त कर ले।
<br /><br />
लेकिन तभी उसके दिमाग में आनंद की दी हुईडीबिया कौंध उठी। उसने उत्सुकता के साथ उसे खोला। डिबिया के भीतर एक पर्ची रखी हुई थी। पर्ची पर कुछ लिखा हुआ था। उसे पढ़कर उसकी आंखों के आगे छाया निराशा का अंधेरा छंट गया और वह मुस्करा पड़ा। पर्ची पर लिखा हुआ था- यह समय भी बीत जाएगा।
<br /><br />
उसने डिबिया को अपनी मुट्ठी में भींच लिया और एक नई शुरूआत के लिए उठ खड़ा हुआ।
<br /><br />
दोस्तों, अगर आप भी ऐसी ही परिस्थिति से गुज़र रहे हैं , तो निराश न हों। अपने अतीत पर शोक मत करें। न ही भविष्य की चिंता करें। अपने वर्तमान को जियें, और उसे बेहतर बनाने के लिए सच्चे मन से प्रयत्न करें। यकीन जानें, जल्दी ही आपकी किस्मत भी बदलने वाली है। </div><div style="text-align: justify;"> </div><center>
<b>यूट्यूब पर सुनें कहानी:</b></center><center><br />
<iframe width="560" height="415" src="https://www.youtube.com/embed/uTUMZ8N9Vts" title="YouTube video player" frameborder="0" allow="accelerometer; autoplay; clipboard-write; encrypted-media; gyroscope; picture-in-picture" allowfullscreen></iframe>
</center>
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दोस्तो, हमें उम्मीद है कि आपको ये बुद्ध कहानी Gautam Buddha Story 'जब किस्मत खराब हो' पसंद आई होगी। आप चाहें, तो गौतम बुद्ध की यह कहानी Gautam Buddha Story in hindi यूट्यूब पर भी सुन सकते हैं। यदि आपको बुद्ध की कहानियों Buddha Stories में रूचि है, तो आप यहां पर क्लिक करके बुद्ध की प्रेरक कहानियों Buddha Stories in Hindi का आनंद ले सकते हैं।
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document.title = "Jab Kismat Kharab Ho : Gautam Buddha Story in Hindi";
</script>विद्या सरनhttp://www.blogger.com/profile/13874233412214088080noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-290840405926959662.post-88197799091209444912021-10-29T12:51:00.010+05:302021-10-31T19:40:25.825+05:30जब कोई अपमान करे : गौतम बुद्ध की प्रेरक कथा<div style="text-align: justify;"><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh67rm98oGsGc5npCoZJLsaDFTOUzCbB0FjfL7LZIQQ94az60sCqtLEGfVm7Irahy4nYeaVrVlqwTTD1qCNlOEglfrggcGWpIAg3mJ03lq2jYXASenDby4YHwhElrAm_usOvU7vtBwzr1YD/s1280/Jab+Koi+Apman+Kare.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="Gautam Buddha Story in Hindi : Yadi Koi Apman Kare" border="0" data-original-height="720" data-original-width="1280" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh67rm98oGsGc5npCoZJLsaDFTOUzCbB0FjfL7LZIQQ94az60sCqtLEGfVm7Irahy4nYeaVrVlqwTTD1qCNlOEglfrggcGWpIAg3mJ03lq2jYXASenDby4YHwhElrAm_usOvU7vtBwzr1YD/s16000/Jab+Koi+Apman+Kare.jpg" /></a></div>बुद्ध की कहानियां Buddha Stories जीवन के मर्म को उद्घाटित करती हैं और हमें राह दिखाती हैं। यही कारण है कि हिंदी में बुद्ध की कहानियां Gautam Buddha Story in Hindi बेहद लोकप्रिय हैं। इसी मकसद से हम आपके लिए एक बुद्ध की एक लोकप्रिय कहानी Gautam Buddha Story लेकर आए हैं, जिसका शीर्षक है- जब कोई अपमान करे! यह एक जीवन से जुड़ी हुई कहानी है इसीलिए सभी को बेहद अपील करती है। हमें उम्मीद है कि गौतम बुद्ध की ये <a href="https://me.scientificworld.in/2021/10/yadi-koi-apman-kare.html">कहानी</a> Buddha Story in Hindi आपको पसंद आएगी।
<br /></div><div><h2 style="text-align: center;">
Gautam Buddha Story in Hindi : Jab Koi Apman Kare
</h2>
<div style="text-align: justify;">एक बार बुद्ध एक गांव से गुजर रहे थे। उस गांव के लोग उन्हें पसंद नहीं करते थे। उन लोगों ने बुद्ध को घेर लिया और उन्हें बुरा भला कहने लगे। गांव वालों का सरदार सबसे ज्यादा नाराज था। वह तो बुद्ध को गालियां ही देने लगा।
<br /><br />
पर बुद्ध इस सबसे बेपरवाह मंद मंद मुस्कराते रहे।
<br /><br />
सरदार काफी देर तक बुद्ध को गालियां देता रहा। लेकिन कुछ ही देर में उसका मुंह सूखने लगा, जिससे वह चुप हो गया। यह देखकर बुद्ध बोले, 'अगर तुम्हारी बातें समाप्त हो गयी हों, तो मैं आगे बढ़ूं। मुझे आगे वाले गांव में जाना है। वहां के लोग मेरी प्रतीक्षा कर रहे होंगे।'
<br /><br />
यह देख कर गांव का एक व्यक्ति बोला, 'हम लोग तुम्हारा अपमान कर रहे हैं, तुम्हें गालियां दे रहे हैं। लेकिन तुम इसका जवाब देने के बजाय मुस्करा रहे हो। तुम इसकी प्रतिक्रिया क्यों नहीं देते?'
<br /><br />
बुद्ध बोले, 'वत्स, तुमने आने में तनिक देर कर दी। यदि तुम 10 वर्ष पहले आए होते, तो मज़ा आ जाता। क्योंकि दस वर्ष पहले मैं भी तुम्हारी तरह था। अगर उस समय तुम मुझे बुरा भला कहते, गालियां देते, तो मैं भी क्रोधित हो जाता। मैं तुम्हें इससे भी अधिक गालियां देता। हो सकता है हाथापाई पर भी उतर आता। पर अब मैं आगे बढ़ गया हूं। अपना क्रोध, घृणा सब पीछे छोड़ आया हूं। अब मैं उस जगह पर पहुंच गया हूं जहां तुम्हारी गालियां पहुंचने में अस्मर्थ हैं। …तुमने मुझे गालियां दीं, यह तुम्हारी भावना है। लेकिन तुम्हारी यह भावना मुझ तक पहुंच ही नहीं रही। मैं इससे आवेशित तभी होउंगा, जब मैं इसमें भागीदार हो जाउंगा। जब मैं इन्हें स्वीकार कर लूंगा। लेकिन मैं तो तुम्हारी इस क्रिया से निरपेक्ष हूं, इससे बहुत दूर हूं। इसलिए मैं अब भी पहले की तरह शांत हूं।'
<br /><br />
यह सुनकर सरदार बोला, 'अरे, ऐसे कैसे। मैंने तो तुम्हें गालियां दी हैं और वो पूरे गांव वालों के सामने दी हैं। फिर उसे लेने या न लेने का क्या मतलब है?'
<br /><br />
बुद्ध बोले, 'वत्स, कल मैं एक गांव में गया था। वहां के लोगों ने मेरा प्रवचन सुना। वे बहुत प्रसन्न हुए। गांव का मुखिया मेरे लिए मिठाई लेकर आया और उसे खाने का आग्रह करने लगा। मैंने कहा कि मेरा पेट भरा हुआ है। इसलिए मैं इसे ग्रहण नहीं कर सकता। यह सुनकर वह व्यक्ति मिठाई वापस लेकर चला गया। क्योंकि जब तक मैं कोई चीज लूंगा ही नहीं, तो कोई मुझे कैसे दे पाएगा? इसमें तो मेरी सहमति आवश्यक है न?'
<br /><br />
'हां, ये तो है।' एक व्यक्ति ने बुद्ध का समर्थन किया।
<br /><br />
बुद्ध ने पुन: पूछा, 'जब मैंने मिठाई लेने से मना कर दिया, तो उन लोगों ने उसका क्या किया होगा?'
<br /><br />
'उन्होंने मिठाई अपने घर वालों में बांट दी होगी।' एक व्यक्ति ने जवाब दिया।
<br /><br />
बुद्ध ने कहा, 'ठीक कहा तुमने। उस मिठाई की तरह ही तुम मेरे लिए गालियां लेकर आए हो और चाहते हो कि मैं इन्हें ग्रहण कर लूं। पर भाई, मैं इन्हें लेता ही नहीं। अब बताओ, तुम इनका क्या करोगे?'
<br /><br />
उस व्यक्ति के पास इसका कोई जवाब नहीं था। बुद्ध पुन: बोले, 'मुझे तुम पर दया आती है वत्स। अरे, क्रोध तो मुझे तब आएगा, जब मैं ये गालियां ले लूंगा। और जब मैं गालियां लेता ही नहीं, तो क्रोध का तो सवाल ही नहीं उठता।'
<br /><br />
बुद्ध की बातों पर सरदार ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। शायद वह कुछ सोच रहा था। बुद्ध बोले, 'मैं अपनी आंखों से देख रहा हूं कि गाली एक कांटा है, जिसे देने वाला व्यक्ति और लेने वाला व्यक्ति दोनों क्रोध से पागल हो जाते हैं। तो फिर तुम ही बताओ कि मैं आंखें रहते हुए भी कैसे कांटों पर चलूं? आंखें रहते हुए मैं कैसे गालियां ले लूं। और होश में रहते हुए मैं कैसे क्रोधित हो जाउं। इसलिए मुझे क्षमा करो वत्स, मैं तुम्हारा उपहार ग्रहण करने में अस्मर्थ हूं।' कहते हुए बुद्ध ने अपने हाथ जोड़ दिये।
<br /><br />
बुद्ध की बातें सुनकर सरदार लज्जित हो गया। उसकी आंखें छलछला आईं। उसने कुछ कहना चाहा, पर उसके होठों ने जवाब दे दिया। और जब उससे रहा नहीं गया, तो वह बुद्ध के चरणों में गिर पड़ा।
<br /><br />
दोस्तों, हममें से ज्यादातर लोग यही समझते हैं कि हमारे दुखों का कारण कोई दूसरा व्यक्ति है। और जब हम ऐसा मानते हैं, तो हम अपने स्व नियंत्रण की कमी और अक्षमता को अनदेखा कर रहे होते हैं। वास्तव में ये हम पर निर्भर करता है कि हम दूसरों के द्वारा प्रदान की गयी नकारात्मकता को स्वीकार करते हैं या नहीं। अगर हम नकारात्मकता को स्वीकार करते हैं, तो हम अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारते हैं। और जब हम उसे अस्वीकार कर देते हैं, तो घ्रणा, क्रोध, हिंसा हर किसी से मुक्त हो जाते हैं।
<br /></div><div><br />
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<b>यूट्यूब पर सुनें कहानी:</b></center><center><br />
<iframe allow="accelerometer; autoplay; clipboard-write; encrypted-media; gyroscope; picture-in-picture" allowfullscreen="" frameborder="0" height="415" src="https://www.youtube.com/embed/G_geoPAbHAU" title="YouTube video player" width="560"></iframe>
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दोस्तो, हमें उम्मीद है कि आपको ये बुद्ध कहानी Gautam Buddha Story 'जब कोई अपमान करे' पसंद आई होगी। आप चाहें, तो गौतम बुद्ध की यह कहानी Gautam Buddha Story in hindi यूट्यूब पर भी सुन सकते हैं। यदि आपको बुद्ध की कहानियों Buddha Stories में रूचि है, तो आप <a href="https://www.youtube.com/watch?v=G_geoPAbHAU&list=PLULwcki8SDfTGz-mEeFPPX5H10E0wMpHZ"><b>यहां पर क्लिक</b></a> करके बुद्ध की प्रेरक कहानियों Buddha Stories in Hindi का आनंद ले सकते हैं।
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document.title = "Gautam Buddha Story in Hindi : Yadi Koi Apman Kare";
</script></div>विद्या सरनhttp://www.blogger.com/profile/13874233412214088080noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-290840405926959662.post-4260863679887400592021-10-28T12:45:00.006+05:302021-10-28T12:57:49.209+05:30चुम्बक की तरह खींचने वाली सुनने की कला।<div style="text-align: justify;"><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiZ0CiyCgB_u1pDhxTgUDk1F8HSAkenGiBojkQD4mYk4-HLjl-45mum__65L3L4ac0O_kBJosBwpaYeVfNtghAB2B31btlkPXiiFNDZXZUzDRgJq0AhyphenhyphenDbJqq8DFZlxGVaks0ZQM6ay4IJp/s1280/Listening+skill.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="Listening Skills" border="0" data-original-height="720" data-original-width="1280" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiZ0CiyCgB_u1pDhxTgUDk1F8HSAkenGiBojkQD4mYk4-HLjl-45mum__65L3L4ac0O_kBJosBwpaYeVfNtghAB2B31btlkPXiiFNDZXZUzDRgJq0AhyphenhyphenDbJqq8DFZlxGVaks0ZQM6ay4IJp/s16000/Listening+skill.jpg" title="Listening Skills" /></a></div>दोस्तों, हमारे समाज में बच्चों को बोलना, लिखना और पढ़ना तो सिखाया जाता है, लेकिन सुनना Basic Listening Skills यानी कि सुनने की कला Art of Listening के बारे में नहीं बताया जाता। इसका खामियाजा यह होता है कि ज्यादातर लोगों में दूसरों की बात सुनने का सलीका नहीं होता। इसकी वजह से कई बार परिवार में दरारें पड़ जाती हैं, कैरियर में ब्रेक लग जाता है और बिज़नेस फ्लॉप हो जाता है। लेकिन अगर हम लिसनिंग की कला Listening Skills in Hindi में परफेक्ट हो जाएं, तो नतीजे इसके उलट हो सकते हैं। यानि कि सुनने की कला Active Listening Skills के द्वारा हम सिर्फ पर्सनल रिलेशन ही नहीं बिजनेस रिलेशन भी बढ़िया बना सकते हैं और बड़ी आसानी से सफलता की सीढ़िया चढ़ सकते हैं। </div><div style="text-align: justify;"></div><div style="text-align: justify;"><h2 style="text-align: center;">Listening Skills in Hindi | Active Listening Skills in Hindi</h2>
मोटे तौर पर हम कह सकते हैं कि सुनना दो प्रकार का होता है हियरिंग और लिसनिंग। जब हम किसी काम को करते हुए अनिच्छापूर्वक किसी व्यक्ति की बातों को सुनते हैं, तो उसे हियरिंग कहा जाता है। इस प्रक्रिया में हमारा सारा फोकस तो अपने काम पर होता है पर हम मजबूरी या दिखावे के लिए वहां पर बैठे हुए व्यक्ति की बातें भी सुनते रहते हैं।
<br /><br />
सुनने का दूसरा प्रकार है लिसनिंग। इसे एक्टिव लिसनिंग Active Listening के रूप में भी समझ सकते हैं। एक्टिव लिसनिंग का मतलब है, पूरी तरह से एकाग्र होकर किसी व्यक्ति की बातों को सुनना। इसमें हमारी आंखें, मन, विचार और कल्पनाशक्ति चारों चीज़ें सामने वाले पर केंद्रित रहती हैं।
<br /><br />
एक्टिव लिसनिंग (Active Listening Skills in Hindi) के 4 चार मेन स्टेप हैं। आइए इन्हें डिटेल में समझते हैं।<br /><h3>
1 Control ठहराव</h3>
एक्टिव लिसनिंग का पहला स्टेप है ठहराव या कंट्रोल। इसका मतलब है कि अगर आप किसी से बात कर रहे हैं, तो उस बातचीत से बेहतर परिणाम पाने के लिए बाकी के काम रोक दें। फॉर इक्ज़ाम्पल, अगर आपके हाथ में मोबाइल है, तो उसे बंद करके अलग रख दें। अगर टीवी चल रहा है, तो उसे आफ कर दें। सामने न्यूज पेपर या बुक वगैरह खुली हैं, तो उन्हें बंद कर दें। यहां तक कि अगर आप पान मसाला, च्युंगम वगैरह कुछ खा रहे हैं, तो उसे भी थूक दें। कहने का आशय यह है कि ऐसी कोई भी चीज़ जिसकी वजह से आपकी बातचीत में रूकावट आ सकती है, बातचीत शुरू करने से पहले उसे दूर कर लेना बेहतर है।<br /><br />
बातचीत के दौरान आप आराम की मुद्रा में बैठें और सामने वाले व्यक्ति से आई कांटैक्ट बनाते हुए पूरे मन से उसकी बातों को सुनें। अगर उस व्यक्ति के बारे में आपके मन में पहले से कोई धारणा बनी हुई है, तो उसे भी परे हटा दें और अपने आपको इस तरह से प्रस्तुत करें जैसे आप उस व्यक्ति से पहली बार मिल रहे हों। जब आप सभी तरह से पूर्वाग्रहों से मुक्त हो जाएंगे, तभी उसकी बातों को पूरी तरह से सुन पाएंगे और उसकी गहराई तक पहुंच सकेंगे।
<br /><h3>
2. मिरर इमेज Mirror image बनें </h3>
एक्टिव लिसनिंग का दूसरा स्टेप है मिरर इजेज बनाना। इसका मतलब है कि आप जिस व्यक्ति से बात कर रहे हैं, बिलकुल उसी की जैसी दशा में पहुंचने का प्रयास करें। इसके लिए सबसे पहले उसके मूड को मैच करें। अगर सामने वाला प्रसन्न है, तो आप भी उसकी बातों को सुनकर खुशी का प्रदर्शन करें। अगर सामने वाला दु:खी है, तो आप भी गम्भीर हो जाएं और अपने आपको उसके दु:ख में शामिल दिखाएं। यदि यह वार्तालाप नॉर्मल मोड में भी चल रहा हो, तो भी बातचीत के दौरान सामने वाले के पॉश्चर और बॉडी लैंग्वेज को समझें और उसी तरह से रिएक्ट करने की कोशिश करें। <br /><br />
दोस्तों, यह प्रॉसेस आपको थोड़ा सा नाटकीय लग सकता है, पर यह पूरी तरह से टेस्टेड है। जब आप बातचीत करने वाले की खुशी में खुश और उसके दु:ख में खुद को दुखी दिखाते हैं और बातचीत के दौरान उसी के जैसी भाव भंगिमा अपनाते हैं, तो आपकी मस्तिष्क की वेवलेंथ उसकी मस्तिष्क की वेवलेंथ से मैच हो जाती है। ऐसे में सामने वाला व्यक्ति मानसिक स्तर पर आपके करीब आ जाता है और वह आपके साथ जुड़ाव महसूस करने लगता है।<br /><h3>
3. डीप लिसनिंग (Deep listening) : मन से सुनें</h3>
एक्टिव लिसनिंग की तीसरी स्टेज है डीप लिसनिंग। आपने ध्यान दिया होगा कि आमतौर पर हम जब भी किसी से बात करते हैं, तो उसकी बातों के बीच में अपनी बात कहने के लिए बेहद उतावले रहते हैं और अक्सर उसकी बात काटकर अपनी बात रखने लगते हैं। पर प्लीज़, ऐसा करने से अपने आपको रोकें। साथ ही सामने वाले की बातों का जवाब देने के लिए मन ही मन रिप्लाई का रिहर्सल भी मत करें। <br /><br />
ध्यान रखें, आपको सिर्फ सामने वाले को सुनना है ताकि जो बात वो कह रहा है उसे आप अच्छी तरह से समझ सकें, उसके मन्तव्य तक पहुंच सकें। ऐसा करना इसलिए भी जरूरी है क्योंकि अक्सर लोग बोलते समय सही शब्दों का चुनाव नहीं कर पाते हैं। इसलिए वे कहना तो कुछ और चाहते हैं, पर बोलने के फ्लो में कह कुछ और जाते हैं। इसलिए यदि आप बिना अपने जवाब देने की प्रतीक्षा किये पूरे मन से सामने वाले की बातों को सुनेंगे, तभी उसकी बातों की गहराई तक पहुंच सकेंगे।
<br /><h3>
4. फीडबैक या प्रतिक्रिया करें</h3>
एक्टिव लिसनिंग की लास्ट और सबसे महत्वपूर्ण कड़ी है फीडबैक या प्रतिक्रिया। यदि आपको एक्टिव लिसनिंग के चमत्कारिक फायदे पाने हैं, तो आपको सामने वाले की बातों को सुनते समय सकारात्मक प्रतिक्रिया भी देनी चाहिए। अगर आपकी बातचीत किसी उत्साहजनक विषयक पर हो रही है, तो आप बीच बीच में इस तरह के शब्दों का इस्तेमाल कर सकते हैं। जैसे कि अरे वाह, बहुत बढ़िया, सही कहा आपने, आपका जवाब नहीं आदि। लेकिन अगर चर्चा का विषय दु:खद हो, तो प्रसंग के अनुकूल इस तरह के शब्द इस्तेमाल कर सकते हैं। जैसे- अरे! ओह माई गॉड, ये तो बहुत बुरा हुआ, ओह सैड! वगैरह-वगैरह।<br /><br />
इसके साथ ही बातचीत को सार्थक बनाने के लिए बीच बीच में ओपेन एंडेड क्वेश्चन्स का भी यूज़ करना चाहिए। ओपेन एंडेड क्वेश्चंस, यानी ऐसे सवाल जो बातचीत के सिलसिले को आगे बढ़ाने में मदद करें। जैसे- फिर क्या हुआ? फिर उसने क्या कहा? तब आपने क्या किया? वगैरह-वगैरह! ऐसे सवाल बोलने वाले को और ज्यादा बताने के लिए उत्साहित करते हैं। साथ ही उसके मन में यह विश्वास भी जगाते हैं कि सामने वाला व्यक्ति मेरी बातों को पूरे मन से सुन रहा है। <br /><br />
जब आप अपनी बातचीत के दौरान इन सारी टेक्निक्स का इस्तेमाल करते हैं, तो बातचीत का माहौल बेहद सकारात्मक बन जाता है और सामने वाले व्यक्ति के मन में आपके प्रति एक मानसिक लगाव सा उत्पन्न होने लगता है। <br /><br />
इस बॉन्ड को और ज्यादा मजबूती देने के लिए आपको चाहिए कि आप तब तक सामने वाले को सुनें, जब तक कि उसकी बातें पूरी न हो जाएं। जब सामने वाला व्यक्ति चुप हो जाए, तब एक हल्का सा पॉज़ यानी कि ठहराव लें और उसके बाद उसकी बातों का रिप्लाई दें। <br /><br />
रिप्लाई देने का सबसे अच्छा तरीका यह है कि अगर सामने वाला व्यक्ति आपको कुछ समझा रहा है, या शिकायत दर्ज करा रहा है, तो सबसे पहले उसके मेन प्वाइंट्स को दोहरा दें, जिससे ये क्लियर हो जाए कि आप उसकी बात पूरी तरह से समझ गये हैं। अगर आपको अभी भी कोई बात समझ में नहीं आई है, तो उसे बिना झिझक पूछ लें। और अगर नॉर्मल टॉपिक पर बातचीत चल रही है, तो भी उन बातों के जो मुख्य बिन्दु थे, या जो मुख्य घटनाएं बातचीत में आई थीं, उनके बारे में उत्साहजनक प्रतिक्रिया दें और बिना झिझक ये बताएं कि आपको कौन सी बात सबसे अच्छी लगी या किसे सुनकर आपको सबसे ज्यादा मज़ा आया। और अगर हो सके तो इसका कोई जेन्यून कारण भी दें, जैसे कि आपको भी खाने में वो व्यंजन पसंद है या फिर आपको भी ऐसी जगहों पर जाना पसंद है, वगैरह-वगैरह।<br /><br />
यहां पर एक बात का खास ख्याल रखें कि अगर आपकी यह बातचीत किसी खास उद्देश्य के लिए थी, तो भी आप उस व्यक्ति से बात करते समय अपने मनचाहे मुद्दे बातचीत न करें। सिर्फ उसके बारे में सुनें और जानें। ध्यान रखें कि आपकी बातचीत का उद्देश्य होना चाहिए सामने वाले को अच्छी फीलिंग्स देना। अगर आप बातचीत के दौरान अपने व्यवहार और प्रतिक्रियाओं के द्वारा यह करने में सफल हो जाते हैं, तो आपकी बातचीत सफल मानी जाएगी। इस तरह की बातचीत से सामने वाले के मस्तिष्क में आपके प्रति एक साफ्ट कॉर्नर सा बन जाता है, जिसमें आपकी छवि एक सौम्य और मिलनसार व्यक्ति के रूप में दर्ज हो जाती है।<br /><br />
और जब ऐसे व्यक्ति से आप दुबारा मिलेंगे, तो वह आपके साथ ऐसा व्यवहार करेगा जैसे वह आपको बरसों से जानता हो। वह न सिर्फ उत्साह के साथ आपका स्वागत करेगा बल्कि आपकी बातों को भी इम्पॉर्टेन्स देगा। इस तरह उस व्यक्ति के साथ न सिर्फ आपकी लिसनिंग की समस्या खत्म हो जाएगी बल्कि आप दोनों के बीच एक फ्रेंडशिप भी डेवलप हो जाएगी। <br /><br />दोस्तो, यह थी लिसनिंग Listening Skills in Hindi को प्रभावी बनाने वाली टेक्निक्स। हो सकता है कि आपको बेसिक लिसनिंग स्किल्स Basic Listening Skills अभी ज्यादा नाटकीय और अतिवादी लग रही हों, पर जब आप ये एक्टिव लिसनिंग स्किल्स Active Listening Skills आप बार बार दोहराएंगे, तो सुनने की कला Art of Listening के अभ्यस्त हो जाएंगे और किसी भी व्यक्ति के साथ बातचीत करने पर उसके चमत्कारिक नतीजे पाएंगे।<br /><br />
लिसनिंग की क्रिया (Listening Skills in Hindi) का अगला चरण है बातचीत। और किसी भी बातचीत को सफल बनाने के लिए ज़रूरी है कि उसकी बारीकियों को भी समझा जाए। तो बातचीत की इस कला को समझने के लिए लिए आप <a href="https://youtu.be/IqH6LynoGYw">यहां पर क्लिक</a> कर सकते हैं।</div><div style="text-align: justify;"> </div><div style="text-align: center;"><b>यूट्यूब पर सुनें 'सुनने की कला'</b><br /></div><div style="text-align: justify;">
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<iframe allow="accelerometer; autoplay; clipboard-write; encrypted-media; gyroscope; picture-in-picture" allowfullscreen="" frameborder="0" height="415" src="https://www.youtube.com/embed/8FjlhG54iUs" title="YouTube video player" width="560"></iframe>
</center><script>
document.title = "Listening Skills in Hindi | Active Listening Skills in Hindi | Art of Listening";
</script></div>विद्या सरनhttp://www.blogger.com/profile/13874233412214088080noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-290840405926959662.post-14727439092467132512021-08-21T07:50:00.003+05:302021-08-21T07:54:14.802+05:30राखी की लाज: राजपूत रानी कर्णवती और हुमायूं की सच्ची कहानी<div style="text-align: justify;"><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiVdHHwyyOkQo6bv_PmErRjOYKHC5WoxNkv4wIbEFPvuKAsIAxCCUWp1H8kU8tp0Od6UPheciYSmEBhA4og79GrN2JJKbqftdy6MIrVODppbjHibDxe3WAb1rKPq4JYyg5AoTd7R66aN3j-/s1280/Rakhi+Ki+Laaj.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="720" data-original-width="1280" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiVdHHwyyOkQo6bv_PmErRjOYKHC5WoxNkv4wIbEFPvuKAsIAxCCUWp1H8kU8tp0Od6UPheciYSmEBhA4og79GrN2JJKbqftdy6MIrVODppbjHibDxe3WAb1rKPq4JYyg5AoTd7R66aN3j-/s16000/Rakhi+Ki+Laaj.jpg" /></a></div>आज हम आपके लिए रक्षा बंधन स्पेशल Raksha Bandhan Special कहानी लेकर आए हैं। ऐतिहासिक प्रसंगों के अनुसार मुगल बादशाह हुमायूं और राजपूत रानी कर्णवती की कहानी Rani Karnavati and Humayun Story भी इस पवित्र त्यौहार से जुड़ी हुई है। यह कहानी रक्षाबंधन की कहानी Raksha Bandhan Special Story के नाम से भी जानी जाती है। तो आइए पढ़ते हैं यह हुमायूं और कर्णवती Humayun and Rani Karnavati की कहानी। हालांकि ये कर्णवती की कहानी बेहद छोटी सी है, पर आप चाहें, तो इसका वीडियो भी देख सकते हैं। कहानी का वीडियो इस पोस्ट के लास्ट में लगा हुआ है।
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रानी कर्णवती Rani Karnavati चित्तौड़ के राणा संग्राम सिंह की पत्नी थीं। राणा संग्राम सिंह सिसोदिया वंश के राजा थे और राणा सांगा के नाम से भी जाने जाते थे। उनके दो पुत्र थे विक्रमादित्य और उदय सिंह। आगे चलकर उदय सिंह के बड़े पुत्र प्रताप मेवाड़ के राणा बने और महाराणा प्रताप के नाम से मशहूर हुए।
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राणा सांगा की जब मृत्यु हुई, तो उस समय उनके दोनों पुत्र विक्रमादित्य और उदय सिंह बहुत छोटे थे और इस लायक नहीं थे कि राजपाट संभाल सकें। फिरभी कर्णवती ने मेवाड़ के सिंहासन पर अपने बड़े पुत्र विक्रमादित्य को बैठाया और स्वयं राजकाज संभालने में उनकी मदद करने लगीं।</div><div style="text-align: justify;"> </div><div style="text-align: justify;"></div><div style="text-align: center;"><b><span style="font-size: large;"><span style="font-size: large;"><span style="font-size: large;">Read: <a href="https://me.scientificworld.in/2021/08/ajijan-bai-ki-kahani.html">Tawayaf Ajijan Bai Ki Kahani</a></span></span></span></b><br /></div><div style="text-align: justify;"><br />
इस बीच, गुजरात के बहादुर शाह ने मेवाड़ पर कब्जा करने के लिए उस ओर कूच कर दिया। रानी कर्णवती Rani Karnavati को जब यह समाचार मिला, तो वह बेहद चिंतित हो गयीं। उन्होंने मदद के लिए राजपूत राजाओं से मदद मांगी, लेकिन उन लोगों ने कई शर्तें लगा दीं। कर्णवती इससे सोच में पड़ गयीं। रानी ने काफी सोच विचार किया और फिर मुगल सम्राट हुमायूं को राखी भेज कर उनसे मदद मांगने का निश्चय किया।
<br /><br />
रानी कर्णवती के इस निर्णय को जब उनके दरबारियों ने सुना, तो वे हैरान रह गये। इसके दो कारण थे। पहला यह कि हुमायूं मुस्लिम था। इसलिए उन्हें संदेह था कि एक मुस्लिम के विरूद्ध हुमांयू एक हिन्दू रानी की मदद क्यों करेगा? </div><div style="text-align: justify;"> </div><div style="text-align: justify;">और दूसरा यह कि हुमायूं मुगल वंश के संस्थापक बाबर का पुत्र था और बाबर व राणा सांगा के बीच खानवा में ज़बरदस्त युद्ध हो चुका था। उस युद्ध में घायल होने की वजह से ही राणा सांगा की मृत्यु भी हुई थी। इसलिए रानी के किसी भी दरबारी को यह उम्मीद नहीं थी कि हुमायूं अपने पिता के शत्रु की पत्नी यानी रानी कर्णवती की मदद करेगा।
<br /><br />
लेकिन रानी कर्णवती Rani Karnavati अपने निश्चय पर अडिग रहीं। वे बोलीं- हुमायूं भले ही मुस्लिम हैं, पर वे भारतवर्ष के एक बड़े सुल्तान हैं। मुझे पूरा यकीन है कि वे रिश्तों की अहमियत समझते होंगे और मेरी राखी की लाज रखेंगे। </div><div style="text-align: justify;"> </div><div style="text-align: justify;"></div><div style="text-align: center;"><b><span style="font-size: large;"><span style="font-size: large;">Read: <a href="https://me.scientificworld.in/2021/08/begum-hazrat-mahal-biography.html">Begum Hazrat Mahal Ki Kahani</a></span></span></b></div><div style="text-align: justify;"><br />
कर्णवती की राखी लेकर जब पत्रवाहक दिल्ली पहुंचा, तो उसे पता चला कि वे हुमायूं Humayun इस समय ग्वालियर में हैं। हुमायूं ने उस वक्त ग्वालियर में अपना पड़ाव डाल रखा था और वह बंगाल पर आक्रमण की तैयारी कर रहा था। पत्रवाहक ने यह जानकर अपना घोड़ा मोड़ दिया और ग्वालियर जा पहुंचा।
<br /><br />
रानी कर्णवती की राखी और उसका पत्र देखकर हुमांयू Humayun को आश्चर्यमिश्रित प्रसन्नता हुई। उसने पत्रवाहक से कहा कि आप अपनी रानी साहिबा से कहिएगा कि वे अपना हौसला बनाए रखें। मैं जल्दी ही अपनी सेना लेकर चित्तौड़ पहुंच रहा हूं।
<br /><br />
हालांकि हुमांयू Humayun तक कर्णवती का संदेश पहुंचने में काफी समय व्यतीत हो चुका था, लेकिन फिरभी हुमायूं ने अपना एक हरकारा दिल्ली की ओर दौड़ा दिया, जिससे वहां पर सेना तैयार हो सके। उसके बाद उसने दिल्ली की ओर कूच किया। दिल्ली पहुंचकर हुमांयू ने एक बड़ी सी सेना ली और फिर और चित्तौड़ की ओर चल पड़ा।
<br /><br />
लेकिन हुमांयू के चित्तौड़ पहुंचने से पहले ही गुजरात का शासक बहादुर शाह चित्तौड़ जा पहुंचा। रानी कर्णवती ने अपनी छोटी सी सेना के साथ बहादुर शाह का सामना किया। लेकिन वह ज्यादा देर तक टिक नहीं सकीं। उन्होंने अपनी हार होते देख कर 8 मार्च 1535 को अपनी राजपूत सखियों के साथ जौहर कर लिया।
<br /><br />
कर्णवती के जौहर करते ही चित्तौड़ की सेना का रहा सहा मनोबल भी जाता रहा। इससे उसने घुटने टेक दिये और चित्तौड़ पर बहादुर शाह का कब्जा हो गया। </div><div style="text-align: justify;"> </div><div style="text-align: justify;"></div><div style="text-align: center;"><b><span style="font-size: large;">Read: </span><a href="https://me.scientificworld.in/2021/08/great-indian-womens.html"><span style="font-size: large;">Great Women's of Indian History in Hindi</span></a></b><br /></div><div style="text-align: justify;"><br />
हुमायूं Humayun जब अपनी सेना लेकर चित्तौड़ पहुंचा, तो वहां पर बहादुर शाह का कब्जा हो चुका था। वहीं पर उसे रानी कर्णवती के जौहर की भी खबर मिली। यह सुनकर उसे बहुत दुख हुआ। लेकिन जब उसे यह खबर मिली कि कर्णवती के दोनों पुत्र विक्रमादित्य और उदय सिंह बूंदी के किले में सुरक्षित हैं, तो उसे थोड़ा सुकून मिला।
<br /><br />
हुमांयू Humayun ने कर्णवती की राखी की लाज को रखते हुए बहादुर शाह को चित्तौड़ से मार कर भगा दिया। इसके बाद उसने बूंदी से उनके पुत्रों को बुलवाया और चित्तौड़ का सिंहासन कर्णवती के बड़े पुत्र विक्रमादित्य के हवाले कर दिया।
<br /><br />
इस ऐतिहासिक घटना को घटित हुए अब तक सैकड़ों साल गुज़र चुके हैं। आज न हुमायूं Humayun हैं और न कर्णवती Karnavati, लेकिन भाई बहन का यह अनूठा रिश्ता कहानियों और कविताओं में आज भी ज़िन्दा है।
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<b>यूट्यूब में देखें यह रक्षाबंधन स्पेशल स्टोरी: </b></center><center><b> </b><br />
<iframe allow="accelerometer; autoplay; clipboard-write; encrypted-media; gyroscope; picture-in-picture" allowfullscreen="" frameborder="0" height="415" src="https://www.youtube.com/embed/fwzC4hDPdJQ" title="YouTube video player" width="560"></iframe>
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<br /></div><div style="text-align: justify;">
दोस्तों, हमें उम्मीद है कि यह रक्षा बंधन स्पेशल Raksha Bandhan Special कहानी आपको पसंद आई होगी। बादशाह हुमायूं और राजपूत रानी कर्णवती की कहानी Rani Karnavati and Humayun Story को आप अपने फ्रेंड्स के साथ ज़रूर शेयर करें, जिससे हुमायूं और कर्णवती Humayun and Rani Karnavati की इस दिल छू लेने वाली कहानी Rani Karnavati Story से और लोग भी परिचित हो सकें। </div><div style="text-align: justify;"> </div><div style="text-align: justify;"><span style="font-size: xx-small;">keywords: rani karnavati, rakshabandhan special, raksha bandhan special, rani karnavati of garhwal, rani karnavati and humayun story in hindi, humayun rakhi story, rani karnavati in hindi, humayun rakhi, karnavati queen, humayun and rani karnavati, humayun and karnavati
</span><script>
document.title = "Raksha Bandhan Special Rani Karnavati and Humayun Story in Hindi";
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</div>विद्या सरनhttp://www.blogger.com/profile/13874233412214088080noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-290840405926959662.post-67285494911707801832021-08-19T11:54:00.003+05:302021-08-19T12:04:35.509+05:30अजीजन बाई: एक तवायफ जिसने 1857 के संग्राम में अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए<div style="text-align: justify;"><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEisEk4lAB1Df0uYLv5RLhTr45aQ61kF3-cSyspead5SVqKd-I_NXkpEP5436oJMSIyyqFp1am507VFN5bbwTQh0TzCdVCICdTIKws5PiQozYIByNUi2yJVmBbKstThHDyn7LKR6v0YU-_ba/s900/Ajijanbai.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="Ajijanbai" border="0" data-original-height="619" data-original-width="900" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEisEk4lAB1Df0uYLv5RLhTr45aQ61kF3-cSyspead5SVqKd-I_NXkpEP5436oJMSIyyqFp1am507VFN5bbwTQh0TzCdVCICdTIKws5PiQozYIByNUi2yJVmBbKstThHDyn7LKR6v0YU-_ba/s16000/Ajijanbai.jpg" /></a></div>भारत की आज़ादी की लड़ाई में हिस्सा लेने वालों में सिर्फ पुरूष ही नहीं, महिलाएं भी शामिल थीं। इनमें जहां एक ओर कुलीन परिवारों की संभ्रांत महिलाएं थीं, वहीं दूसरी ओर तवायफें व नृर्तकियां भी इसमें पीछे नहीं रहीं। ऐसा ही एक प्रमुख नाम है अजीजन बाई Ajijan Bai Biography in Hindi. अजीजन बाई वैसे तो पेशे से एक तवायफ थीं, लेकिन उन्होंने 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया और अपने जुनून तथा देश के लिए मर मिटने की भावना के चलते अंग्रजों को लोहे के चने चबाने पर मजबूर कर दिया था। तो लीजिए, आप भी सुनिए Ajijan Bai Ki Kahani, हमें उम्मीद है कि आपको अजीजन बाई की बायोग्राफी पसंद आएगी।</div><div style="text-align: justify;"><h2 style="text-align: center;">Ajijan Bai Biography in Hindi | Ajijan Bai Ki Kahani </h2>
अजीजन बाई का जन्म 22 जनवरी सन 1824 को मध्य प्रदेश के मालवा राज्य के राजगढ़ में हुआ था। उनके पिता शमशेर सिंह एक ज़ागीरदार थे।
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अजीजन का मूल नाम अंजुला था। एक दिन वे अपनी सहेलियों के साथ मेला घूमने गयी थीं। वहां पर अचानक एक अंग्रेज़ टुकड़ी ने हमला कर दिया और उन्हें अगवा कर लिया। अंजुला को लेकर जब अंग्रेज सिपाही नदी पर बने पुल से गुजर रहे थे, तो उसी वक्त जान बचाने के लिए अंजुला नदी में कूद गयीं।
<br /><br />
जब अंग्रेज वहां से चले गये, तो एक पहलवान ने नदी में कूद कर अंजुला की जान बचाई। वह पहलवान कानपुर के एक चकलाघर के लिए काम करता था। उसने अंजुला को ले जाकर वहां बेच दिया। इस प्रकार अंजुला का नाम बदल कर अजीजन बाई हो गया और उन्हें तवायफ की ट्रेनिंग दी जाने लगी। </div><div style="text-align: justify;"> </div><div style="text-align: justify;"></div><div style="text-align: center;"><b><span style="font-size: large;">Read: </span><a href="https://me.scientificworld.in/2021/08/great-indian-womens.html"><span style="font-size: large;">Great Women's of Indian History in Hindi</span></a></b><span style="font-size: large;"> </span><br /></div><div style="text-align: justify;"><br />
कुछ ही समय में अजीजन बाई अपनी खूबसूरती और नृत्य के लिए दूर दूर तक प्रसिद्ध हो गयीं। वे कानपुर के मूलगंज इलाके में रहती थीं। वहां पर उनका मुजरा सुनने के लिए अंग्रेज अफसर भी आया करते थे। यह बात 1857 के प्रसिद्ध क्रांतिकारी तात्या टोपे को पता चली, तो उन्होंने अपने साथियों के साथ अंग्रेजों पर हमला कर दिया। तात्या टोपे को देखकर अंग्रेज अफसर वहां से भाग खड़े हुए।
<br /><br />
तात्या टोपे ने अजीजनबाई होलिका दहन पर बिठूर आने का न्योता दिया। अजीजनबाई ने उनका आमंत्रण स्वीकार कर लिया। उन्होंने होलिका दहन के दिन अपने नृत्य से सभी का दिल जीत जिया। तात्या जब उन्हें इनाम में पैसे देने लगे, तो अजीजन बोलीं कि अगर कुछ देना है, तो अपनी सेना की वर्दी दे दें। यह सुनकर तात्या टोपे प्रसन्न हो गये और उन्हें मुखबिर के रूप में अजीजन को अपनी टोली में शामिल कर लिया।
<br /><br />
अजीजन बाई ने होली मिलन के रूप में मूलगंज में एक स्पेशल नृत्य कार्यक्रम किया, जिसमें सिर्फ अंग्रेज अफसरों को ही बुलाया। लेकिन वहां पर क्रांतिकारी पहले से ही घात लगाए बैठे थे। अंग्रेजों के आते ही उन्होंने धावा बोल दिया और उन्हें मौत के घाट सुला दिया।
<br /><br />
नाना साहब को जब अजीजन बाई के बारे में पता चला, तो वे बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने अजीजन से राखी बंधवा कर उन्हें अपनी धर्म बहन बना लिया। इससे अजीजन बाई नाना साहब से बहुत प्रभावित हुईं। उन्होंने अपनी सारी संपत्ति आज़ादी की लड़ाई के लिए नाना साहब को दान कर दी।
<br /><br />
अजीजन बाई ने अपनी साथी तवायफों के साथ मिलकर 'मस्तानी टोली' बनाई और उन्हें युद्ध कला का प्रशिक्षण दिया। यह टोली दिन में वेष बदल कर अंग्रेजों से मोर्चा लेती थी और रात में छावनी में मुज़रा करके वहां से गुप्त सूचनाएं एकत्र करके नाना साहब तक पहुंचाती थी। इसके अलावा युद्ध में घायल सैनिकों की सेवा तथा रसद आदि पहुंचाने का काम भी वे लोग करती थीं। </div><div style="text-align: justify;"><br /></div><div style="text-align: center;"><b><span style="font-size: large;"><span style="font-size: large;">Read: <a href="https://me.scientificworld.in/2021/08/laxmibai-biography.html">Laxmibai Biography in Hindi</a></span></span></b><br /></div><div style="text-align: justify;"> </div><div style="text-align: justify;">अजीजन की प्रेरणा से अंग्रेजी फौज के हजारों सिपाही विद्रोही सेना में शामिल हुए। उनकी मदद से नाना साहेब ने कानुपर से अंग्रेजों को उखाड़ फेंका और 8 जुलाई 1857 को वे वहां के स्वतंत्र पेशवा घोषित कर दिये गये।
<br /><br />
पर 17 जुलाई को जनरल हैवलाक बड़ी सेना लेकर कानपुर पहुँच गया। उसने कुछ विश्वासघातियों की मदद से जीती बाजी पलट दी। नाना साहब वहां से बच कर निकलने में कामयाब हो गये, पर अजीजन अंग्रेजों की गिरफ्त में आ गयीं।
<br /><br />
जनरल हैवलाक ने कहा कि यदि वह माफी मांग लें और साथी क्रांतिकारियों का पता बता दें, तो उन्हें छोड़ दिया जाएगा। पर अजीजन ने इससे सख्ती से इनकार कर दिया।
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इससे क्रुद्ध होकर हैवलाक ने अजीजन को गोलियों से भून देने का हुक्म जारी कर दिया। यह सुनकर भी अजीन के चेहर पर एक शिकन तक नहीं आई और वह देश की खातिर हंसते हुए कुर्बान हो गयीं।<br /></div><div><br />
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<b>यूट्यूब पर सुनें अजीजन बाई की कहानी:</b><br /><br />
<iframe allow="accelerometer; autoplay; clipboard-write; encrypted-media; gyroscope; picture-in-picture" allowfullscreen="" frameborder="0" height="415" src="https://www.youtube.com/embed/LddL0DPjVgs" title="YouTube video player" width="560"></iframe></center>
<br /></div><div style="text-align: justify;">
दोस्तों, हमें उम्मीद है कि अजीजन बाई की बायोग्राफी Ajijan Bai Biography in Hindi आपको पसंद आई होगी। अगर ऐसा है, तो प्लीज़ इसे सोशल मीडिया पर भी शेयर करें, जिससे इन महान देशभक्त के बारे में भी लोग जान सकें। और हां, जब भी कोई आपसे 1857 के संग्राम या अजीजन बाई Ajijan Bai Ki Kahani की चर्चा करे, तो उसे हमारा पता बताना न भूलें।
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document.title = "Ajijan Bai Biography in Hindi | Ajijan Bai Ki Kahani";
</script></div>विद्या सरनhttp://www.blogger.com/profile/13874233412214088080noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-290840405926959662.post-1385272465864457552021-08-16T13:58:00.004+05:302021-08-19T12:00:46.804+05:30अवध की बेगम, जिसने अकेले दम पर अंग्रेज़ों को धूल चटा दी<div style="text-align: left;"><div style="text-align: justify;"><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjIC7xopZd-aAXjqTZr0alOG6jGZm-vPrOEzvGUrYoVoi79MaC0INyE5zewmem99alrjZ6f_bsKk7yiIWc_rT0NqOT6b1RBWI8gampotGiMF5cSiBWZ_uDIxeouN4nZtL0W2ixskqqFbHnM/s1280/Awadh+Ki+Begum.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="Awadh Ki Begum" border="0" data-original-height="720" data-original-width="1280" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjIC7xopZd-aAXjqTZr0alOG6jGZm-vPrOEzvGUrYoVoi79MaC0INyE5zewmem99alrjZ6f_bsKk7yiIWc_rT0NqOT6b1RBWI8gampotGiMF5cSiBWZ_uDIxeouN4nZtL0W2ixskqqFbHnM/s16000/Awadh+Ki+Begum.jpg" /></a></div>बेगम हजरत महल की जीवनी Begum Hazrat Mahal Biography in Hindi साहस और प्रेरणा की एक जीवित मिसाल है, जिससे यह पता चलता है कि यदि व्यक्ति के अंदर आत्मसम्मान और साहस हो, तो वह बड़े से बड़े तूफान से टकरा सकता है। बेगम हजरत महल की जीवनी को यहां पर रोचक कहानी के रूप में प्रस्तुत किया गया है, जिससे आप इसे पढ़ते समय बोर न हों। और हां, यह कहानी यूट्यूब पर भी उपलब्ध है, जिसका वीडियो नीचे शेयर किया गया है। आप उस वीडियो को देखकर भी बेगम हजरत महल के बारे में पूरी जानकारी Begum Hazrat Mahal Information in Hindi प्राप्त कर सकते हैं। </div><div style="text-align: center;"><h2>बेगम हजरत महल की जीवनी Begum Hazrat Mahal Biography in Hindi </h2></div><div style="text-align: justify;"><b>वास्तविक नाम:</b> मुहम्मदी खानम </div><div style="text-align: justify;"><b>जन्म:</b> 1820, फ़ैज़ाबाद, अवध, भारत </div><div style="text-align: justify;"><b>धर्म:</b> इस्लाम (शिया)</div><div style="text-align: justify;"><b>पति:</b> नवाब वाजिद अली शाह </div><div style="text-align: justify;"><b>बच्चे:</b> एक बेटा (मिर्ज़ा बिर्जिस कादर)</div><div style="text-align: justify;"><b>कार्य:</b> 1857 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ विद्रोह, लखनऊ में सत्ता पर कब्जा </div><div style="text-align: justify;"><b>मृत्यु:</b> 7 अप्रैल 1879, काठमांडू, नेपाल। </div><div style="text-align: justify;"><h3 style="text-align: center;"> ऐतिहासिक कहानी : अवध की बेगम (लेखक: ज़ाकिर अली `रजनीश´)</h3>
अंग्रेजों की हड़प नीति जारी थी। बड़े-बड़े राज्य उनकी ताकत और कूटनीति के आगे नतमस्तक हुए जा रहे थे। ऐसे में जब अंग्रेजी हुकूमत ने 06 फरवरी 1856 को यह आदेश जारी किया कि अवध राज्य को ब्रिटिश हुकूमत में मिलाया जा रहा है, तो पूरे राज्य में खलबली मच गयी।
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नवाब वाजिद अली शाह का स्वास्थ्य ठीक नहीं था। उनकी तबियत दिन प्रतिदिन गिरती जा रही थी। उनके अंदर इतनी कूवत नहीं बची थी कि वे अंग्रेज़ों का विरोध करते। लिहाज़ा उन्होंने समर्पण कर दिया। लेकिन उनकी बेगम हज़रत महल को यह बात नागवार गुज़री। बेगम ने अपने बेटे मिर्ज़ा बिर्जिस कादर की कसम खाई कि वह अंग्रेजों की ईंट से ईंट बजा देंगी।
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जो औरत सात पर्दों के अंदर सैकड़ों बांदियों से घिरी रहती थी, उसने शर्म और हया का पर्दा उतार फेंका और जनता के बीच जा पहुंची। हज़रत महल ने सैनिकों को ललकारते हुए कहा, ``साथियों, अवध हमारा राज्य है। हम अंग्रेजों को यहां से उखाड़ फेकेंगे।´´
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बेगम की बातों ने लोगों पर जादू की तरह असर किया। अवध की जनता उनके साथ होने लगी। नवाब के कारण जिस सेना का हौसला बुरी तरह से पस्त हो गया था, बेगम के नेतृत्व में वह हिमालय की तरह बुलंद हो गया। और इस तरह देखते ही देखते एक विद्रोही सेना तैयार हो गयी और अंग्रेजी राज्य पर आक्रमण करने की तैयारी की जाने लगी।
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हज़रत महल का साथ देने के लिए सैनिकों से लेकर किसान तक एकजुट हो गये। चारों ओर बेगम की जय-जयकार होने लगी। लेकिन अभी भी कुछ लोग ऐसे थे, जो बेगम के औरत होने के कारण उनके नेतृत्व को स्वीकार नहीं कर रहे थे। उन्हीं में से एक थे अम्मान और इम्मान। ये वे ही लोग थे, जिन्होंने गांव की एक अनाम लड़की को नवाब साहब के महल की बेगम हज़रत महल बनाने में बहुत बड़ी भूमिका निभाई थी। </div><div style="text-align: justify;"> </div><div style="text-align: justify;"></div><div style="text-align: center;"><b><span style="font-size: large;"><span style="font-size: large;">Read: <a href="https://me.scientificworld.in/2021/08/laxmibai-biography.html">Rani Laxmibai Biography in Hindi</a></span></span></b><br /></div><div style="text-align: justify;"><br />
यह उस समय की बात है जब अवध में अकाल पड़ा था। उन दिनों अम्मान और इम्मान फैज़ाबाद में थे। एक दिन वे एक घर के सामने से गुजर रहे थे। तभी घर के बाहर बैठी हुयी एक खूबसूरत लड़की को देखकर उनके कदम ठिठक गये। वह लड़की बर्तन मांज रही थी। पास में ही उसके बूढ़े मां-बाप भी बैठे हुए थे।
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उस लड़की को देखकर अम्मान और इम्मान की आंखें चमक उठीं। इम्मान बोला, ``क्या कहते हो अम्मान भाई, यह लड़की तो नवाब साहब के हरम में होनी चाहिए। यह यहां पर इस धूल-मिट्टी के बीच क्या कर रही है?´´<br /><br />
``हां इम्मान भाई, तुम ठीक कहते हो।´´ अम्मान ने भी उसका समर्थन किया, ``हम इस धूल के फूल को अवध के सिंहासन की शोभा बनाएंगे।´´
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``ज़रूर, बस इसे थोड़ा तहज़ीब और सलीका सिखाना होगा।´´ इम्मान ने मशवरा दिया।
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अम्मान भी कहां चुप रहने वाला था। वह मुस्करा कर बोला, ``यह तो हमारे बाएं हाथ का काम है।´´
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दोनों लोग मन ही मन हंसते हुए उस लड़की के मां-बाप के पास पहुंचे। उन्होंने लड़की के मां-बाप को ढ़ेर सारा धन दिया और उसे खरीद कर ले आए। उन लोगों ने उस लड़की को थोड़े दिन अपने पास रखा। उसे पढ़ाया-लिखाया और महलों के तौर तरीके सिखाए। उसके बाद उन्होंने उसे नवाब साहब की खिदमत में पेश कर दिया।
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अपनी खूबसूरती और सलाहियत के बल पर उस लड़की ने नवाब साहब का दिल जीत लिया। नवाब वाजिद अली शाह ने अम्मान और इम्मान को ढ़ेर सारे इनाम-ओ-इकराम से नवाज़ा और उस लड़की को अपनी बीवी बना लिया और उसका नाम `महक परी´ रख दिया।
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महक परी की हर अदा निराली थी। देखते ही देखते नवाब साहब महक परी के मुरीद हो गये। उन्होंने उसे `इफ्तखार-उल-निसा´ अर्थात स्त्री का गर्व के खिताब से सम्मानित किया।
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कुछ दिनों के बाद महक परी ने एक चांद से पुत्र को जन्म दिया। अपने बेटे को देखकर नवाब साहब खुशी से फूले नहीं समाए। और इस मौके पर उन्होंने बेगम को सबसे बड़ा खिताब `हज़रत महल´ अता किया।
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वही हज़रत महल आज विद्रोही सेना का नेतृत्व कर रही थीं। अम्मान और इम्मान की तरह सैकड़ों लोगों की नजरों में हज़रत महल आज भी गांव की एक अनाम लड़की ही थी। उन्हें आशा थी कि जनता की भावना को देखते हुए अंग्रेज सरकार नवाब साहब को ज्यादा दिनों तक कैद में नहीं रख पाएगी। लेकिन जल्दी ही उनका भरम टूट गया। नवाब वाजिद अली शाह को अंग्रेजों ने देश निकाला दे दिया। उन्हें कलकत्ता में कैद कर दिया गया। यह देखकर हज़रत महल के विरोधियों के हौसले पस्त हो गये। अब उनके सामने हज़रत महल के समर्थन के अलावा और कोई रास्ता नहीं बचा था।
<br /></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-size: large;"> </span></div><div style="text-align: center;"><b><span style="font-size: large;">Read: <a href="https://www.scientificworld.in/2013/10/apj-abdul-kalam.html">APJ Abdul Kalam Biography in Hindi</a></span></b></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-size: large;"> </span><br />
विद्रोही फौज ने पूरी तैयारी के साथ अंग्रेजों पर आक्रमण किया। अंग्रेज सेना इसके लिए पहले से ही तैयार थी। उसने चिनहट गांव के पास विद्रोहियों को रोक लिया। दोनों सेनाओं में घमासान लड़ाई हुयी। अंग्रेज सेना का कमाण्डर सर हेनरी लॉरेन्स था। उसने बड़ी बहादुरी के साथ विद्रोही सेना का मुकाबला किया। लेकिन अवध के शूरवीरों के आगे उसकी एक न चली। अपनी हार होते देखकर लॉरेन्स पीछे हट गया। उसने लखनऊ को खाली कर दिया। इस प्रकार अवध की राजधानी लखनऊ पर विद्रोही सेना का कब्जा हो गया।
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लखनऊ फतह के बाद सर्वसम्मति से बेगम हज़रत महल को अवध का खेवनहार चुन लिया गया। लेकिन बेगम ने यह पदवी लेने से इनकार कर दिया। उन्होंने अपने दस वर्षीय पुत्र मिर्ज़ा बिर्जिस कादर को अवध का नवाब नियुक्त किया और स्वयं को उसका सरपरस्त घोषित किया।
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कुछ ही समय में हज़रत महल ने अपने कुशल प्रबंधन के बल पर अवध के लोगों का दिल जीत लिया। उन्होंने घूम-घूम कर पूरे राज्य का दौरा किया। लोगों से खुलकर बात की और उनकी समस्याएं जानीं। उन्होंने जनता की परेशानियों को न सिर्फ सुना, बल्कि उन्हें दूर करने के लिए समुचित कदम भी उठाए।
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हज़रत महल की कार्यकुशलता देखकर अवध की जनता उनकी मुरीद हो गयी। इससे पहले कोई भी शासक जनता के बीच इतना लोकप्रिय नहीं हुआ था। हज़रत महल की लोकप्रियता का यह आलम था कि वहां की जनता वही सोचती थी, जो हज़रत महल सोचती थीं, और वह वही करती थी, जो हज़रत महल कहती थीं।
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अवध की रियासत अपने हाथ से गंवाने के बाद अंग्रेज चैन से नहीं बैठे। उन्होंने अपनी शक्ति संगठित की और पुन: फरवरी 1858 में हमला कर दिया। बेगम हज़रत महल ने अंग्रेज सेना का डटकर मुकाबला किया। उन्होंने हाथी पर बैठकर अपनी सेना का कुशल नेतृत्व किया। लेकिन उनकी सेना अंग्रेजों के मुकाबले बहुत छोटी थी। अंग्रेजों की तोपों के आगे अवध की सेना के पैर उखड़ गये।
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अपनी सेना की हार होते देखकर हज़रत महल ने चालाकी से काम लिया। वे कुछ विश्वस्त सैनिकों के साथ वहां से भाग निकलीं और बहराइच जिले में स्थित बूंदी के किले में शरण ली। वहां पर वे अपनी सेना को पुन: संगठित करने लगीं।
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अंग्रेज़ कमाण्डर को हज़रत महल की लोकप्रियता का हाल मालूम था। उसने सोचा कि जब तक बेगम पकड़ी नहीं जातीं, उसे चैन नहीं मिलेगा। रह-रह कर यहां से विद्रोह से स्वर फूटते रहेंगे। इससे अच्छा है कि उन्हें लालच देकर अपने साथ मिला लिया जाए। यह सोच कर अंग्रेज़ कमाण्डर ने हज़रत महल के पास संधि का प्रस्ताव भेजा। उसमें लिखा हुआ था कि अंग्रेज सरकार आपके सारे गुनाह माफ करती है। वह आपके गुज़ारे के लिए पेंशन देगी और आपके बेटे की पढ़ाई-लिखाई का पूरा बन्दोबस्त करेगी। </div><div style="text-align: justify;"> </div><div style="text-align: justify;"></div><div style="text-align: justify;"></div><div style="text-align: center;"><b><span style="font-size: large;">Read: <a href="https://me.scientificworld.in/2021/06/ratan-tata-biography.html">Ratan Tata Biography in Hindi</a></span></b></div><div style="text-align: justify;"><br />
लेकिन उस खुद्दार औरत ने अंग्रेजों के सामने झुकने से इनकार कर दिया। उन्होंने संधि के जवाब में कहलाया- मैं हंसते-हंसते कुर्बान हो जाऊंगी, लेकिन अंग्रेज़ों की भीख नहीं लूंगी।
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यह सुनकर अंग्रेज़ कमाण्डर तिलमिला उठा। उसने भारी लाव-लश्कर के साथ बूंदी के किले पर धावा बोल दिया। हज़रत महल की सेना ने पूरे दम-खम के साथ अंग्रेजों से लोहा लिया। लेकिन उनकी फौज के कुछ विश्वस्त लोगों ने गद्दारी कर दी। जागीर के लालच में वे अंग्रेजों से जा मिले। हज़रत महल की सेना अंग्रेजों के मुकाबले वैसे ही छोटी थी। गद्दारों के कारण उनकी सेना की हालत पतली हो गयी। उनके सैनिकों ने बहुत बहादुरी से लड़ा। लेकिन धीरे-धीरे उनके पैर उखड़ने लगे।
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हज़रत महल के सेनापति को हकीकत समझते देर नहीं लगी। वह बोला, ``बेगम साहिबा, अंग्रेज सेना बहुत बड़ी है। हमारी सेना अब ज्यादा देर तक उन्हें नहीं रोक सकती। हमारी हार निश्चित है। आप कुछ विश्वस्त सैनिकों को साथ लेकर यहां से तुरन्त निकल जाएं।´´
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``नहीं।´´ हज़रत महल जोर से चिल्लाईं, ``मैं अपनी सेना को अकेला छोड़ कर नहीं जा सकती। मैं मरते दम तक अंग्रेजों से लड़ती रहूंगी।´´
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``मान जाइए बेगम साहिबा। आपको कादर साहब का वास्ता।´´ सेनापति ने हाथ जोड़े, ``आज़ादी की इस जंग को जारी रखने के लिए आप दोनों का सलामत रहना बहुत जरूरी है। फिलहाल इस समय हवा का रूख़ हमारे खिलाफ है। और समझदार सियासतदां वही है, जो हवा के रूख के मुताबिक अपनी चालों को बदल ले।´´
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``लेकिन......´´ हज़रत महल ने कुछ कहना चाहा।
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सेनापति ने उनकी बात बीच में ही काट दी, ``लेकिन-वेकिन कुछ नहीं बेगम साहिबा। आप कादर साहब को लेकर फौरन यहां से चली जाएं और नेपाल नरेश के यहां शरण लें। वे आपकी भरपूर मदद करेंगे।´´
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इसके बाद हज़रत महल अपने सेनापति का विरोध न कर सकीं। वे अपने बेटे को लेकर नेपाल नरेश के पास चली गयीं। पर वे अपने साथियों की गद्दारी के कारण बेहद निराश हो गयी थीं। </div><div style="text-align: justify;"> </div><div style="text-align: justify;"></div><div style="text-align: center;"><b><span style="font-size: large;"><span style="font-size: large;"><span style="font-size: large;">Read: <a href="https://me.scientificworld.in/2021/08/ajijan-bai-ki-kahani.html">Ajijan Bai Biography in Hindi</a></span></span></span></b></div><div style="text-align: justify;"><br />
और जब उन्हें पता चला कि अंग्रेज़ सेना ने 1857 के विद्रोह के पूरी तरह से कुचल दिया है, तो उनका रहा सहा उत्साह भी जाता रहा। इसके बाद न तो नेपाल नरेश ने इस मामले में उनकी कोई मदद की और न ही वे दोबारा अपनी सेना संगठित कर पाईं।
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बेगम हज़रत महल ने अपनी जिंदगी का बाकी सफर एक आम आदमी की तरह तय किया। बिलकुल शान्त और मामूली। उस सफर में उनका बेटा मिर्जा बिर्जिस कादर बराबर उनके साथ रहा। आखीर में एक दिन उस गैर मामूली औरत के जीवन का सफर खत्म हो गया। वह अल्लाह को प्यारी हो गयीं। पर अपने पीछे छोड़ गयीं वे तारीख़ के तमाम सुनहरे वर्क। उनकी बहादुरी और कार्यकुशलता के किस्से इतिहास की किताबों में ही नहीं बल्कि अवध के सीने में भी ज़िन्दा हैं। आज भी जब अवध के लोग उस महान हस्ती को याद करते हैं, तो उनका सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है। </div><div style="text-align: justify;"> </div><center>
<h3><b>यूट्यूब पर सुनें बेगम हज़रत महल की पूरी कहानी: </b></h3><h3><b> </b><iframe allow="accelerometer; autoplay; clipboard-write; encrypted-media; gyroscope; picture-in-picture" allowfullscreen="" frameborder="0" height="415" src="https://www.youtube.com/embed/CrCVaQf2MmI" title="YouTube video player" width="560"></iframe>
</h3></center></div><div style="text-align: left;"> </div><div style="text-align: justify;">हमें उम्मीद है कि बेगम हजरत महल की यह कहानी आपको पसंद आई होगी। अगर आप बेगम हजरत महल की जीवनी Begum Hazrat Mahal Biography in Hindi के महत्वपूर्ण बिंदुओं को तारीखवार जानना चाहते हैं, तो उसे हम यहां पर प्रस्तुत कर कर हैं। हम आशा करते हैं कि बेगम हजरत महल की यह जानकारी Begum Hazrat Mahal Information in Hindi आपके लिए उपयोगी रहेगी।<br /></div><div style="text-align: left;"> <h3></h3></div><div style="text-align: justify;"><h3>
बेगम हज़रत महल : महत्वपूर्ण तथ्य </h3></div><div style="text-align: justify;">1. 1857 में मंगल पांडे के विद्रोह के बाद क्रांति मेरठ तक फैली। मेरठ के सैनिक दिल्ली के बादशाह बहादुर शाह से मिले। बहादुरशाह और ज़ीनत महल ने उनका साथ दिया और आजादी की घोषणा की। </div><div style="text-align: justify;"> </div><div style="text-align: justify;">2. लखनऊ में '1857 की क्रांति' का नेतृत्व बेगम हज़रत महल ने किया था। उन्होंने अपने नाबालिग पुत्र बिरजिस कादर को गद्दी पर बिठाकर अंग्रेज़ी सेना का मुक़ाबला किया। </div><div style="text-align: justify;"> </div><div style="text-align: justify;">3. 7 जुलाई 1857 से अवध का शासन हजरत महल के हाथ में आया। </div><div style="text-align: justify;"> </div><div style="text-align: justify;">4. बेगम हजरत महल ने अपने सिपाहियों का हौसला बढ़ाने के लिये युद्ध के मैदान में भी चली जाती थी। बेगम ने सेना को जौनपुर और आजमगढ़ पर धावा बोल देने का आदेश जारी किया लेकिन ये सैनिक आपसमें ही टकरा ग़ये। </div><div style="text-align: justify;"> </div><div style="text-align: justify;">5. ब्रितानियों ने सिखों व राजाओं को ख़रीद लिया व यातायात के सम्बंध टूट गए। नाना की भी पराजय हो गई। 21 मार्च को लखनऊ अंग्रेज़ों के अधीन हो गया। अन्त में बेगम की कोठी पर भी ब्रितानियों ने कब्जा कर लिया। </div><div style="text-align: justify;"> </div><div style="text-align: center;"><div style="text-align: center;"><b><span style="font-size: large;">Read: </span><a href="https://me.scientificworld.in/2021/08/great-indian-womens.html"><span style="font-size: large;">Great Women's of Indian History in Hindi</span></a></b></div> </div><div style="text-align: justify;"> </div><div style="text-align: justify;">6. बेगम हज़रत महल में संगठन की अभूतपूर्व क्षमता थी। उन्होंने बहुत कम समय में अवध के लोगों को विद्रोह के लिए तैयार कर लिया था। </div><div style="text-align: justify;"> </div><div style="text-align: justify;">7. बेगम ने आलमबाग़ की लड़ाई के दौरान हाथी पर सवार होकर अपने सैनिकों की होसला अफज़ाई की अंग्रेज़ों के साथ दिन-रात युद्ध किया। </div><div style="text-align: justify;"> </div><div style="text-align: justify;">8. बेगम हज़रत महल का मकबरा काठमांडू, नेपाल के मध्य जामा मस्जिद के पास (घंटाघर पर) स्थित है। इसकी देखभाल जामा मस्जिद केंद्रीय समिति करती है। </div><div style="text-align: justify;"> </div><div style="text-align: justify;">9. बेगम हज़रत महल के सम्मान में 15 अगस्त 1962 को लखनऊ स्थित हजरतगंज के ‘ओल्ड विक्टोरिया पार्क’ का नाम बदलकर ‘बेगम हज़रत महल पार्क’ कर दिया गया। नाम बदलने के साथ-साथ यहाँ एक संगमरमर का स्मारक भी बनाया गया है। </div><div style="text-align: justify;"> </div><div style="text-align: justify;">10. भारत सरकार ने 10 मई 1984 को बेगम हज़रत महल के सम्मान में एक डाक टिकट जारी किया है। </div><div style="text-align: justify;"></div><div style="text-align: justify;"><script>
document.title = "Begum Hazrat Mahal Biography in Hindi";
</script></div><div style="text-align: justify;"><script>
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</script></div>विद्या सरनhttp://www.blogger.com/profile/13874233412214088080noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-290840405926959662.post-59134384834779789212021-08-16T08:27:00.004+05:302021-08-16T15:32:04.275+05:301857 की टॉप 5 वीरांगनाएं, जिन्होंने अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिये<div style="text-align: justify;"><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg-5Fl8xMi8klVh6QSUcQx8ksZxKGyEc_NN0hJX5gsvHYxz5KDKsciZQpvSVnoAwzebR8Z3vWzaNWrLovpU-2G3feHyQLiUXSjhxvkDDzRvoBDpPLX61O3LW8MUDz56aMLP1Rc-amr4lkcz/s1280/Top+5+Women.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="Great Indian Womens" border="0" data-original-height="720" data-original-width="1280" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg-5Fl8xMi8klVh6QSUcQx8ksZxKGyEc_NN0hJX5gsvHYxz5KDKsciZQpvSVnoAwzebR8Z3vWzaNWrLovpU-2G3feHyQLiUXSjhxvkDDzRvoBDpPLX61O3LW8MUDz56aMLP1Rc-amr4lkcz/s16000/Top+5+Women.jpg" /></a></div>आज हम आपके लिए 5 ऐसी महान भारतीय महिलाओं Great Womens of Indian History in Hindi की जानकारी लेकर आए हैं, जो भारत के इतिहास में अमर हैं। इन महान महिलाओं Great Indian Womens ने 1857 में भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया और अंग्रेजों की ईंट से ईंट बजा दी थी। ये अपनी बहादुरी और रणकौशल के कारण Great Women's of Indian History in Hindi के रूप में याद की जाती हैं। इतिहास में अपना नाम अमर कर दिया। हमें उम्मीद है कि महान भारतीय स्त्रियों Great Ladies of India पर केंद्रित यह लेख आपको पसंद आएगा। वैसे यह लेख पढ़ने में थोड़ा बड़ा है, इसलिए अगर आप चाहें, तो इसे हमारे यूट्यूब चैनल पर सुन भी सकते हैं, जिसका वीडिया नीचे लगा हुआ है।</div><div style="text-align: justify;"><h2 style="text-align: center;">Great Womens of Indian History in Hindi</h2><h3>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEikxWzrqsm5ahqoYBJIuqXZE5JVYY0Zl0v9gqIIKQ9Toe_G8A1esQFj7OPRno1vrkiJd3EEHsyvcFu5ETHSPnnThC1_utTfZRl_ZtTCwXVg9G6GfH_6CFfSVOTOWGWrsT56YTWR8XxvGtij/s800/Rani+Laxmibai.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="Rani Laxmibai" border="0" data-original-height="506" data-original-width="800" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEikxWzrqsm5ahqoYBJIuqXZE5JVYY0Zl0v9gqIIKQ9Toe_G8A1esQFj7OPRno1vrkiJd3EEHsyvcFu5ETHSPnnThC1_utTfZRl_ZtTCwXVg9G6GfH_6CFfSVOTOWGWrsT56YTWR8XxvGtij/s16000/Rani+Laxmibai.jpg" /></a></div>रानी लक्ष्मीबाई</h3>
महान भारतीय महिलाओं Great Women's of Indian History in Hindi में सबसे पहला नाम झांसी की रानी लक्ष्मीबाई <a href="https://me.scientificworld.in/2021/08/laxmibai-biography.html">Laxmibai</a> का है। लक्ष्मीबाई की पहचान ये नहीं है कि वे पेशवाओं के बेहद करीबी रहे मोरोपंत की पुत्री और झांसी के राजा गंगाधर राव की पत्नी थीं। लक्ष्मीबाई की पहचान ये है कि एक एक करके पुत्र और पति के निधन के घाव को सहने के बाद, जब अंग्रेजों ने उन्हें झांसी से बेदखल किया, तो वे घायल नाग की तरह फुंफकार उठीं और अंग्रेजों की ईंट से ईंट बजा दी।
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19 नवम्बर, 1828 को बनारस में जन्मीं लक्ष्मीबाई ने विद्रोही सदाशिव राव और ओरछा के राजा तो हराया ही, अंग्रेजी फौज को भी दांतों तले उंगली दबाने के लिए मजबूर कर दिया। उन्होंने अपने नेतृत्व में 14 हज़ार फौजियों की सेना तैयार की और 1857 की एक प्रमुख सेनानी बन कर उभरीं। </div><div style="text-align: justify;"> </div><div style="text-align: center;"><span style="font-size: large;">Read: <a href="https://me.scientificworld.in/2021/07/ahilyabai-holkar-biography.html">Ahilyabai Holkar Biography in Hindi</a></span></div><div style="text-align: justify;"><br />
अपने दत्तक पुत्र को पीठ पर बांध कर लड़ने वाली लक्ष्मीबाई ने अंग्रेजों की सेना से झांसी, कालपी और ग्वालियर में लोहा लिया। इन लड़ाइयों में उनका साथ तात्या टोपे, नाना साहब और पेशवा के प्रतिनिधि राव साहब ने दिया। उन्होंने कई मौकों पर अंग्रेजों को मात दी और उन्हें पीछे हटने पर मजबूर कर दिया।
<br /><br />
पर जनरल सर ह्यूग रोज़ की विशाल सेना और साथी योद्धाओं की जीवटता की कमी के कारण उन्हें अंतत: ग्वालियर में हुए युद्ध में हार का सामना करना पड़ा। ऐसे कठिन समय में जब उनका नया घोड़ा एक नाले के सामने ठिठक कर रूक गया, तो वे दुश्मनों से बुरी तरह से घिर गयीं। और इस प्रकार 17 जून, 1858 को वह बहादुर रानी अंग्रेजों से लड़ते हुए महान भारतीय नारी Great Women Personalities of India के रूप में इतिहास के पन्नों में अमर हो गयीं। <br /><h3>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgqfd7a0BHbMg2_D9AIkww6M7ddMjyqrpN3Lc-TTiTJHxrjZD_e6Db8trOfvuXK_TbabJ1VnpniIQi2sZctWP78N54KAi8JScB_2AWFvPOf940XI9sdxP6IBUc20K-1MkFH8iASgF3SC3xz/s700/Begum+Hazrat+Mahal.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="Begum Hazrat Mahal" border="0" data-original-height="700" data-original-width="651" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgqfd7a0BHbMg2_D9AIkww6M7ddMjyqrpN3Lc-TTiTJHxrjZD_e6Db8trOfvuXK_TbabJ1VnpniIQi2sZctWP78N54KAi8JScB_2AWFvPOf940XI9sdxP6IBUc20K-1MkFH8iASgF3SC3xz/s16000/Begum+Hazrat+Mahal.jpg" /></a></div><br />बेगम हज़रत महल
</h3>
सन 1857 में महान भारतीय महिला Great Indian Womens उभरने वाली दूसरी हस्ती हैं बेगम हज़रत महल <a href="https://me.scientificworld.in/2021/08/begum-hazrat-mahal-biography.html">Begum Hazrat Mahal</a>. उन्होंने बगावत की शुरूआत उस संधि के विरोध से की, जो अंग्रेज़ों ने अवध की रियासत को हड़पने के लिए पेश की थी। नवाब वाजिद अली शाह द्वारा संधि पर हस्ताक्षर न करने से अंग्रेज खफा हो गये और उन्होंने नवाब साहब को गिरफ्तार कर लिया।
<br /><br />
इससे बेगम हज़रत महल ने विद्रोह का बिगुल बजा दिया। इस संग्राम में फैजाबाद के मौलवी अहमदुल्ला शाह ने उनका साथ दिया। विद्रोही सेना का चिनहट के पास अंग्रेजों से मुकाबला हुआ, जिसमें अंग्रेज सेना की बुरी तरह से हार हुई।
<br /><br />
हजरत महल ने 7 जुलाई 1857 को लखनउ को अधिकार में लेकर अपने पुत्र बिरजिस कादर को वहां का राजा घोषित कर दिया। उन्होंने आलमबाग के मोर्चे पर महिला टुकड़ी के साथ सेना का नेतृत्व किया। इसके साथ ही उन्होंने जौनपुर, आजमगढ़ और इलाहाबाद में भी विद्रोहियों को कब्जा करने के आदेश दिये।
<br /><br />
इसी बीच दिल्ली और कानपुर में विद्रोह कुचल जाने से अंग्रेजों के हौसले बुलंद हो गये। उन्होंने बाहर से सेना बुलाकर 21 मार्च, 1858 को पूरे लखनउ को अपने अधिकार में ले लिया। </div><div style="text-align: justify;"> </div><div style="text-align: center;"><span style="font-size: large;">Read: <a href="https://me.scientificworld.in/2016/08/p-v-sindhu--biography-hindi.html">PV Sindhu Biography in Hindi</a></span><br /></div><div style="text-align: justify;"><br />
लखनउ छोड़ने के बाद बेगम ने बहराइच के बूंदी किले में शरण ली। पर अंग्रेज फौज उनका पीछा करते हुए वहां भी जा पहुंची। बेगम ने बहादुरी से अंग्रेजों का सामना किया, पर भितरघात के कारण उनकी सेना के पैर उखड़ने लगे।
<br /><br />
और कोई चारा न देखकर हज़रत महल अपने बेटे को लेकर नेपाल चली गयीं, ताकि वहां पर अपनी सेना संगठित कर सकें। पर नेपाल नरेश के मना कर देने और 1857 के विद्रोह के पूरी तरह से कुचल दिये जाने से हज़रत महल बुरी तरह से टूट गयीं।
<br /><br />
1 नवम्बर 1858 को महारानी विक्टोरिया ने सभी राजाओं को पेंशन देने का आदेश जारी किया। पर बेगम ने अंग्रेजों की भीख लेने से इनकार कर दिया। उन्होंने कांठमांडू, नेपाल में अपनी जिंदगी का बाकी का सफर एक आम आदमी की तरह तय किया और 7 अप्रैल 1879 को इस संसार से कूच कर गयीं। अपने देशप्रेम और जिजीविषा के कारण वे भारतीय इतिहास में महान भारतीय नारी Great Womens of Indian History in Hindi के रूप में दर्ज हैं और आज भी श्रद्धा के साथ याद की जाती हैं।<br /><h2><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiiurCJjxJROgv-99GgDuShCVzdIscoztiZjnQ1feOnsXnHeNTUw1apMY9pfUug6wli51o8oAoRBOzHsJDYF3PRb1_PBLYONlnjJQRmReNhvKmV0ikE1BKayP8kDQsNUlBZby49Cx5BGwR5/s700/Avantibai+Lodhi.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="Avantibai Lodhi" border="0" data-original-height="688" data-original-width="700" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiiurCJjxJROgv-99GgDuShCVzdIscoztiZjnQ1feOnsXnHeNTUw1apMY9pfUug6wli51o8oAoRBOzHsJDYF3PRb1_PBLYONlnjJQRmReNhvKmV0ikE1BKayP8kDQsNUlBZby49Cx5BGwR5/s16000/Avantibai+Lodhi.jpg" /></a></div>अवंतीबाई लोधी</h2>
सन 1857 की तीसरी वीरांगना Great Women Personalities of India हैं अवंतीबाई लोधी Avantibai Lodhi. उनका जन्म 16 अगस्त 1831 को सिवनी मध्य प्रदेश के एक जमींदार परिवार में हुआ था। वे बचपन से ही जुझारू और रणकौशल की कला में माहिर थीं। अवंतीबाई का विवाह मध्य प्रदेश की रामगढ़ रियासत के राजकुमार विक्रमजीत सिंह से हुआ था।
<br /><br />
विक्रमजीत के मानसिक बीमार होने पर अंग्रेजी हुकूमत ने रामगढ रियासत को अपने राज्य में मिला लिया।
उस समय तो अवंतिका बाई इस अपमान का घूंट पीकर रह गयीं, पर जब 1857 की क्रांति का बिगुल बजा, तो वे भी इस आंदोलन में कूद पड़ीं।
<br /><br />
1 अप्रैल 1858 को अंग्रेजी फौज ने रामगढ़ पर हमला किया। रानी अवंतीबाई ने इस लड़ाई में अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिये। लेकिन अंग्रेज भी इतनी जल्दी कहां हार मानने वाले थे। उन्होंने वाशिंगटन के नेतृत्व में पुन: रामगढ पर चढ़ाई कर दी। इस बार भी अवंतीबाई ने अपने पराक्रम के बल पर अंग्रेजों को मैदान से खदेड़ दिया। </div><div style="text-align: justify;"> </div><div style="text-align: center;"><span style="font-size: large;">Read: <a href="https://me.scientificworld.in/2016/08/sakshi-malik-biography-hindi.html">Sakshi Malik Biography in Hindi</a></span><br /></div><div style="text-align: justify;"><br />
तीसरी बार अंग्रेजों ने और बड़ी सेना के साथ रामगढ़ पर आक्रमण किया। घमासान युद्ध हुआ। रानी बहादुरी से लड़ीं, लेकिन धीरे धीरे कमज़ोर पड़ने लगीं। अपनी स्थित का भान होने पर वे अपने विश्वस्त सैनिकों के साथ जंगल में चली गयीं और छापामार युद्ध की तैयारी करने लगीं।
<br /><br />
रानी को आशा थी कि रीवां राज्य के क्रान्तिकारी सैनिकों की मदद पहुंचने पर वे अंग्रेजों को रामगढ़ से भगाने में कामयाब हो जाएंगीं। पर जब वे लोग अंग्रेजों से मिल गये, तो रानी की स्थिति कमज़ोर हो गयी। इसी बीच अंग्रेजी सेना ने जंगल में उन्हें चारों ओर से घेर लिया। और कोई उपाय न देखकर अवंतीबाई ने 20 मार्च 1858 को अपनी ही तलवार से अपना सीना चीर लिया।
<br /><br />इस प्रकार रानी अवंतीबाई लोधी अपनी बहादुरी और देशभक्ति के कारण इतिहास के पन्नों में महान भारतीय नारी Great Women's of Indian History in Hindi के रूप में अमर हो गयीं। उनके उल्लेख के बिना सन 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास अधूरा है। <br /><h3>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj02GeeEbbmYnBjz_W4_-hDIyzt4mIYqVIlGsKXuuknZ6AjpRt5LnBZJBAkWRzVkCXH38wYY7NqXgXgQlLFggAkaH0cXvvqnao-sfJrdGxQgf7hL_ANLas3Aq6aTLYMtmKf7FlkVPIzd5Jp/s700/Rani+Tapaswini.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="Rani Tapaswini" border="0" data-original-height="467" data-original-width="700" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj02GeeEbbmYnBjz_W4_-hDIyzt4mIYqVIlGsKXuuknZ6AjpRt5LnBZJBAkWRzVkCXH38wYY7NqXgXgQlLFggAkaH0cXvvqnao-sfJrdGxQgf7hL_ANLas3Aq6aTLYMtmKf7FlkVPIzd5Jp/s16000/Rani+Tapaswini.jpg" /></a></div>महारानी तपस्विनी
</h3>
सन 1857 के दौरान उभर कर सामने आई चौथी भारतीय महिला Great Women Personalities of India के रूप में रानी तपस्विनी Rani Tapaswini का नाम आता है। वे झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई की भतीजी और उनके एक सरदार पेशवा नारायण राव की पुत्री थीं। उनका जन्म 1842 में हुआ था। वह एक बाल विधवा थीं और उनके बचपन का नाम सुनन्दा था।
<br /><br />नारायण राव की मृत्यु के बाद सुनन्दा ने स्वयं जागीर की देखभाल करना प्रारंभ कर दिया था। वे लोगों को अँग्रेज़ों के विरुद्ध भड़काती थीं और उन्हें क्रांति की प्रेरणा देती थीं। जब सरकार को इस बारे में जानकारी प्राप्त हुई, तो उसने सुनन्दा को एक क़िले में नज़रबंद कर दिया। लेकिन कुछ समय के बाद ही उन्हें रिहा कर दिया गया।
रिहा होने के बाद सुनन्दा नैमिषारण्य चली गई और संत गौरीशंकर के निर्देशन में शिव की आराधना करने लगीं।
<br /><br />
धीरे धीरे सुनन्दा रानी तपस्विनी के नाम से मशहूर हो गयीं। सन 1857 ई. में क्रांति का बिगुल बजने पर रानी तपस्विनी इसके साथ सक्रिय रूप से जुड़ गयीं। उन्होंने स्वयं घोड़े पर चढ़कर युद्ध में भाग लिया। अंग्रेज सरकार ने रानी को पकड़ने के लिए कई बार प्रयत्न किया, परंतु गाँव वाले उनकी मदद करके छिपा देते थे, जिससे वे हर बार बच जाती थीं। </div><div style="text-align: justify;"> </div><div style="text-align: center;"><span style="font-size: large;">Read: <a href="https://me.scientificworld.in/2018/02/sridevi-biography-hindi.html">Sridevi Biography in Hindi</a></span><br /></div><div style="text-align: justify;"><br />
1857 की क्रांति के दमन के बाद रानी तपस्विनी नाना साहब के साथ नेपाल चली गईं और नाम बदल कर रहने लगीं। उन्होंने वहां बसे भारतीयों में भी देशभक्ति की अलख जगाई। नेपाल के प्रधान सेनापति की मदद से उन्होंने गोला-बारूद बनाने की एक फैक्टरी खोली ताकि क्रांतिकारियों की मदद की जा सके। लेकिन उनके एक निकटस्थ ने धन के लालच में अंग्रेजों को सब कुछ बता दिया। इससे तपस्विनी नेपाल छोड़कर कलकत्ता चली गईं।
<br /><br />
कलकत्ता में रानी तपस्विनी ने 'महाभक्ति पाठशाला' खोली और उसमें बालिकाओं को राष्ट्रीयता की शिक्षा दी। सन 1905 ई. में जब बंगाल विभाजन के विरुद्ध आंदोलन प्रारंभ हुआ था, तो उसमें भी उन्होंने सक्रिय भूमिका निभाई। वे अंतिम समय तक कलकत्ता में ही हरीं। और वहीं पर सन 1907 में रानी तपस्विनी की मृत्यु हो गई। लेकिन अपने देशप्रेम और संघर्ष के कारण वे महान भारतीय नारी Great Womens of Indian History in Hindi के रूप में आज भी हर भारतीय के दिल में बसी हुई हैं।<br /><h3>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiL8t_Wt76dzCIprMyxNXoLcEYcJbmrb6rS6wQ-2So_qbFQZaMyUBQsGEgGzmS2NIw_uOk1mDiovnBjZWk4h0EgmBh8j5i6BTuBwgckV4zninZi-4DvVi5U6yby2vGSaVvfEGebd8xpD0cv/s900/Ajijanbai.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="Ajijanbai" border="0" data-original-height="619" data-original-width="900" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiL8t_Wt76dzCIprMyxNXoLcEYcJbmrb6rS6wQ-2So_qbFQZaMyUBQsGEgGzmS2NIw_uOk1mDiovnBjZWk4h0EgmBh8j5i6BTuBwgckV4zninZi-4DvVi5U6yby2vGSaVvfEGebd8xpD0cv/s16000/Ajijanbai.jpg" /></a></div>अजीजनबाई
</h3>
सन 1857 के दौरान महान भारतीय महला Great Ladies of India के रूप में अपनी पहचान बनाने वाली पांचवी हस्ती हैं अजीजनबाई।अजीजनबाई Ajijanbai का जन्म 22 जनवरी सन 1824 को मध्य प्रदेश के मालवा राज्य के राजगढ़ में हुआ था। उनके पिता शमशेर सिंह एक ज़ागीरदार थे।
<br /><br />
अजीजनबाई के बचपन का नाम अंजुला था। एक दिन वे अपनी सहेलियों के साथ मेला घूमने गयी थीं, जहां से उसे अंग्रेज सिपाहियों ने अगवा कर लिया था। अंग्रेजों की गिरफ्त से बचने के लिए वह नदी में कूद गयीं। नदी से अंजुला को एक पहलवान ने बचाया और कानपुर की एक तवायफ को बेच दिया। वहां पर अंजुला से उनका नाम अजीजन बाई हो गया और वह आगे चलकर एक तवायफ के रूप में मशहूर हुयीं।
<br /><br />
एक दिन अजीजन की मुलाकात क्रांतिकारी नाना साहेब से हुई। अजीजन उनसे बहुत प्रभावित हुईं। उन्होंने अपनी सारी संपत्ति आज़ादी की लड़ाई के लिए नाना साहब को दान कर दी। उन्होंने अपनी साथी तवायफों के साथ मिलकर 'मस्तानी टोली' बनाई और उन्हें युद्ध कला का प्रशिक्षण दिया। यह टोली दिन में वेष बदल कर अंग्रेजों से मोर्चा लेती थी और रात में छावनी में मुज़रा करके वहां से गुप्त सूचनाएं एकत्र करके नाना साहब तक पहुंचाती थी। इसके अलावा युद्ध में घायल सैनिकों की सेवा तथा रसद आदि पहुंचाने का काम भी वे लोग करती थीं। </div><div style="text-align: justify;"> </div><div style="text-align: center;"><span style="font-size: large;">Read: <a href="https://www.scientificworld.in/2013/10/apj-abdul-kalam.html">APJ Abdul Kalam Biography in Hindi</a></span><br /></div><div style="text-align: justify;"><br />
अजीजन की प्रेरणा से अंग्रेजी फौज के हजारों सिपाही विद्रोही सेना में शामिल हुए। उनकी मदद से नाना साहेब ने कानुपर से अंग्रेजों को उखाड़ फेंका और 8 जुलाई 1857 को वे वहां के स्वतंत्र पेशवा घोषित कर दिये गये।
<br /><br />
पर 17 जुलाई को जनरल हैवलाक बड़ी सेना लेकर कानपुर पहुँच गया। उसने कुछ विश्वासघातियों की मदद से जीती बाजी पलट दी। नाना साहब वहां से बच कर निकलने में कामयाब हो गये, पर अजीजन अंग्रेजों की गिरफ्त में आ गयीं।
<br /><br />
जनरल हैवलाक ने कहा कि यदि वह माफी मांग लें और साथी क्रांतिकारियों का पता बता दें, तो उन्हें छोड़ दिया जाएगा। पर अजीजन ने इससे सख्ती से इनकार कर दिया।
<br /><br />
इससे क्रुद्ध होकर हैवलाक ने अजीजन को गोलियों से भून देने का हुक्म जारी कर दिया। यह सुनकर भी अजीन के चेहर पर एक शिकन तक नहीं आई और वह देश की खातिर हंसते हुए कुर्बान हो गयीं।<br /><br />
<center><b>यूट्यूब पर सुनें महान भारतीय महिलाओं Great Womens of Indian History in Hindi का इतिहास: </b></center><center><b> </b><br />
<iframe allow="accelerometer; autoplay; clipboard-write; encrypted-media; gyroscope; picture-in-picture" allowfullscreen="" frameborder="0" height="415" src="https://www.youtube.com/embed/J5DqPH5eZZ0" title="YouTube video player" width="560"></iframe>
</center>
<br />
दोस्तों, हमें उम्मीद है कि महान भारतीय नारियों Great Women's of Indian History in Hindi के 1857 में दिये गये योगदान के बारे में जानकार आपको अच्छा लगा होगा और आपका सीना भी गर्व से चौड़ा हो गया होगा। अगर ऐसी बात है, तो प्लीज़ से अपने फ्रेंड्स के साथ भी जरूर शेयर करें। जिससे यह लेख अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचे और उन्हें ज्ञानवद्र्धन हो सके।</div><div style="text-align: justify;"><br />
<span style="font-size: xx-small;">keywords: great womens of indian history in hindi, great indian womens, great women's of indian history in hindi, great ladies of india, great women personalities of india, great ladies of india</span></div>
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विद्या सरनhttp://www.blogger.com/profile/13874233412214088080noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-290840405926959662.post-59599926893282639272021-08-12T08:25:00.005+05:302021-08-12T11:52:45.183+05:30भगत सिंह के 51 प्रेरक विचार, जो आज भी हमें राह दिखाते हैं<div style="text-align: justify;"><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjr2QYH4DF-apE-utal7hd7irNd45g6D92IlXk6KWqD7xIboQZtK1-V3y-2LPWJxV1aKxKhyMuoyY4Ly2ucimcVanMp99veSXhZY6HkY_RhVXjXgqMdV2uW_8CP2gGtlmlXk9N2cRso_BFB/s1280/Bhagat+Singh+Quotes.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="Bhagat Singh Quotes in Hindi" border="0" data-original-height="720" data-original-width="1280" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjr2QYH4DF-apE-utal7hd7irNd45g6D92IlXk6KWqD7xIboQZtK1-V3y-2LPWJxV1aKxKhyMuoyY4Ly2ucimcVanMp99veSXhZY6HkY_RhVXjXgqMdV2uW_8CP2gGtlmlXk9N2cRso_BFB/s16000/Bhagat+Singh+Quotes.jpg" /></a></div>आज हम आपके लिए भगत सिंह के अनमोल वचन Bhagat Singh Quotes in Hindi लेकर आए हैं। शहीदे आज़म भगत सिंह का नाम सुनते ही हर भारतीय के खून में देशभक्ति का तूफान उमड़ पड़ता है। मात्र 23 वर्ष की आयु में भगत सिंह स्वतंत्रता की लड़ाई में हंसते-हंसते फांसी पर झूल गये। उन्होंने न सिर्फ स्वयं को देश की आज़ादी की खातिर बलिदान कर दिया, वरन यह बताया कि उनके लिए देश और आज़ादी के मायने क्या हैं। यही कारण है कि उनके विचार आज भी हमें प्रेरित करते हैं। यही कारण है कि आज भी लोग गूगल पर Bhagat Singh Slogan in Hindi सर्च करते रहते हैं। हमें उम्मीद है कि भगत सिंह के प्रेरक विचार Bhagat Singh Dialogue in Hindi आपको अवश्य पसंद आएंगे।
<br /></div><div style="text-align: center;"><h2>Bhagat Singh Quotes in Hindi - Bhagat Singh Dialogue in Hindi</h2></div><div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: medium;">दिल से निकलेगी न मरकर भी वतन की उल्फत, मेरी मिट्ठी से भी खूशबू-ए-वतन आएगी।
<br /><br />
लिख रह हूँ मैं अंजाम जिसका कल आगाज़ आएगा… मेरे लहू का हर एक क़तरा इंकलाब लाएगा।
<br /><br />
मेरे सीने में जो भी जख्म है वो सब तो फूलो के गुच्छे है हमे तो पागल ही रहने दो हम पागल ही बनकर अच्छे है।
<br /><br />
मेरी भावनाएं मेरी कलम से इस तरह रूबरू हैं अगर मैं इश्क भी लिखना चाहूं तो हमेशा इन्कलाब लिखा जाता है।
<br /><br />
इंसानों को कुचलकर आप उनके विचारों को नहीं मार सकते। </span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-size: medium;"></span></div><div style="text-align: justify;"><br /></div><div style="text-align: center;"><span style="font-size: medium;"><b><span style="font-size: medium;"><span style="font-size: large;">Read: <a href="https://me.scientificworld.in/2017/10/mahatma-gandhi-motivational-quotes-hindi.html">Mahatma Gandhi Quotes In Hindi</a></span></span></b><br /></span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-size: medium;"> </span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-size: medium;">मेरा जीवन एक महान लक्ष्य के प्रति समर्पित है–देश की आज़ादी। दुनिया की अन्य कोई आकर्षक वस्तु मुझे नहीं लुभा सकती।
<br /><br />
सर्वगत भाईचारा तभी हासिल हो सकता है जब समानताएं हों–सामाजिक, राजनैतिक एवं व्यक्तिगत समानताएं।
<br /></span><br /></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-size: medium;"> क्रांतिकारी सोच के दो आवश्यक लक्षण हैं– बेरहम निंदा तथा स्वतंत्र सोच।
<br /><br />
मैं इस बात पर जोर देता हूँ कि मैं महत्वकांक्षा, आशा और जीवन के प्रति आकर्षण से भरा हुआ हूँ पर ज़रूरत पड़ने पर मैं ये सब त्याग सकता हूँ और वही सच्चा बलिदान है।
<br /><br />
व्यक्ति की हत्या करना सरल है परन्तु विचारों की हत्या आप नहीं कर सकते।
आप Bhagat Singh Quotes in Hindi का 10वां वचन पढ़ रहे हैं। आशा है आपको ये अनमोल वचन पसंद आ रहे होंगे।<br /><br />
महान साम्राज्य ध्वंस हो जाते हैं पर विचार जिंदा रहते हैं।
<br /><br />
बम और पिस्तौल से क्रांति नहीं आती, क्रांति की तलवार विचारों की सान पर तेज होती है।
<br /><br />
यदि बहरों को सुनना है तो आवाज को बहुत जोरदार होना होगा। जब हमने बम गिराया तो हमारा धेय्य किसी को मारना नहीं थ। हमने अंग्रेजी हुकूमत पर बम गिराया था, अंग्रेजों को भारत छोड़ना चाहिए और उसे आज़ाद करना चहिए।
<br /><br />
आत्मबल को शारीरिक बल से जोड़ा जाना चाहिए ताकि अत्याचारी दुश्मन की दया पर न रहे।
<br /><br />
मैं एक इन्सान हूँ और जो भी चीजे इंसानियत पर प्रभाव डालती है मुझे उनसे फर्क पड़ता है।</span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-size: medium;"> </span><br /></div><div style="text-align: center;"><span style="font-size: medium;"><b><span style="font-size: large;">Read: <a href="https://me.scientificworld.in/2015/07/apj-abdul-kalam-quotes-hindi.html">APJ Abdul Kalam Quotes in Hindi</a></span></b><br /></span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-size: medium;"> </span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-size: medium;">क्या तुम्हें पता है कि दूनिया में सबसे बड़ा पाप गरीब होना है? गरीबी एक अभिशाप है यह एक सजा है।
<br /><br />
जिन्दा रहना हर किसी की कुदरती ख्वाहिश है जिसे मैं भी नही छिपाना चाहता लेकिन कैद होने की शर्त पर मै जिन्दा भी नहीं रहना चाहता।
<br /><br />
कोई भी व्यक्ति जो जीवन में आगे बढ़ने के लिए तैयार खड़ा हो उसे हर एक रूढ़िवादी चीज की आलोचना करनी होगी, उसमें अविश्वास करना होगा और चुनौती भी देना होगा।
<br /><br />
किसी भी इंसान को मारना आसान है, परन्तु उसके विचारों को नहीं। महान साम्राज्य टूट जाते हैं, तबाह हो जाते हैं, जबकि उनके विचार बच जाते हैं।
<br /><br />
कानून की पवित्रता तभी तक बनी रह सकती है, जब तक वो लोगों की इच्छा की अभिव्यक्ति करे। आप Bhagat Singh Slogan in Hindi का 20वां Quotes पढ़ रहे हैं। आशा है आपको ये Quotes in Hindi पसंद आ रहे होंगे।<br /><br />
क्रांति लाना किसी भी इंसान की ताकत के बाहर की बात है। क्रांति कभी भी अपने आप नहीं आती। बल्कि किसी विशिष्ट वातावरण, सामाजिक और आर्थिक परिस्थितियों में ही क्रांति लाई जा सकती है।
<br /><br />
यह बात प्रसिद्ध है कि मैं एक आतंककारी रहा हूं परंतु मैं आतंककारी नहीं हूं। मैं एक क्रांतिकारी हूं जिसके कुछ निश्चित विचार और निश्चित आदर्श हैं और जिसके सामने एक लंबा प्रोग्राम है।
<br /><br />
बम फेंकना न सिर्फ व्यर्थ है, अपितु बहुत बार हानिकारक भी है। उसकी आवश्यकता किन्हीं विशेष परिस्थितियों में ही पड़ती है, हमारा मुख्य लक्ष्य मजदूर और किसानों का संगठन होना चाहिए।
<br /><br />
जिंदगी तो सिर्फ अपने कंधों पर जी जाती है, दूसरों के कंधे पर तो सिर्फ जनाजे उठाए जाते हैं।
<br /><br />
यह एक काल्पनिक आदर्श है कि आप किसी भी कीमत पर अपने बल का प्रयोग नहीं करते, नया आन्दोलन जो हमारे देश में आरम्भ हुआ है और जिसकी शुरुवात की हम चेतावनी दे चुके हैं वह गुरुगोविंद सिंह और शिवाजी महाराज, कमल पाशा और राजा खान, वाशिंगटन और गैरीबाल्डी, लाफयेत्टे और लेनिन के आदर्शों से प्रेरित है। </span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-size: medium;"></span></div><div style="text-align: center;"><br /><span style="font-size: medium;"><span style="font-size: medium;"><b><span style="font-size: large;">Read: <a href="https://me.scientificworld.in/2017/04/b-r-ambedkar-quotes-hindi.html">Ambedkar Quotes in Hindi</a></span></b></span></span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-size: medium;"><br />
मनुष्य/इन्सान तभी कुछ करता है जब उसे अपने कार्य का उचित होना सुनिश्चित होता है, जैसा कि हम विधान सभा में बम गिराते समय थे।
<br /><br />
राख का हर एक कण मेरी गर्मी से गतिमान है। मैं एक ऐसा पागल हूं जो जेल में भी आजाद है।
<br /><br />
किसी को ‘क्रांति’ शब्द की व्याख्या शाब्दिक अर्थ में नहीं करनी चाहिए। जो लोग इस शब्द का उपयोग या दुरूपयोग करते हैं उनके फायदे के हिसाब से इसे अलग अलग अर्थ और अभिप्राय दिए जाते हैं।
<br /><br />
जरूरी नहीं था कि क्रांति में अभिशप्त संघर्ष शामिल हो। यह बम और पिस्तौल का पंथ नहीं था।
<br /><br />
आम तौर पर लोग जैसी चीजें हैं उसके आदी हो जाते हैं और बदलाव के विचार से ही कांपने लगते हैं। हमें इसी निष्क्रियता की भावना को क्रांतिकारी भावना से बदलने की जरूरत है।
आप Bhagat Singh Dialogue in Hindi का 30वां Quotes पढ़ रहे हैं। आशा है आपको ये Bhagat Singh पसंद आ रहे होंगे।<br /><br />जो व्यक्ति विकास के लिए खड़ा है उसे हर एक रूढ़िवादी चीज की आलोचना करनी होगी, उसमें अविश्वास करना होगा तथा उसे चुनौती देनी होगी। </span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-size: medium;"> </span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-size: medium;">मैं इस बात पर जोर देता हूँ कि मैं महत्त्वाकांक्षा, आशा और जीवन के प्रति आकर्षण से भरा हुआ हूँ। पर मैं ज़रुरत पड़ने पर ये सब त्याग सकता हूँ, और वही सच्चा बलिदान है।
<br /><br />
अहिंसा को आत्म-बल के सिद्धांत का समर्थन प्राप्त है जिसमे अंतत: प्रतिद्वंदी पर जीत की आशा में कष्ट सहा जाता है। लेकिन तब क्या हो जब ये प्रयास अपना लक्ष्य प्राप्त करने में असफल हो जाएं? तभी हमें आत्म-बल को शारीरिक बल से जोड़ने की ज़रुरत पड़ती है ताकि हम अत्याचारी और क्रूर दुश्मन के रहमोकरम पर ना निर्भर करें।
<br /><br />
इंसान तभी कुछ करता है जब वो अपने काम के औचित्य को लेकर सुनिश्चित होता है, जैसा कि हम विधान सभा में बम फेंकने को लेकर थे।
<br /><br />
…व्यक्तियों को कुचल कर, वे विचारों को नहीं मार सकते। </span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-size: medium;"></span></div><div style="text-align: justify;"><br /></div><div style="text-align: center;"><span style="font-size: medium;"><b><span style="font-size: large;">Read: <a href="https://me.scientificworld.in/2017/05/mahatma-buddha-hindi-quotes.html">Gautam Buddha Quotes in Hindi</a></span></b><br /></span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-size: medium;"> </span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-size: medium;">क्रांति मानव जाति का एक अपरिहार्य अधिकार है। स्वतंत्रता सभी का एक कभी न ख़त्म होने वाला जन्म-सिद्ध अधिकार है। श्रम समाज का वास्तविक निर्वाहक है।
<br /><br />
निष्ठुर आलोचना और स्वतंत्र विचार ये क्रांतिकारी सोच के दो अहम् लक्षण हैं।
<br /><br />
मैं एक मानव हूँ और जो कुछ भी मानवता को प्रभावित करता है उससे मुझे मतलब है।
<br /></span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-size: medium;"></span></div><div style="text-align: justify;"><br /><span style="font-size: medium;"><span style="font-size: medium;">हम
यह कहना चाहते हैं कि युद्ध छिड़ा हुआ है और यह लड़ाई तब तक चलती रहेगी, जब
तक कि शक्तिशाली व्यक्तियों ने भारतीय जनता और श्रमिकों की आय के साधनों पर
अपना एकाधिकार कर रखा है। चाहे ऐसे व्यक्ति अंग्रेज पूंजीपति हों या
अंग्रेजी शासक या सर्वथा भारतीय ही हों, उन्होंने आपस में मिलकर एक लूट
जारी रखी हुई है। चाहे शुद्ध भारतीय पूंजी-पतियों के द्वारा ही निर्धनों का
खून चूसा जा रहा हो, तो भी इस स्थिति में कोई अंतर नहीं पड़ता। </span> <br /></span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-size: medium;"> </span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-size: medium;">हम नौजवानों को बम और पिस्तौल उठाने की सलाह नहीं दे सकते। विद्यार्थियों के लिए और भी महत्त्वपूर्ण काम हैं। राष्ट्रीय इतिहास के नाजुक समय में नौजवानों पर बहुत बड़े दायित्व का भार है</span><span style="font-size: medium;"><span style="font-size: medium;">। </span>आप Bhagat Singh Quotes in Hindi का 40वां अनमोल विचार पढ़ रहे हैं। आशा है आपको ये अनमोल वचन पसंद आ रहे होंगे।<br /><br />
यदि आप सोलह आने के लिए लड़ रहे हैं और एक आना मिल जाता है, तो वह एक आना जेब में डालकर बाकी पंद्रह आने के लिए फिर जंग छेड़ दीजिए। हिन्दुस्तान के माडरेटों की जिस बात से हमें नफरत है, वह यही है कि उनका आदर्श कुछ नहीं है। वे एक आने के लिए ही लड़ते हैं और उन्हें मिलता कुछ भी नहीं।
<br /><br />
समझौता कोई ऐसी हेय और निंदा योग्य वस्तु नहीं, जैसा कि साधारणत: हम लोग समझते है, बल्कि समझौता राजनीतिक संग्रामों का एक अत्यावश्यक अंग है। कोई भी कौम जो किसी अत्याचारी शासन के विरुद्ध खड़ी होती है, यह जरूरी है कि वह आरंभ में असफल हो और अपनी लंबी जद्दोजहद के मध्यकाल में इस प्रकार के समझौते के जरिए कुछ राजनीतिक सुधार हासिल करती जाए, परंतु पहुंचते-पहुंचते अपनी ताकतों को इतना संगठित और दृढ़ कर लेती है और उसका दुश्मन पर आखिरी हमला इतना जोरदार होता है कि शासक लोगों की ताकतें उस वक्त तक यह चाहती हैं कि उसे दुश्मन के साथ कोई समझौता कर लेना चाहिए।
<br /><br />
समझौता भी ऐसा हथियार है, जिसे राजनीतिक जद्दोजहद के बीच में पग-पग पर इस्तेमाल करना आवश्यक हो जाता है जिससे एक कठिन लड़ाई से थकी हुई कौम को थोड़ी देर के लिए आराम मिल सके और वह आगे के युद्ध के लिए अधिक ताकत के साथ तैयार हो सके, परंतु इन सारे समझौतों के बावजूद जिस चीज को हमें भूलना न चाहिए वह हमारा आदर्श है जो हमेशा हमारे सामने रहना चाहिए। जिस लक्ष्य के लिए हम लड़ रहे हैं उनके संबंध में हमारे विचार बिल्कुल स्पष्ट और दृढ़ होने चाहिए।
<br /><br />
हमारा लक्ष्य शासन शक्ति को उन हाथों के सुपुर्द करना है, जिनका लक्ष्य समाजवाद हो, इसके लिए मजदूरों और किसानों को संगठित करना आवश्यक होगा, क्योंकि उन लोगों के लिए लॉर्ड रीडिंग या इर्विन की जगह तेजबहादुर या पुरुषोत्तम दास, ठाकुर दास के उग जाने से कोई भारी फर्क न पड़ सकेगा।
<br /></span></div><div style="text-align: justify;"><br /></div><div style="text-align: center;"><b><span style="font-size: large;">Read: <a href="https://me.scientificworld.in/2018/08/atal-bihari-vajpayee-quotes-hindi.html">Atal Bihari Vajpayee Quotes in Hindi</a></span><span style="font-size: medium;"><span style="font-size: large;"><span style="font-size: medium;"> <br /></span></span></span></b></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-size: medium;"> </span></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-size: medium;">मुझे दंड सुना दिया गया है और फांसी का आदेश हुआ है। इन कोठरियों में मेरे अतिरिक्त फांसी की प्रतीक्षा करने वाले बहुत से अपराधी हैं। ये यही प्रार्थना कर रहे हैं कि किसी तरह फांसी से बच जाएं, परंतु उनके बीच शायद मैं ही एक ऐसा आदमी हूं जो बड़ी बेताबी से उस दिन की प्रतीक्षा कर रहा हूं जब मुझे अपने आदर्श के लिए फांसी के फंदे पर झूलने का सौभाग्य प्राप्त होगा। मैं खुशी के साथ फांसी के तख्ते पर चढ़कर दुनिया को दिखा दूंगा कि क्रांतिकारी अपने आदर्शों के लिए कितनी वीरता से बलिदान दे सकते हैं।
<br /><br />
जिंदा रहने की ख्वाहिश कुदरती तौर पर मुझमें भी होनी चाहिए। मैं इसे छिपाना नहीं चाहता, लेकिन मेरा जिंदा रहना एक शर्त पर है। मैं कैद होकर या पाबंद होकर जिंदा नहीं रहना चाहता।
<br /><br />
आज मेरी कमजोरियां लोगों के सामने नहीं हैं। अगर मैं फांसी से बच गया तो वे जाहिर हो जाएंगी और इंकलाब का निशान मद्धिम पड़ जाएगा या शायद मिट ही जाए, लेकिन मेरे दिलेराना ढंग से हंसते-हंसते फांसी पाने की सूरत में हिन्दुस्तानी माताएं अपने बच्चों के भगत सिंह बनने की आरजू किया करेंगी और देश की आजादी के लिए बलिदान होने वालों की तादाद इतनी बढ़ जाएगी कि इंकलाब को रोकना इम्पीरियलिज्म की तमाम शैतानी कूवतों के बस की बात न रहेगी ।
<br /><br />
जैसे पुराना कपड़ा उतारकर नया बदला जाता है, वैसे ही मृत्यु है। मैं उससे डरूंगा नहीं, भागूंगा नहीं। कोशिश करूंगा कि पकड़ा जाऊं पर यूं ही नहीं कि पुलिस आई और पकड़ ले गई। मेरे पास एक तरीका है कि कैसे पकड़ा जाऊं। मौत आएगी, आएगी ही पर मैं अपनी मौत को इतनी महंगी और भारी बना दूंगा कि ब्रिटिश सरकार रेत के ढेर की तरह उसके बोझ से ढक जाए।
<br /><br />
मैंने जीवन में कभी वाहे गुरु को याद नहीं किया। कई बार तो मैंने देश की अवनति और लोगों के दुख के लिए उन्हें दोषी ठहराया है। अब जब मौत मेरे सामने खड़ी है वाहे गुरु की अरदास करूं तो वह कहेगा कि मैं बहुत डरपोक और बेइमान आदमी हूं। अब मुझे इस संसार से वैसे ही विदा हो जाने दो जैसा मैं हूं। मेरी क्रांति यह नहीं रहेगी कि भगत सिंह कायर था और उसने अपनी मौत से घबराकर वाहे गुरु को याद किया था।</span><br /><br /> <center><b>यूट्यूब पर सुनें भगत सिंह के प्रेरक विचार: </b><br />
<iframe allow="accelerometer; autoplay; clipboard-write; encrypted-media; gyroscope; picture-in-picture" allowfullscreen="" frameborder="0" height="415" src="https://www.youtube.com/embed/M7bnQWzHU28" title="YouTube video player" width="560"></iframe>
</center>
</div><div style="text-align: justify;"> </div><div style="text-align: justify;">दोस्तों, हमें उम्मीद है कि भगत सिंह के अनमोल वचन Bhagat Singh Quotes in
Hindi आपको अवश्य पसंद आए होंगे। प्लीज़, इन्हें फ्रेंड्स के साथ भी अवश्य
शेयर करें, जिससे ये अधिक से अधिक लोगों तक पहुंच सकें। और हां, जब भी कोई
आपसे Bhagat Singh Dialogue in Hindi का जिक्र करे, तो उसे हमारा पता बताना
मत भूलिएगा।</div><div style="text-align: justify;"> <br /></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-size: xx-small;">keywords: bhagat singh quotes in hindi, bhagat singh slogan in hindi, dialogue bhagat singh quotes, bhagat singh dialogue in hindi, bhagat singh thoughts in hindi, bhagat singh status hindi</span></div>
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document.title = "Bhagat Singh Quotes in Hindi | Bhagat Singh Dialogue in Hindi";
</script>विद्या सरनhttp://www.blogger.com/profile/13874233412214088080noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-290840405926959662.post-60039124929961649092021-08-09T08:25:00.006+05:302021-08-19T12:07:32.617+05:30ख़ूब लड़ी मर्दानी, वह तो झांसी वाली रानी थी।<p style="text-align: center;"></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhJXMmfsmkkF71hYxaaDT24gAtofNZ-dfurv5SDAtSNAdDGTIWqib3TBPQWXZrr7f8Oqy2xzT2PZfEripV_r9IJf4pkjDymMjyT2JgzRr6nVB89VePEQ_CM_50N62JP-BkWPtJULW-1yWZ5/s1280/Rani+Laxmi+Bai+Biography.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="Rani Laxmi Bai Biography" border="0" data-original-height="720" data-original-width="1280" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhJXMmfsmkkF71hYxaaDT24gAtofNZ-dfurv5SDAtSNAdDGTIWqib3TBPQWXZrr7f8Oqy2xzT2PZfEripV_r9IJf4pkjDymMjyT2JgzRr6nVB89VePEQ_CM_50N62JP-BkWPtJULW-1yWZ5/s16000/Rani+Laxmi+Bai+Biography.jpg" /></a></div><div style="text-align: center;">बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी, <br />खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी। <br /></div><div><p></p><p style="text-align: justify;">सिर्फ यह कविता ही नहीं, रानी लक्ष्मीबाई पर अब तक न जाने कितनी कविताएं, लेख, कहानी और नाटक लिखे जा चुके हैं। यही कारण है कि लोग लक्ष्मीबाई के बारे में जानना चाहते हैं और गूगल पर Rani Laxmi Bai Biography in Hindi खोजते रहते हैं। लक्ष्मीबाई ने भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में अपनी वीरता और रणकौशल के बल पर अंग्रेजों से जिस प्रकार लोहा लिया, वह अत्यंत अद्भुत है। इसीलिए आज हम आपके लिए Biography of Rani Lakshmi Bai in Hindi लेकर आए हैं। तो आइए आज खोलते हैं भारतीय इतिहास के उस स्वर्णिम पृष्ठ को, जिसे पढ़ कर आज भी हर भारतवासी का सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है।</p><h2 style="text-align: center;">Rani Laxmi Bai Biography in Hindi </h2><h2 style="text-align: center;">Biography of Rani Lakshmi Bai in Hindi<br /></h2><p style="text-align: justify;">
लक्ष्मीबाई का जन्म 19 नवम्बर, 1828 को बनारस में हुआ था। उस समय भारत में अंग्रेजी साम्राज्य बहुत तेजी से अपने पैर पसार रहा था। हालांकि 1857 के युद्ध से पूर्व पूना में पेशवा का बोलबाला था। पर अंग्रेजों ने बाजीराव पेशवा को गद्दी से उतारकर उनके छोटे भाई चिमाजी को बिठाना चाहा था। स्वाभिमानी चिमाजी इससे रूष्ट होकर सपरिवार बनारस चले गये थे। लक्ष्मीबाई के पिता मोरोपंत, पेशवा की फौज के एक उच्चाधिकारी के पुत्र थे, और वे भी चिमाजी के साथ बनारस आ गये थे।
<br /></p><p style="text-align: left;"></p><p style="text-align: justify;">
लक्ष्मीबाई के बचपन का नाम मनुबाई था। जब मनु 4 वर्ष की थी, तभी उनकी मां भागीरथीबाई का देहांत हो गया। इससे उनके पिता मोरोपंत बाजीराव के पास बिठूर चले गये। वहीं पर मनु का बचपन पेशव के दत्तक पुत्र नाना साहब के साथ बीता और उसने शिकार, तैराकी, शस्त्र विद्या, मल्लविद्या और घुड़सवारी आदि सीखी। </p><p style="text-align: center;"><b><span style="font-size: large;">Read: <a href="https://me.scientificworld.in/2021/07/ahilyabai-holkar-biography.html">Ahilyabai Holkar Biography in Hindi</a></span></b></p><p style="text-align: justify;">1842 में झांसी के राजा गंगाधर राव ने दूसरा विवाह करने का निश्चय किया। उस समय तक उन्होंने मनुबाई के बारे में बहुत सुन रखा था। उन्होंने मोरोपंत के पास विवाह का प्रस्ताव भेजा। मोरोपंत ने इसे सहर्ष स्वीकार कर लिया। इस प्रकार 14 साल की उम्र में मनुबाई का विवाह हो गया। विवाह के बाद लक्ष्मीबाई रख दिया गया था। </p><p style="text-align: justify;">
विवाह के 9 साल बाद लक्ष्मीबाई ने एक पुत्र को जन्म दिया, जिसका नाम दामोदर राव रखा गया। किन्तु कुछ माह के बाद ही दामोदर राव का निधन हो गया। इससे गंगाधर राव बेहद निराश हो गये और बीमार रहने लगे। बाद में अपने परिवार की सलाह पर गंगाधर राव ने आनंदराव नाम के बच्चे को गोद लिया। उन्होंने उसका नाम बदल कर दामोदर राव रख दिया। लेकिन इसके कुछ समय बाद 21 नवंबर 1853 में गंगाधर राव की मृत्यु हो गई।
<br /></p><p style="text-align: left;"></p><p style="text-align: justify;">
उस समय भारत में लार्ड डलहौजी की हड़प नीति चल रही थी। इसके अंतर्गत किसी राजा के संतान नहीं होने पर उसकी मृत्यु के बाद राज्य को अंग्रेजी हुकूमत में मिला लिया जाता था। इसके विरोध में महारानी लक्ष्मीबाई ने लंदन में ब्रिटिश सरकार के खिलाफ मुक़दमा दायर किया, पर उनका मुकदमा ख़ारिज कर दिया गया। साथ ही उन्हें यह भी आदेश दिया गया कि वे झाँसी के किले को खाली कर दें और रानी महल में जाकर रहें। इसके लिए उन्हें भरण पोषण के रूप में अंग्रेजों की ओर से 60,000 वार्षिक पेंशन दी जाएगी। इससे विवश होकर लक्ष्मीबाई ने झांसी का किला खाली कर दिया और रानी महल में चली गयीं।
<br /></p><p style="text-align: left;"></p><p style="text-align: justify;">
10 मई, 1857 को मेरठ से प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के विद्रोह का बिगुल बजा, जो 5 जून 1857 को झांसी जा पहुंचा। वहां पर क्रान्तिकारियों ने कई स्थानों पर कब्जा कर लिया। इससे डर कर 61 अंग्रेज झांसी के किले में जा छिपे। उन्होंने वहां से निकलने के लिए रानी से मदद मांगी। पर जब वे अंग्रेज वहां से निकल कर जा रहे थे, तो विद्रोही सेना ने उनपर धावा बोल दिया और उनकी हत्या कर दी।
यहां पर Biography of Rani Lakshmi Bai in Hindi का पहला पार्ट समाप्त हुआ। अब हम आगे चलते हैं।</p><p style="text-align: center;"><b><span style="font-size: large;"><span style="font-size: large;">Read: <a href="https://me.scientificworld.in/2021/08/begum-hazrat-mahal-biography.html">Begum Hazrat Mahal Biography in Hindi</a></span></span></b></p><p style="text-align: left;"></p><p style="text-align: justify;">
झांसी से अंग्रेजों के सफाए के बाद वहां की सत्ता लक्ष्मीबाई के हाथ में आ गयी। इसी बीच 13 जून, 1857 को लक्ष्मीबाई के पति गंगाधर राव के एक रिश्तेदार सदाशिव राव ने झांसी पर आक्रमण कर दिया। रानी ने उसे मुंहतोड़ जवाब दिया और मार कर भगा दिया।
<br /></p><p style="text-align: left;"></p><p style="text-align: justify;">
अक्टूबर, 1857 में झांसी से सटे राज्य ओरछा के राजा ने झांसी के चारों ओर घेरा डाल दिया। यह घेरा 3 महीने तक चला। पर अंतत: इसमें भी लक्ष्मीबाई की विजय हुई।
<br /><br />इसी बीच लक्ष्मीबाई ने अपनी सेना को मजबूत करना शुरू कर दिया। इस कार्य में गुलाम गौस खान, दोस्त खान, खुदा बक्श, सुंदर-मुंदर, काशी बाई, लालाभाऊ बक्शी, मोती बाई, दीवान रघुनाथ सिंह और दीवान जवाहर सिंह जैसे बहादुर योद्धाओं ने रानी लक्ष्मीबाई का सहयोग किया। इस प्रकार रानी लक्ष्मीबाई ने 14,000 सिपाहियों की फौज तैयार कर ली। </p><p style="text-align: justify;">
इससे रूष्ट होकर अंग्रेज जनरल सर ह्यूग रोज़ 21 मार्च, 1858 को विशाल अंग्रेज फौज लेकर झांसी जा पहुंचा। दोनों ओर से गोलाबारी हुई। रानी की मदद के लिए तात्या टोपे भी 20 हजार सेना लेकर जा पहुंचे। पर उनकी उत्साही सेना रोज़ की प्रशिक्षित सेना से पार न पा सकी। और इस तरह तात्या टोपे को वहां से पीछे हटना पड़ा।
<br /></p><p style="text-align: left;"></p><p style="text-align: justify;">
3 अप्रैल 1858 को अंग्रेज सेना किले की दीवार को तोड़कर उसमें घुसने में सफल हो गयी। इसके बाद उसने पूरे शहर को आग के हवाले कर दिया और खुल कर कत्लेआम करने लगे। लक्ष्मीबाई अपने साथियों की सलाह पर रात के अंधेरे में किले से निकल गयीं और कालपी की ओर कूच कर गयीं। वहां पर वे तात्या टोपे के मिलीं और उनके सहयोग से अपनी सेना फिर से सुसज्जित करने लगीं। </p><p style="text-align: justify;"></p><div style="text-align: center;"><b><span style="font-size: large;">Read: </span><a href="https://me.scientificworld.in/2021/08/great-indian-womens.html"><span style="font-size: large;">Great Women's of Indian History in Hindi</span></a></b></div><p style="text-align: justify;">
22 मई, 1858 को ह्यूग रोज़ ने कालपी पर आक्रमण कर दिया। रानी लक्ष्मीबाई ने इस बार उन्हें परास्त कर दिया, जिससे अंग्रेजो को पीछे हटना पड़ा। पर कुछ समय के पश्चात रोज ने फिर से काल्पी पर धावा बोला। इस बार रानी को हार का सामना करना पड़ा।
<br /><br />
पर इससे विद्रोही सेना के हौसले पस्त नहीं हुए। वे लोग अगली रणनीति के तहत गोपालपुर में एकत्र हुए। रानी ने अपने साथियों को ग्वालियर पर आक्रमण करने का सुझाव दिया, ताकि वे अपनी शक्ति बढ़ा सकें और अंग्रेजों से बदला ले सकें। </p><p style="text-align: justify;">अपनी इस रणनीति के तहत रानी लक्ष्मीबाई और तात्या टोपे ने एक बार पुन: विद्रोही सेना को एकत्रित किया और ग्वालियर पर चढ़ाई कर दी। इस युद्ध में ग्वालियर की सेना की हार हुई और वहां पर विद्रोही सेना का कब्जा हो गया।
<br /></p><p style="text-align: left;"></p><p style="text-align: justify;">पर जनरल सर ह्यूग रोज़ ने लक्ष्मीबाई का पीछा नहीं छोड़ा। वह अपनी सेना लेकर ग्वालियर तक जा पहुंचा। इधर ग्वालियर में नाना साहब और पेशवा के प्रतिनिधि राव साहब विजयोत्सव में डूबे हुए थ, उधर अंग्रेज़ सेना पुख्ता इंतजाम के साथ ग्वालियर तक चढ़ आई।
अब आप Rani Laxmi Bai Biography in Hindi के महत्वपूर्ण एवं समापन भाग की ओर बढ़ रहे हैं। </p><p style="text-align: left;"></p><p style="text-align: justify;">यह युद्ध बेहद निर्णायक रहने वाला था, इसलिए लक्ष्मीबाई ने भी पूरी जान लगा दी। उन्होंने अपनी दो सहेलियों काशी और मंदरा के साथ मुख्य मोर्चा संभाला। दूसरे मोर्चे पर राव साहब अंग्रेजों से लोहा ले रहे थे। वे इस बार कमजोर पड़ गये। </p><p style="text-align: justify;">यह देखकर लक्ष्मीबाई ने उनकी मदद करने की कोशिश की। इस दौरान उनका घोड़ा घायल हो गया। लक्ष्मीबाई ने एक दूसरा घोड़ा लिया और फिर युद्ध के मैदान में कूद पड़ीं। </p><p style="text-align: center;"><b><span style="font-size: large;"><span style="font-size: large;"><span style="font-size: large;">Read: <a href="https://me.scientificworld.in/2021/08/ajijan-bai-ki-kahani.html">Ajijan Bai Biography in Hindi</a></span></span></span></b> <br /></p><p style="text-align: left;"></p><p style="text-align: justify;">
पर नया घोड़ा उतना कुशल नहीं था, जिससे लक्ष्मीबाई को असुविधा होने लगी। तभी एक गोली उनके पैर में आ लगी और शरीर से खून बहने लगा। इस समय उनका पुत्र दामोदर राव उनकी पीठ से बंधा था। उनके कुछ साथी ही लड़ाई के मैदान में बचे थे। लक्ष्मीबाई ने घायल होने के बावजूद दोनों हाथों में तलवार संभाली और तेजी से घोड़ा दौड़ाते हुए वहां से निकलने लगी।
<br /></p><p style="text-align: left;"></p><p style="text-align: justify;">लक्ष्मीबाई जब अपने गिने चुने साथियों के साथ कोटा की सराय नामक स्थान से गुजर रही थीं, तभी उनके रास्ते में एक नाला आ गया। उसे देखकर उनका घोड़ा ठिठक गया। उन्होंने घोड़े को छलांग लगाने के लिए बहुत प्रेरित किया, पर घोड़ा टस से मस नहीं हुआ। </p><p style="text-align: left;"></p><p style="text-align: justify;">तब तक उनका पीछा करते हुए अंग्रेज टुकड़ी भी वहां आ पहुंची। रानी ने अपने साथियों के साथ अंग्रेजों का मुकाबला किया। तभी एक सैनिक ने पीछे से उनके सिर पर वार किया। लक्ष्मीबाई जब तक कुछ समझ पातीं, सैनिक ने दूसरा वार उनके सीने पर कर दिया। रानी ने पलटकर उस सैनिक पर हमला किया और उसे ढ़ेर कर दिया। </p><p style="text-align: justify;">
पर अगले ही पल वे घोड़े से गिर पड़ीं। उनके साथी उन्हें पास की एक झोपड़ी में ले गये। रानी बुरी तरह से घायल हो गयी थीं। उन्होंने अंतिम समय में सैनिकों को आदेश दिया कि मृत्यु के पश्चात उनका शव शत्रुओं के हाथ न लगे।
<br /><br />
उनके विश्वासपात्र रामचंद्र राव और काशीबाई रानी के पार्थिव शरीर को झोपड़ी के अंदर रखा और कुछ लकड़ियों का इंतज़ाम करके उनका दाह संस्कार कर दिया। और इस प्रकार 17 जून, 1858 को वह बहादुर रानी अंग्रेजों से लड़ते लड़ते इतिहास के पन्नों में अमर हो गयी। </p><p style="text-align: center;"><b><span style="font-size: large;">Read: <a href="https://me.scientificworld.in/2019/01/savitribai-phule-information-in-hindi.html">Savitribai Phule Biography in Hindi</a></span></b> <br /></p><p style="text-align: justify;">दोस्तों, हमें उम्मीद है कि आपको Rani Laxmi Bai Biography in Hindi पसंद आई होगी। सचमुच रानी लक्ष्मीबाई का चरित्र है ही ऐसा महान। वे साहस और जीवटता की अद्भुत मिसाल हैं। इसीलिए लोग उन्हें आज भी याद करते हैं और एक दूसरे से शेयर करते हैं। हमें आशा है कि आप भी Biography of Rani Lakshmi Bai in Hindi लेख को अपने फ्रेंड्स के साथ शेयर करेंगे और अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाएंगे। </p><p style="text-align: center;"><b>यूट्यूब पर सुनें झांसी की रानी की कहानी:</b><br /></p><p></p><p style="text-align: center;"><b><script>
document.title = "Rani Laxmi Bai Biography in Hindi | Biography of Rani Lakshmi Bai in Hindi";
</script></b></p><center>
<iframe allow="accelerometer; autoplay; clipboard-write; encrypted-media; gyroscope; picture-in-picture" allowfullscreen="" frameborder="0" height="415" src="https://www.youtube.com/embed/plO1bxBXfjs" title="YouTube video player" width="560"></iframe>
</center></div>विद्या सरनhttp://www.blogger.com/profile/13874233412214088080noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-290840405926959662.post-67879945369578281052021-07-22T22:41:00.012+05:302021-07-25T21:15:11.243+05:30डॉ. उषा यादव की दृष्टि में ज़ाकिर अली 'रजनीश' का बालसाहित्य<div style="text-align: center;"><h2><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgdCHwShYeBxoqqm3FBz7ROvMmgnllj3UEt5M1WyHablYgtOaVjWIjEoPL_Drb2UQZlp-AfML8iYhsQJw6eQLiF5AdVoTGqF04a8jCqxLkWdciNVGdGrEu-ge6-pH_W8abPam2vmLY-0pdt/s1000/Book.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="हिंदी बाल-कथासाहित्य - Hindi Bal Katha Sahitya" border="0" data-original-height="700" data-original-width="1000" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgdCHwShYeBxoqqm3FBz7ROvMmgnllj3UEt5M1WyHablYgtOaVjWIjEoPL_Drb2UQZlp-AfML8iYhsQJw6eQLiF5AdVoTGqF04a8jCqxLkWdciNVGdGrEu-ge6-pH_W8abPam2vmLY-0pdt/s16000/Book.jpg" /></a></div>हिंदी बाल - कथासाहित्य के ईमानदार प्रवक्ता - ज़ाकिर अली ‘रजनीश’</h2></div><div style="text-align: justify;"><h4 style="text-align: right;">डॉ. उषा यादव</h4>
हिंदी बाल कथासाहित्य, जिसमें कहानी और उपन्यास दोनों समाहित हैं, के अद्भुत पारखी के रूप में ज़ाकिर अली ‘रजनीश’ ने अल्प वय में ही हिंदी बालसाहित्य के रंगमंच पर अपनी पहचान बनाई। एकदम कबीर की शैली में खरी-खरी सुनाने की मुद्रा में। कोई लाग-लपेट नहीं। कोई चाशनी में लपेटकर कुनैन की गोली को प्रस्तुत करने की चेष्टा नहीं। बस, जो सच है, वह सच है और सच को साफ-साफ कहने में हिचक या दिक्कत कैसी? यह साफगोई यदि किसी को खलती है तो खले, पर सच को सात परदों में छिपाकर रखने का औचित्य क्या?<br /><br />
हिंदी बालकहानी की यह दो-टूक परख सिर्फ तेईस वर्ष की अवस्था में हिन्दी की चुनी हुई 107 बाल कहानियों का <b>‘<a href="https://me.scientificworld.in/2021/07/21vin-sadi-ki-bal-kahaniyan.html" target="_blank">इक्कीसवीं सदी की बाल कहानियाँ</a>‘</b> (1998) शीर्षक से दो खंडों में संपादन करते हुए विवेच्य लेखक ने प्रस्तुत की। ‘एक ज़रूरी बात’ के अंतर्गत उन्होंने हिंदी बाल कहानी के तत्युगीन स्वरूप पर अत्यंत बेबाक और ईमानदार टिप्पणी की है। उनके शब्दों में, ”एक ओर हिंदी बालकहानी में जहाँ विषय एवं शिल्प के स्तर पर अभिनव प्रयोग हो रहे हैं, वहीं बड़ी मात्रा में ऐसी बालकथाएँ भी रची जा रही हैं, जो अपने निकृष्टतम स्वरूप के कारण बालकथाओं की स्तरीयता पर प्रश्नचिन्ह लगाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। इस प्रकार की रचनाओं को दो भागों में बांटा जा सकता है- ‘टीपी हुई कहानियाँ’ और ‘फार्मूलाबद्ध कहानियाँ।“1
<br /><br />‘टीपी’ हुई कहानियों में उन्होंने परीकथाएँ, पुराणकथाएँ और लोककथाएँ सम्मिलित की हैं। इनमें विषय और शिल्प की दृष्टि से मौलिकता का सर्वथा अभाव माना है। उनके अनुसार ”इस तरह की कहानियाँ वे ही रचनाकार लिखते हैं, जो ‘छपास’ रोग से बुरी तरह ग्रस्त होते हैं और एक माह में दस कहानियाँ प्रकाशित होते <i>(पृष्ठ संख्या 256 )</i> देखना चाहते हैं या फिर मौलिक रचनाएँ न लिख पाना जिनकी मजबूरी होती है। किंतु मैं इन रचनाकारों से यह पूछना चाहूँगा कि क्या यह बालसाहित्य है?“2
<br /><br />ज़ाकिर का स्पष्ट मंतव्य है कि बालसाहित्य (<a href="https://me.scientificworld.in/2011/12/children-litrature-books.html" target="_blank">Hindi Bal Sahitya</a>) के समीक्षा-ग्रंथों में, बड़े-बड़े आलेखों में यह बात जोर देकर कही जाती है कि बालसाहित्य लेखन एक अत्यंत कठिन कार्य है। किंतु इस प्रकार की कहानियां लिखना कठिन कैसे हो गया? प्राचीन ग्रंथों से ऐसी कहानी ‘टीप’ लेना तो बहुत आसान है। ”यह काम तो कक्षा पांच का विद्यार्थी भी कर सकता है।’ तो क्या वह बालसाहित्यकार हो जायेगा?“3
ज़<br /><br />ज़ाकिर मानते हैं कि बालसाहित्य वही है, जिसमें बालमनोविज्ञान का निर्वहन हो। किंन्तु इन ‘टीपी‘ हुई कहानियों का बाल मनोविज्ञान से कोई लेना-देन नहीं होता। इनमें निहित शिक्षाएं तो सामंती विचारों का ही पोषण करती हैं, जो बालसाहित्य की स्तरीयता पर सवाल उठाता है।
<br /><br />‘फार्मूलाबद्ध कहानियों को भी ज़ाकिर अली ‘रजनीश’ ने ‘जबरदस्ती की लिखी हुई कहानियाँ कहा है। ये कहानियाँ एक निश्चित ढर्रे पर चलती हैं और कहानी शुरू करते ही पता चल जाता है कि यदि एक शैतान, जिद्दी, बदतमीज या आवारा किस्म का लड़का कथानायक है, तो वह अंत में जरूर सुधर जायेगा। प्रायश्चित, सीख, गलती, चोरी, प्रण, उपदेश, भूल जैसे भावों से ये कहानियाँ आगे नहीं बढ़ पातीं। ‘बाल-सुधार’ का ‘ठेका’ लेने वाले बालकहानीकार थोक की मात्रा में ये सुधार कार्यक्रम चलाते रहते है। विषय की रोचकता एवं मौलिकता से रहित होने के साथ-साथ ये कहानियाँ शिल्प की दृष्टि से भी फुसफुसी साबित होती हैं। सब कुछ एकदम सपाट रूप में चलता जाता है। ऐसी कहानियों की सर्जना ही बाल साहित्य पर दोयम दर्जे का ठप्पा लगाती हैं।
<br /><br />पर ज़ाकिर अली ‘रजनीश’ बालसाहित्य की इस अधोगति से निराश नहीं हैं। वह मानते है कि हिन्दी में स्तरीय कहानियाँ भी विशाल मात्रा में हैं। जरूरत है, तो सिर्फ उन्हें सामने लाने की। ऐसा होने पर ही बालसाहित्य को तुच्छ मानने वाले लोगों की टिप्पणियों पर अंकुश लगेगा। ”वर्तमान में सशक्त बाल कथाकारों की एक बड़ी ‘यूनिट’ साहित्य-सेवा में लगी हुई है,“4 के प्रवक्ता ज़ाकिर ने ऐसी बालकहानियों का संकलन करके निश्चय ही हिन्दीं बालसाहित्य की समृद्धि का द्योतन किया है।
<i>(पृष्ठ संख्या 257 )</i><br /><br />सिर्फ यही नहीं, हिंदी के श्रेष्ठ बालकहानीकारों की चयनित बाल-कथाओं को सामने लाने के लिए विवेच्य साहित्यकार ने कुछ सुंदर संकलन भी तैयार किये, जो इस प्रकार हैं-
<br /><br />1. <a href="https://me.scientificworld.in/2014/07/anant-kushwaha-ki-bal-kathayen.html" target="_blank">अनन्त कुशवाहा की श्रेष्ठ बालकथाएँ</a><br /><br />2. <a href="https://me.scientificworld.in/2021/07/zakir-ali-rajnish-bal-kathayen.html" target="_blank">ज़ाकिर अली रजनीश की श्रेष्ठ बालकथाएँ</a>
<br /><br />3. <a href="https://me.scientificworld.in/2014/08/yadram-rasendra-ka-bal-sahitya.html" target="_blank">यादराम रसेंद्र की श्रेष्ठ बालकथाएँ</a><br /><br />4. <a href="https://me.scientificworld.in/2014/10/children-stories-in-hindi.html" target="_blank">उषा यादव की श्रेष्ठ बालकथाएँ</a>
<br /><br />5. <a href="https://me.scientificworld.in/2014/01/mohammad-arshad-khan.html" target="_blank">मोहम्मद अरशद खान की श्रेष्ठ बालकथाएँ </a><br /><br />ज़ाकिर का एक अन्य महत्वपूर्ण कार्य <b>'<a href="https://me.scientificworld.in/2021/07/11-bal-upanyas.html" target="_blank">ग्यारह बाल उपन्यास</a>'</b> के दो खंडों में संपादन के रूप में भी सामने आया, जिसने हिंदी बालसाहित्य की उपन्यास-विधा के समृद्धशाली रूप को प्रकट किया। जाहिर है, हिंदी के श्रेष्ठ बालकथा साहित्य को पाठकों एवं समीक्षकों के सामने लाने में उन्होंने कठिन परिश्रम किया है। हिंदी बाल उपन्यास के बारे में उनका मानना है कि हिंदी बालसाहित्य में कहानी की तुलना में उपन्यास की शुरूआत की गति काफी धीमी रही। अनूदित उपन्यास ही सामने आये। ‘अलीबाबा चालीस चोर’ और ‘राबिनहुड’ जैसी लंबी कहानियां ही पुस्तकाकार छपीं। ”इन सबसे प्रेरित होकर भूपनारायण दीक्षित ने ‘खड़खड़देव’ नामक मौलिक बाल उपन्यास लिखा जो सन् 1952 में ‘बालसखा’ में धारावाहिक रूप में प्रकाशित हुआ। उपलब्ध जानकारी के अनुसार इसे ही हिंदी का प्रथम बाल उपन्यास माना गया है।“5
<br /><br />पर हिंदी के प्रथम मौलिक उपन्यास को लेकर इस भ्रामक धारणा का बाद में निवारण हो गया है। वर्ष 1945-46 में ‘बालसखा’ एवं ‘बालविनोद’ में धारावाहिक उपन्यास छपे हैं। वर्ष 1946 के वार्षिक बालसखा के भारी-भरकम अंक में कुमारी कनक का ‘शैतानों के पंजे में’ नामक संपूर्ण बाल उपन्यास प्रकाशित हुआ है। इससे पूर्व के बाल उपन्यास की भी भविष्य में प्रामाणिक जानकारी मिल सकती है।
<br /><br />निश्चय ही संपादन-कला में जा़किर अली रजनीश निष्णात हैं। एक कुशल माली जैसी चयन-दृष्टि दिखाते हुए उन्होंने चुने हुए कथाकारों के बालकथा उपवन से <i>(पृष्ठ संख्या 258)</i> श्रेष्ठतम कहानियाँ व उपन्यास चुनकर जो गुलदस्ता तैयार किया है वह अपनी खूबसूरती और सुवास में अनुपम है। कथाकार की खूबियों की खुलकर तारीफ करना उनकी निष्पक्ष समीक्षा दृष्टि का सूचक है। कतिपय उदाहरण दृष्टिव्य हैं-
<br /><br />(क) ”कुछ कहानियाँ ऐसी होती हैं, जो अपने आप दिल से निकलती हैं। जैसे फूल से निकलने वाली खुशबू। जैसे झरने से बहता हुआ पानी। ऐसी कहानियों को सिर्फ पिरोना होता है, शब्द रूपी मोती में, कागज रूपी धागे पर। ऐसी रचनाओं में कोई थोपा हुआ संदेश नहीं होता है। ऐसी कहानियाँ पाठकों को लंबे समय तक याद रह पाती हैं। ऐसी ही कहानियाँ साहित्य का मान बढ़ाती हैं और ऐसी ही कहानियाँ इतिहास में जगह बनाती हैं। ‘रूठ मनौवल’ एक ऐसी ही कहानी है।“6
<br /><br />(ख) ”अनन्त कुशवाहा की कहानियों के आस्वादन के बाद एक ही बात कही जा सकती है, अद्भुत और अतुलनीय।“7
<br /><br />(ग) ”अरशद खान ने बाल मनोविज्ञान के स्तर पर अनेकानेक प्रयोग किये हैं। ये प्रयोग बाल-मन की परतों को बड़े सहज रूप में पाठकों के समक्ष रखते हैं और एक नई दुनिया का दीदार कराते हैं। ‘किराये का मकान’ एक ऐसा ही प्रयास है।“8
<br /><br />(घ) ”न सिर्फ बाल पाठकों बल्कि उन अभिभावकों के लिए भी यह उपन्यास (उषा यादव कृत ‘लाखों में एक’) एक आवश्यक पाठ की तरह शामिल किया जाना चाहिए, जो आज भी लड़कों और लड़कियों में भेद करते हैं।“9
<br /><br /><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEioSZE0w5TO7pZN52Ha_oxj2jhP_uwAqhFY4B-QDcvRJR5sFo1s6mX77mzlnLo2APhP8We0ljo6ogUB_blca3gLz0DxDUb0SQ_trFWOFqlYaHB41h2jBySbwg0mUi7F2fhydFP4aQ_ldGAx/s1000/article.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="Hindi Bal Katha Sahitya" border="0" data-original-height="700" data-original-width="1000" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEioSZE0w5TO7pZN52Ha_oxj2jhP_uwAqhFY4B-QDcvRJR5sFo1s6mX77mzlnLo2APhP8We0ljo6ogUB_blca3gLz0DxDUb0SQ_trFWOFqlYaHB41h2jBySbwg0mUi7F2fhydFP4aQ_ldGAx/s16000/article.jpg" /></a></div>और स्वयं ज़ाकिर?
<br /><br />‘मेरी कलम मेरे वजूद की निशानी है’ की स्वीकृति के रूप में यह पंक्ति उनके लेखकीय व्यक्तित्व को संपूर्णता से उदघाटित करती है। निश्चय ही एक संपादक के रूप में ज़ाकिर अली ‘रजनीश’ ने हिंदी की श्रेष्ठ बाल कहानियाँ और उपन्यासों की सशक्त प्रस्तुति द्वारा अपनी नीर-क्षीर विवेकी संपादन-कला का परिचय दिया है उनकी यह प्रतिभा हिंदी की बाल कहानियों और उपन्यासों के साथ श्रेष्ठ बाल कविताओं के चयन में भी प्रकट हुई हैं। ‘<a href="https://me.scientificworld.in/2021/07/151-bal-kavitayen.html" target="_blank"><b>151 बाल कविताएं</b></a>’ की ‘अपनी बात’ में उनका मंतव्य है, ”बच्चे स्वयं में एक कविता हैं। उनकी हर बात में एक लय होती है। उनके हर काम में एक छंद होता है। शायद इसीलिए बचपन सभी को आकर्षित करता है।“10
<i>(पृष्ठ संख्या 259)</i><br /><br />संपादक रूप में उनका मानना है कि बच्चे कविता को सिर्फ पढ़ते ही नहीं, कंठस्थ भी कर लेते हैं और फिर जाने-अनजाने उन्हें अपने जीवन में उतार लेते हैं। पर सभी कविताएं बाल-मन को नहीं मोहतीं। जिनमें उनके मन की बातें होती हैं, उन्हीं के प्रति वे सहज रूप से आकर्षित होते हैं। उन्हें लगता है जैसे ये कविताऐं उन्हीं के लिए लिखी गई हैं। उन्हीं के लिए हैं। ऐसी कविताओं का चयन उन्होंने पूर्ण मनोयोग से करके अपनी संपादन कला में चार चांद लगा दिये हैं। यह उनकी बालसाहित्य की हर विधा के प्रति गहन संवेदनशील तथा विस्तीर्ण दृष्टि है कि उन्होंने हिन्दी के श्रेष्ठ नाटकों का संपादन भी किया है। इस प्रकार कहानी, उपन्यास, नाटक और कविता आदि विविध क्षेत्रों में मूल्यवान रचनाओं का संकलन करके उन्होंने आलोचकों को मुंहतोड़ जवाब दिया है, जिनका कहना है कि हिंदी बाल साहित्य नितांत निःसार है।
मौलिक सृजन- बहुमुखी प्रतिभा के धनी ज़ाकिर अली ‘रजनीश’ ने बाल साहित्य की
विविध विधाओं को अपने मौलिक लेखन द्वारा भी परिपुष्ट किया है। पहले उनकी बाल कविताओं को लें। संख्या में कम बाल कविताएँ लिखने पर भी गुणवत्ता में वह कहीं पीछे नहीं रहे हैं। उनकी बालकविताओं में प्रकृति, बालमनोविज्ञान और बालक का समसामयिक जीवन प्रमुखता से चित्रित हुआ है। ‘मौसम’ कविता की इस एक पंक्ति में जिस जादुई अंदाज में परिवर्तनशील ऋतुओं की छवि का अंकन किया गया है। वह सराहनीय है, ”जादू की पुड़िया-सा मौसम रोज बदलता रहता।“
<br /><br />सम्मोहन की एक मोहक दुनिया जैसे इसी एक पंक्ति से सिरज जाती है और बच्चा स्वयं को उस बहाव में बहता हुआ पाता है -
<br /><br />”कुहरा कभी टूटकर पड़ता, चलती कभी हवाएँ
<br /><br />आए कभी यूं आंधी कि कुछ नहीं समझ में आये।“
<br /><br />बच्चे के लिए सभी कुछ चकित कर देने वाले दृश्य हैं। भयंकर कोहरे के कारण सर्दियों में उसके स्कूल बंद हो जाते है और भयंकर आंधी का उत्पात क्या कुछ कम डराता है उसे? कवि की बाल मन पर गहरी पकड़ स्वयंसिद्ध है।
<br /><br />यही कवि कौशल समसामयिक जीवन की त्रासदी चित्रित करने में व्यंजित हुआ है। ‘जरा-सा-प्यार’ में संपन्न परिवार का वह बालक है जिसके पास भौतिक सुख-सुविधाओं की कमी नहीं है, पर अपनी अतिव्यस्तता के चलते माता-पिता उसे समय <i>(पृष्ठ संख्या 260)</i> देने में असमर्थ हैं। ऐसे में वह बच्चा कीमती खिलौंनों और महंगे खिलौनों से भरी अलमारियाँ होने पर भी मां के प्यार का भूखा है। उसकी छोटी सी अभिलाषा है ”मांग रहा हूँ मम्मी तुमसे सिर्फ जरा-सा प्यार।“
<br /><br />यह कविता आज के संकटग्रस्त बचपन की झांकी है, जहाँ वीडियोगेम, क्रिकेट, कैरम जैसे खेल-खिलौनों से लदा होने पर भी बालक एकाकीपन की पीड़ा से संत्रस्त है। कोल्ड ड्रिंक तथा अन्य पेय पदार्थ भी उसे कहाँ तक पंसद आयेंगे? उसकी प्यास तो मां के नेह-सलिल की प्रत्याशा में है। वह समझदार है, जानता है, मां को घर आफिस की दोहरी जिम्मेदारी संभालनी है। पर उसकी भी मजबूरी है कि अकेलेपन की पीड़ा से दुःखी है। उस पर बस्ते का बोझ! बेबस बच्चा आखिर करे भी तो क्या?
<br /><br />‘चुपके से बतलाना’ कवि ज़ाकिर अली की एक ऐसी सुंदर बाल कविता है, जिसके शब्द-शब्द में बालसुलभ जिज्ञासा समाहित है। अपने नाना-दादा जैसे दिखने वाले बापू से तो वह मन की हर बात निःसंकोच पूछ ही सकता है न! फिर क्यों न पूछे-
<br /><br />”घड़ी हाथ में लेकर के तुम सदा साथ क्यों चलते
<br /><br />दांत आपके कहाँ गये, क्यों धोती एक पहनते
<br /><br />हमें बताओ, आखिर कैसे तुम खाते हो खाना
<br /><br />सपने में आकर के मेरे चुपके से बतलाना।“
<br /><br />‘चुपके से’ में बाल-मन का शरारती कौतूहल झांक रहा है। बाल-मन के अपने रहस्य होते हैं, जिन्हें वह चुपके से किसी राजदार के कान में कहकर खुश हो जाता है। बाल स्वभाव और बालक की चेष्टाओं के स्वाभाविक चित्रण ने इस बालकविता को विशिष्ट बना दिया है।
<br /><br />अब <a href="https://me.scientificworld.in/2021/07/zakir-ali-rajnish-bal-kathayen.html" target="_blank"><b>ज़ाकिर अली ‘रजनीश’ की बाल कहानियों</b></a> की बात करें। खासे लुभावने अंदाज में पेश की गई ये कहानियाँ बेशकीमती बन पड़ी है। इनमें परम्परा और प्रयोग का मणिकांचन संयोग है। पारम्परिक इस अर्थ में, क्योंकि यहाँ बच्चों के साथ-साथ उसका स्कूल और टीचर हैं, जबकि प्रयोगशीलता के तहत इनमें बाल-मन के उन सूक्ष्म तंतुओं को पकड़ा गया है, जिन पर इससे पूर्व किसी बाल साहित्यकार की निगाह नहीं पड़ी है। ज़ाकिर के लिए कहानी-लेखन कोई हठयोग की साधना नहीं, मात्र एक क्रीड़ा कौतुक है। किसी मनपसंद खेल की तरह कहानी उनके मन मस्तिष्क को झंकृत <i>(पृष्ठ संख्या 261) </i>करती है और फिर कागज के पृष्ठों पर अविराम उतरती चली जाती हैं। कोई श्रमसाध्य प्रयास नहीं है। यह तो एकदम उनके मनचाहे और सहज रूप से संपादित होने वाले कामों जैसी मनोरम प्रक्रिया है, जिसे वह रूचिपूर्वक घंटों कर सकते हैं। समस्या यही है, आज की मशीनी जिंदगी में इंसान के पास मनचाहा समय कहाँ है?
<br /><br />कहानी क्यों इतनी प्रिय है ज़ाकिर को, इसके लिए उनके बचपन के दिनों में झांकना जरूरी है। अपनी चुनी हुई कहानियों को ‘श्रेष्ठ बाल कथाएँ’ के अंतर्गत प्रस्तुत करते हुए उनका आत्मकथ्य भी किसी कहानी से कम रोचक नहीं है। बचपन में उनके घर में पढ़ाई का ज्यादा माहौल न था। फिर भी किताब, पत्रिका, समाचारपत्र जो भी हाथ लग जाये, उसे पढ़ना उनकी आदत में शुमार था। कहानी पढ़ने की ऐसी चाट, कि पचास पैसे प्रतिदिन पर किराये की पत्रिकाएँ लाते और पढ़कर सुख पाते। कोर्स की किताबों में छिपाकर ऐसी पढ़ाई कोई लती ही कर सकता है और यही दुर्व्यसन प्रायः हर बड़े बालसाहित्यकार को पता नहीं क्यों अपनी लपेट में लिये बिना नहीं रहता है। शायद यही बीजारोपण शनैः शनैः पल्लवित-पुष्पित होकर बाल कहानियों के विशाल वृक्ष के तने, पत्ते, शाखाएँ और फल-फूल का हेतु बनता है।
<br /><br />यह लत सिर्फ पढ़ने तक सीमित नहीं रहती, कुछ लिखने के लिए भी उकसाती है। जाहिर है, पढ़ाई-लिखाई की उस नादान उम्र में बच्चों का यह ‘भटकाव’ घर वाले सहन नहीं कर पाते और डांट-डपट कर इस पर अंकुश लगाने की कोशिश भी की जाती है। पर धारा का प्रबल प्रवाह ऐसे अवरोधों से रुकता है क्या? जितनी ज्यादा रोक-टोक उतनी ज्यादा सर्जना के लिए राह निकालने की नई से नई सूझ-बूझ। इसी दौर में बचपन कब बीत जाता है, लेखक नहीं जान पाता। जब होश आता है, तो वह स्वयं को एक सिद्धहस्त रचनाकर के रूप में पाता है।
<br /><br />इसी प्रक्रिया से गुजरते हुए ज़ाकिर ने बाल कहानियों का जो व्यापक लेखन किया उसने उन्हें एक प्रतिष्ठित बाल साहित्यकार बना दिया। उनकी बाल कहानियाँ बाल मनोविज्ञान के धरातल पर एकदम खरी उतरती हैं। ‘सुम्मी का सपना’, ‘बेबी माने अप्पी’, ‘मैं स्कूल जाऊंगी’ तथा ‘टी फार टीचर’ एक छोटी बच्ची को केन्द्र में रखकर लिखी गई ऐसी बाल कहानियाँ है, जिनमें शैशव की सारी मोहकता और मासूमियत मौजूद है। ‘सुम्मी का सपना’ उस नन्ही की कहानी है, जो अपनी बड़ी बहन <i>(पृष्ठ संख्या 262)</i> को स्कूल जाती देखकर स्वयं भी विद्यालय जाने के लिए लालायित है। उसकी अपनी दुनिया है, जिसमें वह है और उसके मीठे सपनों का कलरव है। कल्पना के व्योम की ऊंची उड़ानें भरते हुए वह थकती नहीं। कहानी में हमारा उससे पहला परिचय जमीन पर बैठकर एक खुली किताब सामने रखे हुए होता है। किताब के पृष्ठ पर बड़े अक्षर में ‘अ’ लिखा है और लाल रंग के एक बड़े अनार का चित्र बना है। सुम्मी की कल्पना की उड़ान जारी है, ”जब देखने में कितना प्यारा है तो खाने में... इस बार पापा से कहकर मंगवाऊंगी और हम और दीदी मिलकर खायेंगे।“
<br /><br />कल्पना का यह सुरम्य लोक अत्यन्त मोहक है। अगले पृष्ठ पर ‘आ’ से आम का चित्र है और मीठ-रसीले आम को लेकर सुम्मी की कल्पना भी कुछ कम मीठी नहीं है। सोचते-सोचते स्कूल, टीचर और कक्षा से जुड़ी कल्पनाओं की कमी नहीं है सुम्मी के मानस में। वह अपने आप में रसमग्न है भाव-विभोर है। ऐसे में जब मम्मी और दीदी आकर उसके हाथ में एक कापी थमाते हुए कहती हैं, ”लो सुम्मी, तुम्हारे लिए नई कापी।“ तो वह खुशी से फूली नहीं समाती। उसका सपना जो साकार होने जा रहा है।
<br /><br />ऐसी ही मिठास से भरपूर एक अन्य कहानी ‘बेबी माने अप्पी’ है। यहाँ भी शैशव की वही सरलता है, जो बरबस हमारे मन को मोह लेती है। नन्ही बानो का आज स्कूल में पहला दिन है। टीचर उसे बी फार बेबी पढ़ा रही हैं, पर वह इस पाठ को सीखने के लिए तैयार नहीं। टीचर तो बेबी का अर्थ बच्चा सिखाने पर तुली है और वह बेबी का अर्थ सिर्फ अप्पी जानती है। उसकी अप्पी का नाम बेबी है, तो फिर बेबी का अर्थ अप्पी के सिवाय कुछ और हो ही कैसे हो सकता है? टीचर की डांट उसके सिर के ऊपर से निकलनी ही है। क्रोध के अतिरेक से टीचर हाथ उठाते-उठाते रूक जाती हैं। दसवीं बार धीरज धरते हुए पूछती हैं, ”बोलो बेटे, बेबी माने...?
<br /><br />बानो ने पलकें झपकायीं, टीचर की तरफ देखा, धीरे से बोली ‘अप्पी’ और फिर जोर-जोर से रोने लगी।
<br /><br />निश्चय ही बालमनोविज्ञान की कसौटी पर ये कहानियाँ नितांत खरी उतरती हैं। इनमें एक बाल मन स्पन्दित हो रहा है, कुलांचें भर रहा है और मनोरम सपनों की दुनिया सजाकर स्वयं में ही रीझ-रीझ उठा है। ऐसी ही एक मनोरम कहानी ‘मैं स्कूल जाऊंगी’<i>(पृष्ठ संख्या 263)</i> है, जिसमें स्कूल को लेकर एक मासूम बच्ची के मन के नाना भय पिरोये हुए हैं । वह क्लास में सहज नहीं हो पाती, डरी-सहमी रहती है। पता नहीं उसकी किस गलती पर उसके साथ क्या सलूक किया जाये, उसकी समझ में नहीं आता है। पर टीचर का कोमल-स्नेहिल चेहरा उसके सारे भय और आशंकाओं को निर्मूलकर देता है। इतनी प्यारी टीचर के रहते हुए वह क्यों डरे? मुंह से सहसा निकल पड़ता है, ”मैं स्कूल जाऊंगी“
<br /><br />‘टी फार टीचर’ अंजुम की कहानी है। यहाँ भी वही शैशव काल है, जब पहली बार स्कूल जाने वाले बच्चे की मनःस्थिति को लेखक की कलम ने बड़ी सजगता से पकड़ा है। अंजुम को पड़ोस के शैतान लड़के सोनू के बारे में जानकारी है, जो अपनी नित नई शरारतों की वजह से स्कूल में टीचर की डांट खाता है। अब गलती किसी की भी हो, पर डांट तो सोनू को ही पड़ती है न! बाल सुलभ सरलता के कारण अंजुम कारण की तह तक नहीं पहुँचता, सिर्फ स्कूल और टीचर के नाम से मन में एक भय पाल लेता है। बड़ी मुश्किल से माता-पिता उसे स्कूल जाने के लिए तैयार करते हैं। अंजुम को जब कक्षा में अपने जैसे प्यारे-प्यारे छोटे बच्चे और मम्मी जैसी स्नेहिल टीचर दिखती हैं, तो उसके हृदय के सारे भय एकाएक दूर हो जाते हैं। वह मनोरम कल्पनाओं में निमग्न है कि अचानक पास खड़ी टीचर का सवाल उसके कानों में पड़ता है, ‘टी फार’?
<br /><br />”टीचर।“ अनायास ही अंजुम के मुंह से निकल पड़ता है और कहानी का एक सुखद अहसास के साथ समापन हो जाता है।
<br /><br />सिर्फ यही नहीं, ज़ाकिर की बालकहानियों में और भी विविध रंग और स्वाद भरे हैं। ‘रूबी का रोबोट’ एक ऐसी कहानी है, जिसमें बाल-मन की रीझ-खीझ और करुणा एक साथ विद्यमान हैं। रूबी के लंदन वाले अंकल उसके लिए एक रोबोट लाये हैं, जो किसी के द्वारा नाम पूछने पर बड़ी शान से बताता है, ”मेरा नाम रोबो है।“
<br /><br />सच, बड़ा मजेदार खेल था यह और रूबी के सब दोस्तों ने इसे बहुत पसंद किया। पर रूबी सिर्फ इसी एक सवाल से संतुष्ट कैसे हो सकती थी? वह तो रोबोट से उसके माता-पिता, खेल-खिलौनों आदि के बारे में भी बहुत कुछ जानना चाहती थी। हर सवाल के उत्तर में वही एक वाक्य सुनकर रूबी खीझ कर रोबोट को नीचे पटक <i>(पृष्ठ संख्या 264) </i>देती है और फिर जब टूटे खिलौने के मुंह से कोई आवाज नहीं निकलती, तो करुण कंठ से कह उठती है, ”रोबो, तुम बोलते क्यों नहीं? तुम्हें बहुत चोट लगी है न? प्लीज़, मुझे माफ कर दो। मुझे माफ कर दो रोबो। अब मैं तुम्हें कुछ नहीं कहूंगी। तुमसे कुछ नहीं पूछूंगी।“
<br /><br />कहते-कहते रूबी का गला भर आना, पलकें डबडबा उठना और गुलाब से गालों के ऊपर आंसुओं की पतली धार का बहना उस नन्ही बच्ची के संवेदनशील मन की पूरी झलक दिखा देता है। निश्चय ही यह कहानी बाल-मन की मासूमियत और करुणा के धूपछांही ताने-बाने से बुनकर अति सुंदर कलेवर को प्राप्त हुई है।
<br /><br />और भी बहुत सी सुंदर कहानियाँ हैं जाकिर की कथा मंजूषा में।
<br /><br />‘अनजाना चेहरा’ एक ऐसी कहानी है, जिसमें बियावान रेगिस्तान जैसी जगह को हरा-भरा बनाने वाले एकाकी शख्स का वृक्षारोपण का जादू है। ‘सबसे बड़ा पुरस्कार’ में वह अकरम है, जो अम्मी को बीमार हालत में छोड़कर जिले की दौड़ प्रतियोगिता में जीता इनाम लेने नहीं जाता। उसे बीमार मां की सेवा किसी भी पुरस्कार से ज्यादा बड़ी प्रतीत होती है। ‘सपनों का गांव’ पर्यावरण की शुद्धता से जुड़ी कहानी है। ‘आत्मविश्वास की परीक्षा’ एक स्कूली बच्चे की आत्मविश्वास के बल पर मिलने वाली सफलता को चित्रित करती है। ‘मनसुखा की सीख’ में एक अहंकारी बालक के व्यक्तित्व में बदलाव का चित्र है और यह परिवर्तन गांव के सीधे-सादे मनसुखा के सदाचरण को देखकर आया है। ‘सुपर मैन’, ‘मदद करो कम्प्यूटर’, ‘देश की खातिर’, ‘बातों के बताशे’, ‘थोड़ी-सी खुशी’, ‘चाकलेट चोर’ तथा ‘रंगों का जादू’ जैसी कहानियों में बाल जीवन और बाल संसार से जुड़े नाना चित्र अपनी शोभा बिखेर रहे हैं। निश्चय ही हिंदी बाल कहानी को संपन्न बनाने में जाकिर अली रजनीश का महत्वपूर्ण योगदान है।
<br /><br />ऐतिहासिक और वैज्ञानिक कहानियाँ लिखकर जाकिर ने हिंदी बाल कहानी का बहुमुखी सौंदर्य-वर्धन किया है। इनकी विज्ञान कथाएँ या विज्ञान फैंटेसी कथाएँ एक ओर मनोरंजन के द्वार खोलती हैं, तो दूसरी ओर खेल-खेल में विज्ञान के जटिलतम सिद्धांतों को बोधगम्य बनाती हैं और एक नये रहस्यलोक के सृजन से हमें कभी परिचित तो कभी अचम्भित करती हैं। <b>‘<a href="https://www.zakirali.in/p/books.html" target="_blank">विज्ञान की कथाएँ</a>’</b> (2006) में उनकी <i>(पृष्ठ संख्या 265 ) </i>इक्कीस विज्ञान कथाएँ संग्रहीत हैं। इनमें ‘नेमो मेरा नौकर’, ‘समय के साथ’, ‘मेरा क्लोन दो’ और ‘अंतरिक्ष का स्टेशन’ विशेष रूप से उल्लेखनीय है। इनमें वैविध्य के साथ विश्वसनीय वैज्ञानिक परिवेश का चित्रण है। ये कहानियाँ नवीनतम वैज्ञानिक खोजों से जुड़ी हैं और खानापूरी के लिए लिखी जाने वाली हिंदी की विज्ञानपरक बालकहानियों से नितांत पृथक् है। स्वयं लेखक का मानना है कि हिंदी में लिखी जा रही विज्ञानकथाएँ कल्पना के अतिरेक से इतनी बोझिल होती हैं कि यथार्थ-बोध से परे पहुंच जाती हैं। उनके शब्दों में, ”अतिरंजित कल्पनाओं से त्रस्त इन कहानियों में जिस चीज का बुरी तरह से अभाव खलता है, वह है तर्कबद्धता और विश्वसनीयता।“11
<br /><br />‘सात सवाल’, ‘समय के पार’ और ‘हम होंगे कामयाब’ जैसे उपन्यास लिखकर जाकिर अली ‘रजनीश’ ने बाल उपन्यासों के क्षेत्र में अपनी प्रभावशाली उपस्थिति दर्ज की है। ‘<b>सात सवाल</b>’ में हातिमताई की कहानी को प्रासंगिकता दी गई है। ‘<a href="https://www.scientificworld.in/2012/09/Samay-Ke-Paar-Children-Hindi-Novel.html" target="_blank"><b>समय के पार</b></a>’ विज्ञान फंतासी है, जो अनेक प्रतिष्ठित पुरस्कारों से नवाज़ा जा चुका है। ‘<b>हम होंगे कामयाब</b>’ एक ऐसा सफल जासूसी उपन्यास है, जिसका प्रभाव देर तक पाठक के मन पर पड़ा रहता है। स्वयं लेखक ने अपने इस बाल उपन्यास के बारे में लिखा है, ”हिंदी में लिखे गये साहसिक उपन्यासों के साथ आम तौर से यह दिक्कत रहती है कि उसके पात्र होते तो हैं सामान्य बच्चे, किंतु काम ‘जेम्सबाण्ड’ के अंदाज में करते हैं। सुकून की बात यह है कि ‘हम होंगे कामयाब’ इस अतिनाटकीयता का शिकार होने से बच गया है। बाल मजदूरी पर केंद्रित इस उपन्यास की पठनीयता को बढ़ाने में भाषा के लालित्य का योगदान है। कथानक और भाषा का ऐसा संगम बहुत कम रचनाओं में देखने को मिलता है।“12
<br /><br />उपन्यास बाल-श्रम के उन्मूलन पर आधृत है। एक गरीब बच्चे किशोर को अत्यंत लोभी और क्रूर सेठ लक्खूलाल ने कैद कर रखा है। उस जैसे तमाम बच्चे सेठ की कैद में हैं और बाल मजदूरी का शोषण-चक्र बेरोकटोक चल रहा है। ऐसे में दो स्कूली छात्र रवि और अंजुम इस बाल-श्रम को खत्म करने की दिशा में पूरी योजनानुसार काम करके सफलता पाते हैं।
<br /><br />कथ्य और शिल्प की दृष्टि से यह उपन्यास अत्यंत प्रभावशाली बन पड़ा है। इसमें कथा-सूत्र का आदि से अंत तक सफल निर्वाह है। रोचकता निरंतर बनी रहती है <i>(पृष्ठ संख्या 266) </i>और ‘आगे क्या हुआ’ जानने की जिज्ञासा पाठक में आदि से अंत तक समाई रहती है। कथानक पूर्णतः सुगठित है और तर्कसंगत घटनाओं के चलते अत्यंत स्वाभाविक बन पड़ा है। इसमें बाल अधिकारों की बात बड़ी गंभीरता से कही गई है। बच्चों के चरित्र- चित्र की रेखाओं में गहरे और हलके रंगों के संयोजन से जो शेड्स दिये गये हैं, वे अत्यंत प्रभावशाली हैं। बंधुआ मजदूर के रूप में रहने वाला किशोर देखने से ही कितना दीन-हीन प्रतीत होता है, यह इन पंक्तियों से स्पष्ट है, ”उम्र लगभग तेरह वर्ष, पतला-दुबला शरीर, मैले-कुचैले कपड़े, धूल सने बाल और चेहरे पर तैरते भय मिश्रित दीनता के भाव।“13
<br /><br />परिवेश चित्रण भी इतना सजीव है कि वर्णन को पढ़ते साथ चित्रित दृश्य हमारी आंखों में साकार हो उठता है, ”डरते-डरते अंजुम ने टार्च की रोशनी अंदर फेंकी। अंदर उन्हीं के हमउम्र बीसों लड़के पुआल पर लेटे थे। ठंड के कारण उनके शरीर अकड़कर गठरी बने जा रहे थे।“14
<br /><br />वर्णन में चित्रोपमता का सन्निवेश इन पंक्तियों द्वारा कितने कौशल से हुआ है, देखिए, ” ‘तड़।’ लक्खूलाल के एक करारे झापड़ से वह लड़खड़ा गया। आंखों के आगे अंधेरा छा गया और वह गिरते-गिरते बचा। अपने आपको संभालने का प्रयत्न करते हुए उसने कुछ कहने का प्रयत्न किया, पर जबान ने बीच में ही उसका साथ छोड़ दिया।“15
<br /><br />निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि जाकिर अली ‘रजनीश’ ने बालसाहित्य को सम्पन्न बनाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी है। श्रेष्ठ संपादन द्वारा यदि वह अन्य बाल साहित्यकारों के साहित्य का नवनीत सामने लाये हैं, तो मौलिक सृजन द्वारा अपनी कलम से हिंदी बालसाहित्य के भंडार की विविध विधाओं की श्री वृद्धि की है। हिंदी बालसाहित्य के संवर्द्धन-परिवर्द्धन की दिशा में उनसे बहुत आशाएँ हैं।
<br /><br /><h4><b>संदर्भ:</b> </h4>
1. इक्कीसवीं सदी की बाल कहानियाँ - सं. जाकिर अली ‘रजनीश’, नीरज इंटरप्राइजेज लखनऊ प्रथम सं. 1998<br />
2. उपर्युक्त<br />
3. वही <i>(पृष्ठ संख्या 267)</i><br />
4. वही<br />
5. समय का दस्तावेज़, भूमिका - ग्यारह बाल उपन्यास, (पृ. 9) सं. ज़ाकिर अली रजनीश, वर्षा प्रकाशन इलाहाबाद, प्रथम सं. 2006 <br />
6. यादराम रसेन्द्र की श्रेष्ठ बाल कथाएँ - सं. जाकिर अली ‘रजनीश’, लहर प्रकाशन इलाहाबाद प्रथम सं. 2008<br />
7. अनन्त कुशवाहा की श्रेष्ठ बाल कथाएँ, शेष संदर्भ उपर्युक्त <br />
8. मोहम्मद अरशद खान की श्रेष्ठ बाल कथाएँ, प्रथम सं. 2012, शेष संदर्भ उपर्युक्त <br />
9. ग्यारह बाल उपन्यास, सं. जाकिर अली रजनीश, प्रकाशन 2006 <br />
10. 151 बाल कविताएँ - सं. ज़ाकिर अली ‘रजनीश’, यश पब्लिकेशंस, मुम्बई प्रथम सं. 2003 <br />
11. ‘अपनी बात’, प्रतिनिधि बाल विज्ञान कथाएँ, सं. जाकिर अली ‘रजनीश’, विद्यार्थी प्रकाशन, लखनऊ, प्रथम सं. 2003 <br />
12. 11 बाल उपन्यास - सं. ज़ाकिर अली रजनीश, वर्षा प्रकाशन, इलाहाबाद, प्रथम सं. 2006, भूमिका <br />
13. वही, पृ. 68<br />
14. वही, पृ. 79<br />
15. वही, पृ. 99 <i>(पृष्ठ संख्या 268)</i></div>विद्या सरनhttp://www.blogger.com/profile/13874233412214088080noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-290840405926959662.post-44222219458155883812021-07-18T16:33:00.009+05:302021-08-19T12:07:05.692+05:30अहिल्याबाई होल्कर का जीवन परिचय - Ahilyabai Holkar Biography in Hindi<div><div style="text-align: justify;">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiHiMp4AcVE-VCkg4ddjZgoS-Qc2asLTPxVDSSfffYoeP4QfwfJuU1UQSZIrpzm0O5EMna9ZrQFpVoVU6D3A1QlQJcDIuJCfxrH-0DmlB0KFJFLDO3QiVvDfIBMlEvH8QTTUQALLtvWuFvw/s1280/Ahilyabai+Holkar.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="Ahilyabai Holkar Ki Biography in Hindi" border="0" data-original-height="720" data-original-width="1280" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiHiMp4AcVE-VCkg4ddjZgoS-Qc2asLTPxVDSSfffYoeP4QfwfJuU1UQSZIrpzm0O5EMna9ZrQFpVoVU6D3A1QlQJcDIuJCfxrH-0DmlB0KFJFLDO3QiVvDfIBMlEvH8QTTUQALLtvWuFvw/s16000/Ahilyabai+Holkar.jpg" title="Ahilyabai Holkar Ki Biography in Hindi" /></a></div>आज हम आपके लिए मालवा की महारानी अहिल्याबाई होल्कर का जीवन परिचय Ahilyabai Holkar Biography in Hindi लेकर आए हैं। वे अपने राज्य की आय का 90 प्रतिशत भाग मंदिरों और धर्मशालाओं पर खर्च करने वाली व शिव की अनन्य भक्त के रूप में जानी जाती हैं। अहिल्याबाई होल्कर ने अपने जीवन में कई ऐसे कार्य किये, जिसकी वजह से वे आज भी मालवा क्षेत्र में राजमाता के रूप में याद की जाती हैं। हमें उम्मीद है कि महारानी अहिल्याबाई होल्कर का होल्कर की जीवनी Ahilyabai Holkar Biography in Hindi आपको अवश्य पसंद आएगी।</div><div style="text-align: justify;"></div><div style="text-align: justify;"><h2 style="text-align: center;">अहिल्याबाई होल्कर का जीवन परिचय </h2><h2 style="text-align: center;">Ahilyabai Holkar Biography in Hindi</h2>
अत्यंत धार्मिक और न्यायप्रिय महिला के रूप में प्रसिद्ध अहिल्याबाई का जन्म 31 मई 1725 को अहमद नगर, महाराष्ट्र के चौड़ी गांव में हुआ था। उनके पिता Ahilyabai Holkar Father मांकोजी राव शिंदे (Mankoji Shinde) गांव के पाटिल थे। उस समय लड़कियों के लिए शिक्षा की व्यवस्था नहीं थी। पर इसके बावजूद मांकोजी राव शिंदे ने अपनी पुत्री की पढ़ाई लिखाई पर पूरा ध्यान दिया, जिससे वे आगे चलकर एक योग्य महारानी के रूप में चर्चित हुईं।</div><div style="text-align: justify;"> </div><div style="text-align: justify;"></div><div style="text-align: center;"><b><span style="font-size: large;">Read: <a href="https://me.scientificworld.in/2019/01/savitribai-phule-information-in-hindi.html">Savitribai Phule Biography in Hindi</a></span></b><br /></div><div style="text-align: justify;"><br />
अहिल्याबाई के होल्कर साम्राज्य की रानी बनने के पीछे उनका भक्तिभाव ही प्रमुख कारण था। बताते हैं कि सन 1733 में मालवा के शासक मल्हार राव होल्कर, चौड़ी गांव से होकर गुजर रहे थे। गांव के बाहर शिव मंदिर देखकर उन्होंने वहां पर विश्राम करने का निश्चय किया। मल्हार राव जब दर्शनों के लिए मंदिर के अंदर गये, तो वहां पर उन्होंने 8 वर्ष की बालिका अल्यिाबाई को देखा, जो पूरी तन्मयता से पूजा कर रही थी। उसे देखकर वे अहिल्या से बेहद प्रभावित हुए और उसे अपनी बहू बनाने का निश्चय कर लिया।
<br /><br /><h3>होल्कर वंश की स्थापना Holkar Vansh ke Sansthapak </h3></div><div style="text-align: justify;">मल्हार राव होल्कर (Malhar Rao Holkar) कोई पारम्परिक राजा नहीं थे। वे मूलरूप से होल गांव के निवासी थे, इसलिए होल्कर कहलाते थे। उनका जन्म 16 मार्च 1693 को एक चरवाहा परिवार में हुआ था। युवा होने पर मल्हार राव पेशवा बाजीराव प्रथम (Baji Rao I) की सेना में भर्ती हो गये। धीरे धीरे उन्होंने अपनी वीरता और काबिलियत के बल पर पेशवा का दिल जीत लिया। उनकी योग्यता को देखकर पेशवा ने उन्हें मालवा का प्रशासक नियुक्त कर दिया। इस प्रकार पेशवा के संरक्षण में मालवा में होल्कर वंश की स्थापना हुई।
<br /><br /><h3>अहिल्याबाई होल्कर का विवाह Ahilyabai Holkar Marriage Life</h3></div><div style="text-align: justify;">सन 1733 में 8 वर्ष की आयु में अहिल्या का विवाह मल्हार राव होल्कर के पुत्र खाण्डेराव होलकर (Khanderao Holkar) से हो गया। शादी के 10 साल बाद यानि 1745 में उन्होंने मालेराव (Male Rao Holkar) के रूप में एक पुत्र को जन्म दिया। उनकी दूसरी संतान का नाम मुक्ताबाई (Muktabai Holkar) था, जिसका जन्म 1748 में हुआ था।</div><div style="text-align: justify;"> </div><div style="text-align: justify;"></div><div style="text-align: center;"><div style="text-align: center;"><b><span style="font-size: large;">Read: </span><a href="https://me.scientificworld.in/2021/08/great-indian-womens.html"><span style="font-size: large;">Great Women's of Indian History in Hindi</span></a></b></div></div><div style="text-align: justify;"><br />
अहिल्याबाई को ज्यादा दिनों तक पति का साथ नहीं मिल सका। सन 1754 में उनके पति खाण्डेराव, कुम्हेर के युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए। इससे अहिल्याबाई बेहद दु:खी हो गयीं और उन्होंने सती होने का निश्चय किया। पर उनके श्वसुर के काफी समझाने के बाद उन्होंने अपना निश्चय बदल दिया और शिव की भक्ति में लीन हो गयीं।
<br /><br />
खाण्डेराव के निधन के 12 साल बाद 1766 में मल्हार राव होल्कर स्वर्गवास हो गया। ऐसे में अहिल्याबाई ने अपने पुत्र मालेराव होल्कर का मालवा की गद्दी पर बैठाया। पर 1 साल बाद ही उनके पुत्र मालेराव का भी निधन हो गया। मालेराव का निधन का कारण (Male Rao Holkar Death Reason) क्या था, इसपर कोई प्रामाणिक जानकारी उपलब्ध नहीं है। अपुष्ट सूत्रों के अनुसार मालेराव के निधन की मुख्य वजह मानसिक बीमारी बताई जाती है। <br /><br /><h3>अहिल्याबाई होल्कर की प्रशासन व्यवस्था Ahilyabai Holkar Administration </h3></div><div style="text-align: justify;">पुत्र की मृत्यु के बाद अहिल्याबाई ने सन 1767 में मालवा की महारानी का पद संभाला। उन्होंने मल्हार राव के दत्तक पुत्र तुकोजी राव को मालवा का सेनापति बनाया और अपनी मृत्यु तक अर्थात 1795 तक जनता की सेवा की।
<br /><br />
अहिल्याबाई एक कुशल प्रशासक थीं और अपनी बुद्धिमत्ता से कठिन से कठिन परिस्थिति में भी रास्ता निकाल लेती थीं। ऐसी ही एक घटना उनके शासन संभालने के समय ही घटी। हुआ यूं कि उनके रानी बनने से अनेक राजा चिढ़ गये। उन्हीं में से एक रघोवा भी था। उसने अपनी सेना लेकर मालवा पर धावा बोल दिया। अहिल्याबाई अपने सेनापति तुकोजी राव के साथ युद्धभूमि पर जा पहुंची।
<br /><br />
लेकिन युद्ध शुरू होने से पहले अहिल्याबाई ने एक युक्ति आजमाने की सोची। उन्होंने रघोवा को एक पत्र लिखा। जिसमें लिखा हुआ था कि अगर आपने आज का यह युद्ध जीत लिया, तो भी लोग यही कहेंगे कि आपने दु:ख में डूबी एक महिला को हराकर यह लड़ाई जीती। लेकिन अगर आज का यह युद्ध आप हार गये, तो सोचिए आपकी कितनी बेइज्जती होगी। लोग कहेंगे कि रघोवा एक महिला से भी हार गये। </div><div style="text-align: justify;"> </div><div style="text-align: center;"><b><span style="font-size: large;">Read: <a href="https://me.scientificworld.in/2017/04/bhimrao-ambedkar-thought-hindi.html">Bhimrao Ambedkar Biography in Hindi</a></span></b><br /></div><div style="text-align: justify;"><br />
उस चिट्ठी को पढ़ने के बाद राघोवा डर गया। उसने युद्ध का फैसला बदल दिया और पत्रवाहक से बोला, 'किसने कहा कि हम लड़ने आए हैं, हम तो उनके बेटे की मृत्यु पर शोक प्रकट करने आए हैं।' और इस तरह अहिल्याबाई ने बिना लड़े हुए वह युद्ध जीत लिया।
<br /><br />
अहिल्याबाई की समझदारी का एक और निर्णय उनकी पुत्री के विवाह से भी सम्बंधित है। हुआ यूं कि एक बार उनके राज्य में एक डकैत का आतंक काफी बढ़ गया था। उससे मुक्ति पाने के लिए उन्होंने यह घोषणा कर दी, कि जो कोई डकैत का खात्मा करेगा, उससे वो अपनी बेटी मुक्ताबाई का विवाह करेंगी। यह घोषणा सुनकर यशवंतराव नामक युवक ने अत्यंत साहस का परिचय दिया और उस डकैत को मार गिराया। अहिल्याबाई यशवंत राव की इस बहादुरी से बहुत प्रसन्न हुईं और उन्होंने अपनी पुत्री मुक्ताबाई का विवाह यशवंत राव से कर दिया।
<br /><br />
अहिल्याबाई ने अपने राज में कई महत्वपूर्ण निर्णय लिये, जिनमें मालवा की राजधानी को इंदौर से महेश्वर ले जाने का निर्णय प्रमुख था। उन्होंने यह निर्णय सुरक्षा की दृष्टि से लिया था। इसके अलावा उन्होंने 500 महिलाओं की सेना का भी गठन किया और उनकी मदद से चंद्रवत राजा को हराया भी।
<br /><br /><h3>
अहिल्याबाई होल्कर का न्याय Ahilyabai Holkar Justice</h3></div><div style="text-align: justify;">अहिल्याबाई एक कुशल शासक के साथ बेहद न्यायप्रिय भी महिला थीं और किसी के साथ भेदभाव नहीं करती थी। इस सम्बंध में एक दंतकथा मालवा क्षेत्र में आज भी प्रचलित है। कथा के अनुसार एक बार उनके पु्त्र मालोजी राव के रथ से टकराकर गाय के बछड़े की मृत्यु हो गयी। अहिल्याबाई इससे बेहद दुखी हो गयींं। उन्होंने मालोजीराव की पत्नी कृष्णाबाई होल्कर से पूछा कि अगर किसी मां के सामने उसने बच्चे को मार दिया जाए, तो मारने वाले को क्या दंड दिया जाना चाहिए। इसपर कृष्णाबाई ने तपाक से जवाब दिया कि ऐसे हत्यारे को तो प्राणदण्ड ही दिया जाना चाहिए।
<br /><br />
यह सुनकर अहिल्याबाई ने अपने पुत्र मालोजी राव को उसी तरह रथ से टकरा कर मारने का आदेश दिया, जैसे उस बछड़े की मृत्यु हुई थी। पर इस निर्णय का पालन करने के लिए कोई भी रथ चलाने के लिए तैयार नहीं हुआ। यह देखकर अहिल्याबाई ने स्वयं ही रथ का संचालन करने का निश्चय किया। </div><div style="text-align: justify;"> </div><div style="text-align: center;"><b><span style="font-size: large;"><span style="font-size: large;"><span style="font-size: large;">Read: <a href="https://me.scientificworld.in/2021/08/ajijan-bai-ki-kahani.html">Ajijan Bai Biography in Hindi</a></span></span></span></b></div><div style="text-align: justify;"><br />
जब अहिल्याबाई रथ लेकर निकलीं तो कहते हैं कि जिस गाय का बछड़ा मरा था, वह रथ के आगे आ गयी। इसपर सैनिकों ने उसे सामने से हटाया। लेकिन उसके बाद वह गाय पुन: रथ के सामने आ गयी। यह देख कर उनके महामंत्री ने कहा कि महारानी जी, यह गाय भी नहीं चाहती कि उसके बछड़े की हत्या के लिए राजकुमार को इस तरह से कुचला लाए। इसीलिए यह गाय बार—बार आपके रथ के सामने आ रही है। यह सुनकर अहिल्याबाई का हृदय द्रवित हो गया और उन्होंने अपने पुत्र को माफ कर दिया।
<br /><br />
अहिल्याबाई ने न सिर्फ अपने भक्तिभाव से प्रजा के बीच लोकप्रियता हासिल की, वरन उन्होंने देश के सभी प्रमुख मंदिरों का जीर्णोद्धार भी कराया, जिसमें काशी, गया, अयोध्या, मथुरा, हरिद्वार, द्वारका, बद्रीनाथ, रामेश्वर और जगन्नाथपुरी के मंदिर शामिल हैं। इसके अलावा उन्होंने जगह जगह पर सराय और धर्मशालाएं भी बनवाईं। उन्होंने राज्य के आय की 90 प्रतिशत राशि को इस मद में खर्च किया।
<br /><br /><h3>अहिल्याबाई होल्कर की मृत्यु Ahilyabai Holkar Death Reason in Hindi</h3>अहिल्याबाई होल्कर 70 वर्ष तक जीवित रहीं। 13 अगस्त 1795 को उनकी मृत्यु हुई। अहिल्याबाई होल्कर की मृत्यु का कारण था अचानक तबियत खराब होना। हालांकि राजवैद्य ने उन्हें समय से दवाएं वगैरह दीं, पर वे उन्हें बचा नहीं सके। उनके अच्छे व्यवहार और कार्यों के कारण पूरे मालवा क्षेत्र में उन्हें देवी का अवतार कहा जाता है। <br /><br />
अहिल्याबाई की बहू कृष्णाबाई होल्कर (Krishna Bai Holkar) ने उनकी स्मृति में महेश्वर में एक किले का निर्माण कराया, जो महेश्वर के किले (Maheshwar Fort) के नाम से प्रसिद्ध है। यह किला नर्मदा नदी के तट पर स्थित है और आज भी अहिल्याबाई होल्कर की गौरवगाथा को बयान कर रहा है। </div><div style="text-align: justify;"> </div><center><b>यूट्यूब पर सुनें टॉप 5 जाबांज महिलाओं की कहानियां:</b><br /> <br />
<iframe allow="accelerometer; autoplay; clipboard-write; encrypted-media; gyroscope; picture-in-picture" allowfullscreen="" frameborder="0" height="415" src="https://www.youtube.com/embed/J5DqPH5eZZ0" title="YouTube video player" width="560"></iframe>
</center>
<br /></div><div style="text-align: justify;">
फ्रेंड्स अगर आपको महारानी अहिल्याबाई होल्कर का जीवन परिचय Ahilyabai Holkar Biography in Hindi पसंद आए, तो इसे अपने दोस्तों के साथ भी शेयर करें। और हां, जब भी कोई आपसे अहिल्याबाई होल्कर की जीवनी के बारे में बात करे, तो उसे हमारा पता बताना न भूलें।</div>विद्या सरनhttp://www.blogger.com/profile/13874233412214088080noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-290840405926959662.post-29487829270097982652021-07-11T12:53:00.004+05:302021-07-11T12:53:50.785+05:30ओशो के अनमोल विचार 101 Osho Thoughts in Hindi, Osho Quotes in Hindi<div style="text-align: justify;"><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhRvzXiWO3XsywWWhyphenhyphenCvUFlD4gW1LyQpR05EXsuc8NLy_noF3YepuLKXKGbW6dNuyo43sIqnWEf96y2o3SuQbLr6jhHgxT9O0EAs39pbAXXHCmMzaKRxVEBIT9jAvE4To0OwYlZzfs5iOZR/s1280/Osho+Quotes.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="720" data-original-width="1280" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhRvzXiWO3XsywWWhyphenhyphenCvUFlD4gW1LyQpR05EXsuc8NLy_noF3YepuLKXKGbW6dNuyo43sIqnWEf96y2o3SuQbLr6jhHgxT9O0EAs39pbAXXHCmMzaKRxVEBIT9jAvE4To0OwYlZzfs5iOZR/s16000/Osho+Quotes.jpg" /></a></div>किसी के पास दो कदम एक साथ उठाने की शक्ति नहीं है, आप एक बार में केवल एक ही कदम उठा सकते हैं।
<br /></div><div style="text-align: justify;"></div><div style="text-align: justify;"><br /> </div><div style="text-align: justify;">दुनिया में इस विचार के साथ मत जीना कि क्या होने वाला है। चाहे आप जीतने वाले हो या हारने वाले, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। मौत सब कुछ छीन लेती है। चाहे आप हारें या जीतें ये मायने नहीं रखता। केवल एक चीज जो मायने रखती है, वह यह है कि आपने खेल कैसे खेला है।
<br /><br /><br />
मैं अपना जीवन दो सिद्धांतों पर जीता हूं। पहला, मैं ऐसे जीता हूं जैसे कि पृथ्वी पर आज मेरा आखिरी दिन है। दूसरा, मैं ऐसे जीता हूं जैसे मैं हमेशा के लिए जीने वाला हूं।
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जोखिम के बिना जीवन में कुछ भी कभी प्राप्त नहीं होता है। जितना अधिक आप जोखिम उठाते हैं, उतना ही आप भगवान के करीब होते हैं। जब आप सब कुछ दांव पर लगा देते हो फिर सब कुछ आपका हो जाता है।
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तनाव का मतलब है कि आप कुछ और बनना चाहते हैं जो आप नहीं हैं।
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आप जो भी करते हैं, उसे गहरी सतर्कता के साथ करें। तब छोटी-छोटी चीजें भी पवित्र हो जाती हैं। फिर खाना बनाना या सफाई करना पवित्र हो जाता है, वे पूजा बन जाता हैं। यह सवाल नहीं है कि आप क्या कर रहे हैं, सवाल यह है कि आप इसे कैसे कर रहे हैं।
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जीवन का अपने आप में कोई अर्थ नहीं है। जीवन अर्थ सृजन का अवसर है।
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दुनिया को बेहतर बनने में मदद करें। दुनिया को वैसे ही मत छोड़ो जैसा आपने पाया है– इसे थोड़ा बेहतर बनाए, इसे थोड़ा और सुंदर बनाएं।
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आपका आधा जीवन अतीत और बाकी आधा जीवन भविष्य के बारे में सोचने में बीत जाता है। और जीवन की यात्रा कभी शुरू ही नहीं होती।
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किसी के जैसा बनने की कोशिश न करें, क्योंकि आप पहले से ही अनमोल हैं। आप में सुधार की कोई ज़रुरत नहीं है। आपको इसे जानने के लिए, अनुभव के लिए बस अपने पास आना होगा।
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सत्य ऐसी कोई चीज़ नहीं है जिसे बाहर खोजा जाय, यह भीतर महसूस की जाने वाली चीज़ है।
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आपका पूरा विचार अपने बारे में दूसरे से लिया गया उधार है। यह उन लोगों से उधार लिया गया है जिन्हें अपने बारे में ख़ुद पता नहीं है।
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जहां तक मेरा प्रश्न है, मैंने कभी भी कुछ आयोजित नहीं किया। बस जिया हूं एक विस्मय के साथ कि मालूम नहीं आगे क्या होने वाला है।
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सवाल ज्यादा सीखने का नहीं है। इसके विपरीत सवाल यह है की कितना हम भुला सके।
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बुद्धि ध्यान से आती है, बुद्धि विद्रोह से आती है, बुद्धि स्मृति से नहीं आती है।
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मेरे पूरी शिक्षा दो शब्दों पर आधारित है, ध्यान और प्रेम। ध्यान करें ताकि आप असीम मौन को महसूस कर सकें, और प्यार करें ताकि आपका जीवन एक गीत, एक नृत्य, एक उत्सव बन सके।
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कभी भी किसी के जीवन में हस्तक्षेप न करें और किसी को भी अपने जीवन में हस्तक्षेप करने की अनुमति न दें।
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जितनी संभव हो उतनी गलतियां करें, केवल एक ही बात याद रखें, फिर से वही गलती न करें। और जीवन में आप आगे बढ़ते जाओगे।
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जीवन कोई समस्या नहीं है। इसे एक समस्या के रूप में देखना गलत कदम उठाना है। यह एक रहस्य है जिसे जीना है, प्यार करना, अनुभव करना है।
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आदमी बुद्ध उसी क्षण हो जाता है, जब वह उन सभी चीजों को कृतज्ञता के साथ स्वीकार लेता है, जो उसे जीवन देती है।
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किसी चीज़ की इच्छा करने से पहले सोचें। इस बात की पूरी संभावना है कि वह पूरी हो जाएगी और फिर आपको दुःख होगा।
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बुद्ध, बुद्ध हैं। कृष्ण, कृष्ण हैं और तुम, तुम हो। और आप किसी भी तरह से किसी से कम नहीं हैं। खुद का सम्मान करें, अपनी आंतरिक आवाज का सम्मान करें और उसका पालन करें।
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दुख, हताशा, क्रोध, निराशा, चिंता, पीड़ा, दुख के साथ एकमात्र समस्या यह है कि आप इनसे छुटकारा चाहते हैं। यही एकमात्र बाधा है। आपको उनके साथ रहना होगा। आप इनसे भाग नहीं सकते। ऐसी स्थिति में ही जीवन एकीकृत और विकसित होती है। ये जीवन की चुनौतियां हैं। इन्हें स्वीकार करो। ये आशीर्वाद हैं। अगर आप इनसे बचना चाहते हैं, अगर आप किसी तरह से उनसे छुटकारा पाना चाहते हैं, तो फिर समस्या पैदा होती है क्योंकि अगर आप किसी चीज से छुटकारा पाना चाहते हैं तो आप उसे सीधे तौर पर कभी नहीं देख सकेंगे।
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यदि आप तर्क से बहुत अधिक चिपकते हैं, तो आप कभी भी उस जीवित प्रक्रिया का हिस्सा नहीं बन पाएंगे जो यह अस्तित्व है। जीवन तर्क से अधिक है। जीवन विरोधाभास है, जीवन रहस्य है।
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आपको क्या रुलाता है? यह सिर्फ आपका चीजों के प्रति लगाव है। वह क्या चीज है जिसे आपको खोने का डर है। उन चीजों के बिना धीरे-धीरे जीने की कोशिश करें जिन्हें आप अब सोचते हैं कि आप उसके बिना नहीं रह सकते। अपने भीतर एक स्थिति पैदा करें कि अगर ये चीजें जब खो जायेंगी, तो आपके अंदर थोड़ा भी कंपन न हो। तभी आप चीजों के लगाव से मुक्त हो पायेंगे।
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आपका मन एक बगीचा है, आपके विचार बीज हैं। या तो आप फूल उगा सकते हैं या शोक पैदा कर सकते हो।
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यह पैसा, शक्ति और प्रतिष्ठा का सवाल नहीं है। सवाल यह है कि आप आंतरिक रूप से क्या करना चाहते हैं। उसे करें, चाहे परिणाम कुछ भी हो, और आपकी बोरियत दूर हो जाएगी।
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अंधेरा सुंदर है। इसमें जबरदस्त गहराई, मौन, अनंतता है। प्रकाश आता है और चला जाता है, अंधकार हमेशा बना रहता है, यह प्रकाश की तुलना में अधिक शाश्वत है। प्रकाश के लिए आपको ईंधन की आवश्यकता होती है। अंधेरे के लिए ईंधन की जरूरत नहीं है, यह बस वहां है।
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एक रचनात्मक व्यक्ति वह है जिसके पास अंतर्दृष्टि है, जो उन चीज़ों को देख सकता है जो पहले किसी और ने नहीं देखी हैं, जो उन चीजों को सुन सकता है जो पहले किसी ने नहीं सुनी हैं, फिर रचनात्मकता पैदा होती है।
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जीवन में कुछ भी कभी भी व्यर्थ नहीं जाता है, विशेष रूप से सत्य की ओर उठाए गए कदम।
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मन आखिर क्यों हस्तक्षेप करता है? क्योंकि मन समाज द्वारा निर्मित होता है। यह आपके भीतर समाज का एजेंट रूप में है, यह आपकी सेवा करने के लिए नहीं है।
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परम रहस्यों के द्वार केवल उनके लिए खुल जाता है जिनके पास असीम धैर्य है।
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केवल अनुशासित लोग स्वतंत्र हो सकते हैं, लेकिन उनका अनुशासन दूसरों के लिए आज्ञाकारिता नहीं होनी चाहिए। उनका अनुशासन उनकी अपनी आंतरिक आवाज़ का पालन हो। और वे इसके लिए कुछ भी करने को तैयार हो।
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यदि आप बुद्धिमान हैं, यदि आप सतर्क हैं, तो साधारण भी असाधारण हो जाता है।
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यदि आप किसी भी मार्ग पर चलते हैं अगर वह मार्ग आपके लिए खुशी लाता है, अधिक संवेदनशीलता, साक्षी, और असीम कल्याण की भावना से भर देता है, यही एकमात्र मानदंड है कि आप सही रास्ते पर जा रहे हैं। और यदि आप अधिक दुखी, अधिक क्रोधित, अहंकारी, अधिक लालची, अधिक वासना के शिकार हो जाते हैं, तो यह संकेत हैं कि जो आप गलत रास्ते पर जा रहे हैं।
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सत्य को बौद्धिक प्रयास से नहीं पाया जा सकता क्योंकि सत्य एक सिद्धांत नहीं है, यह एक अनुभव है।
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एकांत तुम्हारा स्वभाव है। तुम अकेले पैदा हुए, तुम अकेले ही मरोगे। और आप अकेले जी रहे हैं, बिना इसे पूरी तरह से समझे बिना, बिना पूरी जागरूकता के। आप एकांत को अकेलेपन के रूप में गलत समझते हैं। यह केवल एक गलतफहमी है। आप खुद के लिए पर्याप्त हैं।
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आपके पास निश्चित विचार हैं कि क्या होना चाहिए। और अगर जीवन आपके अनुसार नहीं चल रहा है, तो आपको लगता है कुछ गलत हो रहा है। कुछ भी गलत नहीं हो रहा है। जीवन अपने आप चल रहा है, केवल आपके कुछ निश्चित विचार हैं। इसलिए उन निश्चित विचारों को छोड़ दें। ज़िन्दगी कभी भी आपका पालन नहीं करने वाली है। आपको ज़िन्दगी का पालन करना है। तो अगर यह अव्यवस्थित है, तो अव्यवस्थित रहने दो। तुम क्या कर सकते हो?
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बीता हुआ कल एक स्मृति है, भविष्य एक कल्पना है। केवल वर्तमान ही समय है। अतीत नहीं है, वह पहले ही जा चुका है। भविष्य नहीं है, यह अभी तक नहीं आया है। केवल वर्तमान है और यही जीवन है।
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जो लोग कभी गलती नहीं करते, वे कभी कुछ नहीं सीखते, वे कभी आगे नहीं बढ़ते। विकास के लिए गलतियां करने की हिम्मत होनी चाहिए। इस पल से ही केवल वही करें जो आप करना चाहते हैं, चाहे आपको इसके लिए कोई भी कीमत चुकानी पड़े।
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अपने भीतर जाएं, लेकिन भय के कारण नहीं बल्कि प्रेम के कारण अपने भीतर जाएं।
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अकेलेपन का मतलब है कि आप भीड़ पर, दूसरे पर निर्भर हैं। एकांत का मतलब है कि आप खुद से खुश हैं, आप किसी पर निर्भर नहीं हैं। जिस क्षण तुम निर्भर नहीं हो, तुम सम्राट हो।
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कल्पना का सीधा सा मतलब है कि आप एक निश्चित चीज़ की कल्पना करते हैं लेकिन आप उसमें इतनी ऊर्जा डालते हैं कि वह लगभग वास्तविक हो जाती है।
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प्रसिद्धि पाना मूर्खतापूर्ण है, व्यर्थ है, निरर्थक है। अगर पूरी दुनिया तुम्हें जान भी ले, फिर भी यह तुम्हें कैसे अमीर बनाता है? कैसे तुम्हे आनंदित करता है? यह तुम्हें कैसे अधिक समझने, अधिक जागरूक होने में, अधिक सतर्क रहने के लिए, अधिक जीवित रहने के लिए मदद करता है?
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याद रखें, यह दर्द आपको दुखी करने के लिए नहीं है। लोग यह समझ नहीं पाते हैं। यह दर्द बस आपको और अधिक सतर्क करने के लिए है– क्योंकि लोग केवल तब ही सतर्क होते हैं जब तीर उनके दिल में गहरा चला जाता है और उन्हें घाव करता है।
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यदि हम केवल जीवन के तथ्यों पर कड़ी नज़र डालें, तो हमें पता चलेगा कि, वास्तव में, कुछ भी हमारे हाथ में नहीं है यहां तक हमारे हाथ हमारे हाथ में भी नहीं है। बस अपने हाथ को अपने हाथ से पकड़ने की कोशिश करें और आपको वास्तविकता पता चल जाएगी। वास्तव में, कुछ भी हमारी शक्ति में नहीं है। फिर “मैं” और और “मेरा” कहने का क्या मतलब है? यहाँ सब कुछ बस हो रहा है।
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सत्य का आपके विश्वास से कोई लेना-देना नहीं है! आप माने या न माने इससे सत्य पर कोई फर्क नहीं पड़ता।
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आपको अस्तित्व का आभारी होना चाहिए कि उसने आपको कुछ खूबसूरत बच्चों के लिए, एक मार्ग के रूप में चुना है। लेकिन आपको बच्चों की क्षमता पर हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। न ही आपने आप को उन पर थोपना चाहिए।
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अधिक जियो और अधिक तीव्रता के साथ जियो। खतरे में जियो। यह आपका जीवन है, इसे किसी भी तरह की मूर्खता के लिए बलिदान मत करो जो आपको सिखाया गया है। यह तुम्हारा जीवन है, इसे जीओ। इसे शब्दों, सिद्धांतों, देशों, और राजनीति के लिए बलिदान मत करो।
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आपकी सभी परेशानियां आपके मन के कारण होती हैं। आपके विचार, आपका तर्क, बहस, आपका जुनून और आश्चर्य। ये सब मन की ही उपज हैं।
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केवल एक चीज आपको सीखनी है वह है देखना। देखें! अपने किये हर कार्य को देखें। अपने मन में गुजरने वाले हर विचार को देखें। हर उस इच्छा को देखें जो आपको ग़ुलाम बना लेती है।
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किसी भी चीज़ का मूल्य कहां से आता है? यह आपकी इच्छा से आता है। यदि किसी चीज़ को चाहते हैं, तो यह मूल्यवान है। यदि आप इसकी इच्छा नहीं रखते हैं, तो उसका मूल्य गायब हो जाता है। मूल्य किसी चीज में नहीं है, यह आपकी इच्छा में है।
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सच्ची प्रार्थना केवल धन्यवाद देना है। बस एक साधारण सा धन्यवाद पर्याप्त है।
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आप अच्छा महसूस करते हैं या आप बुरा महसूस करते हैं, ये भावनाएँ आपके अपने अतीत के अवचेतन से आती है, इसके लिए आपके अलावा कोई भी जिम्मेदार नहीं है। कोई भी आपको क्रोधित नहीं कर सकता है, और कोई भी आपको खुश नहीं कर सकता है।
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हर कोई रचनात्मक की शक्ति के साथ पैदा होता है, लेकिन वक्त गुज़रने के साथ बहुत कम लोग रचनात्मक बने रह पाते हैं।
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प्रत्येक व्यक्ति एक विशिष्ट नियति के साथ इस दुनिया में आता है– उसे कुछ पूरा करना है, कुछ संदेश देना है, कुछ काम पूरा करना है। आप अकस्मात् यहाँ नहीं आये हैं। इसके पीछे एक उद्देश्य है। अस्तित्व का पूरा इरादा आपके माध्यम से कुछ करने का है।
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इंसान के मन को तुम जितना भी भरते चले जाओ, वह खाली ही रहता है। अगर आपको पूरी दुनिया भी मिल जाय, तो भी आपका मन खाली का खाली रहता है।
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जब तक आप बिना कारण के, बिना किसी मकसद के, कुछ करना शुरू नहीं करते, आप धार्मिक नहीं हो सकते। जिस दिन आपके जीवन में बिना किसी कारण के कुछ घटित होने लगता है, जब आपकी क्रिया कोई मकसद या शर्त से जुड़ी नहीं होती है, जब आप बस प्यार और आनंद के लिए कुछ करते है, तब आपको पता चलता है कि धर्म क्या है, ईश्वर क्या है।
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प्रत्येक क्षण, आप जो भी कर रहे हैं, उसे पूरी समग्रता से करें। साधारण चीजें– स्नान करना हो, बैठे हो, टहल रहे हो, उस समय पूरी दुनिया को भूल जाओ। फिर किसी ध्यान की आवश्यकता नहीं है।
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इस जगत में इतनी मूल्यवान कोई भी चीज़ नहीं है कि तुम उसके लिए झगड़ो, हिंसा करो। कौड़ियों के लिए लड़ो मत। कौड़ियों के लिए लड़कर आत्मा के बहुमूल्य हीरे को मत गंवाओ।
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अगर तुम निश्चिंत होना चाहते हो तो तुम अपनी सारी चिंताएं उस परमात्मा पर छोड़ दो। जिस पर इतना विराट जीवन ठहरा हुआ है, चांद तारे चलते हैं, ऋतु आती है जाती है, सूरज निकलता है। वह तुम्हारी भी छोटी लहर को संभाल लेगा। तुम अपनी लहर को अहंकार मत बनाओ। तुम अपनी लहर को उसके हाथ में समर्पित कर दो।
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एक ध्यानी व्यक्ति के लिए जीवन एक खेल है। जीवन उसके लिए मौज है, जीवन एक लीला है, एक नाटक है। वह उसका आनन्द लेता है। वह गंभीर नहीं है। वह तनावमुक्त है।
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सांस खत्म हो और तमन्ना बाकी रहे वह मृत्यु है। सांस बाकी रहे और तमन्ना खत्म हो जाए वह मोक्ष है।
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जो भी है उसे स्वीकार करो, और जब तुम बिना शर्त स्वीकार कर लेते हो, तब सब कुछ सुंदर हो जाता है।
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वृक्षों को देखो, पक्षियों को देखो, बादलों को देखो, तारों को देखो … और अगर तुम्हारी आंखें हैं तो तुम देख सकोगे कि पूरा अस्तित्व आनंदमय है। सब कुछ बस आंनदित है।
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उत्सव मनाने वाले बनो, जश्न मनाओ! पहले से ही यहाँ बहुत कुछ है – फूल खिल रहे हैं, पक्षी गा रहे हैं, सूरज आकाश में चमक रहा है – उत्सव मनाओ! आप सांस ले रहे हो और आप जीवित हैं और आपके पास चेतना है, उत्सव मनाएं!
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भगवान कोई तपस्वी नहीं है, नहीं तो फूल नहीं होते, हरे वृक्ष नहीं होते, केवल रेगिस्तान होते। ईश्वर कोई तपस्वी नहीं है, अन्यथा जीवन में कोई गीत नहीं होता, जीवन में कोई नृत्य नहीं होता– केवल कब्रिस्तान और केवल कब्रिस्तान होते। ईश्वर कोई तपस्वी नहीं है। भगवान जीवन का आनंद लेते हैं।
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आनंद आध्यात्मिक घटना है। यह खुशी या खुशी से पूरी तरह से अलग है। इसका बाहर के साथ, दूसरे के साथ कुछ भी लेना देना नहीं है, यह एक आंतरिक घटना है।
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काम को खेल के रूप में करें और इसका आनंद लें। सब कुछ एक चुनौती है। बस इसे करना है, इसलिए मत कीजिये।
अपना गीत गाओ और अगर कोई नहीं सुनता है, तो इसे अकेले में गाओ और इसका आनंद लो।
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जीवन एक उत्सव बन सकता है यदि आप जानते हैं कि चिंता के बिना कैसे जीना है। अन्यथा जीवन एक लंबी बीमारी बन जाता है, एक बीमारी जो केवल मृत्यु की तरफ ले जाती है।
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ये पेड़ अधैर्य रूप से नहीं उगते हैं। वे एक अनुग्रह के साथ, धैर्य के साथ, विश्वास के साथ बढ़ते हैं। आपके दिमाग के सिवाय कहीं कोई हड़बड़ी नहीं है। यदि आप वास्तव में शांति और आनंद की स्थिति में रहना चाहते हैं, तो आपको चीजों को जल्दी से हासिल करने के लिए अपनी पुरानी आदत को छोड़ना होगा।
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कोई तुम्हारा दुख पैदा नहीं कर रहा है, कोई भी दुख पैदा नहीं कर सकता है और कोई भी आपके आनंद का सृजन भी नहीं कर सकता है। यह पूरी तरह से व्यक्तिगत घटना है।
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अपने जीवन पर पकड़ बनाओ। देखो कि पूरा अस्तित्व जश्न मना रहा है। ये पेड़ गंभीर नहीं हैं, ये पक्षी गंभीर नहीं हैं। नदियाँ और महासागर उग्र हैं, और हर जगह खेल चल रहा है, हर जगह आनंद और आनंद ही है। अस्तित्व को देखो, अस्तित्व को सुनो और इसका हिस्सा बनो।
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मैं तुमसे यह भी नहीं कहता कि परमात्मा को प्रेम करो। मैं तो इतना ही कहता हूं कि तुम बस प्रेम करो और एक दिन तुम पाओगे कि प्रेम करते करते परमात्मा तुम्हारे द्वार पर आ गया है।
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यदि आप फूल को प्रेम करते हों, तो उसे तोड़े नहीं। क्योंकि जैसे आप इसे तोड़ते हो, वह मर जाता है। प्रेम वहीं समाप्त हो जाता है। इसलिए यदि आप एक फूल से प्रेम करते हैं तो उसे वैसे ही रहने दें। प्यार का मतलब कब्ज़ा करना नहीं है। प्यार तो प्रशंसा के बारे में है।
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आपको शक्ति की आवश्यकता तब होती है जब कुछ हानिकारक करना होता है। अन्यथा प्रेम पर्याप्त है, करुणा पर्याप्त है।
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कुछ पा लेने की इच्छा से जो प्रेम होता है, वह लोभ है, लिप्सा है और अपने को समर्पित कर देने का जो एक प्रेम होता है वही भक्ति है।
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प्रेम और युद्ध में यही अंतर है, युद्ध दूसरे को मिटाकर जीता जाता है, प्रेम खुद को मिटा कर जीता जाता है। युद्ध में मिली जीत भी हार है और प्रेम में मिली हार भी जीत के समान है।
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आजादी से ज्यादा किसी को कुछ भी पसंद नहीं है। यहां तक कि प्रेम भी स्वतंत्रता के बाद आता है। स्वतंत्रता का मूल्य सर्वोच्च है। स्वतंत्रता के लिए प्रेम का त्याग किया जा सकता है लेकिन प्रेम के लिए स्वतंत्रता का त्याग नहीं किया जा सकता।
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जब प्यार और नफरत दोनों ही ना हो तो हर चीज साफ़ और स्पष्ट हो जाती है।
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जो व्यक्ति अपरिपक्व होते हैं वे प्यार में पड़ने के बाद एक-दूसरे की स्वतंत्रता को नष्ट कर देते हैं, बंधन बना देते हैं, एक दूसरे को कैद कर लेते हैं। परिपक्व व्यक्ति प्यार में एक-दूसरे को मुक्त होने में मदद करते हैं, वे सभी प्रकार के बंधनों को नष्ट करने के लिए एक-दूसरे की मदद करते हैं। और जब प्रेम स्वतंत्रता के साथ बहता है तो उसमें एक सुंदरता होती है। जब प्रेम निर्भरता के साथ बहता है तो उसमें एक कुरूपता होती है।
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मैं प्यार करता हूं, क्योंकि मेरा प्यार किसी वस्तु पर निर्भर नहीं है। मेरा प्रेम, मेरे प्रेम में होने की अवस्था पर निर्भर है।
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भय हमेशा भविष्य के लिए होता है। भय कभी वर्तमान में नहीं होता।
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असली सवाल यह नहीं है कि मृत्यु के बाद जीवन मौजूद है या नहीं। असली सवाल यह है कि क्या आप मृत्यु से पहले सचेत होकर जिये।
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मित्रता सबसे शुद्ध प्रेम है। यह प्रेम का उच्चतम रूप है जहां कुछ भी मांगा नहीं जाता है, कोई भी शर्त नहीं होती, जहां बस देने में आनंद आता है।
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जिस चीज़ से आपको डर लगे, वहां तलाशने की कोशिश करें और आप पाएंगे कि सभी डर में मौत का डर छिपा है। सब भय मृत्यु का है। मृत्यु एकमात्र भय का स्रोत है।
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लोग सोचते हैं कि जो लोग आत्महत्या करते हैं, वे जीवन के खिलाफ हैं। वे नहीं हैं। वे जीवन के लिए बहुत लालसा से भरे हैं, उनके पास जीवन के लिए बड़ी लालसा है और क्योंकि जीवन उनकी वासना को पूरा नहीं कर रहा है, क्रोध में, निराशा में, वे खुद को नष्ट करते हैं।
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जिस क्षण आप जीवन को गैर-गंभीर, एक खेल के रूप में देखना शुरू करते हैं, आपके दिल से सारा बोझ गायब हो जाता है। मृत्यु का भय, जीवन का, प्रेम का सब कुछ मिट जाता है।
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डर का मतलब हमेशा अज्ञात का डर होता है। डर का मतलब हमेशा मौत का डर होता है। डर का हमेशा मतलब होता है खो जाने का डर – लेकिन अगर आप वास्तव में जीवित रहना चाहते हैं, तो आपको खो जाने की संभावना को स्वीकार करना होगा।
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जब भी कोई ऐसी स्थिति पैदा होती है जो डर पैदा करती है, तो आपके पास दो विकल्प हैं- या तो आप उससे लड़ें या आप उड़ान भरें।
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आप जिसे पाप कहते हैं, वे गलतियों के अलावा कुछ भी नहीं है। और गलतियाँ सीखने का तरीका है। वे लोग जो कभी गलती नहीं करते हैं वे सबसे बेवकूफ लोग हैं।
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मृत्यु के पार जाने का एकमात्र उपाय मृत्यु को स्वीकार कर लो। फिर वह विलीन हो जाता है। निडर होने का एकमात्र तरीका भय को स्वीकार करना है। तब ऊर्जा मुक्त हो जाती है और वह आपकी स्वतंत्रता बन जाती है।
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जब तुम मरते हो, केवल तुम मरते हो – तुम्हारी जगह कोई नहीं मरता। तुम्हारी मृत्यु बिल्कुल व्यक्तिगत होगी। मृत्यु केवल एक ही बात साबित करती है, कि प्रत्येक व्यक्ति अलग-अलग है। और मृत्यु तुम्हारी होने वाली है, तो जीवन किसी और का कैसे हो सकता है? आप उधार जीवन नहीं जी सकते, आपको अपना जीवन जीना है।
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आप कभी भी उतना पीड़ित नहीं होते हैं जितना आप कल्पना करते हैं कि आप पीड़ित हैं। आप उन बीमारियों से ग्रस्त भी नहीं होते हैं जिनसे आप सबसे ज्यादा डरते हैं और न ही उन दुखों से जिन्हें आप डरते हैं।
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दर्द से बचने वाले, आनंद से भी बच जाते हैं। मृत्यु से बचने वाले, जीवन से भी बच जाते हैं। </div><div style="text-align: justify;"> </div>
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विद्या सरनhttp://www.blogger.com/profile/13874233412214088080noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-290840405926959662.post-55468491244123525242021-07-04T09:16:00.010+05:302021-08-16T15:50:05.853+05:30दिलीप कुमार की सम्पूर्ण जीवनी Dilip Kumar Biography in Hindi<div style="text-align: justify;"><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjDNYHZGprmITXzFNxIRJs7z2rrg67oBZ0c3F6Y36fDUYxMZfINnr9wQRRn98YU5rdMLIUB1EBvWCqAoN_pdTV5EYGZ_Vc_h24s-dOcaR7pEl3BTXBCwlzU12DnJF8KiasQ2zvb602gCTWl/s1280/Dilip+Kumar.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="Dilip Kumar Biography in Hindi" border="0" data-original-height="720" data-original-width="1280" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjDNYHZGprmITXzFNxIRJs7z2rrg67oBZ0c3F6Y36fDUYxMZfINnr9wQRRn98YU5rdMLIUB1EBvWCqAoN_pdTV5EYGZ_Vc_h24s-dOcaR7pEl3BTXBCwlzU12DnJF8KiasQ2zvb602gCTWl/s16000/Dilip+Kumar.jpg" /></a></div>दिलीप कुमार की जीवनी Dilip Kumar Biography in Hindi किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं है। उन्होंने अंदाज़, देवदास, मुगल-ए-आज़म, राम और श्याम, क्रांति, विधाता, कर्मा, और सौदागर जैसी सुपरहिट फिल्मों के अभिनय किया और अपनी शानदार अदाकारी के लिए सबसे ज्यादा पुरस्कार जीतने का वर्ल्ड रिकॉर्ड भी बनाया। यूसुफ खान उर्फ दिलीप कुमार ने एक ओर परिवार में दु:ख और कष्ट देखे, तो दूसरी ओर उसी दर्द को अपने अभिनय में उतार 'ट्रेजडी किंग' जैसा खिताब भी पाया। इसीलिए दिलीप कुमार का जीवन परिचय Dilip Kumar Life History in Hindi बेहद रोचक एवं प्रेरक है। हमें उम्मीद है कि आपको दिलीप कुमार की जीवनी पसंद आएगी।</div><div style="text-align: justify;"><h2 style="text-align: center;">दिलीप कुमार की जीवनी Dilip Kumar Biography in Hindi</h2><h3>जन्म एवं परिवार Dilip kumar Birth and Family</h3>11 दिसंबर, 1922 पेशावर, जोकि अब पाकिस्तान में है, में जन्में दिलीप कुमार के पिता का नाम लाला गुलाम सर्वर (Lala Ghulam Sarwar) तथा मां का नाम आयशा बेगम (Ayesha Begum) है। एक्टिंग के महारथी दिलीप कुमार कभी कालेज गये या नहीं, यह जानकारी किसी के पास नहीं है।</div><div style="text-align: justify;"> </div><div style="text-align: center;"><b><span style="font-size: large;">Read: <a href="https://me.scientificworld.in/2016/07/salman-khan-biography-in-hindi.html">Salman Khan Biography in Hindi</a></span> </b><br /></div><div style="text-align: justify;"><br />सन 1930 में दिलीप कुमार का परिवार बॉम्बे में आकर रहने लगा। 1940 में उनका अपने पिता से झगड़ा हो गया, जिससे वे घर छोड़ कर पुणे चले गये। पुणे में उनकी मुलाकात एक कैंटीन के मालिक ताज मोहम्मद शाह से हुई। ताज मोहम्मद की मदद से वे आर्मी क्लब में सैंडविच का स्टाल लगाने लगे। कुछ समय के बाद उनके पिता की तबियत खराब हुई, तो वे अपना काम छोड़ कर मुम्बई लौट आए। <br /><br /><h3>दिलीप कुमार का फिल्मी सफर Dilip Kumar Filmography</h3>फिल्मों में दिलीप कुमार की इंट्री संयोगवश हुई। हुआ यूं कि 1943 में चर्चगेट स्टेशन पर दिलीप कुमार की मुलाकात डॉ मसानी से हुई। वे उनकी उर्दू से बहुत प्रभावित हुए और उन्हें बॉम्बे टॉकीज में काम करने का ऑफर दिया। डॉ. मसानी के आफर के कारण दिलीप कुमार बाम्बे टॉकिज पहुंचे, जहां पर उनकी मुलाकात बॉम्बे टॉकीज (Bombay Talkies) की मालकिन देविका रानी (Devika Rani) से हुई। दिलीप कुमार से मिलकर देविका रानी बहुत खुश हुई। उन्होंने 'ज्वार-भाटा' (Jwar Bhata) फिल्म में दिलीप कुमार को मुख्य भूमिका निभाने का मौका दिया। उस समय तक वे यूसुफ खान के नाम से ही जाने जाते थे। पर देविका रानी के कहने पर उन्होंने अपना नाम दिलीप कुमार रख लिया। <br /> <br />'ज्वार-भाटा' फिल्म 1944 में रिलीज हुयी। पर यह फिल्म बॉक्स आफिस पर कोई कमाल नहीं कर सकी। सन 1947 में उन्हें 'जुगनू' (Jugnu) फिल्म में काम करने का मौका मिला। यह फिल्म बेहद सफल रही। और इस प्रकार दिलीप कुमार की अभिनय की गाड़ी चल निकली।<br /><br />1949 में दिलीप कुमार की फ़िल्म 'अंदाज़' (Andaz) रिलीज़ हुई, जिसमें उन्होंने राजकपूर के साथ काम किया था। यह फिल्म भी बॉक्स आफिस पर बेहद हिट रही। <br /><br />दिलीप कुमार ने 1951 में प्रदर्शित फिल्म दीदार (Deedar) और 1955 की रिलीज़ फिल्म देवदास (Devdas) में गम्भीर भूमिकाएं की, जो बेहद पसंद की गयीं। उनकी इन गम्भीर भूमिकाओं के कारण उन्हें फिल्म इंडस्ट्री में 'ट्रेजडी किंग' कहा जाने लगा। </div><div style="text-align: justify;"> </div><div style="text-align: center;"><b><span style="font-size: large;">Read: <a href="https://me.scientificworld.in/2018/02/sridevi-biography-hindi.html">Sridevi Biography in Hindi</a></span></b><br /></div><div style="text-align: justify;"><br />सन 1960 में के आसिफ की शाहकार मुग़ले-ए-आज़म (Mughal-E-Azam) रिलीज हुई। इस फिल्म में दिलीप कुमार ने सलीम की भूमिका निभाई थी। यह फिल्म भारतीय इतिहास की उस समय तक सबसे बड़ी हिट साबित हुई। <br /><br />1968 में दिलीप कुमार की डबल रोल वाली फिल्म 'राम और श्याम' (Ram Aur Shyam) जारी हुई। इसमें दिलीप कुमार द्वारा निभाये गये डबल रोल ने लोगों का दिल जीत लिया और नतीजतन उन्हें बॉक्स आफिस पर जनता का भरपूर प्यार मिला।<br /> <br />70 के दशक में फिल्म इंडस्ट्री में नए अभिनेताओं का आगमन हुआ। इससे दिलीप कुमार के करियर में थोड़ा सा ठहराव आया। उन्होंने इसे जल्दी ही समझ लिया और 1976 तक फिल्मों से दूरी बना ली। लेकिन 1981 में उन्होंने क्रान्ति (Kranti) फिल्म के जरिए वापसी की। इस फिल्म में उन्होंने चरित्र अभिनेता की भूमिका निभाई। इसके बाद उन्होंने विधाता (1982), दुनिया (1984), कर्मा (1986), इज़्ज़तदार (1990) और सौदागर (1991) जैसी फिल्मों में भी चरित्र अभिनेता का रोल किया और ये सभी फिल्में बेहद सफल रहीं।<br /><br /><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh3VbFqUllDkCmE34Zx4RDZTdRCK6jGFkPT8q28_-m3pze5InTddRAbX8NrwFvfBo1l4DbvsZ1un4AdRNVeyiF2tT39B4G_R-0HewK1ebYaQbjTKly8C27mLrA-06E4RlQ077HT-W6_rXdi/s1280/Film_mugl+e+azam.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="720" data-original-width="1280" height="360" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh3VbFqUllDkCmE34Zx4RDZTdRCK6jGFkPT8q28_-m3pze5InTddRAbX8NrwFvfBo1l4DbvsZ1un4AdRNVeyiF2tT39B4G_R-0HewK1ebYaQbjTKly8C27mLrA-06E4RlQ077HT-W6_rXdi/w640-h360/Film_mugl+e+azam.jpg" width="640" /></a></div><br />दिलीप कुमार ने कुल 59 फिल्मों में अभिनय किया, जिनका विवरण इस प्रकार से है:<br />• 1944 – ज्वार भाटा<br />• 1945 – प्रतिमा<br />• 1947 – मिलन<br />• 1947 – जुगनू<br />• 1948 – शहीद<br />• 1948 – नदिया के पार<br />• 1948 – मेला<br />• 1948 – घर की इज़्ज़त<br />• 1948 – अनोखा प्यार<br />• 1949 – शबनम<br />• 1949 – अंदाज़<br />• 1950 – जोगन<br />• 1950 – बाबुल<br />• 1950 – आरज़ू<br />• 1951 – तराना<br />• 1951 – हलचल<br />• 1951 – दीदार<br />• 1952 – संगदिल<br />• 1952 – दाग़<br />• 1952 – आन<br />• 1953 – शिकस्त<br />• 1953 – फ़ुटपाथ<br />• 1954 – अमर<br />• 1955 – उड़न खटोला<br />• 1955 – इंसानियत<br />• 1955 – देवदास<br />• 1955 – आज़ाद<br />• 1957 – नया दौर<br />• 1957 – मुसाफिर<br />• 1958 – यहूदी<br />• 1958 – मधुमती<br />• 1959 – पैग़ाम<br />• 1960 – कोहिनूर<br />• 1960 – मुग़ल ए आज़म<br />• 1961 – गंगा जमना<br />• 1964 – लीडर<br />• 1966 – दिल दिया दर्द लिया<br />• 1967 – राम और श्याम<br />• 1968 – संघर्ष<br />• 1968 – आदमी<br />• 1970 – सगीना महतो<br />• 1970 – गोपी<br />• 1972 – दास्तान<br />• 1972 – अनोखा मिलन<br />• 1974 – सगीना<br />• 1976 – बैराग<br />• 1981 – क्रांति<br />• 1982 – विधाता<br />• 1982 – शक्ति<br />• 1983 – मज़दूर<br />• 1984 – दुनिया<br />• 1984 – मशाल<br />• 1986 – धरम अधिकारी<br />• 1986 – कर्मा<br />• 1989 – क़ानून अपना अपना<br />• 1990 – इज़्ज़तदार<br />• 1990 – आग का दरिया<br />• 1991 – सौदागर<br />• 1998 – क़िला<br /></div><div style="text-align: justify;"><div style="text-align: center;"><b><span style="font-size: large;">Read: <a href="https://me.scientificworld.in/2021/05/osho-life-history-hindi.html">Osho Biography in Hindi</a></span></b></div><h3>दिलीप कुमार की पहली शादी Dilip Kumar First Marriage</h3><div style="text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgrLSo8TBn-Bd-PIYeThxZ4Q02YUjtuJKtvInEZz4RNAVIaOnqrnAQg1VDcZTJycuIAcXDf1WEAt38DwcEH8gG4VEnWrt0586F5Z65iTaCK3G96AQZmYCxWW6IYAMG3pBZG5MRduvH-VTEp/s1280/saira_banu-marriage-photo1.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="Dilip Kumar First Marriage" border="0" data-original-height="720" data-original-width="1280" height="360" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgrLSo8TBn-Bd-PIYeThxZ4Q02YUjtuJKtvInEZz4RNAVIaOnqrnAQg1VDcZTJycuIAcXDf1WEAt38DwcEH8gG4VEnWrt0586F5Z65iTaCK3G96AQZmYCxWW6IYAMG3pBZG5MRduvH-VTEp/w640-h360/saira_banu-marriage-photo1.jpg" width="640" /></a> </div></div><div style="text-align: justify;">दिलीप कुमार ने 1966 में अभिनेत्री सायरा बानो (Saira Banu) से विवाह किया। उस समय उनकी उम्र 44 वर्ष थी। जबकि सायरा बानो उम्र में उनसे 22 वर्ष छोटी थीं। कहा जाता है कि सायरा बानो दिलीप कुमार के जीवन में आने वाली तीसरी लड़की थीं। सबसे पहले वे कामिनी (Kamini) के प्रति आकर्षित हुए थे। पर कामिनी के सिर पर उनकी बहन के बच्चों का बोझ था, जिसकी वजह से वे दिलीप कुमार से शादी नहीं कर सकी थीं। कामिनी के बाद दिलीप कुमार के जीवन में मधुबाला (Madhubala) की इंट्री हुई थी। मधुबाला अपने परिवार की इकलौती कमाने वाली थीं, इसलिए उनके पिता ने इस सम्बंध को आगे नहीं बढ़ने दिया और उन दोनों के मिलने जुलने तक पर पाबंदी लगा दी थी।</div><div style="text-align: center;"></div><div style="text-align: justify;"><br />जबकि सायरा बानो दिलीप कुमार को तबसे पसंद करती थीं, जब वे 12 साल की थीं। ये 1952 की बात है। उस साल दिलीप कुमार की 'दाग़' फिल्म रिलीज़ हुई थी। और उस फिल्म को देखने के बाद सायरा बानो मन ही मन उन्हें पसंद करने लगी थीं। <br /><br /><h3>दिलीप कुमार की दूसरी शादी Dilip Kumar Second Marriage</h3></div><div style="text-align: justify;">दिलीप कुमार और सायरा बानो की शादीशुदा जिंदगी में 1980 में एक जबरदस्त झटका लगा। हुआ यूं कि बच्चा न होने के कारण दिलीप कुमार काफी अपसेट रहते थे। इसलिए 1980 में उन्होंने हैदराबाद की तलाकशुदा औरत आसमा रहमान (Asma Rehman) से दूसरी शादी कर ली। यह शादी दिलीप कुमार के जीवन की एक बड़ी गल्ती साबित हुई। और जब यह बात उन्हें समझ में आई, तो उन्होंने 1982 में आसमा को तलाक दे दिया और दोबारा सायरा बानो के पास आ गए।</div><div style="text-align: justify;"><br /></div><div style="text-align: justify;"><div style="text-align: center;"><b><span style="font-size: large;"><span style="font-size: large;">Read: <a href="https://me.scientificworld.in/2021/08/begum-hazrat-mahal-biography.html">Begum Hazrat Mahal Biography in Hindi</a></span></span></b></div><h3>दिलीप कुमार के पुरस्कार/सम्मान Dilip Kumar Awards in Hindi </h3>दिलीप कुमार ने अपने 54 सालों के फिल्मी करियर में 59 फिल्मों में अभिनय किया। इनमें जहां 1944 में आई 'ज्वार भाटा' (Jwar Bhata) उनकी पहली फिल्म थी, तो 1998 में आई 'किला' (Qila) उनकी आख़िरी फिल्म रही। अपने इस शानदार फिल्मी सफर के दौरान उन्हें 8 बार सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार (Filmfare Award) मिला। इसके लिए उनका नाम गिनीज बुक आफ वर्ल्ड रिकॉर्ड (Guinness book of World Record) में भी दर्ज है। और उनके इस रिकार्ड को आजतक कोई भी दूसरा अभिनेता नहीं तोड़ सका है। दिलीप कुमार को उनके अभिनय के लिए सन 1995 में फिल्म इंडस्ट्री का सबसे बड़ा सम्मान दादा साहेब फाल्के पुरस्कार (Dadasaheb Phalke Award) तथा 1998 में पाकिस्तान का सर्वोच्च नागरिक सम्मान निशान-ए-इम्तियाज़ (Nishan E Imtiaz) भी दिया जा चुका है। इसके अलावा उन्हें पद्मश्री (Padmashree Award), पद्मभूषण (Padma Bhushan Award) और पद्मविभूषण (Padma Vibhushan Award) सम्मानों से भी नवाज़ा गया है।<br /><br /><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj7pekxXs2YWWB1FhZowFuivas-ldL-2HFXCzCFQ-qr_uwvShlPrwovoeSQMssJo6jP5KyQREs2ReRBU61oXdr5QWai8lhbw3SL0cx_gipVs99Erh3lUdrJSjZTMZtLG9vofBwfQkUMAsXV/s1280/Award_Padma-Vibhushan-by-the-Cabinet-Minister-Rajnath-Singh.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="Dilip Kumar Awards in Hindi" border="0" data-original-height="720" data-original-width="1280" height="360" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj7pekxXs2YWWB1FhZowFuivas-ldL-2HFXCzCFQ-qr_uwvShlPrwovoeSQMssJo6jP5KyQREs2ReRBU61oXdr5QWai8lhbw3SL0cx_gipVs99Erh3lUdrJSjZTMZtLG9vofBwfQkUMAsXV/w640-h360/Award_Padma-Vibhushan-by-the-Cabinet-Minister-Rajnath-Singh.jpg" width="640" /></a></div><br />दिलीप कुमार को मिले सभी पुरस्कार/सम्मान का विवरण इस प्रकार से है:<br />• 1983 – शक्ति फिल्म के लिए फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार <br />• 1968 – राम और श्याम फिल्म के लिए फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार <br />• 1965 – लीडर फिल्म के लिए फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार <br />• 1961 – कोहिनूर फिल्म के लिए फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार <br />• 1958 – नया दौर फिल्म के लिए फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार <br />• 1957 – देवदास फिल्म के लिए फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार – <br />• 1956 – आज़ाद फिल्म के लिएफ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार <br />• 1954 – दाग़ फिल्म के लिएफ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार <br />• 2014 – किशोर कुमार सम्मान – अभिनय के क्षेत्र में<br />• 1980 – मुंबई का शेरिफ <br />• 1995 – दादा साहेब फाल्के पुरस्कार<br />• 1998 – निशान-ए-इम्तियाज़ पाकिस्तान का सर्वोच्च नागरिक सम्मान <br />• 1991 – पद्मभूषण से नवाजा गया।<br />• 2015 – उन्हे पद्म विभूषण अवॉर्ड से सम्मानित हुए।<br /><br /></div><div style="text-align: center;"><b><span style="font-size: large;">Read: <a href="https://me.scientificworld.in/2021/06/ratan-tata-biography.html">Ratan Tata Biography in Hindi</a></span></b> <br /></div><div style="text-align: justify;"> </div><div style="text-align: justify;">दिलीप कुमार ने वर्ष 1961 में एक फिल्म का निर्माण भी किया था, जिसका नाम था गंगा जमुना (Ganga Jamuna)। इस फिल्म में उनके छोटे भाई नासिर खान ने अभिनय किया था। <br /><br />फिल्मी दुनिया में दिलीप कुमार के योगदान के कारण सम्मान स्वरूप उन्हें 1980 में मुम्बई का शेरिफ भी बनाया गया था। इसके अलावा वे वर्ष 2000 में राज्य सभा के सदस्य भी रह चुके हैं। <br /><h3>दिलीप कुमार का निधन Dilip Kumar Death in Hindi</h3></div><div style="text-align: justify;">बॉलीवुड के सबसे चहेते और कलाकार रहे दिलीप कुमार का बुधवार 7 जुलाई 2021 को सुबह निधन हो गया। वह 98 साल के थे और पिछले काफी समय से बीमार चल रहे थे और मुंबई के हिंदुजा हॉस्पिटल में भर्ती थे।</div><div style="text-align: justify;"> <br /></div><div style="text-align: center;"><b><b>यूट्यूब पर सुनें</b> दिलीप कुमार की बायोग्राफी: </b></div><div style="text-align: center;"><b> </b><br /></div><div style="text-align: center;">
<iframe allow="accelerometer; autoplay; clipboard-write; encrypted-media; gyroscope; picture-in-picture" allowfullscreen="" frameborder="0" height="415" src="https://www.youtube.com/embed/MTWT8U0BMkE" title="YouTube video player" width="560"></iframe>
</div><div style="text-align: justify;"> </div><div style="text-align: justify;">दोस्तों, हमें उम्मीद है कि दिलीप कुमार की जीवनी Dilip Kumar Biography in Hindi आपको पसंद आई होगी। अगर आपको उनकी पिक्चर बहुत पसंद आई हो या उससे जुड़ा आपका कोई अनुभव हो, तो प्लीज़ कमेंट करके हमें ज़रूर बताएं। और हां, जब भी कोई आपसे दिलीप कुमार का जीवन परिचय Dilip Kumar Life History in Hindi के बारे में पूछे, तो उसे हमारा पता बताना मत भूलिएगा।<br /></div>Dr. Zakir Ali Rajnishhttp://www.blogger.com/profile/03629318327237916782noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-290840405926959662.post-52918521614374909432021-06-28T22:40:00.010+05:302021-08-16T15:52:46.803+05:30देश को व्यापार से बड़ा मानने वाले रतन टाटा की कहानी (Ratan Tata Biography in Hindi)<div style="text-align: justify;"><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi6QL-GIGeHGcWL5th18CYhYKAuHgu0mzA0uyCwk0EG0sIZoFfW3dg6FsARNUwk6vqnUmcZvDz8rW_IrQAgCfkyRtTywd0vlDvJyTcMdsYSNkyGm4_FEoWTIG-iT-lyq-EnqG3e55KvaqqX/s1280/Ratan+Tata+Biography.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="Ratan Tata Biography in Hindi" border="0" data-original-height="720" data-original-width="1280" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi6QL-GIGeHGcWL5th18CYhYKAuHgu0mzA0uyCwk0EG0sIZoFfW3dg6FsARNUwk6vqnUmcZvDz8rW_IrQAgCfkyRtTywd0vlDvJyTcMdsYSNkyGm4_FEoWTIG-iT-lyq-EnqG3e55KvaqqX/s16000/Ratan+Tata+Biography.jpg" /></a></div><h2 style="text-align: center;">रतन टाटा की कहानी - Ratan Tata Biography in Hindi </h2></div><div style="text-align: justify;">अपनी बुद्दिमत्ता और योग्यता के बल पर टाटा ग्रुप को नई बुलंदियों तक पहुंचाने वाले रतन टाटा एक प्रसिद्ध भारतीय उद्योगपति और टाटा संस के सेवामुक्त चेयरमैन हैं। Ratan Tata Biography in Hindi में हम पढ़ेंगे कि रतन टाटा ने अपने स्वाभिमान के लिए बर्तन मांजने जैसा काम किया, तो इसके साथ ही फोर्ड जैसी कंपनी को अपना अपमान करने के कारण उसे अपनी शैली में सबक भी सिखाया। एक ओर जहां उन्होंने अपने वादे को निभाने के लिए जीवन भर विवाह नहीं किया और अविवाहित रहे, वहीं दूसरी ओर नुकसान सहकर भी उन्होंने पाकिस्तान को उसी की भाषा में जवाब भी दिया।</div><div style="text-align: justify;"> </div><div style="text-align: center;"><b><span style="font-size: large;">Read: <a href="https://me.scientificworld.in/2021/07/dilip-kumar-biography.html">Dilip Kumar Biography in Hindi</a></span></b><br /></div><div style="text-align: justify;"><br />Ratan Tata Life Hystory in Hindi इस बात का उदाहरण है कि अपने कार्य एवं व्यवहार के द्वारा सैकड़ों प्रेरक उदाहरण पेश करने वाले सर रतन टाटा युवाओं के रियल हीरो हैं। तो आइए जानते हैं सेवा, समर्पण और देशप्रेम की प्रतिूर्तित महान उद्योगपति सर रतन टाटा के जीवन की रोचक और महत्वपूर्ण बातें–<br /></div><div><div style="text-align: justify;"><br /><h3>
रतन टाटा का जन्म एवं प्रारंभिक जीवन - Ratan Tata Life History in Hindi</h3>
रतन टाटा का पूरा नाम रतन नवल टाटा है। उनका जन्म सूरत शहर में 28 दिसंबर, 1937 में एक पारसी परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम नवल टाटा और मां का नाम सोनू था। 10 साल की उम्र में आपसी मतभेद के कारण उनके माता-पिता के बीच तलाक हो गया था। तलाक के बाद पिता ने सिमोन टाटा से दूसरी शादी की थी। रतन टाटा का एक सौतेला भाई भी है, जिसका नाम नोएल टाटा नाम है। रतन टाटा के माता-पिता में तलाक होने के बाद उनका पालन-पोषण उनकी दादी नवाजबाई टाटा ने किया था। <br /><br />
रतन टाटा की शुरुआती पढ़ाई मुंबई के कैंपियन स्कूल में हुई। कुछ समय के बाद उनका ऐडमीशन कैथेड्रल एंड जॉन कॉनन स्कूल में हो गया, जहां से उन्होंने माध्यमिक शिक्षा पूरी की। ग्रेजुएशन की पढ़ाई के लिए उन्होंने न्यूयॉर्क की कॉर्निल यूनिवर्सिटी में प्रवेश लिया। वे युवावस्था से अपने पैरों पर खड़े होना चाहते थे और किसी पर बोझ नहीं बनना चाहते थे। इसलिए उन्होंने पढ़ाई के दौरान होटल में बर्जन मांजने से लेकर कई छोटे मोटे काम भी किये। सन 1959 में उन्हें स्ट्रक्चरल इंजीनियरिंग के साथ वास्तुकला में डिग्री प्राप्त हुई। बाद में उन्होंने सन 1975 में हार्वर्ड बिजनेस स्कूल से एडवांस्ड मैनेजमेंट प्रोग्राम भी पूरा किया।</div><div style="text-align: justify;"><br />
रतन टाटा ने अपनी पढ़ाई कम्प्लीट करने के बाद लॉस एंजिल्स और कैलिफोर्निया में रह कर कुछ समय तक जोन्स, एमोंस और IMB जैसी कंपनियों में काम किया और अपने अनुभव को समृद्ध किया।<br /><br />
परिवार के आग्रह पर सन 1961 में वे भारत लौटे और उन्होंने टाटा ग्रुप के साथ जुड़े। शुरूआत में उन्हें जमशेदपुर से टाटा स्टील के शॉप फ्लोर पर काम मिला। पर उनकी लगन और कार्यशैली को देखते हुए उन्हें सन 1970 में मैनेेजमेंट में प्रमोट कर दिया गया।<br /><br /><h3>
रतन टाटा का संघर्ष और सफलता - Ratan Tata Success Story in Hindi</h3>
सन 1971 में रतन टाटा को टाटा समूह की टीवी और वीडियो बनाने वाली कंपनी नेल्को में प्रभारी निदेशक का पदभार मिला। वह कंपनी उस समय घाटे में चल रही थी। उन्होंने अपने कौशल से 3 सालों में कंपनी का मार्केट शेयर 2 प्रतिशत से 20 प्रतिशत तक पहुंचा दिया। </div><div style="text-align: justify;"> </div><div style="text-align: center;"><b><span style="font-size: large;">Read: <a href="https://me.scientificworld.in/2018/08/atal-bihari-vajpayee-biography-hindi.html">Atal Bihari Vajpayee Biography in Hindi</a></span></b><br /></div><div style="text-align: justify;"><br />
हालांकि, बाद में इमरजेंसी की वजह से आई आर्थिक मंदी में कंपनी में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा। उसी दौरान सन 1977 में यूनियन के कर्मचारियों ने हड़ताल कर दिया, जिसकी वजह से टाटा ग्रुप को नेल्को कंपनी बंद करनी पड़ी।<br /><br />
इसके बाद रतन टाटा को कपड़ा बनाने वाली कंपनी इम्प्रेस मिल्स (Empress Mills) की जिम्मेंदारी सौंपी गई। यह कंपनी भी उस समय घाटे में चल रही थी। रतन टाटा ने इसे संभालने के लिए काफी प्रयत्न किये। उन्होंने कंपनी को उबारने के लिए मैनेजमेंट से 50 लाख का निवेश करने का आग्रह किया। लेकिन बाजार में इसके कपड़े की मांग न होने के कारण मैनेजमेंट ने यह निवेश करने से इनकार कर दिया और कुछ दिनों के बाद ही कंपनी को भी बंद कर दिया गया।</div><div style="text-align: justify;"><br />
उस वक्त टाटा समूह के अध्यक्ष जेआरडी टाटा थे। हालांकि उस समय तक रतन टाटा कोई बड़ा कारनामा नहीं कर सके थे, पर उनकी ईमानदारी और काम के प्रति जुनून को देख कर जेआरडी टाटा उनसे काफी प्रभावित थे। इसलिए उन्होंने 1981 में रतन टाटा को टाटा इंडस्ट्रीज का उत्ताराधिकारी घोषित कर दिया। उनके इस निर्णय का काफी विरोध हुआ, जो काफी समय तक चलता रहा। लेकिन अन्ततोगत्वा 1991 में उन्हें टाटा इंडस्ट्रीज व इसकी अन्य कंपनियों के अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी सौंप दी गयी। <br /><br /><h3>
फेल हुई टाटा इंडिका</h3></div><div style="text-align: justify;">रतन टाटा की अध्यक्षता में टाटा ग्रुप ने अपने कई अहम प्रोजेक्ट शुरू किए और देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी उन्होंने कंपनी को नई पहचान दिलवाई। उनके नेतृत्व में टाटा मोटर्स की स्थापना हुई, जिसने कतई उतार चढ़ाव तो देखे, पर कामयाबी की नई मिसालें भी कायम कीं।<br /><br />
रतन टाटा के नेतृत्व में टाटा मोटर्स ने 1998 में पहली पूर्णतः भारतीय कार 'टाटा इंडिका' लांच की। पर यह कार मार्केट में चल नहीं सकी। इससे कंपनी को बेहद नुकसान हुआ और मैनेजर्स ने कंपनी को बेचने का सुझाव दिया। <br /><br /><h3>
फोर्ड से लिया अपमान का बदला</h3></div><div style="text-align: justify;">मैनेजर्स के सुझाव पर रतन टाटा की फोर्ड कंपनी के चेयरमैन बिल फोर्ड के साथ मीटिंग रखी गयी। यह मीटिंग 3 घंटे तक चली। उस मीटिंग में बिल फोर्ड ने बहुत रूखा व्यवहार किया। उसने मीटिंग में कहा कि अगर आपको कार बनानी आती नहीं थी, तो इसमें इतने पैसे क्यों इन्वेस्ट किये। उसने टाटा मोटर्स को खरीदने के लिए बेहद कम राशि का आफर दिया और कहा कि हम आपकी कंपनी खरीद कर आप पर बहुत बड़ा एहसान कर रहे हैं। इससे रतन टाटा का आत्मसम्मान चोटिल हो गया ओर वे डील छोड़ कर चले गये। उन्होंने नये उत्साह से काम किया और इंडिका का नया वर्जन 'इंडिका वी2' लांच किया, जोकि काफी पसंद किया गया। इस तरह टाटा मोटर्स की गाड़ी चल पड़ी।</div><div style="text-align: justify;"> </div><div style="text-align: justify;"></div><div style="text-align: center;"><b><span style="font-size: large;">Read: <a href="https://me.scientificworld.in/2021/06/sandeep-maheshwari-biography.html">Sandeep Maheshwari Biography in Hindi</a></span></b><br /></div><div style="text-align: justify;"><br />
2008 में समय ने पलटा खाया। फोर्ड कंपनी का चेयरमैन बिल फोर्ड, जिसने रतन टाटा का अपमान किया था, उसकी लग्ज़री कार जगुआर और लैंड रोवर फ्लाप हो गयीं। फोर्ड कंपनी दीवालिया होने के कगार पर जा पहुंची। ऐसे में रतन टाटा ने इन्हें खरीदने का प्रस्ताव रखा। तब बिल फोर्ड उनके आफिस में मिलने आया। रतन टाटा को बिल फोर्ड का वह अपमान याद था। पर उन्होंने इसके बावजूद बहुत सज्जनता का परिचय दिया और 2.3 बिलियन डालर में जगुआर और लैंड रोवर को खरीद लिया। यह देख कर बिल फोर्ड ने कहा, सर आपने जगुआर और लैंड रोवर खरीद कर हम पर बहुत बड़ा एहसान किया है।</div><div style="text-align: justify;"><br /><h3>
विश्व की सबसे सस्ती कार बनाई</h3></div><div style="text-align: justify;">एक बार रतन टाटा ने बारिश में भीगते हुए एक दम्पत्ति की बात सुनी, जिसमें वे लोग कह रहे थे कि अगर एक डेढ़ लाख में कार मिलती, तो हम भी कार खरीद लेते। इससे रतन टाटा दुनिया की सबसे सस्ती कार बनाने के लिए प्रेरित हुए। उनका यह सपना सन 2008 में पूरा हुआ, जब उन्होंने नई दिल्ली में आयोजित ऑटो एक्सपो में 'नैनो' कार का उद्घाटन किया। <br /><br />
रतन टाटा के नेतृत्व में टाटा ग्रुप्स ने अनेक क्षेत्रों में अपना विस्तार किया। उन्होंने 2000 में कैनेडा की टी बैग्स बनाने वाली कंपनी टेटली को खरीदा और दुनिया की सबसे बड़ी टी बैग्स बनाने वाली कंपनी बन गये। सन 2004 में उन्होंने साउथ कोरिया की डेवू कमर्शियल वेहिकल को खरीदा, जिसका नाम बदल कर टाटा डेवू कमर्शियल वेहिकल रखा गया। 2007 में टाटा ने लंदन के कोरस ग्रुप को खरीदा। यह कंपनी बाद में टाटा स्टील योरोप के नाम से जानी गयी।<br /><br />
रतन टाटा के नेतृत्व में टाटा ग्रुप की पूरी दुनिया में साख बढ़ी। एक ओर वह विश्व का पांचवां सबसे बड़ा इस्पात उत्पादक संस्थान बन गया, दूसरी ओर उसने इंटरनेट आधारित बिजनेस में भी ध्यान दिया और ओला, पेटीएम, जियोमी, लेंसकार्ट, ब्लू स्टोन, फस्र्ट क्राई, स्नैपडील, जिवामे, कार देखो, अर्बन लैैडर, क्याज़ूंगा, कैशरो डॉट कॉम जैसी तमाम कंपनियों में भी निवेश किया<br /><br /><h3>
टाटा ग्रुप से लिया रिटायरमेंट</h3></div><div style="text-align: justify;">रतन टाटा ने 21 साल तक टाटा ग्रुप्स की सेवा की। इसके बाद 28 दिसंबर 2012 को उन्होंने टाटा ग्रुप की सभी कंपनियों से रिटायर्ड हो गए। उन्होंने अपने कार्यकाल में टाटा कंपनी का रेवेन्यु 40 गुना और प्रॉफिट 50 गुना से ज्यादा बढाया। ये उनकी कार्यकुशलता का ही परिणाम है कि आज टाटा ग्रुप्स की 100 से ज्यादा कंपनी हैं, जो 100 से ज्यादा देशों में बिजनेस कर रही हैं। उनकी कंपनियों में 7 लाख से ज्यादा कर्मचारी काम करते हैं और वे अपने प्रॉफिट का 66 प्रतिशत हिस्सा डोनेट कर देते हैं।<br /><br /><h3>
रतन टाटा को मिले पुरस्कार -Ratan Tata Awards in Hindi</h3>
रतन टाटा को उनकी महान उपलब्धियों के लिए सिर्फ देश से ही नहीं पूरे विश्व से ढ़ेरों पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए हैं। इन पुरस्कारों में मुख्य रूप से डॉक्टरेट की आनरेरी डिग्री हैं, जो उन्हें देश और विदेश की लगभग डेढ़ दर्जन यूनिवर्सिटी ने प्रदान की हैं। इसके अलावा उन्हें अरूगवे, फ्रांस, सिंगापुर, ब्रिटेन, इटली सहित अनेक देशों की सरकारों ने वहां के सर्वोच्च नागरिक सम्मानों से भी सम्मानित किया जा चुका है।</div><div style="text-align: justify;"> </div><div style="text-align: center;"><b><span style="font-size: large;">Read: <a href="https://me.scientificworld.in/2016/07/salman-khan-biography-in-hindi.html">Salman Khan Biography in Hindi</a></span></b> <br /></div><div style="text-align: justify;"> </div><div style="text-align: justify;"></div><div style="text-align: justify;">रतन टाटा को मिले पुरस्कारों का विवरण इस प्रकार है-</div><div style="text-align: justify;"><br />बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन के मानद डॉक्टर, ओहियो स्टेट यूनिवर्सिटी, 2001<br />उरुग्वे के ओरिएंटल गणराज्य की पदक, उरुग्वे सरकार, 2004<br />प्रौद्योगिकी के मानद डॉक्टर, एशियन इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी, 2004<br />अंतर्राष्ट्रीय गणमान्य अचीवमेंट अवार्ड, 2005<br />साइंस की मानद डॉक्टर, वारविक विश्वविद्यालय, 2005<br />साइंस की मानद डॉक्टर, इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी मद्रास, 2006<br />जिम्मेदार पूंजीवाद पुरस्कार, 2006<br />मानद फैलोशिप, अर्थशास्त्र और राजनीति विज्ञान के लंदन स्कूल, 2007<br />परोपकार की कार्नेगी पदक, अंतर्राष्ट्रीय शांति के लिए कार्नेगी एंडोमेंट, 2007<br />लीडरशिप अवार्ड, 2008<br />लॉ की मानद डॉक्टर, कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय, 2008<br />साइंस की मानद डॉक्टर, इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी मुंबई, 2008<br />साइंस की मानद डॉक्टर, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी खड़गपुर, 2008<br />मानद नागरिक पुरस्कार, सिंगापुर सरकार, 2008<br />मानद फैलोशिप, इंजीनियरिंग और प्रौद्योगिकी संस्थान, 2008<br />प्रेरित होकर लीडरशिप अवार्ड, प्रदर्शन रंगमंच, 2008<br />पद्मविभूषण, भारत सरकार, 2008<br />ब्रिटिश साम्राज्य के आदेश के मानद नाइट कमांडर, यूनाइटेड किंगडम, 2009<br />इंजीनियरिंग में लाइफ टाइम योगदान पुरस्कार, इंजीनियरिंग इंडियन नेशनल एकेडमी, 2009<br />इतालवी गणराज्य की मेरिट के आदेश के ‘ग्रैंड अधिकारी’ का पुरस्कार, इटली सरकार, 2009<br />लॉ की मानद डॉक्टर, कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय, 2010<br />हैड्रियन पुरस्कार, विश्व स्मारक कोष, 2010<br />शांति पुरस्कार के लिए ओस्लो व्यापार, शांति प्रतिष्ठान के लिए व्यापार, 2010<br />लीडरशिप अवार्ड में लीजेंड, येल विश्वविद्यालय, 2010<br />कानून की मानद डॉक्टर, पेपरडाइन विश्वविद्यालय, 2010<br />साल के बिजनेस लीडर, एशियाई पुरस्कार, 2010<br />मानद फैलो, इंजीनियरिंग की रॉयल अकादमी, 2012<br />व्यापार मानद डॉक्टर, न्यू साउथ वेल्स विश्वविद्यालय, 2012<br />विदेश एसोसिएट, नेशनल एकेडमी ऑफ इंजीनियरिंग, 2013<br />वर्ष का सर्वश्रेष्ठ युवा उद्यमी, 2013<br />व्यापार व्यवहार के मानद डॉक्टर, कार्नेगी मेलॉन विश्वविद्यालय, 2013<br />डॉक्टरेट की मानद उपाधि, एम्स्टर्डम विश्वविद्यालय, 2013<br />व्यापार के मानद डॉक्टर, सिंगापुर मैनेजमेंट यूनिवर्सिटी, 2014<br />सयाजी रत्न पुरस्कार, बड़ौदा मैनेजमेंट एसोसिएशन, 2014<br />ब्रिटिश साम्राज्य के आदेश के मानद नाइट ग्रैंड क्रॉस, यूनाइटेड किंगडम, 2014<br />कानून की मानद डॉक्टर, न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय, कनाडा, 2014<br />ऑटोमोटिव इंजीनियरिंग की मानद डॉक्टर, क्लेमसन विश्वविद्यालय, 2015<br /><br /><h3>रतन टाटा का प्रेम सम्बंध - Ratan Tata Love Life</h3>
अपने जीवन में आदर्शों को महत्वपूर्ण स्थान देने वाले सर रतन टाटा आजीवन कुंवारे रहे और इसकी सिर्फ और सिर्फ वजह इतनी सी है कि उन्होंने जिस लड़की से प्यार किया था उससे वादा किया था कि मैं शादी करूंगा तो सिर्फ तुमसे, किसी और से नहीं। <br /></div><div style="text-align: justify;"></div><div style="text-align: justify;"><br />
हुआ यूं कि उन्हें लॉस एंजिलस की एक लड़की से प्यार हो गया। धीरे धीरे बात शादी तक पहुंची। उनकी शादी की डेट तय होने लगी। लेकिन तभी उनकी दादी का फोन आ गया कि उनकी तबियत बहुत खराब है। इसलिए उन्हें शादी का प्रोग्राम कैंसिल करके इंडिया लौटना पड़ा। यह 1962 की बात है। उस समय भारत चीन का युद्ध चल रहा था। उन्होंने अपनी प्रेमिका से कहा कि मेरे साथ इंडिया चलो, वहीं पर शादी करेंगे। पर भारत चीन युद्ध के कारण उसने इंडिया जाने से इनकार कर दिया। <br /><br />
रतन टाटा अपनी दादी से बहुत प्यार करते थे। उन्होंने ही रतन टाटा का पालन पोषण किया था, इसलिए वे तुरंत इंडिया लौट आए। इससे उनकी प्रेमिका बहुत नाराज हो गयी और उसने गुस्से में किसी और से शादी कर ली। रतन टाटा को जब यह बात पता चली, तो वे बहुत दुखी हुए। पर चूंकि उन्होंने अपनी प्रेमिका से वादा किया था कि अगर मैं शादी करूंगा, तो सिर्फ तुमसे करूंगा, इसलिए उन्होंने फिर कभी किसी से शादी नहीं की और आजीवन कुंआरे रहे।</div><div style="text-align: justify;"> </div><div style="text-align: center;"><b><span style="font-size: large;">Read: <a href="https://me.scientificworld.in/2021/05/jeff-bezos-life-history-hindi.html">Jeff Bezos Biography in Hindi</a></span></b><br /></div><div style="text-align: justify;"><br />
रतन टाटा ने अपने वादे को हमेशा निभाया, चाहे उसके लिए उन्हें नुकसान ही क्यों न सहना पड़े। ऐसी ही एक रोचक घटना हम आपके साथ शेयर करना चाहेंगे। हुआ यूं कि एक बार उन्हें एक स्कूल ने अपने एनुअल फंक्शन में चीफ गेस्ट के रूप में बुलाया। जब वे वहां पहुंचे, तो सभी बच्चे उनसे मिलने के लिए उतावले हो गये और वहां अफरातफरी का माहौल हो गया। इसपर रतन टाटा ने बच्चों से कहा कि आप लोग शान्ति से बैठें, मैं सभी लोगों से मिलकर ही यहां से जाउंगा। पर संयोग कुछ ऐसा बना कि वह कार्यक्रम काफी लम्बा खिंच गया। तब तक उनकी फ्लाइट का समय हो गया। पर रतन टाटा ने बच्चों के लिए अपनी फ्लाइट छोड़ दी और सभी बच्चों से मिलने के बाद ही वहां से लौटे।<br /><br />
रतन टाटा सिर्फ वादे के ही पक्के नहीं हैं, वे अपने देश से भी सच्चा प्यार करते हैं और उसके लिए नुकसान भी सहने को तैयार रहते हैं। ये उनके जीवन की दो घटनाओं से पता चलता है। पहली घटना उस समय की है, जब
मुंबई के 26/11 के अटैक के बाद उन्होंने ताज होटल की मरम्मत के लिए टेंडर निकाला था। उस समय पाकिस्तान के दो बिजनेसमैन ने एक मंत्री के जरिए उनके होटल की मरम्मत का काम करने में रूचि दिखाई। इसके लिए वे मार्केट रेट से बेहद कम काम पर काम करने को तैयार थे। इसपर रतन टाटा ने मंत्री को जवाब देते हुए कहा कि मैं इतना बेशर्म नहीं हूं कि जिस देश का आतंकवादी हमारे देश में आकर नरसंहार करे, मैं थोड़े से पैसों के लालच में उसी देश के लोगों से होटल की मरम्मत करवाऊं। <br /><br />
ऐसी ही एक घटना पाकिस्तान सरकार के साथ की भी है, जोकि 26/11 के बाद की है। एक बार उनसे एक एजेंट ने सम्पर्क किया और कहा कि पाकिस्तान सरकार पुलिस डिपार्टमेंट के लिए कई हजार टाटा सूमो खरीदना चाहती है। इसके लिए आप एक बार यहां आकर मिल लें। इसपर रतन टाटा ने जवाब देते हुए कहा कि जिस देश की सरकार हमारे देश में आतंकवादी भेज कर नरसंहार करवाती है, ऐसी सरकार के साथ बिजनेस करना तो दूर मैं उससे बात करना भी गुनाह समझता हूं। कहते हुए उन्होंने फोन डिस्कनेक्ट कर दिया।<br /><br />
एक अत्यंत सफल बिज़नेसमैन, एक नेकदिल इंसान के साथ ही रतन टाटा एक प्रशिक्षित पायलट भी हैं और अमेरिकी युद्धक विमान एफ-16 को भी उड़ा चुके हैं। वे आज भी टाटा ट्रस्ट के अध्यक्ष हैं और मुंबई के कोलाबा स्थित अपने फ्लैट में अपने दो कुत्तों मैक्सिमस और टीटो के साथ रहते हैं। उन्होंने अपने व्यापार और व्यवहार के द्वारा जिन आदर्शों की स्थापना की है, वे अतुलनीय हैं। यही कारण है कि सिर्फ देश के ही नहीं बल्कि देश के बाहर के लोग भी उन्हें बेहद इज्जत देते हैं और बड़े सम्मान के साथ उन्हें सर रतन टाटा कहकर बुलाते हैं।</div><div style="text-align: justify;"> </div><div style="text-align: center;"><b><b>यूट्यूब पर सुनें</b> रतन टाटा की बायोग्राफी : </b></div><div style="text-align: center;"><b> </b><br /></div></div>
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</center>विद्या सरनhttp://www.blogger.com/profile/13874233412214088080noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-290840405926959662.post-28110444008954348822021-06-20T12:39:00.075+05:302021-07-19T08:26:56.295+05:30बर्नार्ड अरनॉल्ट की सफलता की कहानी - Bernard Arnault Biography in Hindi<div><div style="text-align: justify;"><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgPvsZoSXv3B96qamQsAU6aQvCOh8UsVfILfZWn77V5k6JqJvo5e6SgRci7DuaOUTc1yj9-uOiZjWWhzjMUot3tI6avjgIXWwiFWiW229CzcOWgbJVKbjK0UEk70LVvUqmXQgpkJ4pkDYEz/s1280/Bernard+Arnault.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="Bernard Arnault Biography in Hindi" border="0" data-original-height="720" data-original-width="1280" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgPvsZoSXv3B96qamQsAU6aQvCOh8UsVfILfZWn77V5k6JqJvo5e6SgRci7DuaOUTc1yj9-uOiZjWWhzjMUot3tI6avjgIXWwiFWiW229CzcOWgbJVKbjK0UEk70LVvUqmXQgpkJ4pkDYEz/s16000/Bernard+Arnault.jpg" /></a></div>आज हम आपके लिए बर्नार्ड अरनॉल्ट का जीवन परिचय Bernard Arnault Biography in Hindi लेकर आए हैं। बर्नार्ड एक सफलतम बिज़नेसमैन हैं और दुनिया की सबसे बड़ी लक्ज़री कंपनी LVMH के चेयरमैन और सीईओ के रूप में जाने जाते हैं।<br /><br />बर्नार्ड अरनॉल्ट ने सबसे पहली बार दुनिया का ध्यान अपनी तरफ तब खींचा था, जब मार्च 2019 में उन्होंने वॉरेन बफेट Warren Buffet को पछाड़ कर दुनिया के तीसरे सबसे अमीर व्यक्ति के स्थान पर कब्ज़ा जमाया था। इसके बाद 20 जून 2019 को उन्होंने बिल गेट्स को पीछे छोड़ा था और वे दुनिया के दूसरे सबसे अमीर व्यक्ति के रूप में स्थापित हो गये थे।<br /><br />लेकिन 72 वर्षीय बर्नार्ड यहीं पर नहीं रुके। उन्होंने 27 मई, 2021 को एक बार फिर दुनिया को चौंकाया, जब दुनिया के सबसे अमीर व्यक्ति जेफ बेज़ोस (<a href="https://me.scientificworld.in/2021/05/jeff-bezos-life-history-hindi.html" target="_blank"><b>Jeff Bezos</b></a>) की नेट वर्थ 186 बिलियन डॉलर को पीछे छोड़ते हुए उन्होंने 186.3 बिलियन डॉलर के साथ <b>नम्बर वन का ताज</b> हथिया लिया। आज यानी 19 जून, 2021 तक बर्नार्ड की नेट वर्थ 198 बिलियन डॉलर तक पहुंच चुकी है।<br /><br />बर्नार्ड अरनॉल्ट के बारे में इतना कुछ जानने के बाद जरूर आपके मन में बर्नार्ड अरनॉल्ट का जीवन परिचय Bernard Arnault Biography in Hindi की इच्छा हो रही होगी। तो आइए जानते हैं कि आखिर यह 72 साल के बुज़ुर्ग बर्नार्ड अरनॉल्ट कौन हैं और कैसे वे इस मकाम तक पहुंचे हैं?</div><div style="text-align: justify;"><h2 style="text-align: center;">बर्नार्ड अरनॉल्ट का जीवन परिचय <br /></h2><h2 style="text-align: center;">Bernard Arnault Biography in Hindi</h2>
बर्नार्ड अरनॉल्ट (Bernard Arnault) का पूरा नाम बर्नार्ड जीन एटीएन्ने अरनॉल्ट (Bernard Jean Étienne Arnault) है। इनका जन्म 5 मार्च 1949 को France के रौबैक्स, फ्रांस में हुआ था। बर्नार्ड के पिता जीन लियॉन अरनॉल्ट Jean Leon Arnault एक मैन्युफैक्चरर थे और इनकी माता मैरी जोसफ सेविनल Marie Josephe Arnault के नाम से जानी जाती हैं। </div><div style="text-align: justify;"> </div><div style="text-align: center;"><span style="font-size: large;">Read: <a href="https://me.scientificworld.in/2021/06/elon-musk-biography-hindi.html">Elon Musk Biography in Hindi</a></span><br /></div><div style="text-align: justify;"><br />
बर्नार्ड की शुरूआती पढ़ाई रौबैक्स, फ्रांस में हुई। इसके बाद इन्होंने लाइस मैक्सेन्स वांडर मर्च यूनिवर्सिटी Lycée Maxence Van Der Meersch से ग्रेजुएशन कंप्लीट किया और फिर पेरिस के इकोल पॉलीटेक्निक पलसेउ Ecole Polytechnique Palaiseau से 1971 में इंजीन्यरिंग की डिग्री हासिल की।
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बर्नार्ड अरनॉल्ट का बिजनेस Bernard Arnault Bussiness in Hindi</h3></div><div style="text-align: justify;">ग्रेजुएशन के बाद बर्नार्ड अपने पिता की सिविल इंजिनियरिंग कंपनी 'फेरेट सेविनेल' ‘Ferret Savinel’ में काम करने लगे। उन्होंने कंपनी में बदलाव के लिए अपने पिता को कई महत्वपूर्ण सुझाव दिये, जिससे उनकी कंपनी तेज़ी से आगे बढ़ने लगी।
<br /><br />
1976 में बर्नार्ड के पिता को 40 मिलियन French का फायदा दिलाया। इससे उनके पिता बर्नार्ड की प्रतिभा को पहचान गये और उनके सुझावों पर तेजी से काम करने लगे। इसी दौरान बर्नार्ड ने अपने पिता को रियल स्टेट में हाथ आजमाने का सुझाव दिया। उनके पिता ने बर्नार्ड के इस सुझाव पर अमल किया और इस प्रकार उनकी कंपनी 'फेरिनेल' ‘Ferinel’ का जन्म हुआ।
<br /><br /></div><div style="text-align: justify;">सन 1981 में फ्रांस की सत्ता में परिवर्तन हुआ और वहां पर फ्रेंच सोशलिस्ट सत्ता में आ गये। इस दौरान कुछ ऐसी स्थितियां बनीं कि सरकार ने अरनॉल्ट फैमिली को देश निकाला दे दिया। सरकार के इस फैसले से अरनॉल्ट फैमिली बेहद आहत हुई और वह अमेरिका चली गयी।
<br /><br /><h3>कैब ड्राइवर ने दिया सफलता का सूत्र </h3></div><div style="text-align: justify;">एक पुरानी कहावत है कि जो कुछ होता है, अच्छे के लिए होता है। बर्नार्ड का यह देश निकाला भी उनके लिए एक ऐसा ही अवसर साबित हुआ। एक दिन की बात है। बर्नार्ड के साथ उस दिन कुछ ऐसा हुआ कि उन्हें कैब से जाना पड़ा। रास्ता लम्बा था, सो वे कैब के ड्राइवर से बात करने लगे। ड्राइवर उनके बात करने के लहज़े से पहचान गया। उसने पूछा— ''सर, आप कहीं बाहर से आए हैं क्या, यहां के तो नहीं लगते।'' इसपर बर्नार्ड ने बताया कि वे फ्रांस के रहने वाले हैं। फिर वे बोले, ''फ्रांस के बारे कुछ जानते हो?'' इस पर वह ड्राइवर मुस्कराया और धीरे से बोला, ''सॉरी सर, मैं फ्रांस के बारे में ज़्यादा तो नहीं जानता। पर हां, मैंने क्रिस्टियान डियॉर का नाम सुना है!'' </div><div style="text-align: justify;"> </div><div style="text-align: center;"><span style="font-size: large;">Read: <a href="https://me.scientificworld.in/2021/06/ratan-tata-biography.html">Ratan Tata Biography in Hindi</a></span><br /></div><div style="text-align: justify;"><br />
कैब ड्राइवर की यह बात बर्नार्ड अरनॉल्ट के दिमाग में घर कर गयी। सन 1983 में फ्रांस में सत्ता परिवर्तन होने पर अरनॉल्ट फैमिली फ्रांस वापस लौट आई। फ्रांस लौटने के बाद भी बर्नार्ड के मन से ड्राइवर की वह बात नहीं निकली। उन्हें लगा कि फ्रांस की पहचान उनके फैशन प्रोडक्ट्स से है। जिसके लिए उसे सारी दुनिया के लोग जानते हैं। इसलिए मुझे इस फील्ड में निवेश करना चाहिए।
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और तभी बिल्ली के भाग्य से छींका टूटने की कहावत भी फलित हो गयी। हुआ यूं कि सन 1984 में लगातार घाटे में चल रही फ्रांस की चर्चित कंपनी बाउसैक Boussac बिकने के कगार पर जा पहुंची। उसका एक ब्रांड था क्रिस्टियान डियॉर Cristian Dior, जिसकी कैब ड्राइवर ने चर्चा की थी। बर्नार्ड ने इस अवसर को लपक लिया और 95 बिलियन डॉलर में बाउसैक को खरीद लिया।
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इसी बीच फ्रांस के मशहूर फैशन ब्रांड लुई विदॉन Louis vuitton का एक अन्य कंपनी म्वाएट एनिसी में मर्जर हो गया, और इस तरह एलवीएमएच LMVH ग्रुप अस्तित्व में आया। इस ग्रुप के पास डियोर का परफ्यूम बिजनेस भी था। इस वजह से बर्नार्ड की इस कंपनी में रुचि जागी और उन्होंने उसके 24 पर्सेंट शेयर्स खरीद लिये।
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सन 1989 तक बर्नार्ड ने LMVH में 01 बिलियन डॉलर का इनवेस्टमेंट किया और उसके 43.5 प्रतिशत शेयर अपने नाम कर लिये। इसी बीच 13 जनवरी, 1989 को कंपनी के एक्ज़ीक्यूटिव मैनेजमेंट बोर्ड का इलेक्शन हुआ, जिसमें वे 35 प्रतिशत वोटिंग सपोर्ट से कंपनी के चेयरमैन चुन लिये गये। कंपनी के चेयरमैन बनने के बाद बर्नार्ड ने कई क्रान्तिकारी फैसले लिये, जिससे कंपनी के बिज़नेज में ज़बरदस्त उछाल आया। बर्नार्ड की नीतियों की वजह से 11 साल में कंपनी का बिज़नेस 15 गुना बढ़ गया और उसका प्रॉफिट 500 प्रतिशत तक जा पहुंचा।</div><div style="text-align: justify;"><br />
बर्नार्ड अरनॉल्ट यहीं पर नहीं रूके। उनका फैशन कंपनियों के प्रति जुनून धीरे धीरे बढ़ता गया। उन्होंने सेलीन, मार्क जेकब, डीकेएनवाई, थॉमस पिंक जैसे फेमस ब्रांड खरीद कर फैशन की दुनिया में अपनी धाक जमा दी। इसके साथ ही उन्होंने इटैलियन ज्वैलरी कंपनी बुलगरी Bvlgari, लक्ज़री होटेल ग्रुप बेलमॉन्ड Belmond और टिफ्फनी Tiffany जैसी मशहूर कंपनियों को भी खरीदा और फ्रांस ही नहीं पूरी दुनिया में उनकी तूती बोलने लगी। फैशन के अलावा बर्नार्ड ने कई अन्य ब्रान्ड्स में भी निवेश किया है, जिनमें ज़ी बैंक, बू डॉट कॉम, नेटफ्ल्क्सि जैसे नाम प्रमुख हैं। Forbes कंपनी के मुताबिक वर्तमान में बर्नार्ड की नेटवर्थ France की GDP के 3% के बराबर तक पहुंच गयी है। </div><div style="text-align: justify;"> </div><div style="text-align: center;"><span style="font-size: large;">Read: <a href="https://me.scientificworld.in/2021/06/sandeep-maheshwari-biography.html">Sandeep Maheshwari Biography in Hindi</a></span> <br /></div><div style="text-align: justify;"><br /></div><div style="text-align: justify;"><h3>बर्नार्ड अरनॉल्ट की पत्नी एवं बच्चे Bernard Arnault Family in Hindi</h3>
बर्नार्ड अरनॉल्ट की दो बार शादी हो चुकी है और इनके पांच बच्चे हैं। बर्नार्ड की पहली शादी 1973 में ऐनी देवरीन Anne Dewavrin से हुई, लेकिन 1990 में तलाक हो गया। उनकी दूसरी शादी 1991 में हेलेन मर्सियर Hélène Mercier से हुई। वे एक पियानो वादक हैं। बर्नार्ड की पहली पत्नी से दो बच्चे हैं, और दूसरी से तीन, जिनमें से एक लड़की है और चार लड़के। उनकी लड़की डेल्फिन अरनॉल्ट Delphine Arnault लुई विदॉन कंपनी में ही डायरेक्टर और एक्ज़ीक्यूटिव वाइस प्रेसिडेन्ट के रूप में कार्य कर रही है। उनके चारों लड़कों के नाम है अंटोईन अरनॉल्ट (Antoine Arnault), अलेक्जेंडर अरनॉल्ट Alexandre Arnault, फ़्रेडरिक अरनॉल्ट Frédéric Arnault और जीन अरनॉल्ट Jean Arnault. इनमें से जीन के अलावा बाकी के तीनों लड़के किसी न किसी कंपनी से जुड़े हुए हैं और अपने पिता के बिज़नेस में उनकी मदद कर रहे हैं। <br /><br /><h3>
बर्नार्ड अरनॉल्ट के शौक और मानवीय पहलू </h3>
बर्नार्ड अरनॉल्ट एक कलाप्रेमी व्यक्ति हैं। वे मशहूर आर्टिस्ट की कलात्मक पेंटिंग्स के कलेक्शन के लिए भी जाने जाते हैं। इसके अलावा वे हर साल अपनी कंपनी LMVH के बैनर तले Young Fashion Designer का एक इंटरनेशनल कॉम्पीटीशन भी करवाते हैं, जिसके विजेता को कंपनी की तरफ से एक साल की मेन्टोरशिप दी जाती है और उनका अपना डिज़ाइनर लेबल बनाने में मदद की जाती है।
बर्नार्ड नेचर, कल्चर और ह्यूमन वैल्यूज़ के प्रति भी समर्पित रहते हैं। उन्होंने 2019 में अमेज़न रेन फॉरेस्ट में लगी आग को बुझाने के लिए 11 मिलियन डालर्स दान में दिये थे। इसके अलावा वे कल्चरल और आर्टिस्टिक प्रोग्राम्स के लिए भी समय समय पर सहयोग करते रहते हैं।
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बर्नार्ड अरनॉल्ट के पुरस्कार एवं सम्मान Bernard Arnault Success Awards in Hindi</h3>
बर्नार्ड अरनॉल्ट को उनके आर्थिक और सामाजिक योगदान के लिए समय समय पर विभिन्नि पुरस्कार और सम्मान भी प्रदान किये जाते रहे हैं। उन्हें वर्ष 2007 में फ्रांस के सर्वोच्च सम्मान के रूप में 'सेना के सेनापति' का नाम दिया गया था। 2007 में ही उन्हें टाइम मैग्ज़ीन ने दुनिया के 100 सबसे प्रभावशाली लोगों में शामिल किया था। उन्हें 2007 में फ्रेंच लीजन ऑफ ऑनर और 2011 में फ्रेंच लीजन ऑफ ऑनर का ग्रैंड ऑफिसर भी बनाया गया। वर्ष 2011 में ही उन्हें वुड्रो विल्सन इंटरनेशनल सेंटर फॉर स्कॉलर्स से कॉर्पोरेट नागरिकता पुरस्कार प्रदान किया गया। इसके अलावा वर्ष 2014 में The Museum of Modern Art का प्रसिद्ध David Rockfeller पुरस्कार भी उन्हें प्रदान किया जा चुका है।
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बर्नार्ड अरनॉल्ट की सफलता के राज़ Bernard Arnault Success Secrets in Hindi</h3>
बर्नार्ड अरनॉल्ट के बिज़नेस की खास बात यह है कि वे स्टार ब्रांड्स में निवेश करते हैं। ऐसे ब्रांड्स, जो अपनी क्वालिटी और क्लास के लिए जाने जाते हैं। वे अपने ब्रांड्स की क्वालिटी पर बेहद ध्यान देते हैं। इसके लिए वे मशीनों में तुलना में स्किल्ड वर्कर को ज्यादा महत्व देते हैं। </div><div style="text-align: justify;"> </div><div style="text-align: justify;"></div><div style="text-align: center;"><span style="font-size: large;">Read: <a href="https://me.scientificworld.in/2016/03/bhagat-singh-biography-and-quotes-in-hindi.html">Bhagat Singh Biography in Hindi</a></span><br /></div><div style="text-align: justify;"><br />
वर्तमान में बर्नार्ड के पास 75 से भी अधिक पॉपुलर ब्रान्ड्स हैं, जिनमें फैशन, वाइन्स, परफ्यूम्स, कॉस्मेटिक्स और ज्वेलरी प्रमुख हैं। उनके अपने ब्रान्ड्स के लगभग 4600 स्टोर हैं, जिनमें 01 लाख 60 हजार से ज्यादा एम्प्लाई काम करते हैं। वे समय की नब्ज़ पर नज़र रखते हैं। यही कारण है कि एक ओर वे टॉप सिंगर रेआना के साथ कोलेबरेशन करते हैं, वहीं दूसरी ओर तेजी से उभरते हुए ब्रांड्स को अपने ग्रुप में शामिल करते रहते हैं।
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बर्नार्ड अरनॉल्ट 72 साल की उम्र में भी बेहद एक्टिव हैं। आज भले ही उनके बिज़नेस में उनके बच्चे उनकी मदद कर रहे हैं, पर आज भी वे अपनी कंपनियों के प्रोडक्शन, मार्केटिंग और सेल्स की सभी योजनाओं पर पूरी नजर रखते हैं और नियमित तौर पर अपने स्टोर्स पर विजिट करके कस्टमर्स का फीडबैक लेते रहते हैं। इसके साथ ही वे अपने प्रतिद्वद्वियों के स्टोर्स पर भी नियमित रूप से जाते हैं, ताकि उनकी मार्केटिंग स्ट्रेटेजी को समझ सकें और उनसे कुछ नया सीख सकें। बिज़नेस के प्रति उनका यही पैशन उन्हें दूसरों से अलग करता है और शायद यही कारण है कि वे 197.8 बिलियन डॉलर के नेटवर्थ के साथ विश्व के सबसे धनी व्यक्ति के सिंहासन पर विराजमान हैं।</div>
<br /></div><div style="text-align: center;">देखें बर्नार्ड अरनॉल्ट की बायोग्राफी यूट्यूब पर:<br /></div><div>
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<iframe allow="accelerometer; autoplay; clipboard-write; encrypted-media; gyroscope; picture-in-picture" allowfullscreen="" frameborder="0" height="315" src="https://www.youtube.com/embed/FSCDgQ9ZI0Y" title="YouTube video player" width="560"></iframe>
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<div style="text-align: justify;">दोस्तों, अगर आपको बर्नार्ड अरनॉल्ट का जीवन परिचय Bernard Arnault Biography in Hindi पसंद आए, तो इसे अपने फ्रेंड्स के साथ भी शेयर करें। और हां, जब भी कोई आपसे बर्नार्ड अरनॉल्ट के बारे में बात करे, तो उसे हमारा पता बताना न भूलें। <br /></div></div>विद्या सरनhttp://www.blogger.com/profile/13874233412214088080noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-290840405926959662.post-70470647728116540952021-06-14T22:12:00.006+05:302021-09-30T13:52:04.271+05:30एलन मस्क का जीवन परिचय Elon Musk Biography in Hindi<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgsP4_9hygQYwXr53nHf7mwfWw4DC0TJARHT0tTIItSpx_r5F0RGWwWAmCOhAmaAXvnQoW9SF3E6YoOtMTgUX_tTSg10xft0z1u-FqWOuOio3d-wlzDW6N_1iSWkK0pM9ukREwoUp7GsQoi/s1280/Elon+Musk+Biography.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="Elon Musk Biography in Hindi" border="0" data-original-height="720" data-original-width="1280" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgsP4_9hygQYwXr53nHf7mwfWw4DC0TJARHT0tTIItSpx_r5F0RGWwWAmCOhAmaAXvnQoW9SF3E6YoOtMTgUX_tTSg10xft0z1u-FqWOuOio3d-wlzDW6N_1iSWkK0pM9ukREwoUp7GsQoi/s16000/Elon+Musk+Biography.jpg" /></a></div><div style="text-align: justify;">दुनिया में दो तरह के लोग पाए जाते हैं, एक वे जो सिर्फ अपने बारे में विचार करते हैं और दूसरे वे जो स्वयं से ज्यादा दूसरों के बारे में सोचते हैं और ऐसे ही लोग दुनिया को खूबसूरत बनाते हैं। दूसरी श्रेणी के ज्यादातर लोग विचारक, लेखक या फिर सोशल एक्टिविस्ट होते हैं। पर इस श्रेणी का कोई व्यक्ति उद्योगपति भी हो सकता है, यह एलन मस्क ने कर दिखाया है। एलन दुनिया के तीसरे सबसे अमीर आदमी हैं, जो अपनी युवावस्था से ही दुनिया को सुंदर और सुविधाजनक बनाने का सपना देखते रहे हैं।
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एलन मस्क अपनी भविष्योन्मुखी सोच और जुनून के लिए जाने जाते हैं। वे एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर, रॉकेट साइंटिस्ट और उद्योगपति होने के साथ अभिनेता भी हैं और कई डॉक्यूमेंट्रीज़ व कॉमेडी फिल्मों में भी काम कर चुके हैं। वे वर्तमान में अपनी इलेक्ट्रिक कार, सैटेलाइट के जरिए गांव-गांव तक इंटरनेट पहुंचाने की योजना, ज़मीन के भीतर 1220 किमी प्रति घंटा की गति से चलने वाली हाईपरलूप ट्रेन और मंगल ग्रह पर बसाई जाने वाली मानव कॉलोनी सम्बंधी योजनाओं के लिए चर्चा में रहते हैं। तो आइए आज हम दुनिया के इस सबसे चर्चित व्यक्ति के बारे (Elon Musk Biography in Hindi) में जानते हैं, और यह समझने की कोशिश करते हैं कि वे कामयाबी के इस मकाम तक कैसे पहुंचे हैं। </div><div style="text-align: justify;"><h2 style="text-align: center;">Elon Musk Biography in Hindi</h2>
एलन मस्क का जन्म 28 जून 1971 को दक्षिण अफ़्रीका के प्रिटोरिया, ट्रांसवाल में हुआ था। उनके पिता एरोल मस्क (Errol Musk) इलेक्ट्रिक इंजीनियर और पायलेट थे। एलन की मां का नाम मे मस्क (Maye Musk) है और वे एक मॉडल और डायटीशियन थीं। एलन जब 10 साल के थे तभी उनके माता-पिता का तलाक हो गया था। तलाक के बाद एलन अपने पिता के साथ रहने लगे थे। </div><div style="text-align: justify;"> </div><div style="text-align: center;"><span style="font-size: large;">Read: <a href="https://me.scientificworld.in/2021/05/jeff-bezos-life-history-hindi.html">Jeff Bezos Biography in Hindi</a></span><br /></div><div style="text-align: justify;"><br />
एलन की शुरूआती पढ़ाई वाटरक्लूफ हाउस प्रिपेटरी स्कूल और प्रिटोरिया ब्वायज हाई स्कूल से हुई। सन 1989 में एनल जब महज 17 साल के थे, तो वे कनाडा चले गये। वहां पर उन्होंने यूनिवर्सिटी आफ क्वीन में प्रवेश लिया। पर दो साल बाद उन्होंने अपना ट्रांसफर यूनिवर्सिटी आफ पेन्सलवेनिया में करवा लिया। उन्होंने यूनिवर्सिटी ऑफ़ पेनसिलवेनिया से फिजिक्स की BA की डिग्री हासिल की और व्हार्टन स्कूल ऑफ़ बिज़नेस से इकोनॉमिक्स (BE) की डिग्री भी प्राप्त की। सन 1995 में पीएचडी के लिए एलन ने कैलिफोर्निया जाने का निश्चय किया। वहां पर उन्हें इंटरनेट का ज्ञान हुआ। इससे उनकी सोच एकदम से बदल गयी और उन्होंने दो दिन में ही अपना एडमिशन वापस लिया।
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Blaster Game का निर्माण </h3>
एलन को बचपन से ही किताबों में बहुत रूचि थी। कहा जाता है कि उन्होंने 10 साल की उम्र में इतनी किताबें पढ़ ली थीं, जितनी आज के ग्रेजुएट भी नहीं पढ़ पाते हैं। 12 साल की उम्र में एलन को उनके पिता ने एक कम्प्यूटर लाकर दिया। एलन ने किताबों की मदद से प्रोग्रामिंग सीखी और 'ब्लॉस्टर' (Blaster) नामक गेम बना दिया। बाद में उन्होंने वह गेम एक अमेरिकी कंपनी को 500 डॉलर में बेच दिया।
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Zip2 कंपनी की स्थापना</h3>
एलन ने सन 1995 में अपने भाई के साथ मिलकर Zip2 नामक कम्पनी बनाई। यह कंपनी न्यूज़ पेपर को सिटी गाइड करने का काम करती थी। इस कंपनी को 1999 में Compaq ने खरीद लिया। Zip2 में एलन के 7 प्रतिशत शेयर थे, जिसके एवज में उन्हें 22 मिलियन डॉलर प्राप्त हुए।
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X.com की शुरुआत और Paypal </h3>
Zip2 से मिले पैसों से एलन ने सन 1999 में 10 मिलियन डॉलर खर्च करके X.com कंपनी बनाई। यह कंपनी फायनेंशियल सर्विस देने का काम करती थी। एक साल बाद ही X.com का कॉन्फ़िनिटी नामक कंपनी में विलय हो गया। कॉन्फ़िनिटी मनी ट्रांसफर की सर्विस देती थी, जिसका नाम बाद में 'पे-पाल' Paypal कर दिया गया। विलय के बाद एलन मस्क ओर बोर्ड मेम्बर्स के बीच में एक विवाद हो गया, जिससे Paypal को बेचने का निर्णय लिया गया। सन 2002 में Ebay कंपनी ने Paypal को खरीद लिया। इस सौदे के फलस्वरूप एलन मस्क को 165 मिलियन डॉलर प्राप्त हुए थे।
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SpaceX कंपनी की स्थापना और मंगल में मानव कॉलोनी</h3>
एलन अपनी युवावस्था से ही ऐसी बातों को लेकर सोचते रहे हैं, जिनसे भविष्य में मानवता प्रभावित हो सकती है। उनमें से एक बिन्दु था धरती पर मानव का जीवन। धरती पर मनुष्यों की बढ़ती भीड़ के मद्देनज़र उन्होंने मंगल ग्रह पर मानव कालोनी बनाने का सपना देखा और वर्ष 2002 में SpaceX कंपनी की नींव रखी। इसके तहत उन्होंने सबसे पहले रॉकेट विज्ञान का अध्ययन किया और उपयोग हो चुके पार्ट्स की मदद से 'फेल्कॉन' नामक रॉकेट बनाया। यह रॉकेट बेहद सस्ता है और इसकी उपयोगिता के कारण नासा भी अंतरिक्ष स्टेशन तक सामान पहुंचाने के लिए इस रॉकेट का उपयोग करती है। </div><div style="text-align: justify;"> </div><div style="text-align: center;"><span style="font-size: large;">Read: <a href="https://me.scientificworld.in/2021/07/bernard-arnault-biography-hindi.html">Bernard Arnault Biography in Hindi</a></span> <br /></div><div style="text-align: justify;"><br />
एलन मस्क ने सन 2050 तक मंगल ग्रह पर 10 लाख लोगों के रहने लायक मानव बस्ती बनाने का सपना देखा है। उन्होंने मंगल तक की इस यात्रा के खर्च को प्रति व्यक्ति के हिसाब से 2 लाख डॉलर, यानी लगभग डेढ करोड़ रूपये तक लाने का लक्ष्य निर्धारित किया है। इसके लिए वे रॉकेट और स्पेसशिप को रियूजेबल बनाने, रिफिलिंग आर्बिट यानी पृथ्वी की कक्षा में फ्यूल भरने, और मंगल ग्रह पर ही प्रोपेलैंड यानी रॉकेट का फ्यूल बनाने की दिशा में कार्य कर रहे हैं।
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SpaceX कंपनी एक ऐसे रॉकेट पर भी कार्य कर रही है, जिसकी मदद से 550 टन का पेलोड अंतरिक्ष में ले जाया जा सके। इस खास तरह के रॉकेट में रॉफ्टर इंजन का प्रयोग किया जाएगा। कंपनी एक रॉकेट में 42 रॉफ्टर इंजन का इस्तेमाल करेगी तथा मंगल पर जाने वाली स्पेसशिप में 9 रॉफ्टर इंजन लगाए जाएंगे। एलन मस्क ने 2022 में छोड़े जाने वाले इस स्पेसशिप का नाम 'स्टारशिप' रखा है, और अब तक इसकी कई टेस्टिंग्स भी जा चुकी हैं।
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एलन मस्क मंगल पर मानव कॉलोनी बसाने सम्बंधी अपने प्लान के बारे में बताते हुए कहते हैं कि सबसे पहले स्पेसशिप में बिना ईंधन भरे उसे रॉकेट की मदद से पृथ्वी की कक्षा तक ले जाया जाएगा। उसे पृथ्वी की कक्षा में छोड़कर रॉकेट धरती पर लौट आएगा। इसके बाद रॉकेट धरती से इंधन टैंक को लेकर जाएगा और ऑर्बिट में ही उसे स्पेसशिप से जोड़ देगा। इसके बाद स्पेसशिप अपने ईंधन और सौर उर्जा की की मदद से मंगल के लिए रवाना हो जाएगा।
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मंगल पर पहुंच कर स्पेसशिप सबसे पहले वातावरण से कार्बनडाई आक्साइड और धरती के अंदर मौजूद पानी की मदद से मीथेन गैस का उत्पादन करेगी और उसे प्रोपेलैण्ड के रूप में इस्तेमाल करेगी, जिससे स्पेसशिप वापस धरती तक लौट कर आ सकेगी।
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वैज्ञानिकों के अनुसार मंगल का औसत तापमान माइनस साठ डिग्री सेल्सियस है, जोकि रिहायश के नज़रिए से बेहद चुनौतीपूर्ण है। लेकिन इसके लिए भी एलन मस्क के पास एक ठोस प्लान है। वे कहते हैं कि हम मंगल के वातावरण को गर्म करने के लिए उसके ध्रुवों पर जमी बर्फ में न्यूक्लियर वैपन चलाएंगे। इससे बर्फ में फंसी कार्बन डाइआक्साइड मुक्त होगी और वहां पर ग्रीनहाउस इफेक्ट पैदा होगा। इससे मंगल का वातावरण धीरे—धीरे गर्म हो जाएगा और मनुष्य के रहने लायक बन जाएगा। </div><div style="text-align: justify;"> </div><div style="text-align: center;"><span style="font-size: large;">Read: <a href="https://me.scientificworld.in/2021/06/ratan-tata-biography.html">Ratan Tata Biography in Hindi</a></span><br /></div><div style="text-align: justify;"><br /><h3>
Tesla Motors में निवेश</h3>
एलन मस्क ने वर्ष 2004 में Tesla Motors में 7.5 मिलियन डॉलर का एन्वेस्टमेंट किया। अपनी ज्वाइनिंग के साथ ही एलन ने इलेक्ट्रिक कारों पर काम करना शुरू किया। वे 2008 में इसके सीईओ बने। उनका सपना है कि 2030 तक सड़कों पर मौजूद पेट्रोल और डीजल की गाड़ियों को इलेक्ट्रिक गाडियों से रिप्लेस कर दिया जाए। इसके लिए वे सस्ती इलेक्ट्रिक कारों और ड्राइवर रहित गाड़ियों पर भी काम कर रहे हैं।
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टेस्ला और सोलर सिटी का विलय</h3>
एलन मस्क ने वर्ष 2006 में अपने चचेरे भाई की कंपनी 'सोलर सिटी' (Solar City) में 500 मिलियन डॉलर का इन्वेस्टमेंट किया और देखते ही देखते इसे अमेरिका की दूसरी सबसे बड़ी सोलर कंपनी बना दिया। अपनी भविष्य की रणनीतियों को ध्यान में रखते हुए सन 2016 में एलन मस्क ने 2.6 बिलियन डॉलर में सोलर सिटी को खरीद लिया और उसका टेस्ला मोटर्स में विलय कर लिया। अब सोलर सिटी और टेस्ला मिलकर नई टेक्नोलॉजी पर काम कर रही है, ताकि वह भविष्य में ज्यादा बेहतर और सस्ती इलेक्ट्रिक कारें बना सकें।
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हाईपरलूप ट्रेन Hyperloop Train</h3>
एलन मस्क जिन अन्य योजनाओं पर कार्य कर रहे हैं, उनमें Hyperloop Train का भी नाम शामिल है। हाईपरलूप एक तरह की कैप्सूल ट्रेन है, जो पाइप के अंदर चलती है। इस ट्रेन में पाइप के अंदर बिना घर्षण और वायु प्रतिरोध के एक कैप्स्यूल को मूव किया जाता है। इस कांसेप्ट को एलन मस्क ने वर्ष 2012 में लांच किया था। उनके अनुसार इस तरह की ट्रेन से मनुष्य 1220 किमी0 प्रति घंटा की रफ्तार से यात्रा कर सकता है।
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स्टारलिंक इंटरनेट Starlink Internet</h3>
इसके अलावा एलन मस्क सैटेलाइट के जरिए इंटरनेट सेवा उपलब्ध कराने की योजना पर भी काम कर रहे हैं। स्टारलिंक (Starlink) नामक इस कंपनी का 42 हजार सैटेलाइट के जरिए दुनिया के कोने—कोने में इंटरनेट की सुविधा प्रदान करने का लक्ष्य है। हालांकि कंपनी ने अब तक लगभग 1081 सैटेलाइट्स लॉन्च किए हैं, जिससे लगभग 10 हजार ग्राहक जुड़े हैं। पर Starlink को अनुमान है कि जल्द ही वह 12,000 सैटेलाइट लांच कर देगी। Starlink ने अपने 42000 सैटेलाइट लांच के लक्ष्य को पूरा करने के लिए वर्ष 2025 का टार्गेट तय किया है। और वह इस दिशा में पूरी गम्भीरता से अपने कदम बढ़ा रही है। </div><div style="text-align: justify;"> </div><div style="text-align: center;"><span style="font-size: large;">Read: <a href="https://me.scientificworld.in/2016/07/salman-khan-biography-in-hindi.html">Salman Khan Biography in Hindi</a></span><br /></div><div style="text-align: justify;"><br /><h3>
एलन मस्क की पत्नी और बच्चे Elon Musk Wife and Children</h3>
एलन मस्क बिज़नेस के क्षेत्र में जितने सफल रहे हैं, पारिवारिक नज़रिए से वे उतने ही असफल माने जाते हैं। एलन ने अब तक दो महिलाओं से तीन शादियां की हैं। उनकी पहली शादी वर्ष 2000 में जस्टिन विल्सन (Justin Wilson) से हुई थी। जस्टिन से उनके पांच बच्चे हैं, जिनमें से ग्रिफिन और जेवियर का जन्म 2004 में जुड़वा के रूप में हुआ था। इसके बाद 2006 में उनके एक साथ तीन बच्चे हुए, जिनके नाम काई, सेक्सन और डेमियन हैं।
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सन 2008 में एलन का अपनी पत्नी तलाक हो गया। वर्ष 2010 में मस्क ने ब्रिटिश अभिनेत्री तालुला रिले (Talulah Riley) से शादी की। लेकिन 2012 में उनका तलाक हो गया। इसके बाद 2013 में एलन ने पुन: तालुला से विवाह किया। लेकिन यह बंधन भी ज्यादा दिनों तक नहीं चल सका और 2016 में उनका पुन: तलाक हो गया।
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दुनिया के सबसे अमीर व्यक्ति World Richest Person 2021</h3>
एलन ने अपने 50 साल के जीवन में कई उतार चढ़ाव देखे हैं। वे एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर, रॉकेट साइंटिस्ट, सफल उद्योगपति के साथ 4 पेटेंट के स्वामी भी हैं और कई डॉक्यूमेंट्री और कॉमेडी मूवीज में एक्टिंग भी कर चुके हैं। हालीवुड की प्रसिद्ध फिल्म 'आयरन मैन' उनके व्यक्तित्व को ही सामने रख कर बनाई गयी है। वैसे तो एलन मस्क 8 जनवरी 2021 से 26 मई 2021 तक दुनिया के सबसे अमीर व्यक्ति के तख्त पर भी विराजमान रह चुके हैं, पर 11 जून, 2021 तक उनकी नेटवर्थ 147 बिलियन डॉलर है और इस नज़रिए से विश्व के तीसरे सबसे अमीर व्यक्ति के रूप में स्थापित हैं। लेकिन एलन उन व्यक्तियों में से नहीं हैं, जो यहां पर रूक जाएं। वे जिस जुनून के साथ अपनी योजनाओं पर काम कर रहे हैं, ऐसे में हमें किसी भी दिन यह ब्रेकिंग न्यूज़ सुनने को मिल सकती है कि टेस्ला मोटर्स और स्पेसएक्स जैसी कंपनियों के सीईओ एलन मस्क अपने प्रतिद्वन्द्वी को पीछे छोड़ते हुए दुनिया के सबसे अमीर व्यक्ति बन चुके हैं। </div><div style="text-align: justify;"><br /></div><div style="text-align: justify;"><b>अपडेट: आज दिनांक 30 सितम्बर, 2021 को वे पुन: 201 बिलियन डॉलर की नेटवर्थ के साथ दुनिया के सबसे अमीर आदमी के तख्त पर विराजमान हैं।</b><br /></div><div style="text-align: justify;"><br /></div><div style="text-align: center;"><b>देखें एलन मस्क की बायोग्राफी यूट्यूब पर:</b></div><div style="text-align: center;"> <br /></div>
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<div style="text-align: justify;"> </div><div style="text-align: justify;">दोस्तों, अगर आपको Elon Musk Biography in Hindi पसंद आए, तो इसे अपने फ्रेंड्स के साथ भी जरूर शेयर करें। और हां, जब भी कोई आपसे के बारे में पूछे, तो उसे हमारा पता बताना न भूलें। <br /></div>विद्या सरनhttp://www.blogger.com/profile/13874233412214088080noreply@blogger.com2